Sansar Daily Current Affairs, 07 July 2020
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Structure, organization and functioning of the Executive and the Judiciary Ministries and Departments of the Government; pressure groups and formal/informal associations and their role in the Polity.
Topic : Kanpur Encounter case and policing issues
संदर्भ
हाल ही में, उत्तर प्रदेश के कानपुर में कुख्यात अपराधी विकास दुबे तथा उसके गिरोह के द्वारा आठ पुलिसकर्मियों की गोली मार कर हत्या कर दी गयी. इस घटना में कानपुर के एक पुलिस स्टेशन के सभी कर्मियों की अपराधी से साँठ-गाँठ होने का संदेह है.
पुलिस कार्यप्रणाली में वर्तमान संकट के कारण
- पुलिस, किसी राज्य का प्रतिरोधी बल होती है, तथा जिसका सामान्य नागरिकों के साथ प्रत्यक्ष रूप से संपर्क होता है. इसलिए, राज्य में शासन की समग्र गुणवत्ता पर पुलिस कार्यप्रणाली की गुणवत्ता का बहुत प्रभाव पड़ता है.
- सत्ता में बैठे राजनेता बहुधा पुलिस का उसी तरह प्रयोग करते हैं जैसे राजनेता सत्ता के बाहर गुंडों का प्रयोग करते हैं. आश्चर्य की बात नहीं है, कभी ऐसा होता है कि, अपराधी गिरोहों को पकड़ते समय पुलिस भी उन्हीं की तरह व्यवहार करती है.
- सामूहिक सजा, राजनीतिक विरोध का अपराधीकरण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन जैसे आपत्तिजनक बलपूर्वक तरीके, पुलिसकर्म उपकरण के रूप में नियमित रूप से प्रयोग किये जाने लगे हैं.
- यह घटना राजनीति, अपराध और पुलिस के मध्य साँठ-गाँठ का प्रतीक है.
- इस घटना से संबधित परिस्थिति तथा प्रशासन की प्रतिक्रिया उसी रुग्णता की ओर इशारा करती हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक साबित ही सकती है अर्थात् कानून के शासन का पतन.
समय की मांग – स्मार्ट पुलिस कार्यप्रणाली
‘स्मार्ट पुलिस बल: सख्त और संवेदनशील, आधुनिक और गतिशील, सतर्क और जवाबदेह, विश्वसनीय और उत्तरदायी, टेक्नो-सेवी और प्रशिक्षित.
SMART का पूरा नाम है – ‘Strict and Sensitive, Modern and Mobile, Alert and Accountable, Reliable and Responsive; Techno-savvy and Trained.’
आज की तिथि में आपराधिक न्याय प्रणाली तथा जमीनी स्तर के पुलिस संस्थानों को सुदृढ़ बनाने की तत्काल जरूरत है;
- वर्तमान तथा उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए पुलिस को तैयार करना और
- पुलिस की खोजी क्षमताओं तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली को दृढ़ करना.
वर्तमान के पुलिस कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों से संबंधित कारणों तथा उनकी जटिल परस्पर-निर्भरताओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक, अधिक सहयोगपूर्ण तथा अभिनव दृष्टिकोणों को अपनाने की आवश्यकता है.
प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ में उच्चत्तम न्यायालय के निर्देश
- प्रत्येक राज्य में एक ‘राज्य सुरक्षा आयोग’ (State Security Commission) का गठन किया जाए, जिसका कार्य पुलिस के कामकाज के लिए नीतियां बनाना, पुलिस प्रदर्शन का मूल्यांकन करना, तथा राज्य सरकारों द्वारा पुलिस पर अनुचित दबाव से मुक्ति को सुनिश्चित करना होगा.
- प्रत्येक राज्य में एक ‘पुलिस स्थापना बोर्ड’ (Police Establishment Board) का गठन किया जाए जो उप पुलिस-अधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारियों के लिए पोस्टिंग, स्थानांतरण और पदोन्नति का फैसला करेगा, तथा उपरोक्त विषयों पर उच्च रैंक के अधिकारियों के लिए राज्य सरकार को सिफारिशें प्रदान करेगा.
