Sansar Daily Current Affairs, 01 February 2022
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान.
Topic : Rajkumari Amrit Kaur’s birth anniversary
संदर्भ
देश 2 फ़रवरी को राजकुमारी अमृत कौर की जयंती मनाएगा.
राजकुमारी अमृत कौर
- राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था. पिता राजा हरनाम सिंह पंजाब के कपूरथला राज्य के राजसी परिवार से थे. स्कूल के बाद अपनी उच्च शिक्षा के लिए वे ऑक्सफ़ोर्ड चली गईं.
- साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ने राजकुमारी को झकझोर कर रख दिया. इसके बाद इन्होंने स्वाधीनता संग्राम से जुड़ने का निर्णय लिया.
- साल 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की शुरुआत की और बाद में इसकी अध्यक्षा भी बनीं.
- महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर राजकुमारी अमृत कौर राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ गईं. इन्होंने करीब 17 सालों तक महात्मा गांधी की सेक्रेटरी के तौर पर काम किया. इस दौरान वे गांधी आश्रम में ही रहा करती थीं.
- दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा. स्वाधीनता आंदोलन के साथ-साथ, 1930 के दशक से ही राजकुमारी अमृत कौर बाल विवाह, देवदासी प्रथा और समानता जैसे मुद्दों पर महिलाओं के अधिकारों की पुरज़ोर वकालत किया करती थीं. उनके इन्हीं प्रयासों के चलते अरुणा आसफ अली ने उन्हें ‘पायनियर’ कहा था.
- वह संविधान सभा की सलाहकार समिति व मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं. सभा में वह सेंट्रल प्राविंस व बेरार की प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं.
- वह ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ अर्थात् तत्कालीन वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की अध्यक्षा भी बनीं. गौरतलब है कि इस पद पर पहुंचने वाली वे पहली महिला थीं. इतना ही नहीं, वो इस पद पर पहुंचने वाली एशिया से पहली व्यक्ति थीं.
- 2 अक्टूबर, 1964 को 75 साल की उम्र में राजकुमारी अमृत कौर ने इस संसार को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: मध्यकालीन भारतीय इतिहास.
Topic : Ramanujacharya
संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र नोदी द्वारा 5 फरवरी को हैदराबाद में “समानता की मूर्ति! / ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी’ (Statue of Equality) का अनावरण किया जाएगा. विराजमान अवस्था में संत रामानुजाचार्य की इस 216 फुट ऊंची प्रतिमा को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा बताया जा रहा है.
रामानुजाचार्य
- रामानुजाचार्य का जन्म वर्ष 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरूमबुदूर गाँव में हुआ था. उनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा.
- रामानुजाचार्य के शिष्य रामानन्द थे, जिनके शिष्य कबीर, रैदास और सूरदास थे.
- रामानुजाचार्य ने वेदान्त दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन “विशिष्टाद्वैत” वेदान्त लिखा.
- इन्हें ‘इलाया पेरूमल‘ के रूप में भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है प्रकाशमान.
- रामानुजाचार्य ने तथाकथित अछूतों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न करने की बात करते हुए कहा कि विश्व के रचयिता ने कभी भी किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया.
- उन्होंने वेदों के गोपनीय और सर्वोत्कृष्ट ज्ञान को मंदिरों से निकाल कर आम लोगों तक पहुँचाया.
विशिष्टाद्वैतवाद (विशिष्ट+अद्वैत)
- इसके अनुसार सभी जीव गुणात्मक रूप से ब्रह्म के साथ एक हैं जबकि मात्रात्मक रूप से उनमें भिन्नताएँ व्याप्त हैं. रामानुज के अनुसार सभी जीवों के मात्रात्मक रूप से भिन्न होने का आशय यह है कि वे ब्रह्म का एक हिस्सा होने के कारण ब्रह्म पर ही निर्भर हैं लेकिन वे स्वयं ब्रह्म नहीं बन सकते.
- इस दर्शन के अनुसार सभी जीवों की एक विशिष्ट सत्ता है. इस प्रकार ब्रह्म भी है किन्तु यह एक सर्वोच्च सत्ता है.
- भौतिक जगत परमसत्ता की रचना है और इस भौतिक जगत के निर्माण के क्रम में परमसत्ता में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है.
- दसवीं शताब्दी के अंत तक दक्षिणी भारत में दर्शन की विशिष्टाद्वैत प्रणाली सुस्थापित हो चुकी थी और इस मत के अनुयायी महत्त्वपूर्ण वैष्णव मंदिरों के प्रभारी बन गये थे.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश.
Topic : AU suspends Burkina Faso after coup as envoys head for talks
संदर्भ
हाल ही में, ‘अफ्रीकी संघ’ (African Union – AU) द्वारा ‘बुर्किना फासो’ (Burkina Faso) को संगठन से निलंबित कर दिया गया है. ‘अफ्रीकी संघ’ ने कहा है, जब तक ‘बुर्किना फासो’ में सैन्य विद्रोह के बाद संवैधानिक व्यवस्था बहाल नहीं होती है, तब तक वह संगठन की किसी भी कार्रवाई में भाग नहीं ले सकेगा.
संबंधित प्रकरण:
बुर्किना फासो, अपने पड़ोसी देशों माली तथा नाइजर की भांति, वर्ष 2015 से हिंसा के एक सर्पिल चक्र में फंस चुका है, जिसका श्रेय अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े जिहादी आंदोलनों को दिया जाता है. इन जिहादी आंदोलनों में कम से कम 2,000 लोग मारे जा चुके है और 1.4 मिलियन जनसंख्या को विस्थापित होना पड़ा है.
- ‘अफ्रीकी संघ’ का हालिया निर्णय, बुर्किना फासो में 24 जनवरी को हुए तख्तापलट के प्रत्युत्तर में आया है. इस सैन्य तख्तापलट में राष्ट्रपति रोच मार्क क्रिश्चियन काबोरे को अपदस्थ कर दिया गया.
- तख्तापलट के बाद, बुर्किना फासो का एक सप्ताह में यह दूसरा निलंबन है. इससे पहले, ‘पश्चिमी अफ्रीकी देशों के आर्थिक समूह’ (ECOWAS) द्वारा बुर्किना फासो को निलंबित कर दिया गया था.
अफ्रीकी संघ क्या है?
- अफ्रीकी संघ एक महाद्वीपीय संघ है जिसके सदस्य अफ्रीका के सभी 55 देश होते हैं. परन्तु इसमें अफ्रीका में स्थित यूरोपीय प्रभुता वाले विभिन्न क्षेत्र सम्मिलित नहीं होते हैं.
- अफ्रीकी संघ सबसे पहले इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में 26 मई, 2001 को स्थापित हुआ था और अगले वर्ष 9 जुलाई को दक्षिण अफ्रीका में इसका अनावरण किया गया था.
- अफ्रीकी संघ अफ्रीकी एकता संघ (Organisation of African Unity – OAU) को विस्थापित कर बना था. ज्ञातव्य है कि 32 अफ्रीकी सरकारों ने मिलकर 25 मई, 1963 को यह संगठन अदीस अबाबा में शुरू किया था.
- अफ्रीकी संघ के अधिकांश बड़े निर्णय इसकी महासभा में लिए जाते हैं जो हर छह महीने पर बैठती है. इस महासभा में सभी देशों और सरकारों के प्रमुख सदस्य होते हैं.
- अफ्रीकी संघ का सचिवालय अदीस अबाबा में स्थित है.
अफ्रीकी संघ के मुख्य उद्देश्य
- अफ्रीकी देशों और अफ्रीकियों के मध्य एकता एवं एकजुटता को बढ़ावा देना.
- सदस्य देशों की सम्प्रभुता, भौगोलिक एकता और स्वतंत्रता की रक्षा करना.
- उन उपायों में तेजी लाना जिनसे महाद्वीप की राजनीतिक एवं सामाजिक-आर्थिक एकात्मता संभव हो सके.
ECOWAS
- पश्चिम अफ्रीका राज्य आर्थिक समुदाय (ECOWAS) मूलत: सोलह पश्चिम अफ्रीकी देशों का एक क्षेत्रीय आर्थिक समूह है.
- इसका मुख्यालय अबूजा, नाइजीरिया में स्थित है
इकोवास के प्रमुख उद्देश्य हैं –
- आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विकास और सहयोग को प्रोत्साहन देना.
- सभी सदस्य देशों के लोगों की जीवन-दशा में सुधार लाना आर्थिक स्थिरता को बढ़ाना तथा बनाए रखना.
- सदस्य देशों के मध्य संबंध में सुधार लाना, और अफ्रीका के विकास और प्रगति में योगदान देना.
ECOWAS में दो उप-क्षेत्रीय ब्लॉक शामिल हैं:
- ‘पश्चिम अफ्रीकी आर्थिक और मौद्रिक संघ’ (West African Economic and Monetary Union): यह मुख्य रूप से, आठ फ्रेंच भाषी देशों का एक संगठन है.
- 2000 में स्थापित ‘पश्चिम अफ्रीकी मौद्रिक क्षेत्र’ (West African Monetary Zone- WAMZ): इसमें मुख्यतः अंग्रेजी बोलने वाले छह देश शामिल हैं.
मेरी राय – मेंस के लिए
विगत कुछ दशकों में भारत और अफ्रीकी देशों के बीच आर्थिक रिश्तों की डोर काफी मजबूत हुई है. उदाहरण के लिए, आपसी व्यापार काफी तेजी से फल-फूल रहा है. हालांकि इन देशों के साथ आपसी व्यापार में महज कुछ वस्तुओं (कोयला, सोना, और रिफाइंड पेट्रोलियम तेल) का ही वर्चस्व रहा है. इसके साथ ही कई भारतीय कंपनियों ने इन देशों में मुख्य रूप से संसाधन क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश भी किया है. पश्चिमी एवं पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ भारत की साझेदारी के केंद्र में नि:संदेह ऊर्जा सुरक्षा ही है. हालांकि, पश्चिमी एवं पूर्वी अफ्रीकी देशों को महज संसाधन आयात से परे देखने की भी आवश्यकता है. अफ्रीकी देश न केबल ऊर्जा के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं, बल्कि भारत से रिफाइंड पेट्रोलियम तेलों के निर्यात के प्रमुख गंतव्य भी हैं. इसके अलावा, भारत इन देशों की गरीब जनसंख्या को स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसी तरह इन देशों से दालों का आयात भारत की खाद्य सुरक्षा के लिहाज से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ ही भारत भी ज्ञान को साझा करके एवं इन देशों के किसानों को और अधिक आसानी से नई तकनीक सुलभ कराके अफ्रीका की खाद्य असुरक्षा को दूर करने में अहम भूमिका निभा रहा है. यहाँ तक कि समुद्री सहयोग के मामले में भी भारत के हित सिर्फ ऊर्जा को हासिल करने और संसाधनों की ढुलाई तक ही सीमित नहीं हैं. “ब्लू इकोनॉमी” (समुद्र की बदौलत आर्थिक विकास) पर विशेष जोर देने का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है. चूंकि मुख्य रूप से अर्थनीति ही इन अफ्रीकी देशों के साथ भारत के रिश्तों को नया आयाम दे रही है इसलिए भारत और इन देशों के बीच घनिष्ठ आर्थिक एवं सुरक्षा संबंध निश्चित रूप से इन सभी देशों के हित में होंगे. आज का भारत, सभी देशों के साथ निकट संबंध रखने में विश्वास रखता है. आज की तिथि में भारत तेजी से उभरती हुई विश्व शक्ति है. साथ ही अफ्रीका को लेकर उसकी अपेक्षाएँ भी बढ़ी हैं. यही कारण है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और सुरक्षा से जुड़े हितों को देखते हुए अफ्रीकी देशों के साथ और निकटता बढ़ा रहा है, ताकि इन देशों के साथ मिलकर साझा विकास, सुरक्षा और सभी देशों के हितों को पूरे करने की दिशा में आगे बढ़ सके.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश.
Topic : United Nations Commission on International Trade Law – UNCITRAL
संदर्भ
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में एक “सीमा-पारीय दिवालियापन हेतु एक मानकीकृत ढांचे” (Standardised Framework for Cross-Border Insolvency) की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है. यह फ्रेमवर्क कर्ज में डूबी कंपनियों को ऋण प्रदान करने वालों के लिए, कंपनियों की विदेश स्थित परिसंपत्तियों और देनदारियों पर भी दावा करने और अपनी वसूली करने में सहायक होगा.
आवश्यक कार्रवाई
सर्वेक्षण में ‘दिवाला कानून समिति’ (Insolvency Law Committee) की रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है, जिसमें विदेशी परिसंपत्तियों को ‘दिवाला प्रक्रिया’ के अंतर्गत लाने के लिए कुछ संशोधनों के साथ “संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग’ (United Nations Commission on International Trade Law – UNCITRAL) को स्वीकार करने की सिफारिश की गयी थी.
आवश्यकता
‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) के अतर्गत, वर्तमान में अन्य देशों में किसी भी दिवाला कार्यवाही को स्वतः मान्यता दिए जाने की अनुमति नहीं दी गयी है” और इसके वर्तमान प्रावधान “लेनदारों, देनदारों और अन्य हितधारकों के लिए अपने दावों के परिणामों के बारे में अनिश्चितता की ओर भी ले जाते है”.
UNCITRAL के बारे में
‘संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग’ (UNCITRAL) सीमापार ऋणशोधन या दिवालियापन से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिये एक विधायी ढांचा प्रदान करता है.
- इस फ्रेमवर्क / ढांचे को ‘अधिनियमित क्षेत्राधिकार के घरेलू संदर्भ के अनुरूप संशोधनों के साथ’ विभिन्न देशों द्वारा अपनाया जा सकता है.
- UNCITRAL फ्रेमवर्क को सिंगापुर, ब्रिटेन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका सहित 49 देशों में लागू किया जा चुका है.
