Sansar Daily Current Affairs, 10 April 2020
GS Paper 2 Source: PIB
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : PCPNDT Act
संदर्भ
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि उसने पीसी और पीएनडीटी कानून को निलंबित नहीं किया है, जो गर्भधारण से पहले या बाद में लिंग चयन पर रोक लगाता है. ज्ञातव्य है की अभी मीडिया में यह चर्चा चल रही है लिंग चयन करने की छूट दे डाली है.
मामला क्या है?
- वर्तमान कोविड-19 महामारी के कारण चल रहे लॉकडाउन के मद्देनजर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने पीसी और पीएनडीटी नियम 1996 के तहत कुछ प्रावधानों को स्थगित / निलंबित करने के लिए 4 अप्रैल, 2020 को अधिसूचना जारी की थी.
- ये छूट पंजीकरण के नवीनीकरण के समय-सीमा से सम्बंधित हैं क्योंकि लॉकडाउन की अवधि में कुछ पंजीकरणों की अवधि समाप्त हो रही है. इसके अतिरिक्त इस नियम में भी छूट दी गई है जिसके अनुसार, आगामी महीने के पाँचवें दिन तक निदान केन्द्रों को प्रतिवेदन जमा कर देना होता है. साथ ही, राज्यों/संघीय क्षेत्रों को त्रैमासिक प्रगति प्रतिवेदन देने की समयसीमा में भी छूट दी गई है.
PC/PNDT अधिनियम से सम्बंधित तथ्य
गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 ऐसा एक अधिनियम है जो कन्या भ्रूण हत्या और भारत में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिये लागू किया गया था. इसमें निम्नलिखित प्रावधान हैं –
- गर्भाधान के पूर्व या बाद लिंग चयन तकनीक के उपयोग पर प्रतिबंध.
- लिंग चयनात्मक गर्भपात के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के दुरूपयोग को रोकना.
- ऐसे तकनीकों को विनियमित करना.
- इस कानून के अंतर्गत, जिन सभी केन्द्रों के पास गर्भाधान पूर्व या प्रसव-पूर्व संभावित रूप से भ्रूण के लिंग का परीक्षण करने वाला कोई भी उपकरण है, तो उन्हें समुचित प्राधिकारियों के साथ पंजीकृत होना चाहिए.
- यह लिंग का पता लगाने या निर्धारित करने के लिए ऐसी तकनीकों के सम्बन्ध में विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता है.
- परिसर को सील करना और साक्षियों को प्रवर्तन में लाने सहित विधि के उल्लंघनकर्ताओं की मशीनों, उपकरणों और अभिलेखों की तलाशी, जब्ती और सील करने के सम्बन्ध में समुचित प्राधिकारियों को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं.
- 2003 में लिंग चयन में समक्ष प्रौद्योगिकी के विनियमन में सुधार हेतु इसमें संशोधन किया गया था.
- गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्तर्गत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रुण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, इसके लिए सहयोग देना व विज्ञापन करना कानूनी अपराध है, जिसमें 3 से 5 वर्ष तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रू. तक का जुर्माना हो सकता है.
GS Paper 2 Source: Economic Times
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Epidemic Diseases (Amendment) Ordinance, 2020
संदर्भ
कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच ओडिशा सरकार ने एक अध्यादेश लागू किया है जिसमें महामारी के कारण लागू नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए दो साल तक की कैद का प्रावधान है. आधिकारिक सूत्रों ने बृहस्पतिवार को कहा कि अध्यादेश में महामारी अधिनियम,1897 की एक धारा में संशोधन किया गया है.
पृष्ठभूमि
महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के अनुसार मूल कानून के तहत जारी किसी आदेश या नियमन की अवज्ञा करने वालों को दो साल तक की कैद या 10,000 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा भुगतनी पड़ सकती है. इसमें कहा गया, ‘‘इस कानून के तहत प्रत्येक अपराध संज्ञेय और जमानती है.’’
महामारी अधिनियम, 1897 क्या है?
