Sansar Daily Current Affairs, 09 December 2020
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : The Freedom Struggle – its various stages and important contributors /contributions from different parts of the country.
Topic : Chakravarti Rajagopalachari
संदर्भ
सी राजगोपालाचारी की जयंती 10 दिसंबर मनाई जाती है.
सी राजगोपालाचारी कौन थे?
- चक्रवर्ती राजगोपालाचारी राजाजी नाम से भी जाने जाते हैं. वे वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे.
- गांधीवादी राजनीतिज्ञ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत के इतिहास का ‘चाणक्य‘ माना जाता है.
- उनका जन्म दक्षिण भारत के सलेम जिले में थोरापल्ली नामक गांव में हुआ था.
- वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे.
- वे दक्षिण भारत के कांग्रेस के प्रमुख नेता थे, किन्तु बाद में वे कांग्रेस के प्रखर विरोधी बन गए तथा स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की. वे गांधीजी के समधी थे.
- उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया.
- द्विराष्ट्र सिद्धांत और ब्रिटिशों से भारत की स्वतंत्रता को लेकर मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलग अलग विचारों के कारण पैदा हुए मतभेदों को सुलझाने के उद्देश्य से राजगोपालाचारी फार्मूला लाया गया था.
- 1954 में भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजाजी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया. भारत रत्न पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे.
- उनके समाज सेवी कार्यों से प्रभावित होकर जनता द्वारा उन्हें सेलम की म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक नागरिक समस्याओं का तो समाधान किया ही, साथ ही तत्कालीन समाज में व्याप्त ऐसी सामाजिक बुराइयों का भी जमकर विरोध किया जो उन्हीं के जैसे हिम्मती व्यक्ति के बस की बात थी. सेलम में पहले सहकारी बैंक की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही जाता है.
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : The Freedom Struggle – its various stages and important contributors /contributions from different parts of the country.
Topic : Bagha Jatin
संदर्भ
7 दिसम्बर को जतीन्द्रनाथ मुखर्जी की जयंती मनाई गई.
जतीन्द्रनाथ मुखर्जी कौन थे?
- जतीन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म ब्रिटिश भारत में बंगाल के जैसोर में सन 7 दिसम्बर 1879 ई. में हुआ था.
- जतीन्द्रनाथ मुखर्जी अथवा बाघा जतीन ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ एक बंगाली क्रांतिकारी थे.
- जतीन्द्रनाथ मुखर्जी के बचपन का नाम ‘जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय’ था. अपनी बहादुरी से एक बाघ को मार देने के कारण ये ‘बाघा जतीन’ के नाम से भी प्रसिद्ध हो गये थे.
- बाघा जतीन का जुड़ाव अरबिंदो घोष से हुआ और वह अनुशीलन समिति के सदस्य बन गए. वह ‘अनुशीलन समिति’ के सक्रिय सदस्य होने के साथ ‘युगान्तर’ का भी कार्य संभालते थे.
- स्वदेशी आन्दोलन के दौरान 1905 में, बाघा जतिन ने छात्र भंडार (Chhatra Bhandar) नामक एक संघ की स्थापना की जिसका उद्देश्य बंगाल के क्रांतिकारियों की मदद करनी थी.
- बाघा जतिन का संपर्क विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे रासबिहारी बोस, लाला हर दयाल, एमएन रॉय, चंपकरामन पिल्लई, नायर सैन, श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे क्रांतिकारियों से भी था.
- जर्मन सेना से धन और हथियार प्राप्त करने का कार्य जतिन के प्रमुख लेफ्टिनेंट एमएन रॉय को सौंपा गया था. जर्मन सेना से धन और हथियार प्राप्त करने के लिए अप्रैल 1915 में एमएन रॉय जर्मन सेनाओं की तलाश में निकल गए. बाघा जतिन की सशस्त्र विद्रोह की योजना थी जिसमे मद्रास और बंगाल के बीच अंग्रेजों की संचार रेखा को ध्वस्त करना शामिल था और यह योजना अगर कारगर हो जाती तो भारत शायद 1915 में ही आजाद हो जाता.
- 1 सितम्बर, 1915 को पुलिस ने जतीन्द्रनाथ का गुप्त अड्डा ‘काली पोक्ष’ ढूंढ़ निकाला और मुठभेड़ में वह घायल हो गये. 10 सितम्बर, 1915 को भारत की आज़ादी के इस महान् सिपाही ने अस्पताल में सदा के लिए आँखें मूँद लीं.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : India and its neighbourhood- relations.
