Sansar डेली करंट अफेयर्स, 8 May 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 08 May 2019


GS Paper  1 Source: PIB

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Topic : Basavanna

संदर्भ

7 मई 2019 को, 12 वीं शताब्दी के हिंदू कन्नड़ कवि बासवन्ना के जन्म दिवस पर कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में बसवा जयंती मनाई गई. यह पारंपरिक रूप से लिंगायतों द्वारा मनाई जाती थी. उन्हें लिंगायत तबके का संस्थापक संत माना जाता है.

बासवन्ना

बासवन्ना का जन्म कर्नाटक के इंगलेश्वर, बागेवाड़ी शहर में 20 मार्च 1134 को हुआ था, जो वर्ष 1134 में आनंदमामा (संवत्सर) के वैशाख महीने का तीसरा दिन था. विश्वासियों के अनुसार, पैगंबर बासवन्ना के जन्म के साथ, एक नया युग शुरू हुआ. बासवन्ना 12वीं शताब्दी के एक समाज सुधारक थे. उन्होंने अपने समकालीन शरणों के साथ मिलकर ब्राह्मणों की वर्चस्वता के विरुद्ध एक बहुत प्रबल आध्यात्मिक, सामाजिक तथा धार्मिक विद्रोह चलाया था. बासवन्ना का कहना था कि कर्म ही पूजा है. उन्होंने अपने आन्दोलन में वचनों के माध्यम से महिलाओं को समान दर्जा दिया. बासवन्ना और अन्य शरण सरल कन्नड़ भाषा में वचन कहते थे जिससे कि साधारण से साधारण जन भी उनकी बातों को समझ सके.

लिंगायत

  • लिंगायतवाद की परंपरा की स्थापना 12वीं सदी में कर्नाटक के एक सामाजिक सुधारक और दार्शनिक बासव द्वारा की गई थी.
  • बासव/बासवन्ना ने सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मानव स्वतंत्रता, समानता, तर्कसंगतता और भाईचारे को आधार बनाने के लिए कहा.
  • लिंगायतों का कहना है कि उनके आदिगुरु बासवन्ना ने जिस शिव को अपना इष्ट बनाया था वे हिन्दू धर्म के शिव नहीं हैं अपितु इष्ट लिंग (निराकार भगवान्) हैं जिसे लिंगायत अपने गले में लटकाते हैं.

वीरशैव

  • वीरशैव शैव-पंथी हैं और मुख्यतः कर्नाटक में रहते हैं.
  • कर्नाटक के अतिरिक्त यह समुदाय केरल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाया जाता है.
  • वीरशैव का दावा है कि बासवन्ना लिंगायत परंपरा के संस्थापक नहीं थे अपितु वे वीरशैव सम्प्रदाय के अंतर्गत ही एक सुधारक मात्र थे.
  • वीरशैव सम्प्रदाय की जड़ें वेद और आगमों में हैं और यह शिव के अतिरिक्त किसी अन्य भगवान् की पूजा नहीं करता.

बासवन्ना और शरण आन्दोलन

  • बासवन्ना ने शरण नामक एक आन्दोलन चलाया था जिसके प्रति सभी जाति के लोग आकर्षित हुए थे. इस आन्दोलन से सम्बंधित ढेर सारा साहित्य उसी प्रकार रचा गया था जैसे कि भक्ति आन्दोलन में हुआ था. इस साहित्य को “वचन” कहते हैं. इनमें वीरशैव संतों के आध्यात्मिक अनुभवों को प्रस्तुत किया गया था.
  • बासवन्ना का शरण आन्दोलन एक समानतावादी आन्दोलन था जो अपने समय के हिसाब से एक क्रांतिकारी आन्दोलन था.
  • बासवन्ना ने अनुभव मंडप नामक स्थल स्थापित किया था जहाँ विभिन्न जातियों और समुदायों के शरण जमा होकर सीखने और विचारने का काम करते थे.
  • जाति प्रथा के अंतिम गढ़ अर्थात् विवाह को चुनौती देते हुए शरणों ने एक ऐसा वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें दूल्हा निम्न जाति का और दुल्हन ब्राह्मण होती थी.

GS Paper  2 Source: PIB

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Topic : Border Roads Organisation (BRO)

संदर्भ

रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली प्रमुख सड़क निर्माण एजेंसी, सीमा सड़क संगठन (BRO) ने हाल ही में अपना 59वां स्थापना दिवस मनाया. बीआरओ देश के सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत संरचना विकास के क्षेत्र में अग्रणी सरकारी संगठन है. 1960 में इसकी स्थापना के बाद से यह 2 से लेकर 19 परियोजनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है. इसके द्वारा किए गए कार्यों ने देश के दूरस्थ इलाकों में क्षेत्रीय अखंडता और सामाजिक-आर्थिक उत्थान को सुनिश्चित किया है.