- यह फ्रेमवर्क, विदेशी पेशेवरों और लेनदारों को घरेलू अदालतों तक सीधी पहुंच का अवसर प्रदान करता है और उन्हें ‘घरेलू दिवाला कार्यवाही’ में भाग लेने और कार्रवाई शुरू करने में सक्षम बनाता है.
- इसके तहत, ‘विदेशी कार्यवाही’ (foreign proceedings) की मान्यता की अनुमति प्रदान की गयी है और साथ ही, UNCITRAL फ्रेमवर्क अदालतों को तदनुसार निर्णय करने एवं राहत निर्धारित करने में सक्षम बनाता है.
Sansar Daily Current Affairs, 02 February 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय.
Topic : MGNREGA
संदर्भ
नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) योजना के तहत काम की मांग पहले लॉकडाउन के दौरान चरम पर पहुँच गयी थी, जिसमे अब कमी आयी है, लेकिन यह अभी भी महामारी-पूर्व स्तर से अधिक है.
- इस योजना के तहत काम की सबसे ज्यादा मांग, कामगारों के मूल राज्यों की बजाय, आमतौर पर प्रवासी कामगारों के गंतव्य राज्यों में देखी गयी.
संबंधित प्रकरण:
ग्रामीण श्रमिकों के समर्थनकारियों का कहना है, मनरेगा योजना के तहत काम की मांग में गिरावट का प्रमुख कारण धन की कमी है, और इन्होने केंद्रीय बजट में योजना के लिए आवंटित राशि में वृद्धि किए जाने का आग्रह किया है.
- केंद्र सरकार द्वारा पहले लॉकडाउन की शुरुआत में ही योजना के लिए ₹40,000 करोड़ की अतिरिक्त राशि का आवंटन किया गया था.
- हालांकि, कई राज्यों के पास पहले से ही धन की कमी होने के कारण, वर्ष के अंत तक योजना के तहत कोई अतिरिक्त राशि नहीं बची, जिससे यथार्थ में, काम की मांग को कृत्रिम रूपं से कम करना पड़ा.
‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ (MGNREGA) के बारे में
- मनरेगा (MGNREGA) को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में एक सामाजिक उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया था. जिसके अंतर्गत ‘काम करने के अधिकार’ (Right to Work) की गारंटी प्रदान की जाती है.
- इस सामाजिक उपाय और श्रम कानून का मुख्य सिद्धांत यह है, कि स्थानीय सरकार को ग्रामीण भारत में न्यूनतम 100 दिनों का वैतनिक रोजगार प्रदान करना होगा ताकि ग्रामीण श्रमिकों के जीवन स्तर में वृद्धि की जा सके.
प्रमुख उद्देश्य
- मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये न्यूनतम 100 दिन का वैतनिक रोजगार.
- ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को सशक्त करके सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करना.
- कुओं, तालाबों, सड़कों और नहरों जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में स्थाई परिसंपत्ति का निर्माण करना.
- ग्रामीण क्षेत्रों से होने वाले शहरी प्रवासन को कम करना.
- अप्रयुक्त ग्रामीण श्रम का उपयोग करके ग्रामीण अवसंरचना का निर्माण करना.
मनरेगा योजना के तहत लाभ प्राप्त करने हेतु पात्रता मानदंड
- मनरेगा योजना का लाभ लेने के लिए भारत का नागरिक होना चाहिए.
- कार्य हेतु आवेदन करने के लिए व्यक्ति की आयु 18 वर्ष अथवा इससे अधिक होनी चाहिए.
- आवेदक के लिए किसी स्थानीय परिवार का हिस्सा होना चाहिए (अर्थात, आवेदन स्थानीय ग्राम पंचायत के माध्यम से किया जाना चाहिए).
- आवेदक को स्वेच्छा से अकुशल श्रम के लिए तैयार होना चाहिए.
योजना का कार्यान्वयन:
- आवेदन जमा करने के 15 दिनों के भीतर या जिस दिन से काम की मांग होती है, उस दिन से आवेदक को वैतनिक रोजगार प्रदान किया जाएगा.
- रोजगार उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में, आवेदन जमा करने के पंद्रह दिनों के भीतर या काम की मांग करने की तिथि से बेरोजगारी भत्ता पाने का अधिकार होगा.
- मनरेगा के कार्यों का सामाजिक लेखा-परीक्षण (Social Audit) अनिवार्य है, जिससे कार्यक्रम में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है.
- मजदूरी की मांग करने हेतु अपनी आवाज उठाने और शिकायतें दर्ज कराने के लिए ‘ग्राम सभा’ इसका प्रमुख मंच है.
- मनरेगा के तहत कराए जाने वाले कार्यों को मंजूरी देने और उनकी प्राथमिकता तय करने का दायित्व ‘ग्राम सभा’ और ‘ग्राम पंचायत’ का होता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग- कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व, स्थान, ऊपरी और नीचे की अपेक्षाएँ, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन.
Topic : Fortified rice
संदर्भ
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा आंगनवाड़ियों और सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन के माध्यम से दिसंबर 2021 तक 3.38 लाख मीट्रिक टन ‘संवर्धित चावल’ (Fortified rice) वितरित किए गए हैं.
इस संबंध में सरकार के प्रयास:
- वर्ष 2019 में, केंद्र सरकार द्वारा 2019-2020 से लेकर आगामी तीन साल की अवधि के लिए चावल के फोर्टिफिकेशन के लिए केंद्र प्रायोजित पायलट योजना को मंजूरी दी गयी थी. यह योजना विभिन्न राज्यों के 15 जिलों में लागू की जा रही है.
- पिछले साल, स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए वर्ष 2024 तक हर सरकारी कार्यक्रम के तहत उपलब्ध कराए गए चावल को ‘संवर्धित’ किए जाने की घोषणा की थी.
- सरकार द्वारा पिछले साल ‘एकीकृत बाल विकास योजना’ (अब सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 0) के तहत आंगनवाड़ियों में, तथा स्कूलों में लागू ‘मध्याह्न भोजन योजना’ (पीएम पोषण) के तहत ‘संवर्धित चावल’ के वितरण में तेजी लाई गयी.
चिंताएं:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने हालांकि कुपोषण से लड़ने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में चावल-संवर्धन पर चिंता जताई है और कहा है, कि इसकी अपेक्षा आहार का विविधीकरण किया जाना अधिक महत्त्वपूर्ण होगा.
- कई विशेषज्ञों का यह भी तर्क है, कि लौह तत्व से संवर्धित चावल तथा आयरन की खुराक प्रदान करने वाली अन्य सरकारी योजनाओं के अंतर्गत दी जाने वाली आयरन पोषक तत्व की अत्यधिक मात्रा से मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल का खतरा हो सकता है.
‘चावल संवर्धन’ (Rice fortification) की आवश्यकता:
- चूंकि, देश में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का स्तर काफी अधिक है, इसे देखते हुए यह घोषणा काफी महत्त्वपूर्ण है.
- खाद्य मंत्रालय के अनुसार, देश में हर दूसरी महिला रक्ताल्पता से पीड़ित (anaemic) है और हर तीसरा बच्चा अविकसित या नाटेपन का शिकार है.
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI), भारत, 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है और इसे भुखमरी से संबंधित ‘गंभीर श्रेणी’ में रखा गया है.
- गरीब महिलाओं और गरीब बच्चों में कुपोषण और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी, उनके विकास में बड़ी बाधा है.
‘खाद्य-संवर्धन’ / ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के द्वारा, किसी खाद्यान्न को पोषणयुक्त बनाने हेतु उसमे सावधानी से आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों अर्थात् विटामिन और खनिज तत्वों की मात्रा में वृद्धि की जाती है.
देश में खाद्य पदार्थों के लिए मानकों का निर्धारण करने वाली संस्था ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ (Food Safety and Standards Authority of India – FSSAI) के अनुसार, ‘खाद्य-संवर्धन’ (Food Fortification), ‘किसी खाद्यान्न को पोषणयुक्त बनाने के लिए उसमे सावधानी से आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों अर्थात् विटामिन और खनिज तत्वों, की मात्रा में वृद्धि करने की प्रकिया होती है.
- इसका उद्देश्य आपूर्ति किए जाने वाले खाद्यान्न की पोषण गुणवत्ता में सुधार करना तथा न्यूनतम जोखिम के साथ उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना है.
- यह आहार में सुधार और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का निवारण करने हेतु एक सिद्ध, सुरक्षित और लागत प्रभावी रणनीति है.
संवर्धित चावल (Fortified rice)
खाद्य मंत्रालय के अनुसार, आहार में विटामिन और खनिज सामग्री को बढ़ाने के लिए चावल का संवर्धन (fortification) किया जाना एक लागत प्रभावी और पूरक रणनीति है.
- FSSAI द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार, 1 किलो संवर्धित चावल में आयरन (28 mg-42.5 mg), फोलिक एसिड (75-125 माइक्रोग्राम) और विटामिन B-12 (0.75-1.25 माइक्रोग्राम) होगा.
- इसके अलावा, चावल को सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ, एकल या संयोजन में, जस्ता (10 मिलीग्राम -15 मिलीग्राम), विटामिन A (500-750 माइक्रोग्राम आरई), विटामिन बी-1 (1 मिलीग्राम-5 मिलीग्राम), विटामिन बी-2 (1.25 mg-1.75 mg), विटामिन B3 (12.5 mg-20 mg) और विटामिन B6 (1.5 mg-2.5 mg) प्रति किग्रा के साथ भी संवर्धित किया जाएगा.
‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के लाभ
चूंकि, ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के तहत व्यापक रूप से सेवन किए जाने वाले मुख्य खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की वृद्धि की जाती है, अतः जनसंख्या के एक बड़े भाग के स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु यह एक उत्कृष्ट तरीका है.
- ‘फोर्टिफिकेशन’ व्यक्तियों के पोषण में सुधार करने का एक सुरक्षित तरीका है और भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिलाए जाने से लोगों के स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा नहीं होता है.
- इस पद्धति में लोगों की खान-पान की आदतों और पैटर्न में किसी तरह के बदलाव की जरूरत नहीं है, और यह लोगों तक पोषक तत्व पहुंचाने का सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तरीका है.
- ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ से भोजन की विशेषताओं-स्वाद, अनुभव, स्वरूप में कोई बदलाव नहीं होता है.
- इसे जल्दी से लागू किया जा सकता है और साथ ही अपेक्षाकृत कम समय में स्वास्थ्य में सुधार के परिणाम भी दिखा सकते हैं.
- यदि मौजूदा तकनीक और वितरण प्लेटफॉर्म का लाभ उठाया जाता है तो यह काफी लागत प्रभावी विधि साबित हो सकती है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग- कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व, स्थान, ऊपरी और नीचे की अपेक्षाएँ, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन.
Topic : Fortified rice
संदर्भ
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) के सदस्य वर्चुअल रियलिटी (VR) तकनीक की मदद से कोलंबिया की वर्चुअल फील्ड ट्रिप पर गए. यह अभिनव समाधान UNSC द्वारा संघर्षों, शांति स्थापना और शांति-निर्माण को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा.
वर्चुअल रियलिटी (VR) एवं ऑगमेंटेड रियलिटी (AR)
- वर्चुअल रियलिटी में एक छद्म वातावरण सृजित हो जाता है तथा भौतिक संसार पृथक हो जाता है, इसमें व्यक्ति पूरी तरह से खुद को एक अलग 3D दुनिया में महसूस करता है.
- दूसरी ओर ऑगमेंटेड रियलिटी व्यक्ति को किसी आभासी दुनिया ने लेकर नही जाती बल्कि इसमें स्मार्टफोन, कंप्यूटर के कैमरे द्वारा सृजित प्रतिमाएँ वास्तविक जीवन की वस्तुओं परिवेशों पर प्रक्षेपित हो जाती हैं. इसके जरिये सूचनात्मक और इंटरैक्टिव अनुभव प्रदान करने के लिए वास्तविक दुनिया में ऑडियो, वीडियो, ग्राफिक्स, या विश्लेषणात्मक डेटा जैसे कंप्यूटर से उत्पन्न संवेदनशील इनपुट प्रस्तुत किया जाता है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद्् की होती है. इसकी बैठककभी भी बुलाई जा सकती है. इसके फैसले का अनुपालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है. इसमें 15 सदस्य देश शामिल होते हैं जिनमें से पाँच सदस्य देश – चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका – स्थायी सदस्य हैं. शेष दस सदस्य देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है. चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है.
- ज्ञातव्य है कि कार्यप्रणाली से सम्बंधित प्रश्नों को छोड़कर प्रत्येक फैसले के लिए मतदान की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई भी स्थायी सदस्य अपना वोट देने से मना कर देता है तब इसे “वीटो” के नाम से जाना जाता है. परिषद् (Security Council) के समक्ष जब कभी किसी देश के अशांति और खतरे के मामले लाये जाते हैं तो अक्सर वह उस देश को पहले विविध पक्षों से शांतिपूर्ण हल ढूँढने हेतु प्रयास करने के लिए कहती है.
परिषद् मध्यस्थता का मार्ग भी चुनती है. वह स्थिति की छानबीन कर उस पर रपट भेजने के लिए महासचिव से आग्रह भी कर सकती है. लड़ाई छिड़ जाने पर परिषद् युद्ध विराम की कोशिश करती है.
वह अशांत क्षेत्र में तनाव कम करने एवं विरोधी सैनिक बलों को दूर रखने के लिए शांति सैनिकों की टुकड़ियाँ भी भेज सकती है. महासभा के विपरीत इसके फैसले बाध्यकारी होते हैं. आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अथवा सामूहिक सैन्य कार्यवाही का आदेश देकर अपने फैसले को लागू करवाने का अधिकार भी इसे प्राप्त है. उदाहरणस्वरूप इसने ऐसा कोरियाई संकट (1950) तथा ईराक कुवैत संकट (1950-51) के दौरान किया था.
