Sansar Daily Current Affairs, 03 May 2019
GS Paper 2 Source: Down to Earth
Topic : National Policy on Safety, Health and Environment at the Workplace (NPSHEW)
संदर्भ
आज से लगभग 10 वर्ष पहले सरकार द्वारा कार्यस्थल में सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के विषय में राष्ट्रीय नीति बनाने की घोषणा हुई थी, परन्तु अभी इस दिशा में कार्य नहीं हुआ है. मात्र कारखानों, खदानों, बंदरगाहों और भवन निर्माण क्षेत्रों के लिए ही कुछ कानून बने हैं जो काम करते समय सुरक्षा और स्वास्थ्य का प्रावधान करने से सम्बंधित हैं.
पृष्ठभूमि
कार्य स्थल पर सुरक्षा के विषय में कानून बनाने की आवश्यकता विवाद से परे है. पिछले साढ़े तीन दशकों में 81 से अधिक औद्योगिक दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं जिनसे 2.3 लाख श्रमिकों पर बुरा प्रभाव पड़ा और 2,500 की मृत्यु भी हो गई. इसके अतिरिक्त कृषि, सेवा और परिवहन ऐसे प्रक्षेत्र बचे हुए हैं जहाँ कार्यस्थल पर सुरक्षा कि दृष्टि से अभी तक कोई कानून नहीं बना है.
वर्तमान समस्याएँ एवं चुनौतियाँ
- कारखाना अधिनियम ठीक से लागू नहीं हुआ है. 1948 के कारखाना अधिनियम के अनुसार राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने-अपने कारखाना नियम बनाएँ और अधिनियम तथा नियमों को अपने-अपने प्रशासनिक तन्त्र के माध्यम से लागू करवाएं. यहाँ पर प्रशासनिक तंत्र से अभिप्राय जिन पदों आदि से है, वे हैं – कारखाना निरीक्षक, औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य निदेशालय. ये दोनों श्रम विभाग के अन्दर आते हैं. इन्हें पर्याप्त कर्मी नहीं मिले हैं, अतः अधिनियम और कानून को ठीक से लागू करना संभव नहीं हो पा रहा है.
- बंदरगाहों के लिए बने अधिनियम और विनियम अभी तक मात्र बड़े-बड़े बंदरगाहों में ही लागू हो सके हैं. ज्ञातव्य है कि इनके लिए बंदरगाह श्रमिक अधिनियम, 1986 तथा विनियम, 1990 बने हुए हैं. इनके लिए भी राज्य सरकारों को नियम बनाने को कहा गया था, परन्तु अभी तक किसी भी राज्य में ऐसे अधिनियम अथवा विनियम नहीं बने हैं.
- भवन निर्माण एवं अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 श्रमिकों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य से सम्बंधित प्रावधानों की व्यवस्था करता है. परन्तु अधिनियम के इस विषय में किये गये प्रावधान अत्यंत ही तकनीकी प्रकृति के हैं और इसलिए इन्हें सही ढंग और सही भावना से लागू नहीं किया जा रहा है.
- व्यवसायगत सुरक्षा पर अभी तक बहुत कम शोध हुआ जोकि अत्यावश्यक है. इसका कारण यह है कि इस प्रकार के शोध के लिए देश में उपयुक्त संस्थाओं की संख्या सीमित है और जो भी संस्था हैं उनके पास शोधकार्य को कारगर रूप से करने की सुविधा नहीं है.
- चाहे कोई भी प्रक्षेत्र हो व्यवसायगत सुरक्षा और स्वास्थ्य से सबंधित आँकड़े जमा करना बहुत दिनों से समस्या बना हुआ है, जिसपर यथोचित ध्यान नहीं दिया गया. उदाहरण के लिए श्रम मंत्रालय ने फरवरी 2019 में जो आँकड़े संसद में दिए हैं वे 2016 तक के ही हैं.
