Sansar डेली करंट अफेयर्स, 08 January 2019

Sansar LochanSansar DCA

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GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Section 66A of the IT Act

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अनुभाग 66A का अभी भी प्रयोग होने के विषय में सम्बन्धित पक्षों को नोटिस निर्गत किया है.

विदित हो कि इस विषय में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) नामक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका देकर यह शिकायत की थी कि यद्यपि अनुभाग 66A को सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में ही निरस्त कर दिया था, फिर भी इस अनुभाग के अंतर्गत कार्यवाई बंद नहीं हुई है और अभी तक 22 से अधिक लोगों पर मुकदमा चलाया जा चुका है.

अनुभाग 66A में क्या है?

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में अनुभाग 66A 2009 में जोड़ा गया था. इसमें कंप्यूटर अथवा मोबाइल फोन या टेबलेट जैसे अन्य संचार उपकरण से अपमानाजनक संवाद भेजने के लिए दंड का विधान किया गया है. इसके लिए अधिकतम तीन वर्षों तक का कारावास एवं जुर्माने का दंड दिया जा सकता है.

पृष्ठभूमि

सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च, 2015 में श्रेया सिंघल बनाम भारतीय संघ मामले में सुनवाई करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अनुभाग 66A को असंवैधानिक घोषित करते हुए निरस्त कर दिया था क्योंकि उसका विश्वास था कि इसके चलते कई निर्दोष जन भी गिरफ्तार हुए हैं.

66A रद्द करने का आधार

अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिपण्णी की थी कि 66A अनुभाग संविधान की धारा 19(1)(a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करता है. न्यायालय का यह कहना था कि इस अनुभाग में जिन अभिव्यक्तियों को अपराध के दायरे में लाया गया था, उनकी परिभाषा सटीक रूप से नहीं दी गई थी और इस कारण किसी भी अभिव्यक्ति को अपराध के दायरे में लाया जा सकता था. दूसरे शब्दों में, दंडनीय अभिव्यक्ति की परिभाषा वस्तुनिष्ठ न होकर विषयनिष्ठ थी.


GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : 10% reservation for economically weak among upper caste

संदर्भ

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में संविधान (124वाँ संशोधन) विधेयक पर अपनी मंजूरी दे दी है. इस विधेयक में सामान्य वर्ग के उन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों, जिन्हें आरक्षण की किसी वर्तमान योजना से लाभ नहीं मिल रहा है, के लिए 10% आरक्षण देने का प्रस्ताव है.  

विधेयक में प्रस्ताव है कि संविधान में संशोधन कर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों में प्रत्यक्ष भर्ती में तथा उच्चतर शैक्षणिक संस्थानों में नाम लिखाने के लिए 10% आरक्षण दिया जाए. इस आरक्षण का लाभ ईसाई और मुसलमान सहित सभी समुदायों और जातियों के उन व्यक्तियों को मिलेगा जो वर्तमान आरक्षण के लिए पात्र नहीं हैं.

विधेयक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आवश्यक योग्यता

  • 8 लाख रु. तक की वार्षिक पारिवारिक आय.
  • पाँच एकड़ से कम कृषि-भूमि
  • एक हजार वर्ग फुट से कम का घर
  • अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 100 गज से कम का आवासीय भूखंड
  • गैर-अधिसूचित नगरपालिका क्षेत्र में 200 गज से नीचे का आवासीय भूखंड.

प्रस्तावित आरक्षण के लिए आवश्यक प्रक्रिया

  • इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करना.
  • विदित हो कि अनुच्छेद 15 में धर्म, प्रजाति, जाति, लिंग अथवा जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव की मनाही है.
  • अनुच्छेद 16 में सरकारी नौकरी के मामले में अवसर की समानता का प्रावधान है.
  • प्रस्तावित संशोधन को लोक सभा और राज्य सभा दोनों में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन आवश्यक होगा. इसके अतिरिक्त देश के आधे से अधिक राज्यों की विधान सभाओं का भी अनुमोदन इसके लिए आवश्यक है.

निहितार्थ

प्रस्तावित 10% आरक्षण उस 50% आरक्षण के अतिरिक्त होगा जो वर्तमान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को दिया जा रहा है. इस प्रकार कुल आरक्षण 60% हो जाएगा.

इंदिरा साहनी वाद में सर्वोच्च न्यायालय का मंतव्य

  • 1992 के इंदिरा साहनी वाद में सर्वोच्च न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की एक संवैधानिक बेंच ने इस विषय में विचार किया था कि क्या किसी पिछड़े वर्ग की पहचान मात्र आर्थिक मापदंड पर की जा सकती है अथवा नहीं. उस समय यह स्पष्ट रूप से आदेश हुआ था कि किसी पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक मापदंड पर नहीं किया जा सकता.
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि इसके लिए आर्थिक मापदंड पर तभी विचार हो सकता है जब सम्बन्धित वर्ग के सामाजिक पिछड़ेपन पर भी विचार किया जाए.
  • इसी संवैधानिक बेंच ने यह कहा कि यदि कोई असाधारण परिस्थिति न हो तो आरक्षण की ऊपरी सीमा 50% ही होनी चाहिए.