- यह कानून ख़तरनाक महामारी के प्रसार की बेहतर रोकथाम के लिए बनाया गया है.
- केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को धारा 2 को लागू करने के लिए कहा है.
- धारा 2 में कहा गया है – जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उसके किसी भाग में किसी ख़तरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है या होने की आशंका है, तब अगर वो (राज्य सरकार) ये समझती है कि उस समय मौजूद क़ानून इस महामारी को रोकने के लिए काफ़ी नहीं हैं, तो कुछ उपाय कर सकती है. ऐसे उपाय, जिससे लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम हो सके.
- इस अधिनियम के धारा 2 के भी 2 उप-धारा हैं. इसमें कहा गया है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फ़ैल चुकी है या फैलने का ख़तरा है, तो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों को, जिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैं, उन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा.
- महामारी अधिनियम 1897 का धारा-3 जुर्माने के बारे में है. इसमें कहा गया है कि महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सज़ा मिल सकती है.
- इस अधिनियम का धारा 4 क़ानूनी सुरक्षा के बारे में है. जो अधिकारी इस ऐक्ट को लागू कराते हैं, उनकी क़ानूनी सुरक्षा भी यही ऐक्ट सुनिश्चित करता है. ये धारा सरकारी अधिकारी को लीगल सिक्योरिटी दिलाता है. कि ऐक्ट लागू करने में अगर कुछ उन्नीस-बीस हो गया, तो अधिकारी की ज़िम्मेदारी नहीं होगी.
इस अधिनियम का कड़वा इतिहास
1896-97 में पूना में प्लेग का भयंकर आक्रमण हुआ. सरकार ने रैण्ड को प्लेग कमिश्नर नियुक्त किया था तथा महामारी रोग अधिनियम के अन्तर्गत विस्तृत शक्तियाँ प्रदान की थी. उसने इन शक्तियों के अन्तर्गत पृथक्कता के नियम लागू करने में आतंक का साम्राज्य स्थापित कर दिया. रैण्ड के पास जनता के प्रतिनिधि गए परन्तु उसने उनके प्रतिवेदन पर ध्यान नहीं दिया. रैण्ड के अत्याचारों से जनता त्राहि-त्राहि कर उठी. सभी पत्रों ने इस अत्याचार का विरोध किया. लोकमान्य तिलक का हृदय इस भयंकर अपमान तथा अत्याचार से क्षुब्ध हो उठा. उन्होंने अपने पत्र ‘केसरी‘ में 4 मई, 1897 को बम्बई सरकार पर कड़ा प्रहार किया और स्थानीय नेताओ और सम्प्रान्त जन को अपने पत्रों से फटकार लगाई– “क्या उनका यह कर्त्तव्य नहीं था कि वे सिपाहियों के इन अन्यायपूर्ण कृत्यों का प्रतिकार करने के उपाय ढूँढ़ते और पूना के पीड़ित नागरिकों को दोहरी महामारी प्लेग तथा योरोपियन सिपाहियों द्वारा प्रत्येक गृह की तलाशी लेने से रक्षा करते. कम से कम उन्हें नगर में ठहरना चाहिए था जिससे वे सर्वसाधारण की व्यावहारिक सहायता कर सकते, परन्तु वे नगर छोड़कर भाग गए और बाहर से वे पूनावासियों को इन गोरे सिपाहियों के अत्याचारों का प्रतिकार करने के लिए कहते हैं.” 22 जून, 1897 को दामोदर चापेकर ने रैण्ड तथा उनके सहयोगी लेफ्टिनेन्ट अयरेस्ट की हत्या कर दी. तिलक के द्वारा लिखित उपरोक्त लेख को इन हत्याओं के लिए उत्तरदायी ठहराकर उनको 28 जुलाई, 1897 को गिरफ्तार कर उनके विरूद्ध राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया तथा उनको 18 माह की सख्त कैद की सजा दी गई. तिलक को सितम्बर, 1898 में जेल से छोड़ दिया गया था.
