Sansar Daily Current Affairs, 09 February 2021
GS Paper 1 Source : PIB
UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena such as earthquakes, Tsunami, Volcanic activity, cyclone etc., geographical features and their location- changes in critical geographical features.
Topic : Geothermal Energy
संदर्भ
भारत की पहली भू-तापीय विद्युत परियोजना (Geothermal Energy) परियोजना, पूर्वी लद्दाख के पूगा गाँव में स्थापित की जाएगी. वैज्ञानिकों ने पूगा की पहचान देश में भू-तापीय ऊर्जा के हॉटस्पॉट के रूप में की है. उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं के अनुसार, लद्दाख की पूगा घाटी, एक ऐसा स्थान है जहाँ 100 मेगावाट से अधिक की भू-तापीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है.
भू-तापीय विद्युत परियोजना
- पहले चरण की स्थापना और कार्यान्वयन के लिए ONGC ऊर्जा, LAHDC, लेह और लद्दाख के विद्युत विभाग के मध्य त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए है.
- पहले चरण में, ओएनजीसी-ओईसी द्वारा कार्यान्वित पायलट परियोजना, 500 मीटर की गहराई के भीतर तक खोज करेगी और यह 10 पड़ोसी गाँवों को 24 घंटे निःशुक्ल विद्युत की आपूर्ति करेगी जो बिजली आपूर्ति के लिए उत्तरी ग्रिड से नहीं जुड़े हैं.
- पायलट प्रोजेक्ट के पहले चरण में 1 मेगावाट (MW) बिजली उत्पादन क्षमता उत्पन्न की जाएगी.
- दूसरे चरण में इष्टतम संख्या में कुओं की ड्रिलिंग करके और लद्दाख में एक उच्च क्षमता वाला डेमो प्लांट स्थापित करके भू-तापीय जलाशयों के गहरे और पार्श्व अन्वेषण के लिए प्रस्तावित किया गया है.
- दूसरा चरण परियोजना का अनुसंधान और विकास चरण होगा.
- तीसरे चरण में संयुक्त उद्यमों और वाणिज्यिक उपयोग को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया जायेगा.
भू-तापीय ऊर्जा
भू-तापीय ऊर्जा का सम्बन्ध पृथ्वी के धरातल की उष्मा की मात्रा से है, जो वृहद् मात्रा में ज्वालामुखी के रूप में उपलब्ध है. तप्त जल कुण्ड या भाप अथवा गर्म झरनों जैसे उपर की तरफ प्रवाहित होने वाले तप्त भूगर्भ जल का उपयोग टर्बाइन चलाने एवं भू-तापीय शक्ति संयंत्रा में विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है.
यह जरूर पढ़ें > ऊर्जा के स्रोत
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भूतापीय जल के पीछे विज्ञान
- जैसा कि हम जानते हैं, पृथ्वी की गहराई में जाने पर तापमान बढ़ता जाता है और पृथ्वी की बाहरी कोर में मैग्मा की प्राप्ति होती है. इस मैग्मा (8001300°C) के चारो ओर पृथ्वी की विभिन्न परतें होती हैं.
- पृथ्वी की परतों में भूगार्भिक संचालनों के कारण दरार या भ्रंश उत्पन्न होने पर, पृथ्वी की मैग्मा परत से ऊपर की ओर भारी मात्रा में ऊष्मा का प्रवाह होता है.
- यह ऊष्मा भ्रंशो/दरारों के माध्यम से पृथ्वी की सतह की ओर स्थानांतरित होती है तथा भू-गर्भ में स्थित जल को गर्म करती है.
- जैसे-जैसे पानी का तापमान बढ़ता है, इसका घनत्व कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भ्रंशो से होकर तप्त पानी ऊपर उठकर सतह पर गर्म झरनों के रूप स्फुटित होता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Sedition: Section 124A of the IPC
संदर्भ
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह (आईपीसी की धारा-124A) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को निरस्त कर दिया है.
पृष्ठभूमि
उच्चतम न्यायालय में वकील आदित्य रंजन, वरुण ठाकुर और अन्य ने राजद्रोह कानून के संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी. याचिका में राजद्रोह: IPC की धारा 124A के विरुद्ध कई बिन्दुओं पर आपति उठाये गए थे.
