Sansar Daily Current Affairs, 06 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय.
Topic : Poshan Tracker
संदर्भ
भारत सरकार ने लोकसभा में सूचित करते हुए बताया है, कि ‘महिलाओं और बच्चों की निजता’ के हित को ध्यान में रखते हुए ‘पोषण ट्रैकर’ (Poshan Tracker) में दर्ज आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इसका उद्देश्य, भारत में आंगनवाड़ी प्रणालियों के जारी, राज्य सरकारों के सहयोग से भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं का लाभ उठाने वाली महिलाओं और बच्चों की निजता का सम्मान करना है.
‘पोषण ट्रैकर’ के बारे में
- ‘पोषण ट्रैकर’ (Poshan Tracker) को इसके पिछले संस्करण में ‘एकीकृत बाल विकास सेवाएं-सामान्य अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर’ (Integrated Child Development Services-Common Application Software: ICDS-CAS) के रूप में जाना जाता था, जिसे आंगनवाड़ियों के माध्यम से वितरित की जाने विभिन्न सेवाओं को ट्रैक करने और इनमें सुधार करने तथा लाभार्थियों के पोषण प्रबंधन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था.
- यह रियल टाइम निगरानी प्रणाली, नवंबर 2017 में तीन वर्ष की अवधि के लिए 9,000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित पोषण अभियान के प्रमुख स्तंभों में से एक है.
- इस ट्रैकर को विकसित करने के लिए सरकार द्वारा ₹1,053 करोड़ का व्यय किया गया है.
महत्त्व
- ‘पोषण ट्रैकर’, पोषण अभियान के महत्त्वपूर्ण स्तंभों में से एक है.
- यह सरकार को 3 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों पर दी जाने वाली सेवाओं की निगरानी करने में सहयोग करता है.
- यह छह महीने से छह साल तक की उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं सहित 8 लाख लाभार्थियों के पोषण संकेतक रिकॉर्ड करता है.
- आंगनवाड़ी केंद्रों में, गर्म पके हुए भोजन के रूप में पूरक पोषण, और घर ले जाने का राशन, टीकाकरण और स्कूल पूर्व शिक्षा सहित छह सेवाएं प्रदान की जाती हैं.
संबंधित विवाद
- एक संसदीय समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में ‘पोषण ट्रैकर’ के प्रभावी उपयोग पर कई सवाल उठाए गए हैं.
- समिति ने मांग की है, कि प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों की लगातार निगरानी की जाए और इनको वेबसाइट पर अपलोड किया जाए और साथ ही एक राज्य-वार प्रगति रिपोर्ट को संधृत किया जाए “ताकि समय पर लाभ से वंचित रह जाने वाले लोगों की, वास्तविक समय के आधार पर, पहचान की जा सके और इसके लिए उपचारात्मक उपाय किए जा सके.”
- समिति ने मंत्रालय से आंगनवाड़ी लाभार्थियों को भोजन के पैकेट वितरण में कोई अंतराल नहीं होने, को सुनिश्चित करने के लिए एक निगरानी तंत्र स्थापित करने की सिफारिश भी की है.
‘पोषण अभियान’ क्या है?
- 8 मार्च, 2018 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण मिशन शुरू किया गया था.
- इसका उद्देश्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों में) और जन्म के समय कम वज़न को क्रमशः 2%, 2%, 3% और 2% प्रतिवर्ष कम करना है.
- इसमें वर्ष 2022 तक 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों में स्टंटिंग को 38.4% से कम कर 25% तक करने का भी लक्ष्य शामिल है.
उद्देश्य एवं लक्ष्य
- 0-6 वर्ष के बच्चों में ठिगनेपन से बचाव एवं इसमें प्रति वर्ष 2% (2022 तक कुल 6%) की दर से कमी लाना.
- 15 से 49 वर्ष की किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री (स्तनपान कराने वाली) माताओं में रक्ताल्पता के प्रसार में प्रति वर्ष 3% की दर से (कुल 9%) कमी लाना.
- मिशन का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 0-6 आयु वर्ग के बच्चों में ठिगनेपन को 4% से घटाकर 25% करना है.
पृष्ठभूमि
पांच साल से कम उम्र के एक तिहाई से अधिक बच्चे ठिगनेपन (Stunting) और दुर्बलता (Wasting) से ग्रसित हैं और एक से चार वर्ष की आयु के 40% बच्चे रक्ताल्पता (एनीमिक) से पीड़ित हैं. वर्ष 2016 में जारी ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य’ सर्वेक्षण 4 के अनुसार, 50% से अधिक गर्भवती और अन्य महिलाएं रक्ताल्पता से पीड़ित पाई गईं.
