Sansar Daily Current Affairs, 03 April 2021
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Structure, organization and functioning of the Executive and the Judiciary Ministries and Departments of the Government; pressure groups and formal/informal associations and their role in the Polity.
Topic : Police Reforms in India
संदर्भ
हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई करने के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 2006 में प्रकाश सिंह केस में पुलिस सुधार पर दिए गये ऐतिहासिक निर्णय के बाद भी सुधारों की दिशा में बहुत ही कम प्रगति हो पाई है.
भारत में पुलिस की कार्यप्रणाली से जुड़े मुद्दे
- भारत में एक लाख जनसंख्या पर 181 पुलिसकर्मी हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार प्रति एक लाख लोगों पर कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए अर्थात् भारत में कम से कम अतिरिक्त 5.5 लाख पुलिस कर्मियों की आवश्यकता है.
- पुलिस बल के काम करने की परिस्थितियाँ, उनकी मानसिक स्थिति और राजनीतिक दबाव भी पुलिस की कार्यप्रणाली को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं.
- CAG की विभिन्न प्रतिवेदनों में पुलिस बल के पास हथियारों की कमी सामने आई है, पश्चिमी बंगाल और राजस्थान में क्रमश: 71% और 75% हथियारों की कमी है.
- NCRB के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 में 92 और 2017 में 100 पुलिस की कस्टडी में मृत्यु के मामले सामने आए हैं.
- वर्ष 2015 में हुई 97 मौतों में से केवल 33 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया था.
- 2006 के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरण बनाने का सुझाव दिया था. केवल हरियाणा, केरल, पंजाब, झारखण्ड में इसका पालन किया गया था.
पृष्ठभूमि
वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकाश सिंह केस में पुलिस प्रशासन में सुधार के लिए 2 वर्ष का निर्धारित कार्यकाल, तबादलों, नियुक्तियों में सरकार की भूमिका सीमित करने के पक्ष में निर्णय दिया था. इसके बाद सोली सोराबजी समिति ने भी पुलिस प्रशासन के राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने की दिशा में पृथक् नियुक्ति आयोग के निर्माण के सुझाव दिए थे, परन्तु इन सुझावों पर अमल नहीं किया गया है.
पुलिस कार्यप्रणाली में वर्तमान संकट के कारण
- पुलिस, किसी राज्य का प्रतिरोधी बल होती है, तथा जिसका सामान्य नागरिकों के साथ प्रत्यक्ष रूप से संपर्क होता है. इसलिए, राज्य में शासन की समग्र गुणवत्ता पर पुलिस कार्यप्रणाली की गुणवत्ता का बहुत प्रभाव पड़ता है.
- सत्ता में बैठे राजनेता बहुधा पुलिस का उसी तरह प्रयोग करते हैं जैसे राजनेता सत्ता के बाहर गुंडों का प्रयोग करते हैं. आश्चर्य की बात नहीं है, कभी ऐसा होता है कि अपराधी गिरोहों को पकड़ते समय पुलिस भी उन्हीं की तरह व्यवहार करती है.
- सामूहिक सजा, राजनीतिक विरोध का अपराधीकरण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन जैसे आपत्तिजनक बलपूर्वक तरीके, पुलिसकर्म उपकरण के रूप में नियमित रूप से प्रयोग किये जाने लगे हैं.
- यह घटना राजनीति, अपराध और पुलिस के मध्य साँठ-गाँठ का प्रतीक है.
- इस घटना से संबधित परिस्थिति तथा प्रशासन की प्रतिक्रिया उसी रुग्णता की ओर इशारा करती हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकती है.
समय की मांग – स्मार्ट पुलिस कार्यप्रणाली
‘स्मार्ट पुलिस बल: सख्त और संवेदनशील, आधुनिक और गतिशील, सतर्क और जवाबदेह, विश्वसनीय और उत्तरदायी, टेक्नो-सेवी और प्रशिक्षित.
SMART का पूरा नाम है – ‘Strict and Sensitive, Modern and Mobile, Alert and Accountable, Reliable and Responsive; Techno-savvy and Trained.’
आज की तिथि में आपराधिक न्याय प्रणाली तथा जमीनी स्तर के पुलिस संस्थानों को सुदृढ़ बनाने की तत्काल जरूरत है;
- वर्तमान तथा उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए पुलिस को तैयार करना और
- पुलिस की खोजी क्षमताओं तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली को दृढ़ करना.
वर्तमान के पुलिस कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों से संबंधित कारणों तथा उनकी जटिल परस्पर-निर्भरताओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक, अधिक सहयोगपूर्ण तथा अभिनव दृष्टिकोणों को अपनाने की आवश्यकता है.