कार्य
- विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना.
- हथियारों की तस्करी को रोकना.
- आक्रमणकर्ता राज्य के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करना.
- आक्रमण को रोकने या बंद करने के लिए राज्यों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना.
संरचना
सुरक्षा परिषद् (Security Council) के वर्तमान समय में 15 सदस्य देश हैं जिसमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी हैं. वर्ष 1963 में चार्टर संशोधन किया गया और अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई. अस्थायी सदस्य विश्व के विभिन्न भागों से लिए जाते हैं जिसके अनुपात निम्नलिखित हैं –
- 5 सदस्य अफ्रीका, एशिया से
- 2 सदस्य लैटिन अमेरिका से
- 2 सदस्य पश्चिमी देशों से
- 1 सदस्य पूर्वी यूरोप से
चार्टर के अनुच्छेद 27 में मतदान का प्रावधान दिया गया है. सुरक्षा परिषद् में “दोहरे वीटो का प्रावधान” है. पहले वीटो का प्रयोग सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य किसी मुद्दे को साधारण मामलों से अलग करने के लिए करते हैं. दूसरी बार वीटो का प्रयोग उस मुद्दे को रोकने के लिए किया जाता है.
परिषद् के अस्थायी सदस्य का निर्वाचन महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किया जाता है. विदित हो कि 1971 में राष्ट्रवादी चीन (ताईवान) को स्थायी सदस्यता से निकालकर जनवादी चीन को स्थायी सदस्य बना दिया गया था.
इसकी बैठक वर्ष-भर चलती रहती है. सुरक्षा परिषद् में किसी भी कार्यवाही के लिए 9 सदस्यों की आवश्यकता होती है. किसी भी एक सदस्य की अनुपस्थिति में वीटो अधिकार का प्रयोग स्थायी सदस्यों द्वारा नहीं किया जा सकता.
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
UNSC Resolution 2615 :-
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्’ का संकल्प 2615
- हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) द्वारा ‘संकल्प 2615’ (Resolution 2615) सर्वसम्मति से पारित किया गया है. इसमें, अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए तालिबान के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने संबंधी प्रावधान किए गए हैं.
- इस प्रस्ताव में, अफ़ग़ानिस्तान में बुनियादी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने हेतु, आवश्यक मानवीय सहायता और अन्य गतिविधियों को शामिल किया गया है.
- संकल्प (2615) में हर छह महीने में इन छूटों की समीक्षा करना अनिवार्य किया गया है.
- इसमें आपातकालीन राहत समन्वयक से ‘सहायता के वितरण और कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं’ के बारे में हर छह महीने में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्’ को को जानकारी देने को कहा गया है.
- इसमें मानवाधिकारों का सम्मान करने और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करने के लिए “सभी पक्षों से आह्वान” भी किया गया है.
Sansar Daily Current Affairs, 03 February 2022
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : Ethanol as an alternate fuel
संदर्भ
यद्यपि देश में ऑटो-ईंधन में इथेनॉल की हिस्सेदारी बढ़ाने में लगातार प्रगति हुई है. वाहन-ईंधन में इथेनॉल की हिस्सेदारी एक साल पहले 5% थी, जोकि ‘इथेनॉल आपूर्ति वर्ष’ (Ethanol Supply Year – ESY) 2020-21 (दिसंबर-नवंबर) में बढ़कर 8.1% हो गयी है. यदि वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त करना है, तो इसके लिए कई मुद्दों पर ध्यान की आवश्यकता होगी.
इथेनॉल सम्मिश्रण का महत्त्व
- चूंकि, पेट्रोलियम उत्पादों का अधिकांश उपयोग परिवहन क्षेत्र में किया जाता है, ऐसे में ‘20% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल’ (E20) प्रयोग किए जाने का सफल कार्यक्रम, संभावित रूप से देश के लिए प्रति वर्ष $4 बिलियन की बचत कर सकता है.
- E20 का प्रयोग किए जाने से, मूल रूप से नियमित पेट्रोल के लिए डिज़ाइन किए गए चार पहिया वाहनों की ईंधन दक्षता में 6-7% की अनुमानित कमी होती है.
पृष्ठभूमि
- सरकार द्वारा इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (Ethanol Blended Petrol- EBP) कार्यक्रम के तहत ‘राष्ट्रीय जैव ईधन नीति’ -2018 (National Policy on Biofuels-2018 : NBP-2018) के अनुरूप पेट्रोल जैसे मुख्य मोटर वाहन ईंधनों के साथ इथेनॉल के मिश्रण को बढ़ावा दिया जा रहा है.
- इस नीति में वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल के मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
इथेनॉल सम्मिश्रण की सीमा को निर्धारित करने वाले कारक:
देश भर में पर्याप्त गुणवत्ता वाले फीडस्टॉक (feedstock) की कमी और इथेनॉल की यत्र-तत्र (sporadic) उपलब्धता इथेनॉल सम्मिश्रण की सीमा को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वर्तमान में फीडस्टॉक की आपूर्ति, मुख्य रूप से चीनी उत्पादक राज्यों में ही केंद्रित है.
इस संबंध में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास:
- सरकार ने गन्ना और खाद्यान्न आधारित कच्चे माल से इथेनॉल के उत्पादन की अनुमति दे दी है.
- सरकार द्वारा गन्ना आधारित कच्चे माल से निर्मित इथेनॉल के लिए ‘मिल से बाहर’ की कीमत निर्धारित कर दी गयी है.
- विभिन्न फीडस्टॉक से उत्पादित इथेनॉल के लिए पारिश्रमिक मूल्य तय किए गए हैं.
- शीरा और अनाज आधारित नई भट्टियों / आसवनी (Distilleries) की स्थापना तथा मौजूदा भट्टियों के विस्तार के लिए ब्याज में छूट संबंधी योजनाओं को अधिसूचित किया गया है.
इथेनॉल (Ethanol)
- इथेनॉल का उत्पादन स्टार्च की उच्च मात्रा वाली फसलों, जैसे कि गन्ना, मक्का, गेहूँ आदि से किया जा सकता है.
- भारत में, इथेनॉल का उत्पादन मुख्यतः गन्ना के शीरे से किण्वन प्रक्रिया द्वारा किया जाता है.
- इथेनॉल को विभिन्न सम्मिश्रणों को बनाने के लिए गैसोलीन के साथ मिश्रित किया जा सकता है.
- चूंकि इथेनॉल के अणुओं में ऑक्सीजन पाया जाता है, जिसकी वजह से इंजन, ईंधन को पूर्णतयः दहन करने में सक्षम होता है, परिणामस्वरूप उत्सर्जन और पर्यावरण प्रदूषण कम होता है.
- इथेनॉल का उत्पादन सूर्य की उर्जा प्राप्त करने वाले पादपों से किया जाता है, इसलिए इथेनॉल को नवीकरणीय ईंधन भी माना जाता है.
लाभ
पेट्रोल में एथनॉल मिलाने के कई लाभ हैं –
- इससे आयात पर निर्भरता में कमी आएगी.
- कृषि क्षेत्र को समर्थन मिलेगा
- पर्यावरण अनुकूल ईंधन उपलब्ध होगा
- प्रदूषण का स्तर कम होगा.
- किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होगी.
एथनॉल मिश्रित पेट्रोल (ETHANOL BLENDED PETROL : BSP) कार्यक्रम
- एथनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के लिए भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के द्वारा होने वालीएथनॉल की खरीद की प्रक्रिया निर्धारित की है.
- इस योजना के तहत एथनॉल की खरीद अच्छे दामों पर की जायेगी जिससे सम्बंधित मिल गन्ना किसानों के बकायों का भुगतान करने में सक्षम हो जायेंगे.
- C heavy खांड़ (गुड़ का एक रूप) से बनने वाले एथनॉल का दाम ऊँचा होने तथा B heavy खांड़ एवं गन्ने के रस से उत्पन्न एथनॉल की खरीद की सुविधा के कारण EBP कार्यक्रम के तहत एथेनॉल की उपलब्धता बहुत बढ़ने की संभावना है.
- पेट्रोल में एथनॉल मिलाने के कई लाभ हैं.
- इससे बाहर से पेट्रोल मंगाने की आवश्यकता में कमी तो आएगी ही, साथ ही इससे किसानों को आर्थिक लाभ भी होगा.
- यह ईंधन पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल है क्योंकि इससे कम प्रदूषण होता है.
इथेनॉल के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम
- इथेनॉल उत्पादन के लिए बी श्रेणी के भारी शीरे में बदलाव किया गया है तथा गन्ने के रस, चीनी और चाशनी से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति प्रदान की गई है.
- EBP कार्यक्रम के लिए इथेनॉल पर माल और सेवा कर (जीएसटी) में 18% से 5% की कमी की गई है.
- इथेनॉल उत्पादन क्षमता में संवर्धन और वृद्धि के लिए ब्याज अनुदान योजना (Interest Subvention Scheme) संचालित की गई है.
- इथेनॉल उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल के आधार पर विभेदक इथेनॉल मूल्य प्रणाली आरंभ की गई है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : Shortage of semiconductor chips
संदर्भ
2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कि ‘सेमीकंडक्टर्स / अर्धचालकों की कमी’ (Shortage of Semiconductors) के कारण विविध उद्योगों की कई फर्मों द्वारा उत्पादन या तो बंद कर दिया गया है, या इसमें कमी आई है.
इस कमी को दूर करने हेतु सरकार द्वारा किए गए उपाय:
- सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग सेगमेंट के लिए 76,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं.
- सेमीकंडक्टर्स को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई (PLI schemes) और अन्य योजनाएं शुरू की गयी हैं जो न केवल घरेलू कंपनियों को कोविड -19 द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से उबरने में मदद करेंगी, बल्कि उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने – खासकर चिप निर्माण- में भी मदद करेंगी .
- सरकार ने हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिए एक विजन दस्तावेज जारी किया है, जिसमें 2026 तक घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन के लगभग 22 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की परिकल्पना की गयी है.
‘सेमीकंडक्टर चिप्स’ के बारे में
अर्धचालक अर्थात सेमीकंडक्टर्स (Semiconductors) – जिन्हें एकीकृत सर्किट (आईसी), या माइक्रोचिप्स के रूप में भी जाना जाता है – प्रायः सिलिकॉन या जर्मेनियम या गैलियम आर्सेनाइड जैसे यौगिक से निर्मित होते हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्त्व:
- ‘सेमीकंडक्टर चिप्स’, सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ उपकरणों के ‘दिल और दिमाग’ के रूप में कार्य करने वाले बुनियादी ‘बिल्डिंग ब्लॉक्स’ होते हैं.
- ये चिप्स अब समकालीन ऑटोमोबाइल, घरेलू गैजेट्स और ईसीजी मशीनों जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं.
इनकी मांग में हालिया वृद्धि:
- कोविड -19 महामारी की वजह से, दिन-प्रतिदिन की आर्थिक और आवश्यक गतिविधियों के बड़े हिस्से को ऑनलाइन रूप से किए जाने या इन्हें डिजिटल रूप से सक्षम बनाए जाने के दबाव ने, लोगों के जीवन में चिप-संचालित कंप्यूटर और स्मार्टफोन की ‘केंद्रीयता’ को उजागर कर दिया है.
- दुनिया भर में फ़ैली महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन की वजह से जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका सहित देशों में ‘महत्त्वपूर्ण चिप बनाने वाली सुविधाओं’ को भी बंद कर दिया गया.
- ‘सेमीकंडक्टर चिप्स’ की कमी का व्यापक अनुवर्ती असर पड़ता है. पहले ‘चिप्स’ का अधिक मात्रा में भंडारण किए जाने से इसकी मांग में वृद्धि होती है, जो बाद में आपूर्ति में कमी का कारण बन जाती है.
भारत की सेमीकंडक्टर मांग और संबंधित पहलें:
- भारत में, वर्तमान में सभी प्रकार की चिप्स का आयात किया जाता है, और वर्ष 2025 तक इस बाजार के 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
- केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा, हाल ही में, एक ‘अर्धचालक और प्रदर्शन विनिर्माण पारितंत्र’ (Semiconductors and Display Manufacturing Ecosystem) के विकास में सहयोग करने के लिए ₹76,000 करोड़ की राशि आवंटित की गयी है.
- भारत ने ‘इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स एंड सेमीकंडक्टर्स’ के निर्माण को बढ़ावा देने हेतु योजना (Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors) भी शुरू की है, जिसके तहत इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों और अर्धचालकों के निर्माण के लिए आठ साल की अवधि में 3,285 करोड़ रुपये का बजट परिव्यय मंजूर किया गया है.
आगे की चुनौतियां:
- उच्च निवेश की आवश्यकता
- सरकार की ओर से न्यूनतम वित्तीय सहायता
- संरचना क्षमताओं (Fab Capacities) की कमी
- PLI योजना के तहत अपर्याप्त अनुदान
- संसाधन अक्षम क्षेत्र
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: आपदा और आपदा प्रबंधन.
Topic : 6th mass extinction happening now?
संदर्भ
बायोलॉजिकल रिव्यू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में पृथ्वी ग्रह पर छठा व्यापक विलोपन (sixth mass extinction crisis) संकट चल रहा है.
व्यापक विलोपन किसे कहते हैं?
- व्यापक जैविक विलोपन ऐसी वैश्विक घटना को कहते हैं जिसके दौरान अल्प काल में पृथ्वी के 75 प्रतिशत से अधिक वन्य जीव विलुप्त हो जाते हैं.
- विदित हो कि पिछले 50 करोड़ वर्षों में, इस तरह के व्यापक विलोपन की पांच घटनाएं हुई हैं. इनमें से सबसे हालिया विलोपन ने डायनासौर को हमेशा के लिए खत्म कर दिया था.