- राज्य तथा जिला स्तर पर ‘पुलिस शिकायत प्राधिकारियों’ (Police Complaints Authorities) का गठन किया जाये, जो पुलिस कर्मियों द्वारा गंभीर कदाचार और सत्ता के दुरुपयोग संबंधी आरोपों की जांच करेगा.
- राज्य बलों में DGP तथा अन्य प्रमुख पुलिस अधिकारियों के लिए कम से कम दो साल का न्यूनतम कार्यकाल प्रदान किया जाए.
- सेवा-अवधि, अच्छे रिकॉर्ड और अनुभव के आधार पर संघ लोक सेवा आयोग द्वारा पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध किये गए तीन वरिष्ठतम अधिकारियों में से राज्य पुलिस के DGP की नियुक्ति सुनिश्चित की जाये.
- जांच करने वाली पुलिस तथा कानून और व्यवस्था संबंधी पुलिस को अलग किया जाए ताकि त्वरित जांच, बेहतर विशेषज्ञता और बेहतर तालमेल सुनिश्चित हो सके.
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के प्रमुख के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (National Security Commission) का गठन किया जाए.
इसके अतिरिक्त, विभिन्न विशेषज्ञ निकायों ने पिछले कुछ दशकों में पुलिस संगठन तथा उनकी कार्यप्रणाली संबंधित विषयों का परीक्षण किया है. इसका कालक्रम निम्नानुसार है:
- राष्ट्रीय पुलिस आयोग, 1977-81
- रुबिरो समिति (Rubeiro Committee), 1998
- पद्मनाभ समिति, 2000
- मलीमथ समिति (Malimath committee), 2002-03
- पुलिस अधिनियम मसौदा समिति, 2005
- दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (Second ARC), 2007
- पुलिस अधिनियम मसौदा समिति- II, 2015
मेरी राय – मेंस के लिए
न्यायालय ने वोहरा समिति की रिपोर्ट के साथ संलग्न सामग्री सार्वजनिक करने का निर्देश देने से इंकार कर दिया था. न्यायालय का विचार था कि इस सामग्री में विभिन्न सुरक्षा एजेन्सियों के प्रमुखों द्वारा उपलब्ध करायी गयी तमाम संवेदनशील सूचनायें हैं और इन्हें सार्वजनिक करने का निर्देश देने से इन एजेन्सियों और गोपनीयता के साथ काम करने के उनके तरीकों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचेगा.
न्यायायल ने अपने फैसले में कहा था कि इस रिपोर्ट में प्रदत्त जानकारी को ध्यान में रखते हुये राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष की सलाह से एक उच्च स्तरीय समिति गठित करनी चाहिए जो इस तरह की सांठगांठ से संबंधित मामलों की जांच की निगरानी करेगी ताकि वोहरा समिति की रिपोर्ट में दी गयी जानकारियों के आलोक में अपेक्षित नतीजे हासिल किये जा सकें.
वोहरा समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक ऐसी नोडल एजेन्सी गठित करने की सिफारिश की गयी थी जिसे मौजूदा सभी गुप्तचर और प्रवर्तन एजेन्सियां देश में संगठित अपराध के बारे में मिलने वाली सारी जानकारियां तत्परता से उपलब्ध करायेंगी.
यही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया था कि नोडल एजेन्सी को इस तरह से मिली सूचनाओं का उपयोग आपराधिक सिन्डीकेट को राजनीतिक नफे नुकसान का अवसर प्रदान किये बगैर ही पूरी सख्ती के साथ करना होगा. रिपोर्ट में ऐसा करते समय गोपनीयता का पूरी तरह ध्यान रखने पर भी जोर दिया गया था.
न्यायालय के इस फैसले को भी 23 साल हो चुका है. सरकार ने निश्चित ही इस ओर कदम उठाये हैं लेकिन इसके बावजूद संगठित अपराधियों की नेताओं, राजनीतिक दलो और पुलिस तथा नौकरशाहों के साथ सांठगांठ पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. इसी का नतीजा है कि आज भी इन अपराधियों को नेताओं ओर राजनीतिक दलों का संरक्षण पहले की तरह ही प्राप्त है. कानपुर का विकास दुबे भी इसका अपवाद नहीं है.