प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ में उच्चत्तम न्यायालय के निर्देश
- प्रत्येक राज्य में एक ‘राज्य सुरक्षा आयोग’ (State Security Commission) का गठन किया जाए, जिसका कार्य पुलिस के कामकाज के लिए नीतियां बनाना, पुलिस प्रदर्शन का मूल्यांकन करना, तथा राज्य सरकारों द्वारा पुलिस पर अनुचित दबाव से मुक्ति को सुनिश्चित करना होगा.
- प्रत्येक राज्य में एक ‘पुलिस स्थापना बोर्ड’ (Police Establishment Board) का गठन किया जाए जो उप पुलिस-अधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारियों के लिए पोस्टिंग, स्थानांतरण और पदोन्नति का फैसला करेगा, तथा उपरोक्त विषयों पर उच्च रैंक के अधिकारियों के लिए राज्य सरकार को सिफारिशें प्रदान करेगा.
- राज्य तथा जिला स्तर पर ‘पुलिस शिकायत प्राधिकारियों’ (Police Complaints Authorities) का गठन किया जाये, जो पुलिस कर्मियों द्वारा गंभीर कदाचार और सत्ता के दुरुपयोग संबंधी आरोपों की जाँच करेगा.
- राज्य बलों में DGP तथा अन्य प्रमुख पुलिस अधिकारियों के लिए कम से कम दो साल का न्यूनतम कार्यकाल प्रदान किया जाए.
- सेवा-अवधि, अच्छे रिकॉर्ड और अनुभव के आधार परसंघ लोक सेवा आयोग द्वारा पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध किये गए तीन वरिष्ठतम अधिकारियों में से राज्य पुलिस के DGP की नियुक्ति सुनिश्चित की जाये.
- जाँच करने वाली पुलिस तथा कानून और व्यवस्था संबंधी पुलिस को अलग किया जाएताकि त्वरित जाँच, बेहतर विशेषज्ञता और बेहतर तालमेल सुनिश्चित हो सके.
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के प्रमुख के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (National Security Commission) का गठन किया जाए.
इसके अतिरिक्त, विभिन्न विशेषज्ञ निकायों ने पिछले कुछ दशकों में पुलिस संगठन तथा उनकी कार्यप्रणाली संबंधित विषयों का परीक्षण किया है. इसका कालक्रम निम्नानुसार है:
- राष्ट्रीय पुलिस आयोग, 1977-81
- रुबिरो समिति (Rubeiro Committee), 1998
- पद्मनाभ समिति, 2000
- मलीमथ समिति (Malimath committee), 2002-03
- पुलिस अधिनियम मसौदा समिति, 2005
- दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (Second ARC), 2007
- पुलिस अधिनियम मसौदा समिति- II, 2015
मेरी राय – मेंस के लिए
न्यायालय ने वोहरा समिति की रिपोर्ट के साथ संलग्न सामग्री सार्वजनिक करने का निर्देश देने से इंकार कर दिया था. न्यायालय का विचार था कि इस सामग्री में विभिन्न सुरक्षा एजेन्सियों के प्रमुखों द्वारा उपलब्ध करायी गयी तमाम संवेदनशील सूचनायें हैं और इन्हें सार्वजनिक करने का निर्देश देने से इन एजेन्सियों और गोपनीयता के साथ काम करने के उनके तरीकों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचेगा.
न्यायायल ने अपने फैसले में कहा था कि इस रिपोर्ट में प्रदत्त जानकारी को ध्यान में रखते हुये राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष की सलाह से एक उच्च स्तरीय समिति गठित करनी चाहिए जो इस तरह की सांठगांठ से संबंधित मामलों की जाँच की निगरानी करेगी ताकि वोहरा समिति की रिपोर्ट में दी गयी जानकारियों के आलोक में अपेक्षित नतीजे हासिल किये जा सकें.
वोहरा समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक ऐसी नोडल एजेन्सी गठित करने की सिफारिश की गयी थी जिसे मौजूदा सभी गुप्तचर और प्रवर्तन एजेन्सियां देश में संगठित अपराध के बारे में मिलने वाली सारी जानकारियां तत्परता से उपलब्ध करायेंगी.
यही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया था कि नोडल एजेन्सी को इस तरह से मिली सूचनाओं का उपयोग आपराधिक सिन्डीकेट को राजनीतिक नफे नुकसान का अवसर प्रदान किये बगैर ही पूरी सख्ती के साथ करना होगा. रिपोर्ट में ऐसा करते समय गोपनीयता का पूरी तरह ध्यान रखने पर भी जोर दिया गया था.
