Sansar Daily Current Affairs, 07 July 2021
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Legislative Council
संदर्भ
हाल ही में, पश्चिम बंगाल विधानसभा द्वारा राज्य में ‘विधान परिषद्’ (Legislative Council) का गठन करने से सम्बंधित प्रस्ताव 2/3 बहुमत से पारित कर दिया गया है.
विधान परिषद्
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 169 में राज्यों में विधान परिषद् के गठन का उल्लेख है.
- संविधान के अनुसार इस परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या विधान सभा के कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई भाग से ज्यादा नहीं हो सकती, लेकिन कम-से-कम 40 सदस्य होना अनिवार्य है.
- यह एक स्थायी सदन है, जिसका कभी भी विघटन नहीं होता है.
- इसके प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है.
- प्रत्येक 2 वर्ष पर इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं.
- इस परिषद् के एक-तिहाई सदस्य स्थानीय संस्थाओं, नगरपालिका, जिला परिषद् आदि के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. एक-तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों के द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्य राज्य के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों एवं कॉलेजों में कम-से-कम तीन वर्ष का अनुभव रखने वाले अध्यापकों के द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्य सम्बंधित राज्य के वैसे निवासी जो भारत के किसी विश्वविद्यालय से स्नातक हों एवं जिन्होंने स्नातक की उपाधि कम-से-कम तीन वर्ष पहले प्राप्त कर ली हो, के द्वारा चुने जाते हैं. शेष 1/6 सदस्य राज्यपाल के द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान, सहकारिता तथा समाज सेवा के क्षेत्र में राज्य के ख्याति प्राप्त व्यक्तियों से मनोनीत किये जाते हैं.
- विधान परिषद् का अधिवेशन आरम्भ होने के लिए इसके कुल सदस्यों का 1/10 भाग या कम-से-कम 10 सदस्य (जो भी ज्यादा हों) का होना आवश्यक है.
- इस परिषद् के सदस्यों को सदन में वक्तव्य देने की पूर्ण स्वतंत्रता है एवं उनके द्वारा दिए गये किसी भी वक्तव्य के लिए किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
- इस परिषद् के सदस्यों को सदन का सत्र शुरू होने के 40 दिन पूर्व एवं सत्र समाप्त होने के 40 दिन के बाद के बीच में दीवानी मुकदमों के लिए बंदी नहीं बनाया जा सकता है.
- विधान परिषद् का सत्र राज्यपाल द्वारा बुलाया जाता है. किसी एक वर्ष में इसका कम-से-कम दो सत्र होना आवश्यक है एवं एक सत्र के अंतिम दिन तथा दूसरे सत्र के प्रथम दिन के बीच 6 महीने से ज्यादा का समयांतर नहीं होना चाहिए.
विधान परिषद् सदस्य बनने की योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक हो एवं कम-से-कम 30 वर्ष के उम्र का हो.
- उसका नाम सम्बंधित राज्य की मतदाता सूची में दर्ज हो.
- वह भारत या राज्य सरकार के किसी लाभ का पद धारण नहीं किये हुए हो.
- वह पागल या दिवालिया न हो.
- चुनाव सम्बन्धी किसी अपराध के कारण उसे इस परिषद् के सदस्य चुने जाने के अधिकार से वंचित न कर दिया हो.
विधान परिषद् के कार्य
इस परिषद् के निम्न प्रकार के कार्य हैं –
वित्तीय कार्य
राज्य के वित्त मामलों की वास्तविक शक्तियाँ विधान सभा के पास होती है. कोई भी धन विधेयक पहले विधान सभा में पेश किया जाता है. विधान सभा में पास होने के बाद धन विधेयक को विधान परिषद् में पेश किया जाता है. यह परिषद् इस विधेयक को 14 दिनों तक रोक सकती है. यदि 14 दिनों की अवधि तक यह परिषद् सम्बंधित विधेयक पर कोई कार्रवाई न करे या कोई संशोधन की सिफारिश करे तो सम्बंधित विधान सभा को यह अधिकार है कि उस संशोधन को माने या न माने एवं विधेयक दोनों सदन से पारित समझा जाता है.
