Sansar Daily Current Affairs, 06 January 2020
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes; mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.
Topic : Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana (PMFBY)
संदर्भ
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के वेब पोर्टल से अपने भूमि आलेखों को जोड़ने वाला महाराष्ट्र देश का पहला राज्य बन गया है. ऐसा करने से अब सरलता से पता चल सकेगा कि किसी व्यक्ति को उसकी भूमि से अधिक बीमा तो नहीं कर दी गई है.
PMFBY योजना के समक्ष चुनौतियाँ
- पिछले रबी मौसम से सम्बंधित आँकड़ें उपलब्ध नहीं हैं.
- कुछ ही राज्य सरकारें समय पर प्रीमियम में अपना हिस्सा दे रही हैं जिससे केन्द्रीय सरकार के द्वारा शेष हिस्से को देने में कठिनाई हो रही है.
- फसलों की क्षति के मूल्यांकन के बारे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग नहीं हो रहा है.
- क्षति के आकलन के सम्बन्ध में लगी हुई एजेंसियाँ अप्रशिक्षित हैं और उनमें भ्रष्टाचार देखा गया है.
- दावा भुगतान में देरी.
- बीमा कंपनियों द्वारा वसूल की जा रही प्रीमियम की दरें ऊँची हैं.
- राज्यों की ओर से प्रीमियम के भुगतान में देरी अथवा फसल-कटाई का आँकड़ा आने में कोताही के कारण कम्पनियाँ किसानों को समय पर भुगतान नहीं कर रही हैं.
- बीमा कम्पनियाँ योजना के उचित कार्यान्वयन के लिए आवश्यक ढाँचा तैयार करने में विफल रही हैं.
- भीषण मौसमी घटनाओं के समय इस योजना से मिलने वाला लाभ किसानों के लिए अपर्याप्त होता है.
प्रधान मन्त्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
अप्रैल 2016 में भारत सरकार ने पुरानी बीमा योजनाओं, जैसे – राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, मौसम आधारित फसल बीमा योजना और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को वापस लेते हुए एक नई योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का आरम्भ किया था.
- इस बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को खरीफ फसलों के लिए 2% और रबी फसलों के लिए 1.5% प्रीमियम देना होता है.
- वार्षिक नकदी और बाग़वानी फसलों के लिए प्रीमियम की दर 5% होती है.
- जिन किसानों ने बैंकों से ऋण लिया है उनके लिए यह योजना अनिवार्य है और जिन्होंने नहीं लिया है, उनके लिए यह वैकल्पिक है.
उद्देश्य
- अप्रत्याशित कारणों से फसल की क्षति के शिकार किसानों को आर्थिक सहारा देना.
- किसानों की आय को बनाए रखना जिससे कि वे खेती करना नहीं छोड़ें.
- किसानों को अभिनव एवं आधुनिक कृषि प्रचलन अपनाने के लिए उत्साहित करना.
- कृषि प्रक्षेत्र में ऋण के प्रवाह को सुनिश्चित करना जिससे खाद्य सुरक्षा, फसलों की विविधता, उत्पादन में वृद्धि और कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिले और उत्पादन के जोखिमों से किसान सुरक्षित हो सके.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation. Issues related to farm subsidies.
Topic : Farm loan waiver
संदर्भ
महाराष्ट्र सरकार ने उन किसानों के ऋण माफ करने की घोषणा की है जिनके पास अप्रैल 1, 2015 से मार्च 31, 2019 के बीच 2 लाख रु. तक का बकाया है. स्मरणीय है कि ढाई वर्षों में दी गई यह दूसरी ऋण माफी है.
कृषि ऋण माफी की पात्रता (ELIGIBILITY FOR FARM LOAN WAIVER)
- वे किसान जिनका अप्रैल 1, 2015 से मार्च 31, 2019 तक 2 लाख रु. तक का कृषि ऋण बकाया है.
- जिस परिवार ने एक से अधिक ऋण लिया है उन्हें प्रत्येक ऋण खाते के लिए माफी दी जायेगी.
ऋण माफी की त्रुटियाँ
- इस प्रकार की ऋण माफी बहुत कम किसानों के लिए होती है. अधिकांश वैसे किसान इसके दायरे में नहीं आते हैं जिनको सचमुच राहत चाहिए होता है.
