Sansar Daily Current Affairs, 03 January 2022
GS Paper 1 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय.
Topic : Minimum legal age of marriage for women being raised to 21 years
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा महिलाओं के लिए विवाह हेतु कानूनी उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का फैसला किया गया है.
यह फैसला ‘जया जेटली’ की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश पर आधारित है.
कार्यबल (Task force)
पिछले वर्ष, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने बजट भाषण में मातृ मृत्यु दर कम करने और पोषण स्तर में सुधार के लिए ‘मातृत्व धारण करने के लिए लड़की की आयु’ निर्धारण हेतु एक समिति गठित किए जाने का प्रस्ताव किया गया था.
लेकिन, जब टास्क फोर्स नियुक्त करने के निर्णय की घोषणा की गई, तो इसके विचारणार्थ विषयों (Terms of reference– ToR) में ‘माताओं और शिशुओं के स्वास्थ्य एवं पोषण स्थिति, तथा ‘विवाह एवं मातृत्व की उम्र के परस्पर संबंध’ की जांच करना’ भी शामिल कर दिया गया था.
महत्त्वपूर्ण अनुशंसाएं
- विवाह के लिए निर्धारित न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष किया जाना चाहिए.
- सरकार को लड़कियों की स्कूलों और कॉलेजों तक पहुंच बढ़ाने पर, तथा दूर-दराज के क्षेत्रों से शिक्षा संस्थानों तक आने-जाने हेतु लड़कियों के परिवहन पर ध्यान देना चाहिए.
- स्कूलों में कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण, तथा यौन शिक्षा को शामिल किए जाने की भी सिफारिश की गई है.
- इन सिफारिशों को प्राथमिकता में रखा जाना चाहिए, क्योंकि जब तक इन्हें लागू नहीं किया जाएगा और महिलाओं को सशक्त नहीं किया जाता है, तब तक विवाह-आयु संबंधी कानून अपेक्षित रूप से प्रभावी नहीं होगा.
समिति द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों के पक्ष में तर्क
समिति के अनुसार, कि उपर्युक्त अनुशंसाएं ‘जनसंख्या नियंत्रण’ (भारत की ‘कुल प्रजनन दर’ में पहले से ही कमी आ रही है) के तर्क की अपेक्षा ‘महिला सशक्तिकरण एवं लैंगिक समानता’ पर अधिक आधारित है. समिति का कहना है, कि कानून के प्रभावी रूप से लागू होने के लिए, शिक्षा और आजीविका तक पहुंच में एक साथ वृद्धि की जानी चाहिए.
आलोचना
- महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस सुझाव का विरोध किया है और कई प्रमाणों का उद्धरण देते हुए यह साबित किया है, कि इस तरह की कार्यवाही का इस्तेमाल, माता-पिता की सहमति के बिना विवाह करने वाले युवा वयस्कों को ‘कैद करने’ के लिए किया जा सकता है.
- साथ ही, इस कदम से कानून के लागू होने के बाद, होने वाले बड़ी संख्या में विवाहों का ‘अपराधीकरण’ हो जाएगा, अर्थात बड़ी संख्या में होने बाले विवाह ‘अपराध’ माने जाएंगे.
इस संदर्भ में वैधानिक प्रावधान
वर्तमान में, कानून के अनुसार, पुरुष तथा महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 21 और 18 वर्ष निर्धारित है.
विवाह हेतु निर्धारित न्यूनतम आयु, व्यस्क होने की आयु से भिन्न होती है. वयस्कता, लैंगिक रूप से तटस्थ होती है.
- भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 के अनुसार, कोई व्यक्ति 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर ‘व्यस्क’ हो जाता है.
- हिंदुओं के लिए, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (iii), में वधू न्यूनतम आयु 18 वर्ष तथा वर के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई है. बाल विवाह गैरकानूनी नहीं है किंतु विवाह में किसी नाबालिग (वर अथवा वधू) के अनुरोध पर विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता है.
- इस्लाम में, नाबालिग के यौवन प्राप्त कर लेने के पश्चात विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ, के तहत वैध माना जाता है.
