19वीं शताब्दी में भारत नवजागरण की जिन प्रवृत्तियों के दौर से गुजर रहा था, उन्हें “समाज सुधार आन्दोलन (Social Reform Movements)” की संज्ञा दी जाती है. विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों ने धार्मिक तथा सामजिक सुधार के माध्यम से वैज्ञानिक तथा आधुनिक वैचारिक प्रवृत्तियों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज हम 19वीं शताब्दी में धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन (Religion and Social Reform Movements) के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को एक-एक कर के आपके सामने रखेंगे. इस पूरे पोस्ट को पढ़ने के बाद आप इस Quiz को जरुर खेलें> धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन
ब्रह्म समाज (Brahmo Samaj)
- राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना 20 अगस्त, 1828 को मानव विवेक, वेद एवं उपनिषदों के ज्ञानात्मक पक्ष को आधार बनाकर तथा एकेश्वरवाद की उपासना, मूर्तिपूजा का विरोध, पुरोहितवाद का विरोध, अवतारवाद का खंडन आदि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की गई. इसे ही आगे चलकर “ब्रह्म समाज” के नाम से जाना गया.
- राजा रामोहन राय के प्रयासों द्वारा ही गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने वर्ष 1829 में अधिनियम XVII (17) पारित कर “सति प्रथा/Sati Pratha” पर रोक लगाई.
- 1833 में राजा रामोहन राय की मृत्यु हो गयी. उनके बाद द्वारकानाथ टैगोर, पंडित रामचंद्र विधावागीस ने संस्था का सञ्चालन किया.
- ताराचंद चक्रवर्ती ब्रह्म समाज के प्रथम मंत्री थे.
- 1843 में देवेन्द्रनाथ टैगोर ब्रह्म समाज में शामिल हुए. यहाँ आने से पहले वे जोरासंको (कलकत्ता) में तत्वरंगिनी सभा की स्थापना कर चुके थे, जो वर्ष 1839 में “तत्त्वबोधिनी सभा (tattvabodhini sabha)” कहलाई.
- “तत्त्वबोधिनी” पत्रिका (देवेन्द्रनाथ टैगोर) ब्रह्म समाज की मुखपत्र थी.
- 1867 में “ब्रह्म समाज/Brahmo Samaj” का विभाजन हो गया. देवेन्द्रनाथ टैगोर का गुट “आदि ब्रह्म समाज/Adi Brahmo Samaj)” कहलाया जबकि केशवचंद्र का गुट “भारतीय ब्रह्म समाज (नव विधान)/Bhartiya Brahmo Samaj” कहलाया.
- 1878 में “ब्रह्म समाज/Brahmo Samaj” का पुनः विभाजन हो गया. आनंद मोहन बोस, द्वारिकानाथ गांगुली जैसे अनुयायियों द्वारा साधारण ब्रह्म समाज (Sadharan Brahmo Samaj) की स्थापना की गयी.
यंग बंगाल आन्दोलन (Young Bangal Movement)
इस आन्दोलन के प्रणेता हेनरी विवियन डेरोजियो/Henry Louis Vivian Derozio थे. इनके पिता पुर्तगाली एवं माता भारतीय थीं.
- 1826-31 तक “हिन्दू कॉलेज” में प्रध्यापक रहे.
- इन्होंने वाद-विवाद तथा लेखन के माध्यम से प्राचीन जर्जर परम्पराओं का विरोध किया. ये आधुनिक भारत के प्रथम राष्ट्रवादी कवि थे.
- उन्होंने एकेडमिक एसोसिएशन (Academic Association) और “सोसाइटी फॉर द एक्विजीशन ऑफ़ जनरल नॉलेज/Society for the Exhibition of General Knowledge” जैसे संगठनों की स्थापना की.
- मेजिनी के “यंग इटली/Young Italy” संगठन के सामान “यंग बंगाल/Young Bengal” नामक संगठन की स्थापना कर “यंग बंगालआन्दोलन/Young Bengal Movement” चलाया.