- यह ऋण माफी खेती के लिए होती है जबकि किसान जो ऋण लेते हैं उनमें आधे ऋण गैर-कृषि उद्देश्यों से लिए जाते हैं. इस प्रकार ऋणग्रस्त किसानों को इससे मात्र आंशिक राहत मिलती है.
- कुछ परिवार एक से अधिक ऋण अलग-अलग स्रोतों से और अलग-अलग नाम से लेते हैं और इस प्रकार वे ऋण माफी के दायरे में आने में सफल हो जाते हैं.
- ऋण माफी के अन्दर कृषि श्रमिक नहीं आते हैं जबकि उन्हें ही आर्थिक सहायता की अधिक आवश्यकता होती है.
- ऋण माफी का बैंक व्यवसाय पर दूरगामी कुप्रभाव होता है.
- ऋण माफी की योजनाओं में बहुधा यह देखा जाता है कि कुछ सुपात्र इसमें छूट जाते हैं और कुछ कुपात्र इसका लाभ उठा लेते हैं जैसा कि CAG ने 2008 की ऐसी ही एक योजना की एक समीक्षा में पाया था.
- ऋण माफी सरकार के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक बोझ होता है जिससे उसकी व्यय शक्ति दुष्प्रभावित होती है और विकास के कामों को धक्का लगता है.
क्या किया जाए?
ऋण माफी के लिए एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था आवश्यक है जिसमें निश्चित मानदंडों के आधार पर संकटग्रस्त किसानों की सही पहचान हो सके और पीड़ित परिवारों को समतुल्य मात्रा में आर्थिक राहत दी जा सके.
ग्रामीण ऋणग्रस्तता और कृषि से जुड़े कष्ट का टिकाऊ समाधान कृषि कार्यों से होने वाली आय में बढ़ोतरी लाना तथा गैर-कृषि स्रोतों से आय की उपलब्धि को बढ़ावा देना है.
किसानों की आय और कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए और कुछ कदम उठाये जा सकते हैं, जैसे – उन्नत तकनीक, सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाना और नए-नए प्रकार के फसलें उगाना. परन्तु इन सब के लियए सरकार की ओर से धनराशि और सहयोग की आवश्कता है.
RBI की टिप्पणियाँ
RBI का कहना है कि ऋण माफी से न केवल कृषि क्षेत्र में निवेश ही बाधित होता है, अपितु इससे उन राज्यों की वित्तीय स्थिति डगमगा जाती है जो ऋण माफी घोषित करते हैं.
पिछले पाँच वर्षों में जब-जब किसी राज्य में चुनाव हुआ है तब-तब किसी न किसी राजनीतिक दल ने ऋण माफी का वादा किया है. 2008-09 में, केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने पूरे देश के लिए ऋण माफी योजना की घोषणा की थी. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों ने भी हाल के दिनों में इसी तरह की योजनाओं की घोषणा की है.
RBI का तर्क है कि इस प्रकार की माफी से साख की संस्कृति दूषित हो जाती है और बजट पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है.
GS Paper 2 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : Iran nuclear deal
संदर्भ
अमेरिकी सैनिकों द्वारा जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या कर देने के पश्चात् ईरान ने अपने आप को संयुक्त व्यापक कार्य योजना (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) आणविक समझौते से पूरी तरह से अलग कर लिया है.
ईरान आणविक समझौता क्या है?
- यह समझौता, जिसे Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA के नाम से भी जाना जाता है, ओबामा के कार्यकाल में 2015 में हुआ था.
- इरानियन आणविक डील इरान और सुरक्षा परिषद् के 5 स्थाई सदस्य देशों तथा जर्मनी के बीच हुई थी जिसे P5+1 भी कहा जाता है.
- यह डील ईरान द्वारा चालाये जा रहे आणविक कार्यक्रम को बंद कराने के उद्देश्य से की गई थी.
- इसमें ईरान ने वादा किया था कि वह कम-से-कम अगले 15 साल तक अणु-बम नहीं बनाएगा और अणु-बम बनाने के लिए आवश्यक वस्तुओं, जैसे समृद्ध यूरेनियम तथा भारी जल के भंडार में भारी कटौती करेगा.
- समझौते के तहत एक संयुक्त आयोग बनाया गया था जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि थे. इस आयोग का काम समझौते के अनुपालन पर नज़र रखना था.
- इस डील के अनुसार ईरान में स्थित आणविक केंद्र अमेरिका आदि देशों की निगरानी में रहेंगे.