मेरी राय – मेंस के लिए
चूँकि राष्ट्रीय पोषण मिशन भारत में कुपोषण के खिलाफ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिये भारत को अब कई मोर्चों पर कार्रवाई में तेज़ी लाने की आवश्यकता है. अनुमान आशावादी हैं और स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं के लिये कोविड-19 अवरोधों के लिये फिर से समायोजित करने की आवश्यकता होगी.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय.
Topic : Parvovirus
संदर्भ
अमरावती शहर में लगभग 2,000 पालतू और आवारा कुत्ते पिछले महीने ‘कुक्कुरीय / कैनाइन पार्वो वायरस’ (canine parvovirus) से प्रभावित हो चुके हैं. पशु चिकित्सकों ने पालतू जानवरों के मालिकों को इस गंभीर प्रकोप के प्रति पहले ही आगाह किया था.
‘पार्वो वायरस’ क्या है?
- ‘पार्वो वायरस’ (Parvovirus), पिल्लों और कुत्तों को प्रभावित करने वाला एक अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग है.
- हाल के दिनों में कुत्तों के लिए पार्वो नामक वायरस काफी जानलेवा साबित हो रहा है. इस वायरस की चपेट में आने से कुछ ही दिनों में कुत्तों की मौत हो जा रही है. महाराष्ट्र के अमरावती में 2 हजार से अधिक कुत्तों में पार्वो वायरस की पुष्टि हुई है. विशेषज्ञों ने बताया है कि दरअसल कोविड-19 कारण कुत्तों का पूरी तरह से वैक्सीनेशन नहीं हो पा रहा है जिसकी वजह से पार्वोवायरस संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. ज्ञातव्य है कि अभी कुछ ही महीने पहले इसके कई मामले चेन्नई में भी देखने को मिले थे.
- इस वायरस को सबसे पहले वर्ष 1967 में खोजा गया था, और यह तेजी से कुत्तों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है. इसकी गंभीरता का मुख्य कारण है, कि इस वायरस को मारना काफी मुश्किल है और यह वातावरण में लंबे समय तक जीवित रह सकता है, इसके अलावा संक्रमित कुत्तों द्वारा बड़ी तेजी से फैलता है.
कुत्तों में यह वायरस किस प्रकार फैलता है?
कुत्तों में यह वायरस, किसी संक्रमित कुत्ते के साथ सीधे संपर्क में आने से, या संक्रमित कुत्तों को संभालने वाले लोगों के हाथों और कपड़ों सहित, किसी दूषित वस्तु के साथ अप्रत्यक्ष संपर्क के माध्यम से फैलता है.
संक्रमण मामलों की संख्या में वृद्धि का कारण:
- पालतू जानवरों में ‘पार्वो वायरस’ के मामलों में हालिया वृद्धि कोविड -19 महामारी के कारण हुई है, जिसकी वजह से पालतू जानवरों के कई मालिक अपने कुत्तों का समय पर टीकाकरण नहीं करा सके.
- इसके अलावा, पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम के लागू न होने के कारण, पिछले तीन वर्षों में कुत्तों के टीकाकरण और रेबीज के कारण शहरों में ‘गली के कुत्तों में’ ‘पार्वो वायरस’ के मामले बढ़ गए हैं.
उपचार
‘पार्वो वायरस’ का वर्तमान में कोई इलाज नहीं है, और पिल्ले या कुत्ते को टीका लगाने से, उन्हें संक्रमण से बचाया जा सकता है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic : Karnataka Protection of Right to Freedom of Religion Bill, 2021
संदर्भ
हाल ही में, कर्नाटक सरकार द्वारा एक ‘धर्मांतरण रोधी विधेयक’ (anti-conversion Bill) तैयार किया गया है. प्रथमदृष्टया यह विधेयक, उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा लागू किए गए इसी तरह के कानून के आधार पर तैयार किया गया प्रतीत होता है.
कर्नाटक ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक’, 2021 (Karnataka Protection of Right to Freedom of Religion Bill, 2021) विधेयक के मसौदे से संकेत मिलता है, कि उत्तर प्रदेश में लागू क़ानून की भांति, इस प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य ‘धोखाधड़ी से’ या ‘विवाह’ के माध्यम से दूसरों का धर्म-परिवर्तन करने या प्रयास करने वाले लोगों को दंडित करना है.
कर्नाटक ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक’, 2021 के प्रमुख बिंदु
- किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से किसी अन्य व्यक्ति का धर्म-परिवर्तन करने का दोषी पाए जाने पर, उसे न्यूनतम तीन से पांच साल की जेल और 25,000 रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा.