- प्रेस की स्वतंत्रता, रैय्यतों की सुरक्षा, प्रशासन भारतीयकरण, नारी मुक्ति जैसे विषयों को अपनी चर्चा का विषय बनाया.
- 1831 में “हैजे” के कारण 24 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गई.
प्रार्थना समाज (Prarthana Samaj)
- 1867 में “केशवचन्द्र सेन” की प्रेरणा से डॉ. आत्माराम पांडुरंग तथा न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे द्वारा बम्बई में प्राथना समाज की सथापना की गयी.
- प्राथना समाज के अन्दर दलित जाति मंडल/Dalit Jati Mandal, समाज सेवा संघ/Samaj Seva Sangh तथा दक्कन शिक्षा सभा/Dakkan Siksha Sabha की स्थापना की गई, जो विभिन्न कल्याणकारी कार्यों में संलग्न रहे.
- 1884 में रानाडे द्वारा स्थापित डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी/Deccan Education Society को ही कालान्त्कार में पूना फर्ग्यूसन कॉलेज/Fergusson College Poona का नाम दिया गया.
रामकृष्ण मिशन (Ramkrishna Mission)
रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस (1836-86) की स्मृति में 1 मई, 1897 को की. सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 1909 में मिशन का औपचारिक पंजीकरण कराया गया.
- इनके सिद्धांतों का आधार “वेदांत दर्शन” है. इस मिशन के अनुसार, इस्श्वर, निराकार, मानव बुद्धि से परे तथा सर्वव्यापी है.
- राम्क्रिश परमहंस (गदाधर चट्टोपाध्याय) कलकत्ता के पास दक्षिणेश्वर में काली मंदिर के पुजारी थे.
- रामकृष्ण ने तांत्रिक, वैष्णव और अद्वैत सादना द्वारा निर्विकल्प समाधि की स्थिति प्राप्त की और “परमहंस” कहलाये.
आर्य समाज (Arya Samaj)
- आर्य समाज/Arya Samaj की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने वर्ष 1875 में बम्बई में की थी, जिसका उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुनः स्थापना करना था.
- आर्य समाज का मुख्यालय “लाहौर” था.
- ये मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, तंत्र-मन्त्र तथा झूठे कर्मकांड को स्वीकार नहीं करते थे.
- इन्होंने “बड़ों की ओर लौट चलो/Back to Veda” का नारा दिया.
- स्वामीजी ने वर्ष 1863 में “पाखण्ड खंडिनी पताका/Pakhand Khandni Pataka” लहराई, “शुद्धि आन्दोलन/Shudhi Movement” चलाया तथा वर्ष 1882 में “गौ रक्षा संघ” की स्थापना की.
- “वेलेंटाइन चिरेल/Ignatius Valentine Chirol” ने अपनी पुस्तक “Indian Unrest” में “आर्य समाज” को “भारतीय अशांति का जन्मदाता” कहा.
- हंसराज एवं लाला लाजपत राय द्वारा वर्ष 1886 में दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना लौहोर में की गई.
- 1902 में लेखराज एवं मुंशीराम द्वारा हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई.
थियोसॉफिकल सोसाइटी (Theosophical Society)
थियोसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना मैडम वलाव्त्सकी तथा कर्नल हेनरी स्टील आलकाट/Madam Valavtski and Henry Steel Olcott ने वर्ष 1875 में अमेरिका में की.
- 1883 में मद्रास (चेन्नई) के निकट अड्यार नामक स्थान पर Theosophical Society का मुख्यालय बनाया.
- आयरिश महिला ऐनी बेसेंट/Annie Besant भारत आयीं और 1907 में Theosophical Society की प्रेसिडेंट बनीं. 1933 तक उन्होंने यह कार्यभार संभाला.