सरकार अगर वास्तव में अपराधियों के नेटवर्क को पूरी तरह नष्ट करना चाहती है तो उसे वोहरा समिति की रिपोर्ट में जांच एजेन्सियों द्वारा दी गयी जानकारियों के आधार पर ठोस पहल करनी होगी. कानपुर की घटना के बाद भी अगर सरकार ने सख्त कदम नहीं उठाये तो देश में संगठित गिरोहों की राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के साथ सांठगांठ का सिलसिला खत्म नहीं होगा और पुलिस तथा प्रशासन में शामिल मुखबिरों से ऐसे अपराधियों तक सूचनायें लीक होती रहेंगी.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : Uighur Community
संदर्भ
निर्वासित उइगरों के एक समूह ने उइगर समुदाय के नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध की जांच कर रहे अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत में शी जिनपिंग सहित वरिष्ठ चीनी अधिकारियों के शामिल होने के सबूत पेश किए हैं.
उइगर समुदाय के दो संगठनों ने इंटरनेशनल कोर्ट में मामला दाखिल किया है, उनमें ईस्ट तुर्किस्तान गवर्नमेंट इन एक्जाइल (ETGE) और ईस्ट तुर्किस्तान नेशनल अवेकेनिंग मूवमेंट (ETNAM) का नाम शामिल है.
चीन पर क्या आरोप है?
सुनने में आता है कि उइगर लोगों को “शेष देश के साथ समरस” बना रहा है. इसके लिए कहा जाता है कि दस लाख उइगरों, कज्जाखों और दूसरे मुसलमानों को पकड़ कर बंदी शिवरों में डाल दिया गया है जहाँ उनको अपनी पहचान छोड़ने और हान चीनियों के प्रभुत्व वाले साम्यवादी देश चीन में बेहतर ढंग से घुलने-मिलने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
पर चीन का कहना है कि ये सारे आरोप असत्य हैं. वस्तुतः वह उनको “अतिवादी” विचारों से मुक्त किया जा रहा है और व्यावसायिक कौशल सिखाया जा रहा है.
चीन ने हाल के वर्षों में में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उइगर और अन्य मुस्लिम समूहों के विरुद्ध दमनात्मक कदम उठाये हैं और चीन ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज करता आया है, ठीक उसी प्रकार वर्तमान मोदी सरकार अपनी हिंदू राष्ट्रवादी नीतियों की आलोचना सह नहीं पाती और इन आरोपों को गलत ठहरा देती है.
उइगर (UIGHURS) कौन हैं?
- उइगर मुसलमानों की एक नस्ल है जो बहुत करके चीन के Xinjiang प्रांत में रहती है.
- उइगर लोगउस प्रांत की जनसंख्या के 45% हैं.
- विदित हो कि तिब्बत की भांति Xinjiang भी चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित है.
उइगरों के विद्रोह का कारण
- कई दशकों से Xinjiang प्रांत में चीन की मूल हान (Han) नस्ल के लोग बसाए जा रहे हैं. आज की तिथि में यहाँ 80 लाख हान रहते हैं जबकि 1949 में इस प्रांत में 220,000 हान रहा करते थे.
- हान लोग अधिकांश नई नौकरियों को हड़प लेते हैं और उइगर बेरोजगार रह जाते हैं.
- उइगरों की शिकायत है कि सैनिक उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं जबकि सरकार यह दिखाती है कि उसने सभी को समान अधिकार दिए हुए हैं और विभिन्न समुदायों में समरसता है.
चीन की चिंता
- चीन का सोचना है कि उइगरों का अपने पड़ोसी देशों से सांस्कृतिक नाता है और वे पाकिस्तान जैसे देशों में रहने वाले लोगों के समर्थन से Xinjiang प्रांत को चीन से अलग कर एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते हैं.
- विदित हो Xinjiang प्रांत की सीमाएँ मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान और अफगानिस्तान से मिलती है.
हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा है. दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस महामारी के लिए लगातार चीन को जिम्मेदार ठहराते आए हैं. वहीं अब इस बिल के कारण भी अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ने की आशंका है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Biodiversity.