- ईरान इस डील के लिए इसलिए तैयार हो गया था क्योंकि आणविक बम बनाने के प्रयास के कारण कई देशों ने उसपर इतनी आर्थिक पाबंदियाँ लगा दी थीं कि उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी.
- उल्लेखनीय है कि तेल निर्यात पर प्रतिबंध के कारण ईरान को प्रतिवर्ष करोड़ों पौंड का घाटा हो रहा था. साथ ही विदेश में स्थित उसके करोड़ों की संपत्तियां भी निष्क्रिय कर दी गई थीं.
अमेरिका समझौते से हटा क्यों?
अमेरिका का कहना है कि यह समझौता दोषपूर्ण है क्योंकि एक तरफ ईरान को करोड़ों डॉलर मिलते हैं तो दूसरी ओर वह हमास और हैजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को सहायता देना जारी किये हुए है. साथ ही यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से रोक नहीं पा रहा है. अमेरिका का कहना है कि ईरान अपने आणविक कार्यक्रम के बारे में हमेशा झूठ बोलता आया है.
भारत पर निर्णय के प्रभाव
तेल की कीमतें : ईरान वर्तमान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश (इराक के बाद) है और कीमतों में कोई भी वृद्धि मुद्रास्फीति के स्तर और भारतीय रूपये दोनों को भी प्रभावित करेगी.
चाबहार : अमेरिकी प्रतिबंध चाबहार परियोजना के निर्माण की गति को धीमा कर सकते हैं अथवा रोक भी सकते हैं. भारत, बन्दरगाह हेतु निर्धारित कुल 500 मिलियन डॉलर के व्यय में इसके विकास के लिए लगभग 85 मिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान के लिए रेलवे लाइन हेतु लगभग 1.6 अरब डॉलर तक का व्यय हो सकता है.
भारत, INSTC (International North–South Transport Corridor) का संस्थापक है. इसकी अभिपुष्टि 2002 में की गई थी. 2015 में JCPOA पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद ईरान से प्रतिबन्ध हटा दिए गये और INSTC की योजना में तीव्रता आई. यदि इस मार्ग से सम्बद्ध कोई भी देश या बैंकिंग और बीमा कम्पनियाँ INSTC योजना से लेन-देन करती है तथा साथ ही ईरान के साथ व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का अनुपालन करने का निर्णय लेती हैं तो नए अमेरिकी प्रतिबंध INSTC के विकास को प्रभावित करेंगे.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : Asia Pacific Drosophila Research Conference
संदर्भ
एशिया प्रशांत ड्रोसोफिला शोध सम्मेलन (Asia Pacific Drosophila Research Conference – APDRC) का पाँचवाँ सत्र पुणे के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान (Indian Institute of Science Education and Research – IISER) में आयोजित हो रहा है.
यह सम्मेलन भारत में पहली बार होने जा रहा है. इस सम्मेलन के पहले के चार सत्र ताइपेई, सियोल, बीजिंग और ओसाका में सम्पन्न हुए थे.
एशिया प्रशांत ड्रोसोफिला शोध सम्मेलन (APDRC) क्या है?
एशिया प्रशांत ड्रोसोफिला शोध सम्मेलन दो वर्षों में एक बार होने वाला आयोजन है जिसका उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र के ड्रोसोफिला शोधकर्ताओं को शेष विश्व के इस प्रकार के शोधकर्ताओं से मिलने-जुलने का अवसर देना है.
ड्रोसोफिला क्या है?
ड्रोसोफिला एक प्रकार की मक्खी है जो Drosophilidae मक्खी परिवार से आती है. इन मक्खियों को छोटी फल मक्खियाँ (small fruit flies) भी कहा जाता है. इसके अन्य लोकप्रिय नाम हैं – पोमेस मक्खी (pomace flies), सिरका मक्खी (vinegar flies) अथवा मदिरा मक्खी (wine flies). इन नामों से स्पष्ट हो जाता है कि ये मक्खियाँ बहुत अधिक पक जाने वाले या सड़ने वाले फलों के आस-पास मंडराती है.
जीव-विज्ञान में शोध करने के लिए पिछले 100 वर्षों से ड्रोसोफिला मक्खी को आदर्श जीव माना जाता है और ऐसे प्रयोगों में इसका बहुत उपयोग होता है. जीव-विज्ञान के कई अन्वेषण इसी मक्खी का प्रयोग करके हुए हैं.