GS Paper 2 Source: Economic Times

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Topic : 70 Point Grading Index to assess states on schooling syste

संदर्भ

सरकार ने एक 70-सूत्री प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक (Performance Grading Index – PGI) का अनावरण किया है जिसका उद्देश्य प्रत्येक राज्य की विद्यालयी शिक्षा प्रणाली में विद्यमान कमियों का मूल्यांकन करना तथा बच्चों को पढ़ाने से लेकर शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के प्रत्येक स्तर पर आवश्यक हस्तक्षेप करते हुए उसमें सुधार लाना है.

PGI क्या है?

  • इस सूचकांक का उद्देश्य राज्यों को यह समझने में सहायता करना है कि वे कहाँ पर पिछड़ रहे हैं और उन्हें यह बतलाना है कि किन आवश्यक क्षेत्रों में हस्तक्षेप करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि विद्यालय की शिक्षा प्रणाली प्रत्येक स्तर पर सुदृढ़ रहे.
  • इस विद्यालयी सूचकांक का संकलन भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय (HRD) कर रहा है.
  • सूचकांक में राज्यों का मूल्यांकन 1,000 बिन्दुओं वाली एक ग्रेडिंग प्रणाली के आधार पर किया जाएगा जिसमें प्रत्येक मानदंड के लिए 10-20 बिंदु होंगे.
  • इस सूचकांक में 70 संकेतक इन क्षेत्रों के आधार पर ग्रेडिंग करेंगे – शिक्षकों को पदों में वर्तमान रिक्तियाँ, प्रत्यक्ष भर्ती के पदों की संख्या, विद्यालय का भवन एवं अन्य सुविधाएँ आदि.
  • नीति आयोग PGI के 70 मापदंडों में से 33 मापदंडों को अपनाकर अपने स्तर पर मूल्यांकन करेगा.

माहात्म्य

यह सूचकांक सरकार की उस समग्र चेष्टा के अनुरूप है जिसमें गुणवत्ता में सुधार, शिक्षक-प्रशिक्षण और ज्ञानवर्धन पर बल दिया जा रहा है. यह बतलायेगा कि वे कौन-से आवश्यक क्षेत्र हैं जिनमें हस्तक्षेप करके विद्यालयी शिक्षा को प्रत्येक स्तर पर सुदृढ़ किया जा सकता है.


GS Paper 2 Source: Economic Times

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Topic : National Policy on Domestic Workers

संदर्भ

भारत सरकार का श्रम मंत्रलाय घरेलू कामगारों (domestic workers) के लिए एक राष्ट्रीय नीति का प्रारूप तैयार कर रहा है. इसका उद्देश्य घरेलू कामगारों को न्यूनतम मजदूरी दिलवाना और साथ ही उनकी सामाजिक सुरक्षा एवं काम करने की दशा में सुधार लाना है.

राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता क्यों?

  • घरेलू कामगारों को दी गई मजदूरी कम होती है और वह जल्दी बढ़ती नहीं है. विशेषकर बंगाल में और आदिवासी कामगारों के मामलों में यह और भी कम होती है. वस्तुतः घरेलू कामगार के वेतन और सेवा-शर्तों पर घर के मालिक का वर्चस्व होता है.
  • घर का मालिक समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं करता है.
  • नौकरी के आरम्भ में तय किये गये काम से अधिक काम लिया जाता है.
  • मनमाने ढंग से मजदूरी घटा दी जाती है.
  • जब कभी कोई कामगार वेतन अथवा काम के बारे में फिर से कुछ कहता है तो उसको काम छोड़ देना पड़ता है और इसको लेकर न केवल कहा-सुनी होती है, अपितु मार-पीट तक हो जाती है.
  • घरेलू कामगार पर नौकरी छूटने का खतरा निरंतर बना रहता है और कभी-कभी वह बकाया पाने के लिए अपराध भी कर बैठता है.