राजद्रोह का कानून कब लाया गया?
यह कानून अंग्रेजों का बनाया कानून है. देश द्रोह का ये वो कानून है जो 151 साल पहले भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया. 151 साल यानी 1870 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया ताकि वो भारत के देशभक्तों को देशद्रोही करार देकर सजा दे सके.
रोमेश थापर वाद, केदार नाथ सिंह वाद, कन्हैया कुमार वाद आदि में राजद्रोह कानून की परिधि को सीमित और पुन: परिभाषित किया गया है तथा सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान, विधिसम्मत सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने का प्रयास तथा राज्य या जनता की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करने जैसे कृत्य को इस कानून के अंतर्गत अपराध माना जाएगा.
राजद्रोह की धारा 124ए है?
- देश के खिलाफ बोलना, लिखना या ऐसी कोई भी हरकत जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो वो राजद्रोह कहलाएगी.
- अगर कोई संगठन देश विरोधी है और उससे अंजाने में भी कोई संबंध रखता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है तो उस व्यक्ति पर भी राजद्रोह का मामला बन सकता है.
- अगर कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर मौलिक या लिखित शब्दों, किसी तरह के संकेतों या अन्य किसी भी माध्यम से ऐसा कुछ करता है.
- जो भारत सरकार के खिलाफ हो, जिससे देश के सामने एकता, अखंडता और सुरक्षा का संकट पैदा हो तो उसे तो उसे उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस को कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रोधोगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान करके समर्थ बनाया जा सके.
- NCRB नीति संबंधी मामलों और अनुसंधान हेतु अपराध, दुर्घटना, आत्महत्या और जेल संबंधी डाटा के प्रामाणिक स्रोत के लिये नोडल एजेंसी है.
- NCRB ‘भारत में अपराध’, ‘दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें और आत्महत्या’, ‘जेल सांख्यिकी’ और फिंगर प्रिंट्स पर 4 वार्षिक प्रकाशन जारी करता है.
- हाल ही में बाल यौन शौषण से संबंधित मामलों की अंडर- रिपोर्टिंग के चलते वर्ष 2017 से NCRB ने बाल यौन शौषण से संबंधित आँकड़ों को भी एकत्रित करना प्रारंभ किया है.
- ये प्रकाशन आपराधिक आँकड़ों के संदभ में न केवल पुलिस अधिकारियों बल्कि अपराध विज्ञानी, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और नीति निर्माताओं के लिये भी सहायक होते है.
- NCRB को 2016 में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा ‘डिजिटल इंडिया अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था.
- भारत में पुलिस बलों का कम्प्यूटरीकरण 1971 में प्रारंभ हुआ. NCRB ने CCIS (Crime and Criminals Information System) वर्ष 1995 में, CIPA (Common Integrated Police Application) 2004 में और अंतिम रूप में CCTNS वर्ष 2009 में प्रारंभ किया.
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राजद्रोह के आरोपी भारत के नायक
- बाल गंगाधर तिलक
- भगत सिंह
- लाला लाजपत राय
- अरविंदो घोष
- महात्मा गांधी (साल 1922 में यंग इंडिया में राजनीतिक रूप से ‘संवेदनशील’ 3 आर्टिकल लिखने के लिए राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया.)
इसकी प्रासंगिकता
अंग्रेजों की इस नीति का विरोध पूरे भारत ने किया था. क्योंकि तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने उस दौर में राजद्रोह के इस कानून को आपत्तिजनक और अप्रिय कानून बताया था. लेकिन वो आजादी के पहले की स्थिति थी और पूरा देश स्वतंत्रता कि लड़ाई लड़ रहा था. उस परिस्थितियों की तुलना वर्तमान के दौर से नहीं की जा सकती है.
स्वतंत्रता के सात दशक बाद इस कानून को लेकर अकसर सियासत भी खूब होती रही है. कांग्रेस ने तो बकायदा अपने मेनिफेस्टो में लिख दिया था कि… IPC की धारा 124ए जो राजद्रोह अपराध को परिभाषित करती है. जिसका दुरुपयोग हुआ, उसे खत्म किया जाएगा.
इन देशों ने राजद्रोह का कानून खत्म किया
- ब्रिटेन ने 2009 में राजद्रोह का कानून खत्म किया और कहा कि दुनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में है.