इस मक्खी की जीनोम को पूरी तरह से क्रमबद्ध किया जा चुका है और इसके जैव रसायन, शरीर रचना और व्यवहार के विषय में हमारे पास सूचनाओं का विपुल भंडार है.
GS Paper 3 Source: PIB
UPSC Syllabus : Infrastructure- energy.
Topic : Ujala scheme
संदर्भ
भारत सरकार की योजना उजाला अर्थात् Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All तथा राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम (SLNP) के शुरू हुए पाँच वर्ष बीत चुके हैं.
अब तक उजाला में हुई प्रगति
इस योजना के अंतर्गत 36.13 करोड़ LED बल्ब बाँटे जा चुके हैं और इसके कारण प्रत्येक वर्ष 38 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन घटा है.
SLNP का प्रदर्शन
विगत पाँच वर्षों में इस योजना के अंतर्गत 1.03 करोड़ सड़कों पर स्मार्ट LED बत्तियाँ लगाई जा चुकी हैं. इस पहल से न केवल 4.8 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम हुआ है, अपितु 13,000 नौकरियों का भी सृजन हुआ है.
उजाला योजना क्या है?
- यह कम दाम पर LED के बल्ब वितरित करने की योजना है जो केन्द्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अधीनस्थ लोक उपक्रमों के संयुक्त वेंचर एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) के द्वारा चलाई जा रही है.
- इसका उद्देश्य प्रकाश की कारगर व्यवस्था करना, कम खर्च वाले LED बल्बों के बारे में लोगों की जानकारी को बढ़ाना और पर्यावरण की रक्षा करना है.
- उजाला भारत सरकार की एक मूर्धन्य योजना ही जो प्रयास करती है कि भारत के हर घर में लोग LED बल्ब लगायें जिससे बिजली का खर्च घटे और कार्बन उत्सर्जन की दरों पर लगाम लगाया जा सके.
राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम क्या है?
- SLNP सरकार का एक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य सड़कों पर लगाईं जाने वाली साढ़े तीन करोड़ पारम्परिक बत्तियों को हटा कर वहाँ पर कम बिजली खपत वाली LED बत्तियां लगाना है.
- यह परियोजना देश के 28 राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों में लागू की गई है. इस परियोजना को लागू करने के लिए एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) नामक एक लोक ऊर्जा सेवा कम्पनी को चुना गया है जो भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के प्रशासनाधीन है.
- परियोजना की समाप्ति पर EESL सभी राज्यों में किये गये काम का सामाजिक अंकेक्षण भी कराएगी.
SLNP के उद्देश्य
- सड़कों पर कम बिजली खपत करने वाले LED बत्तियाँ लगा कर जलवायु परिवर्तन को धीमा करना.
- ऊर्जा खपत को घटाना जिससे DISCOM कम्पनियों को उस समय बिजली की आपूर्ति करने में सुविधा हो जब इसकी सबसे अधिक माँग होती है.
- LED बत्तियों की खरीद के भुगतान के लिए आर्थिक संसाधन के जुगाड़ की एक टिकाऊ व्यवस्था तैयार करना.
- सड़कों को प्रकाशित करने में नगरपालिकाओं पर कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ न हो ऐसी व्यवस्था करना.
EESL क्या है?
- एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) भारत सरकार के NTPC लिमिटेड, ऊर्जा वित्त निगम, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम और पॉवर ग्रिड का एक संयुक्त उपक्रम है.
- इसकी स्थापना भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के अधीन ऐसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिए किया गया था जिनसे ऊर्जा की खपत कम-से-कम हो.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Indigenization of technology and developing new technology.
Topic : Project NETRA
संदर्भ
अन्तरिक्षीय वस्तुओं पर नजर रखने के लिए बनाई गई परियोजना NETRA के अंतर्गत दूरबीन केंद्र स्थापित करने के निमित्त सहयोग के लिए ISRO ने भारतीय अन्तरिक्ष खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के साथ एक समझौता किया है.
प्रोजेक्ट NETRA क्या है?
- NETRA का पूरा नाम है – Network for space object Tracking and Analysis.
- इस परियोजना के अन्दर अन्तरिक्षीय मलबे आदि का पता लगाने के लिए ISRO कई रडार और दूरबीन स्थापित करेगा जो एक-दूसरे से जुड़े होंगे. साथ ही अनेक डाटा प्रसंस्करण इकाइयाँ और एक नियंत्रण केंद्र भी स्थापित किया जाएगा.
