प्रोन्नति में आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं – अनुच्छेद 16(4), 16(4-A), अनुच्छेद 335, इंदिरा साहिनी बनाम भारतीय संघ एवं एम. नागराज मामला

Sansar LochanIndian Constitution

Reservation in promotion in public posts not a fundamental right: SC

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों यह व्यवस्था दी कि नियुक्तियों और प्रोन्नतियों में आरक्षण देने के लिए राज्य बाध्य नहीं हैं क्योंकि प्रोन्नति में आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं होता.

न्यायालय ने क्या कहा?

  • सरकारी पदों में प्रोन्नति के लिए आरक्षण का दावा मौलिक अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता.
  • संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16(4-A) व्यक्तियों को प्रोन्नति में आरक्षण का मौलिक अधिकार नहीं देते. ये राज्य को इसके लिए अधिकृत करते हैं कि वे नियुक्ति और प्रोन्नति में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण तभी दे सकते हैं जब उनको ऐसा लगे कि राज्य की नौकरियों में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है.
  • राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं और यह उनके विवेक पर निर्भर है.
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में टिप्पणी की कि न्यायालयों को भी यह अधिकार नहीं है कि वे राज्य सरकारों को आरक्षण देने के लिए निर्देश दें.

आरक्षण का संवैधानिक आधार – अनुच्छेद 335

संविधान का अनुच्छेद 335 यह मान्य करता है कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को समान स्तर पर लाने के लिए विशेष उपाय किये जा सकते हैं.

इंदिरा साहिनी बनाम भारतीय संघ एवं एम. नागराज मामला

  1. 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहिनी बनाम भारतीय संघ में एक महत्त्वपूर्ण न्याय-निर्णय दिया था. इसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत आरक्षण मात्र सरकारी नौकरी में घुसने के समय दिया जा सकता है न कि प्रोन्नति में.
  2. इसमें यह भी कहा गया था कि जो प्रोन्नतियाँ पहले ही हो चुकी हैं, वे ज्यों की त्यों रहेंगी और इस न्याय-निर्णय के बाद पाँच वर्षों तक मान्य रहेंगी. यह भी व्यवस्था दी गई कि इन प्रोन्नतियों में क्रीमी लेयर को बाहर रखना अनिवार्य है.
  3. परन्तु संसद ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए जून 17, 1995 में अनुच्छेद 16 में 77वें संशोधन के माध्यम से उपवाक्य (4A) जोड़ दिया जिससे प्रोन्नति में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण मिल गया.
  4. संसद के इस कार्य के विरुद्ध कई लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे. इस विषय में वहाँ जो मामला चला उसे नागराज मामला (Nagaraj case) कहा जाता है.
  5. सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में किये गये उपर्युक्त संशोधन को वैध ठहराया, परन्तु साथ ही यह भी निर्देश दिया कि प्रोन्नति में आरक्षण करने के पहले इन आँकड़ों को अवश्य जमा करने चाहिएँ – पिछड़ापन, सरकारी नौकरी में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और साथ ही यह भी देख लेना होगा कि कहीं इस आरक्षण से कहीं सरकारी सेवा की कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ रहा.

Tags : Names of relevant SC cases and constitutional provisions wrt to SC/ST welfare. Significance of Supreme Court verdict and its implications in Hindi.

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