Sansar Daily Current Affairs, 04 May 2021
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : Central govt moves Supreme Court against Delhi High Court contempt of court notice on Oxygen supply
संदर्भ
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने, राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 रोगियों के इलाज हेतु ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने से सम्बंधित निर्देशों का पालन न करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना नोटिस निर्गत करने और अपने अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति होने के आदेश के विरुद्ध, केंद्र-सरकार द्वारा दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की है.
संबंधित प्रकरण
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इसका कारण स्पष्ट करने का निर्देश दिया, कि कोविड-19 रोगियों की चिकित्सा के लिए दिल्ली को ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने संबंधी अदालत के आदेश का पालन करने में विफल रहने के लिए इसके खिलाफ अवमानना क्यों नहीं प्रारम्भ की जानी चाहिए.
न्यायालय की अवमानना क्या है?
कानूनी रूप से देखा जाए तो अदालत की अवमानना दो तरह की होती है –
- दीवानी अवमानना, जो अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के सेक्शन 2(बी) में आती है. ‘इसमें वे मामले आते हैं, जिसमें यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर अदालत के किसी निर्णय को न माने. भले ही वह डिक्री हो, निर्देश हो या आदेश तो सजा दी जाती है.
- आपराधिक अवमानना सेक्शन 2 (सी) के तहत आता है, जिसमें लिखे हुए शब्दों से, मौखिक या कुछ दिखाकर किसी अदालत के आदेश को नीचा दिखाने की कोशिश की गई हो या पूर्वग्रह से ग्रसित हो, न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की गई हो या, न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करना या करने की मंशा से इसमें रुकावट डाले.
सरल शब्द में यह फैसले या अदालत की प्रतिष्ठा के खिलाफ जानबूझकर की गई अवज्ञा है. एक है प्रत्यक्ष अवमानना और दूसरी है अप्रत्यक्ष अवमानना. अदालत में ही खड़े होकर यदि कोई आदेशों को नहीं माने तो प्रत्यक्ष अवमानना होती है.
माहात्म्य
अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध है. किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वे अदालत का सम्मान करें. अदालतों के प्राधिकार के खिलाफ न हो न ही स्वेच्छाचार करते हुए आदेशों का पालन न करें. अदालतें कानूनी अधिकारों का स्तंभ है और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. अदालत की अवमानना को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर और न्यायमूर्ति के एस. राधाकृष्णन की खंडपीठ ने भी सुब्रत राय सहारा के मामले में समझाया था. यदि अदालत के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है तो यह न्यायिक प्रणाली की नींव हिला देता है, जो कानून के शासन को दुर्बल करता है. अदालत इसी की संरक्षा और सम्मान करती है. देश के लोगों का न्यायिक प्रणाली में आस्था और विश्वास कायम रखने के लिए यह आवश्यक है. इसलिए अदालत की अवमानना एक गंभीर अपराध माना जाता है. साथ ही यह याचिकाकर्ता को भी सुनिश्चित करता है कि अदालत द्वारा पारित होने वाले आदेश का अनुपालन होगा. यह उनके द्वारा पालन किया जाएगा, जो भी इससे संबंधित होंगे. अदालत की अवमानना न्याय के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में प्रयुक्त होती है.
प्रासंगिक प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 में क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी व्यक्तियों को दंडित करने की शक्ति प्रदान की गयी है.
- 1971 के अवमानना अधिनियम की धारा 10 में उच्च न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालयों को अवमानना करने पर दंडित करने संबंधी शक्तियों को परिभाषित किया गया है.
- संविधान में लोक व्यवस्था तथा मानहानि जैसे संदर्भो सहित अदालत की अवमानना के रूप में, अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध को भी सम्मिलित किया गया है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : Supreme Court strikes down West Bengal law on real estate
संदर्भ
उच्चतम न्यायालय ने राज्य में ‘भूमि भवन बिक्री व्यापार’ (Real Estate) क्षेत्र को विनियमित करने वाले पश्चिम बंगाल के कानून को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए रद्द कर दिया है.
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है, कि राज्य का यह क़ानून केंद्र के ‘रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम’ का अतिक्रमण कर रहा था.
- इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 142 के तहत अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया है कि इस कानून के रद्द होने से अनुशंसा और अनुमति प्रभावित नहीं होंगी.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस क़ानून के रद्द करने का कारण
- सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ‘पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंडस्ट्री रेगुलेशन एक्ट’ (WB-HIRA), 2017 को लागू करके, राज्य विधायिका ने “समानांतर प्रशासन” समेत अपना समानांतर कानून स्थापित करने का प्रयास किया है.
- न्यायालय के अनुसार, राज्य विधायिका ने संसद के विधायी अधिकार का अतिक्रमण किया है. सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में आने वाले विषयों के दायरे में, संसद द्वारा बनाये गए कानून का वर्चस्व होता है.
मेरी राय – मेंस के लिए
संविधान के अंतर्गत प्रावधान
केंद्र और राज्य कानूनों के बीच असंगति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 में प्रावधान है कि “यदि राज्य विधानसभा द्वारा निमित कानून का कोई प्रावधान संसद द्वारा निर्मित कानून के किसी प्रावधान, जिसे पारित करने में संसद सक्षम है या समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों के संबंध में एक मौजूदा नियम के किसी प्रावधान के विरुद्ध है तो संसदीय कानून चाहे वह राज्य विधानसभा के कानून या मौजूदा कानून से पूर्व या पश्चात पारित किया गया हो, विद्यमान रहेगा और ‘ राज्य कानून” असंगतता के स्तर तक अमान्य माना जाएगा.”
अनुच्छेद 254(1) इस नियम का उल्लेख करता है कि संघ और राज्य कानूनों के बीच विवाद की स्थिति में संघीय कानून प्रचलित रहेगा चाहे संघ कानून राज्य कानून से पूर्व पारित हुआ हो या राज्य कानून के पारित होने के बाद. इसके पीछे सिद्धांत यह है कि जब केंद्र द्वारा और राज्य द्वारा समान आधार को शामिल करने वाला विद्यमान उपस्थित है और दोनों ही इसको पारित करने के लिए सक्षम हैं तो राज्य कानून के ऊपर केंद्रीय कानून प्रचलित रहेगा.
‘विद्यमान कानून’ अभिव्यक्ति से तात्पर्य संविधान के निर्माण से पूर्व किसी विधान या प्राधिकरण आदि द्वारा निर्मित कानूनों से है. इसके कुछ उदाहरण हैं-आपराधिक कानून, सिविल प्रक्रिया, साक्ष्य, संविदा उपभोक्ता संरक्षण आदि. विरोध की मात्रा (repugnancy) से यहाँ तात्पर्य असंगत अयोग्यता से है. विरोध की मात्रा स्पष्ट प्रत्यक्ष तथा असंगत होनी चाहिए. दो अधिनियमों के प्रावधान ऐसे होते हैं कि वे एक समान क्षेत्र में एक साथ रह सकते हैं और प्रचलित हो सकते हैं. यदि वे किसी विवाद को उत्पन्न किए बिना तीसरी सूची में समान प्रविष्टि से सम्बंधित समान क्षेत्र में प्रचालन कर सकते हैं तो वही किसी प्रकार का विरोध नहीं है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : IP related issues.
Topic : Patent issue in WTO
संदर्भ
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट सुरक्षा हटाने का समर्थन किया है.
पृष्ठभूमि
- कुछ दिनों पहले भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में एक प्रस्ताव दिया था कि कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट संबंधी सुरक्षा हटा ली जाए; ताकि विभिन्न फॉर्मा कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर कोरोना वैक्सीन का भारी मात्रा में उत्पादन कर सकें.
- दरअसल वैश्विक स्वास्थ्य संकट और कोविड-19 महामारी से निपटने की आवश्यकता को देखते हुए भारत एवं दक्षिण अफ्रीका ने 2 अक्टूबर, 2020 को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में एक प्रस्ताव पेश किया था. इसमें कहा गया था कि विकासशील देशों के लिए टीकों और दवाओं की त्वरित एवं सस्ती पहुँच सुनिश्चित करने के लिए ट्रिप्स पर समझौते के मानदंडों में छूट दी जाए.
- भारत और अन्य समान सोच वाले देशों द्वारा सक्रिय प्रयासों के परिणामस्वरूप इस प्रस्ताव को 120 से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त हुआ है. इसके अतिरिक्त, हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.