Topic : Birdwing Butterfly
संदर्भ
हाल ही में 88 साल बाद गोल्डन बर्डविंग नामक हिमालयी तितली की एक प्रजाति की खोज की गई है जो अपने आकार के संदर्भ में भारत की सबसे बड़ी तितली बन गई है. गोल्डन बर्डविंग नाम की यह मादा तितली के पंखों का आकार 194 मिलीमीटर है जोकि 1932 में ब्रिगेडियर विलियम हैरी इवांस द्वारा खोजे गए दक्षिणी बर्डविंग प्रजाति की तितली (190 मिलीमीटर) से बड़ा है.
बर्डविंग तितलियाँ के विषय में जानकारी
- बर्डविंग्स तितलियां स्वालोटेल (swallowtail) परिवार का भाग है जोकि ट्रोगोनोप्टेरा, टॉराइड्स और ओरनिथोप्टेरा कुल से संबंधित है. अभी तक संबंधित संस्थाओं के द्वारा इसके 36 प्रजातियां को मान्यता दी गई है लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इस कुल में और भी प्रजातियां भी शामिल हैं.
- बर्डविंग्स तितलियां ही कुछ अनूठी विशेषताएँ होती है जिसमें उनका असाधारण आकार, कोणीय पंख और पक्षियों की तरह उड़ान शामिल है.
- अपने आकर्षक चमकीले रंग के कारण नर तितली, तितलियों के संग्राहकों में काफी लोकप्रिय हैं.
- इस प्रजाति में सबसे छोटी तितली क्वेकर (Neopithecops zalmora) है जिसका पंख का आकार 18 मिमी और अग्रभाग की लंबाई 8 मिमी है. इस प्रजाति में सबसे बड़ी आकार की मादा गोल्डन बर्डविंग होती हैं जिसकी अग्रभाग की लंबाई 90 मिमी है.
- बर्डविंग्स तितलियां एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, दक्षिण पूर्व एशिया (मुख्य भूमि समेत द्वीप समूह) और ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं.
- सभी बर्डविंग्स तितलियां CITES (संकटग्रस्त जीवों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय) के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध हैं जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार सीमित/प्रतिबंधित है. इसके साथ ही बर्डविंग्स तितलियाँ IUCN के संकटमुक्त (Least Concern) श्रेणी में आती हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Conservation related issues.
Topic : Miyawaki Method
संदर्भ
हाल ही में प्रयागराज नगर निगम द्वारा पहली बार जापान की मियावाकी पद्धति से पौधरोपण का कार्य किये जाने की घोषणा की गयी है. इस पद्धति से कई देशों में सफलता पूर्वक पौधरोपण का कार्य किया जा चुका है तथा वर्तमान में भारत वर्ष के कई शहरों में इसका प्रयोग किया जा रहा है. केरल सरकार द्वारा भी वन रोपण के लिए ‘‘मियावाकी वनीकरण विधि’’ को अपनाया गया है.
मियावाकी पद्धति क्या है?
- यह वनरोपण की एक पद्धति है जिसका आविष्कार मियावाकी नामक जापान के एक वनस्पतिशास्त्री ने किया था. इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर छोटे-छोटे पौधे रोपे जाते हैं जो साधारण पौधों की तुलना में दस गुनी तेजी से बढ़ते हैं.
- यह पद्धति विश्व-भर में लोकप्रिय है और इसने शहरी वनरोपण की संकल्पना में क्रांति ला दी है. दूसरे शब्दों में, घरों और परिसरों के पिछवाड़ों को उपवन में परिवर्तित कर दिया है. चेन्नई में भी यह पद्धति अपनाई जा चुकी है.
इस पद्धति की प्रक्रिया
- सबसे पहले एक गड्ढा बनाना होता है. जिसका आकार प्रकार भूमि की उपलबध्ता पर निर्भर होता है. गड्ढा खोदने के भी पहले तीन प्रजातियों की एक सूची बनानी होती है. इसके लिए ऐसे पौधे चुने जाते हैं जिनकी ऊँचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग हो सकती है.
- अब इस गड्ढे में कम्पोस्ट की एक परत डाली जाती है. तत्पश्चात् बगासे और खोपरों जैसे प्राकृतिक कचरे की एक परत गिराई जाती है और सबसे ऊपर लाल मिट्टी की एक परत बिछाई जाती है.
