Sansar डेली करंट अफेयर्स, 13 April 2020

Sansar LochanSansar DCA

Sansar Daily Current Affairs, 13 April 2020


GS Paper 1 Source: Indian Express

indian_express

UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena such as earthquakes, Tsunami, Volcanic activity, cyclone etc., geographical features and their location- changes in critical geographical features (including water-bodies and ice-caps) and in flora and fauna and the effects of such changes.

Table of Contents

Topic : What is earth’s seismic noise?

संदर्भ

भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि लॉकडाउन से मानवजनित भूकंपीय शोर कम हुआ है. यही कारण है कि कम तीव्रता वाले भूकंपों की पहचान अधिक स्पष्टता से की जा सकती है.

भूकंपीय शोर क्या है?

  • भूकंप का शोर जमीन का एक अपेक्षाकृत लगातार होने वाला कंपन है जो आमतौर पर सिस्मोमीटर द्वारा दर्ज संकेतों का एक अवांछित घटक है.
  • पहले के अध्ययनों में बताया गया था कि सभी तरह की मानवीय गतिविधियां ऐसे कंपन पैदा करती हैं, जो अच्छे भूकंप उपकरणों को भटका देती हैं. दुनिया के अनेक हिस्सों में जारी बंद की वजह से इन विकृतियों में कमी आई है.
  • इंसानी गतिविधियों के अलावा हवा और समुद्र भी आवाज उत्पन्न करते हैं. इंसानी गतिविधियों से पैदा होने वाली आवाजों के साथ अगर अन्य प्राकृतिक आवाजों को भी डाटा से हटा दिया जाए तो भूकंप की भविष्यवाणी और सटीक हो सकती है.

क्या है सिस्मोमीटर ?

सिस्मोमीटर एक ऐसा यंत्र होता है जो सिस्मिक तरंगों को या कंपनों को मापते हैं. ये उपकरण पृथ्वी की सतह से उठने वाली कंपनों के अलावा इंसानी गतिविधियों, उद्योगों और ट्रैफिक की कंपनों की भी निगरानी करता है. इसमें काफी उच्च फ्रीक्वेंसी वाली आवाज सुनाई देती हैं.

भूकंप का पता करने में दिक्कत क्यों आती है?

  • मानवजनित गतिविधियों के कारण सांस्कृतिक व परिवेशीय शोर एक हर्ट्ज या उससे ऊपर है- और एक हर्ट्ज वह मानक आवृत्ति है जिस पर भूकंप की ऊर्जा आती है इसलिए अगर शोर ज्यादा है, तो आम तौर पर भूकंपों का पता कम चलता है.
  • मानव गतिविधियों का स्तर कम होने से, भूकंप संवेदक अब हल्के भूकंपों का पता लगा सकते हैं जो पहले अन्यथा शोर का हिस्सा होते थे.

भूकंप केंद्र कहाँ बनाए जाते हैं?

  • स्थानिक कवरेज और पहुंच के लिहाज से कई केंद्रों को मानव गतिविधि की सीमा में ही बनाया जाता है.
  • यह केंद्र इतने संवेदनशील होते हैं कि यह 500 मीटर के दायरे में किसी इंसान की पदचाप भी दर्ज कर सकते हैं. अगर शोर का स्तर बेहद कम रखा जाए तो ये संवेदक सबकुछ दर्ज करेंगे.
  • भूकंप केंद्र यातायात, सामुद्रिक लहरों या अन्य तरह के शोर से दूर स्थापित किए जाते हैं.

GS Paper 2 Source: Indian Express

indian_express

UPSC Syllabus : Important aspects of governance, transparency and accountability, e-governance- applications, models, successes, limitations, and potential; citizens charters, transparency & accountability and institutional and other measures.

Topic : What is contact tracing?

संदर्भ

एप्पल और गूगल दोनो ने ही घोषणा की है कि वे कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं. ये दोनों मिलकर ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जो कोविड-19 के संक्रमण के संपर्क अनुरेखण (कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग) कर सकेगी, जिससे वायरस के फैलने का खतरा कम होगा. 

एप्पल और गूगल क्या करने वाले हैं?

