Sansar Daily Current Affairs, 04 March 2019
GS Paper 1 Source: The Hindu
Topic : Kanyashree scheme
संदर्भ
विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि कन्याश्री वृत्ति (Kanyashree stipends) मानव तस्करी को रोकने में सक्षम सिद्ध नहीं हो रही है. उनका कथन है कि मानव तस्करी एक जटिल समस्या है जिसका समाधान बालिकाओं को पाठशालाओं में बनाए रखने के लिए केवल आर्थिक सहायता देने से नहीं होगा.
कन्याश्री योजना क्या है?
कन्याश्री शशर्त नकद हस्तांतरण की एक योजना है जिसका उद्देश्य बालिकाओं की स्थिति और कल्याण में सुधार लाना है. इस उद्देश्य को पाने के लिए बालिका को पाठशाला में पढ़ते रहने के लिए और उसके विवाह को 18 वर्ष की उम्र तक टालने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है. इस योजना को पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार मिला था.
योजना का प्रदर्शन
इस योजना के माध्यम से बालिकाओं के बैंक खातों में प्रत्येक वर्ष तब तक नकद जमा किया गया जब तक वे पाठशाला में पढ़ती रहीं और जब तक वे अविवाहित रहीं. इस योजना के फलस्वरूप बाल विवाह में अच्छी-खासी कमी देखी गई और साथ ही स्त्री-शिक्षा और स्त्री-सशक्तीकरण में वृद्धि हुई.
GS Paper 2 Source: Down to Earth
Topic : Rare diseases day
संदर्भ
दुर्लभ रोग दिवस (Rare disease day) प्रत्येक वर्ष की भाँति 2019 में भी फरवरी महीने के अंतिम दिन अर्थात् इस बार 28 फरवरी को मनाया गया. यह दिवस दुर्लभ रोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इन रोगों से ग्रस्त जनों और उनके परिवारों तक चिकित्सा उपलब्ध कराने की स्थिति में सुधार लाने के लिए मनाया जाता है.
दुर्लभ रोग क्या होता है?
- दुर्लभ रोग अर्थात् अनाथ रोग (orphan disease) एक ऐसा रोग है जिससे बहुत कम लोग ग्रस्त होते हैं.
- अधिकांश दुर्लभ रोग आनुवंशिक होते हैं और ये किसी व्यक्ति के पूरे जीवन तक चलते हैं, चाहे इसके लक्षण तुरंत न दिखें. जहाँ तक यूरोप की बात है तो वहाँ दुर्लभ रोग अथवा विकृति उस रोग अथवा विकृति को कहते हैं जिसकी चपेट में 2,000 नागरिकों में से एक से भी कम नागरिक आता है.
- दुर्लभ रोगों में भाँति-भाँति के अनेक लक्षण होते हैं जो रोगानुसार बदलते रहते हैं.
- यदि एक से अधिक रोगी किसी एक दुर्लभ रोग से ग्रस्त हैं तो भी उनमें अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं. बहुत से लक्षण ऐसे होते हैं जो सामान्य लक्षण हैं अतः किसी दुर्लभ रोग के निदान में बहुधा भूल हो जाती है.
- भारत में सबसे अधिक पाए जाने वाले दुर्लभ रोग हैं – हीमोफिलिया, थैलसीमिया, सिकल-सेल एनीमिया, बच्चों में प्राथमिक इम्युनो की कमी, ऑटो-इम्यून रोग, लाइसो सोमल स्टोरेज विकृतियाँ, जैसे – पोम्पे डिजीज, हिर्स्चप्रंग रोग, गौचर की बीमारी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हेमांगीओमास और कुछ प्रकार के मस्कुलर डिस्ट्रोफी.
समस्या और निदान
- सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह प्रत्येक नागरिक को स्वास्थ्य की देखभाल सम्बन्धी सुविधा दे. संविधान की धारा 21, 38 और 47 में भी इस बात का उल्लेख है.
- जो रोग दुर्लभ हैं उनसे ग्रस्त रोगी भी दुर्लभ होते हैं. कहने का अभिप्राय यह है कि यदि कोई कम्पनी इनके लिए दवा बनाए तो उसे बहुत कम मात्रा में दवा बनानी होगी. इस कारण यह मुनाफे का सौदा नहीं है. अतः आवश्यकता है कि ऐसी दवा कंपनियों को आगे आने के लिए उत्प्रेरणा देकर प्रोत्साहित किया जाए.
- दवा बनाने वाली कंपनियाँ कम मात्रा में बनी दवाइयों से अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहेंगी और इसलिए इनका दाम बहुत ऊँचा रखना चाहेंगी. इसलिए यह आवश्यक होगा कि सरकार अनाप-शनाप मूल्य रखने से इन्हें रोकने के लिए एक विनियमन प्रणाली स्थापित करे.
