Sansar Daily Current Affairs, 12 March 2021
GS Paper 1 Source : PIB
UPSC Syllabus : The Freedom Struggle – its various stages and important contributors /contributions from different parts of the country.
Topic : Dandi March
संदर्भ
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मार्च को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से “पदयात्रा’ (फ्रीडम मार्च) को झंडी दिखाई तथा “आजादी का अमृत महोत्सव” India@75 के पूर्वावलोकन कार्यकलापों का उद्घाटन किया.
उल्लेखनीय है कि आज ही के दिन सन् 1930 में गांधीजी ने साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दांडी के लिए पदयात्रा आरंभ की तथा 24 दिनों में 240 किमी की पद यात्रा के पश्चात 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे और 6 अप्रैल को गांधीजी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर कानून तोड़ा.
दांडी यात्रा
गाँधीजी के नमक-सत्याग्रह से सारा भारत आंदोलित हो उठा. 12 मार्च, को सबेरे साढ़े छः बजे हजारों लोगों ने देखा कि गाँधीजी आश्रम के 78 स्वयंसेवकों सहित दांडी-यात्रा पर निकल पड़े हैं. दांडी उनके आश्रम से 241 मील दूर समुद्र किनारे बसा एक गाँव है. गाँधीजी ने सब देशवासियों को छूट दे दी कि वे अवैध रूप से नमक बनाएँ. वह चाहते थे कि जनता खुले आम नमक कानून तोड़े और पुलिस कार्यवाही के सामने अहिंसक विरोध प्रकट करे. पर अंग्रेजों ने लाठियाँ बरसायीं. स्वयंसेवकों में से दो मारे गए और 320 घायल हुए. गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया. जब वह यरवदा जेल में शांतिपूर्वक बैठे हुए थे, सारे देश में सविनय अवज्ञा के कारण ब्रिटिश सरकार की नाकों में दम था. जेलों में बाढ़-सी आ गई थी.
दांडी मार्च की तुलना पेरिस यात्रा से
सुभाष चन्द्र बोस ने दांडी मार्च तुलना नेपोलियन के एल्बा से लौटने पर पेरिस यात्रा से की. गाँधीजी ने 6 अप्रैल को नमक उठाकर कानून तोड़ा. सारे देश के समक्ष उन्होंने यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया –
- गाँव-गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए.
- बहनों को शराब, अफीम और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देना चाहिए.
- विदेसही वस्त्रों को जला देना चाहिए.
- छात्रों को स्कूलों का त्याग करना चाहिए.
- सरकारी नौकरों को अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे देना चाहिए. 4 मई, 1930 ई. को गाँधीजी की गिरफ्तारी के बाद कर बंदी को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया.
और भी अधिक डिटेल में पढ़ें > सविनय अवज्ञा आन्दोलन
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Anti-Defection Law
संदर्भ
पिछले कुछ वर्षों में देश में दल-बदल की स्थिति पर रिपोर्ट हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा जारी रिपोर्ट में पिछले 5 सालों में अपने राजनीतिक दल को छोड़कर दूसरे दल से पुन: चुनाव लड़ने वाले 443 सांसद, विधायकों के बारे में जानकारी सामने आई है.
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- विभिन्न राज्यों से राजनीतिक दल को छोड़ने वाले 405 विधायकों में से 42% कांग्रेस के थे, जबकि केवल 4.4% भाजपा से थे, जो कि ऐसे विधायकों की संख्या में मामले मे दूसरे स्थान पर थी.
- अपने राजनीतिक दल को छोड़कर पुन: चुनाव लड़ने वाले विधायकों में से 44% ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा.
- अपना दल छोड़कर पुनः चुनाव लड़ने वाले विधायकों के एफिडेविट में सामने आया है कि उनकी सम्पत्ति में 39% की वृद्धि हुई.
- पिछले कुछ समय में मध्यप्रदेश, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक की सरकारों के गिरने के पीछे कारण, विधायकों का अपने राजनीतिक दलों को छोड़ना रहा.
