Sansar Daily Current Affairs, 05 December 2018
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Accounting methods of climate fund questioned
संदर्भ
हाल ही में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने एक “चर्चा पत्र” निर्गत किया है जिसमें यह आलोचना की गई है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दिए जाने वाले धन देने से सम्बंधित हिसाब-किताब सही ढंग से नहीं किया जा रहा है.
विवाद क्या है?
ज्ञातव्य है कि विकसित देशों से 2019 में यह अपेक्षा की जाती है कि वे 2010 के कानकुन समझौते (Cancun agreement) के अनुरूप विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर दिए जाएँगे.
विदित हो कि 2016 में विकसित देशों ने यह दावा किया था कि वे 2013-14 तक 41 बिलियन डॉलर इस संदर्भ में दे चुके हैं. परन्तु 2015 में ही भारत ने इस हिसाब को नहीं माना था और कहा था कि मात्र 2.2 बिलियन डॉलर ही दिए गये. भारत के अनुसार 2017 में भी यही हाल था और वस्तुतः अभी तक 100 बिलियन डॉलर की राशि में से 12% ही भुगतान हुए.
- भारत का कहना है कि जलवायु वित्त पोषण की जो परिभाषा UNFCCC में दी गई है वह सटीक नहीं है और अपूर्ण है.
- हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund – GCF) में मात्र 10.3 बिलियन देने का ही वायदा हुआ था.
- सम्पूर्ण जलवायु वित्तपोषण का अधिकांश भाग कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकने में ही चला गया है.
- वास्तविकता यह है कि जलवायु से सम्बन्धित वितपोषण में वृद्धि नहीं हुई है अपितु 2014-15 के 24% से घटकर यह 2015-16 में 14% रह गया है.
हरित जलवायु कोष (GCF) क्या है?
हरित जलवायु कोष की स्थापना 2010 में विकसित देशों से धन लेकर विकासशील देशों को मुहैया करवाने के विषय में UNFCCC (United Nations Framework Convention on Climate Change) के द्वारा विकसित वित्तीय प्रणाली के तहत जलवायु परविर्तन से सम्बंधित संकट को कम करने के लिए की गई थी. यह 2015 में हस्ताक्षरित पेरिस जलवायु समझौते का एक प्रमुख अंग था.
GCF के कार्य
- GCF का मुख्य कार्य विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित परियोजनाओं, कार्यक्रमों, नीतियों एवं अन्य गतिविधियों के लिए कोष की व्यवस्था करना है.
- इसका लक्ष्य है 2020 तक जलवायु के लिए 100 बिलियन डॉलर की राशि जमा करना.
- यह कोष ऐसे विकास को बढ़ावा देता है जिसमें उत्सर्जन कम हो और जिसमें जलवायु परिवर्तन को झेलने की क्षमता हो और इसके लिए यह विकासशील देशों को ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को रोकने अथवा घटाने में सहायता देता है.
- यह कोष उन विकासशील देशों की आवश्यकताओं का विशेष ध्यान रखता है जहाँ जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव होने की सम्भावना कम अधिक रहती है.
कोष का प्रशासी बोर्ड
इस कोष का प्रशासन एवं पर्यवेक्षण एक बोर्ड द्वारा किया जाता है जो कोष मुहैया करने से सम्बंधित निर्णयों के लिए उत्तरदायी होता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : India’s heaviest satellite GSAT-11
संदर्भ
भारत का सबसे भारी और सबसे उन्नत उपग्रह GSAT -11 हाल ही में फ्रेंच गुयाना के कोरु में स्थित गुयाना अन्तरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया.
GSAT -11 से सम्बंधित तथ्य
- यह ISRO का सबसे भारी उपग्रह है जो लगभग 5,854 किलोग्राम का है.
- इसे फ्रेंच गुयाना से एरियेन 5 रॉकेट के द्वारा प्रक्षेपित किया गया.
- ISRO ने बताया है कि शुरू में इस उपग्रह को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (Geosynchronous Transfer Orbit) में रखा जायेगा और बाद में इसको ऊँचा करके भू-स्थैतिक कक्षा में डाल दिया जाएगा. यह तरल एपोजी मोटर से चलेगा.