- अतः आने वाले दिनों में एक सर्वसम्मति आधारित दृष्टिकोण के साथ डब्ल्यूटीओ में इस छूट को जल्द ही स्वीकृति दी जा सकती है.
लाभ
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट सुरक्षा के हटने से कई लाभ होने की संभावना है.
- इससे कोरोना वैक्सीन के निर्माण की गति तीव्र होगी और वैश्विक स्तर पर कोविड-19 का वैक्सीनेशन त्वरित गति से बढ़ेगा.
- इससे कोरोना वैक्सीन के लिए परेशानी का सामना कर रहे गरीब देशों को टीका मिलने की एक बड़ी आशा जगी है.
- कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट सुरक्षा के हटने से पूरी मानवता को अतुलनीय लाभ होगा.
- यह छूट सस्ते कोविड-19 टीके और आवश्यक चिकित्सा उत्पादों के उत्पादन की गति को बढ़ाने एवं समय पर इनकी उपलब्धता को सक्षम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.
चुनौतियाँ
- किसी भी उत्पाद या सेवा में पेटेंट आदि की सुरक्षा नहीं मिलने से रिसर्च एवं डेवलपमेंट (R&D) प्रभावित होता है.
- कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट सुरक्षा के हटने की पहल का विश्व की दिग्गज फॉर्मा कंपनियों ने विरोध किया है. दवा कंपनियों का तर्क है कि इस छूट से कोरोना वैक्सीन का उत्पादन में वृद्धि नहीं होगी क्योंकि कॉन्ट्रैक्टरों के पास तकनीक नहीं है.
TRIPS AGREEMENT
- ट्रिप्स समझौता वर्ष 1995 में लागू हुआ था.
- यह कॉपीराइट, औद्योगिक डिजाइन, पेटेंट और अप्रकटित सूचना या व्यापार गोपनीयता के संरक्षण जैसे बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPRs) पर एक बहुपक्षीय समझौता है.
- यह विकासशील और अल्पविकसित देशों को उनकी लोक नीतियों व सामाजिक आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए ट्रिप्स संगत मानदंडों का उपयोग करने की अनुमति देने हेतु कुछ “नम्यता” का समावेश करता है.
- ट्रिप्स समझौते और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा, 2001 इस तथ्य की पुष्टि करती है कि ट्रिप्स समझौता, सदस्यों को लोक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए उपाय करने से प्रतिबंधित नहीं करता है.
विश्व व्यापार के लिए डबल्यूटीओ के सिद्धान्त क्या हैं?
- विश्व व्यापार के लिए डब्ल्यूटीओ के वर्तमान नियमों को निम्नलिखित समझौतों के तहत संहिताबद्ध किया गया है:
- वस्तुओं के अंतराष्ट्रीय व्यापार और शुल्क पर सामान्य समझौता (General Agreement on Tariffs and Trade-GATT)
- सेवाओं के व्यापार पर सामान्य समझौता (General Agreement on Trade in Services-GATS)
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर समझौता (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS)
- ज्ञातव्य है कि GATT की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की गई थी, जबकिGATS और TRIPS दोनों 1995 में लागू किए गए था.
- इन समझौतों का उद्देश्य वैश्विक बाजार अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना है.
डबल्यूटीओ के नियमों के कुछ महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं:
- आयात-विरोधी शुल्कों को समाप्त करना
- सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को आसान करना
- संरक्षणवाद को बढ़ावा देने वाले घरेलू कानूनों और करों को हतोत्साहित करना
- कोटा और सब्सिडी कम करना
WTO के नियम सामान्य सिद्धांतों पर आधारित हैं, इनमें गैर-भेदभाव, मुक्त व्यापार, पूर्वानुमान और आर्थिक संवृद्दि और विकास को बढ़ावा देना शामिल है.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Government Budgeting.
Topic : Fiscal Responsibility and Budget Management
संदर्भ
केंद्र सरकार ने कोविड- 19 से निपटने के लिए उन राज्यों को 1.06 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी की अनुमति प्रदान की है, जिन्होंने विद्युत क्षेत्र, व्यवसाय करने में सुगमता (Ease of Doing Business) आदि में कुछ प्रमुख संस्थागत सुधार किए हैं.
