Sansar Daily Current Affairs, 07 May 2019
GS Paper 1 Source: Down to Earth
Topic : El Nino, Indian monsoons may be linked
संदर्भ
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि भारत में एल-निनो और मानसून के बीच संबंधों के रहस्य को सुलझाया जा सकता है जिससे जिससे मौसम की अधिक सटीक जानकारी मिल सके.
एल-निनो और भारतीय मानसून
- एल-निनो एक संकरी गर्म जलधारा है जो दिसम्बर महीने में पेरू के तट के निकट बहती है. स्पेनिश भाषा में इसे “बालक ईसा (Child Christ)” कहते हैं क्योंकि यह धारा क्रिसमस के आस-पास जन्म लेती है.
- यह पेरूबियन अथवा हम्बोल्ट ठंडी धारा की अस्थायी प्रतिस्थापक है जो सामान्यतः तट के साथ-साथ बहती है.
- यह हर तीन से सात साल में एक बार प्रवाहित होती है और विश्व के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बाढ़ और सूखे की वहज बनती है.
- कभी-कभी यह बहुत गहन हो जाती है और पेरू के तट के जल के तापमान को 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है.
- प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधीय जल की यह उष्णता भूमंडलीय स्तर पर वायु दाब तथा हिन्द महासागर की मानसून सहित पवनों को प्रभावित करती है.
- एल निनो के अध्ययन से यह पता चलता है कि जब दक्षिणी प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ता है तब भारत में कम वर्षा होती है.
- भारतीय मानसून पर एल-नीनो का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है और इसका प्रयोग मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है.
- मौसम वैज्ञानिकों का विचार है कि भारत में 1987 का भीषण सूखा एल-निनो के कारण ही पड़ा था.
- 1990-1991 में एल-निनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था. इसके कारण देश के अधिकांश भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों की देरी हो गई थी.
ला-निना
एल-निनो के बाद मौसम सामान्य हो जाता है. परन्तु कभी-कभी सन्मार्गी पवनें इतनी प्रबल हो जाती हैं कि वे मध्य तथा पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में शीतल जल का असामान्य जमाव पैदा कर देती हैं. इसे ला-निना कहते हैं जोकि एल-निनो के ठीक विपरीत होता है. ला-निना से चक्रवातीय मौसम का जन्म होता है. परन्तु भारत में यह अच्छा समाचार लाता है क्योंकि यह मानसून की भारी वर्षा का कारण बनता है.
दक्षिणी दोलन (Southern Oscillation)
- यह प्रशांत महासागर तथा हिन्द महासागर के बीच पाए जाने वाले मौसम सम्बन्धी परिवर्तनों का एक विचित्र प्रतिरूप है.
- प्रायः देखा गया है कि जब हिन्द महासागर में समुद्र तल पर दाब अधिक होता है तब प्रशांत महासागर में दाब कम होता है. इसके विपरीत जब हिन्द महासागर में दाब कम होता है तब प्रशांत महासागर में दाब अधिक होता है.
- जब शीतकालीन दाब प्रशांत महासागर पर अधिक तथा हिन्द महासागर पर कम होता है तब भारत की दक्षिणी-पश्चिमी मानसून अधिक प्रबल होती है. इसकी विपरीत दिशा में मानसून कमजोर पड़ जाती है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : India re-elected as ‘observer’ to Arctic Council
संदर्भ
भारत अंतर-सरकारी मंच उत्तर-ध्रुवीय परिषद् यानी आर्कटिक काउंसिल में फिर से पर्यवेक्षक निर्वाचित हो गया है. अमेरिका के विरोध के कारण सभा में साझा घोषणापत्र जारी नहीं हुआ. यह आर्कटिक परिषद् के 23 साल के इतिहास में पहली बार हुआ है. विदित हो कि 11वीं आर्कटिक परिषद् की मंत्रिस्तरीय बैठक फ़िनलैंड में आयोजित हुई.
अमेरिका ने विरोध क्यों किया?
अमेरिका ने आर्कटिक समुद्र में बर्फ के पिघलने पर चिंता जाहिर करने की बजाय उसे अच्छा और स्वागतयोग्य संकेत बताया. उसका मानना है कि समुद्र में जमी बर्फ के पिघलने से व्यापार करने के लिए नए रास्ते खुलेंगे. इससे पश्चिमी देशों और एशिया के बीच समुद्र से यात्रा करना आसान हो जाएगा और ज्यादा से ज्यादा 20 दिन में हम दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंच जाएंगे .
