समुद्रगुप्त और उसकी विजयें – Samudragupta’s Conquests in Hindi

Dr. SajivaAncient History, History

samudrgupta

समुद्रगुप्त महाराजा चन्द्रगुप्त का पुत्र और उत्तराधिकारी था. हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग स्तम्भ प्रशस्ति की चौथी पंक्ति में चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा Samudragupta को भरी सभा में राज्य प्रदान करने का वर्णन दिया हुआ है. विद्वानों की राय है कि संभवतः चन्द्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त की योग्यता को ध्याम में रखकर और अपने पुत्रों में गृह-युद्ध को रोकने के लिए ऐसा किया होगा. सिंहासन प्राप्ति के बाद उसने विजय प्राप्ति का कार्यक्रम शुरू किया. वह एक कुशल योद्धा था. इतिहासकार वी.ए. स्मिथ ने उसे भारत का नेपोलियन (Napoleon of India) कहा है.

समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त की वीरता, सैनिक अभियानों व सफलताओं को देखकर उसे महान इतिहासकार द्वारा दी गई यह उपाधि ठीक प्रतीत होती है. जिस समय वह सिंहासन पर बैठा उस समय गुप्त राज्य बहुत छोटा था. सारा देश अनेक छोटे-छोटे भागों में बंटा हुआ था. इन राज्यों में पस्पर शत्रुता देखी जाती थी. समुद्रगुप्त ने उनमें से अनेक राज्यों को जीतकर एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाने का निश्चय किया. उसने उत्तर-भारत के नौ राज्यों को हराकर अपने राज्य में मिलाया. उसने दक्षिण-भारत के 12 राज्यों से युद्ध किया परन्तु उन्हें अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया. इससे पता चलता है कि Samudragupta वीर होने के साथ-साथ दूरदर्शी भी था.

समुद्रगुप्त की विजयें (Conquests)

समुद्रगुप्त मौर्य वंश के महान शासक अशोक के ठीक विपरीत था. अशोक शान्ति व लोगों के दिल में राज करने पर विश्वास रखता था, परन्तु उसकी तुलना में समुद्रगुप्त अधिक क्रोध वाला और हिंसक था. कौशाम्बी में भी अशोक स्तम्भ है, उस पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति अंकित है. इस लेख में Samudragupta के जीवन के प्रायः सभी पहलुओं की जानकारी प्राप्त होती है. समुद्रगुप्त का दरबारी कवि श्री हरिषेण के प्रयाग प्रशस्ति लेख में उन जनगणों और देशों के नाम गिनाये हैं जिनको समुद्रगुप्त ने जीता था. उसकी प्रमुख विजयें कुछ इस प्रकार थीं –

उत्तर भारत की विजय

प्रयाग प्रशस्ति द्वारा जानकारी मिलती है कि समुद्रगुप्त ने उत्तर-भारत के नौ राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाया. वे राज्य थे – वाकाटक राज्य, मतिल राज्य, नागवंश का राज्य, पुष्करण का राज्य, नागसेन, मथुरा के राज, नागसेन, रामनगर के राज्य, असम राकी, नागवंशी राज्य, नन्दिन और कोटवंशीय राज्य. कोटवंश के राजाओं ने तो समुद्रगुप्त के विरुद्ध कई राज्यों का एक संघ ही बना लिया था. परन्तु उन सभी राज्यों को हारना पड़ा. Samudragupta ने उत्तर-भारत के इन राज्यों को मिलाकर अपने साम्राज्य को बढ़ाया.

पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश की विजय

समुद्रगुप्त के लेख से मालूम पड़ता है कि समुद्रगुप्त के समय उत्तर-पश्चिमी भारत और पंजाब में अनेक गणतंत्रीय जातियाँ थीं. हरिषेण के कथनानुसार इन नौ जातियों ने Samudragupta की अधीनता स्वीकार कर ली थी. ये जातियाँ – मालवा, अमीर, काक, मुद्रक, यौधेय, सकानिक, नागार्जुन, खरपारिक और प्रार्जुन थीं.

मध्य भारत के अन्य नरेशों के राज्यों की विजय

त्तर भारत और दक्षिण भारत के मध्य राज्यों को समुद्रगुप्त ने हरकार भी अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया. वे उसके केवल अधीन राज्य थे क्योंकि वे उसे केवल कर देते थे. ये राज्य आदिवासियों के थे. ये राज्य उसे कर देने के साथ-साथ विशेष मौकों पर सैनिक सहायता भी देते थे.

सीमान्त कबीलाई राज्यों पर विजय

Samudragupta के लगातार राज्य और प्रभाव की बढ़ते देखकर बंगाल, असम, नेपाल आदि अनेक सीमान्त राज्यों ने उसको कर देना स्वीकार कर लिया और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली.

दक्षिण भारत के राज्यों की विजय

एक विशाल सेना की सहायता से उसने दक्षिणी भारत के सभी राज्यों को हरा दिया. परन्तु उसने इनकी पाटलिपुत्र से दूरी के कारण अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया. वह इनसे केवल कर (tax) लेता था.

विदेशी शक्तियों व श्रीलंका से सम्बन्ध

कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने शक, कुषाण जैसी विदेशी शक्तियों और श्रीलंका से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए. गुप्त राज्यों की गरुड़ की मूर्ति से अंकित मुद्रा इन राज्यों ने स्वीकार की. इस शर्त को शायद Samudragupta ने उस पर लादा हो. इससे पता चलता है कि वह बराबर के राज्य नहीं थे. जहाँ तक श्रीलंका का प्रश्न है एक परवर्ती चीन (Later Chinese Source) में साक्ष्य मिलता है कि श्रीलंका के राजा मेघवर्ण (352-379 ई.) ने कुछ उपहार भेजकर गुप्त राजा (संभवतः Samudragupta) से गया में एक बौद्ध विहार बनवाने की अनुमति माँगी थी. आज्ञा मिल गई और बौद्ध गया में श्रीलंका के राजा महाबोधिसंघाराम नामक विहार बनवाया. इससे स्पष्ट है कि भारत और श्रीलंका में उस समय अच्छे सम्बन्ध थे और Samudragupta धर्मनिरपेक्षता की नीति में विश्वास रखता था. श्रीलंका के राजा ने अपना राजदूत उसके दरबार में भेजा. मेघवर्मन (श्रीलंका) ने उसकी अनुमति प्राप्त करके “बौद्ध मंदिर” महाबोधिसंघाराम (Mahabodhi Sangharama) का निर्माण किया.

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