रूस और यूक्रेन के बीच जो युद्ध हो रहा है इससे हम सभी अवगत हैं. क्या आप इसकी पृष्ठभूमि (background) जानते हैं? चलिए आज जानने की कोशिश करते हैं कि रूस-यूक्रेन war का कारण क्या है? क्या है इन दोनों के बीच का इतिहास और इससे भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा – एक UPSC student के चश्मे से.
रूस-यूक्रेन संकट की पृष्ठभूमि
दिसम्बर 1991 में रूस, यूक्रेन एवं बेलारूस के नेताओं ने “बेलावेज्हा समझौते” पर हस्ताक्षर किये तथा सोवियत संघ के विघटन की घोषणा की तथा उसका स्थान लेने के लिए कामनवेल्थ ऑफ़ इंडिपेडेंट स्टेटस (CIS) का गठन किया. उस समय सोवियत संघ के अधीन आने वाले अधिकांश परमाणु हथियार यूक्रेन के पास थे, परन्तु वर्ष 1994 में यूक्रेन ने ये हथियार रूस को सौंप दिए तथा बदले में रूस ने यूक्रेन की सम्प्रभुता का सम्मान करने का आश्वासन दिया.
विभिन्न देशों, समूहों की प्रतिक्रियाएँ
अमरीका: राष्ट्रपति जो बिडेन ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, हालाँकि उन्होंने यूक्रेन की रक्षा के लिए सैन्य सहयोग देने से इंकार किया है.
यूरोपीय संघ: यूरोपीय संघ ने रुस की आर्थिक सम्पत्ति, बैंकों में जमा धन को फ्रीज करने, रूस को SWIFT से बाहर करने का निर्णय लिया है.
जर्मनी: 11 बिलियन डॉलर लागत वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 परियोजना को रोकने का फैसला लिया है.
ब्रिटेन: करोड़पति निवेशकों के लिए संचालित “गोल्डन वीज़ा” कार्यक्रम को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की घोषणा की। रुसी उद्योगपति इसका लाभ ले रहे थे.
भारत: प्रधानमंत्री मोदी ने ब्लादिमीर पुतिन से फोन वार्ता के दौरान तत्काल सीजफायर करने एवं बातचीत से हल ढूँढने का आग्रह किया.
वर्ष 2014 एवं इसके बाद की घटनाएँ
यूक्रेन में वर्ष 2010 विक्टर यानुकोबिच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने, ये रूस के समर्थक माने जाते थे. जबकि यूक्रेन की जनता यूरोपीय संघ, पश्चिमी देशों के साथ बेहतर सम्बन्ध चाहती थी. उनकी नीतियों के विरोध में फरवरी 2014 में “यूरोमैदान आन्दोलन” में जनता ने उन्हें अपदस्थ कर दिया, उन्होंने देश छोडकर रूस में शरण ले ली.
विक्टर के समर्थक रुसी भाषा भाषी पूर्वी यूक्रेन में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हुई, रूस ने वहाँ अलगाववादी आन्दोलन को समर्थन दिया तथा द.पू. यूक्रेन में स्थित क्रीमिया प्रायद्वीप पर भी कब्जा कर लिया. 16 मार्च 2014 को क्रीमिया में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें क्रीमिया ने रूस में मिलने के पक्ष में मतदान किया, लेकिन शेष विश्व ने इसे अवैध करार दिया.
क्रीमिया का इतिहास
क्रीमिया को वर्ष 1954 में सोवियत राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने रुस से यूक्रेन को सौंप दिया, तब दोनों ही सोवियत संघ के भाग थे, अत: इस हस्तांतरण का ज्यादा महत्त्व नहींं था. लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद क्रीमिया ने यूक्रेन में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया. इसे एक स्वायत्त क्षेत्र का दर्जा दिया गया. आरम्भ से ही रूस, क्रीमिया के यूक्रेन में मिलने के विरुद्ध था.