विधायी कार्य
इस परिषद् में साधारण विधेयकों को पेश किया जा सकता है लेकिन विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने से पहले आवश्यक है कि उसे विधान सभा से पारित किया जाए. अगर कोई विधेयक विधान सभा से पारित किया जा चुका हो परन्तु विधान परिषद् में उस पर कोई गतिरोध हो तो यह परिषद् उस विधेयक को नामंजूर कर सकती है, बदल सकती है या तीन महीने तक रोक कर रख सकती है. इसके बाद यदि विधान सभा इस विधेयक को विधान परिषद् के किये गये संशोधन के साथ या उसके बिना अगर पारित कर देती है तो विधेयक दुबारा इस परिषद् के पास भेजा जाता है. इस बार यदि यह परिषद् विधेयक को पुनः स्वीकृति न दे या अधिक से अधिक एक महीने तक रोक कर रखे तब भी यह विधेयक दोनों सदनों से पारित समझा जाएगा.
संवैधानिक अधिकार
भारत के संविधान के किसी संशोधन में विधान परिषद् विधान सभा के साथ मिलकर भाग लेती है अगर वह संशोधन विधेयक सम्बंधित राज्य पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता हो. राज्य का मन्त्रिमंडल केवल विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है. यह परिषद् मंत्रिमंडल को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा नहीं हटा सकती है.
विधान परिषद् के सभापति एवं उप-सभापति
विधान परिषद् के सभापति एवं उप-सभापति का चुनाव सम्बंधित विधान परिषद् के सदस्यों द्वारा किया जाता है. सभापति या उप-सभापति को सदस्यों के द्वारा कम-से-कम 14 दिन पूर्व सूचना देकर प्रस्ताव लाकर बहुमत के द्वारा हटाया जा सकता है. इनका वेतन राज्य के संचित निधि कोष से दिया जाता है.
किन-किन राज्यों में विधान परिषदें हैं?
आंध्र प्रदेश के अलावा, पांच अन्य राज्यों में विधान परिषदें हैं – बिहार (58), कर्नाटक (75), महाराष्ट्र (78), तेलंगाना (40), उत्तर प्रदेश (100). जम्मू-कश्मीर में भी एक विधान परिषद् हुआ करती थी, किन्तु उस राज्य के संघीय राज्य बन जाने के कारण वह परिषद् समाप्त हो चुकी है.
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GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : Recusal of Judges
संदर्भ
हाल ही में, कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर, न्यायाधीश के ‘भारतीय जनता पार्टी’ के साथ कथित संबंधों को लेकर, नंदीग्राम चुनाव याचिका पर सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति कौशिक चंदा को, सुनवाई से अलग करने की माँग करने के लिए 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है.
- न्यायालय ने कहा है, कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा जुर्माने के रूप में भुगतान की गई राशि का प्रयोग कोविड -19 से प्रभावित वकीलों के परिवारों के सहयोग के लिए किया जाएगा.
- हालांकि, संबंधित न्यायाधीश ने व्यक्तिगत विवेक के आधार पर मामले से हटने का निर्णय लेते हुए मामले को अपनी पीठ से अलग कर दिया है.
सुनवाई से स्वयं को अलग करने से सम्बंधित प्रावधान
- भारतीय संविधान के अंतर्गत न्यायाधीशों के लिये न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई से खुद को पृथक् करने को लेकर किसी प्रकार का कोई लिखित नियम नहीं है. यह पूर्ण रूप से न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है.
- साथ ही न्यायाधीशों को इस संबंध में कारणों का खुलासा करने की ज़रूरत भी नहीं होती है.
