Sansar Daily Current Affairs, 10 December 2020
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Issues related to women.
Topic : NHRC calls for Eradication of Trafficking in Women and Children in India
संदर्भ
हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान मानव तस्करी के मामलों में वृद्धि के मद्देनजर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission India – NHRC) ने विभिन्न राज्यों और मंत्रालयों को परामर्श जारी किये हैं.
आयोग की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया कि मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक महामारी के दौरान मानव तस्करी की घटनाओं में वृद्धि हुई है.
आयोग ने कहा है कि देशभर में अभूतपूर्व स्थिति के मद्देनजर और कोविड-19 से प्रभावित, समाज में हाशिये पर मौजूद लोगों के अधिकारों की गंभीरता से चिंता करते हुए आयोग ने मानवाधिकार पर महामारी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया है.
मानवाधिकार (Human Rights) क्या हैं?
- संयुक्त राष्ट्र (UN) की परिभाषा के अनुसार ये अधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त हैं.
- मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और काम एवं शिक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं.
- कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इन अधिकारों को प्राप्त करने का हकदार होता है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को की गई थी.
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 में प्रस्तावित बदलाव
- अब भारत के मुख्य न्यायाधीश अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश NHRC का अध्यक्ष हो सकता है.
- मूल अधिनियम में मानवाधिकार का ज्ञान रखने वाले दो व्यक्तियों को NHRC का सदस्य बनाने का प्रावधान था. अब यह संख्या बढ़ाकर 3 कर दी गई है जिनमें से एक का महिला होना अनिवार्य कर दिया गया है.
- मूल अधिनियम के अनुसार NHRC में विभिन्न आयोगों, जैसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष सदस्य होते हैं. अब संशोधन के अनुसार, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण के अध्यक्ष एवं मुख्य दिव्यांग आयुक्त भी सदस्य होंगे.
- आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जा रहा है. कार्यकाल की अधिकतम आयु पहले की तरह 70 वर्ष रखी गई है. मूल अधिनियम में NHRC और राज्य मानवधिकार आयोगों के सदस्यों को पाँच वर्ष के लिए फिर से नियुक्ति का प्रावधान था. अब संशोधन के द्वारा पाँच वर्ष की इस सीमा हटा दिया गया है.
- संशोधन में यह प्रावधान किया जा रहा है कि दिल्ली से सम्बंधित मानवाधिकार के मामलों को अब NHRC ही देखेगा.
मानवाधिकार और भारतीय संविधान
- विशेषज्ञों के अनुसार, व्यक्ति के समग्र विकास के लिये मानवाधिकार आवश्यक होते हैं.
- भारतीय संविधान में भी भारतीय नागरिकों और विदेशी नागरिकों के लिये मौलिक अधिकारों के रूप में मानवाधिकारों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं.
- 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ भारतीय संविधान अब तक के सबसे विस्तृत मौलिक संविधानों में से एक है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है.
- भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में मानवाधिकारों जैसे – जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि का उल्लेख किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् क्या है?
- UNHRC संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है जिसकी स्थापना 2006 में विश्व-भर में मानवाधिकार की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए तथा साथ ही मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जाँच करने लिए की गई है.
- UNHRC में 47 देशों के प्रतिनिधि सदस्य हैं जिनका चयन 3 वर्ष के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) द्वारा किया जाता है.
- यह परिषद् वर्ष में तीन बार बैठती है.
- मानवाधिकार परिषद् संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों में मानवाधिकार की स्थिति की समय-समय पर समीक्षा करती है. समीक्षा के समय यह गैर-सरकारी संगठनों से मानवाधिकार के कथित उल्लंघनों के विषय में सूचना प्राप्त करती है और उनपर जाँच-पड़ताल के बाद अपना निर्णय देती है.
GS Paper 2 Source : Times of India
UPSC Syllabus : Related to Health.
Topic : Surgery as part of Ayurveda
संदर्भ
हाल ही में, सरकार ने आयुर्वेद के स्नातकोत्तर छात्रों के लिए अनिवार्य सर्जिकल प्रक्रियाओं के संदर्भ में अधिसूचना जारी की है.