Topic : Bangladesh begins controversial transfer of Rohingya to island
संदर्भ
बांग्लादेश द्वारा सैकड़ों रोहिंग्या शरणार्थियों को भासन चार द्वीप (Bhashan Char island) (चक्रवात और बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र में एक निम्नस्थ द्वीप) पर स्थानांतरित करना शुरू कर दिया गया है.
इस पर, नागरिक अधिकार समूहों द्वारा लोगों को विस्थापित होने किये विवश किये जाने का आरोप लगाया जा रहा है.
संबंधित चिंताएं
भासन चार द्वीप का निर्माण मात्र 20 वर्ष पूर्व बंगाल की खाड़ी में हिमालयन गाद से हुआ था. वर्ष 2015 में, बांग्लादेश द्वारा इस विचार को पेश किये जाने के समय से ही भासन चार द्वीप पर मौसमी चरम स्थितियों और आपात स्थिति में मुख्य भूमि से दूरी को लेकर लगातार चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं.
रोहिंग्या कौन हैं?
- रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहने वाला एक समुदाय है जिसमें अधिकांश मुसलमान हैं.
- उस देश में रोहिंग्याओं को पूर्ण नागरिकता प्राप्त नहीं है और उन्हें निवासी विदेशी अथवा सह-नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया.
- नस्ल की दृष्टि से ये म्यांमार में रहने वाले चीनी तिब्बती लोगों से अलग हैं और थोड़ा बहुत भारत के और बांग्लादेश के भारतीय आर्य जनों से मिलते-जुलते हैं.
- इनकी भाषा और संस्कृति सभी देशों से बिल्कुल अलग है.
- म्यांमार में 10 लाख से अधिक रोहिंग्या बसते हैं पर म्यांमार उन्हें अपना नागरिक मानने को तैयार नहीं है. न ही इस प्रजाति को कोई सरकारी ID या चुनाव में भाग लेने का अधिकार दिया गया है.
रोहिंग्या संकट का इतिहास
अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान हैं लेकिन कुछ रोहिंग्या अन्य धर्मों का भी अनुसरण करते हैं. 2017 में रोहिंग्या समुदाय के लोगों के विरुद्ध म्यांमार में हिंसा हुई थी. इस हिंसा के बाद लाखों रोहिंग्या म्यांमार को छोड़ कर कहीं और चले गए. अब भी कई रोहिंग्या म्यांमार में ही रखाइन के राहत शिविरों में दिन काट रहे हैं.
रोहिंग्या समुदाय को सदियों पहले अराकान (म्यांमार) के मुग़ल शासकों ने यहाँ बसाया था, साल 1785 में, बर्मा के बौद्ध लोगों ने देश के दक्षिणी हिस्से अराकान पर कब्ज़ा कर लिया था. उन्होंने हजारों की संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों को खदेड़ कर बाहर भगाने की कोशिश की. इसी के बाद से बौद्ध धर्म के लोगों और इन मुसलमानों के बीच हिंसा और कत्लेआम का दौर शुरू हुआ जो अब तक जारी है.
क्या रोहिंग्या मुसलमान भारत के लिए खतरनाक हैं?
एक रिपोर्ट के अनुसार रोहिंग्या बड़ी संख्या में जम्मू के बाहरी भागों में और जम्मू के साम्बा और कठुआ इलाकों में बस गए हैं. ये इलाके हमारे अंतर्राष्ट्रीय सीमा से अधिक दूर नहीं है जो भारत की सुरक्षा के लिए एक खतरा है.
अता उल्लाह जो Arkan Rohingya Salvation Army का सरगना है, उसका जन्म कराँची, पाकिस्तान में हुआ था. इसकी परवरिश मक्का में हुई. ऐसा कहा जाता है कि रोहिंग्या मुसलमान पाकिस्तान के आतंकवाद संगठनों के साथ जुड़े हुए हैं और लगातार उनसे संपर्क में रहते हैं. सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन द्वारा रोहिंग्या, जो बांग्लादेश के शरणार्थी कैंपों में रह रहे हैं, को आंतकवादी बनाया जा रहा है और पूरे देश की अशांति फैलाने के लिए इनका इस्तेमाल भी किया जा रहा है. सऊदी अरबिया का वहाबी ग्रुप इन्हें आंतकवाद की ट्रेनिंग दे रहा है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.