GS Paper 2 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Issues relating to development and management of Social Sector/Services relating to Health, Education, Human Resources.
Topic : “State of the World’s Nursing” report
संदर्भ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में 7 अप्रैल, 2020 को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर “स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स नर्सिंग 2020’ शीर्षक से एक रिपोर्ट” जारी की है.
‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स नर्सिंग 2020’ शीर्षक से एक रिपोर्ट के मुख्य तथ्य
- इस रिपोर्ट के अनुसार नर्सिंग स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा व्यावसायिक समूह है, जो कि स्वास्थ्य व्यवसाय का 59% है.
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नर्सों में निवेश न केवल स्वास्थ्य से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों में, बल्कि शिक्षा (एसडीजी 4), अच्छे काम और आर्थिक विकास (एसडीजी 8) में भी योगदान देगा.
- रिपोर्ट में बताया गया कि वैश्विक स्तर पर प्रति 10,000 लोगों में लगभग 36.9 नर्स हैं. जिनमें भी क्षेत्रवार भिन्नता है. उदाहरण के लिए अमेरिका में अफ्रीकी क्षेत्र की तुलना में लगभग 10 गुना से अधिक नर्स हैं. जहां 10,000 की जनसंख्या पर 83.4 नर्स हैं जबकि अफ्रीकी क्षेत्र में 10,000 लोगों पर महज 8.7 नर्स हैं.
- रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक दुनिया भर में 57 लाख से अधिक नर्सों की कमी होगी.
- इसी बीच कोरोनो वायरस संकट के चलते इंग्लैंड की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) ने उन नर्सों को बुलाया है जो पहले से पंजीकृत थे, ताकि कोरोना में उनकी मदद ली जा सके.
भारत के संबंध में नर्सिंग क्षेत्र का हाल
- 2018 तक 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले भारत में 15.6 लाख नर्स और 772,575 नर्सिंग सहयोगी थे. इसमें से पेशेवर नर्सों की हिस्सेदारी 67 फीसदी है.
- स्वास्थ्य कार्यबल के भीतर 47 फीसदी मेडिकल स्टाफ के सदस्य शामिल हैं. उसके बाद 23.3 फीसदी डॉक्टर, 5.5 फीसदी डेन्टिस्ट और 24.1 फार्मासिस्ट हैं.
- भारत में नर्सिंग क्षेत्र में रिकॉर्ड 88 फीसदी महिलाए हैं. यह वैश्विक स्तर की नर्सिंग संरचना के अनुरूप है, जहां 90 फीसदी महिलाएं इस क्षेत्र से जुड़ी हैं.
- रिपोर्ट में हेल्थकेयर पर भारत के मौजूदा खर्च को भी उजागर किया गया है जो कि 2017 के अनुसार प्रति व्यक्ति 1960 डॉलर है जो जीडीपी का 3.5 फीसदी है.
- भारत की बात करें यहां एक समस्या नर्सों की सैलरी को लेकर भी है. देश में नर्से अक्सर न्यूनतम मजदूरी की मांग करती रही हैं. उन्हें शिकायत है कि उन्हें अतिरिक्त घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन उनके अनुसार भुगतान नहीं किया जाता है.
GS Paper 3 Source: Down to Earth
UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.
Topic : Uranium Contamination in Ground Water
संदर्भ
इंग्लैंड के मेनचेस्टर विश्वविद्यालय तथा पटना के फुलवारी में स्थित महावीर कैंसर संस्थान एवं शोध केंद्र ने एक नए अध्ययन में पाया है कि बिहार के दस जिलों में भूजल यूरेनियम से प्रदूषित है.
मुख्य निष्कर्ष
- जिन जिलों का भूजल यूरेनियम से प्रदूषित है, वे हैं : सुपौल, गोपालगंज, सीवान, सारण, पटना, नालंदा, नवादा, औरंगाबाद, गया और जहानाबाद.
- यूरेनियम की सबसे अधिक मात्रा सुपौल में पाई गई जोकि प्रति लीटर जल में 80 माइक्रोग्राम थी.