- यह सच है कि दुर्लभ रोग हजारों में एक को ही होता है परन्तु उस एक आदमी के जीवन का भी मोल होता है. अतः सरकार को चाहिए कि इस विषय में एक राष्ट्रीय नीति लेकर आये जिससे दुर्लभ रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों को देखभाल उपलब्ध हो सके.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : BOLDect Along International Border in Dhubri
संदर्भ
केन्द्रीय गृहमंत्री ने असम के धुबरी जिले में भारत- बांग्लादेश सीमा पर सीआईबीएमएस (व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली) के तहत बोल्ड- क्यूआईटी (बॉर्डर इलेक्ट्रोनिकली डोमिनेटेड क्यूआरटी इंटरसेप्शन टेक्निक) परियोजना का उद्घाटन किया.
बोल्ड- क्यूआईटी परियोजना के बारे में
- बोल्ड- क्यूआईटी सीआईबीएमएस (व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली) के तहत तकनीकी प्रणाली स्थापित करने की एक परियोजना है जो ब्रहमपुत्र एवं इसकी सहयक नदियों के बिना बाड़ वाले नदी क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के सेंसर से सुसज्जित करता है.
- अब ब्रहमपुत्र नदी के समस्त क्षेत्र को माइक्रोवेव कम्युनिकेशन, ओएफसी केबल, डीएमआर कम्युनिकेशन, दिन और रात निगरानी कैमरों और घुसपैठ का पता लगाने वाली प्रणाली द्वारा उत्पन्न डेटा नेटवर्क के साथ कवर कर लिया गया है.
- ये आधुनिक गैजेट सीमा पर बीएसएफ कंट्रोल रूम को फीड प्रदान करते हैं और अवैध सीमा पार करने / अपराधों की किसी भी आशंका को विफल करने में बीएसएफ त्वरित कार्रवाई टीमों को सक्षम बनाते हैं.
बोल्ड- क्यूआईटी परियोजना की आवश्यकता क्यों?
- सीमा सुरक्षा बल बांग्लादेश के साथ 4096 लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है.
- विभिन्न स्थानों पर भूगोलिक बाधाओं के कारण सीमा बाड़ लगाना संभव नही है.
- असम के धुबरी जिले में सीमा क्षेत्र का 61 किलोमीटर का हिस्सा, जहां ब्रहमपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है, विशाल भू-भाग और अनगिनत नदी चैनलों से मिलकर बनता है जिससे इस क्षेत्र में विशेष रूप से बरसात के मौसम में, सीमा की रखवाली एक दुष्कर कार्य बन जाता है.
लाभ
इस परियोजना का कार्यान्वयन बीएसएफ को न केवल सभी प्रकार के सीमा पार अपराधों पर अंकुश लगाने में सहायता प्रदान करेगा बल्कि टुकड़ियों को 24 घंटे मानव निगरानी से भी राहत मिलेगी.
GS Paper 3 Source: Down to Earth
Topic : Red sanders is now free of export restrictions
संदर्भ
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की एजेंसी – विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade – DGFT) – ने अपनी निर्यात नीति में संशोधन करते हुए लाल चंदन के निर्यात की अनुमति इस शर्त पर दी है कि यह लकड़ी खेतों से आई हो.
अनुमति आवाश्यक क्यों थी?
यद्यपि कोई किसान लाल चंदन उगा सकता है, तथापि यदि वह चाहे कि उसे काट दे और अन्यत्र ले जाए तो उसको अनुमति लेनी पड़ती है जो उतना आसान नहीं होता है. भारत के अंदर लाल चंदन का दाम उतना नहीं है जबकि विदेशों में इसका दाम दुगुना मिलता है. विदेश व्यापार नीति के प्रतिषेध के कारण लाल चंदन का निर्यात संभव नहीं था.
ऐसा अनुमान है कि भारत में 3,000 से अधिक ऐसे किसान हैं जो पुरानी निर्यात नीति के कारण लाल चंदन निर्यात नहीं कर पाते थे. लाल चंदन तभी निर्यात होता था जब तस्करों से इन्हें जब्त कर लिया जाता था. इसके लिए अलग-अलग राज्य सरकारों में अलग-अलग नियम थे. अब राष्ट्र का स्तर पर नियम बदल जाने के कारण लाल चन्दन के किसानों को लाभ होगा.
लाल चंदन क्या है?
लाल चंदन, जिसका वनस्पतिशास्त्रीय नाम Pterocarpus santalinus है, अपने गाढे रंग और औषधीय गुणों के कारण जाना जाता है और एशिया, विशेषकर चीन और जापान, में इसकी माँग बहुत अधिक है. वहाँ लाल चन्दन का उपयोग प्रसाधन और चिकित्सकीय उत्पादों के साथ-साथ फर्नीचर, काष्ठ शिल्प और संगीत उपकरणों में होता है.
लाल चंदन की लोकप्रियता इसी बात से पता चलती है कि एक टन लाल चंदन का दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 50 लाख से एक करोड़ रू. तक है.
निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगा था?