- कृषि कार्य में सुरक्षा और स्वास्थ्य से सम्बंधित कानून नहीं होने के कारण भारत विश्व श्रम संगठन (ILO) संधि, 155 पर हस्ताक्षर नहीं कर पाया है. ज्ञातव्य है कि कृषि प्रक्षेत्र भारत की आर्थिक गतिविधियों का सबसे बड़ा प्रक्षेत्र है, अतः इससे सम्बंधित कानून बनाना अत्यावश्यक है.
- इसी प्रकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए भी ऐसे कानून नहीं बने हैं जो कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में सहायक हों.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : PCPNDT Act
संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम’ (Pre-Conception and Pre-natal Diagnostic Techniques- PCPNDT) के नियमों और प्रावधानों को कम करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
पृष्ठभूमि
गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका ‘प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के महासंघ’ ने दायर की थी। ‘प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के महासंघ’ ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि अधिनियम के तहत कागज़ी कार्यों में लिपिकीय त्रुटियों/गलतियों के कारण इस उदार पेशे के सदस्यों के लाइसेंस निलंबित किये जा रहे हैं। उनके अनुसार, यह अधिनियम वास्तविक लिंग निर्धारण के अपराध में तथा रिकॉर्ड के रखरखाव और लिपिकीय त्रुटि के कारण होने वाली गलतियों को वर्गीकृत करने में विफल रहता है।
मुख्य तथ्य
- सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि अधिनियम के किसी भी पक्ष के कमज़ोर पड़ने से भ्रूण हत्या को रोकने का इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।
- न्यायालय का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत बालिका के जीवन का अधिकार औपचारिकता मात्र रह जाएगा।
- इस अधिनियम के लागू होने के 24 वर्ष पश्चात् भी 4202 मामलों में से केवल 586 मामलों में सज़ा सुनाई गई है। यह आँकड़ा इस सामाजिक कानून को लागू करने में उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों को दर्शाता है।
PCPNDT अधिनियम से सम्बंधित तथ्य
- गर्भाधान के पूर्व या बाद लिंग चयन तकनीक के उपयोग पर प्रतिबंध
- लिंग चयनात्मक गर्भपात के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के दुरूपयोग को रोकना.
- ऐसे तकनीकों को विनियमित करना.
- इस कानून के अंतर्गत, जिन सभी केन्द्रों के पास गर्भाधान पूर्व या प्रसव-पूर्व संभावित रूप से भ्रूण के लिंग का परीक्षण करने वाला कोई भी उपकरण है, तो उन्हें समुचित प्राधिकारियों के साथ पंजीकृत होना चाहिए.
- यह लिंग का पता लगाने या निर्धारित करने के लिए ऐसी तकनीकों के सम्बन्ध में विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता है.
- परिसर को सील करना और साक्षियों को प्रवर्तन में लाने सहित विधि के उल्लंघनकर्ताओं की मशीनों, उपकरणों और अभिलेखों की तलाशी, जब्ती और सील करने के सम्बन्ध में समुचित प्राधिकारियों को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं.
- 2003 में लिंग चयन में समक्ष प्रौद्योगिकी के विनियमन में सुधार हेतु इसमें संशोधन किया गया था.
- गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्तर्गत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रुण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, इसके लिए सहयोग देना व विज्ञापन करना कानूनी अपराध है, जिसमें 3 से 5 वर्ष तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रू. तक का जुर्माना हो सकता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Namami Gange
संदर्भ
आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार नामामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत स्वीकृत 100 नाला निर्माण परियोजनाओं में से 10 योजनाओं को 2015 के पश्चात् चालू कर दिया गया है.