अन्य देशों का क्या मानना है?
- तमाम वैज्ञानिक और पर्यायवरणविद आर्कटिक में बर्फ के लगातार पिघलने को लेकर चेतावनी देते रहे हैं. इस कारण न केवल वहां रहने वाले पोलर बियर और समुद्री जीवों पर खतरा मंडरा रहा है, बल्कि इससे समुद्र का जलस्तर भी बढ़ रहा है और समुद्रतटीय इलाकों के पानी में डूबने संभावनाएं भी बढ़ रही हैं.
- अन्य देशों का मानना है कि अगर आर्कटिक के रास्ते अधिक यातायात होगा तो इस इलाके में प्रदूषण बढ़ जाएगा जो आर्कटिक में रहने वाले जीवों के लिए नुकसानदायक साबित होगा.
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह चिंता जाहिर की जा रही है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से आर्कटिक क्षेत्र का तापमान बाकी दुनिया के मुकाबले दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है.
आर्कटिक काउंसिल क्या है?
- आर्कटिक क्षेत्र में संसाधनों के प्रबंधन पर विचार के लिए विभिन्न देशों का एक मंच है जिसका नाम आर्कटिक परिषद् (Arctic Council परिषद्) है.
- सभी देश हर दूसरे साल में एक सम्मेलन कर आर्कटिक से जुड़ी आर्थिक और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं.
- आर्कटिक विशेष रूप से सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर आर्कटिक देशों, क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों और अन्य निवासियों के बीच सहयोग, समन्वय और बातचीत को बढ़ावा देती है.
- यह परिषद् उत्तर-ध्रुवीय देशों के बीच साझा मुद्दों पर और विशेष रूप से सतत विकास और पर्यावरण सरंक्षण पर सहयोग, समन्वय और संवाद को बढ़ावा देती है.
- सदस्यता: कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका.
- पर्यवेक्षक सदस्य: जर्मनी, अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक विज्ञान समिति, नीदरलैंड, पोलैंड, उत्तरी मंच, यूनाइटेड किंगडम, भारत, चीन, इटली, जापान दक्षिण कोरिया और सिंगापुर.
- गैर सरकारी सदस्य: यूएनडीपी, आईयूसीएन, रेडक्रॉस, नार्डिक परिषद्, यूएनईसी.
- संरचना : सचिवालय और मंत्रिस्तरीय बैठक आर्कटिक परिषद् के मुख्य अंग हैं. सचिवालय का कोई स्थायी कार्यालय नहीं है तथा इसकी अध्यक्षता और स्थान प्रत्येक दो वर्षों पर सदस्यों के मध्य आवर्तित होते हैं. मंत्रिस्तरीय बैठकों के निर्णय सर्वसम्मति से लिये जाते हैं. यह बैठक प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल पर आयोजित की जाती है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : 10th Schedule of the Constitution
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) के तीन बागी विधायकों को अयोग्य करार देने की कार्यवाही पर रोक लगा दी. तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष पी.धनपाल ने इन अन्नाद्रमुक विधायकों को बागी पार्टी नेता टी.टी.वी. दिनाकरण का समर्थन करने के लिए नोटिस जारी किया था.
संविधान की दसवीं अनुसूची क्या है?
राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (anti-defection law) लगाने की बात उठाई जा रही थी. अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वाँ संशोधन पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी. इसे संविधान की दसवीं अनुसूची (10th Schedule) में डाला गया.
सदस्यता समाप्त
निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी –
- यदि वह स्वेच्छा से अपने दल से त्यागपत्र दे दे.
- यदि वह अपने दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना सदन में उसके किसी निर्देश के प्रतिकूल मतदान करे या मतदान में अनुपस्थित रहे. परन्तु यदि 15 दिनों निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – के अन्दर दल उसे इस उल्लंघन के लिए क्षमा कर दे तो उसकी सदस्यता (membership) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
सदस्यता बनी रहेगी
- निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता बनी रहेगी –
- यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य (Independent Member) किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये.
- यदि कोई मनोनीत सदस्य शपथ लेने के बाद 6 माहकी अवधि में किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये.
