Sansar Daily Current Affairs, 05 November 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : US exiting the Paris Agreement
संदर्भ
अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने की सूचना औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र को दे दी है. जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका के बाहर होने को लेकर अन्य देशों के साथ रूस ने भी आलोचना करते हुए कहा कि इससे समझौते का महत्व घट गया है क्योंकि उत्सर्जन के मामले में अमेरिका अग्रणी देश है.
इस वैश्विक समझौते से निकलने के बाद अमेरिका वह एकमात्र देश होगा जो इस संधि में शामिल नहीं होगा.
पेरिस जलवायु समझौता क्या है?
जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटाना अत्यावश्यक है. इस लक्ष्य को पाने के लिए ही 2016 में पेरिस समझौता नामक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई थी जिसमें लगभग 200 देश शामिल हैं.
समझौते से निकलने की प्रक्रिया
पेरिस समझौते के अनुच्छेद 28 में इससे बाहर निकलने की प्रक्रिया दी हुई है. इसके अनुसार, समझौते से बाहर निकलने के लिए किसी भी देश को समझौते के लागू होने से कम से कम तीन वर्ष के बाद नोटिस देना होगा. क्योंकि यह समझौता नवम्बर 4, 2016 में हुआ था इसलिए अमेरिका ने नवम्बर 4, 2019 में अपना नोटिस दे दिया है.
नोटिस देने के एक वर्ष के बाद ही अमेरिका समझौते से बाहर माना जाएगा.
अमेरिका के निर्णय का निहितार्थ
- अमरीका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. यदि यह अपना उत्सर्जन नहीं घटाएगा तो समझौते का यह लक्ष्य कि वैश्विक तापमान को औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व के तापमान के 2 डिग्री सेल्सियस तक रखा जाए, खतरे में पड़ जाएगा.
- अमेरिका के हटने से पेरिस समझौते में निहित वित्तीय संसाधन जुटाना भी कठिन हो जाएगा क्योंकि अमेरिका ही सबसे अधिक वित्त मुहैया करता है.
- विदित हो कि समझौते के अधीन विकसित देशों को 2020 से कम से कम 100 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष उपलब्ध कराना अनिवार्य है.
GS Paper 2 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : Iran nuclear deal
संदर्भ
ईरान ने हाल ही में वैश्विक शक्तियों के साथ हुए आणविक समझौते के अपने नवीनतम उल्लंघनों की घोषणा करते हुए कहा कि अब वह 2015 के समझौते के तहत प्रतिबंधित उन्नत सेंट्रीफ्यूज के मुकाबले दोगुने संट्रीफ्यूज का संचालन कर रहा है. साथ ही उसने कहा कि वह एक ऐसे प्रोटोटाइप पर काम कर रहा है जो सौदे के तहत दी गई अनुमति के मुकाबले अत्यंत तेज है. ईरान द्वारा 1979 में अमेरिकी दूतावास का अधिग्रहण करने की 40वीं वर्षगाँठ के अवसर पर यह घोषणा की गई.
उन्नत सेंट्रीफ्यूज का निहितार्थ
- इन उन्नत सेंट्रीफ्यूज पर काम शुरू करने का मतलब है कि ईरान के पास विशेषज्ञों के अनुमान के मुकाबले एक साल पहले ही आणविक हथियार बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री होगी.
- ईरान अब 60 IR-6 उन्नत सेंट्रीफ्यूजों का संचालन कर रहा है जो पहली पीढ़ी के IR-1 की तुलना में 10 गुनी तेज गति से समृद्ध यूरेनियम का उत्पादन कर सकता है.
- विदित हो कि समझौते के अंतर्गत ईरान को IR-1 सेंट्रीफ्यूज रखने की ही अनुमति है. IR-6 सेंट्रीफ्यूज के कारण ईरान को परमाणु अस्त्र बनाने में अनुमान से एक वर्ष कम का समय लगेगा.
ईरान आणविक समझौता क्या है?
- यह समझौता, जिसे Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA के नाम से भी जाना जाता है, ओबामा के कार्यकाल में 2015 में हुआ था.
- इरानियन आणविक डील इरान और सुरक्षा परिषद् के 5 स्थाई सदस्य देशों तथा जर्मनी के बीच हुई थी जिसे P5+1भी कहा जाता है.
- यह डील ईरान द्वारा चालाये जा रहे आणविक कार्यक्रम को बंद कराने के उद्देश्य से की गई थी.