- “Theosophy” से आशय है “धर्म सम्बन्धी ज्ञान”. सोसाइटी का आन्दोलन “उपनिषदों” से प्रभावित था. इनका मन्ना था कि ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति आत्मिक हर्षोन्माद एवं अंतर्दृष्टि के माध्यम से हो सकती है.
- Annie Besant ने वर्ष 1898 में “बनारस” में “सेंट्रल हिन्दू कॉलेज” की स्थापना की, जो मदन मोहन मालवीय जैसे लोगों के प्रयास से वर्ष 1916 में “बनारस हिन्दू विश्वविद्द्यालय/BHU” बना.
अन्य धर्मों से जुड़े सुधार आन्दोलन/ Movements related to Other Religions
सिख/Sikh
- सिंह सभा/Sinha Sabha की स्थापना ठाकुर सिंह संहांवालिया एवं ज्ञानी ज्ञान सिंह के द्वारा 1 अक्टूबर, 1873 में अमृतसर में की गई.
- कूका व नामधारी आन्दोलन भगत जवाहर मल द्वारा चलाया गया, बाद में रामसिंह एवं बालक सिंह भी जुड़ गए.
- बाबा दयाल सिंह द्वारा प्रारम्भ निरंकारी आन्दोलन एक पुनरुत्थानवादी आन्दोलन था.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन (अकाली आन्दोलन) वर्ष 1920 में भ्रस्ट सिख महंतों के विरुद्ध हुआ. वर्ष 1922 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम (Sikh Gurdwaras Act) पास हुआ जो वर्ष 1925 में संशोधित किया गया. तत्पश्चात् शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना हुई.
पारसी/Parsi
- पारसी समाज तथा धर्म में सुधार की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी के मध्य बम्बई (मुंबई) से प्रारम्भ हुई.
- वर्ष 1951 में नौरोजी फरदोनजी, दादाभाई नौरोजी तथा एसएस बंगाली ने रहनुमाई मज्दयासन सभा की स्थापना की.
- सने सुधार सन्देश के प्रचार के लिए रफ्तगोफ्तार (पत्र) निकाला.
मुस्लिम/Muslim
उन्नीसवीं शताब्दी में समय-समय पर मुस्लिम धर्म सुधारकों ने अनेक धर्म सुधार आन्दोलन चलाये. इनकी प्रवृत्ति मुख्यतः दो प्रकार की थी. एक पुनरुत्थान (वहाबी, फराजी, तैयूनी) तथा दुसरे आधुनिकीकरण युक्त आन्दोलन; जैसे – अलीगढ़ आन्दोलन थे.
अलीगढ़ आन्दोलन/Aligarh Movement
- अलीगढ़ आन्दोलन, सर सैय्यद अहमद ख़ाँ द्वारा अंग्रेजी शिक्षा व विज्ञान के द्वारा मुस्लिम समाज को शिक्षित करने तथा उन्हें आधुनिकता से परिचित कराने हेतु शुरू किया गया.
- W.W. Hunter की पुस्तक इंडियन मुसलमान में ब्रिटिश सरकार को मुसलामानों से समझौता कर उन्हें रियायत देकर अपनी ओर मिलाने की सलाह दी गयी.
- सी सुझाव के तहत व्रिटिश सरकार द्वारा “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” के विरुद्ध सर सैय्यद अहमद ख़ाँ को तैयार किया गया.
वहाबी आन्दोलन/Wahabi Movement
इस आन्दोलन का उद्देश्य “दारुल हर्ब” को “दर-उल-इस्लाम” में बदलना था. इस विचारधारा को आन्दोलनकारी रूप रायबरेली के “सैय्यद अहमद बरेलवी” तथा “मिर्जा अजीज” ने दिया.
- सर्वप्रथम सैय्यद अहमद द्वारा पंजाब के सिखों के विरुद्ध जेहाद छेड़ा गया. वर्ष 1831 में पेशावर जीतने की कोशिश में बालाकोट के प्रसिद्ध युद्ध में वे मारे गए.