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अंतर्गत क्रमशः महिलाओं और पुरुषों के लिए विवाह के लिए सहमति की न्यूनतम आयु के रूप में 18 और 21 वर्ष निर्धारित की गयी है.
इस कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता:
महिलाओं में प्रारंभिक गर्भावस्था के जोखिमों को कम करने तथा ‘लैंगिक-तटस्थता’ लाने हेतु महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के पक्ष में कई तर्क दिए जाते रहे हैं.
- प्रारंभिक गर्भावस्था का संबंध बाल मृत्यु दर में वृद्धि से होता है तथा यह माँ के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है.
- विवाह के लिए न्यूनतम आयु की अनिवार्यता तथा नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाने को अपराध घोषित किये जाने के बाद भी, देश में बाल विवाह का काफी प्रचलन है.
- इसके अलावा, एक अध्ययन के अनुसार, किशोर माताओं (10-19 वर्ष) से जन्म लेने वाले बच्चों में युवा-वयस्क माताओं (20-24 वर्ष) से पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में 5 प्रतिशत तक कद में बौने रह जाने की संभावना होती है.
मेरी राय – मेंस के लिए
- शिक्षा को बढ़ावा देना: कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि बाल विवाह में देरी का जवाब शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने में है क्योंकि यह प्रथा एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है।
- स्कूलों में स्किल और बिज़नेस ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन से भी मदद मिलेगी।
- स्कूलों तक पहुँच बढ़ाना: सरकार को दूर-दराज़ के क्षेत्रों से लड़कियों की स्कूलों और कॉलेजों तक पहुँच बढ़ाने पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- जन जागरूकता कार्यक्रम: विवाह की उम्र में वृद्धि पर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है और नए कानून की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
GS Paper 1 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Personal Data Protection (PDP) Bill, 2019
संदर्भ
‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ 2019 (Personal Data Protection (PDP) Bill, 2019) पर, 11 दिसंबर 2019 को भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी की अध्यक्षता में गठित ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (Joint Parliamentary Committee – JPC) द्वारा, अपने गठन के लगभग दो साल बाद, 16 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है.
‘संयुक्त संसदीय समिति’ की प्रमुख अनुशंसाएं
- ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ के मौजूदा शीर्षक से ‘निजी’ (Personal) शब्द को हटाया जाए. इसका उद्देश्य यह दर्शाना है, कि निजता को बेहतर ढंग से सुनिश्चित करने हेतु इस विधेयक में, अनामक किए जा चुके (anonymised) ‘निजी डेटा’ जैसे, ‘गैर-निजी डेटा’ से भी संबंधित प्रावधान किए गए है.
- भारत के बाहर ‘निजी डेटा के हस्तांतरण’ को प्रतिबंधित करने वाले अनुभाग में संशोधन किया जाए और इसमें यह जोड़ा जाए कि “संवेदनशील निजी डेटा को, केंद्र सरकार के अनुमोदन के बगैर, किसी भी विदेशी सरकार या एजेंसी के साथ साझा नहीं किया जाएगा.
- भारत में किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को, उसकी मूल कंपनी (जो इसकी सेवाओं के लिए प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करती है) द्वारा देश में अपना कार्यालय स्थापित नहीं करने तक, संचालन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
- ‘संयुक्त संसदीय समिति’ ने मीडिया को विनियमित करने के लिए एक अलग नियामक निकाय की स्थापना का प्रस्ताव किया है.
- किसी व्यक्ति द्वारा ‘अज्ञात’ (de-identified) किए जा चुके डेटा को फिर से ‘अभिज्ञात’ (Identified) किए जाने पर, उसे तीन साल तक का कारावास, अथवा 2 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों, की सजा हो सकती है.
- विधेयक के नाम से ‘निजी’ शब्द हटा दिया जाना चाहिए.
- केंद्र सरकार, किसी भी सरकारी एजेंसी को विशेष परिस्थितियों में ही कानून से छूट दे सकती है.