विभिन्न व्यापक विलोपन
- पहला व्यापक विलोपन: लगभग 445 मिलियन वर्ष पूर्व ऑडोविशियन व्यापक विलोपन ने सभी प्रजातियों में से लगभग 85% को समाप्त कर दिया था.
- दूसरा व्यापक विलोपन: लगभग 375 मिलियन वर्ष पूर्व डैवोनियन व्यापक विलोपन ने पृथ्वी की लगभग 75% प्रजातियों का अंत कर दिया.
- तीसरा वापक विलोपन: लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व घटित हुए पर्मियन व्यापक विलोपन को ‘ग्रेट डाइंग’ (great dying) के रूप में भी जाना जाता है, जो सभी प्रजातियों के 95% से अधिक के विलोपन का कारण बना.
- चौथा व्यापक विलोपन: लगभग 200 मिलियन वर्ष पूर्व ट्राइसिक सामूहिक विलोपन में कुछ डायनासोरों सहित पृथ्वी की लगभग 80% प्रजातियाँ नष्ट हो गई.
व्यापक विलोपन किसे कहते हैं?
- व्यापक जैविक विलोपन ऐसी वैश्विक घटना को कहते हैं जिसके दौरान अल्प काल में पृथ्वी के 75 प्रतिशत से अधिक वन्य जीव विलुप्त हो जाते हैं.
- विदित हो कि पिछले 50 करोड़ वर्षों में, इस तरह के व्यापक विलोपन की पांच घटनाएं हुई हैं. इनमें से सबसे हालिया विलोपन ने डायनासौर को हमेशा के लिए खत्म कर दिया था.
शोधकर्ताओं का मंतव्य
- शोधकर्ताओं ने इसे “सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्या” के रूप में वर्णित किया है क्योंकि इसमें प्रजातियों स्थाई विनाश होगा.
- अध्ययन ने स्थलीय कशेरुकाओं की 29,400 प्रजातियों का विश्लेषण किया और निर्धारित किया कि इनमें से कौन विलुप्त होने के कगार पर है क्योंकि उनके पास 1,000 से कम संख्या शेष है. अध्ययन की गई प्रजातियों में से, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उनमें से 515 से अधिक विलुप्त होने के पास हैं, और प्रजातियों का वर्तमान नुकसान, जो कि उनके घटक जनसंख्या के लापता होने पर आधारित है, 1800 के दशक से होता रहा है.
- इन 515 प्रजातियों में से अधिकांश दक्षिण अमेरिका (30 प्रतिशत), इसके बाद ओशिनिया (21 प्रतिशत), एशिया (21 प्रतिशत) और अफ्रीका (16 प्रतिशत) हैं.
- इसके अलावा, मनुष्यों के लिए इस बड़े विलुप्त होने को जिम्मेदार ठहराते हुए, उन्होंने कहा कि कई जीवित जीवों के लिए मानवता एक “अभूतपूर्व खतरा” है, क्योंकि उनकी बढ़ती संख्या है. प्रजातियों का नुकसान तब हुआ है जब मानव पूर्वजों ने 11,000 साल पहले कृषि का विकास किया था. तब से, मानव जनसंख्या लगभग 1 मिलियन से 7.7 बिलियन तक बढ़ गई है.
- अध्ययन से ज्ञात होता है कि पिछली सदी में 400 से अधिक कशेरुक प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं, विलुप्त होने के विकास के सामान्य पाठ्यक्रम में 10,000 से अधिक वर्षों का समय लगा होगा. बड़े स्तनधारियों की 177 प्रजातियों के नमूने में, अधिकांश ने पिछले 100 वर्षों में अपनी भौगोलिक सीमा का 80 प्रतिशत से अधिक खो दिया, और 2017 में एक ही पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 27,000 कशेरुक प्रजातियों में से 32 प्रतिशत जनसंख्या में गिरावट आई है.
- विदित हो कि अध्ययन वन्यजीवों के व्यापार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का आह्वान करता है क्योंकि वर्तमान में लुप्तप्राय या विलुप्त होने की कगार पर आ रही कई प्रजातियों को कानूनी और अवैध वन्यजीव व्यापार द्वारा नष्ट किया जा रहा है.
- शोधकर्ताओं का कहना है कि मौजूदा COVID-19 महामारी, जबकि पूरी तरह से समझा नहीं गया है, भी वन्यजीव व्यापार से जुड़ा हुआ है. “इसमें कोई संदेह नहीं है, उदाहरण के लिए, कि अगर हम आवास और वन्यजीवों को मानव उपभोग के लिए खाद्य और पारंपरिक दवाओं के रूप में नष्ट करना.
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Tardigrades :-
- जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पोलर रिसर्च के वैज्ञानिकों ने एक जमे हुए जीव “टार्डिग्रेड’ को पुनर्जीवित किया है, जिसे उन्होंने अंटार्कटिका में खोजा था.
- टार्डिग्रेड्स, जिन्हें आमतौर पर “वाटर बियर” या “मॉस पिगलेट” के रूप में जाना जाता है, सामान्यतया पूर्ण विकसित होने पर लगभग 0.5 मिमी (0.02 इंच) तक लंबे होते हैं.
- टार्डिग्रेड्स बहुत कठोर जीव हैं और पृथ्वी पर पर्वत-शिखर से लेकर गहरे समुद्र तक पाए जाते हैं.
- वे पांच सामूहिक विलोपन (five mass extinctions) की घटनाओं के उपरांत भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं.
- इन छोटे जीवों की उच्च दबाव वाले वातावरण में जीवित रहने की क्षमता उन्हें अत्यधिक उपयोगी शोधपरक जीव बनाती है.
मेरी राय – मेंस के लिए
दरअसल, पिछले 100 वर्षों में, रीढ़धारी प्राणियों की 200 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं. प्रजातियों के विलुप्त् होने की यह दर 2% (प्रति वर्ष 2 प्रजातियां) है. पहला व्यापक विलोपन, जो मनुष्य के अस्तित्व में आने से बहुत पहले हुआ था, वह भी उल्काओं की बौछार या ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण नहीं बल्कि जीवों के द्वारा ही हुआ था. पिछले बीस लाख वर्षों में विलोपन की दर को देखें तो 200 प्रजातियों को विलुप्त होने में सौ नहीं बल्कि दस हजार साल लगना चाहिए थे. दूसरे शब्दों में, विलुप्त होने की दर पहले के युगों की तुलना में पिछले मात्र 100 वर्षों में लगभग 100 गुना बढ़ गई है.
पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं, श्रृंखला प्रभाव की तरह मनुष्यों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. उदाहरण के लिए कीट-पतंगों को ही लीजिए. पर्यावरण कीटों की अनुपस्थिति के अनुकूल हो पाए यदि उससे पहले ही कीटों की हजारों प्रजातियां विलुप्त् हो जाएं, तो पेड़ों की हजारों प्रजातियां भी गायब हो जाएंगी, क्योंकि पेड़ों की कई प्रजातियां परागण के लिए कीटों पर निर्भर होती हैं. अगर पेड़ गायब हो जाते हैं, तो मानव जाति के लिए यह मौत की दस्तक होगी. हमारी धरती की हवा गंदी और जहरीली तो होगी ही, पृथ्वी का तापमान कई डिग्री बढ़ जाएगा. भू-क्षरण की दर बढ़ेगी जिससे कृषि योग्य भूमि का नुकसान होगा. वर्षा गंभीर रूप से प्रभावित होगी, जिसके फलस्वरूप मीठे पानी के स्रोतों की गुणवत्ता पर भी असर होगा. निश्चित रूप से, मानव पर नकारात्मक वार होगा.
Sansar Daily Current Affairs, 04 February 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान.
Topic : Contempt of Court
संदर्भ
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण ने गुरुग्राम में जुमे की नमाज अदा करने वाले नमाजियों के प्रति ‘सांप्रदायिक घृणा और आतंक का माहौल’ बनाने वाले ‘गुंडों’ पर लगाम नहीं लगाने पर, हरियाणा सरकार के अधिकारियों के खिलाफ ‘अवमानना कार्रवाई’ शुरू करने की मांग करने वाली याचिका को सुनवाई के लिए तुरंत सूचीबद्ध करने पर सहमति प्रदान की है.
संबंधित प्रकरण:
शीर्ष अदालत में दायर याचिका में हरियाणा के अधिकारियों की निष्क्रियता को, वर्ष 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करने वाला बताते हुए निंदा की गयी है. अदालत ने अपने इस फैसले में कहा था, कि अधिकारियों को सांप्रदायिक हिंसा के मामले में मूक दर्शक नहीं रहना चाहिए और इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहिए तथा नफरत फैलाने वाले अपराधों के खिलाफ कानून का उपयोग करना चाहिए.
‘अवमानना’ क्या होती है?
यद्यपि ‘अवमानना कानून’ (Contempt Law) का मूल विचार उन लोगों को दंडित करना है जो अदालतों के आदेशों का सम्मान नहीं करते हैं. किंतु भारतीय संदर्भ में, अवमानना का उपयोग अदालत की गरिमा को कम करने तथा न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप करने वाली भाषा अथवा व्यक्तव्यों को दंडित करने के लिए भी किया जाता है.
अदालत की अवमानना दो प्रकार की हो सकती है: सिविल अवमानना तथा आपराधिक अवमानना.
- सिविल अवमानना: सिविल अवमानना को किसी भी फैसले, आदेश, दिशा, निर्देश, रिट या अदालत की अन्य प्रक्रिया अथवा अदालत में दिए गए वचन के जानबूझ कर किये गए उल्लंघन के रूप में परिभाषित किया गया है.
- आपराधिक अवमानना: आपराधिक अवमानना के तहत, किसी भी ऐसे विषय (मौखिक या लिखित शब्दों से, संकेतों, दृश्य प्रतिबिंबो, अथवा किसी अन्य प्रकार से) के प्रकाशन द्वारा अदालत की निंदा करने अथवा न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने अथवा बाधा डालने के प्रयास को सम्मिलित किया जाता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व.
Topic : Election Commission
संदर्भ
25 जनवरी भारत निर्वाचन आयोग (ECI) का स्थापना दिवस मानाया गया जो 1950 को अस्तित्व में आया था. इस दिन को पहली बार 2011 में ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवसन’ के रुप में मनाया गया था ताकि अधिक से अधिक मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
राष्ट्रीय मतदाता दिवस 2022 की थीम “चुनावों को समावेशी, सुगम और सहभागी बनाना” रखी गई है.
निर्वाचन आयोग के बारे में
- अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग का एक संवैधानिक निकाय के रूप में गठन सर्वप्रथम 25 जनवरी 1950 को किया गया.
- उसका कार्य संसद, राज्य विधान मंडलों, राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पदों के लिए होने वाले निर्वाचन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करना है.
- वर्ष 1989 में निर्वाचन आयोग और निर्वाचन प्रक्रिया में कुछ बड़े बदलाव हुए- निर्वाचन आयोग को बहुसदस्यीय बनाया गया एवं मतदान की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई. (61वें संविधान संशोधन)
संविधान में निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारियां और शक्तियां
निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक प्राधिकरण है, संविधान के अनुच्छेद 324 में निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारियां और शक्तियां निर्धारित की गयी हैं.
- निर्वाचन आयोग, कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रहता है.
- निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव आयोजित करने – चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव- हेतु चुनाव कार्यक्रम निर्धारित किए जाते हैं.
- निर्वाचन आयोग ही, मतदान केंद्रों के स्थान, मतदाताओं के लिए मतदान केंद्रों का नियतन, मतगणना केंद्रों के स्थान, मतदान केंद्रों और मतगणना केंद्रों और इनके आसपास की जाने वाली व्यवस्थाओं और सभी संबद्ध मामलों पर निर्णय लेता है.
- निर्वाचन आयोग के निर्णयों को उपयुक्त याचिकाओं के माध्यम से उच्च न्यायालयों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है.
- लंबे समय से चली आ रही परंपरा और कई न्यायिक निर्णयों के अनुसार, एक बार चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद, न्यायपालिका चुनावों के वास्तविक संचालन में हस्तक्षेप नहींं करती है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी बजट.
Topic : Key Points of Union Budget 2022-23
संदर्भ
केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फरवरी को ‘सूक्ष्म आर्थिक स्तर पर सभी समेकित कल्याण’ पर जोर देते हुए 39.45 लाख करोड़ रुपये का केंद्रीय बजट पेश किया गया.
2022-23 के बजट की मुख्य बातें
कुल व्यय एवं मुख्य फोकस:
- रोजगार सृजन को अधिक करना तथा आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना.
- बजट में, कुल सरकारी व्यय, चालू वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक किए जाने तथा राज्यों को 1 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता दिए जाने की घोषणा की गई है.
- 2022-23 में कुल व्यय 45 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जबकि कुल प्राप्तियां, ऋण के अतिरिक्त, 22.84 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है.
- पूंजीगत व्यय के लिए परिव्यय को एक बार फिर से 4 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है. चालू वर्ष में पूंजीगत व्यय के लिए 5.54 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किए गए थे.
अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में संक्षित अवलोकन:
- भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2 प्रतिशत अनुमानित है, जो सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है.
- डॉलर के संदर्भ में, भारत का ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) पहले ही $3 ट्रिलियन को पार कर चुका है.
- ‘राजकोषीय घाटा’ चालू वित्त वर्ष में 9 प्रतिशत रहने का अनुमान है. इससे पहले अनुमानित ‘राजकोषीय घाटा’ 6.8 प्रतिशत था. 2022-23 के लिए सरकार का राजकोषीय घाटा 16,61,196 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
- मुद्रास्फीति का बढ़ता स्तर, अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बना हुआ है.