पृष्ठभूमि
गंगा को स्वच्छ बनाने के अभियान में अपशिष्ट प्रवाह के उपचार के लिए संयंत्र चालू करने तथा नए नाले डालने का सर्वाधिक महत्त्व होता है. इसके लिए 28,000 करोड़ रू. की बजट व्यवस्था है जिसमें से 23,000 करोड़ रू. स्वीकृत हो चुके हैं. इस अभियान के लिए निर्धारित समग्र राशि के अंतर्गत 12,000 करोड़ रू. सुंदरीकरण हेतु रखे गये हैं. सुन्दरीकरण में आने वाली गतिविधियाँ हैं – रिवर फ्रंट का निर्माण, घाटों की सफाई और नदी से कचरा हटाना.
नमामि गंगे कार्यक्रम क्या है?
- नमामि गंगे भारत सरकार का एक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य गंगा नदी को कारगर ढंग से स्वच्छ बनाना है. इस लक्ष्य को पाने के लिए इसमें सभी हितधारकों को भी संलग्न किया गया है, विशेषकर गंगा घाटी के उन पाँच राज्यों के हितधारकों को जो राज्य गंगा की घाटी में स्थित हैं, यथा – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल.
- इस कार्यक्रम में जो कार्य किये जाते हैं, वे हैं – नदी की सतह की सफाई, इसमें गिरने वाले नाली प्रवाह का उपचार, रिवर फ्रंटों का विकास, जैव-विविधता का विकास, वनरोपण एवं जन-जागरूकता के कार्य.
कार्यान्वयन
- इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga – NMCG) और राज्यों में स्थित इसके समकक्ष संगठनों, जैसे – राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूह (State Program Management Groups – SPMGs) द्वारा किया जाता है.
- योजना के सही कार्यान्वयन के लिए एकत्रि-स्तरीय प्रणाली गठित करने का प्रस्ताव है. इस प्रणाली के तीन स्तर होंगे जो निम्नवत हैं –
- राष्ट्रीय स्तर पर एक उच्च स्तरीय कार्यदलजिसके अध्यक्ष कैबिनेट सचिव होंगे जिनकी सहायता NMCG करेगी.
- राज्य-स्तर पर एक समितिहोगी जिसकी अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे और जिनकी सहायता SPMG करेगी.
- जिला-स्तर पर एक जिला-स्तरीय समितिहोगी जिसकी अध्यक्षता जिला मजिस्ट्रेट करेंगे.
इस कार्यक्रम में केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों/एजेंसियों के मध्य समन्वय के तन्त्र को सुधारने पर बल दिया गया है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Generalized System of Preference (GSP)
संदर्भ
25 प्रभावशाली अमेरिकी सांसदों के एक समूह ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि को पत्र लिखकर भारत के साथ जनरलाइजड सिस्टम ऑफ प्रेफ्रेंस (GSP) कार्यक्रम जारी रखने का आग्रह किया है.
जनरलाइजड सिस्टम ऑफ प्रेफ्रेंस कार्यक्रम क्या है?
- जीएसपी सबसे बड़ा और सबसे पुराना अमेरिकी व्यापार वरीयता कार्यक्रम है.
- इसके तहत विकासशील देशों को आर्थिक वृद्धि में लाभ दिया जाता है इसलिए यह कार्यक्रम विकासशील देशों के लिए बेहद लाभदायक है.
- वर्तमान में अमेरिका ने 129 देशों को जीएसपी दर्जा दिया है.
- जीएसपी के कारण इन देशों के प्रोडक्ट को अमेरिका में ड्यूटी फ्री एंट्री मिलती है.