- GSAT-11 इसरो द्वारा प्रक्षेपित संचार उपग्रहों में से एक है. इसका प्रयास होगा कि देश के इन्टरनेट ब्रॉडबैंड को अन्तरिक्ष से ऐसी जगहों पर पहुँचाया जाए जहाँ यह वर्तमान में नहीं पहुँच पाता.
- इस उपग्रह में कई स्पॉट बीम हैं – Ku बैंड में 32 और Ka बैंड में 8. ये सब मिलकर भारतवर्ष और आसपास के द्वीपों के ऊपर 16 Gbps की उन्नत सेवा प्रदान करेंगे.
- इस उपग्रह में VSAT टर्मिनल भी होंगे जो इसे एक विशाल सब्सक्राइबर आधार को सहारा देने में सक्षम बनायेंगे.
GSAT -11 की महत्ता
- GSAT -11 से इन्टरनेट में बहुत अधिक गति आएगी (कम से कम 16 Gbps) और इसके माध्यम से घरों, व्यवसायों एवं सार्वजनिक संगठनों में मोबाइल तथा इन्टरनेट की नित्य बढ़ती हुई माँग को पूरा किया जा सकेगा.
- डिजिटल इंडिया की भारत नेट परियोजना के अंतर्गत GSAT – 11 लगभग पूरे ग्रामीण भारत में आवाज़ और विडियो की पहुँच में उछाल लाएगा.
- GSAT – 11 में कई स्पॉटों का प्रयोग होगा जिसके कारण इसके प्रभाव क्षेत्र में पूर्व में प्रक्षेपित INSATs और GSATs उपग्रहों की तुलना में वृद्धि होगी तथा भारत की मुख्य भूमि और सभी द्वीप इसके प्रभाव क्षेत्र में आ जाएँगे.
- इस उपग्रह का जीवनकाल 15 वर्ष का है तब तक यह पूरे देश को 14 Gigabit/s तक की आवाज़ और विडियो ब्रॉडबैंड की सेवा देता रहेगा.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : NASA’s Kepler Space telescope
संदर्भ
NASA की केपलर अन्तरिक्ष दूरबीन और अन्य पृथ्वी पर काम करने वाली वेधशालाओं से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिको ने ऐसे 100 नए उपग्रह खोज निकाले हैं जो हमारे सौर मंडल से बाहर हैं. आशा की जाती है कि सौर मंडल के बाहर के ग्रहों तथा ब्रह्मांड में जीवन के विषय में अनुसंधान के क्षेत्र में यह खोज बड़े काम आएगी.
विशेष
केपलर दूरबीन को NASA ने औपचारिक रूप से सेवा-निवृत्त कर दिया है और इसके स्थान पर एक नई अन्तरिक्ष दूरबीन TESS ने आँकड़ों के संकलन का काम आरम्भ भी कर दिया है.
केपलर अन्तरिक्ष दूरबीन
- नासा के वैज्ञानिक प्लांट-हंटिंग केपलर अन्तरिक्ष दूरबीन में संगृहीत नवीनतम आँकड़ों को डाउनलोड करने की तैयारी कर रहे हैं.
- ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि यह इस अंतरीक्ष-यान में ईंधन समाप्ति की ओर है.
- वर्तमान में NASA ने इस यान को no-fuel-use safe mode में डाल रखा है जिससे कि आँकड़ों को शीघ्र-से-शीघ्र डाउनलोड किया जा सके.
- Kepler – एक अंतरिक्ष यान (spacecraft) का नाम है जिसमें एक शक्तिशाली telescope लगा हुआ है.
- इस telescope को सौरमंडल से बाहर स्थित ग्रहों को खोजने के लिए बनाया गया है.
- इसका नाम जोहान्स केप्लर के नाम पर रखा गया है जो स्वयं एक प्रसिद्ध जर्मन गणितज्ञ और खगोलविद् थे.
- Kepler mission को 2009 में launch किया गया था.
- इस मिशन का उद्देश्य हमारी निकटस्थ आकाशगंगा में सैंकड़ों पृथ्वी के आकार एवं उससे छोटे ग्रहों की खोज करना और आकाशगंगा में स्थित खरबों तारों के एक छोटे हिस्से का पता लगाना है जिनमें निवास-योग्य ग्रह हो सकते हैं.