- 21 जनवरी को ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ 287 बिलियन डॉलर था, जो 2021-22 के लिए अनुमानित 13 महीने के आयात के बराबर सुरक्षा प्रदान करता है.
बजट में अवसंरचना विकास हेतु प्रावधान:
‘प्रधान मंत्री गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान’ (PM GatiShakti National Master Plan) में आर्थिक परिवर्तन, निर्बाध बहुपक्षीय कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक दक्षता के लिए ‘सात कारकों’ (Seven Engines) को शामिल किया जाएगा.
- ‘सात कारकों’ में सड़क, रेल मार्ग, हवाई मार्ग, विमानपत्तन, माल परिवहन, जल मार्ग और लॉजिस्टिक अवसंरचना शामिल हैं. सभी सात इंजन / कारक एक साथ अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे.
- अगले 3 साल के दौरान 400 उत्कृष्ट वंदे भारत रेलगाड़ियों का निर्माण किया जाएगा और रेलवे द्वारा छोटे किसानों और ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (MSMEs) के लिए नए उत्पाद भी विकसित किए जाएंगे.
- पार्सलों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए डाक और रेलवे नेटवर्क के एकीकरण की घोषणा की गई है.
- राजमार्गों के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया है, इसके तहत 2022-23 में 25,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों को पूरा करने का लक्ष्य है.
कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण:
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के लिए बजट आवंटन: 2022-23 वित्तीय वर्ष के लिए 1,32,513 करोड़ रुपये.
- फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ‘किसान ड्रोन’ (Kisan Drones) को बढ़ावा दिया जाएगा.
- नाबार्ड (NABARD) के माध्यम से कृषि और ग्रामीण उद्यम से जुड़े स्टार्टप्स को वित्तीय मदद के लिए मिश्रित पूंजी कोष की सुविधा प्रदान की जाएगी.
शिक्षा:
- विश्व स्तरीय गुणवत्ता युक्त सार्वभौमिक शिक्षा तक देश भर के छात्रों को पहुंच प्रदान करने के लिए एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी.
- ‘पीएम ई-विद्या’ के ‘एक कक्षा एक टीवी चैनल’ (One class one TV channel) कार्यक्रम को 200 टीवी चैनलों पर दिखाया जाएगा.
- महत्त्वपूर्ण चिंतन कौशल और प्रभावी शिक्षण वातावरण को बढ़ावा देने के लिए वर्चुअल प्रयोगशाला और कौशल ई-प्रयोगशाला की स्थापना की जाएगी.
- कौशल और आजीविका के लिए डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र – देश-स्टैक ई-पोर्टल (DESH-Stack e-portal) लॉन्च किया जाएगा.
स्वास्थ्य देखरेख:
- केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 86,200.65 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
- गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखरेख सेवाओं के लिए राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया जाएगा.
- राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम के लिए खुला मंच शुरू किया जाएगा.
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए, बजट आवंटन 2021-22 में 36,576 करोड़ रुपये से बढाकर 2022-23 में 37,000 करोड़ रुपये किया गया है.
कर प्रस्ताव:
- आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने में हुई चूक को सुधारने के लिए करदाताओं को वन-टाइम विंडो की अनुमति दी गई है. वे आकलन वर्ष से 2 साल के भीतर अद्यतन रिटर्न दाखिल कर सकते हैं.
- वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों के लिए विशेष कर प्रणाली लागू की गई. किसी भी वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्ति के हस्तांतरण से होने वाली आय पर 30 प्रतिशत कर का प्रस्ताव किया गया है.
- लेन-देन के विवरण के लिए वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्ति के हस्तांतरण के संबंध में किए गए भुगतान पर एक निश्चित मौद्रिक सीमा से ऊपर की रकम के लिए 1 प्रतिशत की दर से टीडीएस (Tax Deducted at Source – TDS) देय होगा.
- वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्ति के उपहार पर भी प्राप्तकर्ता के यहाँ कर देय होगा.
- सरकार द्वारा जल्द ही ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित डिजिटल रुपया की शुरूआत की जाएगी.
‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (MSMEs) के लिए प्रोत्साहन:
- MSMEs के लिए 5 वर्षों की अवधि का ‘रेजिंग एंड एसिलेरेटिंग एमएसएमई परफोर्मेंस’ (आरएएमपी) प्रोग्राम (Raising and Accelerating MSME Performance (RAMP) programme), 6,000 करोड़ रुपए के परिव्यय से शुरू किया जाएगा.
- 130 लाख MSMEs को आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) के तहत अतिरिक्त कर्ज दिया जा चुका है, इस योजना को मार्च 2023 तक बढ़ाया जाएगा.
- ECLGS के तहत गारंटी कवर को 50000 करोड़ रुपए बढ़ाकर कुल 5 लाख करोड़ कर दिया जाएगा.
Sansar Daily Current Affairs, 05 February 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका.
Topic : Proposal to amend the Indian Administrative Service (Cadre) Rules, 1954
संदर्भ
हाल ही में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने राज्यों को एक बार फिर से लिखा है कि केंद्र सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम-1954 के नियम 6 (कैडर अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति) में संशोधन करने के प्रस्ताव पर अपनी राय दें.
पृष्ठभूमि
अब तक 7 राज्य सरकारों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है जबकि 8 राज्यों की सरकारों ने इसका विरोध किया है. उल्लेखनीय है कि इसके संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार, केंद्रीय मंत्रालयों में अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) अधिकारियों की कमी के चलते आईएएस, आईपीएस एवं वन सेवा के अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरित करने हेतु राज्य सरकारों की मंज़्री लेने की आवश्यकता को समाप्त करना चाह रही है.
DoPT के अनुसार, राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिये पर्याप्त संख्या में अधिकारियों को प्रायोजित नहीं कर रहे हैं और अधिकारियों की संख्या केंद्र में आवश्यकता को पूरा करने के लिये पर्यप्त नहीं है.
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति की वर्तमान व्यवस्था
तीन अखिल भारतीय सेवाओं- भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) एवं भारतीय वन सेवा (IFoS) के अधिकारियों की भर्ती केंद्र सरकार द्वारा (UPSC के माध्यम से) की जाती है और उनकी सेवाओं को विभिन्न राज्य संवर्गों (कैडर) के तहत आवंटित किया जाता है. DoPT भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों का कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी है.
राज्य सरकार को प्रतिनियुक्ति हेतु उपलब्ध अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिज़र्व (Central Deputation Quota) के तहत निर्धारित करना होता है. केंद्र सरकार हर वर्ष केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के इच्छुक अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की “प्रस्ताव सूची” मांगता है, जिसके बाद वह उस सूची से अधिकारियों का चयन करता है. अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति हेतु राज्य सरकार से मंज़ूरी लेनी होती है. राज्यों को केंद्र सरकार के कार्यालयों में अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति करनी होती है और किसी भी समय यह कुल संवर्ग की संख्या के 40% से अधिक नहीं हो सकती है.
प्रस्तावित संशोधन
यदि राज्य सरकार किसी अधिकारी को केंद्र में प्रतिनियुक्ति करने में देरी करती है और निर्दिष्ट समय के भीतर केंद्र सरकार के निर्णय को लागू नहीं करती है तो अधिकारी को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट तिथि से कैडर से मुक्त कर दिया जाएगा. इसके अलावा केंद्र, राज्य के परामर्श से केंद्र सरकार को प्रतिनियुक्त किये जाने वाले अधिकारियों की वास्तविक संख्या तय करेगा तथा केंद्र और राज्य के बीच किसी भी असहमति के मामले में केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाएगा और राज्य, केंद्र के फैसले को लागू करेगा.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic : Har Ghar, Nal Se Jal
संदर्भ
‘हर घर, नल से जल’ (Har Ghar, Nal Se Jal) योजना के तहत वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में 3.8 करोड़ परिवारों को शामिल करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है.
‘हर घर, नल से जल’ योजना के बारे में
- योजना का आरंभ: वर्ष 2019 में.
- नोडल एजेंसी: जल शक्ति मंत्रालय
- उद्देश्य: 2024 तक हर ग्रामीण घर में पाइप से पीने का पानी उपलब्ध कराना.
यह सरकार के प्रमुख कार्यक्रम ‘जल जीवन मिशन’ का एक घटक है.
कार्यान्वयन
यह योजना एक अनूठे मॉडल पर आधारित है. इसमें ग्रामीणों को शामिल करते हुए ‘पानी समितियां’ (water committee) गठित की जाती है, और ये समितियां ही यह तय करती हैं, कि अपने द्वारा उपभोग किए जाने वाले पानी के लिए ग्रामीण क्या भुगतान करेंगे.
पानी समितियों द्वारा निर्धारित शुल्क, गांव के सभी निवासियों के लिए एक समान नहीं होगा. जिन ग्रामीणों के पास बड़े घर हैं, वे अधिक भुगतान करेंगे, जबकि गरीब परिवारों या जिन घरों में कोई कमाने वाला सदस्य नहीं है, उन्हें इस शुल्क से छूट दी जाएगी.
आवश्यकता
- 2018 में जारी की गयी नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 600 मिलियन भारतीयों को पानी की कमी से अत्यधिक जूझना पड़ता है, और सुरक्षित जल तक अपर्याप्त पहुंच के कारण हर साल लगभग दो लाख व्यक्तियों की मौत हो जाती है.
- वर्ष 2030 तक, देश में पानी की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाने का अनुमान है, जिसका अर्थ है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ेगा और देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 6% की हानि होगी.
- अध्ययनों से यह भी पता चलता है, कि 84% ग्रामीण घरों में पाइप से आने वाले पानी की सुविधा नहीं है और देश का 70% से अधिक पानी दूषित है.
‘जल जीवन मिशन’ के बारे में
- ‘जल जीवन मिशन’ (Jal Jeevan Mission) के तहत वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में, कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (Functional House Tap Connections- FHTC) के माध्यम से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है.
- यह अभियान, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है.
- इसे 2019 में लॉन्च किया गया था.
कार्यान्वयन
‘जल जीवन मिशन’, जल के प्रति सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है और इसके तहत मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक जानकारी, शिक्षा और संवाद को शामिल किया गया है.
- इस मिशन का उद्देश्य, जल के लिए एक जन-आंदोलन तैयार करना है, जिसके द्वारा यह हर किसी की प्राथमिकता में शामिल हो जाए.
- इस मिशन के लिए, केंद्र और राज्यों द्वारा, हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10; अन्य राज्यों के लिए 50:50 के अनुपात में; और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए केंद्र सरकार द्वारा 100% वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic : Five river linking projects
संदर्भ
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में भारत में ‘पांच नदी-जोड़ो परियोजनाओं’ (five river linking projects) का प्रस्ताव रखा है.
परियोजना हेतु चिह्नित की गयी नदियाँ
गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पेन्नार और पेन्नार-कावेरी, दमनगंगा-पिंजल और पार-तापी-नर्मदा (Par-Tapi-Narmada).
इन नदियों का संक्षिप्त विवरण
- कृष्णा नदी, भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है. यह महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से निकलती है तथा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है.
- कावेरी नदी का उद्गम ‘कोडागु’ से होता है और यह कर्नाटक और तमिलनाडु से होकर बहती है.
- पेन्नार नदी, ‘चिक्काबल्लापुरा’ से निकलती है और कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है.
- गोदावरी नदी, भारत की तीसरी सबसे बड़ी नदी है. यह नासिक से निकलती है और महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा से होकर बहती है.
दमनगंगा-पिंजाल नदी-जोड़ परियोजना (Damanganga-Pinjal river linking) का उद्देश्य, मुंबई शहर के लिए घरेलू पानी उपलब्ध कराने हेतु ‘दमनगंगा बेसिन’ से अधिशेष जल को शहर की ओर मोड़ना है.
‘पार-तापी-नर्मदा परियोजना’ (Par-Tapi-Narmada project) के अंतर्गत, उत्तर महाराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के पश्चिमी घाट क्षेत्र स्थित सात जलाशयों से अतिरिक्त पानी को, कच्छ और सौराष्ट्र के संदिग्ध क्षेत्रों में भेजे जाने का प्रस्ताव है.
इंटरलिंकिंग के लाभ
- जल और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि
- जल का समुचित उपयोग
- कृषि को बढ़ावा
- आपदा न्यूनीकरण
- परिवहन को बढ़ावा देना
संबंधित विवाद एवं चिंताएं
- नदियों को आपस में जोड़ना (Interlinking) काफी महंगा प्रस्ताव है. इससे भूमि, जंगलों, जैव विविधता, नदियों और लाखों लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
- नदियों को आपस में जोड़ने से, वनों, आर्द्रभूमियों और स्थानीय जल निकायों का विनाश होगा. आर्द्रभूमियां, भूजल पुनर्भरण हेतु प्रमुख तंत्र होती हैं.
- इस तरह की परियोजनाएं लोगों के बड़े पैमाने पर विस्थापन का कारण बनती है. जिससे विस्थापितों के पुनर्वास के मुद्दे से निपटने के लिए सरकार पर भारी बोझ पड़ता है.
- नदियों को आपस में जोड़ने से, समुद्र में गिरने वाले ताजे पानी की मात्रा में कमी आएगी और इससे समुद्री जीवन को गंभीर खतरा होगा.
Sansar Daily Current Affairs, 07 February 2022
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव.
Topic : International arbitration centre
संदर्भ
‘विवाद समाधान’ में तेजी लाने के लिए, बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ‘गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी’ (Gujarat International Finance Tec-City: GIFT City), गुजरात में एक ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र’ (International arbitration centre) स्थापित किए जाने की घोषणा की गयी है.
यह केंद्र, ‘सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र’ या ‘लंदन वाणिज्यिक मध्यस्थता केंद्र’ की तर्ज पर स्थापित किया जाएगा.
