Sansar डेली करंट अफेयर्स, 05 May 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 05 May 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Table of Contents

Topic : Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation (DICGC)

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने महाराष्ट्र के सहकारी सोसाइटी निबंधक को कहा है कि वह CKP सहकारी बैंक को बंद करने की प्रक्रिया आरम्भ करे और इसके लिए एक लिक्विडेटर की नियुक्ति करे.

ज्ञातव्य है कि किसी बैंक के बंद होने पर प्रत्येक जमाकर्ता को जमा बीमा साख प्रतिभूति निगम की ओर से पांच लाख रु. मिलते हैं.

यह बैंक बंद क्यों हो रहा है?

मुंबई स्थित CKP सहकारी बैंक का लाइसेंस निम्नलिखित कारणों से रद्द हुआ है –

  1. बैंक की वित्तीय स्थिति बहुत बुरी है.
  2. अपने वर्तमान एवं भावी जमाकर्ताओं को भुगतान करने वाले बैंक अक्षम हैं.
  3. बैंक ने न्यूनतम 9% का पूँजी पर्याप्तता अनुपात (capital adequacy ratio – CAR) नहीं रखा है जोकि नियमों के अधीन अनिवार्य होता है.

पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) क्या है?

  • पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) को ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (Capital to Risk weighted Assets Ratio – CRAR) भी कहता हैं.
  • यह बैंक की पूँजी और जोखिम का अनुपात होता है.
  • यह बैंक की जोखिम भारित संपदा के प्रतिशत के रूप में बैंक की मूल पूँजी की राशि को दर्शाता है.
  • भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंक नियामक व्यावसायिक बैंकों को अतिशय जोखिम लेने से और इस प्रकार दिवालिया होने से रोकते हैं.
  • वर्तमान में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को निर्देश दिया है कि वे 9% CRAR का संधारण अवश्य करें.

सरल भाषा में यह जरुर पढ़ें > CRAR in Hindi

जमा बीमा (DEPOSIT INSURANCE) क्या होती है?

  • जमा बीमा में ग्राहक द्वारा जमा की गई धनराशि पर बीमा का प्रावधान होता है और इसके लिए कुछ प्रीमियम लिया जाता है.
  • किसी बैंक के डूब जाने पर ग्राहकों के द्वारा जमा राशि को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के अधीन एक निगम की स्थापना की है जिसका नाम जमा बीमा एवं ऋण प्रतिभूति निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation – DICGC) है.
  • जमा बीमा होने पर बैंक प्रत्येक वर्ष जमा राशि के 0.001% अंश की समतुल्य राशि DICGC को भुगतान करेगा.

बैंक के डूबने पर जमाकर्ताओं की धनराशि का क्या होगा?

  • जब कोई बैंक डूबता है तो जमाकर्ताओं को अधिकार है कि वे DICGC से प्रति व्यक्ति एक लाख रु. का बीमा प्राप्त कर सकते हैं.
  • इस एक लाख रु. की बीमा राशि में मूल और ब्याज दोनों शामिल होंगे.
  • किसी जमाकर्ता के द्वारा बैंक के विविध खातों, जैसे – बचत, चालू, सावधि, आवर्ति खाते, में जमा मूल राशि और उस पर मिलने वाला ब्याज दोनों एक लाख रु. की बीमा की सीमा के अन्दर होगा.

डूबे हुए बैंक से जमाकर्ता अपनी धनराशि का दावा का कैसे करते हैं?

  • DICGC जमाकर्ताओं से सीधे नहीं बरतता है.
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा रजिस्टरार को जब निर्देश किया जाता है कि किसी भी बैंक को निरस्त करना है तो वह एक औपचारिक निरसनकर्ता (liquidator) की नियुक्ति करता है जो बैंक को समेटने की प्रक्रिया को देखता है.
  • DICGC अधिनियम के अनुसार, निरसनकर्ता DICGC को अपनी नियुक्ति के तीन महीने के भीतर एक सूची देता है जिसमें सभी बीमित जमाकर्ताओं और उनके बकाये का उल्लेख होता है.
  • DICGC का यह काम है कि वह इस सूची को पाने के दो महीने भीतर सभी बकायों का भुगतान कर दे.

बीमा के अन्दर कौन-से वित्तीय संस्थान आते हैं?