Topic : Emissions Gap Report 2020
संदर्भ
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme-UNEP) द्वारा उत्सर्जन अंतराल प्रतिवेदन (Emission Gap Report) जारी किया गया. प्रतिवेदन के अनुसार कोविड-19 की आर्थिक मार से उबरने के लिए अगर अभी पर्यावरण अनुकूल फैसले लिए जाते हैं तो 2030 तक के अनुमानित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse gas emissions) में 25 प्रतिशत की कमी लायी जा सकती है.
उत्सर्जन गैप (Emission Gap) क्या है?
- उत्सर्जन अंतर को प्रतिबद्धता गैप (Commitment Gap) भी कहा जा सकता है. इसके द्वारा यह आकलन किया जाता है कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये हमें क्या करना चाहिये तथा हम वास्तविकता में क्या कर रहे हैं.
- इसके द्वारा कार्बन उत्सर्जन को निर्धारित लक्ष्यों तक कम करने के लिये आवश्यक स्तर तथा वर्तमान के कार्बन उत्सर्जन स्तर का अंतर निकाला जाता है.
एमिशन गैप रिपोर्ट 2020 (Emissions Gap Report 2020) के मुख्य बिन्दु
- यूएन द्वारा प्रकाशित “एमिशन गैप रिपोर्ट 2020” से पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी. जिसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे.
- तापमान में आ रही इस वृद्धि का सीधा असर आम लोगों के जनजीवन पर भी पड़ेगा.
- बाढ़, सूखा, तूफान जैसी आपदाओं का आना आम बात हो जाएगा.
- जिसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ेगा.
- जहां एक तरफ यह आपदाएं उनके जीवन पर असर डालेंगी वहीं दूसरी तरफ यह कृषि पर भी असर करेंगी जिसका असर आर्थिक क्षेत्र पर भी पड़ेगा.
- हालांकि रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 और उसके कारण आए ठहराव के चलते उत्सर्जन में कुछ कमी आई थी पर वो कमी लम्बे समय तक नहीं रहेगी.
- रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी से आई आर्थिक मंदी के चलते 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में करीब 7 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है.
- हालांकि यह कमी पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने में कोई ज्यादा मदद नहीं करेगी.
- अनुमान है कि 2020 में उत्सर्जन में जो कमी आई है, उसके चलते 2050 तक तापमान में सिर्फ 0.01 डिग्री सेल्सियस की कमी आएगी.
- ऐसे में यदि महामारी का फायदा उठाना है तो इस आर्थिक मंदी से उबरते वक्त पर्यावरण और क्लाइमेट को भी ध्यान में रखना होगा, इस महामारी ने हमें एक ऐसा मौका भी दिया है जिसका लाभ उठाकर हम अपने उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं और आने वाले वक्त में 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.
क्या कहतें हैं आंकड़े?
- यदि रिपोर्ट में दिए आंकड़ों पर गौर करें तो लगातार तीसरे साल ग्लोबल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि दर्ज की गई है.
- जो 2019 में बढ़कर अब तक के 59.1 गीगाटन (ग्रीन हाउस गैस + भूमि उपयोग में आया परिवर्तन) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है.
- जबकि 2010 से उत्सर्जन में औसतन 1.4 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही थी, जो 2019 में बढ़कर 2.6 फीसदी पर पहुंच चुकी है.
- ऐसे कुछ संकेत मिले हैं जो कि वैश्विक GHG उत्सर्जन में धीमी वृद्धि को दर्शाते हैं.
भारत की स्थिति
- यदि भारत के उत्सर्जन को देखें तो 2019 के दौरान भारत में 3.7 गीगाटन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ था.
- इस आधार पर भारत, चीन (14 गीगाटन), अमेरिका (6.6 गीगाटन) और यूरोप और यूके (4.3 गीगाटन) के बाद चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है.
- जबकि यदि भारत में प्रति व्यक्ति द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन पर गौर करें तो यह 2.7 टन सीओ2इ (Carbon dioxide equivalent) प्रति व्यक्ति है, जोकि अंतराष्ट्रीय औसत (6.8 टन सीओ2इ प्रतिव्यक्ति) से भी काफी कम है.
- साथ ही यह चीन (9.7 टन सीओ2इ प्रतिव्यक्ति), अमेरिका (20 टन सीओ2इ प्रतिव्यक्ति), यूरोप और यूके (8.6 टन सीओ2इ प्रतिव्यक्ति), रूस (17.4 टन सीओ2इ प्रतिव्यक्ति) और जापान (10.7 टन सीओ2इ प्रतिव्यक्ति) से भी कई गुना कम है.