दल-परिवर्तन विरोधी कानून के बारे में
- दल-परिवर्तन विरोधी कानून को पद संबंधी लाभ या इसी प्रकार के अन्य प्रतिफल के लिए होने बाले राजनीतिक दल-परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था.
- इसके लिए, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी.
- यह उस प्रक्रिया को निर्धारित करता है जिसके द्वारा विधायकों/सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दायर याचिका के आधार पर विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराया जा सकता है.
- इसके अंतर्गत किसी विधायक/सांसद को निर्योग्य माना जाता है, यदि उसने-
- या तो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है; या
- सदन में मतदान के समय अपने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों की अनुज्ञा की है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई सदस्य किसी भी मुद्दे पर पार्टी के व्हिप के विरुद्ध (अर्थात् निदेश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से विरत रहता है) कार्य करता है तो वह सदन की अपनी सदस्यता खो सकता है.
- यह अधिनियम संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों पर लागू होता है.
Read more about it: 52 amendment in Hindi
इस अधिनियम के तहत अपवाद
सदस्य निम्नलिखित कुछ परिस्थितियों में निर्योग्यता के जोखिम के बिना दल परिवर्तन कर सकते हैं.
- यह अधिनियम एक राजनीतिक दल को अन्य दल में विलय की अनुमति देता है, यदि मूल राजनीतिक दल के दो-तिहाई सदस्य इस विलय का समर्थन करते हैं.
- यदि किसी व्यक्ति को लोक सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् का सभापति या उपसभाषपति चुना जाता है, तो वह अपने दल से त्यागपत्र दे सकता है या अपने कार्यकाल के पश्चात् अपने दल की सदस्यता पुनः ग्रहण कर लेता है.
अध्यक्ष की भूमिका में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है?
अध्यक्ष के पद की प्रकृति: चूँकि अध्यक्ष के पद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है, इसलिए अध्यक्ष पुन: निर्वाचित होने के लिए अपने राजनीतिक दल पर निर्भर रहता है. अतः यह स्थिति अध्यक्ष को स्वविवेक के बजाए सदन की कार्यवाही को राजनीतिक दल की इच्छा से संचालित करने का मार्ग प्रशस्त करती है.
पद से संबंधित अंतर्निहित विरोधाभास: उल्लेखनीय है कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से या तो नाममात्र (डी ज्यूर) या वास्तविक (डी फैक्टो) रूप से संबंधित होता है तो उस स्थिति में एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर उसे (अध्यक्ष) निर्योग्यता संबंधी याचिकाएं सौपना युक्तिसंगत और तार्किक प्रतीत नहीं होता है.
दल-परिवर्तन विरोधी कानून के तहत निर्योग्यता के संबंध में अध्यक्ष द्वारा किए जाने वाले निर्णय से संबंधित विलंब पर अंकुश लगाने हेतु: अध्यक्ष के समक्ष लंबित निर्योग्यता संबंधी मामलों के निर्णय में विलंब के कारण, प्राय: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां सदस्यों को अपने दलों से निर्योग्य घोषित किए जाने पर भी वे सदन के सदस्य बने रहते हैं.
मेरी राय – मेंस के लिए
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की “शासन में नैतिकता” नामक शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में और विभिन्न अन्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा सिफारिश की गई है कि सदस्यों को दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराने के मुद्दों के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाना चाहिए.
- जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है, जब तक कि “असाधारण परिस्थितियां” उत्पन्न नहीं हो जाती हैं, दसवीं अनुसूची के तहत निर्योग्यता संबंधी याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा तीन माह के भीतर निर्णय किया जाना चाहिए.
- संसदीय लोकतंत्र के अन्य मॉडलों/उदाहरणों का अनुसरण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यक्ष तटस्थ रूप से निर्णय कर सके. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में यह परिपाटी रही है कि आम चुनावों के समय राजनीतिक दल अध्यक्ष के विरुद्ध निर्वाचन हेतु किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करते हैं और जब तक अन्यथा निर्धारित नहीं हो जाता, अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है. वहां यह भी परिपाटी है कि अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल की सदस्यता से त्याग-पत्र दे देता है.
