Sansar डेली करंट अफेयर्स, 12 February 2022

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Sansar Daily Current Affairs, 12 February 2022


GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे.

Topic : Char Dham

संदर्भ

हाल ही में, वयोवृद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने ‘चार धाम परियोजना’ (Char Dham project) पर ‘सर्वोच्च न्यायालय’ की ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (High Powered Committee – HPC) के अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा है, “उनका विश्वास था कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ इस संवेदनशील (हिमालयी) पारिस्थितिकी की रक्षा कर सकती है, जोकि अब टूट चुका है”.

संबंधित प्रकरण

27 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को सौंपे गए अपने त्याग पत्र में, पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने शीर्ष न्यायालय के दिसंबर 2021 के आदेश का उल्लेख किया, जिसमें ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (HPC) द्वारा की गयी सिफारिशों को ‘सर्वोच्च न्यायालय’ द्वारा सितंबर 2020 में जारी पहले आदेश में स्वीकार किए जाने, तथा बाद में HPC की संस्तुतिओं को लागू करने की बजाय ‘रक्षा जरूरतों को पूरा करने’ का हवाला देकर सड़क मार्ग को चौड़ा करने के लिए सरकार की मांग को स्वीकार कर लिया गया था.

इस प्रकरण में न्यायालय की कार्यवाही

  • वर्ष 2018 में, इस परियोजना को एक ‘गैर सरकारी संगठन’ द्वारा पेड़ों की कटाई, पहाड़ियों को काटने और खुदाई की गई सामग्री को डंप करने’की वजह से हिमालयी पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले इसके संभावित प्रभाव के कारण चुनौती दी गई थी.
  • वर्ष 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परियोजना से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए ‘रवि चोपड़ा’ का अध्यक्षता एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (HPC) का गठन किया गया, और न्यायालय ने सितंबर 2020 में, सड़क की चौड़ाई आदि पर समिति द्वारा दी गयी सिफारिश को स्वीकार कर लिया.
  • नवंबर 2020 में, रक्षा मंत्रालय ने सेना की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सड़कों को चौड़ा करने की मांग की.
  • दिसंबर 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2020 के अपने आदेश को इस आधार पर संशोधित किया कि न्यायालय “राष्ट्र की रक्षा हेतु कानून द्वारा निर्धारित संस्था की नीतिगत पसंद पर पूछताछ नहीं कर सकती”.

चारधाम परियोजना क्या है?

  • इस परियोजना के अंतर्गत 900 किलोमीटर का राजमार्ग बनाया जाएगा जो हिंदू तीर्थ –गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ – को जोड़ेगा. इस पर अनुमानित खर्च 12,000 करोड़ रु. होगा.
  • इस राजमार्ग को चारधाम महामार्ग कहा जाएगा और इसके निर्माण की परियोजना का नाम चारधाम महामार्ग विकास परियोजना (Char Dham Highway Development Project) होगा.
  • इस परियोजना के अन्दर वर्तमान सड़कों की चौड़ाई को 12 मीटर से बढ़ाकर 24 मीटर किया जाएगा. इसके अतिरिक्त कई स्थानों पर सुरंग, बाइपास, पुल, भूमिगत मार्ग एवं जल-निकास बनाए जाएँगे.

चारधाम तीर्थयात्रा परियोजना

  • भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की एक मूर्धन्य परियोजना है उत्तराखंड में स्थित तीर्थस्थानों – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ – को जोड़ने वाला एक चार मार्गों वाला एक्सप्रेस वे का निर्माण करना.
  • इस एक्सप्रेस वे की सम्पूर्ण लम्बाई 900 किलोमीटर की होगी. परन्तु कुछ पर्यावरणवादियों ने इस योजना का यह कहते हुए विरोध किया है कि इससे प्रदेश का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जायेगा. इसके लिए इन पर्यावरणवादियों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दे रखी थी.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

Chardham tunnel :-

  • बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) ने प्रतिष्ठित चारधाम परियोजना के तहत ऋषिकेश-धरासू हाईवे (NH-94) पर घनी आबादी वाले चंबा शहर के नीचे सुरंग निर्माण में सफलता हासिल कर ली है.
  • सुरंग बनाने का कार्य जनवरी 20019 में शुरू हुआ था. निर्धारित तिथि जनवरी 2021 से तीन माह पहले यातायात के लिए यह सुरंग खुल जाएगी सुरंग यानी अक्टूबर 2020 में सुरंग से यातायात शुरू हो जाएगा.
  • ऋषिकेश-धरासू राष्ट्रीय राजमार्ग पर चंबा नगर में आमतौर पर जाम जैसी स्थिति पैदा हो जाती है. जाम से निपटने के लिए चंबा शहर के ठीक नीचे से चारधाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत सुंरग का निर्माण किया जा रहा है.
  • इस टनल के बनने से न केवल गंगोत्री, यमुनोत्री का सफर आसान होगा, बल्कि चंबा को जाम से मुक्ति भी मिलेगी.
  • चारधाम परियोजना से उत्तराखंड में दुनिया भर के सैलानियों की सालभर चहलकदमी बनी रहेगी, जिससे राज्य वासियों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.

