Sansar Daily Current Affairs, 07 April 2020
GS Paper 1 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Issues related to women.
Topic : How countries are dealing with the surge in domestic violence under COVID-19 lockdown?
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र और यूरोप परिषद् ने कोरोना वायरस के कारण विभिन्न देशों में घरेलू हिंसा में वृद्धि के बारे में चिंता व्यक्त की है.
पृष्ठभूमि
- कोरोना संकट के दौरान देश-विदेश से महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती घरेलू हिंसा के समाचार आ रहे हैं. कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच घर में बंद रहने के अतिरिक्त कोई चारा भी नहीं है.
- संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हर प्रकार की हिंसा के अंत के लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई की पुरज़ोर अपील की है. विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के चलते तालाबंदी होने से लोग घरों में सीमित रहने के लिए विवश हैं जिसके बाद घरेलू हिंसा के मामलों में तेज़ी आई है.
- हर क्षेत्र में स्थित देशों से अब तक मिले प्रतिवेदनों के अनुसार आवाजाही पर पाबंदी लगने, सामाजिक जीवन में दूरी बरते जाने, और आर्थिक व सामाजिक दबाव बढ़ने से घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है.
चिंता का विषय
- हर देश और हर समाज के लिए कोरोना संक्रमण एक परीक्षा है और इससे लड़ने की सबसे बड़ा प्रयास है – लॉकडाउन.
- ये लॉकडाउन एक ओर परिवारों के एकजुट होने का नाम बन गया, परन्तु दूसरी ओर महिलाओं का एक बड़ा तबका इसी दौरान घरेलू हिंसा में बुरी तरह फंस गया है.
- अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के मुताबिक पारिवारिक हिंसा के मामले यूरोप से लेकर दक्षिणी अमेरिका और चीन तक मेंबढ़ गए हैं.
- घरेलू हिंसा से जूझ रही ये महिलाएं अब न तो आम दिनों की तरह अपने माता-पिता के पास जा सकती हैं और न ही किसी दोस्त को मदद के लिए बुला सकती है.
- मनोचिकित्सकों के अनुसार कोरोना जैसी महामारी के दौरान इंसानी फितरत में परिवर्तन आना या पहले से पनप रही हिंसा का बढ़ जाना आम बात है.
- इसलिए भी कि आम लोगों को केवल शारीरिक बंदिश नहीं आर्थिक दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है. इसके लिए हर देश में सिस्टम का एक हिस्सा लोगों के मानसिक संतुलन और पीड़ितों की सुरक्षा के लिए तैयार करना होगा.
- चीन की पुलिस के अनुसार, कोरोना लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू मारपीट के मामले लगभग तिगुने हो गए, ऐसे में उन्हें कहीं अधिक सतर्क रहना पड़ा रहा है.
- स्पेन में खबरें आईं कि कुछ महिलाओं ने यातना से बचने के लिए खुद को कमरे या बाथरूम में बंद करना शुरू कर दिया. नतीजतन स्पैनिश सरकार ने कड़े नियमों के बावजूद महिलाओं के लिए ढील बरती.
- अब वहां तमाम सख़्ती के बीच ऐसे हालात में महिलाओं को बाहर निकलने की छूट है. इटली में इस मुद्दे पर काम करने वाले एनजीओ और कार्यकर्ताओं की फौज 24 घंटे की हेल्पलाइन पर उपलब्ध है.
भारत में घरेलू हिंसा
- हैरत की बात नहीं कि भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भीइस पर चिंता जताई है. आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन के पहले ही हफ्ते में आयोग के सामने महिलाओं के साथ हिंसा के सौ से ज्यादा मामले सामने आए हैं.
- उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इसमें आगे हैं. ये वो मामले हैं जहां महिलाओं ने ईमेल या संदेश के जरिए आयोग तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की.
- जरूरत है ये समझने की है कि घरेलू हिंसा इस आपदा का अहम और दर्दनाक ‘साइड-इफेक्ट’ है जिससे बचाव के लिए समाज और सिस्टम दोनों को साथ आना होगा क्योंकि ये वक़्त हाथ थामने का है, हाथ उठाने का नहीं.
और क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
- सरकार से लेकर व्यक्ति तक, यूएन से लेकर व्यवसायों और नागरिक समाज तक, हर एक पक्ष की ज़िम्मेदारी काम करने की है.
- कोविड-19 की जवाबी कार्रवाई के तहत घरेलू योजना के केंद्र में लिंग आधारित हिंसा से निपटना होना चाहिए.
- इस संबंध में अभिनव क़दम उठाए जा रहे हैं जिनकी प्रशंसा की जानी चाहिए और उन्हें अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जाना चाहिए.
- जैसे अर्जेंटीना में, औषधालयों (फ़ार्मेसी) को दुर्व्यवहार से पीड़ितों के लिए सुरक्षित स्थल घोषित कर दिया गया है जहाँ वे शिकायत कर सकते हैं.