- बाद में आन्दोलन का मुख्यालय पटना में बनाया गया. यहाँ के प्रमुख नेता- विलायत अली, इनायत अली, फरहत अली आदि थे.
- वर्ष 1863 में अँगरेज़ सेनापति “Neville Chamberlain” ने सैकड़ों वहाबियों को मार डाला.
देवबंद आन्दोलन/Deoband Movement
30 मई, 1866 को मुहम्मद कासिम ननौत्वी तथा रशीद अहमद गंगोही ने सहारनपुर के पास देवबंद में दारुल उलूम (Darul Uloom) की स्थापना की.
- यह आन्दोलन हदीस की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करने तथा विदेशी शासनों के विरुद्ध नारा देने के उद्देश्य से शुरू हुआ था.
- देवबंद स्कूल की विचारधारा से मौलाना अबुल कलाम आजाद, डॉ. अंसारी तथा शिबली नूमानी जैसे लोग प्रभावित थे.
- कांग्रेस की स्थापना का स्वागत किया गया. साथ ही सैय्यद अहमद ख़ाँ की संस्थाओं के विरुद्ध फतवा जारी किया गया.
- शिबली नूमानी ने वर्ष 1894-96 में लखनऊ में नदवतुल-उलूम मदरसे (Nadwatu Uloom) की स्थापना की.
अन्य प्रमुख मुस्लिम सुधार आन्दोलन
- अहमदिया आन्दोलन (1889) मिर्जा गुलाम अहमद द्वारा.
- टीटू मीर आन्दोलन (1782-1831) मीर नीथार अली द्वारा.
- तैय्यूनी आन्दोलन करामात अली (जौनपुरी) द्वारा.
- फैराजी आन्दोलन हाजी शरीयतुल्लाह (फरीदपुर, पश्चिम बंगाल) द्वारा.
दक्षिण भारत में सुधार आन्दोलन
ब्रह्म समाज की गतिविधियों के प्रभाव, केशवचंद्र सेन की प्रेरणा तथा ईसाई मिशनरियों के प्रक्रिया के परिणामस्वरूप वर्ष 1864 में धरलू नायडू वेद समाज की स्थापना मद्रास में हुई.
- 1871 में श्रीधरलू नायडू ने इसे पुनर्गठित किया. इन्होंने वेद समाज को नया नाम ब्रह्म समाज ऑफ़ साउथ इंडिया दिया.
- 1878 में वीरेशंलिगम पंतुलू ने राजमुंदरी सोशल रिफार्म एसोसिएशन (Rajahmundry Social Reform Association) की स्थापना की.
केरल में श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1927 में “नारायण धर्म परिपालन योगम (Narayana Dharma Paripalana Sabha)” की स्थापना की. अद्वैत वेदान्त के साथ ही श्री नारायण गुरु ने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता तथा जातिवाद का विरोध किया.
19वीं शताब्दी में मद्रास प्रांत में दो हिन्दू संगठन प्रमुख थे – पहला 1892 ई. में वीरेशलिंगम पन्तुलु द्वारा स्थापित “मद्रास हिंदू सामाजिक सुधार समिति” और दूसरा एनी बेसेंट द्वारा स्थापित “मद्रास हिन्दू समिति”. पन्तलु की हिन्दू समिति ने एक सामाजिक शुद्दतावादी आन्दोलन चलाया और तत्कालीन सामाजिक अंधविश्वासों और देवदासी प्रथा का कड़ा विरोध किया. दूसरी ओर, राष्ट्रीय आधार पर हिन्दू सभ्यता के आदर्शों के अनुरूप हिन्दुओं का धार्मिक एवं सामाजिक उठान करना करना एनी बेसेंट के संगठन का प्रमुख उद्देश्य था.
