Sansar Daily Current Affairs, 05 June 2021
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Issues relating to development and management of Social Sector/Services relating to Health, Education, Human Resources.
Topic : Sustainable Development Goal Index
संदर्भ
NITI Aayog ने वर्ष 2020-21 का सतत विकास लक्ष्य भारत सूचकांक निर्गत कर दिया है.
सूचकांक के नवीनतम निष्कर्ष
- देश के समग्र एसडीजी स्कोर में 6 अंकों का सुधार हुआ है, और यह वर्ष 2019 में 60 अंकों से बढ़कर 2020-21 में 66 हो गया है.
- यह सुधार, साफ पानी एवं स्वच्छता, और ‘सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा’ लक्ष्यों के तहत सुविधाएं प्रदान करने में प्रदर्शन में सुधार का परिणाम है.
- केरल ने 75 अंक हासिल करते हुए अपनी शीर्ष रैंक बरकरार रखी, इसके बाद हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु दोनों ने 74 अंक हासिल करते दूसरा स्थान हासिल किया.
- इस वर्ष केभारत सूचकांक में बिहार, झारखंड और असम सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य थे.
- चंडीगढ़ ने 79 अंक हासिल करते हुएकेंद्र-शासित प्रदेशों में अपना शीर्ष स्थान बनाए रखा, इसके बाद दिल्ली (68) का स्थान रहा.
पृष्ठभूमि
- सतत विकास लक्ष्य भारत सूचकांक (SDG India Index) को केंद्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टिट्यूट और संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर तैयार किया था.
- इस सूचकांक में 17 सतत विकास लक्ष्यों में से 13 के विषय में किये गये उनके कुल प्रदर्शन के आधार पर भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्र-शाषित क्षेत्र के लिए एक समग्र स्कोर दिया जाता है. यह स्कोर 0 से 100 के बीच में कहीं भी हो सकता है. इस स्कोर से पता चलता है कि दिए गये लक्ष्यों के मामले में इन राज्यों/केंद्र शाषित क्षेत्रों ने क्या औसत प्रगति की है.
- इस सूचकांक का उद्देश्य राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न करना है जिससे वे आपस में होड़ करते हुए सतत विकास लक्ष्यों को शीघ्र से शीघ्र पूरा करें.
- सूचकांक का यह लाभ भी है कि इसके आधार पर केंद्र सरकार राज्यों की प्रगति पर तत्क्षण (real-time) निगरानी रख सकती है.
SDG भारत सूचकांक की महत्ता
SDG भारत सूचकांक (SDG India Index) संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित लक्ष्यों एवं प्रधानमन्त्री द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किये जा रहे प्रयासों के बीच एक पुल का काम करता है. विदित हो कि प्रधानमंत्री ने “सब का साथ, सब का विकास” का नारा दिया है जिसमें सतत विकास के पाँच वैश्विक लक्ष्यों का कार्यान्वयन शामिल है. ये पाँच लक्ष्य “पाँच P” कहलाते हैं – People, Planet, Prosperity, Partnership and Peace.
सतत विकास लक्ष्य
सतत विकास लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की एक सूची है जिसे 2015 में तैयार किया गया था. इसमें वर्णित 17 लक्ष्यों को 2030 तक सभी सदस्य देशों द्वारा पूरा किया जाना है. ये लक्ष्य हैं –
- गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति
- भूख की समाप्ति,खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहित करना
- सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को प्रोत्साहित करना
- समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना
- लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना
- सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना
- सस्ती,विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना.
- सभी के लिए निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास,पूर्ण और उत्पादक रोजगार, और बेहतर कार्य कोप्रोत्साहित करना
- लचीले बुनियादी ढांचे,समावेशी और सतत औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना
- देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना
- सुरक्षित,लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण
- स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना
- जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना
- स्थायी सतत विकास के लिए महासागरों,समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग
- सतत उपयोग को प्रोत्साहित करने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों,सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना
- सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को प्रोत्साहित करने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेही बनना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके
- सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को दृढ़ बनाना.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Structure, organization and functioning of the Judiciary
Topic : National Litigation Policy: NLP
संदर्भ
दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि एक बार न्यायालय या अधिकरण द्वारा निर्णय दिए जाने के उपरांत प्राधिकारियों द्वारा नागरिकों को समान मुद्दे पर बार-बार याचिका का आश्रय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए. यह उल्लेख किया गया है कि राष्ट्रीय मुकदमेबाजी नीति (National Litigation Policy: NLP) के अंतर्गत, यदि तथ्य समान हैं और एक सक्षम न्यायालय या अधिकरण द्वारा पहले ही निर्णय दिए जा चुके हैं, तो पश्चातवर्ती समान मामलों में उनके द्वारा इसका पालन किया जाना चाहिए.
