Sansar Daily Current Affairs, 08 May 2020
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : History of the world will include events from 18th century such as industrial revolution, world wars, redrawing of national boundaries, colonization, decolonization, political philosophies like communism, capitalism, socialism etc.- their forms and effect on the society.
Topic : Pearl harbour attack
संदर्भ
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में पर्ल हार्बर हमले या 9/11 के हमले की तुलना में ज्यादा गहरी चोट पहुँचाई है. राष्ट्रपति ने व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से कहा कि “यह पर्ल हार्बर से भी बदतर है.”
पर्ल हार्बर घटना
- पर्ल हार्बर या ‘पर्ल बंदरगाह’ हवाई द्वीप में होनोलूलू से दस किमी उत्तर-पश्चिम, संयुक्त राज्य, अमरीका का प्रसिद्ध बंदरगाह एवं नौसैनिक अड्डा है.
- दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साल 1941 में अमरीकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर जापान ने हमला किया था. द्वितीय विश्व युद्ध में अमरीकी ज़मीन पर यह प्रथम हमला था.
- जापान के इस हमले में 2400 से अधिक अमरीकी जवान मारे गए थे और 19 जहाज जिसमें आठ जंगी जहाज़ थे, नष्ट हो गए थे.
- इस आक्रमण के परिणामस्वरूप अमेरिका भी द्वितीय विश्वयुद्ध में कूद पड़ा और मित्र राष्ट्रों की ओर से मोर्चा संभाल लिया था.
- जापान ने अमेरिका द्वारा अधिकृत फिलीपींस, ब्रिटेन द्वारा अधिकार किए गये मलाया, सिंगापुर तथा हांग कांग पर भी आक्रमण किया.
- वास्तव में यह आक्रमण एक सुरक्षात्मक कार्य था ताकि अमेरिकी प्रशान्त टुकड़ी जापान के भावी योजनाओं में दखल न दे पाए.
- इस बंदरगाह के 20 वर्ग किलोमीटर के नाव्य जल में सैकड़ों जहाजों के रुकने का स्थान है. हवाई द्वीप के शासकों द्वारा यहाँ 1887 ई. में संयुक्त राज्य, अमरीका को कोयला एवं जहाज मरम्मत केंद्र स्थापित करने के लिए स्वीकृति दी गई थी.
- 7 दिसम्बर 1941 को, जब वाशिंगटन में जापानी प्रतिनिधि के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध की समझौता वार्ता चल रही थी, उस समय जापानी युद्धक विमानों ने पर्ल बंदरगाह पर अचानाक धावा बोल दिया.
- इस हमले से संयुक्त राज्य अमरीका का संपूर्ण बेड़ा, फोर्ड द्वीप स्थित नौसैनिक वायुकेंद्र एवं बंदरगाह बुरी तरह नष्ट हो गया था तथा ढाई हजार सैनिक मारे गए थे. एक हजार से अधिक घायल हुए एवं लगभग एक हजार लापता हो गए.
- फिर भी एक साल के अंदर ही बहुत से भागों एवं जलपोतों का पुनर्निर्माण कर लिया गया और यह बंदरगाह संयुक्त राज्य अमरीका के प्रशांत महासगरीय बेड़े का प्रधान कार्यालय हो गया.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Parliament and State Legislatures – structure, functioning, conduct of business, powers & privileges and issues arising out of these.
Topic : Parliamentary standing committees
संदर्भ
लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को लोक लेखा संसदीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. विदित हो कि लोकलेखा समिति का अध्यक्ष लोकसभा में विपक्ष का नेता होता है.
भारतीय संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ निम्नलिखित हैं –
याचिका समिति (The Committee on Petitions)
इस समिति में कम से कम 15 सदस्य होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष समिति के सदस्यों का नाम-निर्देशन करता है और समिति का कार्यकाल एक वर्ष है. जनता द्वारा सदन के सम्मुख सामान्य हित से सम्बंधित जो याचिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं यह समिति उन याचिकाओं पर विचार कर सदन के सामने रिपोर्ट देती है.
लोक लेखा समिति (The Public Accounts Committee)
इस समिति का कार्य सरकार के सभी वित्तीय लेन-देन सम्बन्धी विषयों की जांच करना है. समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिनमें 15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं. समिति का कार्यकाल 1 वर्ष है और कोई मंत्री इस समिति का सदस्य नहीं होता है. इस समिति की सिफारिशों ने देश के वित्तीय प्रशासन को सुधारने में बहुत अधिक योगदान किया है.