  • DICGC की बीमा सभी वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों पर लागू होती है. इस दायरे में कुछ राज्यों/संघीय क्षेत्रों के बैंक नहीं आते हैं, ये हैं –मेघालयचंडीगढ़लक्षद्वीप एवं दादर-नगर हवेली.
  • प्राथमिक सहकारिता सोसाइटियाँ (primary cooperative societies) इस बीमा के अन्दर नहीं आती हैं.

किस प्रकार का जमा DICGC के दायरे में नहीं आता है?

  1. विदेशी सरकारों का जमा
  2. केंद्र राज्य सरकारों का जमा
  3. अंतर-बैंक जमा
  4. राज्य भूमि विकास बैंक का खाता
  5. भारत के बाहर प्राप्त किसी जमा पर देय राशि
  6. कोई भी ऐसी राशि जिसपर DICGC ने RBI की अनुमति से छूट दे रखी हो.

यह सुधार क्यों आवश्यक है?

  1. बीमा कवर और बीमित राशि में बढ़ोतरी के लिए
  2. बीमा कवर देने के लिए निजी प्रतिष्ठानों को अनुमति देने के लिए
  3. दावों के निपटारे में देरी रोकने के लिए.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues related to health.

Topic : African Swine Fever (ASF)

संदर्भ

इस वर्ष फ़रवरी से लेकर अभी तक असम में 2,800 सूअर मर चुके हैं और इस प्रकार असम राज्य अफ़्रीकी शूकर ज्वर (African Swine Fever – ASF) का गढ़ बन चुका है.

पृष्ठभूमि

ASF चीन के अलावे एशिया के और देशों में भी देखा गया है. अभी पिछले दिनों ही ASF फैलने के कारण फिलिपीन्स में 7,000 सूअर इसलिए मार दिए गये कि यह ज्वर और सूअरों को नहीं लग जाए.

ASF क्या है?

  • ASF बहुत तेजी से फैलने वाला और पशुओं के लिए घातक रोग है जो पालतू और जंगली दोनों सूअरों को संक्रमित करके उनमें रक्तस्रावी बुखार ला देता है.
  • यह ज्वर पहली बार 1920 में अफ्रीका महादेश में पकड़ा गया था.
  • इस बुखार का कोई उपचार नहीं है और जिस पशु को यह बुखार हो गया तो उसका मरना शत प्रतिशत तय है. अतः यह नहीं फ़ैल जाए इसके लिए रोगग्रस्त पशुओं को जान से मार देना पड़ता है.
  • ASF की विशेषता है कि यह पशु से पशु में फैलता है और मनुष्य पर इससे कोई खतरा नहीं होता.
  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का कहना है कि ASF बहुत तेजी से एक महादेश से दूसरे महादेश तक फैलने की शक्ति रखता है.

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GS Paper 2 Source : The Hindu

UPSC Syllabus : India and its neighbourhood- relations.

Topic : Gilgit-Baltistan

संदर्भ

पिछले दिनों पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने गुलाम कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में चुनाव कराने के लिए सरकार को अनुमति दे दी है. इस पर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज की है.

गिलगित-बल्तिस्तान विवाद क्या है?

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में एक स्वायत्तशासी इलाका है जिसे गिलगित-बल्तिस्तान के नाम से जाना जाता है. यह इलाका पहले शुमाली या उत्तरी इलाके के नाम से जाना जाता था. करीब 73 हजार वर्ग किमी. वाले इस स्थान पर 1947 ई. में पाकिस्तान ने अवैध कब्ज़ा कर लिया था. भारत और यूरोपीय संघ इस इलाके को कश्मीर का अभिन्न हिस्सा मानते हैं लेकिन पाकिस्तान की राय इससे अलग है. पाकिस्तान ने 1963 ई. में इस इलाके का हिस्सा अनधिकृत रूप से चीन को सौंप दिया था. इसके बाद 1970 में गिलगित एजेंसी के नाम से यहाँ एक प्रशासनिक इकाई का गठन किया गया. 2009 में गिलगित-बल्तिस्तान अधिकारिता और स्व-प्रशासन आदेश जारी किया गया.

