Sansar Daily Current Affairs, 11 May 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : What is the Collegium System and how it works?
संदर्भ
भारतीय मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने हाल ही में दो जजों के नाम की संस्तुति की है और सरकार द्वारा दिए गये दो जजों की पदोन्नति से सम्बंधित प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
पृष्ठभूमि
सरकार ने कॉलेजियम को यह सुझाव दिया था कि झारखंड उच्च न्यायालय और गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और ए.एस. बोपन्ना को सर्वोच्च न्यायालय का जज बनाने से सम्बंधित कॉलेजियम के प्रस्ताव पर फिर से विचार किया जाए. किन्तु कॉलेजियम ने सरकार का यह सुझाव नहीं माना. कॉलेजियम का कहना था कि उसने इन दोनों जजों के नाम बहुत सोच-विचार के भेजे थे. इन दोनों जजों के आचरण, क्षमता अथवा ईमानदारी के विषय में कोई प्रतिकूल सूचना नहीं है.
कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?
- उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के सम्बन्ध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं दी गई है.
- अतः यह कार्य शुरू में सरकार द्वारा ही अपने विवेक से किया जाया करता था.
- परन्तु 1990 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करना शुरू किया और एक के बाद एक कानूनी व्यवस्थाएँ दीं. इन व्यवस्थाओं के आलोक में धीरे-धीरे नियुक्ति की एक नई व्यवस्था उभर के सामने आई. इसके अंतर्गत जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की अवधारणा सामने आई.
- सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा वरिष्ठतम न्यायाधीश कॉलेजियम के सदस्य होते हैं.
- ये कॉलेजियम ही उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति के लिए नाम चुनती है और फिर अपनी अनुशंसा सरकार को भेजती है.
- सरकार इन नामों से ही न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कार्रवाई करती है.
- कॉलेजियम की अनुशंसा राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है. यदि राष्ट्रपति किसी अनुशंसा को निरस्त करते हैं तो वह वापस कॉलेजियम के पास लौट जाती है. परन्तु यदि कॉलेजियम अपनी अनुशंसा को दुहराते हुए उसे फिर से राष्ट्रपति को भेज देती है तो राष्ट्रपति को उस अनुशंसा को मानना पड़ता है.
कॉलेजियम व्यवस्था कैसे काम करती है?
- कॉलेजियम अपनी ओर से वकीलों और जजों के नामों की केन्द्रीय सरकार को अनुशंसा भेजता है. इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपनी ओर से कॉलेजियम को कुछ नाम प्रस्तावित करती है.
- कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों की केंद्र सरकार तथ्यात्मक जाँच करती है और फिर सम्बंधित फाइल को कॉलेजियम को लौटा देती है.
- तत्पश्चात् कॉलेजियम केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये नाम और सुझावों पर विचार करता है और फिर फाइल को अंतिम अनुमोदन के लिए सरकार को फिर से भेज देता है. जब कॉलेजियम फिर से उसी नाम को दुबारा भेजता है तो सरकार को उस नाम पर अनुमोदन देना पड़ता है. किन्तु सरकार कब अब अपना अनुमोदन देगी इसके लिए कोई समय-सीमा नहीं है. यही कारण है कि जजों की नियुक्ति में लम्बा समय लग जाता है.
कॉलेजियम व्यवस्था को बदलने के प्रयास
कॉलेजियम व्यवस्था कई कारणों से आलोचना का केंद्र रही है. इसलिए सरकार चाहती है कि इसे हटाकर एक ऐसी प्रणाली बनाई जाए जिसमें कॉलेजियम व्यवस्था की तरह निरंकुशता और अपारदर्शिता न हो. इस संदर्भ में
संसद ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना से सम्बंधित एक कानून पारित किया था परन्तु 16 अक्टूबर, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत इस प्रस्ताव को निरस्त करते हुए कहा था कि यह असंवैधानिक है और यह न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को चोट पहुँचेगी. न्यायालय का कहना था कि प्रस्तावित संशोधनों के कारण न्यायपालिका की स्वतंत्रता को क्षति पहुँचेगी तथा न्यायिक नियुक्तियों को कार्यपालिका के नियंत्रण से दूर रखना चाहिए.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Low density of health professionals
संदर्भ
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डेटाबेस के अनुसार भारत में वैसे तो 50 लाख स्वास्थ्यकर्मी हैं परन्तु यहाँ अभी भी ऐसे कर्मियों का “घनत्व” कम ही है अर्थात् उनकी कमी बनी हुई है.