प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)
प्राक्कलन समिति कार्य भी शासन पर वित्तीय नियंत्रण करना है. इस समिति का कार्य विभिन्न विभागों के वित्तीय अनुमानों की जांच करना है और यह फिजूलखर्ची रोकने (to stop wasteful expenditure) के लिए सुझाव देती है. इसकी नियुक्ति प्रति वर्ष प्रथम सत्र के प्रारम्भ में की जाती है. समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं और इसका कार्यकाल 1 वर्ष होता है. कोई मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है.
विशेषाधिकार समिति (The Committee of Privileges)
इस समिति का कार्य सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना है. इस उद्देश्य से यह समिति विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है. इसमें 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें सदन का अध्यक्ष मनोनीत करता है.
सरकारी आश्वासन समिति (The Committee on Govt. Assurances)
शासन और मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा समय-समय पर जो आश्वासन दिए जाते हैं, इन आश्वासनों को किस सीमा तक पूरा किया जाता है, इस बात की जाँच यह समिति करती है. इस समिति का कार्य सदन की प्रक्रिया तथा उसके कार्य-संचालन के नियमों पर विचार करना तथा आवश्यकतानुसार उनमें संशोधन की सिफारिश करना है.
संसदीय स्थायी समितियाँ क्यों आवश्यक हैं?
- संसदीय समितियाँ वे मंच हैं जहाँ किसी प्रस्तावित कानून के ऊपर विस्तृत विचार-विमर्श होता है.
- ऐसी समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों की संख्या के अनुपात में सांसद लिए जाते हैं.
- समितियों की बैठक बंद कमरे में होती है और सदस्यों पर दलीय व्हिप नहीं चलता है.
- संसदीय समितियों में सदनों की तुलना में अधिक व्यापक ढंग से विचार होता है और सदस्य बिना झिझक के अपनी बात रखते हैं.
- संसदीय समितियों से सांसदों को कार्यकारी प्रक्रिया को निकट से समझने का अवसर मिलता है.
स्थाई समितियों के प्रकार
- अधिकांश संसदीय समितियाँ स्थायी होती हैं क्योंकि ये अनवरत् अस्तित्व में रहती हैं और सामान्यतः प्रत्येक वर्ष पुनर्गठित होती हैं.
- कुछ समितियाँ किसी विशेष विधेयक पर विचार करने के लिए गठित होती हैं. अतः इन्हें “सिलेक्ट समितियाँ” कहा जाता है. सम्बंधित विधेयक के पारित होते ही यह समिति समाप्त हो जाती है.
संवैधानिक स्रोत
संसदीय समितियों की शक्ति का स्रोत दो धाराएँ हैं –
- पहली धारा 105 (Article 105) है जो सांसदों के विशेषाधिकार से सम्बंधित है.
- दूसरी धारा 118 (Article 118) है जिसमें संसद की प्रक्रिया और आचरण के विषय में संसद को नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया गया है.
सदन में अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों सम्बन्धी समिति (The Committee on absence of members from sitting of the House)
यदि कोई सदस्य सदन की बैठक से 60 या उससे अधिक दिनों तक सदन की अनुमति के बिना अनुपस्थित रहता है, तो उसका मामला समिति के पास विचार के लिए भेजा जाता है. समिति को अधिकार है की सम्बंधित सदस्य की सदस्यता समाप्त कर दे अथवा अनुपस्थिति माफ़ कर दे. इस समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें अध्यक्ष एक वर्ष के लिए मनोनीत करता है.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Issues related to education.
Topic : Prime Minister’s Research Fellows Scheme
संदर्भ
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने हाल ही में प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्येता योजना (PM Research Fellowship Scheme – PMRF) के विषय में विभिन्न संशोधनों की घोषणा की.
मुख्य संशोधन
- अब किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान / विश्वविद्यालय (आईआईएससी / आईआईटी / एनआईटी / आईआईएसईआर / आईआईईएसटी / सीएफ आईआईआईटी के अलावा) के छात्रों के लिए, गेट स्कोर की न्यूनतम आवश्यकता 750 से घटाकर 650 कर दी गई है तथा सीजीपीए की न्यूनतम आवश्यकता भी 8 या उसके समकक्ष कर दी गई है.
- अब प्रविष्टियों के दो चैनल माध्यम होंगे. पहला जिसमें अभियार्थी सीधे प्रवेश यानी Direct Entry ले सकेंगे और दूसरा होगी Lateral Entry. Lateral Entry उन्हीं छात्रों को मिलेगी जो PMRF द्वारा अनुदान देने वाले संस्थानों में PhD कर रहे हैं.
- अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय में “Research And Innovation Division” के नाम से एक समर्पित डिवीजन बनाया जा रहा है. यह प्रभाग एक निदेशक की अध्यक्षता में होगा जो MHRD के तहत आने वाले विभिन्न संस्थानों के अनुसंधान कार्य का समन्वय करेगा.