पश्चिमी भारत में सुधार आन्दोलन
- महात्मा ज्योतिबा फूले महाराष्ट्र में “अछूतोद्धार” व “महिला शिक्षा” का कार्य आरम्भ करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे. दलितों तथा वंचित वर्गों को न्याय दिलाने के लिए 24 सितम्बर, 1873 को इन्होने सत्यशोधक समाज की स्थापना की. ज्योतिबा फूले ने ब्राहम्ण-पुरोहित के बिना ही विवाह संस्कार आरम्भ कराये तथा मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा इन्हें मान्यता दिलाई. महाराष्ट्र में अस्पृश्यता, महिला शिक्षा तथा सामजिक समता के लिए संघर्ष करने वाले ज्योतिबा फूले अग्रगण्य सामाजिक कार्यकर्ता थे.
- भीमराव आंबेडकर ने वर्ष 1924 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा/Bahishkrit Hitakarini Sabha बनाई. वर्ष 1930 में उन्होंने ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास फेडेरेशन/All India Depressed Class Federation की स्थापना की.
उन्नीसवीं सदी में क्षेत्रीय स्तर पर बंगाल से प्रारम्भ होने वाले समाज सुधार आंदलनों की राजा राममोहन राय की धारा, डेरेजियो, देवेन्द्रनाथ, केशवचन्द्र सेन आदि के माध्यम से आगे बढ़ी. यह बंगाल की सीमा को छोड़कर महाराष्ट्र, मद्रास, पंजाब जैसे प्रान्तों में भी फैली. यह क्रम “रामकृष्ण मिशन” के साथ, जिसका कार्य क्षेत्र लगभग अखिल भारतीय था, आगे बढ़ा. विभिन्न क्षेत्रों तथा वर्गों तक इस आन्दोलन ने अपनी पहुँच बनाई. पश्चिमोत्तर भारत के साथ दक्षिण भारत में भी समाज सुधार आन्दोलनों को अत्यधिक प्रसार मिला. दक्षिण भारत में जातिवाद का विरोध अधिक मुखरता के साथ सुधार आन्दोलन का हिस्सा बना था.
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मुख्य बिंदु
प्राचीनकाल से ही भारत एक धर्मप्रधान देश रहा है. परन्तु प्रारम्भ में हमारे देश में आदर्श धर्म देखने को मिलता था, जिसमें आडम्बरों और अंधविश्वासों का कोई स्थान नहीं था. इसलिए भारतीय समाज का विकास भी स्वस्थ परम्परा के अनुसार ही हो रहा था. लेकिन विदेशियों के आगमन के साथ ही धीरे-धीरे सामजिक और धार्मिक क्षेत्र में बुराइयों का प्रवेश प्रारम्भ हो गया और भारत में अंग्रेजी शासन के कायम होने तक ये बुराईयाँ अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थीं. अंग्रेजी राज्य की स्थापना के बाद हिन्दू धर्म अनेक कुरीतियों का शिकार हो गया जिसका प्रभाव समाज पर भी पड़ा. सम्पूर्ण देश में अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का अन्धकार छा गया. सती-प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, जाति प्रथा, बाल हत्या इत्यादि अनेक कुरीतियाँ समाज में व्याप्त हो गयीं.
इन बुराइयों का अंत करने के लिए एक संगठित धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन प्रारंभ हुआ. इसी दौरान एक समाज एवं धर्म सुधारक भारत के रंगमंच पर प्रकट हुए जिन्होंने इस आन्दोलन को व्यापक रूप प्रदान किया. समाज सुधारकों में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद्र विद्यासागर आदि प्रमुख हैं. धर्म एवं समाज सुधार आन्दोलन के पीछे कई कारण थे जैसे यूरोपीय सभ्यता का प्रभाव, नवीन मध्यम वर्ग का उदय, सामजिक गतिशीलता, सुधारकों का प्रभाव इत्यादि. अंग्रेजी सरकार ने भी इन बुराइयों को दूर करने में भारतीय सुधारकों के साथ सहयोग किया. जिसका परिणाम हुआ कि हमारा समाज कई अंधविश्वासों और कुरीतियों से बिल्कुल मुक्त हो गया.