गिलगित-बल्तिस्तान का इतिहास

साल 1947 तक भारत-विभाजन के समय गिलगित-बल्तिस्तान का क्षेत्र जम्मू और कश्मीर की तरह ना तो भारत का हिस्सा था और न ही पाकिस्तान का. दरअसल 1935 में जम्मू कश्मीर के महाराजा ने गिलगित का इलाका अंग्रेजों को 60 साल के लिए लीज पर दे दिया था. अंग्रेज़ इस इलाके का उपयोग अपनी सामरिक रणनीति के तहत करते थे और यहाँ की ऊँची पहाड़ियों पर सैनिकों को रखकर आस-पास के इलाके पर नजर रखते थे. अंग्रेजों की गिलगित-स्काउट्स नाम की एक सैनिक-टुकड़ी यहाँ तैनात रहती थी.

विभाजन के समय डोगरा राजाओं ने अंग्रेजों के साथ अपनी लीज डीड को रद्द करके इस क्षेत्र में अपना अधिकार कायम कर लिया. लेकिन गिलगित-स्काउट्स के कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान ने कश्मीर के राजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह कर दिया और 1 नवम्बर, 1947 को गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया. इससे कुछ ही दिन पहले 26 अक्टूबर, 1947 को हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर रियासत के भारत में विलय की मंजूरी दे दी थी. गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी की घोषणा करने के 21 दिन बाद ही पाकिस्तान ने इस इलाके पर कब्जा जमा लिया जिसके बाद से 2 अप्रैल, 1949 तक गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान के कश्मीर के कब्जे वाला हिस्सा माना जाता रहा. लेकिन 28 अप्रैल, 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ जिसके तहत गिलगित के मामले को सीधे पकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीनस्थ कर दिया गया. इस करार को कराँची समझौते के नाम से जाना जाता है.

मुख्य तथ्य

  1. पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर को दो प्रशासनिक हिस्सों में बाँट रखा है – 1) गिलगित-बल्तिस्तान और 2) PoK
  2. पाकिस्तान ने 1947 के बाद बनी संघर्ष-विराम रेखा (जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है) के उत्तर-पश्चिमी इलाके को उत्तरी भाग और दक्षिणी इलाके को PoK के रूप में बाँट दिया.
  3. उत्तरी भाग में ही गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र है.
  4. पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान को एक अलग भौगोलिक इकाई मानता है.
  5. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इस विवादित क्षेत्र से गुजरता है. यह चीन की One Belt One Road परियोजना का हिस्सा है.
  6. इसके आलावे चीन ने इस इलाके में खनिज और पनबिजली संसाधनों के दोहन के लिए भी भारी निवेश किया है.
  7. लेकिन गिलगित-बल्तिस्तान पर पाकिस्तान का कब्ज़ा कहीं से भी जायज नहीं है.

गिलगित-बल्तिस्तान

  • गिलगित-बल्तिस्तान सात जिलों में बँटा है.
  • दो जिले बल्तिस्तान डिवीज़न में और पाँच जिले गिलगित डिवीज़न में हैं.
  • इस क्षेत्र की अपनी विधानसभा है.
  • पाक-अधिकृत कश्मीर सुन्नी-बहुल है जबकि गिलगित-बल्तिस्तान शिया-बहुल इलाका है.
  • इसकी आबादी करीब 20 लाख है.
  • इसका क्षेत्रफल करीब 73 हजार वर्ग किमी. है.
  • इसका ज्यादातर इलाका पहाड़ी है.
  • यहाँ 7,000 मीटर से ऊपर वाली 50 से अधिक चोटियाँ हैं.
  • यहीं दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी K2 है.
  • विश्व की सबसे लम्बी तीन हिमानियाँ (ध्रुव क्षेत्र को छोड़कर) गिलगित-बल्तिस्तान में ही हैं.
  • इस इलाके की सीमाएँ भारत, पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान से मिलती हैं. इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है.
  • पाकिस्तान यह दावा करता है कि वह गिलगित-बल्तिस्तान के नागरिकों के साथ देश के अन्य नागरिकों के जैसा ही व्यवहार करता है. लेकिन स्थानीय लोग पाकिस्तान सरकार पर अपनी अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं.
  • इस वजह से इस इलाके में कई बार आन्दोलन भी हुए. स्थानीय जनता CPEC को पाकिस्तान सरकार की चाल बताती है. लोगों का कहना है कि उनके मानवाधिकार और संसाधन खतरे में है.

