Sansar Daily Current Affairs, 09 September 2020
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms,
Literature and Architecture from ancient to modern times.
Topic : ASI
संदर्भ
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India : ASI) ने उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पुरातात्विक स्थल और अवशेषों को राष्ट्रीय महत्त्व का दर्जा प्रदान किया है.
मुख्य तथ्य
- ऐसे क्षेत्र जहाँ ऐतिहासिक या पुरातात्विक महत्त्व के भग्नावशेष या वस्तुगत अवशेष पाए जाते हों अथवा उनकी उपलब्धता के साक्ष्य विद्यमान हों (जो कम से कम एक सौ वर्षों से अस्तित्व में हों) को पुरातात्विक स्थल अथवा अवशेषों के रूप में संदर्भित किया जाता है.
- राष्ट्रीय महत्त्व का दर्जा इन स्थलों को विश्व पर्यटन मानचित्र पर महत्त्व प्रदान करता है और ASI द्वारा प्राथमिकता के आधार पर इन स्थलों के संरक्षण, परिरक्षण एवं रख-रखाव हेतु नियमित निधि (regular fund) की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाता है.
- बागपत के सादिकपुर सिनौली स्थल से प्राप्त पुरावस्तुओं में तीन रथ, पाएदार ताबूत (legged coffins), ढाल, तलवार और शिरस्त्राण (सिर पर धारण किए जाने वाला हेलमेट सदृश्य कवच) सम्मिलित हैं, जो करीब 2,000 ईस्वी पूर्व में अस्तित्वमान रहे एक योद्धा वर्ग की ओर संकेत करते हैं.
- अश्वों से संचालित होने वाले रथ की खोज, आर्यों के आक्रमण के सिद्धांत का समर्थन करने वाले इतिहासकारों पर प्रश्नचिन्ह आरोपित करती है. इस सिद्धांत के अंतर्गत यह दावा किया गया है कि लगभग 1500 से 1000 ईस्वी पूर्व में आक्रमणकारी आर्यों द्वारा अश्वों को लाया गया था.
- अश्वों द्वारा खींचे जाने वाले रथों ने उत्तर भारतीय मैदानी क्षेत्रों को विजित करने में आर्यों को द्रविड़ों को पराजित करने में अत्यधिक सामर्थ्य प्रदान किया था. अन्य समर्थकारी उपलब्ध साक्ष्य हैं- सुरकोटदा (एक विकसित हड़प्पा पुरास्थल) में पाई गई पालतू अश्व की अस्थियाँ.
ASI क्या है?
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के संस्कृति विभाग के अधीन एक सरकारी एजेंसी है, जो कि पुरातत्व अध्ययन और सांस्कृतिक स्मारकों के अनुरक्षण के लिये उत्तरदायी होती है.
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों का रख-रखाव करना है.
- इसके अतिरिक्त, प्राचीन स्मारक तथा पुरातात्त्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार यह देश में सभी पुरातात्त्विक गतिविधियों को विनियमित करता है.
- यह पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Issues relating to development and management of Social Sector/Services relating to Health, Education, Human Resources, issues relating to poverty and hunger.
Topic : Multidimensional Poverty Index Coordination Committee (MPICC)
संदर्भ
नीति आयोग ने एक बहुआयामी गरीबी सूचकांक समन्वय समिति (Multidimensional Poverty Index Coordination Committee – MPICC) का गठन किया है.
संबन्धित जानकारी
- नीति आयोग को नोडल एजेंसी के रूप में वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के निगरानी तंत्र के आधार पर सुधारों को लागू करने का दायित्व सौंपा गया है.
- इसके लिए नीति आयोग ने एक बहुआयामी गरीबी सूचकांक समन्वय समिति (Multidimensional Poverty Index Coordination Committee – MPICC) का गठन किया है.
- श्रीमती संयुक्ता समद्दर को इस बहुआयामी गरीबी सूचकांक समन्वय समिति (MPICC) की अध्यक्षता सौंपी गयी है.
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक
- वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक, 107 विकासशील देशों में बहुआयामी गरीबी के आंकलन का एक अंतर्राष्ट्रीय उपाय है.
- इसे सर्वप्रथम 2010 में ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (OPHI) और UNDP की मानव विकास प्रतिवेदन के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा विकसित किया गया था.
- वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक को हर वर्ष जुलाई में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास पर उच्च-स्तरीय राजनीतिक फोरम में निर्गत किया जाता है.
- वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक की गणना हेतु परिवारों का दस मानदंडों पर सर्वेक्षण किया जाता है, ये मानदंड है-
- पोषण,
- बाल मृत्यु दर,
- स्कूली शिक्षा के वर्ष,
- स्कूल में उपस्थिति,
- खाना पकाने के ईंधन,
- स्वच्छता,
- पेयजल,
- बिजली,
- आवास
- घरेलू परिसंपत्ति
- इसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कराये जाने वाले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) और अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) के आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है.
- वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक-2020 के अनुसार, 107 देशों में भारत 62 वें स्थान पर है. इस सूचकांक में भारत के पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका (25 वाँ), भूटान (68 वाँ), नेपाल (65 वाँ), बांग्लादेश (58 वाँ), चीन (30 वाँ), म्यांमार (69 वाँ) और पाकिस्तान (73 वाँ) भी स्थान पर हैं.
मेरी राय – मेंस के लिए
नीति आयोग का राष्ट्रीय MPI निगरानी फ्रेमवर्क ‘सतत् विकास लक्ष्य’- 1, जो गरीबी को उसके सभी रूपों में हर जगह से खत्म करने पर बल देता है, के अनुरूप है. विश्व बैंक की गरीबी रेखा की अवधारणा की तुलना मे MPI, अधिक व्यापक दृष्टिकोण है, जो ‘सामाजिक अवसंरचना’ पर व्यय बढ़ाने की भारत की आवश्यकता के अनुकूल है. MPI का राष्ट्रीय मापन प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को प्रोत्साहन देगा. ‘बहुआयामी गरीबी’ के निर्धारण में आय ही एक मात्र संकेतक नहीं होता बल्कि अन्य सूचकों जैसे- खराब स्वास्थ्य, काम की खराब गुणवत्ता आदि पर भी ध्यान दिया जाता है. अत: MPI की बेहतर निगरानी से राष्ट्रीय विकसात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.
Topic : Priority Sector Lending
संदर्भ
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा “प्राथमिक प्रक्षेत्र ऋण उधार” (Priority Sector Lending: PSL) से संबंधित संशोधित दिशा-निर्देश निर्गत किए गए.
मुख्य तथ्य
- संशोधित दिशा-निर्देशों का उद्देश्य उन्हें उभरती राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करना और समावेशी विकास पर गहन ध्यान केंद्रित करना है.
- PSL के अंतर्गत, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया वाणिज्यिक बैंकों को उनकी निधि का एक निश्चित हिस्सा निर्दिष्ट क्षेत्रों यथा- कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs), निर्यात ऋण, सामाजिक अवसंरचना आदि को उधार देने हेतु अधिदेशित करता है.
संशोधित PSL दिशा-निर्देशों की विशेषताएं
- क्षेत्रीय असमानताओं के निवारणार्थ, “अभिनिर्धारित जिलों” में वृद्धिशील PSL को उच्च वरीयता दी गई है, जहाँ प्राथमिक क्षेत्रों की ओर ऋण प्रवाह तुलनात्मक रूप से कम है (प्रति व्यक्ति PSL 6,000 रुपये से कम है).
- नई श्रेणियों में इन्हें सम्मिलित किया गया है – स्टार्ट-अप को 50 करोड़ रुपये तक का ऋण, ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों के सोलराइजेशन हेतु सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के लिए किसानों को ऋण; कंप्रेस्ड बायो गैस संयंत्र स्थापित करने के लिए ऋण आदि.
- स्वास्थ्य अवसंरचना (आयुष्मान भारत के अंतर्गत अवसंरचना सहित) के लिए ऋण सीमा (Credit limit) को टियर ॥ से टियर VI केंद्रों हेतु दोगुना करके 10 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
- लघु और सीमांत किसानों तथा कमजोर वर्गों के लिए ऋण को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जा रहा है.
- किसान उत्पादक संगठनों / किसान उत्पादक कंपनियों के लिए उच्च ऋण सीमा निर्दिष्ट की गई है.
- नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ऋण सीमा को दोगुना कर 30 करोड़ रुपये कर दिया गया है. प्रत्येक परिवार के लिए, प्रति उधारकर्ता सीमा 10 लाख रुपये होगी.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Major crops cropping patterns in various parts of the country, different types of irrigation and irrigation systems storage, transport and marketing of agricultural produce and issues and related constraints; e-technology in the aid of farmers.