- बिहार के उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्रों में यूरेनियम का जमाव अधिक है.
यूरेनियम संदूषण क्या है?
- यूरेनियम का प्राथमिक स्रोतभूगर्भिक है अर्थात् यूरेनियम का मुख्य स्रोत ग्रेनाइट है, जो हिमालयी क्षेत्र में सामान्य रूप से उपलब्ध है. संभवतः वर्षों से, यूरेनियम का रिसाव धीरे-धीरे जल में हो गया. इस प्रदूषण का मुख्य कारण प्राकृतिक है परन्तु इसमें मानव का भी योगदान इस प्रकार से है कि उसके द्वारा कृषि सिंचाई के लिए भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण भूगर्भ जल का स्तर नीचे चला गया है और नाइट्रेट के प्रयोग के कारण इसमें नाइट्रेट की मात्रा बढ़ गयी है. जल के यूरेनियम प्रदूषण का प्राकृतिक कारण भूजल के नीचे स्थित चट्टानों में यूरेनियम के कण का होना है जो पानी में घुलते रहते हैं.
- वर्तमान में भारतीय मानक पेयजल ब्यूरो ने अभी तक यूरेनियम को प्रदूषक की मान्यता नहीं दी है. भारतीय मानक पेयजल ब्यूरो के अनुसार तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार पेयजल में यूरेनियम की स्वीकार्य मात्रा अधितम 0.03 mg/l होनी चाहिए.
- भूजल के स्तर को ऊँचा करने और नाइट्रेट के प्रयोग को घटाने से यूरेनियम प्रदूषण में कमी आ सकती है. इसके लिए जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है.
भारत के लिए चिंता का विषय
- हाल ही में शोधकर्ताओं द्वारा किये गये एक नए अध्ययन में भारत के 16 राज्यों में भूमिगत जल के जलभृत (aquifers) में अत्यधिक यूरेनियम संदूषण (uranium contamination) पाया गया है. प्रदूषण का स्तरविश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के द्वारा निर्धारित स्तर से ऊपर है.
- 1990 के दशक के आरम्भ से पंजाब में भूमिगत जल में यूरेनियम संदूषण एक निरंतर समस्या बना हुआ है. पंजाब के मालवा क्षेत्र में तापीयबिजली संयंत्रों में कोयले के दहन से उत्पन्न फ्लाई ऐश को मृदा और भूमिगत जल प्रदूषण का संभावित कारण माना जाता है, जिसमें यूरेनियम और राख का स्तर उच्च होता है.
- राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात के कुछ भागों में यूरेनियम स्तर उच्च पाया गया.
- इन परिणामों से यह स्पष्ट है कि राजस्थान और गुजरात में परीक्षण किये गए अधिकांश कुओं में WHO द्वारा अनुशंसित 30 माइक्रोग्राम/लीटर की सीमा से अधिक यूरेनियम विद्यमान था. राजस्थान के कुछ कुओं (लगभग 10) में यूरेनियम का स्तर लगभग 300µg/Lपाया गया.
- उत्तर पश्चिमी भारत के अन्य जिलों एवं दक्षिणी भारत में विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी संदूषण का स्तर उच्च पाया गया.
भारतीय मानक ब्यूरो के पेयजल विनिर्देशों में यूरेनियम के लिए किसी प्रकार की सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है जो कि भूजल स्तर की गुणवत्ता की निगरानी को असंभव बनाता है. पेयजल में यूरेनियम न केवल रेडियो सक्रियता बल्कि यह मुख्य रूप से रासायनिक विषाक्तता, किडनी की समस्या आदि चिंता का विषय है. भूजल के स्तर को ऊँचा करने और नाइट्रेट के प्रयोग को घटाने से यूरेनियम प्रदूषण में कमी आ सकती है. इसके लिए जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है.
GS Paper 3 Source: Times of India
UPSC Syllabus : Indian economy related issues.