भारत पर प्रभाव
इससे भारत के निर्यात पर अब असर नहीं पड़ेगा क्योंकि अभी जो वस्तुएं टैरिफ मुक्त हैं उन पर अमेरिका टैरिफ नहीं लगाएगा. विदित हो कि भारत जीएसपी के तहत अमेरिका को 5.6 अरब डॉलर के सामानों का निर्यात करता है, जिसमें से केवल 1.90 करोड़ डॉलर मूल्य की वस्तुएं ही बिना किसी शुल्क वाली श्रेणी में आती हैं। भारत मुख्य रूप से कच्चे माल एवं जैव रासायनिक जैसी मध्यवर्ती वस्तुओं का निर्यात ही अमेरिका को करता है।
पृष्ठभूमि
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत के निर्यात के विरुद्ध कदम उठाते हुए कहा था कि सामान्य प्राथमिकता प्रणाली यानी जीएसपी के अतर्गत अमेरिका की ओर से भारत को मिलने वाले लाभों से संबंधित निर्णय को 60 दिनों में वापस ले लिया जायेगा. पर अब अमेरिका ने मन बदल लिया है और भारत के साथ आयात और निर्यात दोनों पर भरोसा करने वाली नौकरियों को बढ़ावा देने वाले सौदे को जारी रखने का आग्रह किया है. अमेरिका के द्वारा तर्क दिया गया कि भारत के लिए जीएसपी को समाप्त करने से अमेरिकी कंपनियों को भारत में अपने निर्यात का विस्तार करने में मुश्किल होगी.
अमेरिका का कहना है कि भारत अमेरिका पर ज्यादा टैक्स लगाता है जबकि अमेरिका भारत से आने वाले सामान पर कोई टैक्स नहीं लगाते हैं. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पेपर उत्पादों और हार्ले-डेविडसन बाइक पर भारत के हाई टैरिफ की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि भारत, चीन और जापान जैसे देशों से अमेरिका अरबों डॉलर गंवा रहा है. ट्रंप ने आरोप लगाया था कि ये देश कई समय से अमेरिका को बरगला रहे है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Seismic activity triggered by human actions
संदर्भ
एक नए अध्ययन का निष्कर्ष है कि मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाला भूकम्प प्राकृतिक कारणों से होने वाले भूकम्प से कम दुष्प्रभावी नहीं होता है. विदित हो कि बड़े-बड़े जलाशयों के निर्माण अथवा खनिज तेल और गैस के उत्पादन के लिए भूमि के अन्दर अपशिष्ट जल डालने जैसे मानवीय कृत्यों के कारण भूकम्प हो जाता है.
मुख्य निष्कर्ष
- धरातल के भीतर 1 किमी. अन्दर तक तरल पदार्थ डालने से जो भूकम्प उत्पन्न होता है उसका दायरा तरल पदार्थ के प्रवेश के आस-पास क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहता है.
- धरातल के अन्दर तरल पदार्थ अथवा अपशिष्ट जल डालने से पहले से विद्यमान भ्रंश रेखाओं (fault lines) की आकृति बिगड़ सकती है और उसके चलते भूकम्प हो सकते हैं.
माहात्म्य
कोयना में बहुधा वहाँ के जलाशय के कारण भूकंप होते रहते हैं. इन भूकम्पों के विस्तृत अध्ययन के लिए नोएडा में स्थित राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केंद्र और CSIR – राष्ट्रिय भू-भौतिकी शोध संस्थान, हैदराबाद एक अभियान चला रहे हैं. आशा की जाती है कि इस अध्ययन से धरातल के अत्यंत गहरे भागों में भ्रंश रेखाओं के व्यवहार के विषय में आवश्यक आँकड़े मिल सकेंगे. भविष्य में इन आँकड़ों के आधार पर भूकम्प से सम्बंधित खतरे के विश्वसनीय मॉडल तैयार हो सकेंगे.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : CRISPR Technology
संदर्भ
हाल ही में CRISPR तकनीक से जीन का सम्पादन करके विश्व के सर्वाधिक विषैले दंश के लिए एंटीडोट तैयार किया गया है.