- विधेयक में, ‘गैरकानूनी रूप से धर्मांतरित व्यक्ति’ के नाबालिग या महिला होने पर, अथवा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने पर अधिक सजा का प्रावधान किया गया है – इसके तहत दोषी व्यक्ति को न्यूनतम तीन साल और अधिकतम दस साल की कैद, और 50,000 रुपये का जुर्माना का दंड दिया जाएगा.
- ‘सामूहिक धर्मांतरण’ के मामलों में, आरोपी व्यक्ति को तीन से दस साल की जेल और 1 लाख रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है.
- एक उपयुक्त अदालत, आरोपी व्यक्ति को “धर्मांतरण के शिकार” व्यक्ति को राशि 5 लाख रुपये तक के मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दे सकती है, और आरोपी को कानून के तहत निर्धारित जुर्माने के अलावा, इस मुआवजे का भी भुगतान करना होगा.
- विधेयक में स्वेच्छा से धर्मांतरण करने के लिए एक लंबी प्रक्रिया निर्धारित की गयी है, और यह प्रक्रिया अंतर-धार्मिक विवाहों पर भी लागू होगी.
आगे की चुनौतियाँ
कर्नाटक सरकार द्वारा अपने धर्मांतरण रोधी कानून के तहत लागू किए जाने वाले कुछ प्रावधानों पर, भाजपा शासित एक अन्य राज्य- गुजरात में रोक लगा दी गयी थी.
- वर्ष 2020 में, गुजरात सरकार द्वारा एक संशोधित धर्मांतरण रोधी कानून भी लाया गया था.
- हालाँकि, गुजरात उच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में इसके कुछ प्रावधानों- जैसेकि ‘साक्ष्य जुटाने का भार’ (burden of proof), अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों पर डालने संबंधी प्रावधान- पर रोक लगा दी थी.
- गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा, कि यह प्रावधान भारत के संविधान के अंतर्गत प्रद्दत ‘व्यक्ति की पसंद और स्वतंत्रता के अधिकार’ का उल्लंघन करते हैं.
चूंकि इसी तरह के प्रावधान, कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक में भी शामिल हैं, इसका मतलब है कि यह कानून संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन करता है.
पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पहले ही जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून लागू किए चुके हैं. हरियाणा और कर्नाटक द्वारा भी इस तरह के कानून बनाने के इरादे की घोषणा की जा चुकी है.
लेकिन, केंद्रीय कानून बनाने की मांग करने वालों का कहना है, कि देश में हाल की घटनाओं ने साबित कर दिया कि यह एक अखिल भारतीय रैकेट है, और इसलिए एक केंद्रीय कानून बनाए जाने की आवश्यकता है.
‘धर्मांतरण विरोधी कानूनों के अधिनियमन’ के पीछे तर्क:
- जबरन धर्म परिवर्तन की धमकी
- उकसावा या प्रलोभन की समस्या
- ‘धर्म परिवर्तन’ मौलिक अधिकार नहीं है.
आलोचकों का पक्ष
कई विधि-वेत्ताओं द्वारा इस प्रकार के कानूनों की कड़ी आलोचना की गई है, इनका तर्क है, कि ‘लव जिहाद’ की अवधारणा का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है.
- इन्होने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा है, संविधान, व्यक्तियों को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की गारंटी देता है.
- साथ ही, अनुच्छेद 25 के तहत भी सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और अपनी पसंद के धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने, प्रचार करने, और किसी भी धर्म का पालन न करने के अधिकार की गारंटी दी गयी है.
विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने कई निर्णयों में यह कहा गया है, किकिसी वयस्क को अपना जीवन साथी चुनने संबंधी मामले में पूर्ण अधिकार होता है, और इस पर राज्य और अदालतों का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है.
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, लिली थॉमस और सरला मुद्गल,दोनों मामलों में यह पुष्टि की है, कि धार्मिक विश्वास के बिना और कुछ कानूनी लाभ प्राप्त करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए धर्म-परिवर्तन का कोई आधार नहीं है.
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 के‘सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार’ मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा कि, किसी साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ (अनुच्छेद 21) का भाग है.
