Sansar Daily Current Affairs, 13 March 2019
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : BARC
संदर्भ
12 मार्च, 2019 को अजित कुमार मोहंती ने भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र (BARC) के निदेशक का पदभार संभाल लिया है.
BARC क्या है?
- भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र भारत का मूर्धन्य आणविक अनुसंधान संस्थान है जिसका मुख्यालय मुंबई के निकट ट्रौम्बे में अवस्थित है.
- यहाँ आणविक विज्ञान, अभियंत्रण और सम्बद्ध सभी विषयों पर उन्नत अनुसंधान और विकास का कार्य सम्पन्न किया जाता है.
- BARC उद्योगों, औषधि विज्ञान, कृषि आदि के लिए आइसोटोप का अनुप्रयोग करता है.
- BARC देश-भर के कई अनुसंधान रिएक्टरों का संचालन भी करता है.
- BARC ने ही कलपक्कम में स्थित भारत के पहले प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर की रुपरेखा तैयार की थी और उसका निर्माण किया था. इसके अतिरिक्त इसी ने INS अरिहंत के आणविक शक्ति इकाई का 80MW का भूमि-आधारित पहला प्रतिरूप तथा अरिहंत के प्रोपल्सन रिएक्टर का निर्माण किया था.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में आणविक कार्यक्रम की अवधारणा लाने वाले पहले व्यक्ति डॉ. होमी जहाँगीर भाभा थे जिन्होंने 1945 में आणविक विज्ञान में शोध करने के लिए टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की थी. आगे चलकर उन्होंने ही जनवरी, 1954 में ट्राम्बे में एटॉमिक एनर्जी एस्टाब्लिश्मेंट बनाया जिससे कि देश के लाभ के लिए आणविक ऊर्जा का उपयोग सम्भव हो सके. इसी संस्था का नाम आगे चलकर भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र पड़ा.
आणविक ऊर्जा का माहात्म्य एवं संभावनाएँ
- भारत में ऊर्जा प्रक्षेत्र में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को घटाने में आणविक ऊर्जा की एक प्रमुख भूमिका है.
- देश में अधिष्ठापित समग्र ऊर्जा (186,293 MW – जुलाई, 2016) का 61% कोयले पर आधारित तापीय बिजली घरों से आता है. दूसरी ओर इसमें नवीकरणीय संयंत्रों और आणविक संयंत्रों का योगदान क्रमशः 5% (44,237 MW) तथा 1.9% (5,780 MW) है.
- ज्ञातव्य है कि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल तो हैं पर ये कभी कम तो कभी अधिक होते रहते हैं. परन्तु आणविक शक्ति नगण्य कार्बन उत्सर्जन करने के साथ-साथ ऐसे स्रोत हैं जो निर्विघ्न उपलब्ध रहते हैं. इस प्रकार पर्यावरण के विषय में भारत की प्रतिबद्धता को निभाने में इसका योगदान उल्लेखनीय होगा.
पाँच परमाणु अनुसंधान केंद्र
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई
- इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम
- उन्नत तकनीकी केंद्र, इंदौर
- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रान केंद्र, कलकत्ता
- परमाणु पदार्थ अन्वेषण अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद
देश में 21 नाभकीय ऊर्जा रिएक्टर काम कर रह हैं. इनके जरिये सात हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव होता है. इसके अलावा 11 और परमाणु रियेक्टरों पर काम चल रहा है. इनके पूरा होते ही भारत 8000 MW अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता हासिल कर लेगा.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : WHO strategy to fight flu pandemics
संदर्भ
अगले दशक में मनुष्य को इन्फ्लुएंजा के खतरे से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक रणनीति बनाई है और यह चेताया है कि भविष्य में नई-नई व्यापक महामारियों का आना निश्चित है.
विदित हो कि लोक स्वास्थ्य की क्षमता में सुधार लाना और इसके लिए विश्व-स्तर पर तैयारी की व्यवस्था करना विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है.
नई रणनीति को इस संगठन ने सदस्य देशों, शिक्षा जगत, सिविल सोसाइटी, उद्योग जगत तथा आंतरिक-बाह्य विशेषज्ञों के साथ परामर्श करके बनाया है.
इन्फ्लुएंजा से सतर्क रहना आवश्यक क्यों?
इन्फ्लुएंजा अधिकतर मौसमी होता है, किन्तु यह हर वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों को हो जाता है और उनमें लाखों मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं. WHO के अनुसार यह रोग विश्व की सबसे बड़ी लोक स्वास्थ्य विषयक चुनौती है. इसी बात को ध्यान में रखकर WHO ने इसके लिए नई वैश्विक रणनीति बनाई है. आशा की जाती है कि इसके क्रियान्वयन से इन्फ्लुएंजा को नियंत्रित करने तथा उससे लड़ने के लिए तैयार होने में यह रणनीति कारगर सिद्ध होगी.
नई रणनीति क्या है?
- यह रणनीति 2019-2030 तक की अवधि के लिए है.
- इसका उद्देश्य मौसमी इन्फ्लुएंजा को रोकना, पशुओं से मानव तक वायरस को फैलने को नियंत्रित करना तथा अगली महामारी के लिए तैयारी करना है.
