Sansar Daily Current Affairs, 12 July 2021
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : ‘Right to Repair’ Movement
संदर्भ
हाल के वर्षों में दुनिया के कई देशों में एक प्रभावी ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून को पारित करने की कोशिश की जा रही है.
राइट-टू-रिपेयर आंदोलन क्या है?
- ‘राइट-टू-रिपेयर’ (Right to Repair) अर्थात् ‘मरम्मत करने का अधिकार’, उपभोक्ताओं को अपने इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों की मरम्मत स्वयं करने के लिए सक्षम बनाता है.
- इस आंदोलन का लक्ष्य कंपनियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों के स्पेयर पार्टों, उपकरण तथा इनको ठीक करने के लिए उपभोक्ताओं और मरम्मत करने वाली दुकानों को जरूरी जानकारी प्रदान करवाना है, जिससे इन उत्पादों के जीवन-काल में वृद्धि हो सके और इन्हें कचरे में जाने से बचाया जा सके.
- इस आंदोलन की जड़ें 1950 के दशक में कंप्यूटर युग की शुरुआत से जुडी हुई हैं.
आंदोलन की शुरुआत के कारण एवं उद्देश्य
इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के निर्माताओं द्वारा ‘एक नियोजित अप्रचलन’ (Planned Obsolescence) की संस्कृति को प्रोत्साहित किया जा रहा है – जिसका अर्थ है कि उपकरणों को विशेष रूप से सीमित समय तक काम करने और इसके पश्चात् इन्हें बदले जाने के लिए डिज़ाइन किया जाता है.
- इससे पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव पड़ता है और प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय होता है.
- इसके अतिरिक्त, उपभोक्ताओं को अक्सर उत्पाद निर्माताओं की मेहरबानी पर छोड़ दिया जाता है, और ये उत्पाद निर्माता यह निर्धारित करते हैं कि इन उपकरणों को कौन ठीक कर सकता है.
- इस प्रकार अधिकतर लोगों के लिए उपकरणों की मरम्मत करवाना काफी महंगा और कठिन हो जाता है.
‘राइट-टू-रिपेयर’ के लाभ
- रिपेयर/मरम्मत करने वाली छोटी दुकानें स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण भाग होती हैं, इस अधिकार को दिये जाने से इन दुकानों के कारोबार में बढ़ोतरी होगी.
- यह ई-कचरे की इतने अधिक मात्रा को कम करने में सहायता करेगा जो कि महाद्वीप पर हर साल बढ़ता जा रहा है.
- यह उपभोक्ताओं को पैसा बचाने में सहायता करेगा.
- यह उपकरणों के जीवनकाल, रख-रखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार कर चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा.
विभिन्न देशों में ‘राइट-टू-रिपेयर’ कानून
- हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कि हैं. इस आदेश में ‘फ़ेडरल ट्रेड कमीशन’ से, उपभोक्ताओं के अपनी शर्तों पर अपने उपकरण की मरम्मत करने पर निर्माताओं द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर लगाम लगाने के लिए कहा गया है.
- ब्रिटेन में ‘राइट-टू-रिपेयर’ नियम लागू किए गए हैं जिनके अंतर्गत टीवी और वाशिंग मशीन जैसे दैनिक उपयोग के उपकरणों का क्रय और उनकी मरम्मत करना बहुत ही सरल हो जाएगा.
आंदोलन का विरोध
इस आंदोलन को गत कुछ वर्षों में एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे तकनीकी दिग्गजों के जबरदस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है.
- इनका तर्क यह है कि अपनी बौद्धिक संपदा को, तीसरे पक्ष की मरम्मत सेवाओं या शौकिया मरम्मत करने वालों के लिए खोलने से उनका शोषण हो सकता है और उनके उपकरणों की विश्वसनीयता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है.
- इन कंपनियों द्वारा यह तर्क भी दिया जाता है कि इस प्रकार की पहल से डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization, of resources, growth, development and employment.
Topic : The surging fuel prices are pushing up inflation
संदर्भ
हाल ही में रेटिंग एजेंसी ICRA (A moody’s investors company) ने कहा है कि विभिन्न उपकरों में कमी करके, ईंधन के रिकॉर्ड मूल्यों में कटौती की संभावना है, जिससे कुल मुद्रास्फीति के स्तर को RBI द्वारा निर्धारित 6% की ऊपरी सीमा के आस-पास रखा जा सके.