प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्येता योजना के बारे में
- इस योजना की घोषणा बजट 2018-19 में की गई थी. जो संस्थान PMRF की पेशकश कर सकते हैं, उनमें सभी आईआईटी, सभी आईआईएसईआर, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु और कुछ शीर्ष केंद्रीय विश्वविद्यालय / एनआईटी शामिल हैं जो विज्ञान और / या प्रौद्योगिकी डिग्री प्रदान करते हैं.
- यह विज्ञान और अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड (SERB) (जो कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), भारत सरकार के तहत एक स्वायत्त निकाय है) तथा भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के बीच एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) है.
- इसका उद्देश्य देश भर में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करके और ब्रेन ड्रेन को कम करके अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार करना है.
- इस योजना के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विषयों में Tech अथवा इंटीग्रेटेड M.Tech अथवा M.Sc पास करने वाले लगभग 1000 छात्रों को IITs / IISc में फेलोशिप की एक निश्चित राशि के साथ Ph.D कार्यक्रम में सीधा प्रवेश दिया जाएगा.
- इसके अतिरिक्त प्रत्येक अध्येता को अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए 5 वर्ष की अवधि के लिए 2 लाख रुपये का शोध अनुदान दिया जाएगा.
विज्ञान और अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड
- संसद के एक अधिनियम के माध्यम से स्थापित यह एक वैधानिक निकाय है.
- बोर्ड का प्राथमिक कार्य विज्ञान और इंजीनियरिंग के उभरते क्षेत्रों में बुनियादी अनुसंधान का समर्थन करना है.
- अनुसंधान के मुद्दों पर शीघ्र निर्णय करने के लिए, बोर्ड के पास वित्तीय और प्रशासनिक दोनों शक्तियाँ निहित हैं. इस प्रकार से अनुसंधान वैज्ञानिकों और S&T तन्त्र की वास्वतिक आवश्यकताओं के प्रति हमारी अनुक्रियाशीलता में सुधार किया जा सकता है.
अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अन्य योजनाएँ
- INSPIRE – यह प्रतिभाओं को आकर्षित करने तथा उन्हें कम उम्र से विज्ञान का अध्ययन करने और अनुसंधान में कैरियर बनाने में प्रेरित करती है. साथ ही देश में S&T और R&T के आधार को मजबूत एवं विस्तृत करने के लिए अपेक्षित महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल बनाने में सहायता करती है.
- रिसर्च प्रमोशन स्कीम – यह निर्धारित क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देती है.
- ई-शोध सिन्धु – इसका उद्देश्य 94 AICTE समर्थित तकनीकी संस्थानों को तकनीकी शिक्षा हेतु ई-संसाधन प्रदान करना है.
- ग्रांट फॉर ओर्गानाइजिंग कांफ्रेंस – यह तकनीकी शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के आयोजन के लिए संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Disaster preparedness.
Topic : What are the safeguards against chemical disasters in India
संदर्भ
विशाखापत्तनम में हुई गैस रिसाव की त्रासदी ने भारत में रासायनिक आपदा के विरुद्ध उपलब्ध सुरक्षा की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है.
ज्ञातव्य है कि भोपाल गैस त्रासदी के समय इस विषय में अलग से कोई कानून नहीं था, मात्र भारतीय दंड संहिता थी.
इस दंड संहिता की धारा 304 में दंडनीय नरहत्या तथा धारा 304(A) में लापारवाही से होने वाली मृत्यु के लिए दो वर्ष का कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
भोपाल त्रासदी के पश्चात् कुछ नए कानून बने जिनका विवरण नीचे दे दिया गया है.
रासायनिक आपदा क्या है?
रासायनिक दुर्घटना किसी एक या अधिक संकट पैदा करने वाले पदार्थों के अवांछित रूप से निकलने/रिसाव को रासायनिक दुर्घटना कहते हैं. इससे मानव स्वास्थ्य को या पर्यावरण को क्षति हो सकती है. रसायनों से आग लग सकती है, विस्फोट हो सकते हैं, विषाक्त पदार्थ हवा या जल में मिश्रित हो सकते हैं, जिससे लोग बीमारी, चोट, मृत्यु आदि हो सकते हैं.
रासायनिक आपदाओं के संभावित कारण
- प्रक्रिया और सुरक्षा प्रणालियों की विफलता – मानवीय त्रुटियाँ, तकनीकी त्रुटियाँ और प्रबंधन से सम्बंधित त्रुटियाँ
- प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न दुर्घटना
- खतरनाक अपशिष्टों के परिवहन वाहनों का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना.