GS Paper 2 Source : PIB

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UPSC Syllabus: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना.

Topic : Anti-defection law

संदर्भ

हाल ही में, पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी द्वारा विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी द्वारा दायर की गयी एक याचिका को खारिज कर दिया गया. याचिका में, चुनाव के उपरांत दल बदलने के लिए ‘दलबदल-रोधी कानून’(Anti-defection law) के तहत ‘मुकुल रॉय’ को विधायक के रूप में अयोग्य / निर्हरक घोषित करने की मांग की गई थी.

  • भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ‘मुकुल रॉय’ पिछले साल जून में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे.
  • विधानसभा अध्यक्ष फैसले के मद्देनजर, मुकुल रॉय अब सदन में भाजपा विधायक के रूप में बने रहेंगे.

उच्च न्यायालय का निर्णय

उच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष से मुकुल राय को सदन के सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराए जाने की याचिका पर सात अक्टूबर तक फैसला लेने को कहा था.

  • न्यायालय ने कहा था, कि यदि विधानसभा अध्यक्ष उपरोक्त तिथि तक कोई फैसला लेने में असफल रहते हैं तो न्यायालय इस मामले पर फैसला करेगी.
  • यहां तक ​​कि, सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्पीकर द्वारा अयोग्यता याचिका पर जल्द फैसला लेने की उम्मीद जताई थी.

दल-परिवर्तन विरोधी कानून के बारे में

  1. दल-परिवर्तन विरोधी कानून को पद संबंधी लाभ या इसी प्रकार के अन्य प्रतिफल के लिए होने बाले राजनीतिक दल-परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था.
  2. इसके लिए, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी.
  3. यह उस प्रक्रिया को निर्धारित करता है जिसके द्वारा विधायकों/सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दायर याचिका के आधार पर विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराया जा सकता है.
  4. इसके अंतर्गत किसी विधायक/सांसद को निर्योग्य माना जाता हैयदि उसने-
  • या तो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है; या
  • सदन में मतदान के समय अपने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों की अनुज्ञा की है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई सदस्य किसी भी मुद्दे पर पार्टी के व्हिप के विरुद्ध (अर्थात्‌ निदेश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से विरत रहता है) कार्य करता है तो वह सदन की अपनी सदस्यता खो सकता है.
  1. यह अधिनियम संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों पर लागू होता है.

Read more about it: 52 amendment in Hindi

इस अधिनियम के तहत अपवाद

सदस्य निम्नलिखित कुछ परिस्थितियों में निर्योग्यता के जोखिम के बिना दल परिवर्तन कर सकते हैं.

  • यह अधिनियम एक राजनीतिक दल को अन्य दल में विलय की अनुमति देता है, यदि मूल राजनीतिक दल के दो-तिहाई सदस्य इस विलय का समर्थन करते हैं.
  • यदि किसी व्यक्ति को लोक सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी राज्य की विधान परिषद्‌ का सभापति या उपसभाषपति चुना जाता है, तो वह अपने दल से त्यागपत्र दे सकता है या अपने कार्यकाल के पश्चात्‌ अपने दल की सदस्यता पुनः ग्रहण कर लेता है.
अध्यक्ष की भूमिका में परिवर्तन की आवश्यकता क्‍यों है?

अध्यक्ष के पद की प्रकृति:चूँकि अध्यक्ष के पद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है, इसलिए अध्यक्ष पुन: निर्वाचित होने के लिए अपने राजनीतिक दल पर निर्भर रहता है. अतः यह स्थिति अध्यक्ष को स्वविवेक के बजाए सदन की कार्यवाही को राजनीतिक दल की इच्छा से संचालित करने का मार्ग प्रशस्त करती है.

पद से संबंधित अंतर्निहित विरोधाभास: उल्लेखनीय है कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से या तो नाममात्र (डी ज्यूर) या वास्तविक (डी फैक्टो) रूप से संबंधित होता है तो उस स्थिति में एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर उसे (अध्यक्ष) निर्योग्यता संबंधी याचिकाएं सौपना युक्तिसंगत और तार्किक प्रतीत नहीं होता है.

दल-परिवर्तन विरोधी कानून के तहत निर्योग्यता के संबंध में अध्यक्ष द्वारा किए जाने वाले निर्णय से संबंधित विलंब पर अंकुश लगाने हेतु: अध्यक्ष के समक्ष लंबित निर्योग्यता संबंधी मामलों के निर्णय में विलंब के कारण, प्राय: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां सदस्यों को अपने दलों से निर्योग्य घोषित किए जाने पर भी वे सदन के सदस्य बने रहते हैं.