इन सिफारिशों एवं यूरोपीय संघ के विनियमों की तुलना
‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ पर ‘संयुक्त संसदीय समिति’ की सिफारिशें कुछ पहलुओं पर ‘यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन’ (European Union’s General Data Protection Regulation – GDPR) जैसे वैश्विक मानकों के समान हैं.
समानताएं
- सहमति: उपयोगकर्ताओं को उनके डेटा को संसाधित करने के तरीके के बारे में भलीभांति जानकारी देना चाहिए ताकि वे संबंधित मामलों में ‘सहमति’ देने अथवा बाहर निकलने पर निर्णय ले सकें.
- सुरक्षा उल्लंघन: डेटा-लीक होने के 72 घंटों के भीतर अधिकारियों को ‘सुरक्षा उल्लंघन’ के बारे में सूचित किया जाना चाहिए.
- परिवर्तन अवधि (Transition period): ‘सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन’ (GDPR) के प्रावधानों को लागू करने के लिए दो साल की ‘परिवर्तन अवधि’ का निर्धारण.
- डेटा न्यासी (Data fiduciary): यूरोपीय संघ के कानून के तहत, डेटा प्रोसेसिंग के उद्देश्य और पद्धति निर्धारित करने हेतु, कोई भी प्राकृतिक या कानूनी व्यक्ति, सार्वजनिक प्राधिकरण, एजेंसी या निकाय ‘डेटा न्यासी’ हो सकता है. भारत में ‘डेटा न्यासी’ के रूप में ‘गैर-सरकारी संस्थाएं’ (NGOs) को भी शामिल किया गया है.
डेटा संरक्षण प्राधिकरण
संयुक्त संसदीय समिति ने ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ (Data Protection Authority – DPA) का गठन किए जाने की संस्तुति की है:
- डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी (DPA), निजता एवं निजी डेटा के साथ-साथ गैर-निजी डेटा से भी संबंधित मामलों का समाधान करेगी.
- संरचना: ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति, कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक चयन समिति की सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी.
- समिति के अन्य सदस्यों में ‘भारत के महान्यायवादी, सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय के सचिव तथा और विधि मंत्रालय के सचिव’ शामिल होंगे.
- नामित सदस्य: केंद्र द्वारा एक स्वतंत्र विशेषज्ञ और आईआईटी तथा आईआईएम से एक-एक निदेशक नामित किया जाएगा.
मेरी राय – मेंस के लिए
नीति निर्माताओं को विश्व स्तर पर सफल होने के लिये भारतीय उद्यमियों की परिवर्तनकारी शक्ति पर विश्वास करना चाहिये और इन उद्यमियों को गोपनीयता और डेटा प्रवाह के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने का प्रयास करना चाहिये। यूरोपीय संघ के डेटा स्थानांतरण मॉडल (EU’s Data Transfer Model) और CLOUD अधिनियम से भी कुछ प्रावधानों का समावेश किया जाना चाहिये।
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Tamil Nadu’s State Song, and the HC order that provoked Govt to make standing for it mandatory
संदर्भ
तमिलनाडु सरकार द्वारा ‘तमिल मातृभूमि’ की स्तुति में गाए जाने वाले एक प्रार्थना गीत ‘तमिल थाई वज़्थु’ (Tamil Thai Vaazhthu) को राजकीय गीत घोषित किया गया है.
एक सरकारी आदेश के माध्यम से, गीत के गायन के दौरान विद्यमान सभी लोगों, दिव्यांग व्यक्तियों को छोड़कर, को खड़े रहने का निर्देश दिया गया है.
संबंधित विवाद
तमिलनाडु सरकार का यह निर्णय मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के ‘कैन. इलांगो बनाम राज्य’ मामले (Kan. Ilango v. State case) में हाल के फैसले के बाद आया है.