  • दोनों कंपनियां आईओएस और एंड्रॉइड के लिए एक ट्रेसिंग टूल लॉन्च कर रही हैं जिसके माध्यम से लोगों को स्मार्टफोन के माध्यम से सूचित करना आसान होगा यदि वे कोविड-19 से संक्रमित किसी भी मरीज के संपर्क में आते हैं.
  • दोनों ही कंपनियां मई में एक API (डेवलपर टूल) का अनावरण करेंगी जो कि एंड्रॉयड और आईओएस दोनों के लिए उपलब्ध होंगे.
  • ऐप को आईट्यून ऐप स्टोर और गूगर प्ले स्टोर के माध्यम से उपलब्ध कराने की तैयारी है. दो टेक्नोलॉजी क्षेत्र की दो दिग्गज कंपनियां स्मार्ट फोन और ऑपरेटिंग सिस्टम चला रही है ऐसे में कोरोना वायरस मरीजों के पता लगाने के लिए दोनों का साथ आना काफी कारगर साबित हो सकता है.
  • दोनों कंपनियों का साथ आना सरकारों और स्वास्थ्य एजेंसियों को वायरस के प्रसार को कम करने में मदद करेंगी. इसके लिए कंपनियां ब्लूटूथ तकनीक का इस्तेमाल करेंगी.
  • ये दोनों कंपनियां ब्लूटूथ के जरिए यूजर्स को संदेश देंगी की आप कोरोना वायरस संदिग्ध या फिर मरीज के संपर्क में हैं.
  • इसमें उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का ध्यान में रखा जाएगा और यूजर की जीपीएस लोकेशन व्यक्तिगत डाटा को रिकॉर्ड नहीं रखी जायेगी.

संपर्क अनुरेखण क्या है?

  • संपर्क अनुरेखण पहली बार अफ्रीका में इबोला वायरस के मामलों के दौरान इस्तेमाल किया गया था.
  • यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति जैसे कि कोरोनावायरस या इबोला वायरस के निकट संपर्क में है तो वह व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है. इन संपर्कों को करीब से देखने की एक निगरानी प्रक्रिया को संपर्क अनुरेखण कहा जाता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो संपर्क अनुरेखण संक्रमित व्यक्तियों से अन्य लोगों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लोगों की पहचान करने, आकलन करने और उन्हें प्रबंधित करने की प्रक्रिया है.

संपर्क अनुरेखण के चरण

  • संपर्क पहचान: बहुत पहला कदम किसी ऐसे व्यक्ति की पहचान करना है जो एक वायरस के रोगी की पुष्टि करता है. इन संपर्कों को बीमारी की शुरुआत के बाद से व्यक्ति की गतिविधियों के बारे में पूछकर पहचाना जाता है. संपर्क कोई भी हो सकता है जो किसी संक्रमित व्यक्ति, परिवार के सदस्यों, काम के सहयोगियों, दोस्तों, या स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के संपर्क में रहा हो.
  • संपर्क सूची: उसके बाद, हमें उन सभी लोगों की सूची बनाने की जरूरत है, जिन्होंने संक्रमित व्यक्ति से संपर्क किया है. यह जानना महत्वपूर्ण है कि हर सूचीबद्ध संपर्क की पहचान करने और उन्हें अपनी संपर्क स्थिति के बारे में सूचित करने के प्रयास किए जाने चाहिए. इसका अर्थ है कि वे क्रियाएं जो लक्षणों का पालन करेंगी, और यदि वे लक्षण विकसित करती हैं, तो शुरुआती देखभाल प्राप्त करने का महत्व. रोग की रोकथाम के बारे में जानकारी के साथ संपर्क भी प्रदान किया जाना चाहिए. कुछ मामलों में, घर या अस्पताल में उच्च जोखिम वाले संपर्कों के लिए संगरोध या अलगाव की आवश्यकता होती है.
  • संपर्क अनुवर्ती: लक्षणों की निगरानी और संक्रमण के संकेतों के परीक्षण के लिए सभी संपर्कों के साथ नियमित अनुवर्ती कार्रवाई की जानी चाहिए.

इसके द्वारा कोरोनावायरस महामारी को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?