मेरी राय – मेंस के लिए

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की “शासन में नैतिकता” नामक शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में और विभिन्न अन्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा सिफारिश की गई है कि सदस्यों को दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराने के मुद्दों के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाना चाहिए.
  • जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है, जब तक कि “असाधारण परिस्थितियां” उत्पन्न नहीं हो जाती हैं, दसवीं अनुसूची के तहत निर्योग्यता संबंधी याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा तीन माह के भीतर निर्णय किया जाना चाहिए.
  • संसदीय लोकतंत्र के अन्य मॉडलों/उदाहरणों का अनुसरण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यक्ष तटस्थ रूप से निर्णय कर सके. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में यह परिपाटी रही है कि आम चुनावों के समय राजनीतिक दल अध्यक्ष के विरुद्ध निर्वाचन हेतु किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करते हैं और जब तक अन्यथा निर्धारित नहीं हो जाता, अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है. वहां यह भी परिपाटी है कि अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल की सदस्यता से त्याग-पत्र दे देता है.
  • वर्ष 1951 और वर्ष 1953 में, भारत में विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में इस ब्रिटिश मॉडल को अपनाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया था.
  • हालाँकि, पहले से ही विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के मध्य इस बात पर चर्चा चल रही है कि विशेष रूप से सदस्यों के दल परिवर्तन से संबंधित मामलों में, अध्यक्ष के पद की “गरिमा” को कैसे सुरक्षित किया जाए. इस संदर्भ में, लोकतांत्रिक परंपरा और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि एक सतर्क संसद, दक्षतापूर्ण कार्य करने वाले लोकतंत्र की नींव का निर्माण करती है और पीठासीन अधिकारी इस संस्था की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.

 

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

  • दिनेश गोस्वामी समिति: वर्ष 1990 में चुनावी सुधारों को लेकर गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा था कि दल-बदल कानून के तहत प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने का निर्णय चुनाव आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा लिया जाना चाहिये.संबंधित सदन के मनोनीत सदस्यों को उस स्थिति में अयोग्य ठहराया जाना चाहिये यदि वे किसी भी समय किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं.
  • विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट:वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव से पूर्व दो या दो से अधिक पार्टियाँ यदि गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं तो दल-बदल विरोधी प्रावधानों में उस गठबंधन को ही एक पार्टी के तौर पर माना जाए. राजनीतिक दलों को व्हिप (Whip) केवल तभी जारी करनी चाहिये, जब सरकार की स्थिरता पर खतरा हो. जैसे- दल के पक्ष में वोट न देने या किसी भी पक्ष को वोट न देने की स्थिति में अयोग्य घोषित करने का आदेश.

GS Paper 3 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.

Topic : India’s difficult transition from fossil fuels to net-zero emissions

संदर्भ

रूस और सऊदी अरब जैसे ऊर्जा-संपन्न देश, भारत के उर्जा क्षेत्र के बढ़ते बाजार में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं.

  • ‘पेट्रोलियम-निर्यातक देशों के संगठन’ (Organisation of the Petroleum-Exporting Countries – OPEC) के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 में वैश्विक रूप से तेल की मांग 44 मिलियन बैरल प्रति दिन (mb/d) थी जोकि वर्ष 2022 में बढ़कर 100.59 मिलियन बैरल प्रति दिन हो जाएगी.
  • अतः, बढ़ती कीमतों का मुकाबला करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, भारत को ‘जीवाश्म ईंधन’ से हटकर एक परिवर्तन रणनीति की आवश्यकता है.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

भारत को ‘जीवाश्म ईंधन’ का विकल्प तलाशने की आवश्यकता

  • भारत, 85% तेल और अपनी ईंधन संबंधी आधी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर रहता है. वर्तमान में भारत अपने मौजूदा क्षेत्रों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करके तेल उत्पादन में 20% तक की वृद्धि कर सकता है, लेकिन इससे अधिक के लिए, अन्य महत्वपूर्ण खोजों की आवश्यकता है, जोकि लंबे समय से नहीं हुई हैं.
  • खपत में होने वाली वृद्धि को देखते हुए, खाना पकाने का ईंधन भारत के लिए नया अतिसंवेदनशील नया विषय हो सकता है. लेकिन इसकी वैश्विक आपूर्ति निकट भविष्य में बढ़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि नए रिफाइनर ‘पेट्रोकेमिकल्स’ के निर्माण को प्राथमिकता दे सकते हैं. इसलिए, भारत को एलपीजी के बदले इलेक्ट्रिकल, फोटो वोल्टाइक, ईंधन या बायोगैस जैसे विकल्पों की खोज करनी चाहिए.
  • इस प्रकार सभी हितधारकों को तेल और प्राकृतिक गैस के संकुचित दृष्टिकोण के माध्यम से ही कार्यशील होने की आवश्यकता नहीं है. उन्हें अपने दायरे का विस्तार करना चाहिये और ऊर्जा संक्रमण/रूपांतरण का अगुवा बनने का प्रयास करना चाहिये.
  • यदि स्वच्छ ऊर्जा ढाँचे के अंदर प्राथमिकताएँ विकसित की जाती हैं तो पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की नीतिगत दुविधाएँ दूर हो सकती हैं.