- अधिकत: न्यायाधीशों के हितों का टकराव मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग करने का सबसे मुख्य कारण होता है. उदाहरणार्थ यदि कोई मामला उस कंपनी से संबंधित है जिसमें न्यायाधीश का भाग भी है तो उस न्यायाधीश की निष्पक्षता पर आशंका ज़ाहिर की जा सकती है.
- इस प्रकार यदि न्यायाधीश ने पूर्व में मामले से संबंधित किसी एक पक्ष का वकील के तौर पर प्रतिनिधित्व किया हो तो भी न्यायाधीश की निष्पक्षता पर शंका उत्पन्न हो सकती है.
- यदि मामले के किसी एक पक्ष के साथ न्यायाधीश का व्यक्तिगत हित जुड़ा हो तब भी न्यायाधीश अपने विवेकाधिकार का उपयोग मामले की सुनवाई से अलग होने का निर्णय कर सकते हैं.
- हालाँकि उक्त सभी स्थितियों में मामले से अलग होने अथवा न होने का निर्णय न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है.
इस संबंध में अन्य मामले
- इस संबंध में सबसे पहला मामला वर्ष 1852 में सामने आया था, जहाँ लॉर्ड कॉटनहैम ने स्वयं को डिम्स बनाम ग्रैंड जंक्शन कैनाल (Dimes vs Grand Junction Canal) वाद की सुनवाई से अलग कर लिया था, क्योंकि लॉर्ड कॉटनहैम के पास मामले में शामिल कंपनी के कुछ शेयर थे.
- वर्ष 2018 में जज लोया मामले में याचिकाकर्त्ताओं ने मामले की सुनवाई कर रहे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, जस्टिस ए.एम. खानविल्कर और डी. वाई. चंद्रचूड़ को सुनवाई से अलग करने का आग्रह किया था, क्योंकि वे दोनों ही बंबई उच्च न्यायालय से थे. हालाँकि न्यायालय ने ऐसा करने इनकार करते हुए स्पष्ट किया था कि यदि ऐसा किया जाता है तो इसका अर्थ होगा कि न्यायालय अपने कर्तव्यों का त्याग कर रहा है.
- 2019 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) के अंतरिम निदेशक के रूप में एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देना वाली याचिका की सुनवाई करते हुए मामले से संबंधित तीन न्यायाधीशों ने स्वयं को मामले से अलग कर लिया था.
- सर्वप्रथम तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह कहते हुए स्वयं को मामले से अलग कर लिया कि वे नए CBI निदेशक को चुनने हेतु गठित समिति का हिस्सा थे.
- रंजन गोगोई के स्थान पर मामले की सुनवाई करने के लिये जस्टिस ए.के. सीकरी को नियुक्त किया गया. किंतु जस्टिस ए.के. सीकरी ने भी यह कहते हुए स्वयं को मामले से अलग कर लिया कि वे उस पैनल का हिस्सा थे जिसने पिछले CBI निदेशक आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने का निर्णय लिया था.
- इसके पश्चात् मामले से संबंधित एक अन्य न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमाना ने भी व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए स्वयं को मामले से अलग कर लिया.
मेरी राय – मेंस के लिए
वरिष्ठ वकीलों और विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायाधीशों को किसी भी मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग करने के कारणों का लिखित स्पष्टीकरण देना चाहिये, चाहे वे व्यक्तिगत कारण हों या सार्वजानिक कारण. वर्ष 1999 में दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक न्यायलय ने कहा था कि “न्यायिक कार्य की प्रकृति में कई बार कठिन और अप्रिय कार्यों का प्रदर्शन भी शामिल होता है और इन्हें पूरा करने के लिये न्यायिक अधिकारी को दबाव के सभी तरीकों का विरोध करना चाहिये.” बिना किसी डर और पक्षपात के न्याय प्रदान करना सभी न्यायिक अधिकारियों का कर्तव्य है. यदि वे विचलित होते हैं तो इससे न्यायपालिका और संविधान की स्वतंत्रता प्रभावित होती है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Review implementation of Forest Rights Act, Centre tells States
संदर्भ
पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) और जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) द्वारा संयुक्त रूप से सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को एक परिपत्र जारी किया गया है. इस परिपत्र में राज्य सरकारों को ‘वन अधिकार अधिनियम’, 2006 (Forest Rights Act 2006) को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है.