पूर्वी यूक्रेन के ‘डोनेट्सक और लहान्स्क’ जिसे सम्मिलित रूप से डोनबास (Donbas) के रूप में भी जाना जाता है, पर वर्ष 2014 में रुसी समर्थक अलगाववादियों ने कब्ज़ा कर लिया. 17 जुलाई 2014 को इस क्षेत्र से 298 यात्रियों को ले जा रहे एक मलेशियाई विमान को मार गिराया गया, इसके बाद यूक्रेन की सेना ने अलगाववादियों का दमन करना प्रारम्भ कर दिया. रूस ने अलगाववादियों को सैन्य मदद दी. इसके बाद यूक्रेन-अलगाववादियों-रूस के बीच अन्य यूरोपीय देशों की मध्यस्थता में कई समझौते हुए, जिन्हें “मिन्स्क समझौते” के रूप में जाना जाता है. इनमें सीजफायर, सेनाओं को हटाने, विद्रोहियों वाले क्षेत्रों में चुनाव कराने पर सहमति जताई गई, लेकिन इन्हें आज तक अमल में नहींं लाया गया.
रूस-यूक्रेन सीमा पर हालिया संकट के बारे में
नवम्बर 2021 में रूस ने रूस-यूक्रेन सीमा पर 1 लाख से अधिक रुसी सैनिकों की तैनाती कर दी थी. ऐसे में पूर्वी यूरोप में युद्ध के बादल मंडराने लगे थे. उल्लेखनीय है कि ठीक इसी तरह के हालात वर्ष 2014 में भी बने थे. तनाव के माहौल में संयुक्त राज्य अमरीका सहित उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने रूस को यूक्रेन पर हमले के सम्बन्ध में चेतावनी जारी की तथा वार्ता के माध्यम से संकट का हल खोजने पर बल दिया. हालाँकि लम्बे समय तक रूस, यूक्रेन पर आक्रमण की मंशा से इनकार करता रहा, परन्तु साथ ही यूक्रेन के पश्चिमी देशों से बढ़ते संबंधों को लेकर एवं NATO के पूर्वी यूरोप की आगे बढ़ने के सम्बन्ध में चिंता भी व्यक्त की.
रूस-यूक्रेन तनाव में NATO की भूमिका
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने सोवियत संघ के कुछ पूर्व सदस्यों के साथ मिलकर कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी आर्गेनाईजेशन (CSTO) का निर्माण किया. दूसरी ओर USSR के विघटन के बाद से ही NATO ने भी नव स्वतंत्र देशों को अपने संगठन में शामिल करना प्रारम्भ कर दिया था. (2004 में बाल्टिक देशों को शामिल किया).
वर्ष 1997 में इस सम्बन्ध में NATO एवं रूस में समझौता भी हुआ, लेकिन NATO का पूर्वी यूरोप में प्रसार बढ़ता गया. हालाँकि युक्रेन न तो CSTO और न ही NATO में शामिल हआ. वर्ष 2008 में जॉर्जिया एवं यूक्रेन को NATO में शामिल होने का न्यौता दिया गया. इसके बाद रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया. इसने वहाँ दो अलगाववादी क्षेत्रों साउथ ओस्सेटिया एवं अब्खजिया को जॉर्जिया के विरुद्ध संरक्षण दिया.
वर्ष 2014 के बाद युक्रेन CIS से भी पृथक् हो गया तथा उसने NATO में सम्मिलित होने की इच्छा जाहिर की. तब से रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के NATO में शामिल होने को लेकर आशंकित है. रूस नहींं चाहता कि NATO सेनाएँ रूस की सीमा पर तैनात हों. यूक्रेन के वर्तमान राष्ट्रपति बोलोदिमिर ज़ेलेंस्की भी पश्चिमी देशों के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाने के समर्थक हैं. यही वजह है कि रूस यूक्रेन के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपना रहा है.
Important Info
नाटो क्या है?
- नाटो का पूरा नाम North Atlantic Treaty Organization है अर्थात् उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन है.
- यह एक अन्तर-सरकारी सैन्य संघ है.