विदित हो कि अभी तक जो सबसे भयंकर विष पाया गया है वह बॉक्स जेलीफिश प्रजाति के जीव Chironex fleckeri में मिलता है. यह जब डंसता है तो मनुष्य का हृदय रुक जाता है. यह कैसे होता है इसका अभी तक वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके हैं. परन्तु शोधकर्ताओं के एक दल ने एक ऐसे एंटीडोट का निर्माण कर लिया है जो इसके विष को रोक देता है. यह विष CRISPR की जीन सम्पादन प्रक्रिया से तैयार हुआ है. इस एंटीडोट का नाम cyclodextrin है जिसका मनुष्यों पर सुरक्षित परीक्षण हो चुका है और जो सस्ता और सुलभ है.
जीन क्या होते हैं जीन सम्पादन क्या है?
- गुणसूत्रों पर स्थित डी.एन.ए. (A.) की बनी वे अति सूक्ष्म रचनाएं जो आनुवांशिक लक्षणों का धारण एवं उनका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, जीन कहलाती हैं.
- जीन, डी.एन.ए. के न्यूक्लियोटाइडओं का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है.
- जीनों में कूटबद्ध सूचनाओं से ही आगामी पीढ़ी की सन्तान की कद, चमड़े अथवा बाल का रंग, अन्य शारीरिक विशेषताएँ और यहाँ तक की व्यावहारिक गुण आते हैं.
- वैज्ञानिक कभी-कभी विशेष तकनीक से एक प्राणी अथवा पौधे से दूसरे प्राणी अथवा पौधे में जीनों का हस्तांतरण करते हैं जिससे प्राणी के आनुवंशिक गुणों में रूपांतरण हो जाता है. इस प्रक्रिया कोजीन सम्पादन कहते हैं.
CRISPR-CAS9 क्या है?
- CRISPR-CAS9 का पूरा नाम है – Clustered, regularly interspaced, short palindromic repeats – protein 9 (Cas9)
- बुनियादी तौर से यह एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा जीन का सम्पादन किया जाता है. इसका प्रयोग समूचे जेनेटिक कोड अथवा किसी विशेष स्थान पर DNA के सम्पादन के लिए किया जा सकता है.
- इस तकनीक से जीन में हेर-फेर करने तथा इस प्रक्रिया को सरलतर, तीव्रतर तथा अधिकांश प्रयोगशालाओं के लिए सुलभ बनाने के क्षेत्र में क्रांति आ गई है.
- CRISPR तकनीक सरल है परन्तु जीनोम के सम्पादन के लिए एक सशक्त साधन है. इससे शोधकर्ता सरलता से DNA क्रम को बदल देते हैं और जीन के कार्य में परिवर्तन ला देते हैं.
- भविष्य में इसका उपयोग आनुवंशिक दोषों को दूर करने, उपचार करने, रोगों का प्रसार रोकने और फसलों में सुधार लाने में किया जा सकता है. किन्तु साथ ही नैतिकतावादी इसका विरोध करते रहे हैं. इसके अतिरिक्त कुछ वैज्ञानिकों यह आशंका है कि इस तकनीक से सम्पाधित कोषों से कैंसर हो सकता है और जीनोम में रूपांतरण का खतरा बढ़ सकता है.
Prelims Vishesh
World Press Freedom Prize :–
- 3 मई, 2019 को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विश्व प्रेस स्वतंत्रता पुरस्कार वितिरित किया गया.
- हर वर्ष दिया जाने वाला यह पुरस्कार UNESCO/ Guillermo Cano World Press Freedom Prize के नाम से भी जाना जाता है.
- इस पुरस्कार को UNESCO के महानिदेशक प्रदान करते हैं.
- यह पुरस्कार 1997 से वैसे व्यक्ति, संगठन अथवा संस्थान को दिया जाता है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के विषय में उत्कृष्ट कार्य किये हैं.
- विदित हो कि पुरस्कार से जुड़ा नाम (Guillermo Cano Isaza) कोलोम्बिया के एक पत्रकार का है जिनकी 17 दिसम्बर, 1986 में उनके समाचार पत्र El Espectador के कार्यालय के सामने हत्या कर दी गई थी.
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