आयुर्वेद में शल्यचिकित्सा / सर्जरी की स्थिति
आयुर्वेद में शल्यचिकित्सा की दो शाखाएँ हैं:
- शल्य तंत्र (Shalya Tantra): यह सामान्य शल्य चिकित्सा से संबंधित है, और
- शलाक्य तंत्र (Shalakya Tantra): यह आंख, कान, नाक, गले और दांतों की सर्जरी से संबंधित है.
आयुर्वेद के सभी स्नातकोत्तर छात्रों को इन पाठ्यक्रमों का अध्ययन करना होता है, और इनमें से कुछ छात्र विशेषज्ञता हासिल करके आयुर्वेद सर्जन बन जाते हैं.
अधिसूचना से पहले, स्नातकोत्तर छात्रों के लिए निर्गत नियम
वर्ष 2016 के नियमों के अनुसार, स्नातकोत्तर छात्रों को शल्य तंत्र, शलाक्य तंत्र, और प्रसूति एवं स्त्री रोग (Obstetrics and Gynecology), तीन विषयों में विशेषज्ञता प्राप्त करने की अनुमति है.
- इन तीनों क्षेत्रों में प्रमुख सर्जिकल प्रक्रियाएं सम्मिलित होती हैं.
- इन तीन विषयों के छात्रों को MS (आयुर्वेद में सर्जरी में मास्टर) की डिग्री प्रदान की जाती है.
अधिसूचना का निहतार्थ
अधिसूचना में 58 सर्जिकल प्रक्रियाओं का उल्लेख है जिनमे स्नातकोत्तर छात्रों के लिए प्रशिक्षित करना और स्वतंत्र रूप से सर्जरी करने की क्षमता हासिल करनी होगी.
- अधिसूचना में जिन शल्यचिकित्साओं का उल्लेख किया गया है, वे सभी पहले से ही आयुर्वेद पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं.
- अब, रोगियों को आयुर्वेद चिकित्सकों की क्षमताओं के बारे में ठीक से पता चल सकेगा. स्किल-सेट को स्पष्टतया परिभाषित किया गया है.
- यह आयुर्वेद चिकित्सक की क्षमता पर लगे हुए प्रश्न चिह्नों को हटा देगा.
भारतीय चिकित्सक संघ (IMA) की आपत्तियाँ
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा इस अधिसूचना की तीखी आलोचना की गयी है. IMA ने इन प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन हेतु आयुर्वेद चिकित्सकों की क्षमता पर सवाल उठाया है, और अधिसूचना को ‘मिक्सोपैथी’ (Mixopathy) का प्रयास बताया है.
- आईएमए के डॉक्टर्स का कहना है, कि वे प्राचीन चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों के विरोध में नहीं हैं.
- किंतु, इनके अनुसार, नई अधिसूचना इस संकेत देती है, कि आधुनिक सर्जरी प्रक्रियाओं को पूरा करने हेतु आयुर्वेद चिकित्सकों का कौशल या प्रशिक्षण, आधुनिक चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर के समान हैं.
- इनका कहना है कि, यह भ्रमित करने वाला है, और ‘आधुनिक चिकित्सा के अधिकार क्षेत्र और दक्षताओं में अतिक्रम’ है.
मेरी राय – मेंस के लिए
आज भारत की स्वास्थ्य नीति को देखा जाय तो हमारे पास एक आयातित स्वास्थ्य नीति है, जिसका लाभ जनता की बजाय बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों को होता है. जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक विविधतापूर्ण विशाल राष्ट्र है. इसका गठन विविध भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक स्तर, खान-पान, पहनावे और जीवनशैली वाले समूहों से हुआ है. इसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य और बीमारियों पर पडऩा स्वाभाविक है. अर्थात् प्रकृति, संस्कृति और स्वास्थ्य का गहरा संबंध है. इसी के अनुसार यहाँ स्वस्थ्य रहने के उपाय और चिकित्सा की विधियाँ भी भिन्नता लिए हुए रही है. जैसे उत्तर भारत में आयुर्वेद, दक्षिण भारत में सिद्ध, हिमालय की पहाडिय़ों में सोवारिंग्पा, आदिवासी क्षेत्रों गुनिया चिकित्सक स्थानीय संसाधनों से स्वास्थ्य की देखभाल करते रहे हैं.