- इसमें ईरान ने वादा किया था कि वह कम-से-कम अगले 15 साल तक अणु-बम नहीं बनाएगा और अणु-बम बनाने के लिए आवश्यक वस्तुओं, जैसे समृद्ध यूरेनियम तथा भारी जल के भंडार में भारी कटौती करेगा.
- समझौते के तहत एक संयुक्त आयोग बनाया गया था जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि थे. इस आयोग का काम समझौते के अनुपालन पर नज़र रखना था.
- इस डील के अनुसार ईरान में स्थित आणविक केंद्र अमेरिका आदि देशों की निगरानी में रहेंगे.
- ईरान इस डील के लिए इसलिए तैयार हो गया था क्योंकि आणविक बम बनाने के प्रयास के कारण कई देशों ने उसपर इतनी आर्थिक पाबंदियाँ लगा दी थीं कि उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी.
- उल्लेखनीय है कि तेल निर्यात पर प्रतिबंध के कारण ईरान को प्रतिवर्ष करोड़ों पौंड का घाटा हो रहा था. साथ ही विदेश में स्थित उसके करोड़ों की संपत्तियां भी निष्क्रिय कर दी गई थीं.
अमेरिका समझौते से हटा क्यों?
अमेरिका का कहना है कि यह समझौता दोषपूर्ण है क्योंकि एक तरफ ईरान को करोड़ों डॉलर मिलते हैं तो दूसरी ओर वह हमास और हैजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को सहायता देना जारी किये हुए है. साथ ही यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से रोक नहीं पा रहा है. अमेरिका का कहना है कि ईरान अपने आणविक कार्यक्रम के बारे में हमेशा झूठ बोलता आया है.
भारत पर निर्णय के प्रभाव
तेल की कीमतें : ईरान वर्तमान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश (इराक के बाद) है और कीमतों में कोई भी वृद्धि मुद्रास्फीति के स्तर और भारतीय रूपये दोनों को भी प्रभावित करेगी.
चाबहार : अमेरिकी प्रतिबंध चाबहार परियोजना के निर्माण की गति को धीमा कर सकते हैं अथवा रोक भी सकते हैं. भारत, बन्दरगाह हेतु निर्धारित कुल 500 मिलियन डॉलर के व्यय में इसके विकास के लिए लगभग 85 मिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान के लिए रेलवे लाइन हेतु लगभग 1.6 अरब डॉलर तक का व्यय हो सकता है.
भारत, INSTC (International North–South Transport Corridor) का संस्थापक है. इसकी अभिपुष्टि 2002 में की गई थी. 2015 में JCPOA पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद ईरान से प्रतिबन्ध हटा दिए गये और INSTC की योजना में तीव्रता आई. यदि इस मार्ग से सम्बद्ध कोई भी देश या बैंकिंग और बीमा कम्पनियाँ INSTC योजना से लेन-देन करती है तथा साथ ही ईरान के साथ व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का अनुपालन करने का निर्णय लेती हैं तो नए अमेरिकी प्रतिबंध INSTC के विकास को प्रभावित करेंगे.
GS Paper 3 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.
Topic : What is trade deficit?
संदर्भ
पिछले दिनों भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (RCEP) पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था क्योंकि उसे डर है कि RCEP के अन्दर आने वाले अन्य देशों के साथ उसके व्यापार घाटे में और भी बढ़ोतरी हो जायेगी.
व्यापार घाटा क्या है?
कोई देश जितना अपने निर्यात से कमाता है और जितना अपने आयात से गँवाता है तो इन दोनों राशियों से उसके व्यापार संतुलन का पता चलता है. यदि आयात की गई वस्तुओं के लिए निर्यात से होने वाली आमदानी से अधिक भुगतान करना पड़ता है, तो ऐसी स्थिति को व्यापार घाटा कहा जाता है.
उदाहरण के लिए वर्तमान में चीन और भारत के व्यापार में भारत व्यापार घाटे में चल रहा है और चीन व्यापार अधिकाई में चल रहा है.
व्यापार घाटे का निहितार्थ
- यदि कोई देश व्यापार घाटे में है तो इसका अर्थ हुआ कि उस देश के घरेलू उत्पादक घरेलू बाजार की माँग को पूरा करने में असमर्थ हैं.
- बहुधा यह देखा जाता है कि घरेलू उद्योग में प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण व्यापार घाटा होता है.
क्या व्यापार घाटा बुरी चीज है?