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था, कि ‘तमिल थाई वजथु’ केवल एक प्रार्थना गीत है, और अभी ऐसा कोई वैधानिक या कार्यकारी आदेश नहीं बना है, जिसमें उपस्थित लोगों को ‘तमिल थाई वज़थु’ गाए जाने पर खड़ा रहना अनिवार्य किया गया हो.“
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए निर्णय
- उच्च न्यायालय ने वर्ष 1986 के ‘बिजो इमैनुएल बनाम केरल राज्य’ मामले (Bijoe Emmanuel vs. State of Kerala case, 1986) का उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने ‘यहोवा के साक्षी’ (Jehovah’s Witnesses) संप्रदाय के तीन बच्चों के स्कूल में पुनः प्रवेश का आदेश दिया था. इन बच्चों को राष्ट्रगान गाने से इनकार करने के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था, कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य करता है.
- फिर, सुप्रीम कोर्ट ने ‘श्याम नारायण चौकसे बनाम भारत संघ’ (2017) मामले में निर्देश दिया था, कि फिल्म शुरू होने से पहले सभी सिनेमा हॉलों में राष्ट्रगान बजाया जाए और इस दौरान वहां उपस्थित सभी लोगों को खड़े रहना अनिवार्य होगा. बाद में अदालत ने अपने इस मूल निर्देश को संशोधित करते हुए, राष्ट्रगान प्रसारण के दौरान खड़ा होना “वैकल्पिक और गैर-अनिवार्य” बना दिया.
हाईकोर्ट द्वारा उठाए गए सवाल
उच्च न्यायालय ने कहा, कि यद्यपि “यह सच है कि “तमिल थाई वज़्थु’ के गायन के दौरान श्रोतागण पारंपरिक रूप से खड़े हो जाते हैं, सवाल यह है कि क्या यही सम्मान प्रदर्शित करने का एकमात्र तरीका है”.
- जब हम बहुलवाद और विविधता को मामने के बारे में गर्व व्यक्त करते हैं, तो इस बात पर जोर देना कि सम्मान प्रदर्शित करने का केवल एक ही तरीका हो सकता है, केवल पाखण्ड है.
- साथ ही, यदि लोग केवल उनके लिए बनाए गए किसी कानून की वजह से, किसी का सम्मान करते हैं तथा यह “झूठा सम्मान” होगा.
संबंधित चिंताएं
- देशभक्ति की निगरानी करने वाले (Vigilantes), राज्य-गीत के गायन के दौरान किसी के खड़े न होने पर उसके साथ अभद्रता या मार-पीट कर सकते हैं.
- राष्ट्र-गौरव अपमान-निवारण अधिनियम, 1971 (Prevention of Insults to National Honour Act, 1971) के तहत इस तरह के प्रतिबंध लगाने संबंधी कोई प्रावधान नहीं किया गया है.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : National Program for Government Schools: Responsible AI for Youth
संदर्भ
हाल ही में इलेक्ट्रोनिक्स और सूचना प्रोद्योगिकी राज्य मंत्री ने “युवाओं के लिए जिम्मेदार AI कार्यक्रम के तहत शीर्ष 20 परियोजनाओं के संचालकों के साथ बैठक की.
उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम सरकारी स्कूलों (कक्षा 8 से 12) के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य युवाओं को “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” या “कृत्रिम बुद्धिमता” के लिए तैयार रहने हेतु सशक्त बनाना और भारत में AI कौशल अंतराल को कम करने में मदद करना है.
पृष्ठभूमि
इस कार्यक्रम की शुरुआत मई 2020 मे राष्ट्रीय ई-गवर्नंस डिविजन एवं इंटेल इंडिया द्वारा की गई थी. यह कार्यक्रम सम्पूर्ण भारत के सरकारी स्कूलों के छात्रों तक पहुँचने एवं उन्हें समावेशी तरीके से कुशल कार्यबल का हिस्सा बनने का अवसर प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बारे में
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर साइंस की वह शाखा है जो ‘कंप्यूटर इनेबल्ड रोबोटिक्स’ को इस योग्य बनाता है कि वह सूचनाओं को प्रोसेस कर उसी प्रकार परिणाम उत्पन्न करें, जिस प्रकार एक मनुष्य करता है.
- AI सिस्टम अनुभव से सीखता है तथा सीखे हुए ज्ञान का उपयोग तर्क करने, जटिल समस्याएं हल करने, भाषाओं को समझने तथा दृष्टिकोण निर्माण में करता है.