- आस्ट्रेलिया ने 2010 में
- स्काटलैंड ने भी 2010 में
- दक्षिण कोरिया ने 1988 में
- इंडोनेशिया ने 2007 में राजद्रोह के कानून को खत्म कर दिया.
भारत में राजद्रोह के कानून का प्रयोग
- 2014 से 2016 के दौरान राजद्रोह के कुल 112 मामले दर्ज हुए.
- करीब 179 लोगों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया.
- राजद्रोह के आरोप के 80% मामलों में चार्जशीट भी दाखिल नहीं हो पाई.
- सिर्फ 2 लोगों को ही सजा मिल पाई.
स्वतंत्र भारत के चर्चित राजद्रोह केस
- 26 मई 1953 को फॉरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य केदारनाथ सिंह ने बिहार के बेगूसराय में एक भाषण दिया था. राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ दिए गए उनके इस भाषण के लिए उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया.
- पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या वाले दिन (31 अक्टूबर 1984) को चंडीगढ़ में बलवंत सिंह नाम के एक शख्स ने अपने साथी के साथ मिलकर ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए थे.
- साल 2012 में कानपुर के कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को संविधान का मजाक उड़ाने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस मामले में त्रिवेदी के खिलाफ राजद्रोह सहित और भी आरोप लगाए गए. त्रिवेदी के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था.
- गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ भी राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. जेएनयू में भी छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उनके साथी उमर खालिद पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था.
- दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ साल 2015 में उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने राजद्रोह के आरोप लगाए थे. इन आरोपों का आधार नेशनल ज्यूडिशियल कमिशन एक्ट (NJAC) को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना बताया गया.
मेरी राय – मेंस के लिए
शासन चाहे किसी भी प्रवृत्ति का हो, हर प्रकार की व्यवस्था में शासन के खिलाफ आवाज़ उठाना दंडनीय अपराध माना जाता रहा है. भारत में भी प्राचीन और मध्यकाल में यह किसी-न-किसी रूप में मौजूद था. आधुनिक काल में, जब 1860 में भारतीय दंड संहिता बनाई गई तो उसके बाद राजद्रोह संबंधी प्रावधानों को धारा 124 (A) के अंतर्गत स्थान दिया गया. बहरहाल, वह दौर औपनिवेशिक शासन का था और उस समय ब्रिटिश भारत सरकार का विरोध करना देशभक्ति का पर्याय माना जाता था.
दरअसल, हमें यह समझना होगा कि न तो सरकार और राज्य एक हैं, और न ही सरकार तथा देश. सरकारें आती-जाती रहती हैं, जबकि राज्य बना रहता है. राज्य संविधान, कानून और सेना से चलता है, जबकि राष्ट्र अथवा देश एक भावना है, जिसके मूल में राष्ट्रीयता का भाव होता है. इसलिये कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि राजद्रोह राष्ट्रभक्ति के लिये आवश्यक हो जाए. ऐसी परिस्थिति में सरकार की आलोचना नागरिकों का पुनीत कर्त्तव्य होता है. अतः सत्तापक्ष को धारा 124 (A) दुरुपयोग नहीं करना चाहिये.
सच कहें तो देशद्रोह शब्द एक सूक्ष्म अर्थों वाला शब्द है, जिससे संबंधित कानूनों का सावधानी पूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिये. यह एक तोप के समान है, जिसका प्रयोग राष्ट्रहित में किया जाना चाहिये न कि चूहे मारने के लिये, अन्यथा हम अपना ही घर तोड़ बैठेंगे.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Centre’s new labour codes to allow 4-day work per week
संदर्भ
केंद्र सरकार ने नई श्रम संहिताएँ के तहत संगठनों को अपने कर्मचारियों को सप्ताह में चार दिन काम करने की अनुमति देने का विकल्प पर विचार कर रहा है.
नई श्रम संहिताओं से संबंधित नवीनतम जानकारी
केंद्रीय श्रम मंत्रालय चार श्रम संहिताओं, पारिश्रमिक संहिता (wage code), औद्योगिक संबंध संहिता (labour code on industrial relations), उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता (labour code on occupational safety, health and working conditions) और सामाजिक सुरक्षा संहिता (labour code on social security and welfare) के तहत नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है.