- इस रणनीति के अनुसार सभी देशों को कहा जाएगा कि वे नियमित स्वास्थ्य कार्यक्रमों को अधिक सुदृढ़ बनाएँ तथा साथ ही इन्फ्लुएंजा के लिए ऐसे बने बनाए कार्यक्रम चलायें जिनसे कि इस रोग पर नज़र रखने, इसकी प्रतिक्रिया में काम करने, इसकी रोकथाम, नियंत्रण और इसके विरुद्ध तैयारी करने में मदद मिले.
- इसमें अनुशंसा की गई है कि इन्फ्लुएंजा को फैलने से रोकने के लिए सबसे अच्छा उपाय है कि प्रत्येक वर्ष इसका टीका लगाया जाए, विशेषकर उनको जो स्वास्थ्य-देखभाल का काम देखते हैं और जिनपर इन्फ्लुएंजा का खतरा अधिक रहता है.
- नई रणनीति इस बात पर भी बल देगी कि पहले से भी अच्छे और सहज उपलब्ध होने वाले टीके तैयार किये जाएँ और वायरस-विरोधी उपचार की खोज की जाए.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : National Register of Citizens (NRC)
संदर्भ
भारतीय निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को यह आश्वासन दिया है कि पिछले वर्ष जुलाई में प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक पंजी (प्रारूप) से बाहर निकाले गये लोगों के नाम असम की मतदाता सूची से हटाये नहीं जाएँगे.
कुछ लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है जिसमें आरोप लगाया है कि कई श्रेणियों के लोगों को आगामी लोकसभा चुनावों में मतदान करने से वंचित किया जा रहा है.
- पहली श्रेणी उन लोगों की है जिनका नाम NRC के प्रारूप में है, पर मतदाता सूची में नहीं है.
- दूसरी सूची उन लोगों की है जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गये हैं, पर NRC के प्रारूप में विद्यमान हैं.
- तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जिनको विदेशी-जन पंचाट तथा गुवाहाटी उच्च न्यायालय के द्वारा विदेशी घोषित कर दिया गया है. यद्यपि उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन दे रखा है.
- चौथी श्रेणी में वे लोग आते हैं जीको पंचाट ने विदेशी घोषित कर रखा है. पंचाट के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था, फिर भी पंचाट के आदेश का पालन करते हुए इनके नाम मतदाता सूची से निकाले जा चुके हैं.
- पाँचवीं श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी के प्रारूप में है ही नहीं, परन्तु उनके परिवार के अन्य सदस्य उसमें हैं.
NRC की प्रक्रिया क्यों शुरू की गई?
राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) वह सूची है जिसमें असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों के नाम दर्ज हैं. असम देश का एकमात्र राज्य है जहाँ NRC विद्यमान है. असम में विदेशियों के निष्कासन के लिए 1979 से 1985 तक एक बड़ा आन्दोलन चला था. 1985 में सरकार और आन्दोलनकारियों के बीच एक समझौता हुआ जिसके बाद आन्दोलन समाप्त कर दिया गया. समझौते में यह आश्वासन दिया गया था कि NRC का नवीकरण किया जायेगा. इस समझौते (Assam Accord) में 24 मार्च, 1971 को विदेशियों के पहचान के लिए cut-off तिथि निर्धारित की गई थी. इस आधार पर NRC ने अपना नवीनतम प्रारूप प्रकाशित किया है जिसमें बताया गया है कि राज्य के 40 लाख लोग यह प्रमाणित नहीं कर सके कि वे इस cut-off तिथि के पहले से वहाँ रह रहे हैं.
NRC
- NRC को पूरे देश में पहली और आखिरी बार 1951 में तैयार किया गया था.
- लेकिन इसके बाद इसे update नहीं किया गया था.
- NRC में भारतीय नागरिकों का लेखा-जोखा दर्ज होता है.
- 2005 में केंद्र, राज्य और All Assam Students Union के बीच समझौते के बाद असम के नागरिकों की दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. ये पढ़ें >> असम समझौता
- मौजूदा प्रकिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है.
- सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो करोड़ दावों की जांच के बाद 31 December तक NRC को पहला draft जारी करने का निर्देश दिया था.
- कोर्ट ने जांच में करीब 38 लाख लोगों के दस्तावेज संदिग्ध पाए थे.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Combat Casualty Drugs
संदर्भ
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की औषधीय प्रयोगशाला – DRDO के आणविक औषधि एवं सम्बद्ध विज्ञान संस्थान – में कुछ ऐसी औषधियाँ तैयार की गई हैं जो युद्ध में आहत सैनिक को उसके अस्पताल पहुँचने के पहले तक उसकी प्राण रक्षा कर सकती है. आहत होने के पश्चात् का पहला घंटा “स्वर्णिम घंटा” कहलाता है क्योंकि पहले घंटे के अंतराल चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने पर व्यक्ति के प्राण बच सकते हैं. DRDO की ये औषधियाँ इस स्वर्णिम घंटे की अवधि को बढ़ाने में समर्थ हैं. इन्हें “कॉम्बैट कैसुअलटी ड्रग्स” अर्थात् युद्ध में हताहत होने वालों के लिए औषधि नाम दिया गया है.