Topic : Long-term repo operations (LTROs)
संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बताया है कि तीन वर्षों की अवधि के लिए 25,000 करोड़ रु. की राशि हेतु उसके द्वारा संचालित लक्षित दीर्घावधि रेपो परिचालन (LTRO) के लिए की गई नीलामी में 18 बिड प्राप्त हुए हैं जिनमें निहित राशि 1.13 लाख करोड़ रु. है.
रेपो रेट क्या होता है?
बैंक अपने रोज के खर्चों को चलाने के लिए RBI से पैसा उधार लेते हैं. बैंक जिस दर पर रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं, उसे रेपो रेट कहते हैं. इससे उलट, जब बैंक अपना पैसा रिज़र्व बैंक में जमा करते हैं, तो उन्हें ब्याज़ मिलता है. इस ब्याज की दर को ही रिवर्स रेपो रेट कहते हैं.
दीर्घावधि रेपो परिचालन (LTRO) क्या है?
- रेपो रेट अल्पावधि के लिए होता है. वहीं लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स एक से तीन साल तक के लिए होता है. यानी बैंक आरबीआई से एक से तीन साल तक के लिए कर्ज ले सकते हैं.
- RBI तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के माध्यम से बैंकों को उनकी तत्काल ज़रूरतों हेतु 1 से 28 दिनों के लिये ऋण मुहैया कराता है, जबकि LTRO के माध्यम से RBI द्वारा रेपो रेट पर ही उनको 1 से 3 वर्ष के लिये ऋण उपलब्ध कराया जाएगा.
रेपो रेट के बारे में विस्तार से पढ़ें > Repo Rate in Hindi
LTRO से संभावित लाभ
- RBI द्वारा रेपो रेट में कमी किये जाने के बाद भी बैंक उसका लाभ ऋण प्राप्तकर्त्ताओं को नहीं दे रहे हैं. परन्तु अब दीर्घ अवधि के लिये ऋण प्राप्त होने से बैंक सरलता से एवं कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान कर सकते हैं.
- ऋण तक आसान पहुँच के चलते उपभोग में वृद्धि की जा सकेगी. आज के समय कोरोना महामारी के चलते आर्थिक सुस्ती का माहौल है.
- यह एक ऐसा विकल्प है जिससे बाज़ार सहभागियों को आशा है कि बैंक अल्पकालिक ब्याज दरों को कम करेंगे तथा कॉर्पोरेट बॉण्ड में निवेश को भी प्रोत्साहन प्रदान करेंगे.
Prelims Vishesh
During India coronavirus lockdown, the laws that come into play :-
भारत में कोरोना वायरस तालेबंदी से जुड़े कानून –
भारतीय दंड संहिता की धारा 188 : महामारी रोग अधिनियम के अंतर्गत पारित किसी आदेश के उल्लंघन करने वाले को भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अन्दर एक महीने से लेकर छह महीने तक का कारावास दिया जा सकता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 505 : इस धारा के अंतर्गत जो व्यक्ति डर पैदा करने के लिए कोई वस्तु प्रकाशित अथवा परिचालित करता है तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास अथवा अर्थदंड अथवा दोनों की सजा दी जा सकती है.
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 51 : इसके अनुसार, जो कोई आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के द्वारा अधिकृत कर्मचारी के कार्य में बाधा पहुंचाता है और उसके द्वारा दिए गये आदेशों को नहीं मानता है तो इस धारा के अनुसार उसे एक वर्ष से दो वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है.
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 52 : यदि कोई राहत, सहायता, मरम्मत, पुनर्निर्माण अथवा अन्य लाभ के लिए सरकार के समक्ष गलत दावा पेश करता है तो उसको दो वर्ष तक का कारावास और अर्थदंड की सजा मिल सकती है.
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 54 : यदि कोई व्यक्ति आपदा के विषय में या उसकी भीषणता के बारे में नकली चेतावनी प्रचारित करता है तो उसे एक वर्ष तक का कारावास हो सकता है.
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