2016 में सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया, यहाँ उसका भी उल्लेख आवश्यक है. भारत की सभी प्रचलित पारम्परिक चिकित्सा विधियों आयुर्वेद, योग, यूनानी, होम्योपैथी, सिद्धा, सोवारिंग्पा को एक साथ जोड़कर आयुष सिस्टम आफ मेडिसिन बनाया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य को लेकर चिंता करने वाले विचारकों के लिए यह उत्साहित करने वाला कदम था. पर केवल पाँच सालों में ही यह उत्साह ठंडा पड़ गया, क्योकि आयुष का प्रचार तो बहुत शानदार ढंग से किया गया पर अभी तक न राष्ट्रीय भागीदारी मिली और न ही हिस्सेदारी. इसका कारण यह रहा कि सरकारी चिकित्सा विज्ञान की परिभाषा में यह फिट नहीं बैठती है. इसे एक सहायक चिकित्सा विधि की तरह देखा जाता है. बाह्य औषधीय प्रयोग और जड़ी-बूटियों को एलौपैथी के मानकों पर प्रमाणित कर एलोपैथी को सौंप दिया जाता है. आश्चर्यजनक तथ्य यह है देश की 60 प्रतिशत आबादी जिस चिकित्सा पर घरेलू रुप में निर्भर है, उसका आधुनिक मानकों पर डाटा माँगा जाता है. इसके शिक्षण संस्थानों के उन्नयन के लिए प्रयास नगण्य है. नीम चढ़ा करेला यह कि इसके शिक्षण में भी व्यावसायिक क्षेत्र को बेलगाम प्रवेश करा दिया गया. इससे बिना प्रायोगिक ज्ञान के आयुष चिकित्सक दोयम दर्जे के एलोपैथिक चिकित्सक बनने को मजबूर हो रहे हैं. आयुर्वेद पर शल्य और रासायनिक औषधियों के प्रयोग, प्रसव कराने तक पर कानूनी प्रतिबंध लदा हुआ है. इसमें योग को ऐसे प्रचारित किया जाता है कि सारी स्वास्थ्य समस्याओं की कुंजी हो, जबकि देश की बहुसंख्य, दूरस्थ, कम आयवर्ग की आबादी को योगा नहीं, पोषण तथा स्वस्थ भोजन की आवश्यकता है. इसप्रकार अदूरदर्शी तथा आयातित स्वास्थ्य नीति के कारण भारत एक बीमार देश बनाता जा रहा है. प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का विध्वंस, समृद्ध वर्ग का असंयम, असमृद्ध वर्ग का कुपोषण इसका कारण है. समृद्ध वर्ग में जहाँ मधुमेह, हृदयरोग, रक्तचाप, गुर्दे के रोग आदि महामारी का रुप धारण करते जा रहे हैं, वहीं असमृद्ध आबादी में त्वचा, श्वास, रक्तहीनता, हड्डियों की कमजोरी, कैंसर, टीबी, इन्सेफेलाईटिस आदि रोग महामारी बनते जा रहे हैं. इधर आधुनिक एलोपैथी की दवायें निष्प्रभावी होती जा रही हैं. रोगप्रतिरोधक क्षमता कृत्रिम जीवन शैली के कारण दिनोंदिन घटती जा रही है. इस हालात में स्वदेशी स्वास्थ नीति ही अपने देश को बीमार देश बनने से बचा सकती है. इसके लिए तमाम कानूनों की समीक्षा करते हुए स्वदेशी चिकित्सा विधियों पर विश्वास के साथ खर्च बढ़ाने की आवश्यकता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Science and Techonology.
Topic : Worlds’ first, satellite-based narrowband-IoT network in India
संदर्भ
बीएसएनएल द्वारा स्काइलो के साथ साझेदारी में भारत में दुनिया का पहला सैटेलाइट आधारित नैरोबैंड-आईओटी नेटवर्क की शुरुआत की जाएगी.
