[निबंध] देश में 71वाँ गणतंत्र दिवस : Essay – Speech in Hindi

Sansar LochanEssay

हमारा भारत देश 26 जनवरी, 2020 को 71वाँ गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. इस लेख में हमने गणतंत्र के रूप में भारत के आर्थिक विकास का एक संक्षिप्त विवरण देने की चेष्टा की है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे समक्ष भारत को आर्थिक रूप से सबल बनाने की चुनौती उपस्थित हुई. गुलामी की एक लम्बी अवधि में देश की आर्थिक अवस्था जर्जरप्राय हो चली थी. इस समय आवश्यकता था कि एक नए सिरे से आर्थिक चुनौतियों का अध्ययन करते हुए उनके समाधान की योजना बनाकर कुशलता पूर्वक लागू की जाए.  आप इस निबंध (essay) का प्रयोग आप अपने स्कूल, कॉलेज के भाषण (speech) के लिए कर सकते हैं.

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Essay / Speech – गणतंत्र दिवस (Republic Day)

“हम भारत के लोग”, हमारे संविधान की प्रस्तावना के ये शब्द, हमारे गणतंत्र होने की शुरुआत. गणतंत्र का मतलब है “गण” अर्थात् “नागरिक मिलकर अपने तंत्र को चलाएंगे”. यह खुद से किया गया वादा था, खुद से जवाबदेही, एक जिम्मेदारी थी. 26 जनवरी, 1950 का दिन हम गणतंत्र बने. हमारे गणतंत्र की नींव पड़ी. यह एक नए राष्ट्र के लिए नई शुरुआत थी. बहुत कुछ पीछे छोड़ना था. आगे लेकर जाना था एक गरीब देश की उम्मीदों को. जीवन बदलना था उन 36 करोड़ से ज्यादा लोगों का जो अब आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे थे.

गणतंत्र का इतिहास

26 जनवरी, 1950 की तारीख देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया. फिर इसके बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई.

अपने गणतंत्र पर इतराते, जोश से भरे देश के लोग पहली बार हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मना रहे थे. देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को परेड ने सलामी दी गई.

आजाद भारत के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ

देश की आजादी के बाद यह पहला मौका था. एक तरफ फिजाओं में देश की आजादी की खुशियों की गूंज थी तो दूसरी तरफ, देश के नीति निर्धारकों के मन में कुछ चिंताएं भी घूम रही थीं. वे देश में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक विकास की चिंताओं के बारे में सोच रहे थे. उनका सपना था कि देश में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा जल्द से जल्द समाप्त और महिलाओं को सशक्त बनाया जाए और  किसानों को उनका हक दिया जाए.

शुरुआत करनी थी शून्य से शून्य तक की. एक तरफ वह शून्य था जहां देश के पास ज्यादा कुछ नहीं था. दूसरे शून्य के तरफ आज हम तेजी से बढ़ रहे हैं जहां देश में वर्तमान अनेक समस्याओं को शून्य करना है.

गुलामी की काली रात बीतने के बाद गरीब भारतीय अपने लिए उम्मीदों का आसमान तलाश रहे थे. आजादी तो मिली थी लेकिन अपने साथ गरीबी, भूख और बेरोजगारी भी लाई थी. आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना के मुताबिक देश के 36 करोड़ लोगों में से 50% गरीबी से जूझ रहे थे. पूरे देश को इसी परिस्थिति से कामयाबी का रास्ता तय करना था. अब उम्मीदों को जमीन पर उतारना था.

योजनाओं का समय

देश में गरीबी को मिटाने के लिए योजनाएं बनाई गयीं. योजनाओं में आर्थिक असमानता के साथ गरीबी को जोड़ा गया. 1951 में योजना आयोग का गठन किया गया. आयोग की पहली बैठक को संबोधित करते हुए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा – “सवेरा होगा, यह विश्वास दृढ़ता से स्वीकार करना है. योजना का उद्देश्य न्याय के साथ वृद्धि करना है.”