भारत के लिए चिंता
- देश में कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है और साथ ही इनका वितरण भी असमान है.
- भारत को “स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा देने वालों का विकट अभाव” की श्रेणी में रखा गया है.
- स्वास्थ्यकर्मियों की सबसे ज्यादा कमी बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में है. जबकि दिल्ली, केरल, पंजाब और गुजरात की स्थिति बेहतर है.
- भारत में स्वास्थ्यकर्मियों की आठ श्रेणियाँ हैं, जैसे – चिकित्सक (एलोपेथिक, वैकल्पिक औषधि); नर्स और मिड-वाइफ; सार्वजनिक स्वास्थ्यकर्मी (चिकीत्सकीय, गैर-चिकीत्सकीय); फार्मेसिस्ट; दन्त चिकित्सक, पराचिकीत्सकीय कर्मी (सम्बद्ध स्वास्थ्यकर्मी); सबसे निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मी तथा सहयोग देने वाले स्टाफ.
- सरकार के 2018 के आँकड़ों के अनुसार, 18% प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में एक भी डॉक्टर नहीं है. 38% केन्द्रों पर एक भी प्रयोगशाला टेकनीशियन नहीं है और 16% में कोई फार्मेसिस्ट नहीं है.
- भारत में 10,000 लोगों पर आठ डॉक्टर हैं, जबकि 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. इस प्रकार कह सकते हैं कि यहाँ डॉक्टरों का घनत्व अनुपात बहुत कम है.
- भारत में उप-स्वास्थ्य एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 10,907 नर्सों तथा 3,673 डॉक्टरों की आवश्यकता है. इसी प्रकार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 18,422 विशेषज्ञों की आवश्यकता है.
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विश्व-भर में के देश जितना व्यय करते हैं, वह उनकी राष्ट्रीय आय का औसतन 6% होता है, परन्तु भारत में यह प्रतिशत 3% है.
- स्वास्थ्य-सुविधा की गुणवत्ता और उपलब्धता की दृष्टि से 195 देशों में भारत का स्थान 145वाँ है. इस प्रकार भारत इस मामले में बांग्लादेश और श्रीलंका से भी पीछे है.
भारत में स्वास्थ्य देखभाल उद्योग की बाधाएँ
जनसंख्या : भारत में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है जो 2015 में 1.3 बिलियन आँकी गई थी.
अवसंरचना : हमारे यहाँ अस्पताल आदि उतने नहीं हैं जिससे की पूरी जनसंख्या का ध्यान रखा जा सके. केंद्र और राज्य की सरकारें इस विषय में ठीक-ठाक सुविधाएँ देती हैं परन्तु सरकारी अस्पतालों में स्टाफ और पैसे की कमी रहती है.
बीमा : सरकार बीमा के प्रति 32% का योगदान देती है जो इंग्लैंड (83.5%) की तुलना में बहुत कम है. भारत में परिवारों को स्वास्थ्य के लिए अपनी क्षमता से अधिक खर्च करना पड़ता है जिसका प्रधान कारण है कि 76% भारतीयों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं होती.
अन्य कारण : कमजोर प्रशासन और जवाबदेही, दवाओं का अनाप-शनाप प्रयोग और उनके बढ़ते हुए दाम, स्वास्थ्य से सम्बंधित सूचना प्रणाली का टूटा-फूटा होना, सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर कम खर्च, विशाल निजी प्रक्षेत्र के अस्पतालों पर कोई नियंत्रण नहीं होना, कुशल मानव संसाधनों का असमान वितरण, कमजोर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रक्षेत्र.