- इसी तरह फ़्रांस में, अस्थाई रूप से रहने की सेवाओं के बारे मेंकिराना स्टोर में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है और 20 हज़ार से ज़्यादा होटल के कमरों में उन महिलाओं के लिए प्रबंध किया गया है जो घर वापस नहीं जा सकती.
- स्पेन की सरकार ने महिलाओं को बताया है कि अगर दुर्व्यवहार की वजह से उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ता है तो उन्हें तालाबंदी के दौरान छूट मिलेगी.
- कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के लिए धन आबंटन को अपनी राष्ट्रीय योजनाओं में सम्मिलित कर लिया है.
और क्या क़दम उठाए जाने चाहिएँ?
- सभी देशों में राष्ट्रीय सरकारों को कोविड-19 से निपटने की योजनाओं में धनराशि आबंटित करनी होगी. साथ ही टेक्स्ट संदेशों पर आधारित सेवाओं के साथ-साथ हैल्पलाइन, ऑनलाइन क़ानूनी मदद और महिलाओं व लड़कियों के लिए मनोचिकित्सक मदद उपलब्ध करानी होगी.
- ये कुछ ऐसी सेवाएँ हैं जिन्हें अक्सर नागरिक समाज संगठन भी मुहैया कराते हैं और जिन्हें फ़िलहाल वित्तीय मदद की आवश्यकता है.
- आश्रय स्थलों को ज़रूरी सेवाओं के रूप में चिन्हित किया जाना होगा और खुला रखना होगा. इसका अर्थ यह है कि वहाँकाम करने वाले स्टाफ़ के बच्चों की देखभाल का भी प्रबंध करना होगा.
- यह आवश्यक है कि ये सेवाएँ सुलभ बनाई जाएँ ताकि उन्हें किराना स्टोर और औषधालय जैसी अन्य आवश्यक सेवाओं में एकीकृत किया जा सके.
संयुक्त राष्ट्र क्या कर रहा है?
- दुनिया के निर्धनतम और अस्थिरता से जूझ रहे जिन स्थानों पर यूएन मानवीय राहत प्रदान कर रहा है. वहाँ महिलाओं के लिए संरक्षण सेवाओं को प्राथमिकता दी जा रही है.
- साथ ही यूएन एक ‘स्पॉटलाइट इनीशिएटिव” तैयार कर रहा है जो महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हर प्रकार की हिंसा के अंत के लिए यूरोपीय संघ के साथ एक व्यापक साझीदारी पहल है.
- इस पहल के तहत सेवाओं व अभियानों को ऑनलाइन मुहैया कराना, नागरिक समाज संगठनों व अग्रिम मोर्चे पर जुटे संगठनों के लिए मदद के स्तर को बढ़ाना, घरेलू हिंसा पीड़ितों के लिए बनाए शरण स्थलों को खुला रखना, और ऑनलाइन व टेक्स्ट चैट पर कार्यक्रम को विकसित करना आदि सम्मिलित हैं.
- संयुक्त राष्ट्र इस अभूतपूर्व व अनिश्चित वैश्विक संकट में दुनिया में हर स्थान पर महिलाओं की रक्षा करने और उन्हें मदद प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : What is Article 142?
संदर्भ
संविधान के अनुच्छेद 142 के अन्दर प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने COVID-19 महामारी के चलते न्यायालय की सुनवाइयों में आने के लिए लोगों पर लगाये गये सभी प्रतिबंधों को विधिसम्मत घोषित कर दिया है.
इस विषय में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य मंतव्य
- ये प्रतिबंध कोविड-19 की रोकथाम के लिए अपनाए गये जन-स्वास्थ्य विषयक मानकों के अनुरूप थे.
- वायरस के संचरण को रोकने के लिए जितने भी उपाय सोचे गये हैं उनमें प्रत्येक मनुष्य और संस्था को सहयोग देना चाहिए.
- यह विषय विवेकाधीन विषय न होकर कर्तव्य से सम्बंधित विषय है. यह आवश्यक है की सभी न्यायालय अपने स्तर से सामाजिक दूरी के आह्वान में सहयोग दें और यह पक्का करें की न्यायालय परिषदों में वायरस का प्रसार न होए.
सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश
- कोविड-19 महामारी को देखते हुए न्यायालयों को चाहिए की वे अधिक से अधिक विडियो कांफ्रेंसिंग का सहारा लें.
- उच्च न्यायालयों को चाहियें की अपने-अपने राज्यों में विडियो कांफ्रेंस की तकनीक के प्रयोग से सम्बंधित पद्धति निर्धारित करें.
- जिला न्यायालय भी अपने-अपने उच्च न्यायालयों द्वारा विहित विडियो कांफ्रेंस की पद्धति को अपनाए.