- तीनों पौधे एक साथ नहीं रोप कर थोड़े-थोड़े दिन पर रोप जाते हैं और इनके पेड़ कितने बड़े होंगे इस पर भी विचार किया जाता है.
- यह पूरी प्रक्रिया 2-3 सप्ताह में पूरी हो जाती है.
- इन पौधों को नियमित रूप से एक वर्ष तक संधारित किया जाता है.
लागत विश्लेषण
मियावाकी पद्धति में 600 वर्ग फुट के उपवन को लगाने में लगभग 20,000 रु. की लागत बैठती है.
GS Paper 3 Source : Economic Times
UPSC Syllabus : Mobilization of Resources and Inclusive Growth.
Topic : MSME Emergency Response Programme
संदर्भ
हाल ही में भारत सरकार द्वारा ‘विश्व बैंक’ (World Bank ) के साथ ‘MSME आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’ (MSME Emergency Response Programme) के लिये 750 मिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैंI
MSME आपातकालीन उपाय कार्यक्रम से सम्बंधित मुख्य तथ्य
- इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य COVID-19 महामारी के चलते नकारात्मक रूप से प्रभावित ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (Micro, Small, and Medium Enterprises- MSMEs) में वित्त का प्रवाह बढ़ाने में आवश्यक सहयोग प्रदान करना है.
- इस कार्यक्रम के माध्यम से लगभग 5 मिलियन MSMEs की नकदी एवं ऋण संबंधी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा ताकि मौजूदा प्रभावों को कम करने के साथ-साथ लाखों नौकरियों को सुरक्षित किया जा सके.
- विश्व बैंक की ऋण प्रदान करने वाली शाखा ‘अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक’ (International Bank for Reconstruction and Development -IBRD) से मिलने वाले 750 मिलियन डॉलर के इस ऋण की परिपक्वता अवधि 19 वर्ष है, जिसमें 5 वर्ष की छूट अवधि भी सम्मिलित है.
- COVID-19 महामारी से MSME क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है जिसके फलस्वरूप यह क्षेत्र आजीविका एवं रोज़गार दोनों ही मोर्चों पर व्यापक क्षति उठा रही है.
- भारत सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करने पर है कि वित्तीय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तरलता का प्रवाह ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (Non-Banking Financial Companys -NBFCs) की ओर बना रहे. इसके लिये बैंकिंग क्षेत्र, जो जोखिम लेने के डर से बच रहा है, वह NBFCs को ऋण देकर अर्थव्यवस्था में निरंतर धनराशि का प्रवाह बनाए रखेगा.
- विश्व बैंक समूह अपनी ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम’ (International Finance Corporation-IFC) शाखा के जरिये इन उद्योग क्षेत्र में तरलता को बनाए रखने के लिये भारत सरकार को निम्नलिखित प्रकार से सहयोग प्रदान करने वाला है –
- तरलता को उन्मुक्त करके (Unlocking liquidity)
इसके अंतर्गत बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की तरफ से MSMEs को दिये जाने वाले ऋणों में अंतर्निहित जोखिम को ऋण गारंटी सहित विभिन्न प्रपत्रों की एक श्रृंखला के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास किया जाएगा.
- NBFCs तथा और MSMEs को दृढ़ता प्रदान करना (Strengthening NBFCs and SFBs)
- NBFCs तथा ‘स्मॉल फाइनेंस बैंक’ की वित्त पोषण क्षमता में वृद्धि लाने से उन्हें MSMEs की तात्कालिक एवं विविध जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.
- इसमें MSMEs हेतु सरकार की पुनर्वित्त सुविधा द्वारा यथासंभव सहयोग देना भी शामिल होगा.
- वित्तीय नवाचारों को सुदृढ़ बनाना (Enabling financial innovations)
इसके माध्यम से MSMEs को ऋण देने और भुगतान में फिनटेक एवं डिजिटल वित्तीय सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित कर उन्हें मुख्यधारा में सम्मिलित किया जाना है.
‘MSME आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’ का माहात्म्य
- MSMEs क्षेत्र भारत के विकास एवं रोज़गार सृजन के महत्त्वपूर्ण केंद्र हैं जो COVID-19 के पश्चात् भारत में आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
- यह कार्यक्रम लक्षित गारंटी/ऋण प्रदान करने में सरकार को आवश्यक सहयोग देगा, जिसके माध्यम से लाभप्रद MSMEs को उधार देने के लिये NBFCs तथा बैंकों को प्रोत्साहित किया जा सकेगा.