भारत मे AI की स्थिति
- इंफोसिस के को-फाउंडर गोपालकृष्णन की रिसर्च एजेंसी Itihaasa द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत (12,135 शोधपत्रों) को आर्टिफिशियल इंटेलिजेस क्षेत्र में अनुसंधान के लिए विश्व में तीसरा स्थान दिया गया.
- चीन (37,918 शोधपत्र) और USA (32,421 शोधपत्र) क्रमश: पहले व दूसरे स्थान पर रहे.
- भारत में वर्तमान में निजी क्षेत्र द्वारा AI का उपयोग बेहतर सेवाएं प्रदान करने, बाज़ार के पैटर्न पता करने, लैंग्वेज प्रोसेसिंग, लोगों को सलाह देने में किया जा रहा है. विदित हो कि जानी-मानी कम्पनी Adobe ने हैदराबाद में AI लैब स्थापित की है.
मेरी राय – मेंस के लिए
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की संकल्पना बहुत पुरानी है। ग्रीक मिथकों में ‘मैकेनिकल मैन’ की अवधारणा से संबंधित कहानियाँ मिलती हैं अर्थात् एक ऐसा व्यक्ति जो हमारे किसी व्यवहार की नकल करता है। प्रारंभिक यूरोपीय कंप्यूटरों को ‘लॉजिकल मशीन’ की तरह डिजाइन किया गया था यानी उनमें बेसिक गणित, मेमोरी जैसी क्षमताएँ विकसित कर इनका मैकेनिकल मस्तिष्क के रूप में इस्तेमाल किया गया था। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक उन्नत होती गई और कैलकुलेशंस जटिल होते गए, उसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की संकल्पना भी बदलती गई। इसके तहत इनको मानव व्यवहार की तरह विकास करने की कोशिश की गई, ताकि ये अधिकाधिक इस तरह से इंसानी कामों को करने में सक्षम हो सकें, जिस तरह से आमतौर पर हम सभी करते हैं।
गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई का कहना है कि मानवता के फायदे के लिये हमने आग और बिजली का इस्तेमाल तो करना सीख लिया, पर इसके बुरे पहलुओं से उबरना जरूरी है। इसी प्रकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी ऐसी ही तकनीक है और इसका इस्तेमाल कैंसर के इलाज में या जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में भी किया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का निर्माण हमारी सभ्यता के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से है। लेकिन सच यह भी है कि यदि इसके जोखिम से बचने का तरीका नहीं ढूँढा, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि तमाम लाभों के बावजूद आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस के अपने खतरे हैं। कुल मिलाकर एक शक्तिशाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उदय हमारे लिये फायदेमंद भी हो सकता है और नुकसानदेह भी। फिलहाल हम नहीं जानते कि इसका स्वरूप आगे क्या होगा, इसीलिये इस संदर्भ में और ज़्यादा शोध किये जाने की ज़रूरत है।
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: अर्थव्यवस्था.
Topic : Cost of Living Index 2021
संदर्भ
इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट (Economic Intelligence Unit – EIC) ने हाल ही में कॉस्ट ऑफ लिविंग इंडेक्स 2021 निर्गत किया.
सूचकांक सम्बन्धी मुख्य तथ्य
- इस रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल का तेल अबीब दुनिया का सबसे महंगा शहर है. इसके बाद पेरिस दूसरे और सिंगापुर तीसरे स्थान पर रहे तथा ज्यूरिख और हांगकांग क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर थे.
- भारतीय शहरों में से कोई भी पहले 20 रैंक में शामिल नहीं है.
- इस सूचकांक से पता चलता है कि दुनिया में वस्तुओं और सेवाओं की कुल कीमतों में 3.5% की वृद्धि हुई है.
- कोविड 19 महामारी और इसके प्रतिबंधों के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला बहुत प्रभावित हुई थी. इससे पूरी दुनिया में उत्पादन और व्यापार प्रभावित हुआ और अंततः मूल्य वृद्धि का कारण बना.