परिपत्र में, राज्यों को अधिनियम के कार्यान्वयन की समीक्षा करने और प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए आवश्यक किसी भी स्पष्टीकरण के बारे में भारत सरकार को सूचित करने के लिए कहा गया है.
चिंता के विषय
- इस अधिनियम के लागू के पश्चात् काफी समय बीत जाने के बाद भी वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है.
- अधिनियम की धारा 5 का कार्यान्वयन भी चिंता का विषय है. धारा 5, मान्यता प्राप्त वनवासियों के कर्तव्यों जैसे कि वन्यजीव, वन और जैव विविधता की रक्षा करना; जलग्रहण क्षेत्र, जल स्रोत और अन्य पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों के पर्याप्त रूप से संरक्षण को सुनिश्चित करना आदि से संबंधित है.
- अधिनियम की धारा 3(1)(i) के अंतर्गत, किसी भी सामुदायिक वन संसाधन के संरक्षण, पुनर्जनन, संरक्षण या प्रबंधन के अधिकारों के बारे में प्रावधान किए गए हैं, किंतु इन प्रावधानों का कार्यान्वयन काफी शिथिल है.
वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006
यह वनों पर अधिकार-आधारित, लोकतांत्रिक और विकेंद्रीकृत नियंत्रण प्रदान करता है. FRA के अंतर्गत मान्यता प्राप्त अधिकार हैं :
व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) :- यह कानूनी रूप से वनभूमि का स्वामित्व धारण करने का अधिकार है जिस पर वनवासी समुदाय 13 दिसम्बर, 2005 के पहले से निवास और कृषि कर रहे हैं.
सामुदायिक अधिकार (CRs), लघु वन उत्पाद (Minor Forest Produce) :- इन्हें गैर-काष्ठ वन उत्पाद (non-timber forest produce : NTFP) भी कहा जाता है. CRs में चराई, ईंधन की लकड़ी, जल निकायों से मछली और अन्य उत्पाद एकत्रित करने के साथ ही पारम्परिक ज्ञान से सम्बंधित बौद्धिक सम्पदा और जैव विविधता अधिकार आदि सम्मिलित हैं.
सामुदायिक वन संसाधन (CFR) अधिकार : धारा 3(1)(i) के अंतर्गत वनों पर सामुदायिक शासन के लिए सामुदायिक वन संसाधनों की सुरक्षा, पुनरुद्धार, संधारणीय उपयोग हेतु वन संसाधनों के संरक्षण या प्रबंधन सम्बन्धी प्रावधान किये गये हैं.
अधिकारों के लिए अर्हता
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार इसमें वर्णित अधिकार केवल उन्हीं लोगों के लिए हैं जो मुख्य रूप से जंगलों में रहते हैं और जो जंगल और जंगल की भूमि पर अपनी रोजी-रोटी के लिए निर्भर होते हैं.
- इसके अतिरिक्त, इन अधिकारों का उपभोग करने के लिए आवश्यक है कि वह व्यक्ति अनुसूचित जनजाति का हो अथवा जंगल में कम-से-कम 75 वर्षों से रह रहा हो.
- अधिनियम में यह प्रावधान है कि किस व्यक्ति को किस संसाधन का अधिकार मिलेगा, इसका निर्णय ग्राम-सभा के द्वारा पारित अनुशंसा के अनुसार किया जाएगा. ग्राम सभा की अनुशंसा को बाद में जिला-स्तर पर अनुमोदित किया जाएगा.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.