TESS
- TESS का full form है – Transiting Exoplanet Survey Satellite.
- यह सौर प्रणाली के बाहर उपग्रहों की खोज के लिए एक नया मिशन है.
- विदित हो कि इसी उद्देश्य से पूर्व में भेजे गए Kepler mission का जीवनकाल समाप्त होने जा रहा है. यह मिशन उसी का स्थान ले रहा है.
- TESS mission का प्रारम्भ सौरमंडल के पड़ोस में स्थित छोटे ग्रहों का पता लगाने के लिए 18 April 2018 को किया गया.
- जब कोई उपग्रह अपने तारे के सामने से गुजरता है तो उस घटना को संक्रमण (transit) कहा जाता है. उस समय उस तारे की चमक में रुक-रुक कर और नियमित रूप से कमी आ जाती है. यह यान इस घटना का अध्ययन करेगा. इसके लिए यह कम से कम 2 लाख तारों पर नजर रखेगा.
- यह जिन तारों पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगा वे केपलर द्वारा परीक्षित तारों की तुलना में 30 से 100 गुने अधिक चमकीले हैं.
- यह यान पृथ्वी और चन्द्रमा के परिक्रमा पथ पर रहकर समस्त आकाश का सर्वेक्षण करेगा.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Kandhamal Haldi
संदर्भ
अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध ओडिशा की कंदमान हल्दी को शीघ्र ही GI Tag मिलने वाला है.
मुख्य तथ्य
- इस सुनहले पीले मसाले का नाम कंदमाल जिले पर पड़ा है जहाँ इसका उत्पादन होता है. इस जिले में यह हल्दी अज्ञात काल से उगाई जाती रही है और इसमें औषधीय गुण हैं.
- कंदमाल के जनजातीय लोगों के लिए हल्दी मुख्य नकदी फसल है. यह घर में प्रयोग तो होती ही है, इसका प्रयोग प्रसाधन एवं चिकित्सा के लिए भी होता है.
- कंदमाल की जनसंख्या का 50% अर्थात् 60,000 से ज्यादा परिवार कंदमाल हल्दी की खेती में लगे हुए हैं.
- यह हल्दी प्रतिकूल जलवायवीय परिस्थिति में भी टिकी रहती है.
GI Tag
- GI का full-form है – Geographical Indicator
- भौगोलिक संकेतक के रूप में GI tag किसी उत्पाद को दिया जाने वाला एक विशेष टैग है.
- नाम से स्पष्ट है कि यह टैग केवल उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित किये गए हों.
- यदि आपको कुछ उदाहरण दूँ तो शायद आप इसे और अच्छे से समझोगे….जैसे – बनारसी साड़ी, कांचीपुरम की साड़ी, मालदा आम, मुजफ्फरपुर की लीची, बीकानेरी भुजिया, कोल्हापुरी चप्पल, अलीगढ़ का ताला आदि.
- इस tag के कारण उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिल जाता है.
- यह टैग ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के विषय में आश्वस्त करता है.
- WTO समझौते के तहत अनुच्छेद 22 (1) के तहत GI को परिभाषित किया जाता है.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Indian Pavillion at COP-24
संदर्भ
हाल ही में पौलैंड के कैटोविस नगर में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ढाँचे (United Nations Framework Convention on Climate Change – UNFCCC) से सम्बंधित पक्षकारों का 24वाँ सम्मलेन (COP-24) सम्पन्न हुआ. इस सम्मलेन में एक भारतीय पैविलियन भी लगाया गया जिसके उद्घाटन में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन सम्मिलित हुए. भारतीय पैवलियन की थीम थी – “एक विश्व, एक सूर्य, एक ग्रिड” / “One World One Sun One Grid”.
ज्ञातव्य है कि वैश्विक जलवायु से सम्बंधित कार्यकलाप के लिए भारत के नेतृत्व को विश्व सराहता है. इसी क्रम में इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को “चैंपियन ऑफ़ दी अर्थ पुरस्कार” दिया था. यह पुरस्कार उनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर संघ को आगे बढ़ाने तथा भारत को 2022 तक प्लास्टिक-मुक्त करने के उनके संकल्प के लिए दिया गया था.