भारत का क्या कहना है?

भारत का कहना है कि यह इलाका जम्मू-कश्मीर राज्य का अभिन्न हिस्सा है. भारत जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से को एक अलग पाकिस्तानी प्रांत बनाये जाने का विरोध कर रहा है. भारत का कहना है कि पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान समेत कश्मीर के उन इलाके से भी हटे जहाँ उसने अवैध कब्ज़ा कर रखा है. उधर पाकिस्तान इस इलाके पर अपना कानूनी दावा मजबूत करने की साजिशें रच रहा है. भारत इस इलाके में चीन की गतिविधियों का भी विरोध करता रहा है.

सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण

गिलगित-बल्तिस्तान पाक-अधिकृत इलाके का हिस्सा है. भौगोलिक स्थिति की वजह से यह इलाका सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. पाकिस्तान और चीन से जुड़े होने के कारण यह इलाका भारत के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है. पाकिस्तान और चीन किसी न किसी बहाने इस इलाके में अपने पैर पसारने की कोशिश करते रहे हैं. चीन ने 60 के दशक में गिलगित-बल्तिस्तान होते हुए काराकोरम राजमार्ग बनाया था. इस राजमार्ग के कारण इस्लामाबाद और गिलगित आपस में जुड़ गये. इस राजमार्ग की पहुँच चीन के जियांग्जिग प्रांत के काशगर तक है. इतना ही नहीं, चीन अब जियांग्जिग प्रांत को एक राजमार्ग के जरिये बलूचिस्तान की ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की योजना पर काम कर रहा है. इसके जरिये चीन की पहुँच खाड़ी समुद्री मार्गों तक हो जायेगी. चीन गिलगित पर भी अपनी पैठ बनाना चाहता है और इसके लिए वह पाकिस्तान का साथ चाहता है क्योंकि गिलगित पर नियंत्रण के बिना ग्वादर का चीन के लिए कोई मतलब नहीं है.


GS Paper 3 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Inclusive growth and issues arising from it.

Topic : Voluntary retention route for foreign portfolio investors

संदर्भ

मार्च 2020 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign Portfolio Investors – FPI) ने 1,18,203 करोड़ रु. की निकासी कर ली थी जोकि अभूतपूर्व थी. परन्तु अप्रैल महीने में इस निकासी की मात्रा 14,858 करोड़ रु. ही थी. इससे पता चलता है कि भारत के और ऋण बाजार से विदेशी निवेशकों के द्वारा की गई निकासी एक महीने के अन्दर बहुत ही घट गई.

यह घटत इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अभी कोविड-19 के कारण विश्व-भर की अर्थव्यवस्थाएँ बुरे समय से गुजर रही हैं.

स्वैच्छिक संधारण मार्ग (Voluntary Retention Route VRR) क्या है?

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए एक स्वैच्छिक संधारण मार्ग बनाया गया है जिसे स्वैच्छिक संधारण मार्ग (Voluntary Retention Route –VRR) का नाम दिया गया है. इसका उद्देश्य FPI (foreign portfolio investors) निवेशकों को भारत के ऋण बाजार में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन देना है. यह मार्ग उनके प्रयोग में आ रहे वर्तमान नियमित मार्ग के अतिरिक्त होगा.

इससे ऋण बाजार में FPI के दीर्घकालिक और स्थिर निवेश प्राप्त होंगे तथा उनके निवेशों के संचालन में लचीलापन भी आएगा.

पृष्ठभूमि

विदित हो कि स्वैच्छिक संधारण मार्ग की परिकल्पना अक्टूबर 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने उस समय किया था जब डॉलर की तुलना में रूपया बहुत तेजी से कमजोर हो रहा था. उस समय अर्थव्यवस्था में अधिक डॉलर लाने और रुपये को स्थिर करने के लिए विशेष NRI बांड योजना की चर्चा चल रही थी.

निवेश का यह मार्ग नियमित मार्ग से अलग कैसे?