वैश्विक परिदृश्य
- ऐसा देखा जाता है कि कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की कमी निम्न एवं मध्य आय वाले देशों में देखी जाती है.
- सार्वभौम स्वास्थ्य सुविधा के लिए 2030 का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य को पाने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया में स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या को 50% बढ़ाना आवश्यक है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : World Migratory Bird Day (WMBD)
संदर्भ
प्रत्येक वर्ष की भाँति 2019 में भी 11 मई को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया गया. यह आयोजन इसलिए किया जाता है कि विश्व-भर को पता चल सके कि प्रवासी पक्षियों को किन संकटों का सामना करना पड़ता है, उनका पर्यावरण में क्या महत्त्व है और उनको संरक्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की कितनी आवश्यकता है.
- विदित हो कि पहला विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 2006 में मनाया गया था.
- इसका आयोजन करने वाली संस्थाएँ हैं – प्रवासी प्रजाति संधि (Convention on Migratory Species – CMS), अफ्रीकी-यूरेशियाई जलपक्षी समझौता (African-Eurasian Waterbird Agreement – AEWA) तथा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका पर्यावरण संगठन (Environment for the Americas – EFTA).
- इस वर्ष इस दिवस की थीम थी – “पक्षियों की रक्षा करो : प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान बनो!”/ Protect Birds: Be the Solution to Plastic Pollution!
- 26 अक्टूबर, 2017 को मनीला में आयोजित प्रवासी प्रजाति संरक्षण सम्मलेन (Convention on Migratory Species – CMS) के समय विश्व प्रवासी पक्षी दिवस के आयोजकों ने यह निर्णय किया था कि इन पक्षियों के संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए संसार के दो सबसे बड़े पक्षी-विषयक अभियानों को मिलाकर एक कर दिया जाए. ये अभियान हैं – अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी पक्षी दिवस और विश्व प्रवासी पक्षी दिवस.
- 2018 से नए संयुक्त अभियान को एक ही नाम दे दिया गया और वह है विश्व प्रवासी पक्षी दिवस.
- यह भी निर्णय हुआ कि यह दिवस वर्ष में दो बार मई के दूसरे शनिवार और अक्टूबर में आयोजित होगा.
प्रवासी प्रजाति संरक्षण सम्मलेन क्या है?
यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्त्वाधान में सम्पन्न होता है. इसे बॉन संधि (Bonn Convention) कहते हैं. यह संधि एक ऐसा वैश्विक मंच प्रदान करता है जहाँ प्रवासी पशुओं के संरक्षण और सतत उपयोग एवं उनके निवास स्थलों के विषय में विचार-विमर्श होता है. इस संधि के माध्यम से उन देशों को एक मंच पर लाया जाता है जहाँ से होकर ये पशु प्रवास करते हैं.
बॉन संधि के अंतर्गत अनुसूची I में उन प्रवासी प्रजातियों की सूची दी गई है जिनपर विलुप्ति का खतरा है. अनुसूची II में उन प्रवासी प्रजातियों की सूची है जिनको अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के द्वारा बेहतर स्थिति में लाया जा सकता है.
प्रवासी प्रजातियाँ क्या है?
प्रवासी प्रजातियाँ वे पशु हैं जो वर्ष में कभी भी एक निवास-स्थल से दूसरे निवासी स्थल को चले जाते हैं. इस प्रवास का कारण मुख्यतः भोजन, धूप, तापमान, जलवायु आदि होते हैं. दो निवास स्थलों के बीच की दूरी कभी-कभी हजारों किलोमीटर से अधिक की हो जाती है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Commonwealth Tribunal
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश के.एस. राधाकृष्णन को लन्दन स्थित राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (Commonwealth Secretariat Arbitral Tribunal) का एक सदस्य चुना गया है. वे इस पद पर जून 1, 2019 से मई 31, 2023 तक अर्थात् चार वर्षों तक रहेंगे.
राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (Commonwealth Secretariat Arbitral Tribunal)
हाल ही में जस्टिस एके सीकरी ने सरकार के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिसके तहत उन्हें लंदन स्थित राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (CSAT) में नामित किया जाना था।
- राष्ट्रमंडल सचिवालय राष्ट्रमंडल की मुख्य अंतर सरकारी एजेंसी और केंद्रीय संस्थान है।
- यह सचिवालय लंदन, यूनाइटेड किंगडम में स्थित है।
- सदस्य के पद पर उस व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है जिसका नैतिक चरित्र ऊँचा रहा हो और जिसने किसी राष्ट्रमंडलीय देश में उच्चस्थ न्यायिक पद पर काम किया हो अथवा कर रहा हो. कम से कम 10 वर्षों का अनुभव रखने वाला विधि परामर्शी को भी इस पद पर नियुक्त किया जा सकता है.
- इसकी स्थापना 1965 में हुई थी और यह अपने 53 सदस्य देशों के बीच विवाद की स्थिति में एक मध्यस्थ की भूमिका निभाता है।
- राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (CSAT) में अध्यक्ष सहित कुल आठ सदस्य होते हैं।
- इस सचिवालय के सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष का होता है।
- यह न्यायाधिकरण राष्ट्रमंडलीय सचिवालय अथवा उसके किसी कर्मी अथवा इस सचिवालय से संविदा के माध्यम से जुड़े व्यक्ति द्वारा दिए गये आवेदनों की सुनवाई करता है.
- यह न्यायाधिकरण उन्हीं मामलों को हाथ में लेता है जिनमें सम्बंधित संगठन इस बात के लिए तैयार होते हैं कि वे न्यायाधिकरण के निर्णय को मानेंगे.
Prelims Vishesh
New species of reddish-brown pit viper from Arunachal Pradesh :-
- हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में लाल-भूरे रंग का पिट वाईपर नामक साँप देखा गया.
- इस साँप का वैज्ञानिक नाम है – Trimeresurus arunachalensis.
- भारत में पहले चार प्रकार के पिट वाईपर थे. इस खोज के साथ यहाँ पाँच प्रकार के पिट वाईपर हो गये हैं.
Barn owls :–
- लक्ष्यद्वीप में चूहों की संख्या इतनी बढ़ गयी है कि वहाँ नारियल के उत्पादन पर इसका असर पड़ रहा है. इसलिए लक्ष्यद्वीप सरकार ने बार्न नामक उल्लू मंगाने का निर्णय लिया है.
- विदित हो कि रात में विचरण करने वाले ये उल्लू चूहों के दुश्मन होते हैं. लक्षद्वीप में चूहे नारियल के पेड़ों के ऊपर निवास करते हैं और आसानी से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक जाते रहते हैं.
Apache Guardian attack helicopters :–
- भारतीय वायुसेना को अमेरिका से पहला अपाशे गार्डियन नामक युद्धक हेलिकॉप्टर मिल गया है.
- ऐसे 22 हेलिकॉप्टर अमेरिका से आएँगे. इन हेलिकॉप्टरों को भारतीय वायुसेना की आवश्यकता के अनुसार बनाया गया है और ये पहाड़ी क्षेत्रों में कुशलतापूर्वक काम करते हैं.
Chilika lake :–
- हाल ही में आये फणी नामक भीषण चक्रवात के कारण चिल्का झील में चार नए मुहाने बन गये हैं.
- विदित हो कि इस झील में पहले दो ही मुहाने थे.
- चिल्का झील भारत का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा बड़ा लैगून है.
- इससे बड़ा लैगून न्यू कैलेडोनिया, स्कॉटलैंड में है.
- भारतीय महाद्वीप में सबसे अधिक जलमुरगाबी (जलपक्षी) जाड़ों में चिल्का झील में ही आते हैं.
- अपने समृद्ध जैव-विविधता और पारिस्थितिकीय महत्ता के कारण चिल्का झील को को भारत की पहली “रामसर साइट” के रूप में घोषित किया गया था.
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