मेरी राय – मेंस के लिए
21वीं सदी में भी देश में धर्म और जाति के नाम पर होने वाला भेदभाव एक बड़ी चिंता का विषय है, ऐसे में वर्तमान में समाज में लोगों में निजता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता (विवाह, धर्म का चुनाव या अन्य मामलों में भी) के संदर्भ में व्यापक जागरूकता लाने की आवश्यकता है. विवाह अधिनियम से जुड़े कानूनों में अपेक्षित बदलाव के साथ और उन्हें लागू करने में होने वाली अनावश्यक देरी को दूर करने के विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये. कानूनों या धार्मिक रीति-रिवाज़ों के दुरुपयोग के माध्यम से लोगों के शोषण को रोकने के लिये युवाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये. भारत में विवाह से जुड़े कानूनों में व्याप्त जटिलता को दूर करने के लिये ‘समान नागरिक संहिता’ को अपनाया जाना बहुत ही आवश्यक है.
- एकरूपता की आवश्यकता: मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 18 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है, जिसमे उनका धर्म परिवर्तन करने का अधिकार भी शामिल है. चूंकि यह राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार इस विषय पर, अनुबंध खेती पर मॉडल कानून आदि जैसा कोई एक मॉडल कानून बना सकती है.
- धर्मांतरण विरोधी कानून बनाते समय राज्यों को, अपनी इच्छा से धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति के लिए कोई अस्पष्ट या अनेकार्थी प्रावधान नहीं करना चाहिए.
- धर्मांतरण विरोधी कानूनों में, अल्पसंख्यक समुदाय संस्थानों द्वारा धर्मांतरण के लिए कानूनी चरणों का उल्लेख करने संबंधी प्रावधान को भी शामिल करने की आवश्यकता है.
- लोगों को जबरदस्ती धर्मांतरण, प्रलोभन या प्रलोभन आदि से संबंधित प्रावधानों और तरीकों के बारे में भी शिक्षित करने की आवश्यकता है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: स्वतंत्रता के बाद का सुदृढ़ीकरण.
Topic : IMF
संदर्भ
भारतीय मूल की अमरीकी नागरिक गीता गोपीनाथ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund – IMF) की पहली उप प्रबंध निदेशक बन गई हैं. उप प्रबंध निदेशक आईएमएफ में प्रबंध निदेशक के बाद दूसरा शीर्ष पद है. गीता गोपीनाथ का जन्म 1971 में कोलकाता में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और वाशिंगटन विश्वविद्यालय में परास्नातक और प्रिंसटन विश्वविद्यालय में पीएचडी की. वर्ष 2018 में, उन्हें आईएमएफ का मुख्य अर्थशास्त्री नियुक्त किया गया था. वर्ष 2019 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रवासी भारतीय सम्मान से भी सम्मानित किया गया था.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बारे में
- आईएमएफ का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व बैंक के साथ वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स संस्थान के रूप में किया गया था.
- इसका मुख्यालय वाशिंगटन, अमरीका में है. इसके 189 सदस्य हैं.
- आईएमएफ के दैनिक कार्यों को एक कार्यकारी बोर्ड के द्वारा किया जाता है. इसमें प्रबंध निदेशक के अतिरिक्त 24 कार्यकारी निदेशक होते हैं.
- वर्तमान में क्रिस्टीना जोर्जिवा (फ्रांस) इसकी प्रबंध निदेशक हैं, जबकि भारतीय मूल की गीता गोपीनाथ अब तक इसमें प्रमुख अर्थशास्त्री की भूमिका में थीं.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के कार्य
- आईएमएफ अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली में स्थायित्व सुनिश्चित करता है.
- इसके लिए यह वैश्विक एवं सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर निगरानी रखता है.
- आईएमएफ, वित्तीय संकट, बैलेंस ऑफ पेमेंट (BoP) संकट से जूझ रहे देशों को ऋण, वित्तीय सहायता प्रदान करता है.
- वर्ष 1991 में आईएमएफ ने भारत को BoP संकट दूर करने में मदद की थी.
- हालाँकि वित्तीयन की शर्तें बहुत सख्त होती है अतः ये गरीब और विकासशील देशों के लिए अधिक लाभदायक नहीं होती.
Prelims Vishesh
Archbishop Desmond Tutu :-
- देश के नैतिक दिशा-सूचक के रूप में विख्यात, दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी आइकन आर्कबिशप डेसमंड टूटू (Archbishop Desmond Tutu) का हाल ही में निधन हो गया.
- उन्हें उनके सहज हास्य और विशिष्ट मुस्कान – और सबसे बढ़कर सभी रंगों के प्रति होने वाले अन्याय के खिलाफ उनकी अथक लड़ाई के लिए याद किया जाता था.
- आर्कबिशप को दक्षिण अफ्रीका में श्वेत अल्पसंख्यक शासन का मुकाबला करने के लिए 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था.