FPI द्वारा ऋण बाजार में नियमित मार्ग से जो निवेश किया जाता है इसके लिए कई शर्तों का पालन करना आवश्यक होता है. इन शर्तों को मैक्रो-प्रूडेंशियल और नियामक प्रिस्क्रिप्शन कहा जाता है. VRR के माध्यम से निवेश करने पर निवेशक को इन सब से मुक्ति मिल जाती है बशर्ते कि वह इस बात के लिए स्वैच्छिक रूप से तैयार हो जाए कि वह अपनी पसंद की अवधि के लिए भारत में अपने निवेश का एक अपेक्षित न्यूनतम प्रतिशत अंश बनाए रखे. विदित हो कि यह संधारण समय न्यूनतम तीन वर्ष का होगा अथवा उस अवधि के लिए होगा जिसका निर्णय भारतीय रिज़र्व बैंक करे.

VRR मार्ग से कितनी राशि का निवेश हो सकता है?

VRR मार्ग दो प्रकार के होते हैं – VRR गवर्नमेंट और VRR CORP. VRR गवर्नमेंट मार्ग चुनने वाला निवेशक 40,000 करोड़ रू. का तथा VRR CORP मार्ग का चयन करने वाला निवेश 35,000 करोड़ रू. प्रतिवर्ष तक निवेश कर सकता है. मैक्रो-प्रुडेंशियल कारणों से एवं निवेश की माँग के मूल्यांकन के आधार पर ये सीमाएँ समय-समय पर बदली भी जा सकती हैं.

VRR निवेशकों के लिए अन्य सुविधाएँ

इस मार्ग से निवेश करने वाले FPI अपने नकद प्रबंधन करने के लिए रेपो में भागीदार हो सकते हैं बशर्ते कि रेपो के अन्दर उधारी में ली और दी गई राशि कुल निवेश के 10% से अधिक न हो. ये निवेशक किसी नकद अथवा ब्याज दर के डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट, OTC अर्थात् विनिमय व्यापार के इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से अपनी ब्याज दर अथवा नकद के जोखिम को सम्भालने के लिए भागीदारी कर सकते हैं.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Role of external state and non-state actors in creating challenges to internal security.

Topic : Bru-Reang refugee crisis

संदर्भ

देश के विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित हुए बंगालियों की संस्था नागरिक सुरक्षा मंच तथा मिजो संधि ने संयुक्त रूप से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के पास एक ज्ञापन दिया है जिसमें उत्तरी त्रिपुरा जिले के अनुमंडल कंचनपुर में विस्थापित ब्रू (रियांग) लोगों को बसाने के प्रस्ताव का विरोध किया गया है.

ब्रू-रियांग समझौते के तहत क्या-क्या प्रावधान किये गये हैं?

दिल्ली में 16 जनवरी, 2020 को हुए ब्रू-रियांग समझौते के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने करार के अलग-अलग बिंदुओं के बारे में जानकारी दी. यह समझौता करीब 23 वर्षों से चली आ रही बड़ी मानव समस्या का स्थाई समाधान निकालता है. इसके जरिए करीब 34,200 ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा.

1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने मिजोरम से त्रिपुरा में शरण ली. इन लोगों को वहाँ कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा और अस्थाई शिविरों में रखा गया.

  • समझौते के तहत अब इन लोगों को त्रिपुरा में स्थाई तौर से बसाया जाएगा.
  • नई व्यवस्था के तहत विस्थापित परिवारों को 40×30 फीट का आवासीय प्लॉट दिया जाएगा.
  • प्रत्येक परिवार को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी.
  • हर परिवार को 4 लाख रु. फिक्स डिपाजिट में दिए जाएँगे.
  • 2 साल तक ₹5,000 प्रतिमाह नकद सहायता दी जाएगी.
  • 2 साल तक मुफ्त राशन दिया जाएगा.
  • मकान बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपए दिए जाएंगे.
  • इस नई व्यवस्था के लिए त्रिपुरा सरकार भूमि की व्यवस्था करेगी.
  • नए समझौते के तहत 600 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता केंद्र सरकार की ओर से दी जाएगी.
  • ब्रू-रियांग शरणार्थियों को त्रिपुरा राज्य में रहने वाले नागरिकों के सभी अधिकार दिए जाएँगे.
  • उन्हें त्रिपुरा की वोटर लिस्ट में शामिल किया जाएगा.
  • वे केंद्र और राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे.

