#AdhunikIndia की पिछली सीरीज में हमने पढ़ा कि डूप्ले के जाने के बाद अंग्रेजों ने कैसे अपना पैर भारत में पसारा. हम लोगों ने निर्णायक युद्ध प्लासी और बक्सर के बारे में भी चर्चा की. जैसा मैंने पिछले पोस्ट में कहा था कि अगले पोस्ट में हम लोग पढेंगे – “रॉबर्ट क्लाइव ने अपनी दूसरी बार के शासन (1765-67) में क्या-क्या काम किये? उसने क्या-क्या शासन-सुधार किये? उसका चरित्र कैसा था आदि आदि…” यदि आपने हमारा पिछला पोस्ट नहीं पढ़ा तो यह पढ़ लें – अंग्रेजों का बंगाल पर पूर्ण अधिकार – Step by Step Story
हम लोग अभी तक के कालक्रम को कुछ इस तरह से सजा सकते हैं –
- कोलम्बस द्वारा अमरीका का पता लगाना – 1492 ई.
- वास्को-डी-गामा का कालीकट पहुँचना – 1498 ई.
- अलमिडा का पुर्तगाली बस्तियों का गवर्नर नियुक्त होना – 1505 ई.
- अलबुकर्क का गोआ को जीतना – 1510 ई.
- अलबुकर्क का मलक्का जीतना – 1511 ई.
- पुर्तगाल का स्पेन में मिलाया जाना – 1580 ई.
- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी का जन्म – 1600 ई.
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना – 1601 ई.
- कप्तान हॉकिंस का जहाँगीर के दरबार में पहुंचना – 1615 ई.
- मद्रास की स्थापना – 1640 ई.
- अंग्रेज़ और डच लोगों की संधि – 1654 ई.
- चार्ल्स द्वितीय का आज्ञापत्र – 1661 ई.
- फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना – 1664 ई.
- दहेज़ के रूप में चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगाल से बंबई की प्राप्ति – 1668 ई.
- कम्पनी और मुगलों के बीच संधि – 1690 ई.
- फ्रांसीसियों का मॉरिशस पर अधिकार – 1721 ई.
- फ्रांसीसियों का माही पर अधिकार – 1724 ई.
- डूप्ले का पांडिचेरी का शासक नियुक्त होना – 1742 ई.
- डूप्ले का वापस जाना – 1754 ई.
- प्लासी का युद्ध – 1757 ई.
- लैली का भारत आना – 1758 ई.
- वाडवाश का युद्ध – 1760 ई.
- रॉबर्ट क्लाइव का इंग्लैंड लौटना – 1760 ई.
- मीरकासिम का बंगाल का नवाब होना – 1760 ई.
- पेरिस की संधि – 1763 ई.
- बक्सर का युद्ध – 1764 ई.
- मीरजाफर की मृत्यु – 1765 ई.
- रॉबर्ट क्लाइव का दूसरी बार गवर्नर होकर भारत आना – 1765
- रॉबर्ट क्लाइव का अस्वस्थ होकर इंग्लैंड लौट जाना – 1767 ई.
- रॉबर्ट क्लाइव की मृत्यु – 1774 ई.
मेरा संक्षिप्त परिचय
मेरा नाम डॉ. सजीव लोचन है. मैंने सिविल सेवा परीक्षा, 1976 में सफलता हासिल की थी. 2011 में झारखंड राज्य से मैं सेवा-निवृत्त हुआ. फिर मुझे इस ब्लॉग से जुड़ने का सौभाग्य मिला. चूँकि मेरा विषय इतिहास रहा है और इसी विषय से मैंने Ph.D. भी की है तो आप लोगों को इतिहास के शोर्ट नोट्स जो सिविल सेवा में काम आ सकें, उपलब्ध करवाता हूँ. मुझे UPSC के इंटरव्यू बोर्ड में दो बार बाहरी सदस्य के रूप में बुलाया गया है. इसलिए मैं भली-भाँति परिचित हूँ कि इतिहास को लेकर छात्रों की कमजोर कड़ी क्या होती है.[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text]
रॉबर्ट क्लाइव का दूसरी बार शासन (1765-67)
इस काल में रॉबर्ट क्लाइव ने तीन मुख्य काम किए. पहला काम कम्पनी की फौजी और दीवानी नौकरियों में सुधार करना था. दूसरा काम, बंगाल की दीवानी (मालगुजारी वसूल करने का अधिकार) को प्राप्त करना था. तीसरा काम था दूसरे राज्यों के साथ कम्पनी का सम्बन्ध ठीक करना.
रॉबर्ट क्लाइव का शासन-सुधार
पहले उसने कम्पनी के कर्मचारी-विभाग के दोषों को दूर करने का प्रयत्न किया. कम्पनी के कर्मचारियों में घूस और नजराना लेने की चाल बहुत बढ़ गई थी. छोटे कर्मचारियों को बहुत शीघ्र तरक्की मिल जाती थी. निजी व्यापार द्वारा प्रत्येक मनुष्य अपने को धनाढ्य बनाने की कोशिश में लगा हुआ था. बहुत जल्दी-जल्दी तरक्की देने की प्रथा को रॉबर्ट क्लाइव ने रोक दिया. उसने कर्मचारियों से प्रतिज्ञा-पत्र लिखवाये कि वे बहुमूल्य भेंट नहीं लेंगे. उनका वेतन कम था, इसलिए बड़े कर्मचारियों को रॉबर्ट क्लाइव ने नमक के व्यापार का एकाधिकार दिलवा दिया. एक व्यापार-समिति बनाई गई परन्तु कालांतर में डायरेक्टरों की एक सभा ने उसे बंद कर दिया. रॉबर्ट क्लाइव के फौजी सुधारों से भी कम्पनी की स्थिति बहुत कुछ दृढ हो गई. नवाब की सेना को उसने घटा दिया. पहले सिपाहियों को दोहरा भत्ता दिया जाता था. क्लाइव ने उसको बंद करवा दिया. रॉबर्ट क्लाइव के इन कदमों का अफसरों ने बहुत विरोध किया पर रॉबर्ट क्लाइव उनकी धमकी में आनेवाला इंसान नहीं था. जिन्होंने नौकरी छोड़ने की धमकी दी, उनका इस्तीफ़ा उसने सहज स्वीकार कर लिया.