Topic : LiDAR
संदर्भ
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने 10 राज्यों में वन क्षेत्रों के लिडार (Light Detection and Ranging – LiDAR) आधारित सर्वक्षण की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPRs) जारी की है. उल्लेखनीय है कि यह सर्वेक्षण एक परियोजना के अंतर्गत किया गया था, जिसका उद्देश्य स्थान विशेष के भूगोल, उसकी स्थलाकृति तथा वहाँ की मृदा की विशेषताओं के अनुरूप मुदा एवं जल संरक्षण की उपयुक्त एवं व्यावहारिक सूक्ष्म संरचनाओं के निर्माण के लिये स्थानों व संरचनाओं की पहचान करना है. इसके अंतर्गत प्रत्येक राज्य में 10,000 हेक्टेयर के औसत क्षेत्रफल की भूमि का चयन किया गया है.
LIDAR क्या है?
- LiDAR का पूरा नाम है – Light Detection and Ranging.
- LiDAR दूर से पृथ्वी पर स्थित विभिन्न वस्तुओं की दूरी को नापने की एक प्रणाली है जिसमें प्रकाश का प्रयोग पल्स वाले लेजर के रूप में किया जाता है.
- वायु में स्थापित प्रणाली से प्राप्त डाटा के साथ काम करते हुए प्रकाश के ये पल्स पृथ्वी के आकार और उसकी सतह की विशेषताओं के बारे में सटीक त्रि-आयामी सूचना को जन्म देते हैं.
यह कैसे काम करता है?
- LiDAR उपकरण में एक लेजर, एक स्कैनर और एक विशेष GPS रिसीवर होता है.
- लम्बे-चौड़े क्षेत्रों के ऊपर लिडार डाटा प्राप्त करने के लिए अधिकतर हवाई जहाज़ों और हेलिकॉप्टरों का प्रयोग होता है.
- लिडार का सिद्धांत सरल है. यह पृथ्वी की सतह पर स्थित किसी वस्तु पर लेजर प्रकाश फेंकता है और प्रकाश के लौटने के समय का आकलन करता है और इस प्रकार उस वस्तु की दूरी का पता लगा लेता है क्योंकि प्रकाश की गति 186,000 मील प्रति सेकंड होती है. इसलिए किसी वस्तु की सटीक दूरी का पता अविश्वसनीय रूप से तेजी से हो जाता है.
LIDAR के साथ समस्याएँ
- लिडार कुहासे, बरसात, हिमपात और धूली भरे मौसम में ठीक से काम नहीं कर सकता है.
- इसके जरिये शीशे की दीवार या दरवाजे का पता लगाना थोड़ा कठिन होता है. इसलिए स्मार्ट फ़ोन और अपने-आप से चलने वाली कारों के निर्माता LiDAR का प्रयोग तो अवश्य करते हैं परन्तु साथ ही कुछ कैमरे और सेंसर का भी उपयोग करते हैं.
Prelims Vishesh
IARI’s new rice variety to lift non&basmati exports :-
- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IRAI) द्वारा विकसित चावल की एक नई किस्म पूसा सांबा 1850, सांबा महसूरी (BPT 5204) का उन्नत संस्करण है.
- वर्तमान में इसका उत्पादन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार में किया जा रहा है.
- कीटनाशक के बिना अधिक उपज की प्राप्ति, पूसा सांबा 1850 किस्म का एक विशिष्ट लाभ है.
- पूसा सांबा महसूरी किस्म दक्षिण में सामान्यत: सांबा सीजन (नवंबर-मार्च) के दौरान उगाई जाती है और देश के गैर-बासमती चावल निर्यात में इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है.
- इस किस्म की विशेषता मध्यम पतले दाने और पकने के पश्चात इसकी उत्तम गुणवत्ता है.
Places in news :-
- बेलारूस: एक विपक्षी पत्रकार को हिरासत में लिए जाने के बाद बेलारूस पर नए प्रतिबंध लागू करने में अमेरिका और अन्य देशों के साथ ब्रिटेन भी शामिल हो गया है. बेलारूस पूर्वी यूरोप में एक भू-आबद्ध देश है.
- कुंदुज: तालिबान ने कुंदुज शहर के प्रवेश बिंदु पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है .
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