- किसी राजनीतिक दल के विलय (merger) पर सदस्यता समाप्त नहीं होगी, यदि मूल दल में कम-से-कम2/3 सांसद/विधायक दल छोड़ दें.
- यदि लोकसभा/विधानसभा का अध्यक्ष (speaker) अपना पद छोड़ देता है तो वह अपनी पुरानी में लौट सकता है, इसको दल-बदल नहीं माना जायेगा.
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- दल-बदल पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्षका होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा. सदन के अध्यक्ष को इस कानून की क्रियान्विति के लिए नियम बनाने का अधिकार होगा.
- स्पष्ट है कि किसी राजनीतिक दल के विलय की स्थिति को राजनीतिक दल-बदल की सीमा के बाहर रखा गया है. राजनीतिक दल-बदल का कारण राजनीतिक विचारधारा या अन्तःकरण नहीं अपितु सत्ता और पदलोलुपता या अन्य लाभ ही रहे हैं. इस दृष्टि से दल-बदल पर लगाई गई रोक “भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने और राजनीति में अनुशासन लाने का एक प्रयत्न” ही कहा जा सकता है. वस्तुतः इस कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलीय अनुशासन के बीच संतुलित सामंजस्य बैठाया गया है.
- दल-बदल (Anti-Defection) को रोकने की दिशा में यह विधेयक एक शुरुआत ही माना जा सकता है. दल-बदल की स्थिति के पूरे निराकरण के लिए और बहुत कुछ अधिक करना पड़ेगा. राजनीतिक नैतिकता ही इस स्थिति का पूर्ण निराकरण हो सकती है.
दल-बदल निषेध कानून (52nd Amendment) और इस कानून की विविध व्यवस्थाओं को 1991 में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि “दल-बदल” निषेध कानून वैध है, लेकिन दल-बदल निषेध कानून की यह धारा अवैध है कि “दल-बदल (Anti-Defection)” पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा. सर्वोच्च न्यालायाय ने अपने निर्णय में कहा कि सदन का अध्यक्ष इस प्रसंग में एक “न्यायाधिकरण” के रूप में कार्य करता है और उपर्युक्त विषय में सदन के अध्यक्ष के निर्णय पर न्यायालय विचार कर सकता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Environment Impact Assessment (EIA)
संदर्भ
850 करोड़ रू. की कलसा-बांदुरी परियोजना का कार्यान्वयन करने वाले कर्नाटक नीरवारि निगम लिमिटेड ने दावा किया है कि पेयजल की यह परियोजना पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (Environment Impact Assessment (EIA) के दायरे से बाहर है.
कलसा-बांदुरी परियोजना क्या है?
- कलसा-बांदुरी नाला परियोजना कर्नाटक सरकार की एक परियोजना है जिसका उद्देश्य बेलगावी, धारवाड़ और गडाग जिलों में पेयजल की आपूर्ति में सुधार लाना है.
- इस परियोजना के अंतर्गत महादायी नदी की दो सहायक नदियों कलसा और बांदुरी के 56 TMC पानी की दिशा बदलकर उसे मालप्रभा नदी में ले जाना है, जो वर्तमान में इन जिलों में पेयजल पहुँचाया करती है.
EIA क्या है?
- EIA रिपोर्ट भारत की पर्यावरणीय निर्णय लेने की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसमें उन्हें प्रस्तावित परियोजनाओं के संभावित प्रभावों का विस्तृत अध्ययन माना जाता है.
- EIA किसी प्रस्तावित विकास योजना में संभावित पर्यावरणीय समस्या का पूर्व आकलन करता है और योजना के निर्माण व प्रारूप निर्माण के चरण में उससे निपटने के उपाय करता है.
- यह योजना निर्माताओं के लिये एक उपकरण के रूप में उपलब्ध है, ताकि विकासात्मक गतिविधियों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बीच समन्वय स्थापित हो सके.
- इन रिपोर्टों के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय या अन्य प्रासंगिक नियामक निकाय किसी परियोजना को मंज़ूरी दे सकते हैं अथवा नहीं.
- भारत में EIA का आरंभ 1978-79 में नदी-घाटी परियोजनाओं के प्रभाव आकलन से हुआ और कालांतर में इसके दायरे में उद्योग, ताप विद्युत परियोजनाएँ आदि को भी शामिल किया गया.