- इससे लाभप्रद MSMEs को वर्तमान आर्थिक संकट का सामना करने में मदद मिलेगी.
- यह MSMEs क्षेत्र को समय के साथ आगे बढ़ाने हेतु आवश्यक सुधारों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा.
Prelims Vishesh
Nimu/Nimoo :-
- पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीमू नामक भारतीय सेना के आरक्षित ब्रिगेड मुख्यालय पहुँचे और वहाँ सैनिकों से बातचीत की.
- उल्लेखनीय है कि जन्स्कार घाटी (Zanskar valley) में पादुम से लेकर नीमू तक सीमा सड़क संगठन (BRO) एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण रणनीतिक सड़क बना रहा है.
- नीमू में सिन्धु और जन्स्कार नदियों का संगम है. यहाँ से साढ़े सात किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में चुम्बकीय पहाड़ी (magnet hill) है जहाँ सड़क पर चलने वाले वाहन बिना ईंधन के गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध यात्रा करने लगते हैं. वस्तुतः यह एक दृष्टिगत भ्रम है और आस-पास की भौगोलिक दशाओं के कारण वाहन जब नीचे उतरते रहते हैं तो प्रतीत होता है कि वे ऊपर की ओर खिंचे चले जा रहे हैं.
ICAR and NICRA :-
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council of agricultural research – ICAR) केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है जिसपर भारत की कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान को समन्वित करने की जिम्मेवारी है.
- कृषि मंत्री इसके अध्यक्ष हुआ करते हैं. वस्तुतः यह परिषद् कृषि शिक्षा अनुसंधान से सम्बंधित विश्व का सबसे बड़ा संस्थान है.
- 2011 में इस परिषद् ने NICRA नामक कार्यक्रम चलाया जिसका पूरा नाम राष्ट्रीय जलवायु अनुरूप कृषि नवाचार (National innovations of climate resilient agriculture) है.
Krishi Vigyan Kendra :-
- एक कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) भारत में एक कृषि विस्तार केंद्र है.
- आज की तिथि पूरे भारत में 716 कृषि विज्ञान केंद्र हैं.
- आमतौर पर एक स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय के साथ जुड़े, ये केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और किसानों के बीच अंतिम कड़ी के रूप में काम करते हैं, और कृषि अनुसंधान को व्यावहारिक, स्थानीय सेटिंग में लागू करने का लक्ष्य रखते हैं.
- सभी KVK पूरे भारत में 11 कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थानों (ATARI) में से एक के अधिकार क्षेत्र में आते हैं.
- पहला KVK 1974 में पांडिचेरी में स्थापित किया गया था. तब से, सभी राज्यों में केवीके स्थापित किए गए हैं, और संख्या लगातार बढ़ रही है.
- केवीके से जहां अपनी परियोजनाएं शुरू करने की उम्मीद की जाती है, वहीं स्थानीय क्षेत्रों में सरकारी पहल के विस्तार के लिए एक संसाधन केंद्र के रूप में भी काम करने की उम्मीद है. वर्तमान राष्ट्रीय सरकार के कार्यक्रम “कृषि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी है” कृषि उत्पादकता में वृद्धि, प्रधान मंत्री कृषि सिचाई योजना और प्रधान मंत्री आवास बीमा योजना के साथ-साथ तकनीकी नवाचार पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का आह्वान करता है.
- सरकार को उम्मीद है कि केवीके इन नई सरकारी पहलों के संबंध में सूचना और प्रथाओं के प्रसार में सहायता करेगा.
- केवीके के अलावा, कई स्थानीय संस्थान हैं जो किसानों के साथ सीधे इंटरफेस करते हैं, जैसे कि कृषि उपज बाजार समिति और कृषि इंजीनियरिंग विभाग.
Karan- 4 :-
करण-4 ईख की एक ऐसी प्रजाति है जो अधिक चीनी देने के कारण उत्तर प्रदेश में परम्परागत रूप से उपजाई जाने वाली ईखों का स्थान ले चुका है.
Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA
June, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download