- जब नेल्सन मंडेला 1994 में देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने, तब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की व्याख्या करने के लिए इसे “इंद्रधनुषी राष्ट्र” (Rainbow Nation) का नाम दिया.
- देश के पहले अश्वेत नेता, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने टूटू को “नैतिक दिशा-सूचक” (Moral Compass) कह कर सम्मानित किया.
- दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने उन्हें “असाधारण बुद्धि, अखंडता और रंगभेद की ताकतों के खिलाफ अजेय” व्यक्ति कहा.
Golan Heights :-
- इजरायल के प्रधान मंत्री नफ्ताली बेनेट (Naftali Bennett) ने हाल ही में कहा था, कि उनकी सरकार, इजरायल-नियंत्रित गोलन हाइट्स में बसने वाले लोगों की संख्या को दोगुना करने पर विचार कर रही है. इस क्षेत्र पर इजरायल की पकड़ को और मजबूत करने के लिए
- एक कई-मिलियन डॉलर की योजना पर कार्य किया जा रहा है. ‘गोलन हाइट्स’ (Golan Heights) दक्षिण-पश्चिमी सीरिया में ‘इज़राइल और सीरिया’ के बीच की सीमा पर 1,800 किमी² के क्षेत्रफल में विस्तारित एक चट्टानी पठार है.
- 1967 के संघर्ष में इज़राइल ने गोलान हाइट्स को सीरिया से छीनकर लिया था और 1981 में अपने राज्य में शामिल कर लिया था. इज़राइल के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली है.
- यूरोपीय संघ का कहना है, कि गोलन हाइट्स की स्थिति पर उसकी राय अभी तक अपरिवर्तित है, और यूरोपीय संघ ने इस क्षेत्र पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता नहीं दी है.
- अरब लीग का कहना है कि इज़राइल का कदम “पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून के विरुद्ध है”. विदित हो कि, अरब लीग ने गृह युद्ध शुरू होने के बाद वर्ष 2011 में सीरिया को निलंबित कर दिया था.
- मिस्र का कहना है कि वह अभी भी गोलन हाइट्स को इजराइल अधिकृत सीरियाई क्षेत्र के रूप में मानता है. मिस्र और इज़राइल के बीच वर्ष 1979 में शांति समझौता हुआ था.
- भारत ने भी गोलान हाइट्स को इजराइल क्षेत्र के रूप में मान्यता नहीं दी है, और गोलान हाइट्स को सीरिया के लिए वापस करने की मांग की है.
- 2019 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की थी, कि अमेरिका गोलान हाइट्स पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता दे सकता है.
110 years of public singing of Jana Gana Mana :-
27 दिसंबर 1911 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में, भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ को पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया था. इस वर्ष इसकी 110 वीं वर्षगांठ हैं.
- बाद में, जन गण मन को 24 जनवरी, 1950 को भारत की संविधान सभा द्वारा राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था.
- रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘भारत भाग्य बिधाता’ की रचना की थी. इस रचना का पहला पद, जन गण मन, वर्तमान में हमारा राष्ट्रगान है.
Edward. O. Wilson :-
अग्रणी अमेरिकी वैज्ञानिक, प्रोफेसर और लेखक, एडवर्ड. ओ. विल्सन (Edward. O. Wilson) का हाल ही में, 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
- विभिन्न कीटों पर उनके अध्ययन और पृथ्वी को बचाने के आह्वान करने के लिए उन्हें “डार्विन का प्राकृतिक उत्तराधिकारी” उपनाम दिया गया था.
- उन्हें ‘चींटियों और उनके व्यवहार’ पर दुनिया का अग्रणी अधिकारिक विद्वान् माना जाता है.
- अपने करियर की शुरुआत में एक कीट विज्ञानी (Entomologist) के रूप में, कीटों का अध्ययन करने के साथ-साथ पक्षियों, स्तनधारियों और मनुष्यों के सामाजिक संबंधों का अध्ययन करते हुए अपने दायरे को व्यापक रूप से विस्तृत किया. उन्होंने, एक प्रभावी और विवादास्पद रूप से – समाजिक-जैवशास्त्र (Sociobiology) के रूप में जाना जाने वाला ‘विज्ञान का एक नया क्षेत्र’ स्थापित किया.
- उन्होंने सैकड़ों वैज्ञानिक लेखों और 30 से अधिक पुस्तकों की रचना की, जिनमें से दो रचनाओं -1978 में ऑन ह्यूमन नेचर, और 1990 में ‘द एंट्स’- के लिए ‘नॉन-फिक्शन श्रेणी में’ पुलित्जर पुरस्कार प्रदान किया गया था.
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