न्यायालय के इस फैसले को भी 23 साल हो चुका है. सरकार ने निश्चित ही इस ओर कदम उठाये हैं लेकिन इसके बावजूद संगठित अपराधियों की नेताओं, राजनीतिक दलो और पुलिस तथा नौकरशाहों के साथ सांठगांठ पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. इसी का नतीजा है कि आज भी इन अपराधियों को नेताओं ओर राजनीतिक दलों का संरक्षण पहले की तरह ही प्राप्त है. कानपुर का विकास दुबे भी इसका अपवाद नहीं है.
सरकार अगर वास्तव में अपराधियों के नेटवर्क को पूरी तरह नष्ट करना चाहती है तो उसे वोहरा समिति की रिपोर्ट में जाँच एजेन्सियों द्वारा दी गयी जानकारियों के आधार पर ठोस पहल करनी होगी. कानपुर की घटना के बाद भी अगर सरकार ने सख्त कदम नहीं उठाये तो देश में संगठित गिरोहों की राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के साथ साँठ-गाँठ का सिलसिला खत्म नहीं होगा और पुलिस तथा प्रशासन में शामिल मुखबिरों से ऐसे अपराधियों तक सूचनायें लीक होती रहेंगी.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.
Topic : BIMSTEC
संदर्भ
हाल ही में, श्रीलंका की अध्यक्षता में, 17वीं बिम्सटेक (बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल – BIMSTEC) मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की गई.
BIMSTEC की स्थापना एवं स्वरूप
- BIMSTEC का full form है – Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation.
- यह एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना Bangkok Declaration के अंतर्गत जून 6, 1997 में हुई थी.
- इसका मुख्यालय बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है.
- वर्तमान में इसमें 7 देश हैं (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका) जिनमें 5 दक्षिणी-एशियाई देश हैं और 2 दक्षिण-पूर्व एशिया के देश (म्यांमार और थाईलैंड) हैं.
- इस प्रकार के BIMSTEC के अन्दर दक्षिण ऐसा के सभी देश आ जाते हैं, सिवाय मालदीव, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के.
BIMSTEC के उद्देश्य
- BIMSTEC का मुख्य उद्देश्य दक्षिण-एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (बंगाल की खाड़ी से संलग्न) के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है.
- आज यह संगठन 15 प्रक्षेत्रों में सहयोग का काम कर रहा है, ये प्रक्षेत्र हैं – व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद निरोध, पर्यावरण, संस्कृति, लोगों का लोगों से सम्पर्क, जलवायु परिवर्तन.
BIMSTEC क्षेत्र का महत्त्व
- बंगाल की खाड़ी विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी है. इसके आस-पास स्थित 7 देशों में विश्व की 22% आबादी निवास करती है और इनका संयुक्त GDP 2.7 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है.
- यद्यपि इन देशों के समक्ष आर्थिक चुनौतियाँ रही हैं तथापि 2012-16 के बीच ये देश अपनी-अपनी आर्थिक वृद्धि की वार्षिक दर को 4% और 7.5% के बीच बनाए रखा है.
- खाड़ी में विशाल संसाधन भी विद्यमान हैं जिनका अभी तक दोहन नहीं हुआ है.
- विश्व व्यापार का एक चौथाई सामान प्रत्येक वर्ष खाड़ी से होकर गुजरता है.
भारतीय हित
- इस क्षेत्र में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी है, अतः इससे भारत के हित भी जुड़े हुए हैं. BIMSTEC न केवल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ता है, अपितु इसके अन्दर हिमालय और बंगाल की खाड़ी जैसी पर्यावरण व्यवस्था विद्यमान है.
- “पड़ोस पहले” और “एक्ट ईस्ट”जैसी नीतिगत पहलुओं को लागू करने में BIMSTEC एक सर्वथा उपयुक्त मंच है.
- भारत के लगभग 300 मिलियन लोग अर्थात् यहाँ की आबादी का एक चौथाई भाग देश के उन चार तटीय राज्यों में रहते हैं जो बंगाल की खाड़ी के समीपस्थ हैं. ये राज्य हैं – आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल. इसके अतिरिक्त 45 मिलियन की आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्य चारों ओर भूभागों से घिरे हुए हैं और इनकी समुद्र तक पहुँच नहीं है. BIMSTEC के माध्यम से इन राज्यों को बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों से सम्पर्क करना सरल हो जाएगा और विकास की अनेक संभावनाएँ फलीभूत होंगी.