प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति

  • इसका उद्देश्य घरेलू कामगारों को शोषण, परेशानी, हिंसा, आदि से बचाना और उन्हें सामाजिक सुरक्षा एवं न्यूनतम मजदूरी का अधिकार दिलवाना है.
  • इस नीति में यौन उत्पीड़न और बंधुआ मजदूरी के विरुद्ध प्रावधान किये गये हैं.
  • इस नीति के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा, रोजगार के लिए उचित शर्तों, शिकायत निवारण और विवाद निपटारे के लिए एक सांस्थिक तन्त्र का निर्माण प्रस्तावित है. इसके अनुसार घरेलू कामगार श्रमिक कहे जाएँगे और उन्हें राजश्रम विभाग के अन्दर अपने-आप को पंजीकृत करने का अधिकार होगा.
  • इस नीति के अनुसार घरेलू कामगार भी अन्य कामगारों की भाँति अपना संगठन बना सकेंगे.
  • राष्ट्रीय नीति में घरेलू रोजगार के लिए एक आदर्श समझौता पत्र की भी अभिकल्पना है जिसमें यह बताया जाएगा कि कामगार को कितना घंटा काम करना है और उसे आराम के लिए कितनी छुट्टी मिल सकती है.
  • इस नीति के अनुसार सरकारें घरेलू कामगारों की नियुक्ति और इससे सम्बंधित एजेंसियों पर नियंत्रण रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगी तथा केंद्र, राज्य एवं जिला-स्तरों पर कार्यान्वयन समितियाँ गठित की जाएँगी.
  • राष्ट्रीय नीति में विभिन्न प्रकार के कामगारों की स्पष्ट परिभाषा दी जायेगी, जैसे – आंशिक कामगार, पूर्णकालिक कामगार, घर में रहने वाले कामगार. इसके अतिरिक्त इस नीति में काम पर लगाने वालों और निजी नौकरी दिलाने वाली एजेंसियों को भी परिभाषित किया जाएगा.

GS Paper 3 Source: Down to Earth 

Topic : CITES — Washington Convention

संदर्भ

भारत ने संकटग्रस्त पौधों और पशुओं की सुरक्षा के लिए बनी बहुपक्षीय संधि CITES की अनुसूची II से रोजवुड (दलबर्जिया सिस्सू) को हटाने का प्रस्ताव दिया.

उल्लेखनीय है कि CITES की अनुसूची II में उन प्रजातियों का नाम होता है जो विलुप्ति के कगार पर तो नहीं हैं परन्तु उनका व्यापार नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है.

भारत रोजवुड को सूची से क्यों हटाना चाहता है?

रोजवुड बहुत तेजी से बढ़ता है और यह अपने मूल स्थान के बाहर भी पनपने की क्षमता रखता है. विश्व के कुछ भागों में तो यह आवश्यकता से अधिक फ़ैल जाता है. इसलिए, इसके व्यापार को नियंत्रित करना आवश्यक नहीं है.

CITES क्या है?

  • CITES का पूरा नाम है – Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora.
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो वन्यजीवों और पौधों के वाणिज्यिक व्यापार को विश्व-भर में नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया था.
  • यह ऐसे पौधों और पशुओं से बनने वाले उत्पादों के व्यापार पर भी प्रतिबंध लगाता है, जैसे – खाद्य पदार्थ, कपड़े, औषधि और स्मृति-चिन्ह आदि.
  • यह संधि मार्च 3, 1973 में हस्ताक्षरित हुई थी. इसलिए मार्च 3 को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है.
  • इस संधि का प्रशासन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme – UNEP) के अधीन होता है.
  • इसका सचिवालय जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है.
  • CITES पर हस्ताक्षर करने वाले देश संधि के नियमों से कानूनी रूप से बंधे होते हैं.

पशुओं और पौधों का वर्गीकरण

CITES विभिन्न पशुओं और पौधों पर विलुप्ति के खतरे के मात्रा के अनुसार उन्हें तीन अनुसूचियों में बाँटता है, ये हैं –

अनुसूची I : इस सूची में वे प्रजातियाँ आती हैं जिनपर विलुप्ति का संकट होता है. इस सूची के प्रजातियों के वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध होता है. मात्र वैज्ञानिक अथवा शैक्षणिक कारणों से असाधारण स्थिति में इनका व्यापार हो सकता है.

अनुसूची II : इसमें वे प्रजातियाँ आती हैं जो विलुप्ति के कगार पर तो नहीं हैं, परन्तु यदि इनका व्यापार प्रतिबंधित नहीं हो तो इनकी संख्या में भारी गिरावट आ जायेगी. इनके व्यापार को परमिट के द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

अनुसूची III : इसमें वह प्रजाति आती है जो CITES के सदस्य देशों में किसी एक देश में सुरक्षित घोषित है और उस देश ने अन्य देशों से उस प्रजाति में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने में सहायता मांगी हो.


Prelims Vishesh

Personal Laws (Amendment) Bill, 2018 :-

हाल ही में लोक सभा ने व्यक्तिगत कानून (संशोधन) विधेयक, 2018 को पारित कर दिया है. इस विधेयक में कोढ़ को तलाक के लिए तलाक के लिए उपयुक्त रोगों की सूची से बाहर करने का प्रस्ताव दिया गया है क्योंकि अब यह रोग असाध्य नहीं रहा है.

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