पंचवर्षीय योजना

संविधान के सूत्र में पिरो कर बनी हमारे देश की नीतियों ने सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक बराबरी देने के कदम उठाए. बदहाल जिंदगी को खुशहाल बनाना था. जर्जर पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकनी थी. देश में गरीबी के तंज में फँसे लोगों को दिशा देने का काम करना था. देश में पहली पंचवर्षीय योजना बनाई गई. इसके पीछे सोच यह थी कि जो भी संसाधन मौजूद हैं, उनका ठीक तरीके से उपयोग हो ताकि वह बदलाव लाया जा सके जिसकी देश दरकार थी. हालाँकि पहली योजना शुरू करते हुए यह साफ किया गया था कि निर्धनता का निवारण और बेरोजगारी को दूर करना लंबी अवधि वाले मकसद में शामिल होगा. साथी ही इस विचार के साथ आगे बढ़ गया कि देश की अपार जनसंख्या अगर सही तरीके से इस्तेमाल हो तो देश की जनशक्ति राष्ट्रीय धर्म बन सकती है. गरीबी उन्मूलन की दिशा में दो मापदंड ध्यान में रखे गए – विकास और वितरण.

प्रगति का पथ तैयार करना था. चुनौती दोतरफा थी. देश का विकास करना और साथ ही देशवासियों को उनकी जरूरत पूरी करते हुए उम्मीदों को भी थामना था जो वह बरसों से देख रहे थे. ऐसे महत्त्वपूर्ण और चुनौतियों भरे वक्त में तय किया गया कि देश के सभी संसाधन, सभी उत्पादन अगर गरीबी उन्मूलन में लगाए गए तो वैसे नतीजे हासिल नहीं किए जा सकेंगे जो एकदम से सब ठीक कर सकें. इसका कारण भी था अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए देश के पास आय का स्तर बहुत निम्न था. अनेक मुश्किलों को दूर करने के लिए गणतंत्र के भीतर रहकर ऐसा तंत्र करने की जरूरत थी जो आशा पैदा कर सके, जो भविष्य के लिए रास्ता बना सके.

पंचायती राज

जनसाधारण के जीवन स्तर को उठाना देश की स्वतंत्रता के बाद से ही इस पर काम शुरू हो गया था. आजादी मिलने के बाद योजनाबद्ध तरीके से आर्थिक विकास के जरिए गरीबी को कम करने का लक्ष्य तय किया गया. सामुदायिक विकास परियोजना 1952 और 1953 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम लांच किए गए जिसका उद्देश्य विकास का तंत्र विकसित करना था. इन योजनाओं के जरिए ग्रामीण लोगों में जागरूकता की शुरुआत हुई. भूमि सुधारों को लागू किया गया. 1959 में पंचायती राज की भी शुरुआत की गई. एक सफर की शुरुआत हुई. सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में तेजी से बढ़ाने को मकसद बनाया. यह कदम इस उम्मीद में उठाए गए कि धीरे-धीरे इसका फायदा देश के उस तबके को मिलेगा जिसको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है.

गरीबी उन्मूलन का ध्येय

1950 से 1960 के दशक में हमारी सरकार की योजनाएं कुछ इसी सोच के साथ आगे बढ़ रही थी. इस सोच के पीछे तर्क था कि जब देश का अर्थतंत्र आगे बढ़ेगा तो देश के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा.

1960 से 1970 के दशक में अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए देश में चौथी पंचवर्षीय योजना की शुरुआत हुई. पहली बार इस 5 साल की योजना में गरीबी से मुक्ति को जगह दी गई. पहली तीन पंचवर्षीय योजनाओं से अलग चौथी योजना में सामाजिक समानता लाना, सामाजिक न्याय की स्थापना करना और लोगों का रहन-सहन ऊपर उठाना शामिल था. लेकिन तय लक्ष्य हासिल नहीं किए जा सके. ऐसे में सरकार ने बने-बनाए तरीकों से कुछ अलग करने की सोची. सरकार ने कुछ नई योजनाओं को लाया जिनमें –

  • 1970 में सूखा क्षेत्र पीड़ित कार्यक्रम लाया गया.
  • 1971 में लघु कृषक विकास एजेंसी की स्थापना की गई.
  • 1972 में जनजातीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम प्रमुख रहे.

1971 में गरीबी पर वार करने के लिए सरकार ग्रामीण रोजगार नगदी योजना लेकर आई. इस योजना के तहत हर जिले में 1000 लोगों को साल के 10 महीने तक रोजगार देने का प्रावधान किया गया. आजादी के 25 साल पार करने के बाद जब पांचवी पंचवर्षीय योजना देश के सामने आई तो उसमें गरीबी को हटाने का सीधा लक्ष्य तय किया गया. साधनहीन को सक्षम बनाने का लक्ष्य रखा गया. अब बने-बनाए ढांचे से अलग विचारों के साथ कुछ अलग कोशिश की गई.