- भारत में EIA प्रक्रिया अनुवीक्षण, बेसलाइन डेटा संग्रहण, प्रभाव आकलन, शमन योजना EIA रिपोर्ट, लोक सुनवाई आदि चरणों में संपन्न होती है.
EIA के लाभ
- स्वस्थ स्थानीय पर्यावरण विकास में सहायक.
- पर्यावरण मानकों का पालन.
- पर्यावरण की हानि या आपदाओं में कम जोखिम.
- जैव विविधता का रख-रखाव.
- सूचित निर्णयन के कारण संसाधनों के उपयोग में कमी.
- समुदायों की भागीदारी में वृद्धि तथा सतत् विकास की सुनिश्चितता.
EIA के उद्देश्य
- गहरे समुद्र खनिजों के साथ जुड़ी पर्यावरण स्थितियों का मूल्यांकन करना.
- वितलीय क्षेत्रों में तलछट पारिस्थितिक तंत्र और जैव भूगोल का मूल्यांकन करना.
- इन क्षेत्रों में भू-जैव रासायनिक प्रक्रियाओं के बीच परस्पर क्रिया को समझना.
- गहरे समुद्र खनिज संसाधनों के खनन के लिए पर्यावरण डेटा को विकसित करना.
- प्रथम पीढ़ी खनन (एफजीएम) स्थल के लिए ईएमपी तैयार करना.
Prelims Vishesh
Anti-dumping duty put on saccharine :-
- वाणिज्य मंत्रालय की सिफारिश पर केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इंडोनेशिया से आयात किए जाने वाले साकेरीन (saccharine) पर एंटी डंपिंग शुल्क लगा दिया है.
- साकेरीन एक एक प्रकार का यौगिक है जो चीनी के बदले मीठास (sugar-substitute sweeteners) के रूप में प्रयुक्त होता है.
Bisphenol-A (BPA) :-
- बच्चों के दूध के बोतलों में हानिकारक रसायन bisphenol A (BPA) का प्रयोग प्रतिबंधित होने के बाद भी यह रसायन भारतीय बाजार में बिकने वाले शिशुओं के लिए कुछ बोतलों में पाया जा रहा है.
- इस रसायन का प्रयोग खाद्य-पदार्थ के डिब्बों, बोतल के ढक्कनों और पानी के पाइपों के भीतरी भाग में परत लगाने में होता है.
- बिस्फेनॉल-ए हमारी त्वचा को भेद कर अंदर प्रविष्ट हो जाता है. भारत जैसे ऊष्णकटिबंधीय देश में यह सम्भावना सामान्य दर से 10 गुना अधिक तक हो जाती है.
Sea of Japan :–
- उत्तर कोरिया ने किम जोंग-उन की निगरानी में लंबी दूरी वाले अनेक रॉकेट लॉन्चर्स और सामरिक हथियारों का परीक्षण किया. यह अभ्यास पूर्वी समुद्र में किया गया, जिसे जापान का सागर भी कहा जाता है.
- जापान सागर पश्चिमी प्रशांत महासागर का एक समुद्री अंश है. यह समुद्र जापान के द्वीपसमूह, रूस के साख़ालिन द्वीप और एशिया के महाद्वीप के मुख्य भूभाग के बीच स्थित है. इसके इर्द-गिर्द जापान, रूस, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया आते हैं.
- कुछ स्थानों को छोड़कर यह क़रीब-क़रीब पूरी तरह ज़मीन से घिरा हुआ है, इसलिए इसमें भी भूमध्य सागर की तरह महासागर के ज्वार-भाटा की बड़ी लहरें नहीं आती. अन्य सागरों की तुलना में जापान सागर के पानी में मिश्रित ऑक्सिजन की तादाद अधिक है जिस से यहाँ मछलियों की भरमार है.
INS Vela :–
- नौसेना ने सोमवार को स्कॉर्पीन श्रेणी की चौथी पनडुब्बी ‘वेला’ का जलावतरण किया.
- P 75 प्रोजेक्ट के तहत पहली बार इस सबरमीन को पानी में उतारा गया.
- फ्रांस के सहयोग से भारत में निर्मित होने वाली छह युद्धक पनडुब्बियों में से यह चौथी है.
- इसका उद्देश्य सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र में भारत की रक्षा एवं सुरक्षा क्षमता बढ़ाना है.
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