स्वतंत्र भारत के स्वरूप की रूपरेखा निर्धारित करने के लिए गठित सभा को संविधान सभा कहा जाता है. भारत में संविधान सभा की माँग एक प्रकार से राष्ट्रीय स्वतंत्रता की माँग का प्रतिफल थी, क्योंकि स्वतंत्रता की माँग में अन्तर्निहित था कि भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्माण करें.
संविधान सभा की प्रथम अभिव्यक्ति तिलक के निर्देशन में तैयार 1895 के स्वराज विधेयक से हुई. 20वीं सदी में इस विचार की स्पष्ट अभिव्यक्ति महात्मा गाँधी द्वारा 1922 में की गई जब उन्होंने कहा कि “भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छा की अभिव्यक्ति होना चाहिए.”
आगे इस विचार की अभिव्यक्ति मोती लाल नेहरु द्वारा 1924 में ब्रिटिश सरकार के सम्मुख रखे प्रस्ताव में हुई.
पुनः 1936, 1937, 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा की माँग को दोहराया जाता रहा है. आरम्भ में ब्रिटिश सरकार का भारतीय जनता की संविधान सभा की माँग के प्रति नकारात्मक रुख रहा किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध जनित दबावों से विवश होकर ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम 1940 में औपचारिक रूप से स्वीकार किया कि “भारत का संविधान स्वभावतः भारतवासी ही तैयार करेंगे.” ब्रिटिश नीति में इस बदलाव की स्पष्ट अभिव्यक्ति 1942 की ब्रिटिश योजना में हुई जिसमें औपचारिक घोषणा की गई कि युद्धोपरान्त भारत के संविधान निर्माण करने हेतु एक निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जाएगा. किन्तु इस योजना के अन्य बिन्दुओं पर भारतीय नेतृत्व की आपत्ति के कारण यह योजना असफल रही.
अंततः मई 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत संविधान सभा के गठन पर व्यापक सहमती बनाई जा सकी. मिशन की संस्तुति थी कि वर्तमान स्थितियों में व्यस्क मताधिकार पर आधारित संविधान सभा का गठन असंभव है. अतः प्रांतीय विधानसभाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से संविधान सभा का गठन किया जाए.
इस सभा में 389 सदस्य हों जिनमें 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिशनरी क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि हों. योजना के अन्य अहम सुझाव थे जैसे कि –
- प्रत्येक प्रान्तों के प्रतिनिधियों की संख्या उनकी जनसंख्या के आधार पर निर्धारित हो तथा प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर एक स्थान का आवंटन हो.
- प्रान्तों में विभिन्न जातियों के लिए इन जातियों की आबादी के आधार पर प्रांत को आवंटित स्थानों का विभाजन किया जाए. प्रत्येक जाति के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस जाति के सदस्यों द्वारा हो. अतः मतदाताओं को तीन वर्गों में बाँटा जाए – साधारण, मुस्लिम, सिख (केवल पंजाब में).
- देशी रियासतों को प्रतिनिधित्व भी जनसंख्या के आधार पर दिया जाए किन्तु इनके प्रतिनिधियों का चयन, ब्रिटिश, भारत से संविधान सभा हेतु निर्वाचित सदस्यों की समझुटा समिति तथा रियासतों द्वरा गठित समिति में बातचीत द्वारा किया जाए.
- इस सभा के गठन के बाद प्रान्तों द्वारा हिन्दू बहुल प्रान्तों, उत्तर-पश्चिम के मुस्लिम बहुल प्रान्तों तथा उत्तर-पूर्व के मुस्लिम बहुल प्रान्तों में समूहन की बात की गई.
इस योजना के अनुसार, जुलाई 1946 में संविधान सभा का चुनाव हुआ. निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले प्रान्तों को आवंटित 296 स्थानों में से कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 स्थान तथा यूनियनिस्ट पार्टी, युनियनिस्ट, मुस्लिम, युनियनिस्ट शिड्यूल कास्ट, कृषक प्रजा पाटी, अनुसूचित जाति संघ तथा साम्यवादी दल को 1-1 स्थान तथा स्वतंत्र सदस्यों को 8 स्थान प्राप्त हुए.
संविधान सभा की पहली बैठक
इस प्रकार गठित संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर 1946 को नई दिल्ली स्थित कौंसिल चेम्बर्स के पुस्तकालय भवन में हुई. सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ. सचिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया. मुस्लिम लीग ने इस सभा का बहिष्कार कर पृथक पाकिस्तान हेतु पृथक सभा की माँग आरम्भ कर दी. 11 दिसम्बर, 1946 को सभा द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सभा का स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. सभा की कार्यवाही आरम्भ करने के लिए 13 दिसम्बर, 1946 के जवाहर लाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया गया. इस उद्देश्य प्रस्ताव को संविधान का दर्पण कहा जाता है क्योंकि इनमें स्वतंत्रता आन्दोलन के उन आदर्शों व मूल्यों को रेखांकित किया गया था जिनकी अभिव्यक्ति संविधान में हुई.