त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में शांति के लिहाज से भी यह समझाता बहुत महत्वपूर्ण है. समझौते से त्रिपुरा और मिजोरम के बीच दो दशकों से भी ज्यादा समय से चली आ रही ब्रू शरणार्थी समस्या का समाधान निकल गया है. त्रिपुरा और मिजोरम सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए केंद्र सरकार का आभार जताया है.

पूर्वोत्तर के राज्यों के तेज विकास की दिशा में यह समझौता मील का पत्थर साबित होगा. केंद्र सरकार की कोशिश है कि पूर्वोत्तर के सभी इलाकों का तेजी से विकास हो. हर इलाके में संपर्क और संचार से जुड़ी सुविधाओं को पहुँचाया जाए. 

ब्रू-रियांग के पुनर्वासन के सन्दर्भ में सरकार के प्रयास

1997 में मिजोरम से त्रिपुरा जाने के बाद से ही भारत सरकार लगातार यह कोशिश करती रही है कि ब्रू-रियांग समुदाय के परिवारों को स्थाई रूप से बसाया जा सके. त्रिपुरा जाने के 6 महीने बाद ही केंद्र सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत हर बालिक ब्रू व्यक्ति को 600 ग्राम और नाबालिग को 300 ग्राम चावल प्रतिदिन आवंटित किया जाता था. वहीं पुनर्वास के तहत साल 2014 तक कई बैचों में 1,622 परिवारों को मिजोरम वापस लाया गया.

ब्रू-रियांग विस्थापित परिवारों की देखभाल और उनके पुनर्वास के लिए भारत सरकार समय-समय पर त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों की सहायता भी करती रही है. 3 जुलाई, 2018 को भारत सरकार, मिजोरम सरकार, त्रिपुरा सरकार और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था जिसके बाद ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में कुछ हद तक बढ़ोतरी की गई थी. समझौते के तहत 5,407 ब्रू परिवारों के 32,876 लोगों के लिए 435 करोड़ का राहत पैकेज दिया गया. इसमें हर परिवार को 4 लाख रु. की फिक्स्ड डिपाजिट, घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपए, 2 साल के लिए मुफ्त राशन और हर महीने ₹5,000 दिया जाना शामिल था. इसके अतिरिक्त त्रिपुरा से मिजोरम जाने के लिए मुफ्त ट्रांसपोर्ट, पढ़ाई के लिए एकलव्य स्कूल, डोमिसाइल और जाति प्रमाण पत्र मिलना था. ब्रू लोगों को को मिजोरम में वोट डालने का हक मिलना तय हुआ था. लेकिन यह मूर्त रूप नहीं ले सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित ब्रू लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था.

इस समझौते के बाद साल 2018-19 के बीच में दोबारा 328 परिवार, जिसमें 1369 लोग थे, उन्हें त्रिपुरा से मिजोरम वापस लाया गया. हालांकि अधिकांश ब्रू-रियांग परिवारों की यह मांग थी कि ब्रू समुदाय की सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर उन्हें त्रिपुरा में ही बसा दिया जाए. लिहाजा कई विस्थापित ब्रू लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था. वहीं पिछले साल अक्टूबर के महीने में भी त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे 35,000 ब्रू शरणार्थियों को वापस मिजोरम में भेजने की प्रक्रिया का नौवां और आखरी चरण शुरू हुआ. लेकिन मुश्किल से 860 ही वापस मिजोरम आए. ब्रू शरणार्थियों ने मिजोरम आने का विरोध किया लेकिन दिसम्बर में त्रिपुरा सरकार और ब्रू शरणार्थी मंच के बीच आपसी बातचीत के बाद ब्रू शरणार्थियों ने अपना विरोध वापस ले लिया.

कौन हैं ब्रू शरणार्थी?

ब्रू जनजाति देश के पूर्वोत्तर हिस्से में बसने वाला एक जनजातीय समूह है. हालांकि ब्रू जनजातियों की छिटपुट आबादी पूर्वोत्तर के कई राज्यों में निवास करती है. लेकिन सबसे ज्यादा तादाद में ब्रू समुदाय मिजोरम की मामित और कोलासिब जिले में निवास करते हैं. हालांकि इस समुदाय में भी तकरीबन एक दर्जन उपजातियां आती हैं. कुछ ब्रू समुदाय पूर्वोत्तर भारत के अलावा बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी क्षेत्र में निवास करते हैं. मिजोरम में ब्रू समुदाय को अनुसूचित जनजाति का एक समूह यानी ब्रूस शेड्यूल्ड ट्राइब का एक समूह माना जाता है.