यद्यपि 19वीं सदी में ही धर्म और समाज सुधार का कार्य प्रारम्भ हो गया था, लेकिन उस समय यह केवल व्यक्तिगत प्रयत्नों तक ही सीमित रहा. किन्तु धीरे-धीरे संगठित रूप से समाज सुधार के प्रयत्न शुरू हो गए. बाल विवाह और बहु विवाह को जड़ से उखाड़कर फेक दिया गया. समाज में जात-पात का बंधन भी ढीला पड़ने लगा. राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, ईश्वरचंद विद्यासागर आदि समाज सुधारकों ने धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जेहाद छेड़ दिया. सुधार आन्दोलन से न केवल धर्म एवं समाज में ही सुधार हुआ बल्कि शिक्षा और साहित्य की भी प्रगति हुई, लोग नयी-नयी भाषा और साहित्य के सम्पर्क में आये. कला और विज्ञान तथा औद्योगिक विकास हुआ. सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि राष्ट्रीयता की भावना का उदय भी इन्हीं सुधारों की वजह से हुआ, इसलिए यह सुधार आन्दोलन अंततः राष्ट्र को स्वतंत्र कराने में सहायक सिद्ध हुआ.
कुछ अन्य सामजिक, धार्मिक संगठन
संगठन | संस्थापक | स्थान | वर्ष |
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दीनबंधु सार्वजनिक सभा | ज्योतिबा फूले | महाराष्ट्र | 1884 |
देव समाज | शिवनारायण अग्निहोत्री | लाहौर | 1887 |
इंडियन नेशनल सोशल कांफ्रेंस | रानाडे | बम्बई | 1887 |
विधवा आश्रम | डीके कर्वे | पूना | 1899 |
सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी | गोखले | बम्बई | 1905 |
पूना सेवा सदन | रमाबाई रानाडे | पूना | 1909 |
सोशल सर्विस लीग | एनएम जोशी | बम्बई | 1911 |
सेवा समिति | एचएन कुंजरु | इलाहाबाद | 1914 |
विश्व भारती | रबीन्द्रनाथ टैगोर | बंगाल | 1918 |
हरिजन सेवक संघ | महात्मा गांधी | अहमदाबाद | 1932 |
सामजिक सुधार अधिनियम (SOCIAL REFORMS ACT)
अधिनियम | वर्ष | गवर्नर जनरल | विषय |
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शिशु वध प्रतिबंध/ Infanticide Prevention Act | 1802 | वेजली | शिशु हत्या पर प्रतिबंध |
सती प्रथा प्रतिबंध/Sati (Prevention) Act | 1829 | लॉर्ड विलियम बैंटिक | सती प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध (राजा राममोहन के प्रयास से) |
बाल विवाह निषेध विधेयक/The Prohibition of Child Marriage Act | 1829 | लॉर्ड विलियम बैंटिक | 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों के विवाह पर प्रतिबंध |
दास प्रथा प्रतिबंध/Slavery Act | 1843 | एलनबरो | 1843 में दासता प्रतिबंध |
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह/Hindu Widows’ Remarriage Act | 1856 | लॉर्ड कैनिंग | विधवा विवाह की अनुमति (विद्यासागर के प्रयास से) |
नेटिव मैरिज एक्ट/Native Marriage Act | 1872 | नॉर्थब्रुक | अंतर्जातीय विवाह (केशवचंद्र सेन के प्रयास से) |
एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट/Age of Consent Act | 1891 | लैंसडाउन | विवाह की आयु 21 वर्ष लड़कियों के लिए निर्धारित (बहरामजी मालाबारी के प्रयास से) |
शारदा एक्ट/Sharada Act | 1930 | इरविन | विवाह की आयु 18 वर्ष लड़कों के लिए निर्धारित (हरविलास शारदा के प्रयास से) |
इन्फेंट मैरिज प्रिवेंशन एक्ट/Infant Marriage Prevention Act | 1931 | इरविन | बाल विवाह प्रतिबंध |