- यदि भारत द्वारा 2010 के बाद से किए जा रहे उत्सर्जन की बात करें यह हर वर्ष औसतन 3.3 फीसदी की दर से बढ़ रहा था. जबकि 2019 में उत्सर्जन की दर में कमी दर्ज की गई है जब इसमें हो रही वृद्धि 1.3 फीसदी दर्ज की गई थी.
- भारत अपने उत्सर्जन में कमी करने के लिए कई प्रयास कर रहा है इसी दिशा में उसने 2020 के पहले छह महीनों में कोई नया थर्मल पावर प्लांट स्थापित नहीं किया है.
- यही वजह है कि कोयले से उत्पन्न हो रही ऊर्जा में करीब 0.3 गीगावाट की कमी आई है.
- हालांकि भारत की रणनीति भविष्य में भी कोयला से ऊर्जा प्राप्त करने की है. यही वजह है कि 2020 में भारत का घरेलू कोयला उत्पादन रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच सकता है.
- भारत सौर ऊर्जा पर भी विशेष ध्यान दे रहा है, 2022 तक अपने कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा को बढ़ने और 25 गीगावॉट क्षमता विकसित करने के लिए निवेश को बढ़ाने की विस्तृत पीएम कुसुम योजना बनाई है.
- जबकि राष्ट्रीय स्तर पर रिन्यूएबल एनर्जी को 2022 तक 175 गीगावाट करने का लक्ष्य रखा गया है.
- साथ ही भारत इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर भी विशेष ध्यान दे रहा है जिससे उससे हो रहे उत्सर्जन को सीमित किया जा सके.
- साथ ही भारतीय रेलवे ने 2023 तक अपने पूरे नेटवर्क का विद्युतीकरण करने का लक्ष्य रखा है और 2030 तक रेलवे को उत्सर्जन मुक्त करने का लक्ष्य भी तय किया है.
UNEP क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो पर्यावरण से सम्बंधित गतिविधियों का समन्वय करती है. यह पर्यावरण की दृष्टि से उचित नीतियों एवं पद्धतियों का कार्यान्वयन करने में विकासशील देशों को सहायता प्रदान करती है.
- UNEP पर संयुक्त राष्ट्र विभिन्न एजेंसीयों की पर्यावरण विषयक समस्याओं को देखने का दायित्व है. जहाँ तक वैश्विक तापवृद्धि (global warming) की समस्या पर चर्चा का प्रश्न है, इसको देखने का काम जर्मनी के Bonn में स्थित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (United Nations Framework Convention on Climate Change) का है.
- UNEP जिन समस्याओं को देखता है उनमें प्रमुख हैं– वायुमंडल, समुद्री एवं धरातलीय पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरणिक प्रशासन एवं हरित अर्थव्यवस्था.
- UNEP पर्यावरण से सम्बंधित विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन एवं उन्हें धन देने का काम भी करता है.
Prelims Vishesh
The Malayan Giant Squirrel :-
- यह उत्तर-पूर्वी भारत के सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वनों में पाया जाने वाला एक वृक्षवासी व शाकाहारी कृंतक है. इसे “वन्य स्वास्थ्य संकेतक (forest health indicator) प्रजाति भी माना जाता है.
- भारतीय प्राणि सर्वेक्षण (ZSI) के अनुसार लुप्त हो रहे वनों और जलवायु परिवर्तन ने इसके अस्तित्व के उत्पन्न कर दिया है.
- वर्ष 2050 तक, इस प्रजाति के लिए केवल 3% ही उपयुक्त पर्यावास उपलब्ध होगा तथा यह विलुप्त भी हो सकती है.
- इसे IUCN की लाल सूची में प्रायः संकटग्रस्त (Near Threatened) का दर्जा मिला हुआ है.
- भूरे रंग की विशाल गिलहरी और भारत (मालाबार) विशाल गिलहरी में पाई जाने वाली अन्य विशाल गिलहरी प्रजातियाँ हैं.
Karnataka Learning Management System (KLMS) :-
- हाल ही में, इसे कर्नाटक सरकार द्वारा आरंभ किया गया है.
- इसे दो तरीकों से लागू किया गया है यथा: अधिगम प्रबंधन प्रणाली- आघारित डिजिटल लर्निंग और 2500 सूचना एवं संचार सक्षम कक्षाएं स्थापित करना, जो सरकारी प्रथम श्रेणी के महाविद्यालय, पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज को शामिल करती हैं.
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