22 जनवरी को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के उपरान्त संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा द्वारा अनेक समितियाँ नियुक्त की गईं. इनमें प्रमुख समितियाँ कुछ इस प्रकार थीं –
संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ व अध्यक्ष
- संचालन समिति – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
- संघ संविधान समिति – प. जवाहर लाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति – सरदार वल्लभ भाई पटेल
- प्रारूप समिति – डॉ. भीम राव अम्बेडकर
- संघ समिति – जे.वी. कृपलानी
- संघ शक्ति समिति – प. जवाहर लाल नेहरू
प्रारूप समिति
संविधान के निर्माण के लिए बी.एन. राव द्वारा तैयार प्रारूप पर विचार डॉ. भीम राव अम्बेडकर की अध्यक्षता में गठित प्रारूप समिति द्वारा किया गया. इस समिति में साद सदस्य थे –
- भीम राव अम्बेडकर (अध्यक्ष)
- एन. गोपाल स्वामी आयंगर
- अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर
- कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी
- सैय्यद मुहम्मद सादुल्ला
- एन. माधव राव (बी.एल. मिश्रा के स्थान पर)
- डी.वी. खेतान (1948 में इनकी मृत्यु के बाद टी. कृष्णामचारी को अध्यक्ष बनाया गया)
देश में बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा के कारण 3 जून, 1947 की योजना (माउंटबेटन योजना) के अनुसार देश का विभाजन तय हो जाने पर संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 324 नियत की गई. इसमें 235 स्थान ब्रिटिश प्रान्तों एवं 83 स्थान देशी रियासतों हेतु नियत थे. देश के विभाजन के उपरान्त 31 अक्टूबर, 1947 को संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया. पुनर्गठित सभा में ब्रिटिश प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 229 तथा रियासतों के सदस्यों की संख्या 70 रह गई. इस प्रकार संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या कैबिनेट मिशन योजना के तहत 389 से घटकर 299 रह गई.
प्रारूप समिति द्वारा प्रारूप पर विचार कर 21 फरवरी, 1948 को अपनी रिपोर्ट पुनर्गठित संविधान सभा के समक्ष रखी. इस प्रारूप संविधान पर विचार विमर्श 4 नवम्बर से 9 नवम्बर 1948 तक चला. इसे प्रथम वाचन की संज्ञा दी गई. इसके उपरान्त संविधान प्रारूप पर गहन-चर्चा तथा संशोधन प्रस्तावित किये गये. इसे द्वितीय वाचन कहा जाता है. यह 15 नवम्बर, 1948 से 17 अक्टूबर, 1949 तक चला. इसके उपरान्त 14 नवम्बर, 1949 को तृतीय वाचन पारित हुआ व इसमें संविधान को अंतिम रूप में पारित किया गया. यह वाचन 26 नवम्बर 1949 को समाप्त हुआ. इस प्रकार संविधान निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे. अंतिम रूप से पारित संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं. संविधान के अनुच्छेद जैसे नागरिकता एवं अस्थायी एवं संक्रमणकालीन उपबंध 26 नवम्बर, 1945 से लागू कर दिए गये किन्तु शेष संविधान 26 जनवरी के ऐतिहासिक महत्त्व को देखते हुए 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया.
संविधान सभा विषयक स्मरणीय तथ्य
- संविधान सभा से देश की साम्प्रदायिक अशांति दूर होगी और यह देश को उचित राजनीतिक दिशा प्रदान करेगी. – महात्मा गाँधी
- हम एक ऐसी संविधान सभा चाहते हैं जो भारतीय मस्तिष्क का वास्तविक दर्पण हो – महात्मा गाँधी.
- भारतीय संविधान सभा ब्रिटिश कानून के अंतर्गत गठित होने कारण प्रभुत्व-सम्पन्न नहीं है. – विस्टन चर्चिल.
- सरकारें राजकीय पत्रों से पैदा नहीं होती. वास्तव में वे जन की इच्छा की अभिव्यक्ति होती है. आज हम यहाँ इस लिए एकत्र हो पाए हैं क्योंकि हमारे पीछे जनता की शक्ति है. – प. नेहरू.
- प्रारूप समिति में कांग्रेस के केवल 2 सदस्य थे. कम. एम. मुंशी एवं बाद में टी.टी. कृष्णाचारी. अन्य सदस्य में में मो. सादुल्ला मुस्लिम से, अम्बेडकर, खेतान, माधवराव व अय्यर स्वतंत्र (निर्दलीय) सदस्य थे.
- डॉ. अम्बेडकर का निर्वाचन प. बंगाल से हुआ था.
- संविधान सभा में ब्रिटिश प्रान्तों के 296 सदस्यों में 213 सामान्य, 79 मुस्लिम व 4 सिख थे.
- इस सभा में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी.
- इस सभा में महिला सदस्यों की संख्या 12 थी.
- संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई.
- इसी दिन संविधान सभा द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया.
संविधान सभा की समितियां
A. प्रमुख समितियाँ
संविधान सभा में 8 प्रमुख समितियां थी, इसके अलावा कई लघु समितियां भी थीं. इन समितियों एवं उनके उपाध्यक्षो के नाम निम्नलिखित हैं –
- संघीय शक्ति संबंधी समिति – जवाहरलाल नेहरू
- संघीय संविधान समिति – जवाहरलाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति – सरदार पटेल
- प्रारूप समिति – डॉ बी आर अंबेडकर
- मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक एवं जनजातीय और बहिष्कृत क्षेत्रों संबंधी सलाहकार समिति – सरदार पटेल
- प्रक्रिया नियम समिति – डॉ राजेंद्र प्रसाद
- राज्यों के लिए समिति (राज्यों के साथ वार्ता के लिए समिति) – जवाहरलाल नेहरू
- संचालन समिति – डॉ राजेंद्र प्रसाद
B. लघु समिति
वित्त एवं स्टाफ समिति- डॉ राजेन्द्र प्रसाद