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (International Financial Services Centres – IFSC) घरेलू अर्थव्यवस्था के अधिकार क्षेत्र से बाहर के ग्राहकों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं.
- IFSC, सीमा-पारीय वित्त प्रवाह, वित्तीय उत्पादों और सेवाओं से संबंधित होते हैं.
- वर्तमान में, गिफ्ट-आईएफएससी (GIFT-IFSC) भारत में पहला ‘अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र’ है.
विनियमन
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority – IFSCA) का मुख्यालय GIFT -सिटी, गांधीनगर, गुजरात में स्थित है.
IFSCA की स्थापना ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण अधिनियम’, 2019 के तहत की गई थी.
- यह संस्था भारत में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों के नियमन तथा विकास के लिये एक एकीकृत प्राधिकार के रूप में काम करती है.
- इस समय GIFT – IFSCA भारत में पहला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र है.
IFSC द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं
- व्यक्तियों, निगमों और सरकारों के लिए फंड जुटाने हेतु सेवाएं.
- पेंशन फंड्स, इंश्योरेंस कंपनियों और म्यूचुअल फंड्स द्वारा परिसंपत्ति प्रबंधन (Asset management) और ग्लोबल पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेशन (Global Portfolio Diversification).
- धन प्रबंधन (Wealth management).
- वैश्विक कर प्रबंधन और सीमा-पार कर देयता अनुकूलन (Cross-Border Tax Liability Optimization), जो वित्तीय बिचौलियों, लेखाकारों और कानूनी फर्मों के लिए एक व्यावसायिक अवसर प्रदान करते है.
- वैश्विक और क्षेत्रीय कॉरपोरेट ट्रेजरी प्रबंधन संचालन, जिसमें, फंड जुटाना, तरलता निवेश और प्रबंधन और परिसंपत्ति-देयता मिलान करना सम्मिलित होता है.
- बीमा और पुनर्बीमा जैसे जोखिम प्रबंधन कार्य.
- अंतर-राष्ट्रीय निगमों के मध्य विलय और अधिग्रहण संबंधी गतिविधियाँ.
क्या IFSC को ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ (SEZ) में स्थापित किया जा सकता है?
SEZ एक्ट, 2005 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन के पश्चात बाद किसी ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ (Special Economic Zone- SEZ) में अथवा SEZ के रूप में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) स्थापित करने की अनुमति दी गयी है.
सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) के बारे में:
यह सिंगापुर में स्थित एक गैर-लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संगठन है. यह मध्यस्थता संबंधी अपने नियमों और ‘संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग’ (UNCITRAL) मध्यस्थता नियमों के तहत मध्यस्थता प्रबंधन करता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : Rupee to go digital: What Budget’s CBDC move signals
संदर्भ
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने बजटीय भाषण में 2022-23 के बाद से ‘डिजिटल रुपया’ – एक केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) – लॉन्च करने की घोषणा की गयी है.
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आगामी वित्तीय वर्ष से ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ (Central Bank Digital Currency – CBDC) का आरंभ किया जाएगा.
‘राष्ट्रीय डिजिटल मुद्रा’ या ‘सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी’ (CBDC) के बारे में
सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC), या राष्ट्रीय डिजिटल करेंसी, किसी देश की साख मुद्रा का डिजिटल रूप होती है. इसके लिए, कागजी मुद्रा या सिक्कों की ढलाई करने के बजाय, केंद्रीय बैंक इलेक्ट्रॉनिक टोकन जारी करता है. इस सांकेतिक टोकन को, सरकार का पूर्ण विश्वास और साख का समर्थन हासिल होता है.
भारतीय संदर्भ में CBDC के प्रमुख उपयोग:
- किसी देश में सामाजिक लाभ और अन्य लक्षित भुगतानों के लिए उपयोग हेतु ‘उद्देश्य के लिए उपयुक्त‘ धन (‘Fit-for-Purpose’ Money). ऐसे मामलों में, केंद्रीय बैंक द्वारा आशयित लाभार्थीयों के लिए पूर्व-क्रमादेशित (Pre-Programmed) सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) का भुगतान किया जा सकता है, जो केवल एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए मान्य होगी.
- विदेशों से देश में शीघ्रता से रकम भेजने के लिए (Remittance Payments), CBDC का उपयोग किया जा सकता है. भारत सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से ‘सीबीडीसी’ के हस्तांतरण और परिवर्तन हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचा और तंत्र का निर्माण किया जा सकता है.
- ‘सीबीडीसी’ के माध्यम से किए जाने वाले भुगतान के लेनदेन हेतु ‘भुगतान उपकरण’ उपलब्ध कराए जा सकते हैं. इसके अलावा, सीबीडीसी तक सार्वभौमिक रूप से पहुँच बनाने के लिए, इसकी कार्य-प्रणाली में ‘ऑफ़लाइन भुगतान’ को भी शामिल किया जा सकता है.
- सीबीडीसी की मदद से भारत में ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ (MSMEs) को तत्काल ऋण देना भी संभव हो सकता है.
CBDC की आवश्यकता:
- एक आधिकारिक डिजिटल मुद्रा, बिना किसी इंटर-बैंक सेटलमेंट के ‘रियल-टाइम भुगतान’ को सक्षम करते हुए मुद्रा प्रबंधन की लागत को कम करेगी.
- भारत का काफी उच्च मुद्रा-जीडीपी अनुपात, सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) का एक और लाभ है- इसके माध्यम से, काफी हद तक नकदी के उपयोग को CBDC द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है तथा कागज़ी मुद्रा की छपाई, परिवहन और भंडारण की लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
- चूंकि, इस व्यवस्था के तहत, व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को मुद्रा-अंतरण केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी होगी, अतः ‘अंतर-बैंक निपटान’ / ‘इंटर-बैंक सेटलमेंट’ की जरूरत समाप्त हो जाएगी.
राष्ट्रीय डिजिटल मुद्रा शुरू करने में चुनौतियाँ:
- संभावित साइबर सुरक्षा खतरा
- लोगों में डिजिटल साक्षरता का अभाव
- डिजिटल मुद्रा की शुरूआत से, विनियमन, निवेश और खरीद पर नज़र रखने, व्यक्तियों पर कर लगाने आदि से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं.
- निजता के लिए खतरा: डिजिटल मुद्रा के लिए किसी व्यक्ति की कुछ बुनियादी जानकारी एकत्र करनी आवश्यक होती है, ताकि व्यक्ति यह साबित कर सके कि वह उस डिजिटल मुद्रा का धारक है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : Food Fortification
संदर्भ
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के “फूड फोर्टिफिकेशन रिसोर्स सेंटर” (FFRC) के अनुसार, भारत की 70% से अधिक जनसंख्या प्रतिदिन के लिए आवश्यक सृक्ष्म पोषक तत्वों की निर्धारित मात्रा का आधे से भी कम मात्रा का उपभोग करती है. अत: लोगों में पोषण की कमी को दूर करने के लिए फ़ूड फोर्टिफिकेशन काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्वारा वर्ष 2024 तक सभी सरकारी योजनाओं के तहत “संवर्धित चावल” (fortified rice) वितरित किए जाने की घोषणा की है. यह घोषणा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि, सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत कवर की गई योजनाओं के तहत 300 लाख टन से अधिक चावल वितरित करती है.
फूड फोर्टिफिकेशन
फूड फोर्टिफिकेशन से तात्पर्य खाद्य पदार्थों में एक या अधिक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की जानबूझकर की जाने वाली वृद्धि से है जिससे इन पोषक तत्त्वों की न्यूनता में सुधार या निवारण किया जा सके तथा स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सके.
पर इसके माध्यम से केवल एक सूक्ष्म पोषक तत्त्व के संकेन्द्रण में वृद्धि हो सकती है (उदारहण के लिए नमक का आयोडीकरण) अथवा खाद्य-सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के संयोजन की एक पूरी शृंखला हो सकती है. यह कुपोषण की समस्या का समाधान करने के लिए संतुलित और विविधतापूर्ण आहार का प्रतिस्थापन नहीं है.
FOOD FORTIFICATION के लाभ
स्वास्थ्य सम्बंधित लाभ
- सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने वाले एनीमिया, गोइटर, जीरोफ्थैल्मिया आदि जैसे भारत में प्रचलित रोगों का उन्मूलन. उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग 50% महिलाएँ और बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं.
- विटामिन D की कमी (भारत की जनसंख्या के 70% से अधिक में व्याप्त) से निपटने के लिए फूड फोर्टिफिकेशन को एक प्रभावी उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
- यह संक्रामक रोगों से मृत्यु के खतरे को कम करता है.
व्यापक जनसंख्या कवरेज
चूँकि पोषक तत्त्वों को मुख्य रूप से उपभोग किये जाने वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों में जोड़ा जाता है, अतः इसके माध्यम से जनसंख्या के एक बड़े भाग के स्वास्थ्य में सुधार संभव है.
सामाजिक-संस्कृतिक रूप से स्वीकार्य
इसके लिए लक्षित जनसंख्या की खाद्य आदतों और पैटर्न में किसी भी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है.
लागत प्रभावी
- कोपेनहेगन कन्सेन्सस का अनुमान है कि फोर्टिफिकेशन पर खर्च किये गये प्रत्येक 1 रूपये से अर्थव्यवस्था को 9 रु. का लाभ होता है.
- फूड फोर्टिफिकेशन (food fortification) के लिए प्रौद्योगिकी सरल और कार्यान्वित करने में आसान है.
खाद्य सुरक्षा के अनुपूरक के रूप में
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के कार्यान्वयन का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए पोषण सुरक्षा अत्यधिक आवश्यक है.
चुनौतियाँ
स्वैच्छिक प्रकृति
राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र द्वारा खाद्य पदार्थों को फोर्टिफाइड बनाने के सीमित प्रयासों के कारण फोर्टिफिकेशन अनिवार्य होने के स्थान पर निरंतर स्वैच्छिक बना हुआ है.
राज्यों द्वारा अकुशल कार्यान्वयन : हालाँकि कुछ राज्यों ने ICDS, MDMS और PDS में फोर्टिफिकेशन को अपनाया है, परन्तु कुछ निश्चित नीतिगत दिशानिर्देशों, बजटीय बाध्यताओं, तकनीकी ज्ञान और लॉजिस्टिक समर्थन के अभाव के कारण राज्यों ने समग्र रूप से फोर्टिफिकेशन को नहीं अपनाया है.
FSSAI की अकुशलता : इसके पास अधिदेश को प्रभावी ढंग से लागो करने के लिए संसाधनों और जनशक्ति का अभाव है.
मेरी राय – मेंस के लिए
राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन
सरकारी योजनाओं के माध्यम से फोर्टिफिकेशन के अखिल-भारतीय कार्यान्वयन से प्रतिवर्ष आवंटित कुल बजट में केवल 1% की वृद्धि होगी.
राज्यों के लिए समर्थन
भारत सरकार द्वारा केवल आदेश और अधिसूचनाएँ जारी करना पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि राज्य सरकारों को अत्यधिक समर्थन की आवश्यकता होती है और उन्हें फोर्टिफिकेशन के लाभ के बारे में संवेदनशील होना चाहिए और विभिन्न कार्यक्रमों के तहत फोर्टिफाइड स्टेपल्स की खरीद के लिए सक्षम होना चाहिए.
मानकों को सुनिश्चित करना
वृहद् पोषक पदार्थों एवं गुणवत्ता के सम्बन्ध में FSSAI मानकों के अनुपालन को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
जागरूकता
खुले बाजार में उपभोक्ताओं द्वारा माँग में वृद्धि के लिए फोर्टिफिकेशन के सम्बन्ध में जन जागरूकता अभियान की आवश्यकता है.
खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को प्रोत्साहन
यह प्रमुख भोजन (staple food) के पोषण सम्बन्धी मूल्य में सुधार करने के लिए एक दीर्घकालिक कदम है.
Sansar Daily Current Affairs, 08 February 2022
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय.
Topic : Motion of thanks to President’s Address
संदर्भ
बजट सत्र की शुरुआत में, भारत के राष्ट्रपति, संसद की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हैं. राष्ट्रपति के अभिभाषण में, आमतौर पर पिछले एक साल के दौरान सरकार की उपलब्धियों और भविष्य के लिए लक्ष्यों और योजनाओं की रूपरेखा पर प्रकाश डाला जाता है.
इस संबोधन के पश्चात राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of thanks to President’s Address) पर चर्चा की जाती है.
धन्यवाद प्रस्ताव
राष्ट्रपति के अभिभाषण के पश्चात प्रत्येक सदन में सत्तापक्ष के सांसदों द्वारा ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ (Motion of thanks) प्रस्तुत किया जाता है.
- इस दौरान, राजनीतिक दल धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करते हैं तथा संशोधन करने हेतु सुझाव भी देते हैं.
- ‘राष्ट्रपति का अभिभाषण’ और ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ की कार्रवाई, संविधान के अनुच्छेद 86(1) और 87(1) और लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमवाली के नियम 16 से लेकर नियम 24 तक के अनुसार की जाती है.
‘धन्यवाद प्रस्ताव’ में संशोधन:
राष्ट्रपति द्वारा सदन को संबोधित करने के पश्चात, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ में संशोधन सदन के पटल पर पेश किया जा सकता है.
- संशोधन में अभिभाषण में निहित मामलों के साथ-साथ उन विषयों को भी संदर्भित किया जा सकता है, जिनका, संशोधन प्रस्ताव पेश करने वाले सदस्य की राय में, अभिभाषण में उल्लेख नहीं किया गया था.
- ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ में संशोधन को, अध्यक्ष अपने विवेकानुसार उचित तरीके से पेश कर सकता है.
सीमाएं:
- ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ के तहत, सदस्य उन विषयों पर चर्चा नहीं कर सकते हैं, जिनके लिए केंद्र सरकार प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं होती है.