ज्ञातव्य है कि गत कुछ वर्ष से पेट्रोल-डीजल के दाम में अनवरत वृद्धि हो रही है और पेट्रोल की प्रति लीटर कीमत कई राज्यों में 100 रु. को पार कर गई है.
भारत में पेट्रोल-डीजल कीमतों का मूल्य निर्धारण
भारत में पेट्रोल, डीजल की आवश्यकता का लगभग 85% विदेशों से आयात किया जाता है. अतः वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ता है. कच्चे तेल की कीमतों मेँ वृद्धि होने पर तत्काल प्रभाव से पेट्रोल, डीजल के मूल्यों में तो वृद्धि हो जाती है, लेकिन जब कच्चे तेल की कीमतों में कमी आती है तब उसका लाभ अंतिम उपभोक्ता को नहीं मिलता है तथा कीमतें जस की तस बनी रहती है. भारत में मिलने वाले पेट्रोल डीजल की कीमतों मेँ लगभग दो तिहाई हिस्सा केंद्र और राज्य द्वारा लगाये गये करों, क्रमशः उत्पाद शुल्क और मूल्य वर्धित कर (VAT) का होता है तथा शेष भाग आधार मूल्य और डीलर कमीशन तथा अन्य किसी उपकर का होता है.
उदाहरण के तौर पर जब अप्रैल 2020 में जब कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में भारी कमी आई तब भारत में पेट्रोल-डीजल के दामों में भी कमी आनी चाहिए थी, लेकिन तब कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का लाभ उठाने के लिए केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में क्रमश: ₹13 प्रति लीटर और ₹16 प्रति लीटर की वृद्धि कर दी. इससे पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क ₹19.98 प्रति लीटर से ₹32.98 और डीजल पर ₹15.83 से ₹31.83 प्रति लीटर हो गया. लेकिन जब कच्चे तेल के दाम वापस बढ़े, तब इस कर में कमी नही की, इससे अंतिम उपभोक्ता के लिए पेट्रोल डीजल के दाम अधिक ही रहे.
इस वित्त वर्ष में पेट्रोल-डीजल पर उपकरों से सरकार को 3.6 लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 40,000 करोड़ अधिक है. इस तरह अगर सरकार केवल अतिरिक्त आय को छोड़ दे तो पेट्रोल-डीजल के मूल्य में 4.5 रूपये प्रति लीटर की कमी की जा सकती है.
वर्ष 2014 के मूल्यों और करों की दर से वर्ष 2021 के मूल्य एवं कर की दरों की तुलना की जाये तो जहाँ पेट्रोल के आधार मूल्य में 24% की कमी आई है, वहीं केंद्र सरकार के राजस्व में 216% की बढ़ोतरी हुई है.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Awareness in the fields of IT, Space, Computers, robotics, Nano-technology, biotechnology and issues relating to intellectual property rights.
Topic : BharatNet Project
संदर्भ
हाल ही में. केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा देश के 16 राज्यों में ‘सार्वजनिक-निजी भागीदारी’ (77) के माध्यम से भारतनेट परियोजना की संशोधित कार्यान्वयन रणनीति को मंजूरी प्रदान की गई है. संशोधित रणनीति में पीपीपी मॉडल के तहत संचालन, रख-रखाव, उपयोग और राजस्व सृजन के लिए निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ उठाया जाएगा और इसके परिणामस्वरूप भारतनेट की सेवा तीव्र गति से प्राप्त होने की उम्मीद है. सरकार के द्वारा इसके लिए “व्यवहार्यता अंतर निधि” (Viability Gap Funding) के रूप में 19,041 करोड़ रुपये आवंटित किए गये हैं, इसके साथ भारतनेट परियोजना पर कुल खर्च बढ़कर 61,109 करोड़ रुपये पर पहुँच जाएगा.