- विडियो कांफ्रेंस में आने वाली तकनीकी शिकायतों को लेने और उन्हें सुधारने के लिए हेल्पलाइन बनाए जाएँ.
- न्यायालय प्रार्थियों को विडियो कांफ्रेंस की सुविधा दिलाएं अथवा न्यायालय मित्र (amicus curiae) की नियुक्ति करें.
- साक्ष्य उभयपक्षों की पारस्परिक सहमति के बिना अभिलिखित नहीं किये जाएँ. यदि ऐसा अभिलेख न्यायालय के अन्दर अभिलिखित करना आवश्यक हो तो न्यायाधीश यह सुनिश्चित करे कि दो व्यक्तियों के बीच उचित दूरी बनी रहे.
अनुच्छेद 142 क्या है?
- अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को किसी मामले में न्याय करने और निर्णय को पूरा करने के लिए आदेश देने की शक्ति मिली हुई है अर्थात् जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि है.
- अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये जरूरी हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश सम्पूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है.
- संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को सम्पूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की उपस्थिति, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं.
- सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 142 का प्रयोग ऐसी महत्त्वपूर्ण नीतियों में परिवर्तन के लिए कर सकता है जो जनता को प्रभावित करती हैं.
- जब अनुछेद 142 को संविधान में सम्मिलित किया गया था तो इसे इसलिए वरीयता दी गई थी क्योंकि सभी का यह मानना था कि इससे देश के वंचित वर्गों और पर्यावरण का संरक्षण करने में सहयोग मिलेगा. जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि है. सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले में न्याय करने के लिये आवश्यक हों. सुप्रीम कोर्ट के दिए गए आदेश सम्पूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है.
GS Paper 2 Source: PIB
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : MPLADS suspended
संदर्भ
कैबिनेट ने हाल ही में अस्थायी रूप से 2020-21 और 2021-22 के दौरान MPLADS (सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना) फंड को निलंबित करने की मंजूरी दी है.
ऐसा निर्णय क्यों लिया गया?
- इस मद में सांसदों को जो हर साल दस दस करोड़ रुपए की राशि मिलती है, वह कंसोलिडेटेड फंड ऑफ़ इंडिया में जमा होंगे, ताकि उससे कोरोना वायरस के दंश से लड़ा जा सके.
- इससे 7900 करोड़ रुपये की बचत होगी, इस राशि को भारत के समेकित कोष में जमा किया जाएगा. कैबिनेट ने सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन को एक वर्ष के लिए 30% तक कम करने के लिए भी मंज़ूरी दी है.
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपालों ने वेतन में कमी के लिए स्वेच्छा से कमी करने की बात कही है अर्थात् राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सभी राज्यपाल और सांसद 1 साल तक अपने वेतन का 30 फ़ीसदी हिस्सा नहीं लेंगे. यह रकम भारत की संचित निधि में जमा होगी.
MPLAD योजना क्या है?
- यह योजना 1993 के दिसम्बर में आरम्भ की गई थी. इसका उद्देश्य सांसदों की ओर से विकासात्मक कार्यों के लिए अनुशंसा प्राप्त कर टिकाऊ सामुदायिक संपदा का सृजन एवं स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर बुनियादी सुविधाएँ (सामुदायिक संरचना निर्माण सहित) प्रदान करना था.
- इस योजना के तहत अग्रलिखित कार्यों के लिए राशि खर्च की जा सकती है – पेयजल, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, सड़क आदि. यह राशि सांसद अपने ही चुनाव क्षेत्र के लिए खर्च कर सकता है.
- MPLAD के लिए निर्गत राशि सीधे जिला अधिकारियों को अनुदान के रूप में निर्गत की जाती है. यह राशि वित्त वर्ष के साथ समाप्त (non-lapsablee) नहीं होती है, अपितु बाद के वर्षों में भी इसका उपयोग हो सकता है.
- इस योजना में सांसदों की भूमिका एक अनुशंसक की होती है. वे अपने संसदीय क्षेत्रके लिए ही कार्य करा सकते हैं, परन्तु राज्य सभा के सांसद को यह अधिकार है कि वे अपने पूरे राज्य में कहीं भी काम करने के लिए अनुशंसा कर सकते हैं. सांसद अपनी पसंद के कार्यों की अनुशंसा जिला अधिकारियों को करते हैं और जिला अधिकारी राज्य सरकार द्वारा विहित प्रक्रिया के अनुसार उन कार्यों का क्रियान्वयन करते हैं. जिला अधिकारी ही यह देखते हैं कि प्रस्तावित कार्य करने योग्य हैं या नहीं और वे ही कार्यान्वयन करने वाली एजेंसियों का चयन करते हैं. कौन काम पहले होगा, उसका निर्धारण भी यही करते हैं. हो रहे काम का निरीक्षण और जमीनी स्तर पर उसके क्रियान्वयन की निगरानी भी उन्हीं का काम है.