- वर्ष 1951 और वर्ष 1953 में, भारत में विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में इस ब्रिटिश मॉडल को अपनाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया था.
- हालाँकि, पहले से ही विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के मध्य इस बात पर चर्चा चल रही है कि विशेष रूप से सदस्यों के दल परिवर्तन से संबंधित मामलों में, अध्यक्ष के पद की “गरिमा” को कैसे सुरक्षित किया जाए. इस संदर्भ में, लोकतांत्रिक परंपरा और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि एक सतर्क संसद, दक्षतापूर्ण कार्य करने वाले लोकतंत्र की नींव का निर्माण करती है और पीठासीन अधिकारी इस संस्था की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.
GS Paper 2 Source : PIB UPSC Syllabus : Parliament and State Legislatures – structure, functioning, conduct of business, powers & privileges and issues arising out of these. संदर्भ हाल ही में हरियाणा राज्य विधानसभा में, भारतीय जनता पार्टी-जननायक जनता पार्टी की गठबंधन सरकार के विरुद्ध कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव (no confidence motion) 55-32 मतों के अंतर से पराजित हो गया. यह प्रस्ताव केंद्र में प्रधानमंत्री और राज्य में मुख्यमंत्री पेश करते हैं. सरकार के बने रहने के लिए इस प्रस्ताव का पारित होना आवश्यक है. प्रस्ताव पारित नहीं हुआ तो सरकार गिर जाएगी. यह दो परिस्थितियों में लाया जाता है – GS Paper 2 Source : Indian Express UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests. संदर्भ आर्थिक और व्यापक मुद्दों पर ब्रिक्स संपर्क समूह (Contact Group on Economic and Trade Issues – CGETI) की पहली बैठक 9 से 11 मार्च, 2021 तक भारत की अध्यक्षता में आयोजित की गई. हालांकि, भारत को व्यापक रूप से एक मजबूत, उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाता है, लेकिन BRICS के अन्य सदस्यों से तुलना करने के लिए इसकी आर्थिक क्षमता ही एकमात्र मानदंड नहीं होना चाहिए. समग्र GDP, सामाजिक असमानताओं एवं बुनियादी स्वास्थ्य और अन्य कल्याण सेवाओं तक पहुँच के मामले में, भारत अन्य BRICS राष्ट्रों से पीछे है. कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भारत अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितों की वृद्धि हेतु, इस फोरम का उपयोग कर सकता है – GS Paper 2 Source : The Hindu UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests. संदर्भ 12 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन, जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने, क्वाड समूह के नेताओं के पहले शिखर सम्मेलन में भाग लिया. ज्ञातव्य है कि यह समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में चीन के प्रभुत्व का सामना करने एवं इस क्षेत्र को सभी के लिए मुक्त, खुला और समान अवसर वाला बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए बनाया गया है. Quad समूह भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के बीच विचारों के आदान-प्रदान का एक रास्ता मात्र है और उसे उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इसके गठन का उद्देश्य प्रतिस्पर्धात्मक नहीं है. एकल रणनीतिक क्षेत्र के रूप में ‘इंडो-पैसिफिक’ (Indo- Pacific) की अवधारणा, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के परिणाम है. यह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के मध्य परस्पर संपर्क तथा सुरक्षा और वाणिज्य के लिए महासागरों के महत्त्व का प्रतीक है. मुख्य बिंदु NISAR :- Loan Write-off :- CPCB report on “Contaminated Sites” :- Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA February, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Topic : Motion Of No Confidence
अविश्वास प्रस्ताव क्या है?
विश्वास प्रस्ताव
इतिहास
Topic : First Meeting of BRICS CGETI held under India’s Chairship
BRICS क्या है?
BRICS और भारत
Topic : QUAD
QUAD क्या है?
हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र
भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ की भूमिका एवं निहितार्थ
Prelims Vishesh