विशेषज्ञों के अनुसार, संपर्क ट्रेसिंग तब उपयोगी होती है जब कुछ ही मामले होते हैं. अब, बहुत सारे मामले हैं और सभी को जाँचने की आवश्यकता है. कई देशों में लॉकडाउन करना महत्वपूर्ण है लेकिन कई देशों में जहां लॉकडाउन अभी भी नहीं हुआ है, संपर्क ट्रेसिंग सहायक हो सकता है.


GS Paper 2 Source: Down to Earth

down to earth

UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.

Topic : Who are the developing countries in the WTO?

संदर्भ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को विकासशील देशों की नई परिभाषा गढ़ने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि चीन एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका इसलिए अब उसे विकासशील नहीं माना जा सकता है. चीन को को डब्ल्यूटीओ से मिलने वाले लाभ बंद होना चाहिए.

क्या चीन को अभी भी एक विकासशील राष्ट्र के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए?

चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बन गया. 2011 तक, चीन जीडीपी के संदर्भ में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था,  सबसे बड़ा व्यापारिक निर्यातक, चौथा सबसे बड़ा वाणिज्यिक सेवा निर्यातक और FDI के लिए सबसे लोकप्रिय गंतव्य बन गया.

ये सब होने के बावजूद चीन अभी भी विकासशील देशों के श्रेणी में है और इससे होने वाले सभी सुविधाओं का वह लाभ उठाता है. यदि इसे विकसित देश घोषित कर दिया जाता है तो इन सब सुविधाओं से वह वंचित हो जाएगा. परन्तु ऐसा करने से अन्य कई विकासशील देशों पर यह वर्गीकरण छिने जाने का खतरा उपस्थित हो जाएगा क्योंकि यूरोप में ऐसे कई विकासशील देश हैं जिनकी प्रति व्यक्ति आय चीन से कहीं अधिक है.

wto-leaast-developed-countries

WTO के अनुसार विकासशील देश किसे कहते हैं?

  • विश्व व्यापार संगठन में विकसित और विकासशील देशों के लिए कोई परिभाषा निर्धारित नहीं है. इस संगठन के सदस्य-देश यह घोषणा स्वयं करते हैं कि वे विकसित हैं या विकासशील हैं. परन्तु संगठन के अन्य देश चाहें तो किसी देश के निर्णय को चुनौती दे सकते हैं.
  • मोटे तौर पर विकासशील देश का आशय उन देशों से है जो अपने आर्थिक विकास के पहले चरण से गुज़र रहे हैं तथा जहाँ लोगों की प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है. इन देशों में जनसंख्या काफी अधिक होती है जिसके कारण इन्हें गरीबी और बेरोज़गारी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है. विश्व व्यापार संगठन के तहत विकासशील सदस्य देशों को WTO द्वारा मंज़ूर विभिन्न बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की प्रतिबद्धताओं (Commitments) से अस्थायी छूट प्राप्त करने की अनुमति होती है

विकासशील देश होने का लाभ क्या है?

विश्व व्यापार संगठन विकासशील देशों को कतिपय अधिकार देता है. उन्हें समझौतों और प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अधिक समय मिलता. साथ ही व्यापार के अवसर को बढ़ाने तथा अपने व्यापारिक हितों की सुरक्षा करने का उन्हें अधिकार होता है. विकासशील देश विवादों के निष्पादन हेतु अपनी क्षमता को बढ़ाने तथा तकनीकी मानकों को लागू करने में विश्व व्यापार संगठन का सहयोग प्राप्त करते हैं.

ज्ञातव्य है कि विश्व व्यापार संगठन के प्राय: 2/3 देश अपने-आप को विकासशील देश घोषित किये हुए हैं और इस पदवी का लाभ उठा रहे हैं. अमेरिका और अन्य विकसित देश विकासशील देशों को मिलने वाले लाभों को समाप्त करने के पक्षधर हैं.


GS Paper 3 Source: PIB

pib_logo

UPSC Syllabus : Issues related to direct and indirect farm subsidies and minimum support prices.

Topic : MSP for MFP

संदर्भ

जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाले, ट्राइफेड ने राज्य नोडल विभागों और कार्यान्वयन एजेंसियों से लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) (MSP for MFP scheme) के तहत उपलब्ध धनराशि से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर लघु वन उत्पाद (एमएसपी) के खरीद की शुरूआत करने के लिए कहा है.

केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर जनजातीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए आवश्यक उपाय अपनाने के लिए कहा है.

ऐसा निर्देश कोरोना वायरस के कारण लागू तालाबंदी चलते होने वाली मुश्किलों को कम करने के उद्देश्य से किया गया है.

पृष्ठभूमि

ट्राइफेड, यूनिसेफ के सहयोग से वन धन विकास केंद्रों के वन धन स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के लिए वेबिनार सत्रों की मेजबानी कर रहा है, जिससे आदिवासी संग्रहकर्ताओं के बीच सामाजिक दूरी का पालन करने और अपने अभियानों के संचालन के दौरान आवश्यक स्वच्छता बनाए रखने के लिए जागरूकता उत्पन्न की जा सके.

TRIFED के निर्देशों की आवश्यकता क्यों?

राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि वे जनजातीय संग्रहकर्ताओं को आवश्यक आजीविका सहायता प्रदान करने के लिए एमएफपी योजना के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत एमएफपी की खरीद की शुरूआत करें और शहरी क्षेत्रों से लेकर आदिवासी इलाकों में बिचौलियों की गतिविधियों को कम करें, तथा जनजातीय समुदायों के बीच कोरोनावायरस के प्रसार की किसी भी घटना की जाँच कराएं.

MSP for MFP योजना क्या है?

  • MSP for MFP योजना एक केन्द्रीय संपोषित योजना है जो 2013 से लागू है.
  • इसका उद्देश्य अ-राष्ट्रीयकृत/अ-एकाधिकृत लघु वन उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराना तथा इन उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से एक वैल्यू चैन विकसित करना है.
  • यह योजना मूलतः लघु वन उत्पादों करने वालों की सामाजिक सुरक्षा की योजना है.
  • ज्ञातव्य है कि ये संग्राहक मुख्य रूप से अनुसूचित जनजाति के होते हैं जिनमें अधिकांश ऐसे क्षेत्रों में निवास करते हैं जहाँ वामपंथी उग्रवाद का बोलबाला है.
  • वर्तमान योजना अवधि के लिए इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार का अंश 967.28 करोड़ और राज्यों का 249.50 करोड़ रु. है.

MSP for MFP योजना के मुख्य ध्येय

  • यह सुनिश्चित करना कि आदिवासियों को जंगल से चुन के लाये गये उत्पादों के लिए उचित दाम मिले और उनके लिए आजीविका की वैकल्पिक व्यवस्था भी हो.
  • इस योजना का उद्देश्य लघु वन उत्पादों में कमी नहीं हो, इस पर ध्यान देने के साथ-साथ आदिवासियों को उत्पादों के संग्रहण, प्राथमिक प्रसंस्करण, भंडारण, डिब्बाबंदी, परिवहन आदि की सुविधा हो.
  • उत्पादों की बिक्री से होने वाले राजस्व में से लागत काटकर जो राशि बचती है उसमें आदिवासियों को भी एक हिस्सा दिया जाए.

योजना कहाँ-कहाँ लागू है?

  • प्रारम्भ में यह योजना 8 राज्यों के मात्र अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ही थी और इसमें 12 लघु वन उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया था.
  • कालांतर में यह योजना सभी राज्यों और संघीय क्षेत्रों में लागू हो गई. अब इसके अंतर्गत सूचीबद्ध लघु वन उत्पादों की संख्या 40 से भी अधिक हो चुकी है.

लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना का कार्यान्वयन

  • इस योजना में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लघु वन उत्पादों के क्रय का दायित्व राज्यों द्वारा नामित एजेंसियों के ऊपर होता है.
  • ये एजेंसियाँ बाजार का मूल्य बाजार संवादाताओं के माध्यम से पता लगाती हैं.
  • इस योजना में शीतभंडार, गोदाम आदि अवसंरचनाओं के साथ-साथ उत्पादों को अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाने की भी व्यवस्था की जाती है.
  • इस योजना के कार्यान्वयन और अनुश्रवण के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय नाभिक मंत्रालय (nodal ministry) होता है. यही मंत्रालय TRIFED की तकनीकी सहायता से न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण करता है.