- इस “मेड इन इंडिया” सॉल्यूशन को भारत में ही स्काइलो द्वारा विकसित किया है जो कि बीएसएनएल के सैटेलाइट, जमीन पर मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर (टॉवर आदि) के जरिए लोगों को कनेक्ट करेगा. यह सुविधा पूरे भारत में मिलने के साथ-साथ ही भारतीय समुद्री क्षेत्र में भी मिलेगी.
- इसके कवरेज का दायरा इतना बड़ा है कि भारत की सीमा में किसी भी क्षेत्र में कनेक्टिविटी की समस्या नहीं रह जाएगी अर्थात कश्मीर और लद्दाख से कन्याकुमारी तक, गुजरात से पूर्वोत्तर भारत तक और भारतीय समुद्री क्षेत्र में यह सेवा मिलेगी.
नैरोबैंड-आईओटी नेटवर्क क्या है ?
नैरोबैंड IoT या NB-IoT, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के लिए एक वायरलेस संचार मानक है. NB-IoT कम-शक्ति वाले वाइड-एरिया नेटवर्क (LPWAN) की श्रेणी से संबंधित है एवं यह उन उपकरणों को जोड़ने में सक्षम है, जिन्हें कम मात्रा में डेटा, कम बैंडविड्थ और लंबी बैटरी लाइफ की आवश्यकता होती है.
प्रस्तावित सैटेलाइट आधारित नैरोबैंड-आईओटी नेटवर्क के विषय में
- दुनिया के इस पहले सैटेलाइट आधारित नैरोबैंड-आईओटी नेटवर्क को बीएसएनएल और स्काइलो द्वारा स्थापित किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि सेटेलाइट आधारित नैरोबैंड-आईओटी नेटवर्क को “मेक इन इंडिया” पहल के तहत स्काइलो द्वारा विकसित किया है जो कि बीएसएनएल के सैटेलाइट, जमीन पर मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर (टॉवर आदि) के जरिए लोगों को कनेक्ट करेगा.
- इस तकनीकी के तहत एक छोटा सा स्मार्ट बॉक्स है, जिसमें स्काइलो का यूजर टर्मिनल हैं, जिसमें सेंसर, लगा हुआ है. इसके तहत डाटा प्रसार स्काइलो नेटवर्क का इस्तेमाल होगा. जिसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकेगा. इस डाटा प्लेटफॉर्म को मोबाइल और डेस्कटॉप पर उद्योग आधारित ऐप्लीकेशन के जरिए विजुअल रूप से अनुभव किया जा सकेगा. इसके जरिए यूजर को सही समय पर तुरंत फैसले लेने का मौका मिलेगा.
- यह नई डिजिटल मशीन कनेक्टिविटी लेयर स्मार्टफोन आधारित मोबाइल और वाई-फाई नेटवर्क के पूरक के रूप में काम करेगी. जो कि पूरे भारत के भौगोलिक क्षेत्र को नए ऑनलाइन एप्लीकेशन के तहत पहली बार शामिल करेगी.
- उल्लेखनीय है कि इस तकनीक का परीक्षा भारतीय रेलवे, मछली पकड़ने वाले जहाज और दूसरे जरूरी वाहनो में सफलतापूर्वक किया जा चुका है.
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
LTE
- यह लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Long-Term Evolution) का संक्षिप्त रूप है.
- LTE, 3rd जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (3rd Generation Partnership Project- 3GPP) द्वारा विकसित एक 4G वायरलेस कम्युनिकेशन स्टैंडर्ड (4G Wireless Communications Standard) है जिसे मोबाइल डिवाइस जैसे- स्मार्टफोन, टैबलेट, नोटबुक और वायरलेस हॉटस्पॉट को 3G की तुलना में 10 गुना स्पीड प्रदान करने के लिये विकसित किया गया है.
VoLTE
- यह वॉयस-ओवर लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Voice over Long Term Evolution- VoLTE) का संक्षिप्त रूप है.