GS Paper 3 Source : PIB

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UPSC Syllabus: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास.

Topic : India’s difficult transition from fossil fuels to net-zero emissions

संदर्भ

सरकार ने अनुसंधान और विकास, रक्षा और सुरक्षा उद्देश्यों को छोड़कर ड्रोन के आयात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है.

  • इस कदम का उद्देश्य ‘मेड इन इंडिया ड्रोन’ को प्रोत्साहन देना है.
  • हाल ही में, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के ‘विदेश व्यापार महानिदेशालय’ ने इस संबंध में ‘भारतीय व्यापार वर्गीकरण (सामंजस्यपूर्ण प्रणाली), 2022’ (Indian Trade Classification (Harmonised System), 2022) को अधिसूचित किया है.

प्रमुख बिंदु

  • अनुसंधान एवं विकास, रक्षा और सुरक्षा, उद्देश्यों हेतु ड्रोन आयात करने के लिए छूट प्रदान की गयी है, किंतु इसके लिए “उपयुक्त मंजूरी” लेना आवश्यक होगा.
  • हालांकि, ड्रोन के पुर्जों के आयात के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

भारत आक्रामक क्षमता बढ़ाने के लिए ड्रोन हासिल करने की कोशिशें कर रहा है. भारतीय सेना जासूसी ड्रोन का इस्तेमाल कई सालों से कर रही है. भारत की ड्रोन सेना में अधिकतर ड्रोन इसराइल निर्मित हैं.

हालांकि हाल के सालों में भारत ने इसराइल और अमेरिका जैसे देशों के साथ जो गठजोड़ किए हैं उनसे संकेत मिलते हैं कि भारत मानवरहित विमानों के ज़रिए दुश्मन के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता हासिल करने पर ज़ोर दे रहा है.

हाल के सालों में क्षेत्र में जो सुरक्षा हालात बने हैं उनके मद्देनज़र ये भारत की ज़रूरत भी बन गया है.

वर्तमान समय में ड्रोन तकनीक अपने विकास के एक नए दौर से गुज़र रही है जिसके कारण यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि इसका प्रयोग मानव जाति की सहायता एवं उसके हित के लिये ही हो, न कि असामाजिक तत्त्वों द्वारा मानवीय हितों को नुकसान पहुँचाने के लिये.


Prelims Vishesh

International Labour Organisation – ILO :-

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organisation – ILO)  की स्थापना, प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के लिए एक एजेंसी के रूप में की गयी थी.
  • इसे वर्ष 1919 में ‘वर्साय की संधि’ (Treaty of Versailles) द्वारा स्थापित किया गया था.
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’, वर्ष 1946 में ‘संयुक्त राष्ट्र’ (United Nations UN) की पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया.
  • वर्ष 1969 में इसके लिए ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया.
  • यह संयुक्त राष्ट्र की ऐसी एकमात्र त्रिपक्षीय एजेंसी है, जिसमे सरकारें, नियोक्ता और श्रमिक एक साथ शामिल होते है.
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड.

इसके द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्ट्स:

  1. विश्व रोजगार और सामाजिक आउटलुक (World Employment and Social Outlook)
  2. वैश्विक वेतन रिपोर्ट (Global Wage Report)

Milan 2022 :-

  • भारत द्वारा आयोजित एक बहुपक्षीय नौसेना अभ्यास, ‘मिलन’(MILAN) की शुरुआत, चार तटवर्ती नौसेनाओं की भागीदारी के साथ 1995 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हुई थी.
  • मित्र नौसेनाओं का यह द्विवार्षिक युद्धाभ्यास, पिछले ढाई दशकों में, उत्तरोत्तर परिमाण में विस्तारित हुआ है, 2018 में आयोजित पिछले संस्करण में 17 देशों ने भाग लिया था.
  • मिलन 2022 पहली बार ‘नियति के शहर’ विशाखापत्तनम में आयोजित किया जाएगा. मिलन 2022, इस युद्धाभ्यास का ग्यारहवां संस्करण है और इसे पूर्वी नौसेना कमान के तत्वावधान में आयोजित किया जाएगा.
  • पहली बार इस युद्धाभ्यास को अंडमान की बजाय ‘विजाग’ में स्थानांतरित किया गया है.

 

 

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