- इस प्रणाली के द्वारा 3,400 किलोमीटर तक की दूरी पर स्थित 10 cm छोटी वस्तुओं का भी लग जाएगा और उस पर नजर रखने के साथ-साथ उसकी सूची भी तैयार होती जायेगी.
परियोजना का माहात्म्य
- इस परियोजना के बल पर अन्य अन्तरिक्षीय शक्तियों की भाँति भारत भी अन्तरिक्ष की स्थिति को समझने का सामर्थ्य अर्जित कर लेगा और इसका प्रयोग उपग्रहों पर मलबे से होने वाले खतरे की भविष्यवाणी करने में करेगा.
- NETRA का अंतिम लक्ष्य 36,000 किलोमीटर की ऊँचाई पर अथवा भू-स्थैतिक परिक्रमा स्तर अन्तरिक्ष की स्थिति की जानकारी प्राप्त करना है क्योंकि इसी परिक्रमा पथ पर अधिकांश संचार उपग्रह काम करते हैं.
Prelims Vishesh
Chinese paddlefish found in the Yangtze declared extinct :-
चीन के वैज्ञानिकों द्वारा विलुप्त घोषित हो चुकी एशिया की सबसे लम्बी नदी यांग्ज़े (Yangtze) में पाई जाने वाली वृहदाकार पैडल मछली फिर से देखी गई है.
‘Cyber Safe Women’ initiative :–
समाजसुधारिका सावित्री बाई फुले की जयंती पर महाराष्ट्र सरकार ने साइबर सेफ वीमेन नामक एक अभियान चलाया है जिसमें स्त्रियों और बच्चों के प्रति किये गये अत्याचारों और साइबर अपराध से सम्बंधित कानूनों की जानकारी दी जायेगी.
Patola Sarees :–
- खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग (KVIC) ने गुजरात के सुरेन्द्रनगर में पहले रेशम प्रसंस्करण संयत्र का अनावरण किया है.
- इस संयत्र के लगने से रेशमी धागे की उत्पादन की लागत घटेगी और गुजरात की पटोला साड़ियों की बिक्री और उसके लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ेगी.
- विदित हो कि गुजरात की यह साड़ी इतनी महँगी होती है कि इसे केवल राजा-महाराजा ही पहना करते थे.
- पटोला साड़ी को 2013 में भौगोलिक संकेतक टैग (GI Tag) मिल चुका है.
Bhitarkanika census on saltwater crocodiles :–
- भीतरकनिका उद्यान में कराये गये सेन्सस से पता चलता है कि उस उद्यान में पिछले वर्ष की तुलना में 15 मगर बढ़ चुके हैं और अब इनकी संख्या 1,757 हो चुकी है.
- विदित हो कि मगरों की तीन प्रजातियाँ होती हैं – मगर, घड़ियाल और साल्टवाटर.
मगरों के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं – मगर, घड़ियाल और नमकीन पानी में रहने वाले सरीसृप.
मगर
- इन्हें भारतीय सरीसृप अथवा दलदली सरीसृप भी कहते हैं. ये मगर पूरे भारतीय महाद्वीप में पाए जाते हैं.
- IUCN ने मगर को संकटग्रस्त सूची में रखा है.
- मगर मुख्य रूप से मृदुजल की प्रजाति है जो झीलों, नदियों और दलदलों में पाए जाते हैं.
घड़ियाल
- घड़ियाल भारतीय उपमहाद्वीप मूल का सरीसृप है जो मछली खाने के लिए जाना जाता है.
- IUCN की सूची में इसे विकट रूप से संकटग्रस्त बताया गया है.
- जिन जलाशयों आदि में घड़ियाल पाए जाते हैं, वे हैं – राष्ट्रीय चम्बल आश्रयणी, कतरनिया घाट वन्य जीव आश्रयणी और सोन नदी आश्रयणी की नदियाँ तथा ओडिशा की सतकोसिया गोर्ज आश्रयणी में महानदी का वर्षा-वन क्षेत्र.
नमकीन पानी में रहने वाले सरीसृप
- ये सरीसृप भारत के समस्त पूर्वी समुद्र तट में पाए जाते हैं.
- ये सभी सरीसृपों में विशालतम होते हैं.
- IUCN में ये उन प्रजातियों की सूची में आते हैं जिनपर विलुप्ति का खतरा सबसे कम है.
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