पीडीएस में सुधार और हस्तांतरण के तरीके देश की गरीब जनता की पहुंच में नहीं थे जिसको देखते हुए 1977 में काम के बदले अनाज योजना शुरू की गई ताकि लोगों को सीधे लाभ दिया जा सके. इसके अलावा 1976-1977 के बजट में ग्रामीणों के लिए स्वरोजगार देने की पहल की गई. देश में स्वरोजगार का सफर आगे भी जारी रहा और एकीकृत ग्रामीण विकास योजना देश के ब्लॉक स्तर पर लागू की गई. यह योजना 1980-81 में शुरू की गई थी और फिर 1998-99 तक एक प्रमुख स्वरोजगार योजना के रूप में जारी रही. योजना के तहत ग्रामीण गरीबों को स्व-रोजगार की सुविधा दी गई है. इस योजना से 5 लाख से ज्यादा परिवारों को फायदा हुआ.

छठी पंचवर्षीय योजना के मकसद की बात करें तो इसके तहत गरीब वर्ग के न्यूनतम जरूरतों की राज्य द्वारा पूर्ति, समाज के गरीब वर्ग के लोग के रहन-सहन में सुधार, बेरोजगारी का खात्मा था. इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस योजना कृषि, कुटीर एवं लघु उद्योग और ग्रामीण विकास के लिए जोर दिया गया था.

इसके अलावा सातवीं पंचवर्षीय योजना में 1985 से 1990 की अवधि में इंदिरा आवास योजना, ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, अग्नि बीमा योजना, सामाजिक सुरक्षा कोष जवाहर रोजगार योजना, जनसंख्या पर्यावरण सुधार परियोजना का कार्यक्रम, जलधारा एवं कुटीर ज्योति कार्यक्रम की शुरुआत की गई.

योजनाएं आईं और असर भी दिखा. लेकिन सही वितरण अभी भी देश के गरीब और गरीबी से मुक्ति के बीच में खड़ा था. सामाजिक उत्थान के लिए योजनाएं आईं, परन्तु देश का अर्थतंत्र 1990 आते-आते पटरी से उतर गया. असर देश के गरीबों पर भी पड़ा. गरीबी की तादाद लगातार बढ़ रही थी. फिर वह दौर आया जब देश ने आर्थिक मोर्चे पर बदलाव देखा.

भारत के दरवाजे वैश्विक बाजार के लिए खुले

1950 से लेकर 1980 तक भारत की आर्थिक विकास दर 3.6% रही, प्रति व्यक्ति आय 1.5% प्रतिवर्ष रही. 1980 के बाद सरकारों की अस्थिरता के बीच गरीबी कम तो हुई, परंतु 1971 के बाद असली परिवर्तन आया.

करीब तीन दशक पहले 1991 में भारत के दरवाजे वैश्विक बाजार के लिए खुले. देश ने अपनी आर्थिक नीतियों में फेरबदल किया. यहां से एक शुरुआत हुई और फिर भारत हमेशा-हमेशा के लिए बदल गया. आज हमारे देश को तेज आर्थिक विकास वाले देशों में शुमार किया जाने लगा है. लेकिन सच तो यह है कि असल में इसकी नींव 1991 में पड़ी थी. देखते ही देखते देश का अर्थतंत्र बदल गया. देश में गरीबी के हालात में भी तेजी से सुधार होने लगा.

वर्ष 1991 में भारत को विदेशी कर्जों के मामले में संकट का सामना करना पड़ा. सरकार अपने विदेशी कर्ज के भुगतान करने की हालत में नहीं थी. आयात के लिए सामान्य रूप से रखा गया विदेशी मुद्रा र्सेर्वे 15 दिनों के लिए जरूरी आयात के भुगतान के लायक भी नहीं बचा था. इस संकट के ज़द में रोजमर्रा की जरूरत की चीजें भी आईं. यह आसानी से समझा जा सकता है कि ऐसी परिस्थिति में देश के गरीब के जीवन पर क्या असर पड़ा होगा.