भारतनेट परियोजना
यह विश्व का सबसे बड़ा ग्रामीण broadband सम्पर्क का कार्यक्रम है. यह शत-प्रतिशत Make in India के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है अर्थात् इसमें कोई विदेशी कंपनी का सहयोग नहीं लिया जा रहा है है. इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य मौजूदा ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क को पंचायत स्तर तक पहुँचा देना है. सरकार ने इस नेटवर्क को दूरसंचार सेवा के लिए उपलब्ध कराया है और ग्रामीण क्षेत्रों में आवाज, डेटा और वीडियो के संचरण के लिए एक राजमार्ग के रूप में नेटवर्क की परिकल्पना की है. इस परियोजना का उद्देश्य राज्यों और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करके ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में नागरिकों और संस्थानों को सस्ती ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करना है.
BharatNet परियोजना का तीसरा चरण 2019 से 2023 तक चलाने का प्रस्ताव है. इसमें निम्लिखित प्रावधान (provisions) किए जायेंगे –
- अत्याधुनिक नेटवर्क जो भविष्य में किसी तकनीकी खराबी से मुक्त होगा.
- जिलों और प्रखंडों के बीच में fiber cables बिछाये जायेंगे.
- इसमें ring topology का उपयोग किया जायेगा जिससे कि व्यर्थ का संचरण रोका जाए.
भारतनेट के द्वारा डाली हुई broadband से भारत सरकार की अन्य योजनाओं को चलाने में भी सहायता मिलेगी, जैसे – भारतमाला, सागरमाला, समर्पित भारवाहक कॉरिडोर (Dedicated Freight Corridors), औद्योगिक कॉरिडोर, उड़ान (UDAN-RCS), Digital India आदि.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.
Topic : Goods and Services Tax (GST) system completes 4 years
संदर्भ
1 जुलाई को वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली के 4 वर्ष पूरे हो गए. इस दौरान GST के क्रियान्वयन के मिश्रित परिणाम देखने को मिले हैं. जहाँ आरंभिक वर्षों में कर संग्रह में अस्थिरता के कारण राजस्व संग्रह में गिरावट आई तो GST मुआवजे के मुद्दे को लेकर संघ-राज्य विवाद भी उठे. दूसरी ओर GST परिषद् की कार्यप्रणाली से कई अहम मुद्दों का निपटारा किया गया तथा कर की दरों को परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करते हुए लचीलापन दर्शाया गया.
वस्तु एवं सेवा कर (GST) से संबंधित प्रमुख तथ्य
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) एक अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है, जिसे 1 जुलाई, 2017 से लागू किया गया. इसे लागू करने के लिए भारतीय संविधान में 101वाँ संशोधन किया गया.
- किसी वस्तु की पूरी विनिर्माण शृंखला के दौरान विभिन्न चरणों में होने वाले सभी लेनदेनों, मूल्य वर्धन पर GST लगाया जाता है. जबकि पहले की व्यवस्था में केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) लगाती थी, राज्य सरकार द्वारा मूल्य संवर्धन कर (VAT) लगाये जाते थे.
- जिस राज्य में उत्पादन/विनिर्माण होता है, तो इन चरणों में लगने वाला GST उसी राज्य को मिलता है.
- इसके अलावा यह एक गंतव्य आधारित कर भी है, जो किसी वस्तु की अंतिम बिक्री वाले राज्य में वसूला जाता है.
- इसमें 3 प्रकार के कर शामिल होते हैं- सीजीएसटी: जहां केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाता है, एसजीएसटी: राज्य में बिक्री के लिए राज्य सरकारों द्वारा राजस्व एकत्र किया जाता है, आईजीएसटी: जहां अंतरराज्यीय बिक्री के लिए केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाता है|
- केन्द्रीय वित्त मंत्री एवं राज्यों के वित्त मंत्रियों से मिलकर बनी जीएसटी परिषद् ने विभिन्न बैठकों के बाद 5 तरह के कर निर्धारित किये हैं: 0, 5, 12, 18 एवं 28 प्रतिशत.
- सरकार के अनुसार 81 प्रतिशत वस्तुएँ, सेवाएँ जीएसटी की 18 प्रतिशत की श्रेणी के भीतर आती हैं.
GSTN क्या है? Agni Prime :- Indira Gandhi Canal (IGC) :- Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Current Affairs Hindi June,2021 Sansar DCA is available Now, Click to Downloadइस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Prelims Vishesh