चुनौतियाँ
MPLAD योजना के क्रियान्वयन में जो बड़ी समस्या आती है वह यह है कि मंत्रालय तक जिला स्तर से आवश्यक दस्तावेज समय पर नहीं पहुँचते हैं, जैसे – अंकेक्षण प्रमाण पत्र (Audit Certificate), उपयोग प्रमाण पत्र (Utilization Certificate), अनंतिम उपयोग प्रमाण पत्र (Provisional Utilization Certificate), मासिक प्रगति प्रतिवेदन (Monthly Progress Report), बैंक विवरण एवं ऑनलाइन मासिक प्रगति प्रतिवेदन (Bank Statement and Online Monthly Progress Report) आदि.
GS Paper 2 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.
Topic : Euro Corona bonds
संदर्भ
कोरोना वायरस आपदा से उत्पन्न वित्तीय संकट को दूर करने के लिए कोरोना बांड निर्गत करने का प्रस्ताव है. परन्तु यूरोपीय संघ के देशों में इसको लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं.
कोरोना बांड क्या हैं?
कोरोना बांड यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को वित्तीय राहत देने के लिए एक सामूहिक ऋण होगा. तात्पर्य यह है कि यह ऋण केवल कोरोना वायरस द्वारा संकटग्रस्त देशों का ही नहीं, अपितु पूरे यूरोपीय संघ के सभी देशों का माना जाएगा. इसके लिए वित्त की आपूर्ति यूरोपीय निवेश बैंक (European Investment Bank) करेगा.
प्रस्ताव पर आने वाली प्रतिक्रियाएं
यूरोपीय संघ के सभी देश ऐसे बांड के पक्ष में नहीं हैं. इसका समर्थन केवल वे ही 9 देश कर रहे हैं जो शीघ्र से शीघ्र वित्तीय समाधान के लिए आतुर हैं. चार देश तो ऐसे हैं जो प्रस्ताव के पूर्णतः विरुद्ध हैं. ये देश हैं –
- जर्मनी
- नीदरलैंड्स
- फ़िनलैंड
- ऑस्ट्रिया
इन देशों को चार कंजूस (Frugal Four) की संज्ञा दी जाती है.
विरोध का आधार
चार कंजूस देशों का कहना है कि वित्त प्रत्येक देश के लिए अपना व्यक्तिगत उत्तरदायित्व होता है और प्रत्येक सदस्य देश को चाहिए कि वह अपने वित्त को सही हालत में रखे.
कोरोना बांड के पक्ष में तर्क
- कोरोना बांड से यूरोपीय देशों को आवश्यक वित्तीय सहारा मिलेगा.
- देशों को आर्थिक सहायता इस प्रकार मिले जिससे उनका अपना राष्ट्रीय ऋण बढ़ नहीं जाए.
- यदि सभी यूरोपीय देश इस मामले में एकजुटता दिखाएँ तो इससे महादेश में आत्मविश्वास सुदृढ़ होगा.
चिंता के विषय
यूरोपीय संघ के सभी देशों के लिए कोरोना बांड जैसे बांड के क्रियानव्यन में बहुत समय लग सकता है जबकि कई देशों को धन की तत्काल आवश्यकता है.
Prelims Vishesh
Bear bile :-
- COVID-19 के विकट मामलों के उपचार के लिए चीन की सरकार ने Tan Re Qing नामक सुई देने का सुझाव दिया है, जो भालू के पित्त से बनता है.
- चीन में इस पित्त का उपयोग पथरी गलाने और यकृत रोग ठीक करने में सदियों से होता आ रहा है, क्योंकि इसमें ursodiol अर्थात् ursodeoxycholic अम्ल बहुत मात्रा में होता है.
Sodium hypochlorite :–
- सोडियम हाइपोक्लोराइट एक रसायन है जिसका प्रयोग अधिकतर ब्लीच करने में और तरणतालों (swimming pools) को साफ़ करने में होता है.
- इसकी अधिक मात्रा हानिकारक होती है. इसके 0.25- 0.5% के घोल से चमड़े पर होने वाले घाव ठीक किये जाते हैं.
- इसके और भी अधिक हल्के घोल का प्रयोग कभी-कभी हाथ धोने के लिए होता है.
- वैज्ञानिकों का मत है सोडियम हाइपोक्लोराइट का 1% घोल भी मनुष्य की चमड़ी को क्षति पहुंचाता है और यदि यह शरीर में प्रवेश कर गया तो फेंफडों को गंभीर क्षति पहुँच सकती है.
- विदित हो की पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में घर को लौटते हुए मजदूरों पर सोडियम-क्लोराइट का छिड़काव उन्हें विषाणु-मुक्त करने के लिए किया गया था.
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