- लाल चंदन आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में बहुतायत से पाया जाता है पर इसकी कटाई इतनी अधिक हो रही थी कि 1980 के दशक में भारत सरकार ने इसको CITES की अनुसूची II में डाल दिया था जिसका अर्थ यह हुआ कि इस पेड़ को बचाने के लिए इसकी खपत को नियंत्रित करना आवश्यक है.
- कालांतर में 2000 में आकर इसके निर्यात को प्रतिबंधित ही कर दिया गया.
- परन्तु 2012 में CITES ने भारत से लाल चंदन के निर्यात के लिए एक कोटा निर्धारित किया कि 310 टन तक खेतों में उगाये गये लाल चंदन की लकडियाँ निर्यात हो सकती हैं. जहाँ तक जब्त की गई ऐसी लकड़ियों की बात है तो उसके लिए यह मात्रा 11,806 टन निर्धारित की गई थी.
GS Paper 2 Source: Down to Earth
Topic : SC rebukes Haryana govt for throwing open Aravallis for realtors, miners
संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों के संरक्षण-विषयक कानूनों को कमजोर करने के लिए हरियाणा सरकार को फटकार लगाईं है.
क्या मामला है?
हाल ही में हरियाणा सरकार ने पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) में कतिपय सुधार प्रस्तावित किये हैं. इस कार्रवाई से गुरुग्राम, फरीदाबाद, नूँह, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जैसे मास्टर योजनाओं के तहत अधिनियम द्वारा दी गई सुरक्षा लगभग समाप्त हो गई है. न्यायालय ने सरकार को नए संशोधन को लागू करने से मना किया है और खेद प्रकट किया है कि न्यायालय की चेतावनी के बावजूद ऐसा इसलिए किया गया कि बिल्डरों को लाभ हो सके.
अरावली का माहात्म्य
- अरावली पहाड़ियाँ विश्व की प्राचीनतम शृंखलाओं में से एक है. ये थार मरुस्थल को दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों तक पहुँचने से रोकती हैं.
- हरियाणा में इन पहाड़ियों पर 400 से अधिक प्रजातियों के देशी पेड़, झाड़ियाँ और घास-पात हैं. साथ ही यहाँ 200 देशी और बाहर से उड़कर आने वाली चिड़ियों की प्रजातियाँ रहती हैं. इसक वन्यक्षेत्र में तेंदुएं, सियार, लकड़बग्घे, नेवले और सीवेट बिल्लियाँ पाई जाती हैं.
- अरावली पहाड़ियाँ भूमिजल के फिर से भर जाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं. विदित हो कि यह क्षेत्र पानी के अभाव के लिए जाना जाता है और यहाँ गर्मियों में भीषण गर्मी पड़ती है.
- अरावली पहाड़ियों के जंगल हवा को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करते हैं. विदित हो कि वाहनों एवं उद्योगों से उत्पन्न यहाँ की हवा वर्ष-भर प्रदूषित रहती है. ऐसे में अरावली का माहात्म्य समझा जा सकता है.
चिंताएँ
- 2017 के एक प्रतिवेदन में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया था कि हरियाणा में अरावली शृंखला के जंगल भारत के सबसे अधिक जीर्ण-शीर्ण जंगल हैं और यहाँ के अधिकांश देसी पौधे विलुप्त हो गये हैं.
- जंगलों के तेजी से काटे जाने और निर्माण की गतिविधियों के कारण अरावली का अनूठा परिदृश्य नष्ट हो रहा है और इसके संरक्षण पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है.
- पिछले वर्ष उत्तर भारत में असामान्य धूल की आंधियाँ और बवंडर चले थे और कभी-कभी साथ में ओले भी पड़े थे. ऐसा विशेषकर उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हुआ था. ऐसी आँधियों का बार-बार आना और तीव्रता से आना इस बात का संकेत है कि अरावली क्षेत्र में मरुभूमि का विस्तार हो रहा है.
Prelims Vishesh
Centre for Disability Sports’ to be set up at Gwalior :-
- मध्य प्रदेश के ग्वालियर में केंद्र सरकार एक दिव्यांग खेलकूद केंद्र स्थापित करने जा रही है.
- इस केंद्र की स्थापना से दिव्यान्गों को समाज में घुलने-मिलने में सहायता मिलेगी और उनके बीच राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ेगी.
Rajasthan’s Gujjar quota faces a legal challenge :-
- राज्य के गूजर समुदाय को राज्य में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 5% आरक्षण देने के लिए तैयार किए गये राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन विधेयक, 2019 को जोधपुर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका द्वारा चुनौती दी गई.
- याचिकाकर्ताओं का मूल तर्क है कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती जबकि गूजरों को आरक्षण देने से यह सीमा टूट जाती है.
Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA
[vc_message message_box_color=”purple” icon_fontawesome=”fa fa-file-pdf-o”]January, 2019 Sansar DCA is available Now, Click to Download[/vc_message]