Sansar Daily Current Affairs, 11 August 2018
GS Paper 1 Source: PIB
Topic : Indecent Representation of the Women (Prohibition) Act, 1986
संदर्भ
उल्लेखनीय है कि स्त्रियों के अभद्र चित्रण पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1986 ई. में महिला अभद्र चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम (Indecent Representation of the Women (Prohibition) Act, 1986) बनाया गया था. उस समय श्रव्य/दृश्य मीडिया नहीं थी और इलेक्ट्रॉनिक मंच अस्तित्व में नहीं आया था. हाल ही में ऐसा देखा गया है कि संचार के आधुनिक रूपों में, यथा – इन्टरनेट, MMS, केबल टेलीविज़न, OTT (over the top) सेवाएँ, Skype, Viber, Whatsapp, Chat On, Snapchat, Instagram आदि मंच पर स्त्रियों का अभद्र चित्रण धड़ल्ले से हो रहा है. इसकी रोकथाम के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने अधिनियम में समुचित संशोधन करते हुए सोशल मीडिया को इसके दायरे में लाने के लिए एक नए विधेयक को उपस्थापित करने का निर्णय लिया है.
प्रस्तावित संशोधन
- विधेयक में “विज्ञापन” शब्द की परिभाषा को सुधारते हुए उसमें डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक विज्ञापन अथवा विज्ञापनपट्ट (hoarding) अथवा SMS, MMS इत्यादि को शामिल किया जा रहा है.
- विधेयक में “वितरण” की परिभाषा को संशोधित कर इसमें प्रकाशन, लाइसेंस अथवा कंप्यूटर अथवा किसी संचार उपकरण से अपलोडिंग को सम्मिलित किया जा रहा है.
- “प्रकाशन” शब्द की एक नई परिभाषा दी जा रही है. अधिनियम के अनुभाग 4 को संशोधित कर उसमें यह परिविष्टि डाली जा रही है कि कोई भी व्यक्ति महिला के किसी भी रूप में अभद्र चित्रण वाली सामग्री न तो प्रकाशित करेगा, न ही वितिरित करेगा और न ही प्रकाशित करवाएगा अथवा वितरित करवाएगा.
- विधेयक में यह प्रस्ताव है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अनुरूप दंड दिया जायेगा.
- विधेयक में राष्ट्रीय महिला आयोग के तत्त्वाधान में एक केंद्रीकृत प्राधिकार (centralized authority) के गठन का प्रस्ताव है.
- राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य सचिव इस प्राधिकार का अध्यक्ष होगा और इसमें इन क्षेत्रों से प्रतिनिधि सदस्य होंगे — भारतीय विज्ञापन मानक परिषद्, भारतीय प्रेस परिषद्, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा महिलाओं से सम्बंधित समस्याओं पर काम करने वाला एक अनुभवी व्यक्ति.
कार्य
यह केंद्रीकृत प्राधिकार किसी कार्यक्रम अथवा प्रसारित/प्रकाशित विज्ञापन में महिलाओं के अभद्र चित्रण से सम्बंधित शिकायतें स्वीकार करेगा और उनकी जाँच करेगा.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Representation of the People (Amendment) Bill, 2017
संदर्भ
हाल ही में लोकसभा ने जनप्रतिनिधित्व संशोधन विधेयक, 2017 (Representation of the People (Amendment) Bill, 2017) को पारित कर दिया है. इस विधेयक में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में सुधार करते हुए अनिवासी भारतीयों को, सेना के मतदाताओं की भाँति “प्रॉक्सी मतदान” करने की सुविधा दी जा रही है.
ज्ञातव्य है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुभाग 20A के अंतर्गत पहले किसी भी अनिवासी भारतीय को भारत में मतदान करने के लिए शारीरिक रूप से अपने मतदान क्षेत्र में उपस्थित होना अनिवार्य होता था.
यह संशोधन क्यों?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुभाग 20A के अनुसार विदेश में रहने वाले मतदाताओं का मतदाता सूची में पंजीकरण आवश्यक था. मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 (The Registration of Electors Rules,1960) में यह प्रावधान था कि अनिवासी भारतीय मतदाता सूची में अपना नाम पासपोर्ट की स्वप्रमाणित प्रतिलिपि एवं मान्य वीजा के आधार पर दर्ज कराएँगे और मतदान के दिन अपने मूल पासपोर्ट के साथ मतदान केंद्र में उपस्थित होकर वोट डालेंगे.
इस प्रावधान के कारण विदेश में रहने वाले मतदाताओं को बड़ी असुविधा होती थी, इसलिए इस संशोधन विधेयक में यह प्रावधान किया जा रहा है कि अनिवासी भारतीय विदेश में रहते हुए भी देश में रहने वाले किसी व्यक्ति को अपनी ओर से मतदान करने के लिए प्राधिकृत कर सकेंगे —–>> (proxy voting).