उदारीकरण ने प्रत्येक सेक्टर में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है चाहे वह कृषि उद्योग और सेवाएं, बैंकिंग और दवा उद्योग या पेट्रोल और प्राकृतिक गैस उद्योग हो. भारत में 1992 से 2001 के बीच उद्योग में रोजगार 11% बढ़ा है जिसका सीधा असर लोगों के आर्थिक हालातों पर पड़ा है और वह पहले की तुलना में बेहतर हुए.

2000 तक पहुंचने से पहले देश में तेजी से कामों से शहरों की तरफ बढ़ते पलायन को रोकने के लिए गांवों पर ध्यान दिया गया. सामाजिक क्षेत्र के साथ-साथ आधारभूत ढांचे के विकास पर खास तौर पर जोर दिया गया.

यह वह दौर था जब देश में गरीबी के जाल में फंसे देश के गरीबों को तेजी से छुटकारा मिला. साथ ही देश में दृढ़ मध्यम वर्ग का भी उदय हुआ. इस वर्ग ने देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अब देश आर्थिक तौर पर उस रफ्तार से जुड़ गया था जिसकी तलाश आजादी के बाद से देश को थी. देश में पहली बार अर्थतंत्र मजबूत होने का सीधा फायदा आम आदमी को मिला.

2000 के बाद तेज रफ़्तार

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने दूरदराज के गांवों को देश में चल रहे विकास के पहिए से जोड़ा. देश के महानगरों से लेकर देश के छोटे गांव सड़कों से जोड़े गये. साल 2000 में आई अंत्योदय योजना गरीबों के लिए चलाई गई बड़ी योजना थी. इस योजना के तहत गरीबों में भी ज्यादा गरीब लोगों को रियायती दर पर गेहूं और चावल उपलब्ध कराया गया. इसके तहत एक करोड़ परिवारों को दो रुपए प्रति किलो की दर से 35 किलो गेहूं और ₹3 प्रति किलो की दर पर चावल उपलब्ध कराया गया. 2003 और 2004 में इस योजना में एक करोड़ और लोगों को जोड़ा गया. कुल मिलाकर इस योजना के तहत दो करोड़ परिवारों को सस्ती दरों पर राशन मुहैया करवाया गया.

1998 में देश की कुल जनसंख्या के 59.8% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे थे. वहीं 1998 से शुरू हुए बड़े बदलावों के जरिए यह आंकड़ा 2004-05 तक 37.2 प्रतिशत तक पहुंच गया था. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना 2005 में शुरू की गई. इस योजना के जरिए ग्रामीणों के जीवन में बड़ा बदलाव आया. रोजगार में वक्त के साथ कुछ जरूरी बदलाव भी किए गए. इसके तहत देश भर में 5 करोड़ मनरेगा मजदूरों को स्किल ट्रेनिंग दी गई. मजदूरों को इस तरह से कौशल विकास से जोड़ा गया जिससे उनको रोजगार मिल सके.

कोई भी सरकारी योजना तभी सफल हो सकती है जब उसके लिए जरूरी तैयारियाँ की गई हों. सोचिए यदि योजना का लाभ लाभार्थियों को सीधे उसके खाते में देना है, तो उसके लिए उसका बैंक में खाता होना जरूरी है. इस दिशा में 2014 में प्रधानमंत्री जनधन योजना लाई गई. देश के गरीब के लिए बैंक के दरवाजे खोले वह भी जीरो बैलेंस पर. 10 जनवरी, 2020 तक जनधन के तहत 37 करोड़ 83 लाख खाता खोले गये. इसके अतिरिक्त, देश के बेरोजगारों को मजबूती देने की कोशिश में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अंतर्गत अब तक करीब 21 करोड लोगों को लोन दिया गया है. देश के गरीबों के लिए रोजगार के अलावा बीमारी बड़ी समस्या थी. इसको देखते हुए आयुष्मान भारत योजना शुरू की गई जिसके तहत देश के गरीबों को 5 लाख रु. तक हेल्थ इंश्योरेंस मिलता है. योजना के तहत अब तक 11 करोड़ से ज्यादा लोग योजना से जुड़ चुके हैं. योजना का लाभ लेने वालों के आंकड़ों की बात करें तो अभी तक 74 लाख से ज्यादा लोग मुफ्त इलाज करा चुके हैं.