BRO क्या है?

  • BRO का full-form है – Border Roads Organisation.
  • BRO 2015 से रक्षा मंत्रालय के साथ काम कर रहा है.
  • इसका कार्य सीमा के आस-पास कठिन एवं दुर्गम स्थानों तक सड़क बनाना है.
  • सेना में “Indian Army’s Corps of Engineers” नामक एक इंजीनियरिंग शाखा होती है, उसी से BRO में इंजिनियर लिए जाते हैं.
  • वर्तमान में BRO द्वारा 21 राज्य और एक संघ शासित क्षेत्र (अंडमान और निकोबार) में काम किया जा रहा है.
  • इसके आलावा BRO को अफगानिस्तान, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका में भी काम मिला है.
  • बीआरओ देश की 32,885 किलोमीटर सड़कों और 12,200 मीटर स्थायी पुलों का रखरखाव करता है.
  • उत्तर-पूर्व भारत में आधारभूत संरचना के विकास में BRO का महान योगदान है.

चीनी सीमा के पास भारत सरकार ने 73 सड़कों की स्वीकृति दे रखी है पर यह संगठन समय पर इनके निर्माण का कार्य पूरा नहीं कर पाया है इसलिए भारत सरकार ने हाल ही में इसको अतिरिक्त वित्तीय शक्तियाँ प्रदान की हैं जिससे कि यह काम में तेजी ला सके.

सुधार की आवश्यकता

सीमा सड़क संगठन (BRO) में सुधार लाने के लिए बहुत प्रयत्न हुए हैं, परन्तु यह अभी भी एक विभाजित संगठन बना हुआ है जिसमें इस संगठन के कैडर के अफसरों और इसमें प्रतिनियुक्ति पर पदस्थापित सैनिक अफसरों के बीच में खटपट चलती रहती है. BRO कैडर के अफसर यह नहीं चाहते हैं कि संगठन के उच्चस्थ कार्यकारी और कमांड के ढेर सारे पद सैनिकों को मिलें.


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Voter-Verified Paper Audit Trail (VVPAT)

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में विपक्ष द्वारा VVPAT की गिनती से सम्बंधित आदेश की समीक्षा के लिए दायर याचिका को निरस्त कर दिया है.

मामला क्या है?

सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ दिनों पहले ही यह आदेश दिया था कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में मतों की गिनती के समय पाँच EVM मशीनों में VVPAT की पर्ची गिनी जाए. 21 विपक्षी दलों ने याचिका देकर सर्वोच्च न्यायालय से यह आग्रह किया कि कम से कम 25% VVPAT पर्चियों की गिनती हो. उनका आरोप था कि चालू लोकसभा चुनावों में EVM से छेड़-छाड़ करने और चुन-चुन कर EVM को खराब करने के बहुत सारे मामले हो रहे हैं.

VVPAT क्या है?

  • VVPAT मशीन का पूरा नाम – वोटर वेरीफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीन है.
  • इस मशीन से मतदाताओं को पता चलता है कि उन्होंने जो मत दिया है वह किस उम्मीदवार को गया.
  • यह एक प्रकार का प्रिंटर है जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में जोड़ दिया जाता है.
  • भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने यह मशीन 2013 में डिज़ायन की.

यह कैसे काम करता है?

जब कोई मतदाता EVM में एक बटन दबाता है तो VVPAT से एक कागज़ की पुर्जी निकलती है जिसमें प्रत्याशी का नाम और चुनाव चिन्ह छपा होता है. इस तरह की पर्चियाँ एक बक्से में डाल दी जाती है और मतदाता उसे घर नहीं ले जा सकता है.

लाभ

  • इससे मतदाता को तुरंत पता चल जाता है कि उसने जिसे मत देना चाहा उसको मत मिल गया अथवा नहीं.
  • यदि कोई विवाद हुआ तो चुनाव अधिकारी हाथ से वोट गिनने के लिए मशीन से निकली पर्चियों को हाथ से गिन सकता है.
  • VVPAT मशीन एक प्रत्यक्ष रिकॉर्डिंग इलेक्शन सिस्टम से काम करती है और जालसाजी अथवा अन्य गड़बड़ियों को तुरंत पकड़ लेती है.
  • इसके प्रयोग से मतदान की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी हो जाती है.
  • इससे न केवल मतदाता अपितु राजनैतिक दल भी आश्वस्त रहते हैं.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA)

संदर्भ

ईरान ने हाल ही में 2015 की संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) नामक परमाणु समझौते के लिए हस्ताक्षरकर्ताओं को सूचित किया कि अब वह समझौते में किए गए कुछ “स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं” का पालन नहीं करेगा.