प्रॉक्सी मतदान के दोष
- भारत में कई नागरिक अपने मतदान क्षेत्र से बाहर रहते हैं और मतदान के दिन उनका अपने मतदान केंद्र पर पहुँचना असुविधाजनक एवं कष्टकर होता है. ऐसे नागरिकों को प्रॉक्सी मतदान की सुविधा मिलनी चाहिए, परन्तु इस विधेयक में इस प्रकार की सुविधा केवल विदेशी भारतीयों को दी जा रही है जो न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है.
- ऐसा भी संभव है कि किसी अनिवासी भारतीय ने जिस व्यक्ति को अपनी ओर से मतदान करने के लिए प्राधिकृत किया हो वह अपनी इच्छा अनुसार मतदान कर डाले.
- कुछ विचारकों को यह डर है कि प्रॉक्सी मतों की बिक्री भी हो सकती है.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : PARIVESH
संदर्भ
भारत सरकार ने हाल ही में प्रधानमन्त्री के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की भावना को देखते हुए तथा न्यूनतम प्रशासन एवं अधिकतम सुशासन के नारे को ध्यान में रखते हुए एक समेकित वातावरणिक प्रबंधन प्रणाली विकसित की है जिसमें पर्यावरण, वन, वन्यजीवन एवं CRZ (तटीय नियामक जोन/Coastal Regulation Zone) से सम्बंधित अनुमतियाँ एक ही स्थान पर उपलब्ध करा दी जायेंगी.
PARIVESH का full form है – Pro-Active and Responsive facilitation by Interactive, Virtuous and Environmental Single-window Hub.
मुख्य तत्त्व
- परिवेश एक कार्यप्रवाह पर आधारित app है जो वेब आर्किटेक्चर (web architecture) की अवधारणा से जुड़ा हुआ है. इसके माध्यम से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) एवं राज्य स्तरीय पर्यावरणिक प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (SEIAA) को भेजी जाने वाली परियोजनाओं को ऑनलाइन जमा किया जा सकता है और उनकी ऑनलाइन निगरानी एवं उनका प्रबन्धन किया जा सकता है.
- इस app के माध्यम से केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं जिला-स्तरीय प्राधिकरणों से विभिन्न प्रकार की अनुमतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं, जैसे – पर्यावरण, वन, वन्यजीव एवं तटीय नियामक जोन से सम्बंधित अनुमतियाँ.
- यह app पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय राष्ट्रीय इन्फोर्मेटिक (NIC) के तकनीकी सहयोग से रूपांकित, विकसित एवं होस्ट किया है.
इस App के लाभ
- यह app परियोजना के अनुपालन में आई कमी को सूचित करेगा और इस प्रकार उसकी सटीक निगरानी होती रहेगी.
- परियोजनाओं से सम्बंधित मूल्यांकन समिति को भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के माध्यम से प्रस्ताव का विश्लेषण करने में सुविधा होगी. इसके द्वारा परियोजना की प्रगति के महत्त्वपूर्ण चरणों में स्वचालित अलर्ट (SMS एवं Email द्वारा) प्राप्त होंगे जिससे समिति के सदस्य एवं उच्चतर अधिकारी देर होने के कारण की समीक्षा कर सकेंगे.
- इस app के जरिये परियोजना के प्रस्तावक और सामान्य नागरिक परियोजना की प्रगति को देख सकेंगे और इस विषय में सम्बंधित अधिकारी से सम्पर्क कर सकेंगे. यह app अनुमति के पात्र ऑनलाइन उपलब्ध कराएगा.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Zero Budget Natural Farming
संदर्भ
राष्ट्रीय जैविक कृषि परियोजना (Network Project on Organic Farming -NPOF) एवं समेकित कृषि प्रणाली विषयक अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (All India Coordinated Research Projects – AICRP) के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने एक प्रयोग आरम्भ किया है जिसका नाम बासमती चावल/गेहूँ प्रणाली में शून्य बजट कृषि के चलन का मूल्यांकन (Evaluation of zero budget farming practices in basmati rice-wheat system) है.