GS Paper 3 Source: PIB

pib_logo

UPSC Syllabus : Science and Technology- developments and their applications and effects in everyday life Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.

Topic : Novel blood plasma therapy for COVID-19

संदर्भ

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोरोना वायरस के इलाज के लिए ब्लड प्लाज्मा थेरपी के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दे दी है. केरल कोविड-19 मरीजों पर इस थेरपी का इस्तेमाल करने वाला पहला राज्य होगा. उसने इसके लिए इजाजत मांगी थी.

पृष्ठभूमि

कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए दुनियाभर के शोधकर्ताओं द्वारा प्लाज्मा थेरेपी को सटीक और उपयोगी बताया जा रहा है. पहले भी प्लाज्मा थेरेपी के जरिये कई वायरस और बीमारी का इलाज किया जा चुका है. थेरपी से साउथ कोरिया को कामयाबी मिली है. वहां दो लोगों पर इसको आजमाया गया है, जिसके अच्छे नतीजे मिल रहे हैं.

प्लाज्मा थेरपी में क्या किया जाता है?

  • यह 100 से भी ज्यादा साल पुरानी थेरपी है. 1918 के फ्लू, चेचक, निमोनिया और अन्य कई तरह के संक्रमण में यह तरीका का काम आया था.
  • इसमें एक ठीक हुए मरीज के शरीर से एंटीबॉडी यानी कि रोग प्रतिकारक को कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज के अंदर ट्रांसफर कर दिया जाता है. यह वायरस से लड़ता है और मरीज को  बचाता है.
  • अब तक  कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए वैक्सीन तैयार नहीं हो सकी है. ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए कारगर साबित हो सकती है.
  • इस थेरपी के मुताबिक ठीक हो चुके मरीज के ब्लड प्लाज्मा में जो ऐंटीबॉडी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) होते हैं वे दूसरे रोगी के खून में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार होते हैं.
  • किसी भी संक्रमण से ठीक होने वाला व्यक्ति के शरीर में जरूरी एंटीबॉडी बन जाते हैं. यदि वह व्यक्ति पुनः संक्रमण का शिकार होता है तो एंटीबॉडी संक्रमण से लड़ने के लिए पुनः सक्रिय हो जाते हैं.

ऐंटीबॉडी क्या होता है?

जब कोई व्यक्ति किसी वायरस या पैथोजेन से संक्रमित होता है तब शरीर प्रतिक्रिया देते हुए ऐंटीबॉडी (इंसान के ख़ून में वो पदार्थ जो बीमारियों से लड़ता है) उत्पन्न करता है.

टीके और इस थेरेपी में अंतर

टीका व्यक्ति के इम्युन सिस्टम को अपना एंटीबॉडी बनाने के लिए तैयार करता है, जबकि प्लाज्मा इन्फ्यूजन में किसी अन्य का एंटीबॉडी होता है, जो कम समय के लिए प्रभावी होता है इसकी खुराक बार-बार देने की जरूरत पड़ती है.

लघु वन उपज का महत्त्व

  • लघु वन उपज (Minor Forest Produce : MFP) वन क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातियों के लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत है.
  • वन में निवास करने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिए MFP पर निर्भर करते हैं.
  • जनजातीय लोग अपनी वार्षिक आय का लगभग 20-40% MFP एवं सम्बद्ध गतिविधियों द्वारा प्राप्त करते हैं तथा इसका महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण से भी सुदृढ़ संबंध है क्योंकि अधिकांश MFP का संग्रहण, उपयोग और बिक्री महिलाओं द्वारा ही की जाती है.
  • MFP क्षेत्र में देश में वार्षिक रूप से लगभग 10 मिलियन कार्य दिवस के सृजन की क्षमता है.
  • अनुसूचित जनजाति एवं परम्परागत निवासी (वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम), 2006, लघु वन उपज (MFP) को पादपों से उत्पन्न होने वाले सभी गैर-लकड़ी वन उत्पादों के रूप में परिभाषित करता है. इसके अंतर्गत बाँस, ब्रशवुड, स्टम्प, केन, ट्यूसर, कोकून, शहद, मोम, लाख, तेंदु/केंडू पत्तियाँ, औषधीय पौधे, जड़ी-बूटी, जड़ें, कंद इत्यादि सम्मिलित हैं.
  • सरकार ने पहले भी आदिवासी जनसंख्या की आय की सुरक्षा हेतु “लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)” नामक योजना आरम्भ की थी.”