ईरान आणविक समझौता क्या है?

  • यह समझौता, जिसे Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA के नाम से भी जाना जाता है, ओबामा के कार्यकाल में 2015 में हुआ थी.
  • इरानियन आणविक डील इरान और सुरक्षा परिषद् के 5 स्थाई सदस्य देशों तथा जर्मनी के बीच हुई थी जिसे P5+1भी कहा जाता है.
  • यह डील ईरान द्वारा चालाये जा रहे आणविक कार्यक्रम को बंद कराने के उद्देश्य से की गई थी.
  • इसमें ईरान ने वादा किया था कि वह कम-से-कम अगले 15 साल तक अणु-बम नहीं बनाएगा और अणु-बम बनाने के लिए आवश्यक वस्तुओं, जैसे समृद्ध यूरेनियम तथा भारी जल के भंडार में भारी कटौती करेगा.
  • समझौते के तहत एक संयुक्त आयोग बनाया गया था जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि थे. इस आयोग का काम समझौते के अनुपालन पर नज़र रखना था.
  • इस डील के अनुसार ईरान में स्थित आणविक केंद्र अमेरिका आदि देशों की निगरानी में रहेंगे.
  • ईरान इस डील के लिए इसलिए तैयार हो गया था क्योंकि आणविक बम बनाने के प्रयास के कारण कई देशों ने उसपर इतनी आर्थिक पाबंदियाँ लगा दी थीं कि उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी.
  • उल्लेखनीय है कि तेल निर्यात पर प्रतिबंध के कारण ईरान को प्रतिवर्ष करोड़ों पौंड का घाटा हो रहा था. साथ ही विदेश में स्थित उसके करोड़ों की संपत्तियां भी निष्क्रिय कर दी गई थीं.

अमेरिका समझौते से हटा क्यों?

अमेरिका का कहना है कि जो समझौता वह दोषपूर्ण है क्योंकि एक तरफ ईरान को करोड़ों डॉलर मिलते हैं तो दूसरी ओर वह हमास और हैजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को सहायता देना जारी किये हुए है. साथ ही यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से रोक नहीं पा रहा है. अमेरिका का कहना है कि ईरान अपने आणविक कार्यक्रम के बारे में हमेशा झूठ बोलता आया है.

अमेरिका के निर्णय पर अन्य देशों और संगठनों की प्रतिक्रिया

  • JCPOA के अन्य भागीदार इस समझौते को भंग करने के पक्ष में नहीं है.
  • केवल दो देशों – सऊदी अरब और इजराइल ने अमेरिका का इस समझौते से पीछे हटने के निर्णय की सराहना की है.
  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) का कहना है कि अमेरिका के एकपक्षीय निर्णय से सम्पूर्ण समझौते की नींव ही हिल गई है. यदि अमेरिका इस समझौते से जुड़ा होता तो यह बहुत हद तक सम्भव था कि समझौते के हर-एक बिंदु को अंततः ईरान सहज स्वीकार कर लेता.
  • ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी, पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते और उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते से अलगाव के बाद, यह निर्णय अमेरिकी विश्वसनीयता को और कम करता है.
  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) में ईरान तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. इस निर्णय के बाद ईरान की तेल आपूर्ति गिरकर 200,000 bpd और 1 मिलियन bpd के बीच हो सकती है. यह इस पर निर्भर करेगा कि वाशिंगटन के निर्णय का कितने अन्य देश समर्थन करते हैं.
  • तेल की  कीमतों में संभावित वृद्धि हो सकती है जो वित्तीय बाजारों में अस्थिरता का कारण बन सकती है क्योंकि यूरोपीय देशों तक 37% तेल आपूर्ति ईरान द्वारा की जाती है. JCPOA के निर्माण के बाद व्यापार सम्बन्धों में कई आयामों का विकास हुआ है. अमेरिका द्वारा समझौते में स्वयं को अलग करना विशेष रूप से यूरोपीय देशों में इसकी विश्वसनीयता में कमी और NATO गठबंधन को कमजोर बना सकता है.
  • यह जनसामान्य के जीवन में अनेक कठिनाइयाँ पैदा करेगा.

भारत पर निर्णय के प्रभाव

तेल की कीमतें : ईरान वर्तमान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश (इराक के बाद) है और कीमतों में कोई भी वृद्धि मुद्रास्फीति के स्तर और भारतीय रूपये दोनों को भी प्रभावित करेगी.