Topic : ZERO BUDGET FARMING
संदर्भ
हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (Zero-budget natural farming : ZBNF) से आंध्र प्रदेश के किसानों को अत्यधिक लाभ हुआ है.
अध्ययन के मुख्य तथ्य
- एक अध्ययन के दौरान धान, मूंगफली आदि जैसी फसलों में ZBNF और गैर-ZBNF तकनीकों की तुलना करके निष्कर्षों को प्राप्त किया गया था.
- तुलना करने के लिए जल, विद्युत् ऊर्जा की खपत, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, उपज और शुद्ध राजस्व इन 6 मापदंडों को आधार बनाया गया था.
- ZBNF से धान की कृषि के दौरान प्रति एकड़ 1,400 से 3,500 क्यूबिक मीटर जल की बचत हुई है. यदि भारत के संपूर्ण धान के कृषि क्षेत्र को शून्य बजट खेती के तहत लाया जाता है, तो इससे संभवतः 150-400 बिलियन क्यूबिक मीटर तक जल की बचत हो सकती है.
- भौमजल पर निर्भर खेतों की विद्युत् की खपत प्रति एकड़ 1,500–3,900 यूनिट कम हुई है और इससे 6,000-16,000 रुपये तक की बचत भी हुई है.
- ZBNF ने रोगाणुओं की गतिविधियों को अवरुद्ध किया है और मीथेन उत्सर्जन में 88% तक की कटौती की है.
- अध्ययन से भी यह ज्ञात हुआ है कि इस तकनीक का फसल की उपज पर कोई विशेष प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ है.
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि क्या है?
जैसा कि इसका नाम बताता है कि शून्य बजट प्राकृतिक कृषि वैसी खेती है जिसमें फसल को उगाने और कटाई में आने वाला खर्च शून्य होता है. ऐसा इसलिए होता है कि इस कृषि में किसान को कोई खाद अथवा कीटनाशक खरीदना नहीं पड़ता है. वह रसायनिक खाद के बदले जैविक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग करता है. इसे मूल रूप से महाराष्ट्र के एक कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर द्वारा प्रचारित किया गया था.
इसमें जो खाद का प्रयोग होता है वह केंचुओं, गोबर, गोमूत्र, सड़े हुए पौधों और मलमूत्र और ऐसे अन्य जैविक खाद डालते हैं. इससे न केवल किसान का खर्च बचता है अपितु मिट्टी भी खराब होने से बच जाती है.
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के निम्नलिखित चार स्तम्भ है-
जीवामृतः यह एक तरल जैविक खाद है जिससे मृदा में सूक्ष्म जीवों की सख्ंया में वृद्धि होने के साथ-साथ मृदा की उर्वराशक्ति में सुधार होता है. खेत में जीवामृत का निरन्तर प्रयोग करने से मृदा में कार्बन व नाइट्रोजन के अनुपात में सुधार होता है जिससे फसलों बढवार अच्छी रहती है तथा पैदावार में बढोत्तरी होती है.
बीजामृतः यह बीज, रोपाई या किसी भी रोपण सामग्री के लिए उपयोग किया जाने वाला उपचार है. बीजामृत कवक के साथ-साथ मिट्टी जनित और बीज जनित बीमारियों से बचाने में कारगर है जो आमतौर पर मानसून की अवधि के बाद पौधों को प्रभावित करते हैं. यह देसी गाय के गोबर, एक शक्तिशाली प्राकृतिक कवकनाशी, और गोमूत्र, एक मजबूत एंटी-बैक्टीरियल तरल, चूना, मिट्टी के समान सामग्री से बना है.
वर्मीवाश: वर्मीवाश में पौधों के लिए आवष्यक पोषक तत्व प्राकृतिक रूप में मौजूद होते हैं. इसके प्रयोग से मृदा की उर्वराषक्ति एवं संरचना में सुधार होता है। इस कारण मृदा का पी.एच. मान भी सामान्य रहता है.मृदा में सूक्ष्म जीवों की संख्या में बढोत्तरी हो जाती है.
हर्बल स्प्रे: हर्बल स्प्रे का प्रयोग फसलों पर करने से पौधों का चूसने-चबाने वाले कीटों के अलावा विभिन्न रोग व बीमारियों से बचाव होता है. इस कारण हमें अच्छी पैदावार प्राप्त होती है.
भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के लिए क्या कर रही है?
- भारत सरकार 2015-16 से परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)और राष्ट्रीय कृषि विकास योजनाओं (RKVY) जैसी समर्पित योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को देश में बढ़ावा देती आई है.
- 2018 में PKVY से सम्बंधित मार्गनिर्देशों में सुधार करते हुए कई प्रकार की प्राकृतिक कृषि के मॉडल बताये गए हैं, जैसे – प्राकृतिक कृषि, ऋषि कृषि, वैदिक कृषि, गो कृषि, होम कृषि, शून्य बजट प्राकृतिक कृषि इत्यादि. राज्यों को कहा गया है कि वे इनमें से किसी भी कृषि को किसान की पसंद के अनुसार अपना सकती हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian economy – issues
Topic : Fiscal Deficit
संदर्भ
वित्त आयोग के सलाहकार पैनल के कई सदस्यों ने COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक अनिश्चितताओं में वृद्धि को देखते हुए केंद्र और राज्यों के राजकोषीय घाटे का एक सीधा लक्ष्य रखने के बजाय एक सीमा (Range) निर्धारण पर विचार करने का सुझाव दिया है.
प्रमुख बिंदु
- यह सुझाव राजकोषीय घाटे और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में ऋण के अनुपात के लक्ष्य का एक दायरा निर्धारित करने के लिये दिया गया है.
- उदाहरण के लिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3 प्रतिशत न होकर 3.5 से 5 प्रतिशत के बीच हो सकता है. यह मौद्रिक नीति समिति द्वारा निर्धारित खुदरा मुद्रास्फीति (4%+-2) के समान होगा.
- राजकोषीय घाटे को सीधे लक्ष्य की बजाय एक दायरे में रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM) कानून में संशोधन करना होगा.
- वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में सरकार द्वारा FRBM कानून में प्रदान की गई 0.5 प्रतिशत की छूट के लिये पिछले वर्ष और चालू वित्त वर्ष के लिये राहत का प्रावधान किया गया था. इससे राजकोषीय घाटे का लक्ष्य इन दो वर्षों में GDP का क्रमशः 3.8 प्रतिशत एवं 3.5 प्रतिशत रखा गया.
- 15वाँ वित्त आयोग वर्ष 2021-22 से लेकर 2025-26 के लिये अपनी रिपोर्ट 30 अक्टूबर, 2020 तक सौपेंगा.
क्या है राजकोषीय घाटा?
- सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी. कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है. राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है.
- पूंजीगत व्यय लंबे समय तक इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों जैसे-फैक्टरी, इमारतों के निर्माण और अन्य विकास कार्यों पर होता है. राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंदीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिये छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिये पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है.
क्या है FRBM कानून?
- उल्लेखनीय है कि देश की राजकोषीय व्यवस्था में अनुशासन लाने के लिये तथा सरकारी खर्च तथा घाटे जैसे कारकों पर नज़र रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM) कानून को वर्ष 2003 में तैयार किया गया था तथा जुलाई 2004 में इसे प्रभाव में लाया गया था.
- यह सार्वजनिक कोषों तथा अन्य प्रमुख आर्थिक कारकों पर नज़र रखते हुए बजट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. FRBM के माध्यम से देश के राजकोषीय घाटों को नियंत्रण में लाने की कोशिश की गई थी, जिसमें वर्ष 1997-98 के बाद भारी वृद्धि हुई थी.
- केंद्र सरकार ने FRBM कानून की नए सिरे से समीक्षा करने और इसकी कार्यकुशलता का पता लगाने के लिये एन. के. सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था.
मौद्रिक नीति समिति
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था.
- वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934 (RBI अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके.
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है.
- रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं.
आगे की राह
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 के पहले तीन महीनों (अप्रैल-जून) के लिये केंद्र का राजकोषीय घाटा 6.62 लाख करोड़ रुपए पहुँच गया, जो कि इस वर्ष के लिये बजटीय लक्ष्य रूपए 7.96 लाख करोड़ का 83% है.
- COVID-19 जैसी महामारी में राजकोषीय अनिश्चितताओं का बढ़ना स्वाभाविक है. अतः राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को एक दायरे में रखना केंद्र और राज्य सरकारों को राजकोषीय लक्ष्यों की प्राप्ति के क्रम में लचीलापन प्रदान करेगा.
कितने प्रकार के घाटे होते हैं?