GS Paper 3 Source: Down to Earth

down to earth

UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.

Topic : Fly ash

संदर्भ

सिंगरौली में एस्सार कंपनी व NTPC के फ्लाई ऐश डैम के फूटने की घटना को लोग भूले नहीं थे कि शुक्रवार की शाम को रिलायंस शासन पावर प्लांट सिंगरौली का भी  फ्लाई ऐश डैम अचानक से फूट गया. पिछले एक साल में भोपाल से लगभग 700 किलोमीटर दूर सिंगरौली में बिजली संयंत्रों में हादसे की यह तीसरी घटना है.

फ्लाई ऐश क्या है?

फ्लाई ऐश एक बारीक पाउडर है जो तापीय बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने से उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है. इसमें भारी धातु होते हैं और साथ ही PM 2.5 और ब्लैक कार्बन भी होते हैं.

इसमें पाया जाने वाला PM 2.5 गर्मियों में हवा के माध्यम से उड़ते-उड़ते 20 किलोमीटर तक फ़ैल जाता है. यह पानी और अन्य सतहों पर जम जाता है.

फ्लाई ऐश हानिकारक कैसे?

फ्लाई ऐश में सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड की पर्याप्त मात्रा होती है. आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा जैसे तत्त्व भी सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं. इस प्रकार इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट उत्पन्न होता है. फैक्ट्रियों से निकलने वाले कोयले के धुओं से फ्लाई ऐश तो वातावरण में फैलता ही है साथ ही साथ कई बार फैक्ट्रियाँ फ्लाई ऐश को जमा कर के बाहर उनका भंडार बना देती हैं. ये सारे कचरे जमा हो-हो कर कभी-कभी पहाड़ जैसा बन जाते हैं. वहाँ से फ्लाई ऐश वातावरण को प्रदूषित करते ही हैं और बहुधा नदी/नहरों में भी फ्लाई ऐश के अंश चले जाते हैं.

फ्लाई ऐश का उपयोग

  • इसे कृषि में अम्लीय मृदाओं के लिए एक अभिकारक के रूप में, मृदा कंडीशनर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. इससे मृदा की महत्त्वपूर्ण भौतिक-रसायन विशेषताओं, जैसे जल धारण क्षमता, हाइड्रोक्लोरिक कंडक्टिविटी आदि में सुधार होगा.
  • भारत अभी तक फ्लाई ऐश प्रयोग की अपनी संभावनाओं का पूर्ण प्रयोग कर पाने में सक्षम नहीं है. हाल ही के CSE के एक अध्ययन के अनुसार, उत्पादित की जाने वाले फ्लाई ऐश का मात्र 50-60% ही प्रयोग हो पाता है.

Prelims Vishesh

Delhi’s ‘5T’ war against virus :-

  • दिल्ली सरकार ने कोविड-19 के प्रकोप को रोकने के लिए पांच प्रकार के काम निर्धारित किये हैं जो सभी अंग्रेजी में “T” से शुरू होते हैं. इसलिए इन्हें “5 T” कहा जा रहा है.
  • ये काम हैं – परीक्षण (testing), पता लगाना (tracing), उपचार (treatment), दल के रूप में काम करना (teamwork) तथा रोगियों पर नज़र रखना (tracking-monitoring).

Samadhan challenge :

  • नवाचार करने की छात्रों की योग्यता को जांचने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नवाचार कोषांग एवं AICTE (All India Council for Technical Education) ने “Forge and InnovatioCuris” नामक संस्था के साथ मिलकर “समाधान” नामक एक बहुत बड़ा ऑनलाइन चैलेंज आरम्भ किया है.
  • इसमें प्रतिभागिता करने वाले छात्रों को सरकारी एजेंसियों, स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों और अन्य सेवाओं को कोरोना महामारी और ऐसी अन्य आपदाओं के लिए तुरंत समाधान प्रस्तुत करने के लिए त्वरित उपायों की खोज और विकास करना होगा.

Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA

March, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download

Read them too :
[related_posts_by_tax]