आँकड़े गवाह

अब देश में गरीबी रेखा के नीचे के आंकड़ों के इतिहास को देखें तो देश के स्वतंत्रता के बाद सबसे पहले 1962 में गरीबी रेखा के निर्धारण और न्यूनतम स्तर के निर्धारण के संबंध में एक रिपोर्ट सामने आई जिसके मुताबिक –

  1. देश में ग्रामीण और शहरी आबादी की प्रति व्यक्ति आय अगर ₹20 प्रतिमाह है तो वह गरीब नहीं है.
  2. 1973-74 के दौरान देश की 55% आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर थे.
  3. 1993-94 में आए गरीबी रेखा के आंकड़ों में ग्रामीण और शहरी आबादी के अलग-अलग आंकड़े सामने रखे गए. जिनके अनुसार, 1993-94 में कुल आबादी के 50% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. वहीं शहरी आबादी के लिहाज से यह आँकड़ा 31.8% था. कुल मिलाकर यह आँकड़ा 45.3% था.
  4. 2004-05 में ग्रामीण आँकड़ा 41.8% तो शहरी आबादी के 25.7% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे थे. मिलाकर यह आँकड़ा 37.2% था.
  5. इसी प्रकार 2011-12 में देश की कुल आबादी के 21.9% लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे थे.

विश्व-भर में भारत से अन्य देश सीख ले रहे हैं

संयुक्त विकास कार्यक्रम (UNDP)  और ऑक्सफ़ोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2016 के बीच भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए. देश में गरीबी दर 10 साल की अवधि में लगभग आधी रह गई है अर्थात् भारत में गरीबी दर 10 साल की अवधि में 55% घटकर 28%  रह गई है.

भारत के नतीजों से वैश्विक स्तर पर गरीबी से निपटने के लिए आशाजनक संकेत मिलते हैं. अमेरिकी शोध संस्थान The Brookings Institution ने कहा कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से गरीबी में कमी ला रहा है. Brookings  ने अपनी रिपोर्ट “Rethinking Global Poverty Reduction in 2019” में यह आँकड़ा सामने रखा. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 44 भारतीय हर मिनट अत्यंत गरीबी की श्रेणी  बाहर निकल रहे हैं जो दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज रफ्तार है. रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2022 तक 3% से भी कम भारतीय अत्यंत गरीब रह जाएंगे जबकि 2030 तक देश से “अत्यंत गरीबी” पूरी तरह समाप्त सकता है.

71वाँ गणतंत्र दिवस – विशेष

जनवरी 26, 2019 को देश ने अपना 71वाँ गणतंत्र दिवस मनाया. इस अवसर पर सम्माननीय अतिथि (Guest of Honor) के रूप में ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो उपस्थित हुए थे.

गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित होने वाले बोलसोनारो ब्राजील के तीसरे राष्ट्रपति थे. उनके पहले ब्राजील के जिन राष्ट्रपतियों को इस अवसर पर आमंत्रित किया गया था, वे थे – Fernando Henrique Cardoso (1996) और Luiz Inacio Lula da Silva (2004).

जनवरी 26 ही क्यों?

  • संविधान जनवरी 26, 1950 को प्रभाव में आया. यह तिथि जानबूझकर इसलिए चुनी गई कि इसी तिथि को पूर्ण स्वराज के लक्ष्य की घोषणा हुई थी.
  • संविधान की प्रारूप समिति का विचार था कि संविधान को उस तिथि से लागू किया जाए जिसका स्वतंत्रता संग्राम में कोई विशेष महत्त्व हो.

इस बार परेड में क्या दिखलाया गया?

  1. धनुष तोप प्रदर्शित किये गये.
  2. रफेल और तेजस विमानों का प्रदर्शन हुआ.
  3. एंटी-सैटेलाइट वेपन्स सिस्टम (ASAT) को जनता के सामने रखा गया.
  4. गुजरात की ओर से की गई प्रदर्शनी में रानी की वाव जल मंदिर दिखाया गया.
  5. मेघालय ने अपनी प्रदर्शनी में लिविंग रूट ब्रिज अर्थात् पेड़ की जड़ों से बने पुल को दिखलाया.
  6. पंजाब ने गुरु नानक की 550वीं जयंती की थीम पर प्रदर्शनी आयोजित की. पढ़ें : (गुरु नानक की जीवनी).

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