- बंगाल की खाड़ी का सामरिक महत्त्व भी है. इससे होकर मनक्का जलडमरूमध्य पहुँचाना सरल होगा. उधर देखने में आता है कि चीन हिन्द महासागर में पहुँचने के लिए बहुत जोर लगा रहा है. इस क्षेत्र में उसकी पनडुब्बियाँ और जहाज बार-बार आते हैं, जो भारत के हित में नहीं हैं. चीन की आक्रमकता को रोकने में BIMSTEC देशों की सक्रियता काम आएगी.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Related to Science.
Topic : Black Hole
संदर्भ
हाल ही में इवेंट होराइजन टेलीस्कोप (EHT) पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से 55 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर M87 आकाशगंगा में स्थित कृष्ण विवर (black hole) के चारों ओर स्थित चुम्बकीय क्षेत्र की छवि तैयार करने में सफलता प्राप्त की है.
इससे पहले वर्ष 2019 में वैज्ञानिकों ने EHT के माध्यम से ही ब्लैकहोल के चारों ओर स्थित क्षेत्र की तस्वीर ली थी और यह ब्लैकहोल की उपस्थिति का पहला साक्ष्य था.
यह एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि किसी ब्लैकहोल का घनत्व एवं सघनता इतनी अधिक होती है कि इसमें से प्रकाश भी पार नहीं हो पाता है. इसलिए ये अदृश्य होते हैं. इसे केवल गुरुत्वाकर्षण के कारण अनुभव किया जा सकता है. जैसे यदि तारों का समूह एक वृत्त में घूम रहा है और उस वृत्त के केंद्र में कोई दूसरा तारा नहीं है तो समझ लेना चाहिए कि वहाँ ब्लैकहोल है. अत: ब्लैकहोल के चारों ओर स्थित क्षेत्र की छवि से भी ब्लैकहोल के बारे में जानने में बहुत ही सहायता मिल सकती है.
क्या हैं ब्लैक होल?
कृष्ण विवर अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसें पिंड होते हैं, जो आकार में बहुत छोटे होते हैं. इसके प्रबल गुरुत्वाकर्षण के चंगुल से प्रकाश की किरणों का भी निकलना असम्भव होता है. चूँकि इससे प्रकाश की किरणें भी बाहर नहीं निकल पाती हैं, अत: यह हमारे लिए अदृश्य बना रहता है.
कैसे बनते हैं ब्लैक होल?
कृष्ण विवरों का निर्माण किस प्रकार से होता है, यह जानने से पहले, तारों के विकासक्रम को समझना आवश्यक होगा. एक तारे का विकासक्रम आकाशगंगा (Galaxy) में उपस्थित धूल एवं गैसों के एक अत्यंत विशाल मेघ (Dust & Gas Cloud) से आरंभ होता हैं. इसे ‘नीहारिका’ (Nebula) कहते हैं. नीहारिकाओं के अंदर हाइड्रोजन की मात्रा सर्वाधिक होती है और 23 से 28 प्रतिशत हीलियम तथा अल्प मात्रा में कुछ भारी तत्व होते हैं.
जब गैस और धूलों से भरे हुए मेघ के घनत्व में वृद्धि होती है. उस समय मेघ अपने ही गुरुत्व के कारण संकुचित होने लगता है. मेघ में संकुचन के साथ-साथ उसके केन्द्रभाग के ताप एवं दाब में भी वृद्धि हो जाती है. अंततः ताप और दाब इतना अधिक हो जाता है कि हाइड्रोजन के नाभिक आपस में टकराने लगते हैं और हीलियम के नाभिक का निर्माण करने लगतें हैं. तब तापनाभिकीय संलयन (Thermo-Nuclear Fusion) शुरू हो जाता है. तारों के अंदर यह अभिक्रिया एक नियंत्रित हाइड्रोजन बम विस्फोट जैसी होती है. इस प्रक्रम में प्रकाश तथा ऊष्मा के रूप में ऊर्जा उत्पन्न होती है. इस प्रकार वह मेघ ऊष्मा व प्रकाश से चमकता हुआ तारा बन जाता है.
आकाशगंगा में ऐसे बहुत से तारे होते हैं जिनका द्रव्यमान सौर द्रव्यमान से तीन-चार गुना से भी अधिक होता है. ऐसे तारों पर गुरुत्वीय खिचांव अत्यधिक होने के कारण तारा संकुचित होने लगता है, और दिक्-काल (Space-Time) विकृत होने लगती है, परिणामत: जब तारा किसी निश्चित क्रांतिक सीमा (Critical limit) तक संकुचित हो जाता है, और अपनी ओर के दिक्-काल को इतना अधिक झुका लेता है कि अदृश्य हो जाता है. यही वे अदृश्य पिंड होते हैं जिसे अब हम ‘कृष्ण विवर’ या ‘ब्लैक होल’ कहतें है. अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर (John Wheeler) ने वर्ष 1967 में पहली बार इन पिंडो के लिए ‘ब्लैक होल’ (Black Hole) शब्द का उपयोग किया.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Science and Technology- developments and their applications and effects in everyday life Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.