चैंपियन ऑफ़ दी अर्थ पुरस्कार क्या है?
- 2005 में आरम्भ किया गया Champions of the Earth पुरस्कार संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण विषयक पुरस्कार है.
- यह पुरस्कार सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों तथा सिविल सोसाइटी के उन लोगों को दिया जाता है जिनके कार्यकलाप ने पर्यावरण की समस्या पर सकारात्मक छाप छोड़ी है.
- 2018 में यह पुरस्कार भारत के प्रधानमन्त्री के अतिरिक्त फ़्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अगुआई के लिए दिया गया था.
COP क्या है?
- COP संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ढाँचे (UNFCCC) से सम्बंधित पक्षकारों के सम्मेलन को कहते हैं.
- यह संस्था UNFCCC के प्रावधानों के कार्यान्वयन और उसकी समीक्षा सुनिश्चित करता है.
UNFCCC क्या है?
- UNFCCC एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण विषयक संधि है जो 21 मार्च, 1994 से लागू है. अब इसमें विश्व के लगभग सभी देश सदस्य बन चुके हैं. दिसम्बर, 2015 तक इसमें 197 सदस्य हो गये थे.
- इस संधि का उद्देश्य जलवायु प्रणाली में मानव के खतरनाक हस्तक्षेप को रोकना है.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Dual-Fuel Usage for Agricultural and Construction Equipment Vehicles
संदर्भ
भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राज्यमार्ग मंत्रालय ने कृषि एवं निर्माण उपकरणों से सम्बन्धित वाहनों के लिए एक अधिसूचना निर्गत की है जिसमें यह बल दिया गया है कि ऐसे वाहनों में इस प्रकार का प्रबंध किया जाए कि इनमें दो तरह के ईंधन (dual-fuel vehicles) एक-साथ प्रयुक्त हो सकें.
उद्देश्य
- भारत सरकार की इस अधिसूचना से उन वाहनों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा जो जैव इंधनों से चल सकते हैं. ऐसे वाहन अधिक से अधिक प्रयोग होने पर प्रदूषक तत्त्वों के उत्सर्जन में कमी आएगी जो अंततोगत्वा जलवायु के हित में होगा.
- साथ ही इसमें लागत भी कम आएगी. इसके अतिरिक्त जैव ईंधन के प्रयोग का एक आनुषंगिक लाभ यह होगा कि जीवाश्म ईंधनों के आयात पर देश की निर्भरता घटेगी. इस प्रकार अंततोगत्वा यह वित्त की दृष्टि से भी लाभकर सिद्ध होगा.
दोहरे ईंधन वाले वाहन
- दोहरे ईंधन वाले वाहन उन वाहनों कहते हैं जिनमें डीजल के साथ-साथ CNG अथवा Bio-CNG ईंधन का भी प्रयोग हो सकता है. ऐसे वाहनों में डीजल प्रमुख ईंधन होता है अर्थात् उसकी मात्रा अधिक होती और शेष मात्रा CNG अथवा Bio-CNG की होती है.
- दोहरे ईंधन की सुविधा जिन वाहनों में हो सकती है, वे हैं – ट्रेक्टर, शक्ति चालित हल (power tillers), निर्माण से सम्बंधित उपकारों के वाहन और हार्वेस्टर.
- ऐसे कई वाहन अपने मूल कारखाने में ही दोहरे ईंधन वाले बनाए जाते हैं. इसके अतिरिक्त यदि कोई चाहे तो डीजल की किसी वाहन को भी बदलकर उसे दोहरे-ईंधन वाला बना सकता है.
- यह तकनीक आज भारत में सर्वत्र उपलब्ध है.
Prelims Vishesh
Rajiv Kumar Committee :-
घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निजी एवं विदेशी कंपनियों को सरकारी तेल कंपनियों – तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) तथा ऑइल इंडिया लिमिटेड (OIL) – के छोटे और सीमान्त तेल एवं गैस क्षेत्रों को बेचने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए भारत सरकार ने छह सदस्यों की एक समिति गठित की है जिसकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार करेंगे.
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