यह प्रयोग 2017 से मोदीपुरम (उत्तर प्रदेश), लुधियाना (पंजाब), पन्तनगर (उत्तराखंड) और कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में किया जा रहा है. इस प्रयोग में यह अध्ययन किया जाता है कि शून्य बजट कृषि के चलन का उत्पादकता, अर्थशास्त्र एवं मृदा स्वास्थ्य (मृदा जैविक कार्बन एवं मृदा उर्वरता सहित) पर क्या प्रभाव पड़ता है. विदित हो कि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF) ने दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक में व्यापक सफलता प्राप्त की है, जहाँ इसे सर्वप्रथम विकसित किया गया था. कर्नाटक में यह आन्दोलन श्री सुभाष पालेकर, जिन्होंने ZBNF प्रथाओं को एक साथ रखा था और कर्णाटक राज्य रायठा संघ (KRRS – यहाँ का एक किसान संघ) जो कि ला विया कैंपसिना (LVC) का एक सदस्य है, के मध्य सहयोग से उत्पन्न हुआ था.
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि क्या है?
जैसा कि इसका नाम बताता है कि शून्य बजट प्राकृतिक कृषि वैसी खेती है जिसमें फसल को उगाने और कटाई में आने वाला खर्च शून्य होता है. ऐसा इसलिए होता है कि इस कृषि में किसान को कोई खाद अथवा कीटनाशक खरीदना नहीं पड़ता है. वह रसायनिक खाद के बदले जैविक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग करता है.
इसमें जो खाद का प्रयोग होता है वह केंचुओं, गोबर, गोमूत्र, सड़े हुए पौधों और मलमूत्र और ऐसे अन्य जैविक खाद डालते हैं. इससे न केवल किसान का खर्च बचता है अपितु मिट्टी भी खराब होने से बच जाती है.
भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के लिए क्या कर रही है?
- भारत सरकार 2015-16 से परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)और राष्ट्रीय कृषि विकास योजनाओं (RKVY) जैसी समर्पित योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को देश में बढ़ावा देती आई है.
- 2018 में PKVY से सम्बंधित मार्गनिर्देशों में सुधार करते हुए कई प्रकार की प्राकृतिक कृषि के मॉडल बताये गए हैं, जैसे – प्राकृतिक कृषि, ऋषि कृषि, वैदिक कृषि, गो कृषि, होम कृषि, शून्य बजट प्राकृतिक कृषि इत्यादि. राज्यों को कहा गया है कि वे इनमें से किसी भी कृषि को किसान की पसंद के अनुसार अपना सकती हैं.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Recently Developed Races of Silk Worm Seed
संदर्भ
हाल ही में केन्द्रीय सिल्क बोर्ड ने शहतूत एवं वन्य रेशम के लिए विकसित नई कीट प्रजातियों (races of silkworm seed of mulberry and Vanya silk ) की अधिसूचना निर्गत की है. आशा की जाती है कि इन कीटों से कोकून का उत्पादन बढ़ेगा और फलतः रेशम उद्योग में लगे किसानों की आय भी बढ़ेगी.
मुख्य तथ्य
- केन्द्रीय सिल्क बोर्ड द्वारा विकसित उष्णकटिबंधीय तसर कीट (BDR-10) प्रजाति पारम्परिक डाबा नस्ल की तुलना में 21% अधिक कोकून उत्पन्न करता है. इसके प्रयोग से किसान प्रत्येक 100 रोग रहित निषेचन (dfls) से 52 kg. तक कोकून पा सकते हैं.
- उष्णकटिबंधीय तसर कीट (BDR-10) से जिन राज्यों के आदिवासी किसान लाभान्वित होंगे, वे हैं – झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, प. बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश.
- केन्द्रीय सिल्क बोर्ड ने PM x FC2 नामक एक और कीट-प्रजाति विकसित की है जो शहतूत के पेड़ों पर लगाई जा सकती है. यह प्रजाति प्रत्येक 100 रोग मुक्त निषेचन से 60 kg. कोकून उत्पन्न कर सकती है. PM x FC2 कीट-प्रजाति पारम्परिक PM x CSR से अधिक कोकून उत्पन्न करता है. यह रेशम उच्च श्रेणी का होता है और इसमें अच्छे अंडे निकलते हैं. इसलिए यह प्रजाति कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और महाराष्ट्र के किसानों के लिए लाभदायक हैं.
- केन्द्रीय सिल्क बोर्ड के द्वारा विकसित एक अन्य प्रजाति Eri Silkworm (C2) स्थानीय नस्ल के कीट से अधिक अच्छी पाई गई है क्योंकि यह प्रत्येक 100 रोग मुक्त निषेचन से 247 कोकून दे सकती है. यह प्रजाति जिन राज्यों के किसानों के लिए उपयुक्त है, वे हैं – अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा , सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल.
केन्द्रीय सिल्क बोर्ड (CSB)
- केन्द्रीय सिल्क बोर्ड (CSB) संसद के एक अधिनियम के द्वारा 1948 में स्थापित एक वैधानिक निकाय है.
- यह भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है.
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