Topic : Baikal-GVD
संदर्भ
हाल ही में, रूसी वैज्ञानिकों द्वारा साइबेरिया में स्थित दुनिया की सबसे गहरी झील, बैकाल झील के पानी में ‘बैकाल-जीवीडी’ [Baikal-GVD (Gigaton Volume Detector)] नामक विश्व का सबसे बड़ा जलमग्न न्यूट्रिनो टेलिस्कोप स्थापित किया गया है.
‘बैकाल-जीवीडी’ के बारे में
- यह विश्व के सबसे बड़े तीन न्यूट्रिनो डिटेक्टर्स में से एक है. अन्य दो न्यूट्रिनो डिटेक्टर्स, दक्षिणी ध्रुव पर स्थापित ‘आइसक्यूब’ (IceCube) तथा भूमध्य सागर में स्थापित ‘एंटेयर्स’ (ANTARES) हैं.
- इसका उद्देश्य ‘न्यूट्रिनो’ (Neutrinos) नामक दुष्प्राप्य मूलभूत अणुओं के बारे में विस्तार से अध्ययन करना तथा उनके संभावित स्रोतों का पता लगाना है.
न्यूट्रिनो
- न्यूट्रिनो को देखना सरलता से सम्भव नहीं होता इसलिए इसे “Ghost Particles” भी कहते हैं.
- न्यूट्रिनो (neutrino) प्रकृति में सबसे अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला कण है.
- विदित हो कि कण विज्ञान की दुनिया में न्यूट्रिनो (neutrino) का द्रव्यमान सदैव चर्चा का विषय रहा है.
- न्यूट्रिनो (neutrinos) का द्रव्यमान पता लगने से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में बहुत जानकारी मिल सकती है.
- न्यूट्रिनो (neutrinos) एकमात्र ऐसा धातु-तत्त्व है जिसमें विद्युत-आवेश नहीं होता है.
- इन कणों से भौतिक शास्त्र को छोटे से छोटे पैमाने (प्राथमिक-कण भौतिकी) से लेकर बड़े से बड़े पैमाने (ब्रह्मांड) तक समझने में सहायता मिलेगी.
- न्यूट्रिनो को तीन प्रकारों, यथा- इलेक्ट्रान, म्यूऑन (muon) और टाऊ (tau) में वर्गीकृत किया जा सकता है.
- सुपरनोवा के मौजूदा प्रतिमानों के आधार पर अनुमान लगाया गया था कि न्यूट्रिनो के प्रकार “म्यू” और “टाऊ” विशेषताओं में बहुत समान थे और उन्हें एकल इकाई के रूप में संबद्ध माना जाता था.
सुपरनोवा
सुपरनोवा विशाल तारों के अंत के समय हुए बड़े विस्फोटों को संदर्भित करता है. लगभग सभी पदार्थ (न्यूट्रिनो सहित) जो ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं, को इन बड़े विस्फोटों का परिणाम माना जाता है. सुपरनोवा मॉडल सुपरनोवा के तंत्र को समझने के लिए न्यूट्रिनो का अध्ययन करते हैं. न्यूट्रिनो, मृतप्राय तारे से दूर हट जाते हैं और मरणशील तारे की 99% ऊर्जा वहन करते हैं. इसलिए, वे एकमात्र साधन हैं, जो तारे के सबसे गहरे भीतरी हिस्सों की जानकारी प्रदान करते हैं. न्यूट्रिनो के बारे में यह नया रहस्योद्घाटन सुपरनोवा विस्फोटों के तंत्र से संबद्ध तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने में सहायता कर सकता है.
बैकाल झील
- बैकाल झील दक्षिण-पूर्वी साइबेरिया में अवस्थित है, और विश्व की सबसे पुरानी (25 मिलियन वर्ष) और सबसे गहरी (1,700 मीटर) झील है.
- इसमें विश्व के कुल अप्रयुक्त ताजे जल का 20% भंडार विद्यमान है.
- इसे “रूस के गैलापागोस’ (Galapagos) के रूप में जाना जाता है.
- यह यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल है.
ANITA क्या है? Pakistan resumed trade with India :- Index of eight core industries :- Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Current Affairs Hindi February, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Downloadइस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Prelims Vishesh