- इसके अलावा, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के दौरान राष्ट्रपति का उल्लेख नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभिभाषण की विषयवस्तु राष्ट्रपति द्वारा नहीं, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा तैयार की जाती है.
‘धन्यवाद प्रस्ताव’ किस प्रकार पारित होता है?
संसद सदस्यों द्वारा ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ पर मतदान किया जाता है. यह प्रस्ताव, दोनों सदनों में पारित होना आवश्यक होता है.
‘धन्यवाद प्रस्ताव’ के पारित न होने को, सरकार की हार समझा जाता है और यह सरकार के पतन का कारण बन सकता है. यही कारण है, कि ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ को ‘अविश्वास प्रस्ताव’ के समान माना जाता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Amendments to Criminal Laws
संदर्भ
हाल ही में, सरकार द्वारा राज्यसभा को सूचित करते हुए दी गयी जानकारी के अनुसार, ‘आपराधिक कानूनों में व्यापक संशोधनों’ (Amendments to Criminal Laws) के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.
यह जानकारी सरकार ने लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रदान की, जिसमे पूछा गया था कि, क्या केंद्र सरकार ने ‘वैवाहिक बलात्कार’ (Marital Rape) को भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के रूप में शामिल करने पर कोई निर्णय लिया है?).
वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण:
कृपया ध्यान दें, कि ‘दिल्ली उच्च न्यायालय’ में वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण किए जाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है.
- इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत बताते हुए, केंद्र सरकार द्वारा इस मुद्दे पर अपना रूख स्पष्ट करने के लिए पहले ही अतरिक्त समय मांगा जा चुका है.
- उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में, आईपीसी की धारा 375 के तहत ‘अपवाद’ को खत्म करने की मांग की गई है. इस ‘अपवाद’ अथवा ‘छूट’ के तहत, यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है, तो पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने को ‘बलात्कार’ का अपराध नहीं माना जाता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 375
‘भारतीय दंड संहिता’ की धारा 375 (Section 375 of the Indian Penal Code), में एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संभोग को एक विशिष्ट शर्त के साथ बलात्कार के अपराध से ‘छूट’ दी गयी है. इस छूट को “वैवाहिक बलात्कार अपवाद” (Marital Rape Exception) के रूप में भी जाना जाता है.
आईपीसी की धारा 375 के अनुसार, “यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो, अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा संभोग करना, बलात्कार नहीं है”.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के निष्कर्ष:
- कभी भी विवाहित रह चुकी अथवा वर्तमान में विवाहित महिलाओं में से 7% महिलाओं को वैवाहिक यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है.
- 15-49 आयु वर्ग की विवाहित रह चुकी अथवा वर्तमान में विवाहित एवं वैवाहिक यौन हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं में से 83% महिलाओं ने अपने वर्तमान पति को, और 9% महिलाओं ने अपने पूर्व पति को यौन हिंसा करने वाला अपराधी बताया है.
वैवाहिक बलात्कार से छूट संबंधी वर्तमान विवाद:
यद्यपि, सरकार कई मौकों पर कह चुकी है, कि ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध घोषित करने से ‘विवाह- संस्था’ संकट में पड़ जाएगी, किंतु विशेषज्ञों के अनुसार, ‘निजता के अधिकार’ सहित शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए हाल के फैसलों ने सरकार के इस तर्क को कमजोर कर दिया है.
सरकार के इस दृष्टिकोण पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाने वाले हालिया फैसले:
- ‘इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ’ (Independent Thought vs. Union of India) मामले में अक्टूबर 2017 का फैसला. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘नाबालिग पत्नी के साथ बलात्कार’ को अपराध घोषित कर दिया था.
- न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (सितंबर 2018) मामले में, शीर्ष अदालत ने सर्वसम्मति से संविधान द्वारा गारंटीकृत प्रत्येक व्यक्ति की ‘निजता के मौलिक अधिकार’ को मान्यता प्रदान की थी.
- ‘जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामला (अक्टूबर 2018). इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा ‘व्यभिचार’ (Adultery) को अपराध घोषित करते हुए इसकी भर्त्सना की थी.
वैवाहिक बलात्कार के पीड़ितों के लिए उपलब्ध उपाय:
पीड़ितों के पास ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम’, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत प्रदान किए गए नागरिक उपचार का ही सहारा होता है.
वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किए जाने की आवश्यकता:
- कई अध्ययनों के अनुसार, अपनी पत्नियों के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाना और शारीरिक रूप से अपनी पत्नियों को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करना एक आम बात पायी गयी है.
- विवाह एक ‘समान-संबंधों’ का अनुबंध होता है, और यह हर चीज के लिए एक बार में ही प्रदान की गयी सहमति नहीं है.
- कानून में ‘पति को बलात्कार करने की दी गयी विधिक छूट’ पुरुषों को असमान विशेषाधिकार प्रदान करती है.
- वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित महिलाओं को दीर्घ-गामी मनोवैज्ञानिक चोट झेलनी पड़ती है.
- धारा 375 के तहत अपवाद, महिला को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन करता है.
- भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक प्रकृति से पुरुषों के दिमाग में यह बात बस जाती है, कि महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि जब उनके पति सेक्स की मांग करें तो वे इसका पालन करें.
- वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित महिला को शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है, साथ ही उसकी मर्यादा भंग होने का मानसिक आघात भी सहना पड़ता है.
‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध घोषित करने के विपक्ष में तर्क:
- ‘वैवाहिक बलात्कार’ (Marital Rape) को अपराध घोषित किया जाना, “पति को परेशान करने का एक आसान साधन होने के अलावा विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकता है”.
- दहेज कानून के रूप में जाना जाने वाली ‘आईपीसी की धारा 498A’ का दुरुपयोग “पतियों को परेशान करने के लिए” किया जाता है.
- अन्य देशों, ज्यादातर पश्चिमी देशों द्वारा ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध घोषित किया जा चुका है, इसका मतलब यह नहीं है कि आँख बंद करके उनका अनुसरण करते हुए भारत को भी ऐसा करना चाहिए.
- ‘बलात्कार कानूनों की समीक्षा हेतु गठित विधि आयोग’ ने इस मुद्दे की जांच की है, और वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण किए जाने के संबंध में कोई सिफारिश नहीं की है.
- जो यौन संबंध पत्नी के लिए ‘वैवाहिक बलात्कार’ प्रतीत हो सकते हैं, हो सकता है कि वह दूसरों को ऐसा नहीं लगे.
- पुरुष और उसकी अपनी पत्नी के मध्य यौन-कार्यों के मामले में कोई स्थायी सबूत नहीं मिल सकता है.
आपराधिक कानून में सुधार हेतु गठित समिति:
- गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा आपराधिक कानून में सुधार करने हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किया है.
- इस समिति के अध्यक्ष रणबीर सिंह (कुलपति,नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली) हैं.
- यह समिति, सरकार को दी जाने वाली रिपोर्ट के लिए, विशेषज्ञों से ऑनलाइन परामर्श करके विचार एकत्र करेगी और उपलब्ध सामग्री का मिलान करेगी.
आपराधिक कानूनों से संबंधित पिछली समितियाँ:
- माधव मेनन समिति: इसने 2007 में CJSI में सुधारों पर विभिन्न सिफारिशों का सुझाव देते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.
- मलिमथ कमेटी की रिपोर्ट: इसने अपनी रिपोर्ट 2003 में आपराधिक न्याय प्रणाली (CJSI) पर प्रस्तुत की.
Sansar Daily Current Affairs, 09 February 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व.
Topic : Lok Ayukta
संदर्भ
हाल ही में, केरल सरकार द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से ‘केरल लोकायुक्त अधिनियम’ (Kerala Lok Ayukta Act) में संशोधन करने का प्रस्ताव पेश किया गया है.
सरकार के इस कदम की विपक्ष ने आलोचना की है.
प्रस्तावित परिवर्तन:
- सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद, सरकार ‘लोकायुक्त’ के फैसले को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है.
- वर्तमान में, ‘केरल लोकायुक्त अधिनियम’ की धारा 14 के तहत, लोकायुक्त द्वारा निर्देशित किए जाने पर एक लोक सेवक को पद खाली करना अनिवार्य है.
संशोधन के विरोध का कारण:
संशोधनों का विरोध दो कारणों से किया जा रहा है:
- अधिनियम के प्रावधान एक अध्यादेश के माध्यम से संशोधित किए जा रहे हैं, और इसलिए इस विषय पर कोई उचित चर्चा नहीं की गयी है.
- प्रस्तावित संशोधन, ‘केंद्रीय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम’, 2013 की मूल भावना का उल्लंघन करते है.
‘लोकायुक्त’ कौन होता है?
‘केंद्रीय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम’, 2013 (The central Lokpal and Lokayuktas Act, 2013), 1 जनवरी 2014 को अधिसूचित किया गया था.
- राज्य में ‘लोकायुक्त’ केंद्र में ’लोकपाल’ के समान पद होता है.
- मूल रूप से, केंद्रीय क़ानून में अनिवार्यतः हर राज्य में ‘लोकायुक्त’ नियुक्त किए जाने की परिकल्पना की गई थी.
- हालांकि, इस प्रावधान का विरोध होने के बाद, केंद्रीय कानून में केवल एक फ्रेमवर्क का निर्धारण किया गया, तथा इसके बारे में विशिष्ट प्रावधान निर्धारित करने का कार्य राज्यों पर छोड़ दिया गया.
इस संबंध में, क़ानून के तहत राज्यों को अपने स्वयं के कानून बनाने की स्वायत्तता प्रदान की गयी है, अतः हर राज्य में विभिन्न पहलुओं – जैसेकि कार्यकाल, और अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की आवश्यकता आदि के संदर्भ में लोकायुक्त की शक्तियाँ अलग-अलग होती हैं.
‘लोकपाल’ कौन होता है?
‘केंद्रीय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम’ में एक ‘लोकपाल’ (Lokpal) का गठन किए जाने का प्रावधान किया गया है.
- यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमे एक अध्यक्ष (चेयरपर्सन) और अधिकतम 8 सदस्यों शामिल होंगे है.
- ‘लोकपाल’ का अध्यक्ष भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या निर्दिष्ट पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा.
सदस्य:
इसके आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा न्यूनतम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये.
भूमिकाएं और कार्य:
लोकपाल और लोकायुक्त द्वारा ‘लोक सेवकों’ के खिलाफ शिकायतों का समाधान किया जाएगा. लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए, बी, सी और डी अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल होंगे.
- लोकपाल की नियुक्ति, मार्च 2019 में हुई थी और, संबंधित नियम बनाए जाने के पश्चात इसने मार्च 2020 से कार्य करना शुरू कर दिया.
- वर्तमान में ‘लोकपाल’ के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ‘पिनाकी चंद्र घोष’ हैं.
इस प्रकार के संस्थानों की आवश्यकता:
- कुशासन (Maladministration) एक दीमक की तरह है जो एक राष्ट्र की नींव को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है और प्रशासन को अपना कार्य पूरा करने से रोकता है.
- इस समस्या का मूल कारण ‘भ्रष्टाचार’ (Corruption) है. अधिकांश भ्रष्टाचार रोधी संस्थाएं स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पाती हैं. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी सीबीआई को ‘पिंजरे का तोता’ और ‘उसके मालिक की आवाज’ बता चुका है.
- इनमें से कई एजेंसियां मात्र एक सलाहकार निकाय हैं और इनके पास कोई प्रभावी शक्ति नहीं है. इनकी सलाह का शायद ही कभी पालन किया जाता है.
- इन सबके अलावा, संस्थाओं के कामकाज में आंतरिक पारदर्शिता और जवाबदेही की समस्या भी है. साथ ही, इन एजेंसियों पर नियंत्रण करने के लिए कोई अलग और प्रभावी तंत्र नहीं है.
इस संदर्भ में, ‘लोकपाल’ नामक एक स्वतंत्र संस्था, भारतीय राजनीति के इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम है, जिसने भ्रष्टाचार के कभी न खत्म होने वाले खतरे का समाधान पेश किया है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व.
Topic : NATO
हाल ही में यूक्रेन की सीमा पर रूस द्वारा की जा रही सैन्य-तैनाती से बढ़ते तनाव के बीच उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) राष्ट्रों ने अपनी सेनाओं को तैयार रहने का निर्देश दे दिया है और यूरोप की पूर्वी सीमा की सुरक्षा को मजबूत करने हेतु जहाजों और लड़ाक् विमानों को भेजा है.
पृष्ठभूमि
उल्लेखनीय है कि ठीक इसी तरह के हालात वर्ष 2014 में भी बने थे, जब यूक्रेन की जनता पश्चिमी देशों से आर्थिक सम्बन्ध मजबूत करने पर ज़ोर दे रही थी, तब रुस समर्थक अलगाववादियों एवं रुसी सेना ने क्रीमिया पर हमला कर उसे रूस में मिला लिया था. इसके बाद वर्ष 2013 में फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता के साथ रूस और यूक्रेन के बीच शांति कायम रखने को लेकर एक समझौता हुआ था जिसे मिन्सक समझौता कहा गया था.
नाटो क्या है?
- नाटो का पूरा नाम North Atlantic Treaty Organization है अर्थात् उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन है.
- यह एक अन्तर-सरकारी सैन्य संघ है.
- इस संधि पर 4 अप्रैल, 1949 को हस्ताक्षर हुए थे.
- इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है.
- नाटो का सैन्य मुख्यालय बेल्जियम में ही मोंस नामक शहर में है.
- यह सामूहिक सुरक्षा की एक प्रणाली है जिसमें सभी सदस्य देश इस बात के लिए तैयार होते हैं यदि किसी एक देश पर बाहरी आक्रमण होता है तो उसका प्रतिरोध वे सभी सामूहिक रूप से करेंगे.