यह आवश्यक नहीं है. किसी भी देश का व्यापार संतुलित नहीं होता है. यदि अधिक सस्ता और अधिक अच्छा दूध अथवा स्टील भारत में आता है तो यहाँ के उपभोक्ता के स्वास्थ्य में सुधार अवश्य होगा और उनके लिए कार खरीदना आसान हो जाएगा. ऐसी स्थिति में देश के दुग्ध उत्पादक और स्टील बनाने वाले शोर मचाएँगे. परन्तु यदि वे इन दोनों वस्तुओं के उत्पादन में कुशल नहीं हैं तो उनको चाहिए कि वे किसी अन्य वस्तु के उत्पादन में अपना ध्यान दें.
इस प्रकार कहा जा सकता है कि व्यापार घाटे के कारण देश की अर्थव्यवस्था का विविधिकरण (diversification) होता है जो अंततोगत्वा देश के लिए लाभप्रद होता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.
Topic : Wasteland Atlas
संदर्भ
भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस वर्ष बंजर मानचित्र (wasteland atlas) का पाँचवाँ संस्करण प्रकाशित कर दिया है. विदित हो कि इसका पिछला संस्करण 2011 में छपा था.
इस बार का एटलस इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसमें पहली बार जम्मू-कश्मीर के भूभाग को शामिल किया गया है.
ज्ञातव्य है कि बंजर मानचित्र बनाने का काम राष्ट्रीय सुदूर सेंसिंग केंद्र (National Remote Sensing Centre – NRSC) ने भारतीय सुदूर सेंसिंग उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके किया है.
मुख्य निष्कर्ष
- इस मानचित्र में भारत में बंजर भूमि का विस्तार 55.76 Mha दिखाया गया है जो देश के पूरे भौगोलिक क्षेत्र (328.72 Mha) का 16.96% होता है.
- इस एटलस के अनुसार, 2008-09 से लेकर 2015-16 तक 1.45 Mha बंजर भूमि को बंजर की श्रेणी से बाहर लाया गया.
- विश्व के भूभागीय क्षेत्रफल का 2.4% भारत में है परन्तु यहाँ विश्व के 18% लोग रहा करते हैं. इस कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता 0.12 हेक्टेयर है जबकि विश्व की औसत प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता 0.29 हेक्टेयर है.
बंजर भूमि एटलस का महत्त्व
यह सर्वविदित है कि आज जमीन पर बहुत बड़ा दबाव है जिस कारण इसकी गुणवत्ता में क्षरण हो रहा है. ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि देश की बंजर भूमि के सम्बन्ध में ठोस जानकारी हो जिससे इन भूमियों को भूमि-विकास कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से उत्पादक बनाया जा सके.
Prelims Vishesh
What is the Danakil Depression? :-
- एक नए अध्ययन से पता चला है कि पूर्वोत्तर इथियोपिया में स्थित दानाकिल की धंसी हुई भूमि (समुद्र जल-स्तर से 100 मीटर नीची) न केवल विश्व के सबसे गर्म स्थानों में से एक है, अपितु यहाँ किसी प्राणी का जीवित रह पाना संभव है.
- ऐसा इसलिए है क्योंकि एक ओर यहाँ का धरातल नमक से भरा हुआ है तो दूसरी ओर यहाँ के वायुमंडल में pH बहुत कम है.
- ज्ञातव्य है कि दानाकिल आतंरिक जलाशयों के वाष्पीकरण से बना है.
- इसके उत्तर में ग्रेट रिफ्ट वैली है और लाल सागर के सक्रिय ज्वालामुखी पर्वत पास में ही स्थित हैं.
ICEDASH and ATITHI for improved customs clearance :-
- आयातित वस्तुओं के सीमा शुल्क समाशोधन के साथ-साथ देश में आने वाले विदेशी यात्रियों की सुविधा में सुधार और तेजी लाने के उद्देश्य से दो नए ऐप आरम्भ किये गये हैं जिनके नाम हैं – ICEDASH और
- ICEDASH में एक डैशबोर्ड होता है जिसमें विभिन्न बन्दरगाहों और हवाई अड्डों पर लोग देख सकते हैं कि दिन-प्रतिदिन आयातित माल को सीमा शुल्क समाशोधन प्राप्त हो रहा है.
- ATITHI ऐप के माध्यम से विदेश से आने वाले यात्रियों के लिए सीमा शुल्क से सम्बंधित समाशोधन को तेज और निर्बाध किया जाएगा.
Polypedates bengalensis :–
- पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में मेढ़क की एक नई प्रजाति का पता चला है जिसे Brown Blotched Bengal Tree Frog कहा जा रहा है.
- इसका तकनीकी नाम Polypedates bengalensis रखा गया है.
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