वहीं त्रिपुरा में ब्रू एक अलग जाति समूह है. त्रिपुरा में ब्रू समुदाय को रियांग नाम से पुकारा जाता है. ब्रू  समुदाय की भाषा भी ब्रू है. फिलहाल इस भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं है. लेकिन ब्रू लोग जिस राज्य में बसते हैं, वहाँ की भाषाएं भी बोल लेते हैं, जैसे – बंगाली, असमिया या मिज़ो. कुछ ब्रू हिंदी और अंग्रेजी भी बोल लेते हैं. ब्रू पहले झूम खेती करते थे जिसमें जंगल के एक हिस्से को साफ करके वहां खेती की जाती है. फसल पैदा होने के बाद और इसे काटने के बाद जंगल की किसी दूसरे हिस्से में यही कवायद फिर दोहराई जाती है. लिहाजा ब्रू एक बंजारा जाति समूह रहा है.

ब्रू समुदाय का इतिहास

ब्रू समुदाय को अलग-थलग करने और उनके पलायन के पीछे खूनी संघर्ष का इतिहास रहा है. दरअसल ब्रू जनजाति और मिज़ो समुदाय के बीच 1997 में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दौरान ब्रू जनजाति और मिज़ो समुदाय के बीच कई हिंसक झड़पें भी हुईं. ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी जिसके बाद दोनों समुदायों के बीच विवाद गहरा गया और दंगे भड़क गए. अल्पसंख्यक होने के कारण ब्रू समुदाय को अपना घर बार छोड़कर त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में जाकर आश्रय लेना पड़ा. पिछले 23 वर्ष से त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में ब्रू समुदाय के लोग रह रहे हैं. दो दशक से भी ज्यादा समय से शरणार्थी शिविरों में रह रहे ब्रू जनजाति के लोग लंबे समय से अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे.

ब्रू समुदाय मिजोरम का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक आदिवासी समुदाय है. इस समुदाय के करीब 34,000 लोग पिछले 23 सालों से उत्तरी त्रिपुरा की शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. दरअसल, यह आदिवासी समूह स्वयं को म्यांमार के शान प्रांत का मूल निवासी मानता है. ये लोग सदियों पहले वहन से आकर मिजोरम में बस गए थे. लेकिन 1990 के दशक में इनका बहुसंख्यक मिज़ो लोगों से स्वायत्त डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के मुद्दे पर खूनी संघर्ष हुआ था. इसके बाद लगभग 5,000 से अधिक परिवार मिजोरम से पलायन कर गए. मिजोरम की मिज़ो जनजाति ब्रू को बाहरी मानती रही है. हालाँकि कुछ ब्रू शरणार्थी मिजोरम वापस लौटे और इन लोगों को सरकार की ओर से मदद भी दी गई.


 Prelims Vishesh

1st May: Labour Day :-

  • प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी 1 मई को श्रमिक दिवस मनाया गया.
  • भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई. भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी.
  • इन दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है.
  • अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 4 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में चल रहे मजदूर आन्दोलन के बीच पुलिस द्वारा की गई गोलबारी में कुछ मजदूरों के देहांत के याद में मनाया जाता है.
  • इस दिवस को 1 मई को मनाने की परम्परा 1891 को जाकर शुरू हुई.

Bank of Schemes, Ideas, Innovation and Research portal :-

  • पिछले दिनों सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने एक पोर्टल निकाला है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्य/संघीय क्षेत्र सरकारों की सभी योजनाओं से सम्बंधित जानकारी मिल सकती है.
  • इस पोर्टल में कोई अपने विचार, नवाचार और अनुसंधान अपलोड कर सकता है.
  • इसका उद्देश्य योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन के विषय में नए-नए विचारों का संग्रह करना और उनके लिए पूँजी, विदेशी सहयोग आदि की सुविधा प्रदान करना है.

Hezbollah :

  • लेबनान से काम करने वाले शिया इस्लामियों के राजनैतिक दल – हिजबुल्ला – को जर्मनी ने एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया.
  • माना जाता है कि हिजबुल्ला ईरान की ओर से काम करता है.

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