विगत वर्ष केंद्र ने राज्यों की उधार लेने की सीमा को उनके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था, जिसका आधा भाग नागरिक-केंद्रित सुधारों से जोड़ा गया था. यह राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (Fiscal Responsibility and Budget Management: FRBM) अधिनियम के तहत निर्धारित सीमा से 3 प्रतिशत अधिक है.
उधार लेने के अधिकार का संवैधानिक आधार
- अनुच्छेद 292 के अंतर्गत, केंद्र सरकार के पास भारत में और विदेशों से उधार लेने का अप्रतिबंधित अधिकार है, जो केवल संसद द्वारा निर्धारित सीमाओं के अधीन है.
- अनुच्छेद 293 के अंतर्गत, राज्यों का उधार लेने का अधिकार क्षेत्रीय और अन्यथा सीमित है.
- राज्य उनके विधानमंडल द्वारा तय सीमा के भीतर उनकी संचित निधि की प्रतिभूति पर, भारत के राज्यफ्षेत्र में उधार ले सकते हैं.
- हालाँकि, राज्य केंद्र की सहमति के बिना सार्वजनिक ऋण नहीं जुटा सकते हैं, यदि ऋण का कोई हिस्सा बकाया है, जिसे केंद्र द्वारा अग्रिम रूप में दिया गया हो.
- राज्यों के पास भारत से बाहर ऋण जुटाने की कोई शक्ति नहीं है.
क्या है FRBM कानून?
- उल्लेखनीय है कि देश की राजकोषीय व्यवस्था में अनुशासन लाने के लिये तथा सरकारी खर्च तथा घाटे जैसे कारकों पर नज़र रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM) कानून को वर्ष 2003 में तैयार किया गया था तथा जुलाई 2004 में इसे प्रभाव में लाया गया था.
- यह सार्वजनिक कोषों तथा अन्य प्रमुख आर्थिक कारकों पर नज़र रखते हुए बजट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. FRBM के माध्यम से देश के राजकोषीय घाटों को नियंत्रण में लाने की कोशिश की गई थी, जिसमें वर्ष 1997-98 के बाद भारी वृद्धि हुई थी.
- केंद्र सरकार ने FRBM कानून की नए सिरे से समीक्षा करने और इसकी कार्यकुशलता का पता लगाने के लिये एन. के. सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था.
मौद्रिक नीति समिति
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था.
- वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934 (RBI अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके.
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है.
- रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं.
Prelims Vishesh
Oxygen Concentrators :-
- पीएम केयर्स फंड का उपयोग 1 लाख पोर्टेबल ऑक्सीजन सकेंद्रकों की खरीद के लिए किया जाएगा.
- एक ऑक्सीजन सकेंद्रक एक चिकित्सा उपकरण होता है, जो परिवेशी वायु से ऑक्सीजन को संकेंद्रित करता है.
- ऑक्सीजन सकेंद्रक वायु का अंतर्ग्रहण करता है, एक छलनी के जरिये वायु को छानता है, नाइट्रोजन को वापस हवा में निर्मुक्त कर देता है और शेष ऑक्सीजन के आधार पर कार्य करता है.
- यह ऑक्सीजन, जो एक प्रवेशनी के माध्यम से संपीडित और वितरित की जाती है, 90-95 प्रतिशत तक शुद्ध होती है.
- सकेंद्रक में एक दबाव वाल्व 1-10 लीटर प्रति मिनट सीमा तक आपूर्ति को विनियमित करने में सहायता करता है.
Neo-01 robot :-
- यह एक रोबोट प्रोटोटाइप है, जिसे चीनी अंतरिक्ष खनन स्टार्ट-अप द्वारा निम्न-भू कक्षा में प्रक्षेपित किया गया है.
- यह एक बड़े जाल के जरिये अन्य अंतरिक्ष यान द्वारा छोड़े गए मलबे को एकत्रित कर सकता है.
- इससे क्षुद्रग्रहों पर खनन में सक्षम भावी प्रौद्योगिकियों के लिए मार्ग प्रशस्त करने की अपेक्षा है.
- कुछ अनुमानों के अनुसार, लगभग 3,000 उपग्रह और उनसे संबंधित मलबे के लाखों लघु खंड सुरक्षित निपटान के उपाय के बिना अंतरिक्ष में विद्यमान हैं.
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