- स्थापना के समय इसका प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा के प्रसार को रोकना था.
- यह सैन्य गठबंधन सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है जिसका तात्पर्य एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है. (अनुच्छेद 5)
- नाटो के सदस्य देशों का कुल सैन्य खर्च विश्व के सैन्य खर्च का 70% से अधिक है.
- वर्तमान में नाटो अफगानिस्तान में ‘गैर-युद्ध मिशन’ का संचालन कर रहा है, जिसके माध्यम से अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों, संस्थानों को प्रशिक्षण, सलाह और सहायता प्रदान करता है.
- नाटो की स्थापना के बाद से, गठबंधन में नए सदस्य देश शामिल होते रहें है. शुरुआत में, नाटो गठबंधन में 12 राष्ट्र शामिल थे, बाद में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो चुकी है. नाटो गठबंधन में शामिल होने वाला सबसे अंतिम देश ‘उत्तरी मकदूनिया (North Macedonia)’ था, उसे 27 मार्च 2020 को शामिल किया गया था.
नाटो के उद्देश्य
राजनैतिक :- नाटो प्रजातांत्रिक मान्यताओं को बढ़ावा देता है. यह सुरक्षा और सैन्य मामलों के समाधान के लिए आपसी सहयोग और परामर्श का एक मंच प्रदान करता है.
सैन्य :- नाटो विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है. यदि किसी विवाद के निपटारे के लिए कूटनीतिक प्रयास विफल होते हैं तो यह अपनी सैन्य का प्रयोग कर कार्रवाई कर सकता है. नाटो की मूल संधि – वाशिंगटन संधि की धारा 5 के प्रावधान के अनुसार ऐसी स्थिति में नाटो के सभी देश मिलकर सैनिक कार्रवाई करते हैं.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय.
Topic : Electoral Bonds
संदर्भ
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा इस वर्ष जनवरी माह के दौरान कुल ₹1,213 करोड़ के ‘चुनावी बांड’ (Electoral Bonds) बेचे गए.
इनमे से अधिकांश बांड्स (₹784.84 करोड़) को एसबीआई की नई दिल्ली शाखा में भुनाया गया, जोकि राष्ट्रीय पार्टियों को मिलने वाले चंदे की ओर इशारा करता है. जबकि ‘चुनावी बांड’ की सर्वाधिक बिक्री (₹489.6 करोड़ कीमत के) एसबीआई की मुंबई शाखा से हुई.
चुनावी बांड्स / ‘इलेक्टोरल बांड’ क्या होते हैं?
- चुनावी बॉन्ड / ‘इलेक्टोरल बांड’ (Electoral Bond), राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए एक वित्तीय साधन है.
- इन बांड्स के लिए, 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किया जाता है, और इसके लिए कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गयी है.
- इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिए ‘भारतीय स्टेट बैंक’ को अधिकृत किया गया है. यह बांड जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों की अवधि के लिए वैध होते हैं.
- ये बॉन्ड किसी पंजीकृत राजनीतिक दल के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होते हैं.
- ये बांड, केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि में किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते है, बशर्ते उसे भारत का नागरिक होना चाहिए अथवा भारत में निगमित या स्थित होना चाहिए .
- कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से इन बांड्स को खरीद सकता है.
- बांड्स पर दान देने वाले के नाम का उल्लेख नहीं होता है.
योजना से जुड़े मुद्दे
‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ योजना, पारंपरिक रूप से ‘अंडर-द-टेबल’ चंदा देने के खिलाफ एक प्रतिरोध के रूप में कार्य करती है, क्योंकि इसमें लेनदेन, चेक और डिजिटल रूप से किया जाता है. हालांकि, योजना के कई प्रमुख प्रावधान इसे अत्यधिक विवादास्पद बनाते हैं.
- अनामिकता (Anonymity): योजना के तहत, अनुदान / चंदा देने वाला (जो व्यक्ति या कॉर्पोरेट कोई भी हो सकता है) अपनी जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं होता है, तथा राजनीतिक दल भी यह बताने के लिए बाध्य है कि चंदा किस व्यक्ति या निकाय से आया है.
- असममित रूप से अपारदर्शी: चूंकि बांड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के माध्यम से खरीदे जाते हैं, इसलिए सरकार हमेशा यह जानने की स्थिति में होती है कि दाता कौन है.
- ब्लैकमनी का मार्ग: कॉरपोरेट डोनेशन पर 5% की अधिकतम सीमा को खत्म करना, प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट्स में राजनीतिक अनुदान को प्रकट करने की आवश्यकता को खत्म करना आदि.
Sansar Daily Current Affairs, 10 February 2022
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारतीय कला एवं संस्कृति.
Topic : Kathakali
संदर्भ
प्रसिद्ध कथकली नृत्यांगना सुश्री मिलिना साल्विनी का निधन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फ्रांस की प्रसिद्ध कथकली नृत्यांगना सुश्री मिलिना साल्विनी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया। भारत सरकार ने प्रदर्शन कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 2019 में साल्विनी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।
मिलान, इटली में जन्मी मिलिना साल्विनी ने 1962 से दो वर्षों तक ‘केरल कलामंडलम’ में कथकली नृत्य सीखा। इसके बाद उन्होंने पेरिस में “सेंटर मंडप’ के संस्थापक निदेशक के रूप में, उन्होंने चार दशकों से अधिक समय तक भारतीय नृत्य और संगीत को बढ़ावा दिया और पढ़ाया।
कथकली
- कथकली केरल प्रदेश की नाट्य शैली है जिसमें महाभारत की कथाओं को प्रस्तुत किया जाता है.
- इसमें भारतीय महाकाव्यों से ली गई कथाओं को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें नेत्रों व भौंहों की गतिविधियों के माध्यम से रास प्रस्तुत किया जाता है।
- कथकली में विभिन्न चरित्रों को दर्शाने के लिए मुखौटों और अलंकृत श्रंगार का प्रयोग किया जाता है, चेहरे के श्रंगार में विभिनन रंगों का प्रयोग होता है जिनका अलग अलग महत्व होता है, जैसे- हरा(सदृण), लाल(राजसी बैभव), काला(दष्टता)। इस नृत्य में आकाश तत्व को दर्शाया जाता है।
- प्रसिद्ध कलाकार- रीता गांगुली, गोपीनाथ, रामकुट्टी नायर।
यह भी पढ़ें – प्रमुख नृत्य
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत एवं उसके पड़ोसी- संबंध.
Topic : Permanent Indus Commission
संदर्भ
भारत और पाकिस्तान के मध्य ‘स्थायी सिंधु आयोग’ (Permanent Indus Commission) की वार्षिक बैठक होने वाली है, लेकिन अभी तक कोई कार्यक्रम तय नहीं किया गया है.
सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के तहत, हर साल ‘स्थायी सिंधु आयोग’ की कम से कम एक बार बैठक आयोजित करना अनिवार्य है, और इसके अनुसार 31 मार्च को समाप्त हो रही है.
क्या है यह सिन्धु जल संधि (SINDHU RIVER TREATY)?
- यह संधि भारत और पाकिस्तान के मध्य 1960 ई. में की गयी थी. भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सिन्धु नदी के जल को लेकर यह समझौता हुआ था.
- इस संधि के तहत सिन्धु नदी की सहायक नदियों को दो भागों में बाँट दिया गया – – – पूर्वी भाग और पश्चिमी भाग.
- पूर्वी भाग में जो नदियाँ बहती हैं, वे हैं–> सतलज, रावी और व्यास. इन तीनों नदियों पर भारत का फुल कण्ट्रोल है.
- पश्चिमी भाग में जो नदियाँ बहती हैं, वे हैं–> सिंध, चेनाब और झेलम. भारत सीमित रूप से इन नदियों के जल का प्रयोग कर सकता है.
- इस संधि के अनुसार पश्चिमी भाग में बहने वाली नदियों का भारत केवल 20% भाग प्रयोग में ला सकता है. हालाँकि, भारत इनमें “रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट” पर काम कर सकता है. रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट का अर्थ हुआ—>वे पनबिजली उत्पादन संयंत्र जिनमें जल को जमा करने की आवश्यकता नहीं है.
- यह 56 साल पुरानी संधि है.
जलविद्युत उत्पादन का अधिकार
- सिंधु जल समझौते के तहत, भारत को ‘डिजाइन और संचालन के लिए विशिष्ट मानदंडों के अधीन’ पश्चिमी नदियों पर बहती हुई नदी पर परियोजनाओं (Run of the River Projects) के माध्यम से जलविद्युत उत्पन्न करने का अधिकार दिया गया है.
- समझौते के तहत, पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर भारतीय जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन पर चिंता व्यक्त करने का अधिकार भी है.
स्थायी सिंधु आयोग
- स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission), भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों की सदस्यता वाला एक द्विपक्षीय आयोग है, इसका गठन सिंधु जल संधि, 1960 के लक्ष्यों को कार्यान्वित करने तथा इनका प्रबंधन करने के लिए किया गया था.
- ‘सिंधु जल समझौते’ के अनुसार, इस आयोग की, वर्ष में कम से कम एक बार, बारी-बारी से भारत और पाकिस्तान में नियमित रूप से बैठक आयोजित की जानी चाहिए.
आयोग के कार्य
- नदियों के जल संबंधी किसी भी समस्या का अध्ययन करना तथा दोनो सरकारों को रिपोर्ट करना.
- जल बंटवारे को लेकर उत्पन्न विवादों को हल करना.
- परियोजना स्थलों और नदी के महत्त्वपूर्ण सिरों पर होने वाले कार्यों के लिए तकनीकी निरीक्षण की व्यवस्था करना.
- प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार, तथ्यों की जांच करने के लिए नदियों के निरीक्षण हेतु एक सामान्य दौरा करना.
- समझौते के प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक कदम उठाना.
सिन्धु नदी की उपयोगिता क्या है? (UTILITY OF SINDHU RIVER)
- सिन्धु नदी उप-महाद्वीप की विशाल नदियों में से एक है.
- सिन्धु बेसिन 11.5 लाख वर्गमीटर में फैला हुआ है. उत्तर प्रदेश के जैसे चार राज्य इसमें समा सकते हैं.
- इसकी लम्बाई 3000 किलोमीटर से भी ज्यादा है.
- गंगा नदी से भी यह विशाल है.
- इसकी सहायक नदियाँ — चेनाब, झेलम, सतलज, रावी और व्यास हैं.
- अपनी सभी सहायक नदियों के साथ यह अरब सागर (कराँची, पाकिस्तान) में गिरती है.
- सिन्धु नदी पाकिस्तान के दो तिहाई भाग को कवर करती है.
- पाकिस्तान सिन्धु नदी के जल का प्रयोग सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए करता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि सिन्धु नदी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: प्रौद्योगिकी मिशन.
Topic : Blockchain technique
संदर्भ
हाल ही में, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (PMRBP) वर्ष 2001 और 2022 के 61 विजेताओं को ब्लॉकचैन तकनीक का उपयोग करके प्रदान किए गए डिजिटल प्रमाणपत्र प्राप्तकर्ताओं के मोबाइल उपकरणों पर स्थापित डिजिटल वॉलेट में स्टार किए जाएंगे.
ये प्रमाणपत्र जाली नहीं हो सकते हैं और दुनिया भर में सत्यापन योग्य हैं. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (17 कानपुर) द्वारा ‘नैशनल ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट” के तहत यह ब्लॉकचेन-संचालित तकनीक विकसित की गई है. उल्लेखनीय है कि नेशनल ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् सचिवालय द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है ताकि ब्लॉकचंन प्रौद्योगिकी का उपयोग करके ई-गवर्नंस समाधान विकसित किया जा सके.
ब्लॉकचैन
- Blockchain एक अनाम ऑनलाइन खाता है जिसका उपयोग डाटा संरचना (data structure) में किया जाता है.
- कोई भी उपयोक्ता blockchain के जरिये ऑनलाइन खाते में बिना किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के फेर-बदल कर सकता है.
- Blockchain का उपयोग करने वाले उपभोक्ता की पहचान का किसी को पता नहीं चलता.
ई-गबनैंस में ब्लॉकचेन का महत्त्व
- ब्लॉकचैन ई-गवर्नेंस समाधानों और अन्य क्षेत्रों क लिए उपयुक्त तकनीक है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भरोसा बढ़ाती है.
- ब्लॉकचैन सुरक्षा और गोपनीयता उपलब्ध कराती है, और विश्वसनीय इकाइयों का भरासेमंद तरीके से विवरण दर्ज करने और पहुंच के विशेष अधिकार के साथ अनुमति मिलती है.
- आज साइबर सुरक्षा, बैंकिंग और बीमा क क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर चिंताएँ सामन आ रही हैं तथा ऐसे में इन्हें सुरक्षित बनाने के लिये ब्लॉकचैन तकनीक के उपयोग को लेकर स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है. इससे पारदर्शिता में भी वृद्धि होगी तथा फर्जी लेन-देनों से मुक्ति मिलगी, क्योंकि इसके अंतर्गत प्रत्येक लेन-देन को एक सार्वजानिक बही-खाते में रिकॉर्ड तथा आवंटित किया जाएगा.
- ई-गवर्नेंस के अतिरिक्त निम्न क्षेत्रों में भी ब्लॉकचन तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है- सूचना प्रौद्योगिकी और डाटा प्रबंधन, सरकारी योजनाओं का लेखा-जोखा, सब्सिडी वितरण, कानूनी कागज़ात रखन, बैंकिंग और बीमा, भू-रिकॉर्ड विनियमन, डिजिटल पहचान और प्रमाणीकरण, स्वास्थ्य आँकड़े, साइबर सुरक्षा, क्लाउड स्टोरेज, स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट, शैक्षणिक जानकारी एवं ई-वोटिंग आदि.
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