- श्रम सुधार के क्रम में कार्य की प्रकृति के अनुरूप लचीलापन प्रदान करने और देश में बदलती कार्य संस्कृति के साथ तालमेल बनाने के लिए सरकार इन नए प्रावधानों पर विचार कर रही है.
- नए प्रावधान में प्रति सप्ताह 48 घंटे की एक कार्य सीमा शामिल होगी, जिसमें संगठनों के पास तीन विकल्प होंगे-
- 12 घंटे प्रति दिन के हिसाब से सप्ताह में चार दिन
- लगभग 10 घंटे प्रति दिन के हिसाब से सप्ताह में पांच दिन
- आठ घंटे प्रति दिन के हिसाब से सप्ताह में छह दिन
- चार दिनों के लिए काम करने वालों को अपने नियोक्ताओं द्वारा तीन दिन की छूट दी जाएगी, जबकि पांच दिनों के लिए काम करने वालों को दो दिन की छुट्टी दी जाएगी.
- नियोक्ताओं या कर्मचारियों को इन नए प्रावधानो का पालन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.
- इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के पंजीकरण के लिए इस साल जून तक एक ऑनलाइन पोर्टल को चालू करने की दिशा में भी काम किया जा रहा है, जिसमें गिग एवं प्लेटफॉर्म श्रमिक तथा प्रवासी श्रमिक शामिल हैं.
पारिश्रमिक संहिता विधेयक, 2019 की मुख्य विशेषताएँ
- वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिए क्षेत्र और वेतन सीमा पर ध्यान दिए बिना सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक बनाती है.
- मजदूरी की परिभाषा में वेतन, भत्ते अथवा अन्य मौद्रिक लाभ आएँगे. इसमें बोनस या यात्रा भत्ता आदि शामिल नहीं होंगे.
- मजदूरी का भुगतान इन माध्यमों से होगा – सिक्के, नोट, चेक, बैंक खाते में डालना या इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से भुगतान.
- मजदूरी देने के समय का निर्धारण नियोक्ता दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक रूप से करेगा.
- केन्द्रीय और राज्य स्तर पर परामर्शी बोर्ड बनाए जाएँगे. केन्द्रीय परामर्श बोर्ड में ये सदस्य होंगे – नियोक्ता, श्रमिक (उतने ही जितने नियोक्ता), स्वतंत्र व्यक्ति और राज्य सरकारों के पाँच प्रतिनिधि.
- राज्य परामर्शी बोर्ड में ये सदस्य होंगे – नियोक्ता, श्रमिक एवं स्वतंत्र व्यक्ति.
- केन्द्रीय और राज्य दोनों परामर्शी बोर्डों में महिलाओं की संख्या एक तिहाई होगी.
- ये सभी बोर्ड इन विषयों में अपना परामर्श देंगे – न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण करना, महिलाओं को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना.
- संहिता के अनुसार, कुछ आधारों पर मजदूरी में कटौती हो सकती है, जैसे – अर्थदंड, काम से अनुपस्थिति, नियोक्ता द्वारा दिया गया आवास, श्रमिक को दिए गये अग्रिम की वसूली आदि. ये कटौतियाँ श्रमिक की पूर्ण मजदूरी के 50% से अधिक नहीं होनी चाहिएँ.
- समान काम और समान प्रकृति के काम में मजदूरी और नियुक्ति के मामलों में यह संहिता लैंगिक भेदभाव को निषिद्ध करती है.
- आज की तिथि में न्यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोजगारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान हैं. इस विधेयक से हर कामगार के लिए भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्यूनतम मजदूरी के विधायी संरक्षण को प्रोत्साहन मिलेगा.
- इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा. न्यूनतम जीवन यापन की स्थितियों के आधार पर गणना किये जाने वाले वैधानिक स्तर वेतन की प्रारम्भ से देश में गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर को प्रोत्साहन मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे.
- इस विधेयक में राज्यों द्वारा कामगारों को डिजिटल मोड से वेतन के भुगतान को अधिसूचित करने की परिकल्पना की गई है.
- विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएँ हैं, जिन्हें लागू करने में कठिनाइयों के अतिरिक्त मुकदमेबाजी को भी प्रोत्साहन मिलता है. इस परिभाषा को सरलीकृत किया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और एक नियोक्ता के लिए इसका अनुपालन सरलता से करने की उम्मीद है. इससे प्रतिष्ठान भी लाभान्वित होंगे, क्योंकि रजिस्टरों की संख्या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे जबकि उनका रख-रखाव भी किया जा सकेगा. यह भी कल्पना की गई है कि कानूनों के माध्यम से एक से अधिक नमूना निर्धारित नहीं किया जाएगा.
- वर्तमान में अधिकांश राज्यों में न्यूनतम वेतन को लेकर विविधता है. वेतन पर कोड के जरिये न्यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है. रोजगार के विभिन्न प्रकारों को अलग करके न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड बनाया गया है.न्यूनतम वेतन निर्धारण मुख्य रूप से स्थान और कौशल पर आधारित होगा. इससे देश में वर्तमान 2000 न्यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्यूनतम वेतन की दरों की संख्या कम होगी.
- निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किए गए हैं. इनमें वेब आधारित रेंडम कम्प्यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्त निरीक्षण, निरीक्षण के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं. इन सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी.
- ऐसे अनेक उदाहरण थे कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका. अब सीमा अवधि को बढ़ाकर तीन वर्ष किया गया है और न्यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है. फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है.
- इसलिए यह कहा जा सकता है कि न्यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान मिलने के लिए यह एक ऐतिहासिक कदम है. यह कदम जीवन सरल बनाने और व्यापार को अधिक सरल बनाने के लिए भी वेतन संहिता के माध्यम से उठाया गया है.
न्यूनतम पारिश्रमिक के निर्धारण की विधि
- प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, न्यूनतम पारिश्रमिक कौशल और भौगोलिक क्षेत्र जैसे कारकों से जोड़ा जाएगा. अभी क्या होता है कि न्यूनतम पारिश्रमिक का निर्धारण काम की श्रेणियों के आधार पर होता है, जैसे – कुशल काम, अकुशल काम, अर्ध-कुशल काम और उच्च कुशलता वाले काम. इसके अतिरिक्त अभी भौगोलिक क्षेत्र के साथ-साथ काम की प्रकृति का भी ध्यान रखा जाता है जैसे खनन आदि. न्यूनतम पारिश्रमिक केन्द्रीय सरकार के अंतर्गत 45 अनुसूचित आजीविकाओं तथा राज्यों के अंतर्गत 1,709 अनूसूचित आजीविकाओं पर लागू होता है.
- जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, अन्य सभी कारकों को हटाते हुए मात्रकौशल और भौगोलिक क्षेत्र को ही न्यूनतम पारिश्रमिक के निर्धारण का आधार रखा गया है.
निर्धारण की नई विधि का लाभ
विधेयक में प्रस्तावित न्यूनतम पारिश्रमिक के निर्धारण की विधि से आशा की जाती है की पूरे देश में अभी जो 2,500 न्यूनतम पारिश्रमिक दरें चल रही हैं, उनकी संख्या घटकर 300 रह जायेगी.
सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण पर श्रम संहिता (LABOUR CODE ON SOCIAL SECURITY AND WELFARE)
- कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923, मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 या (प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961) आदि जैसे 9 श्रम अधिनियमों को समाविष्ट करती है.
- असंगठित क्षेत्र के कामगारों, गिग (अनुबंध आधारित) कामगारों और प्लेटफॉर्म कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा कोष की स्थापना की जाएगी.
- उपर्युक्त कामगारों के लिए ही राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का गठन किया जाएगा. कुछ पदों की परिभाषा में विस्तार किया गया है जैसे कि ठेकेदारों द्वारा नियोजित कर्मचारियों को शामिल करने हेतु “कर्मचारियों की परिभाषा को विस्तारित किया गया है, अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार की परिमाषा में वर्धन हेतु दूसरे राज्य के स्व-नियोजित कामगारों को समाविष्ट किया गया है आदि.
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस निर्मित किया जाएगा, जो असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा की लक्षित आपूर्ति में सहायता प्रदान करेगा.
- विधेयक में नए खंड अंतर्विष्ट किए गए हैं, जैसे भविष्य निधि (PF) के लिए नियोक्ता, कर्मचारी के योगदान में कमी लाना आदि, जिसे एक महामारी के दौरान लागू किया जा सकता है.
उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता (LABOUR CODE ON OCCUPATIONAL SAFETY, HEALTH AND WORKING CONDITIONS)
- कारखाना अधिनियम 1948, बागान श्रम अधिनियम 1951, खान अधिनियम 1952 आदि जैसे 13 श्रम कानूनों को समाविष्ट करती है.
- संहिता, केंद्र और राज्य सरकारों को संहिता के अंतर्गत निर्मित किए जाने वाले मानकों, नियमों एवं विनियमों के संबंध में परामर्श प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर व्यावसायिक सुरक्षा बोर्ड स्थापित करने का उपबंध करती है.
- विभिन्न प्रकार के प्रतिष्ठानों और कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी सुविधाएं, कार्य दशाएं और कार्य के घंटे केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किए जाएंगे.
- महिलाएं सभी प्रकार के कार्यों के लिए सभी प्रतिष्ठानों में नियोजित होने की हकदार होंगी.
- नियोक्ता द्वारा उन कर्मचारियों के लिए वर्ष में एक बार निःशुल्क स्वास्थ्य जांच आयोजित की जाएगी, जो एक निश्चित आयु से अधिक आयु के हैं.
औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता 2020 (LABOUR CODE ON INDUSTRIAL RELATIONS)
- यह वस्तुतः 3 श्रम कानूनों, जैसे – व्यापार संघ अधिनियम 1926, औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम 1946 तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 को समामेलित करती है.
- कम से कम 300 श्रमिकों (पहले 100) वाले एक प्रतिष्ठान को बंद करने या छंटनी करने से पूर्व सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता होगी.
- यदि किसी प्रतिष्ठान में कार्यरत श्रमिकों के एक से अधिक पंजीकृत ट्रेड यूनियन हैं, तो 51% से अधिक श्रमिक-सदस्यों वाले ट्रेड यूनियन को एकमात्र वैध यूनियन के रूप में मान्यता दी जाएगी.
- किसी कर्मचारी की बर्खास्तगी, छंटनी या अन्यथा किसी कर्मचारी की सेवाओं को समाप्त करने के संबंध में कोई विवाद औद्योगिक विवाद की श्रेणी में आएगा.
- श्रमिक, विवाद के न्यायनिर्णयन अथवा निपटान के लिए औद्योगिक अधिकरण में आवेदन कर सकता है.
- नौकरी से निकाले गए कर्मियों के पुन: कौशल विकास हेतु एक रि-स्किलिंग फंड का प्रावधान किया गया है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : HC rejects SEC order restraining Minister
संदर्भ
आंध्र प्रदेश के राज्य निर्वाचन आयुक्त (State Election Commissioner- SEC) ने पंचायत राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री पेडिरेड्डी रामचंद्र रेड्डी को ग्राम पंचायत चुनाव की प्रक्रिया को भंग करने अथवा प्रभावित करने से रोकने के लिए 21 फरवरी तक उनके निवास पर नजरबन्द करने का आदेश दिया था.
- हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर दिया है.
- मंत्री ने न्यायालय में तर्क दिया है कि उन पर संदेह कार्रवाई करना राज्य निर्वाचन आयुक्त (SEC) के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है.
इस संबंध में राज्य निर्वाचन आयुक्त की शक्तियाँ
राज्य निर्वाचन आयुक्त (SEC) के अनुसार, यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 243K के तहत प्रद्दत शक्तियों को अंतर्गत जारी किया गया है, और इसके तहत राज्य के डीजीपी को, ‘मंत्री’ के लिए स्थानीय / ग्राम पंचायत चुनावों के पूरा होने तक उनके आवासीय परिसर में परिरुद्ध करने का निर्देश दिया गया था.
राज्य निर्वाचन आयोग
- भारत निर्वाचन आयोग के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति आदि चुनाव से सम्बंधित सत्ता होती है जबकि ग्राम पंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद् और तहसील एवं जिला परिषद् के चुनाव की सत्ता सम्बंधित राज्य निर्वाचन आयोग के पास होती है.
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-Kके अधीन राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) का गठन जुलाई 1994 में किया गया.