- लोगों की अशांति के दौरान कारखानों में तोड़-फोड़.
भोपाल गैस त्रासदी
भारत सबसे भयानक औद्योगिक आपदा का भुक्तभोगी रह चुका है. भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की रात में लगभग 42 टन जहरीली गैस (मिथाइल आइसो साइनेट-एमआईसी) का आकस्मिक रिसाव हो गया था. आधिकारिक अनुमान के अनुसार, उस घटना में लगभग पांच हजार लोग मारे गये थे.
भोपाल गैस त्रासदी के पश्चात् के मुख्य कानून
भोपाल गैस त्रासदी के ठीक बाद सरकार ने पर्यावरण को विनियमित करने तथा सुरक्षा उपायों एवं दंडों को निर्दिष्ट करने से सम्बंधित अनेक कानून पारित कुए. इनमें से कुछ निम्नलिखित थे:
भोपाल गैस रिसाव (दावों का निपटान) अधिनियम (Bhopal Gas Leak (Processing of Claims) Act)- 1985
यह अधिनियम केंद्र सरकार को भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े या उससे जुड़े दावों को सुरक्षित रखने की शक्तियाँ प्रदान करता है. इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत ऐसे दावों का तीव्रता से तथा न्यायसंगत तरीके से निपटान करने का प्रावधान किया गया.
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act), 1986
इस अधिनियम के द्वारा केंद्र सरकार को औद्योगिक इकाइयों हेतु पर्यावरण सुधार के उपाय अपनाने, मानकों को निर्धारित करने तथा निरीक्षण करने की शक्तियाँ प्रदान की जाती है.
सार्वजनिक दायित्त्व बीमा अधिनियम (Public Liability Insurance Act), 1991
यह अधिनियम खतरनाक पदार्थों से निपटान के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने से सम्बंधित है.
राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम (National Environment Appellate Authority Act), 1997
इस अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण (National Environment Appellate Authority- NEAA), पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अपनाए गए सुरक्षा उपायों के अधीन उन क्षेत्रों में औद्योगिक कार्यों के प्रतिबंधों के विषय में अपील सुन सकता है.
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal – NGT) अधिनियम, 2010
पर्यावरण संरक्षण और वनों के संरक्षण से जुड़े मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटान हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की स्थापना की गई, जो औद्योगिक गतिविधियों से सम्बंधित आवश्यक निर्देश जारी करने का कार्य करता है.
भारत में रासायनिक आपदा की स्थिति
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) के अनुसार, हाल के दिनों में भारत में 130 से अधिक प्रमुख रासायनिक दुर्घटनाएँ घटित हुई हैं, जिसमें 259 लोगों को अपने जान से हाथ गँवाना पड़ा तथा 560 से अधिक लोगों को बहुत अधिक शारीरिक क्षति पहुँची है.
- भारत के 301 ज़िलों में 1861 से भी अधिक प्रमुख रासायनिक खतरों वाली इकाइयाँ विद्यमान हैं. इसके अतिरिक्त हजारों पंजीकृत एवं खतरनाक कारखाने तथा असंगठित क्षेत्र हैं.
निष्कर्ष
रासायनिक आपदाओं से होने वाली जान-माल की क्षति, आकस्मिक अभिघात, पर्यावरण प्रभाव तथा संपत्ति के नुकसान के मामले बहुत संवेदनशील मामले हैं. NDMA द्वारा निर्गत दिशा-निर्देश रासायनिक आपदाओं से निपटने के लिए विभिन्न स्तरों के कार्मिकों से सक्रिय, भागीदारी, बहुविषयक एवं बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाने की माँग करते हैं. अत: इस दिशा में NDMA के साथ-साथ राज्य सरकारों तथा सभी हितधारकों को साथ में आकर रासायनिक आपदा प्रबंधन की दिशा में कार्य करना चाहिये.
Prelims Vishesh
Special corona fee :-
दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह शराब की बिक्री पर एक विशेष शुल्क लगाएगी जो न्यूनतम खुदरा मूल्य का 70% होगा. इसे विशेष कोरोना शुल्क का नाम दिया जा रहा है और यह शुल्क लॉकडाउन के समय राजस्व को बढ़ाने में काम आएगा.
Saras Collection :-
- सरस योजना GeM (Government e-Marketplace), DAY-NRLM और ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक पहल है जिसमें ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों के द्वारा बनाए गये उत्पादों की केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा खरीद की सुविधा दी जाती है.
- ये उत्पाद पांच प्रकार के होते हैं – हस्तशिल्प, हथकरघा और कपड़े, कार्यालय सामग्रियाँ, किराना और खान-पान, व्यक्तिगत देखभाल और स्वच्छता.
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