- इस संधि पर 4 अप्रैल, 1949 को हस्ताक्षर हुए थे.
- इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है.
- नाटो का सैन्य मुख्यालय बेल्जियम में ही मोंस नामक शहर में है.
- यह सामूहिक सुरक्षा की एक प्रणाली है जिसमें सभी सदस्य देश इस बात के लिए तैयार होते हैं यदि किसी एक देश पर बाहरी आक्रमण होता है तो उसका प्रतिरोध वे सभी सामूहिक रूप से करेंगे.
- स्थापना के समय इसका प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा के प्रसार को रोकना था.
- यह सैन्य गठबंधन सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है जिसका तात्पर्य एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है. (अनुच्छेद 5)
- नाटो के सदस्य देशों का कुल सैन्य खर्च विश्व के सैन्य खर्च का 70% से अधिक है.
- वर्तमान में नाटो अफगानिस्तान में ‘गैर-युद्ध मिशन’ का संचालन कर रहा है, जिसके माध्यम से अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों, संस्थानों को प्रशिक्षण, सलाह और सहायता प्रदान करता है.
- नाटो की स्थापना के बाद से, गठबंधन में नए सदस्य देश शामिल होते रहें है. शुरुआत में, नाटो गठबंधन में 12 राष्ट्र शामिल थे, बाद में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो चुकी है. नाटो गठबंधन में शामिल होने वाला सबसे अंतिम देश ‘उत्तरी मकदूनिया (North Macedonia)’ था, उसे 27 मार्च 2020 को शामिल किया गया था.
युद्ध का भारत पर प्रभाव
- वर्तमान में 20,000 से अधिक भारतीय नागरिक यूक्रेन में विद्यमान हैं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होगी.
- रूस-यूक्रेन संकट के चलते कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें वर्ष 2014 के बाद से उच्चतम स्तर पर पहुँच गई हैं, इससे भारत के राजकोष पर बोझ पड़ेगा एवं महंगाई में वृद्धि होगी, क्योंकि कच्चे तेल की आवश्यकता के 85% भाग के लिए भारत आयात पर निर्भर रहता है.
- वर्तमान संकट के दौरान रूस और चीन निकट आये हैं. ऐसे में भविष्य में चीन के साथ सीमा पर विवाद में भारत को रूस की मदद मिलना संदेहास्पद है.
- अमरीका द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने से भारत द्वारा रूस से किये जाने वाले रक्षा आयात पर प्रभाव पड़ेगा.
- अमरीका एवं यूरोपीय शक्तियों द्वारा यूक्रेन की सक्रिय मदद के लिए आगे न आना, भारत के लिए एक सबक हो सकता है, क्योंकि चीन के साथ किसी संघर्ष की स्थिति में ऐसा दोबारा हो सकता है. ऐसे क्वाड समूह का औचित्य सवालों के घेरे में है.
रूस-यूक्रेन विवाद पर भारत का आधिकारिक रुख
इस विवाद में भारत का आधिकारिक रुख तटस्थता लिए हुए है. भारत एक ऐसा समाधान खोजने में दिलचस्पी रखता है जिससे सभी देशों के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए तनाव को तत्काल कम किया जा सके. भारत के रुख का उद्देश्य क्षेत्र में दीर्धकालिक शांति और स्थिरता हासिल करना है. हालाँकि क्रीमिया पर रूस के कब्ज़े से लेकर विभिन्न अवसरों पर भारत के निर्णयों से भारत का रुख रूस की ओर झुका हुआ लगता है, क्योंकि वर्ष 2014 में भी भारत ने रूस की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया था.
वर्ष 2020 में भी भारत ने यूक्रेन द्वारा क्रीमिया में मानवाधिकार उल्लंघन मामलों के सम्बन्ध में लाये गये प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया था. रुसी आक्रमण के विरुद्ध UNSC में लाये गये हालिया प्रस्ताव से भी भारत ने अनुपस्थित रहने का निर्णय लिया है.