चाबहार : अमेरिकी प्रतिबंध चाबहार परियोजना के निर्माण की गति को धीमा कर सकते हैं अथवा रोक भी सकते हैं. भारत, बन्दरगाह हेतु निर्धारित कुल 500 मिलियन डॉलर के व्यय में इसके विकास के लिए लगभग 85 मिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान के लिए रेलवे लाइन हेतु लगभग 1.6 अरब डॉलर तक का व्यय हो सकता है.

भारत, INSTC (International North–South Transport Corridor) का संस्थापक है. इसकी अभिपुष्टि 2002 में की गई थी. 2015 में JCPOA पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद ईरान से प्रतिबन्ध हटा दिए गये और INSTC की योजना में तीव्रता आई. यदि इस मार्ग से सम्बद्ध कोई भी देश या बैंकिंग और बीमा कम्पनियाँ INSTC योजना से लेन-देन करती है तथा साथ ही ईरान के साथ व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का अनुपालन करने का निर्णय लेती हैं तो नए अमेरिकी प्रतिबंध INSTC के विकास को प्रभावित करेंगे.


GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : Genetic studies on the people of the Lakshadweep archipelago

संदर्भ

CSIR –कोषीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (CSIR-Centre for Cellular and Molecular Biology – CCMB) के एक दल ने पहली बार लक्षद्वीप समूह के निवासियों का आनुवांशिक अध्ययन किया है.

मुख्य निष्कर्ष

  • लक्षद्वीप के अधिकांश लोग दक्षिण एशिया से आये हैं और इनमें पूर्व एवं पश्चिम यूरेशिया का प्रभाव नाममात्र का है.
  • लक्षद्वीप के निवासियों का मालदीव, श्रीलंका और भारत के निवासियों से निकट का आनुवांशिक सम्बन्ध है.

पृष्ठभूमि

प्राचीन काल से नाव चलाने वाले लोग लक्षद्वीप को जानते थे और ऐतिहासिक प्रलेख बताते हैं कि यहाँ छठी शताब्दी ई.पू. में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ तथा 661 ई. में अरबी लोगों ने यहाँ आकर इस्लाम का प्रचार किया. जहाँ तक राजनैतिक वर्चस्व की बात है लक्षद्वीप पर 11वीं शताब्दी में चोल राजवंश ने, 16वीं शताब्दी में पुर्गालियों ने, 17वीं शताब्दी में अली राजाओं ने, 18वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान ने और फिर 19वीं शताब्दी के बाद अंग्रेजों ने शासन किया.

कोषीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र क्या है?

  • कोषीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र भारत का एक मूर्धन्य शोध संस्थान है जो आधुनिक जीव विज्ञान से सम्बंधित विषयों में उच्च कोटि का मूलभूत अनुसंधान करता है और प्रशिक्षण देता है.
  • यह केंद्र जीव विज्ञान के क्षेत्र में नई-नई और आधुनिक तकनीकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीकृत सुविधा प्रदान करता है.
  • इस केंद्र की स्थापना अप्रैल 1, 1977 में एक अर्धस्वायत्त केंद्र के रूप में हुई थी. उस समय यह तत्कालीन क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला के जैव रसायन विभाग से संलग्न था. विदित हो कि इस विभाग को अब भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान के नाम से जाना जाता है.
  • यह केंद्र में हैदराबाद में स्थित है और CSIR अर्थात् वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अन्दर आता है.
  • UNESCO के वैश्विक आणविक एवं कोष जीव विज्ञान नेटवर्क (Global Molecular and Cell Biology Network) ने इस केंद्र को उत्कृष्ट केंद्र की पदवी दी है.

Prelims Vishesh

Purple frog :-

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  • केरल सरकार ने बैंगनी मेंढक को राज्य उभयचर घोषित करने का प्रस्ताव दिया है.
  • विदित हो कि केरल में बैंगनी मेंढक होते हैं जिन्हें मावेली अथवा पिगनोज मेंढक भी कहते हैं.
  • ये मेंढक अपेक्षाकृत गोल और छोटे सर वाले होते हैं. इनके थूथने असमान्य रूप से नुकीले होते हैं. यह अधिकतर भूमि के अन्दर सुरंगों में रहते हैं.
  • कहा जाता है कि ये मेंढक 70 मिलियन वर्ष पहले इसी रूप में थे और डायनसोरों के साथ रहते थे. इसलिए इन्हें जीवित जीवाश्म भी कहते हैं.
  • IUCN लाल सूची में इस मेंढक को संकटग्रस्त श्रेणी (endangered) में रखा गया है.

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