दूसरे राज्यों के साथ सम्बन्ध
रॉबर्ट क्लाइव ने अवध के नवाब वजीर और मुग़ल-सम्राट के साथ कम्पनी का सम्बन्ध ठीक कर दिया. हेनरी वांसिटार्ट (Henry Vansittart) ने सम्राट को अवध देने का वादा किया था पर क्लाइव ने ऐसा करना मूर्खता समझा. 16 अगस्त, 1765 ई. को इलाहाबाद में सम्राट के साथ संधि हुई. इस संधि की शर्तों के अनुसार इलाहाबाद के अतिरिक्त अवध का शेष भाग नवाब को लौटा दिया गया. लड़ाई के हरजाने के रूप में कम्पनी को 50 लाख रूपए देने के लिए नवाब राजी हो गया. उसके साथ एक संधि भी हो गई जिसके अनुसार दोनों ने एक दूसरे की मदद करने का वादा किया. अंग्रेज़ इस बात पर राजी हो गए कि यदि नवाब खर्च देगा तो वे उसकी सीमा की रक्षा के लिए सेना देंगे.
शाह आलम के साथ संधि करना कठिन था. उसने अपनी इच्छा के विरुद्ध अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अर्थात् कर वसूल करने का अधिकार दे दिया. इसके बदले रॉबर्ट क्लाइव ने उसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए उसे इलाहाबाद के जिले दे दिए. इसके अतिरिक्त उसने सम्राट को 26 लाख रूपया सालाना पेंशन देना भी स्वीकार किया. शाहआलम ने कम्पनी को यह भी अधिकार दिया कि 10 वर्ष के बाद वह रॉबर्ट क्लाइव की जागीर का उपभोग करे. दीवानी के मिलने से कम्पनी की स्थिति में बहुत सुधार आया. अब से मालगुजारी वसूल करने का अधिकार कम्पनी के हाथ आ गया और निजामत अर्थात् सैन्य शक्ति और फ़ौजदारी का इन्साफ नवाब के अधिकार में रहा. इस प्रकार रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल में दोहरा राज्य स्थापित कर दिया. अंग्रेजों के हाथ में अधिकार तो बहुत सारे आ गए परन्तु उनके ऊपर शासन की जिम्मेदारी कुछ भी नहीं रही.
रॉबर्ट क्लाइव का चरित्र
रॉबर्ट क्लाइव बड़ा बुद्धिमान, राजनीतिक मामलों में चतुर और दृढ़प्रतिज्ञ मनुष्य था. कठिन से कठिन स्थिति में भी उसकी समझ में यह बात तुरंत आ जाती थी कि उस समय क्या करना उचित होगा. अपने देश के लिए उसके हृदय में अपूर्व भक्ति थी और अपनी समझ के अनुसार वह उसकी सेवा के लिए सदैव उद्यत रहता था. उसमें नेता बनने के भरपूर गुण थे. कठिन परिस्थितियों में भी वह कभी व्याकुल नहीं होता था. उसके शत्रु भी उसके इन गुणों की प्रसंशा करते थे. अपनी शक्ति और पराक्रम द्वारा उसने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की और अपने व्यक्तित्व के बल से उसने जितना कार्य किया उतना कार्य अधिक धन और साधन होते हुए भी दूसरे लोग नहीं कर सकते थे.
रॉबर्ट क्लाइव में दोष भी थे. उसे अनुचित-उचित का कुछ विचार नहीं था. उसने बहुमूल्य भेंटें लीं और कम्पनी के नियमों के विरुद्ध काम किया. अपने ओहदे का दुरूपयोग कर उसने स्वयं को धनाढ्य बना लिया. उसने वाटसन के जाली दस्तख़त बनाए और साथ ही यह भी जोर से कहा कि देश की भलाई के लिए मैं फिर ऐसा कर सकता हूँ. इन दोषों के होते हुए भी इसमें संदेह नहीं कि वह एक बड़ा दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था. वह जानता था कि कठिन समय में किस प्रकार काम करना चाहिए और किस प्रकार उपलब्ध साधनों द्वारा अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सकता है.
रॉबर्ट क्लाइव का इंग्लैंड लौटना
चिंता और अधिक परिश्रम के कारण रॉबर्ट क्लाइव अस्वस्थ हो गया. इसलिए 1767 ई. में वह इंग्लैंड लौट गया. उसके शत्रुओं ने उसको बदनाम करने की चेष्टा की. उस पर बेईमानी का आरोप लगाया गया. रॉबर्ट क्लाइव को इन सब बातों से बड़ा दुःख हुआ. उसने 1774 ई. में 50 वर्ष की अवस्था में आत्महत्या कर ली.
अगले पोस्ट में हम क्लाइव के जाने के बाद बंगाल की दशा के बारे में पढेंगे और जानेंगे बंगाल के नए गवर्नर के बारे में.
आपको इस सीरीज के सभी पोस्ट इस लिंक में एक साथ मिलेंगे >> #AdhunikIndia[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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