- यह एक डिजिटल पैकेट वॉयस सेवा है जिसमें IMS तकनीक का उपयोग करते हुए LTE एक्सेस नेटवर्क के माध्यम से इंटरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol- IP) पर वितरित किया जाता है.
लेटेंसी (Latency)
- यह नेटवर्किंग से संबंधित एक शब्द है. एक नोड से दूसरे नोड तक जाने में किसी डेटा पैकेट द्वारा लिये गए कुल समय को लेटेंसी कहते हैं.
- लेटेंसी समय अंतराल या देरी को संदर्भित करता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Related to Space.
Topic : Artificial Sun
संदर्भ
चीन ने पहली बार परमाणु ऊर्जा से संचालित कृत्रिम सूर्य (artificial sun) का परिचालन आरंभ किया. चीन ने अपने HL-2M टोकामक परमाणु संलयन संयंत्र (HL-2M Tokamak nuclear fusion reactor) को सफलतापूर्वक परिचालित किया, जिसे प्रायः प्रचंड ऊष्मा और उर्जा उत्पादन के कारण कृत्रिम सूर्य भी कहा जाता है.
- टोकामक एक चुंबकीय संलयन डिवाइस है, जिसे सूर्य और सितारों को उर्जा प्रदान करने के कर सिद्धांत पर आधारित ऊर्जा के एवं कार्बन-मुक्त स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता सिद्ध करने के लिए अभिकल्पित किया गया है.
- यह गर्म प्लाज्मा का संलयन करने के लिए एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करता है और 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान तक पहुंच सकता है, जो सूर्य के कोर की तुलना में लगभग दस गुना अधिक गर्म है.
नाभिकीय संलयन क्या होता है?
नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) एक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत दो या अधिक हल्के परमाणु नामिक एक भारी नाभिक का निर्माण करने के लिए संलयन करते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान विशाल मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करते हैं. नाभिकीय संलयन सूर्य एवं तारों हेतु ऊर्जा का स्रोत है.
संलयन के लाभ
- प्रचुर मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन, व्यापक रूप से और लगभग अक्षय ईंधन उपलब्ध, कार्बन डाइऑक्साइड, या अन्य ग्रीनहाउस गैसों जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन नहीं, दीर्घकालिक समय तक रहने वाले अपशिष्ट आदि का उत्पादन नहीं होता है.
- चीन ने अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor: ITER), जो एक प्रयोगात्मक टोकामक परमाणु संलयन रिएक्टर है, के साथ इसका प्रयोग करने की योजना बनाई है. ITER सदस्यों में चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और अमेरिका शामिल हैं.
Prelims Vishesh
AYUSH Export Promotion Council :-
- इसे आयुष निर्यात को बढ़ावा देने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय तथा आयुष मंत्रालय द्वारा सयुक्त रूप से स्थापित किया जाएगा.
- दोनों मंत्रालय वैश्विक व्यापार के लिए उपयोग किए जाने वाले अपने हार्मोनाइज्ड सिस्टम कोड को मानकीकृत करके आयुष उत्पादों के अधिक निर्यात की सुविधा हेतु मिलकर कार्य करेंगे.
- भारतीय मानक ब्यूरो आयुष उत्पादों और सेवाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को विकसित करने में सहायता प्रदान करेगा.
Trade Receivables and e-Discounting System (TReDS) :-
- एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म है, जो कई वित्तदाताओं के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण और छूट की सुविधा प्रदान करता है.
- ये प्राप्य सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित कॉर्पोरेट एवं अन्य खरीदारों के बकाया हो सकते हैं.
- इस उद्देश्य के लिए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी/SIDBI) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने वर्ष 2016 में रिसीवेबल्स एक्सचेंज ऑफ इंडिया की स्थापना की थी.
- यह MSMEs को समय पर भुगतान सुनिश्चित करता है और MSMEs को क्रेडिट हिस्ट्री बनाने का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करता है. साथ ही, निम्न बट्टा दर (lower discount rates), MSMEs के लिए अधिक बचत और व्यापार के विस्तार के लिए बेहतर अवसर प्रदान करती है.
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