- घाटा तीन प्रकार का होता है. पहला घाटा है राजस्व घाटा. इसे एक उदाहरण से समझते हैं. अगर किसी देश को 100 रुपये की आय और 75 रुपये के खर्च की आशा है तो 25 रुपये का शुद्ध राजस्व बनता है. लेकिन हुआ कुछ अलग. सरकार ने 90 रुपये का वास्तविक राजस्व प्राप्त किया और खर्च किए 70 रुपये. इस स्थिति में 20 रुपये का शुद्ध राजस्व मिला. यह बजट के अनुमान से 5 रुपये कम है. इसे ही राजस्व घाटा कहते हैं.
- दूसरा और अर्थव्यवस्था की दृष्टिकोण से सबसे महत्त्वपूर्ण घाटा ‘राजकोषीय घाटा’ होता है. जब सरकार के कुल राजस्व और कुल खर्च के बीच अंतर हो तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं. राजकोषीय घाटे के संबंध में एक बड़ा तर्क दिया जाता है. वह यह है कि बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा पूंजी निर्माण और विकास परियोजनाओं का फल होता है. हालांकि, अगर ये बहुत ज्यादा हुआ तो अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक स्थिति बन जाती है. ग्रीस इसका उदाहरण है. वहाँ राजकोषीय घाटा 2010 में जीडीपी का 142% हो गया था. राजकोषीय घाटा ज्यादा होने पर सरकार इसकी भरपाई के लिए बडे़ पैमाने पर कर्ज लेती है. इससे कर्ज की कुल मांग में तेजी आती है. ऐसा होने पर ब्याज दर में भी उछाल आ जाता है. निजी कंपनियां महंगे कर्ज के चलते अपने कुल निवेश में कटौती करती हैं. इससे उत्पादन और रोजगार में गिरावट आती है.
- तीसरा प्राथमिक घाटा होता है. राजकोषीय घाटे से ब्याज भुगतान को हटा दें तो प्राथमिक घाटा मिल जाएगा. ब्याज भुगतान वह भुगतान है सरकार लिए गए कर्ज पर देती है. राजस्व घाटे की सीमा 0 से 3 फीसदी के बीच ही रखने की बाध्यता है. भारत विकासशील देश है. सामाजिक विकास की योजनाओं पर भी यह अधिक बल देता है. इसलिए सरकार लक्ष्य से हमेशा दूर ही नजर आती है. 2007-08 में भारत एक बार राजकोषीय घाटे को सीमा के अंदर जीडीपी का 2.5 फीसदी लाने में कामयाब हुआ था.
Prelims Vishesh
Special Frontier Force – SSF :-
- कुछ रिपोर्टों के अनुसार, विकास बटालियन के रूप में संदर्भित SFF की, लद्दाख में चीन से संलग्न वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थित कुछ प्रमुख ऊंचाई वाले स्थलों को भारत के नियंत्रणाधीन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है.
- SFF को वर्ष 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के तत्काल बाद गठित किया गया था.
- यह एक गुप्त सैन्य दल है, जिसमें तिब्बतियों (अब इसमें तिब्बतियों और गोरखाओं का मिश्रण है) को भर्ती किया गया था.
- यह मंत्रिमंडलीय सचिवालय के अंतर्गत आती है.
- यह इस्टैब्लिशमेंट 22 (Establishment 22) के नाम से भी जानी जाती है.
- SFF Units सेना का हिस्सा नहीं होती हैं, परन्तु ये सेना के परिचालन नियंत्रण में कार्य करती हैं.
Act of God or Force Majeure clause (FMC) :-
- फोर्स मेज्योर क्लॉज के तहत किसी अनुबंध में शामिल कोई पक्षकार ऐसी घटनाओं की स्थिति में अपने दायित्व के निर्वहन से मुक्त हो जाता है, जिसे नियंत्रित करना उसके सामर्थ्य में नहीं है.
- वित्त मंत्रालय द्वारा ज्ञापन जारी करके यह स्पष्ट किया गया था कि “कोविड-19 महामारी को प्राकृतिक आपदा (natural calamity) माना जाना चाहिए तथा ऐसे में जहाँ भी उचित हो, वहां FMC को लागू किया जा सकता है.
- FMC में प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली घटनाएं और मानव हस्तक्षेप के कारण उत्पन्न होने वाली घटनाएं दोनों शामिल होती हैं.
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