मुख्य तथ्य
- NLP वर्ष 2010 में सरकारी मुकदमों के प्रबंधन के लिए रणनीति निर्धारित करने की कोशिश के साथ तैयार की गई थी.
- इसने हर विभाग पर विधिक बोझ की निगरानी के लिए एक आंतरिक निगरानी प्रणाली स्थापित करने का सुझाव दिया था. साथ ही, राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तरों पर मुकदमों के पर्यवेक्षण हेतु अंतर-मंत्रालयी निकायों की अनुशंसा की थी.
- जिला न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक कुल 3.14 करोड़ मामलों में से 4% मामलों में केंद्र और राज्य सरकारें वादी हैं.
- इसके अतिरिक्त हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि “तुच्छ” मामलों की बढ़ती संख्या NLP को “निष्क्रिय” बना रही है.
- यह तर्क दिया गया है कि 90% मामले तुच्छ प्रकृति के थे.
- उच्चतम न्यायालय में 67,898 वाद लंबित हैं. इनमें से 49,000 से अधिक मामले नए हैं, जिन पर अभी भी सुनवाई के लिए विचार किया जाना है.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Important international organisations.
Topic : CEM- Industrial Deep Decarbonization Initiative
संदर्भ
भारत ने यूनाइटेड किंगडम के साथ मिलकर, ऊर्जा प्रमुखों की 12वीं बैठक में ‘क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल (CEM) – इंडस्ट्रियल डीप डीकार्बनाइजेशन इनीशियेटिव’ (Industrial Deep Decarbonization Initiative – IDDI) के अंतर्गत औद्योगिक ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देने के लिये नई कार्य-प्रक्रियाओं की शुरुआत की है.
IDDI
IDDI एक वैश्विक गठबंधन है जिसमें सार्वजनिक और निजी संगठन शामिल हैं जो कम कार्बन औद्योगिक सामग्री की मांग को प्रोत्साहित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. IDDI कार्बन आकलन को मानकीकृत करने और सरकारों के सहयोग से महत्वाकांक्षी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के खरीद लक्ष्यों को स्थापित करने के लिए काम करता है. यह कम कार्बन उत्पाद और डिजाइन औद्योगिक दिशानिर्देशों में निवेश को भी प्रोत्साहित करता है. IDDI का समन्वय UNIDO द्वारा किया जाता है जबकि भारत और यूके द्वारा सह-नेतृत्व किया जाता है. इस पहल के अतिरिक्त सदस्य जर्मनी और कनाडा हैं.
क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल (CEM)
- ‘क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल’ की स्थापना दिसंबर 2009 में कोपेनहेगन में आयोजित पार्टियों के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन में की गई थी.
- यह, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने वाली नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देने, अनुभव और सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा करने तथा वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था में पारगमन करने को प्रोत्साहित करने हेतु एक उच्च स्तरीय वैश्विक मंच है.
- भारत सहित 29 देश क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल (CEM) में शामिल हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Conservation related issues.
Topic : Soil Spill
संदर्भ
रसायनों और प्लास्टिक से लदे हुए, सिंगापुर में पंजीकृत MV X –प्रेस पर्ल, नामक एक मालवाहक जहाज में, 20 मई को आग लगने और विस्फोट होने की घटना हुई थी. इस घटना के बाद, श्रीलंका के समुद्र तटों पर कई टन प्लास्टिक के गुटिके / पैलेट (pellet) पाए गए.
तैयारियाँ
देश के समुद्री पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (Marine Environment Protection Authority- MEPA) ने इस घटना को इतिहास में श्रीलंका की सबसे खराब पारिस्थितिक आपदाओं में से एक करार दिया है. MEPA ने पोत से होने वाले संभावित रिसाव से निपटने के लिए, ‘तेल रिसाव नियंत्रण बूम’ (oil spill containment booms) को तैयार कर दिया है. अधिकारियों के अनुसार, पोत के ईंधन टैंक में 350 टन तेल था.
‘तेल रिसाव’ क्या होता है?
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा ‘तेल रिसाव’ (Oil Spill) को दुर्घटनावश या जानबूझकर निर्मुक्त होने वाले तेल के रूप में पारिभाषित किया है, जो जल निकायों की सतह पर एक प्रच्छन द्रव्य के रूप में तैरता है और हवाओं, जल धाराओं और ज्वारीय लहरों के साथ इधर-उधर बहता रहता है.
- तेल रिसाव, भूमि, वायु तथा पानी को प्रदूषित कर सकता है, हालांकि इसका प्रयोग ज्यादातर समुद्री तेल रिसाव के संदर्भ में किया जाता है.
समुद्र में तेल रिसाव से संबंधित कानून
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल रिसाव से हुई क्षति के लिये पर्याप्त, शीघ्र तथा प्रभावी क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु ‘इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन सिविल लायबिलिटी ऑफ बेकर ऑयल पॉल्यूशन डैमेज, 2001’ है जिसका भारत ने भी अनुसमर्थन किया है.