- कीमतों में सर्वाधिक वृद्धि ईरान के शहर तेहरान में दर्ज की गई. यह 2020 में 79 रैंक से उछलकर 2021 में 297 रैंक पर आ गया. यह मुख्य रूप से अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण था.
सूचकांक के बारे में
- कॉस्ट ऑफ लिविंग इंडेक्स (Cost of Living Index) दुनिया के 173 शहरों के रहने की लागत को ट्रैक करता है.
- यह प्रतिदिन 200 से अधिक उत्पादों और सेवाओं की तुलना करता है.
- यह इंडेक्स न्यूयॉर्क में कीमतों के मुकाबले कीमतों को चिह्नित करता है. इस प्रकार, अमेरिकी डॉलर से अधिक मजबूत मुद्राओं वाले शहर रैंकिंग में उच्च दिखाई देते हैं.
द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU)
- द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (The Economist Intelligence Unit) द इकोनॉमिस्ट ग्रुप का शोध एवं विश्लेषण प्रभाग है, जो द इकोनॉमिस्ट अखबार की सिस्टर कंपनी है.
- EIU लोकतंत्र सूचकांक (Democracy Index) भी जारी करता है, जो 165 स्वतंत्र राज्यों और दो क्षेत्रों में दुनिया भर में लोकतंत्र की स्थिति का एक स्नैपशॉट प्रदान करता है.
- EIU के लोकतंत्र सूचकांक (Democracy Index) में भारत 53वें स्थान पर है.
Prelims Vishesh
Operation Olivia :-
हर साल, 1980 के दशक की शुरुआत से भारतीय तटरक्षक बल द्वारा “ऑपरेशन ओलिविया” (Operation Olivia) चलाया जाता है, जिसके दौरान नवंबर से दिसंबर तक ‘घोसला बनाने और प्रजनन करने’ हेतु ओडिशा तट पर एकत्र होने वाले ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने में मदद की जाती है.
UNSC Resolution 2615 :-
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ का संकल्प 2615
- हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा ‘संकल्प 2615’ (Resolution 2615) सर्वसम्मति से पारित किया गया है. इसमें, अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए तालिबान के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने संबंधी प्रावधान किए गए हैं.
- इस प्रस्ताव में, अफ़ग़ानिस्तान में बुनियादी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने हेतु, आवश्यक मानवीय सहायता और अन्य गतिविधियों को शामिल किया गया है.
- संकल्प (2615) में हर छह महीने में इन छूटों की समीक्षा करना अनिवार्य किया गया है.
- इसमें आपातकालीन राहत समन्वयक से ‘सहायता के वितरण और कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं’ के बारे में हर छह महीने में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ को को जानकारी देने को कहा गया है.
- इसमें मानवाधिकारों का सम्मान करने और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करने के लिए “सभी पक्षों से आह्वान” भी किया गया है.
Pralay missile :-
- DRDO ने हाल ही में स्वदेशी रूप से विकसित सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल ‘प्रलय’ (Pralay) का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किया.
- प्रलय’ भारत की पहली पारंपरिक अर्ध-बैलिस्टिक मिसाइल है. एक अर्ध-बैलिस्टिक मिसाइल का प्रक्षेपवक्र कम होता है, और चूंकि यह काफी हद तक बैलिस्टिक जैसी ही होता है, अतः यह उड़ान में पैंतरेबाज़ी करने में सक्षम है.
- मिसाइल को इस तरह से विकसित किया गया है, कि यह इंटरसेप्टर मिसाइलों को निष्फल करने में सक्षम है और हवा में एक निश्चित दूरी के बाद अपना मार्ग बदलने में भी सक्षम है.
- प्रलय मिसाइल, एक ठोस प्रणोदक रॉकेट मोटर और कई नई तकनीकों से संचालित है.
- रेंज: मिसाइल की रेंज 150-500 किलोमीटर है और इसे मोबाइल लॉन्चर से लॉन्च किया जा सकता है.
- भारतीय सेना की शस्त्र-सूची में ‘प्रलय’ सतह से सतह पर मार करने वाली ‘सबसे लंबी दूरी’ की मिसाइल होगी.
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