- 73वें संविधान संशोधन एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अधीन प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं एवं शहरी निकायों के चुनाव निष्पक्ष व समय पर करवाने के लिए अलग से राज्य चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है.
- राज्य की पंचायतों के समस्त निर्वाचनों एवं नगरपालिकाओं के समस्त निर्वाचनों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण भारत सरकार के संविधान अनुच्छेद243-k और अनुच्छेद 246-ZA के द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग में निहित है.
- इसका प्रमुखराज्य निर्वाचन आयुक्त होता है.
- इसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है तथा उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करने पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकता है.
राज्य निर्वाचन आयुक्त
- राज्य निर्वाचन आयुक्त राज्य निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है.
- राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल = 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो).
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह की रीति व आधारों पर राष्ट्रपति द्वारा संसद में महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त को समय से पहले अपने पद से हटाया जा सकता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Issues related to direct and indirect farm subsidies and minimum support prices.
Topic : Efforts will be made to provide institutional credit to all farmers
संदर्भ
सरकार ने घोषणा की है कि सभी किसानों के लिए संस्थागत ऋण उपलब्ध कराने हेतु प्रयास किए जायेंगें. सरकार ने वित्त वर्ष-22 में कृषि ऋण लक्ष्य को बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया है. इसका कारण यह है कि पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन क्षेत्र में वृद्धिशील ऋण प्रवाह को बनाए रखने पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके.
मुख्य बिंदु
- विदित हो कि संस्थागत ऋण की भारत के कृषि विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका के निर्वहन हेतु कल्पना की गई है. बड़ी संख्या में औपचारिक संस्थागत एजेंसियां {जैसे- सहकारी संस्थाएं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCB), स्व-सहायता समूह (SHG) आदि] ऋण प्रदान करने की दिशा में कार्यरत हैं.
- वहनीय (कम दर पर उपलब्ध) होने के चलते संस्थागत ऋण, उत्पादन लागत पर प्रत्यक्ष प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं.
- वर्ष 2013-14 से लेकर वर्ष 2019-20 के दौरान कृषि ऋण में लगभग दोगुनी दे हुई है, जो बढ़कर 13.92 लाख करोड़ रुपये हो गई है.
कृषि ऋण से जुड़े मुद्दे
- गैर-संस्थागत ऋण की भागेदारी अभी भी लगभग 30% बनी हुई है.
- संस्थागत ऋण में अन्य एजेंसियों की भागेदारी बहुत ही अल्प है, क्योंकि इस के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर निर्भरता ज्यादा रही है.
- क्षेत्रीय असमानता भी एक प्रमुख मुद्दा रहा है.
संस्थागत ऋण को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम
- ब्याज सहायता योजना, जिसके जरिये किसानों को 4% की प्रभावी ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक के अल्पकालिक फसली ऋण प्रतिवर्ष दिए जाते हैं.
- किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से फसल बीज, उर्वरक, डीजल और अन्य आगतों के क्रय हेतु किसान 4% ब्याज पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं.
- प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार (PSL) के लिए ऋण सम्बन्धी प्रावधानों में भी सुधार किया गया है.
Prelims Vishesh
Democracy Index :-
- लोकतंत्र सूचकांक 167 स्वतंत्र देशों और दो भूक्षेत्रों में लोकतंत्र की स्थिति का संक्षिप्त विवरण दिया जाता है.
- यह सूचकांक इन पाँच श्रेणियों पर आधारित है – चुनाव की प्रक्रिया और बहुलतावाद; नागरिक स्वतंत्रताएँ; सरकार का काम; राजनीतिक भागीदारी; तथा राजनीतिक संस्कृति.
- इन पाँच श्रेणियों के अन्दर भी 60 संकेतक होते हैं. सभी पर विचार कर के प्रत्येक देश को इन चार वर्गों में बाँटा जाता है – पूर्ण लोकतंत्र; त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र; संकर शासनतंत्र; तथा निरंकुश शासनतंत्र.
- वर्ष 2020 में इस सूचकांक में भारत दो स्थान की गिरावट के साथ 53वें स्थान पर पहुँच गया था.
- नॉर्वे को सूचकांक में शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है.
- इस सूचकांक को Economist Intelligence Unit – EIU द्वारा निर्गत किया जाता है.
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