- भारत के अन्दर तटवर्ती और समुद्री क्षेत्रों को तेल रिसाव से होने वाली क्षति से रक्षा करने हेतु 1980 से तेल रिसाव प्रबंधन कार्यक्रम बना था.
- भारत में तेल रिसाव आपदा के मामले में संकट प्रबंधन के लिए गृह मंत्रालय नोडल मंत्रालय है तथा तेल रिसाव होने की स्थिति में भारत के समुद्री क्षेत्र में तेल रिसाव प्रदूषण से निपटने के लिए तटरक्षक बल समन्वयकारी एजेंसी है.
तेल रिसाव होने के विभिन्न कारण
- महासागरों में होने वाला तेल रिसाव इसके सबसे प्रमुख प्रदूषकों में से एक है.
- हर वर्ष लगभग 3 मिलियन मीट्रिक टन तेल महासागरों को दूषित करता है.
- तेल रिसाव में कच्चे तेल, परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों, उनके उप-उत्पादों का रिसाव और बेड़े में प्रयोग किये जाने वाले भारी ईंधन, यथा – बंकर ईंधन का रिसाव अथवा किसी तैलीय अवशिष्ट का या अपशिष्ट तेल का रिसाव शामिल है.
- तेल रिसाव टैंकर से, अपतटीय मंच से, खुदाई उपकरणों से तथा कुओं इत्यादि से भी संभव है.
- प्राकृतिक तेल रिसाव से भी तेल समुद्री पर्यावरण में प्रवेश करता है. कच्चा तेल और गैस कभी-कभी समुद्र तल की दरारों से निकलकर ऊपर आता है. सच्चाई तो यह है कि समुद्र के पर्यावरण में प्रतिवर्ष जितना तेल रिसाव होता है वह उसका आधा इन्हीं दरारों से आता है.
तेल रिसाव से जीवजन्तुओं को खतरा
- मछलियां पानी के भीतर सांस नहीं ले सकतीं, तेल में लिपटी होने के कारण एक तरह से उनकी मूक मौत हो जाती है.
- यह तेल जलीय जीवों को प्रभावित करने के साथ ही, इससे संबंधित पक्षियों के पंखों की संरचना में प्रवेश कर, उनकी उत्प्लावकता और भोजन की तलाश में तथा शिकारियों से बचने के लिये उनकी उड़ान क्षमताओं को भी कम करता है. उदाहरण के लिये, जब पक्षी चोंच से अपने परों को खुजाते हैं तो परों पर लगा हुआ तेल निगल जाते हैं, जिसके कारण उनके अंगों में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है तथा पाचन तंत्र में जलन होती है.
Prelims Vishesh
GDP Growth for FY21 :-
- भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) गत तिमाही में 1.6% की वृद्धि के साथ, वित्त वर्ष 2021 में 7.5% तक संकुचित हुई थी.
- सकल घरेलू उत्पाद को आधार कीमतों पर सकल मूल्य वर्धित (GVA) के योग के रूप में प्राप्त किया जाता है.
- इसमें उत्पादों पर सभी करों को जोड़ दिया जाता है व उत्पादों पर सभी सब्सिडियों को घटा दिया जाता है.
- वित्त वर्ष 1979-80 (जब सकल घरेलू उत्पाद में 5.2% की कमी आई थी) के बाद से विगत चार दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में संकुचन का यह प्रथम पूर्ण वर्ष है.
Nano Urea Liquid :-
- इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) ने संसार-भर के किसानों के लिए विश्व का प्रथम नैनो यूरिया लिक्विड प्रस्तुत किया है.
- नैनो यूरिया लिक्विड को पारंपरिक यूरिया को प्रतिस्थापित करने के लिए विकसित किया गया है.
- यह इसकी जरुरत को कम से कम 50% तक कम कर सकता है.
- इसका उपयोग मृदा में यूरिया के अत्यधिक प्रयोग को कम कर संतुलित पोषण कार्यक्रम को प्रोत्साहित करेगा तथा फसलों को दृढ़, स्वस्थ बनाएगा और उन्हें अस्थायी ठहराव के प्रभाव (lodging effect) (तने का खंडित होना) से बचाएगा.
Horticulture Cluster Development Programme :-
- हाल ही में, केंद्रीय कृषि मंत्री ने बागवानी के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम (CDP) का शुमारंभ किया.
- यह एक केंद्रीय क्षेत्र का कार्यक्रम है, जिसे राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है.
- इसे 11 राज्यों /संघ शासित प्रदेशों के लगभग 10 लाख किसानों को समाहित करते हुए 12 बागवानी क्लस्स्टर्स (कुल 53 क्लस्टर्स में से) में प्रायेगिक चरण में शुरू किया गया है.
- यह भौगोलिक विशेषज्ञता का लाभ उठाएगा और एकीकृत एवं बाजार आधारित विकास को बढ़ावा देगा. इससे भारतीय बागवानी क्लस्टर्स (horticulture clusters) वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनेंगे.
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