ये औषधियाँ कौन-सी हैं?
ग्लिसरेटेड सलाइन :- यह एक नस में डाला जाने वाला द्रव है जो -18°C तक जमता नहीं है, इसलिए अत्यंत ऊँचे क्षेत्रों में होने वाले आघात के उपचार के लिए उपयोगी है. यह सलाइन ज्वलन को घटाता है जो गुण साधारण सलाइन में नहीं होता. यह सलाइन जीवन-रक्षक होता है, विशेषकर जब मस्तिष्क अथवा फेफड़ों में द्रव जमा हो जाता है.
विशेष उपचारित पट्टी :- यह पट्टी सामान्य पट्टी की तुलना में रक्त-स्राव को 200 गुना अधिक सोख लेता है. ये पट्टियाँ सेल्यूलोज फाइबर की बनी होती है और रक्त-प्रवाह को रोकने और घाव को स्वच्छ रखने में अधिक सक्षम होती हैं. इसके अतिरिक्त इसमें रोगाणुरोधक, जीवाणुरोधक एवं हल्दी का लेप लगाया जा सकता है जो धीरे-धीरे शरीर में प्रवेश करता है.
चिटोसन जेल :- यह जेल घाव के ऊपर एक परत बना देता है और इस प्रकार रक्त के प्रवाह को रोकने में सहायता करता है. यह जेल प्लेटलेटों और लाल रक्त कोषों से मिलकर रक्त को रोक देता है. इसमें जीवाणुरोधक गुण भी होते हैं. चिटोसन जेल का प्रयोग अंगों में होने वाले घाव के अतिरिक्त पेट और थोरेक्स जैसे गह्वरों (cavities) में भी हो सकता है.
हाइपोकोलरस अम्ल (HOCL) :- यह जंगल में होने वाले युद्ध में लिप्त सैनिकों को संक्रमण से बचाता है. जंगल में शरीर के कोमल ऊतक संक्रमित हो जाते हैं जिसको नेक्रोटाइसिंग फसाइटिस कहा जाता है. इस रोग में जीवाणुओं का संक्रमण बहुत तेजी से बढ़ता है जिसके कारण स्थानीय ऊतकों को क्षति पहुँचती है और नेक्रोसिस हो जाता है. HOCL इस रोग का अच्छा निदान है.
इन औषधियों की आवश्यकता क्यों?
- युद्ध में रत बुरे ढंग से घायल 99% सैनिक कुछ ही घंटों में दम तोड़ देते हैं. यदि उन्हें उचित चिकित्सा सुविधा मिल जाए तो उनका स्वर्णिम काल लम्बा खींचा जा सकता है और उनके प्राण बचाए जा सकते हैं.
- युद्ध क्षेत्र में होने वाले प्रमुख ये आपदाएँ होती हैं – बहुत अधिक रक्तस्राव, पीब बनना, आघात, रक्त की मात्रा में कमी और वेदना.
- DRDO की ये स्वदेश में बनी औषधियाँ युद्धरत सैनिकों और परासैनिकों के लिए वरदान से कम नहीं है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Lunar Reconnaissance Orbiter (LRO)
संदर्भ
नासा के लूनर रिकोनेसेंस ऑरबिटर (LRO) यान ने हाल ही में चंद्रमा के दिवसीय भाग के आस-पास जल अणुओं को इधर-उधर चलते देखा है. इस जानकारी के बल पर चंद्रमा में पानी की उपलभ्यता का पता लगाया जा सकता है. विदित हो कि भविष्य में मानवों को चंद्रमा में भेजने का कार्यक्रम है. उस समय पानी के बारे में यह जानकारी काम आएगी.
LRO के ऊपर LAMP नामक उपकरण लगाया गया है. LAMP का पूरा नाम Lyman Alpha Mapping Project है. इसी उपकरण के द्वारा चंद्रमा की सतह पर जल-अणुओं का पता लगाया गया है.
चंद्रमा में पानी का क्या लाभ है?
भविष्य में यदि मनुष्य चंद्रमा पर जाएगा तो वह वहाँ के जल का उपयोग ईंधन बनाने अथवा विकिरण को रोकने अथवा गर्मी से बचने के लिए कर सकेगा, अन्यथा धरती से जल ले जाना पड़ेगा जोकि बहुत ही महँगा सिद्ध होगा.
चंद्रमा पर पानी कहाँ से आया?
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चंद्रमा की सतह पर अधिकांश पानी सौर पवन के हाइड्रोजन अणुओं से आया होगा. परन्तु यह पानी सीधे सौर पवन से न आकर बहुत दिनों में धीरे-धीरे जमा हुआ होगा क्योंकि LAMP द्वारा यह देखा गया कि चंद्रमा का पानी पृथ्वी की छाया में आ जाने पर तथा इसके चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित हो जाने के पश्चात् भी घटता नहीं है.
LRO क्या है?
लूनर रिकोनेसेंस ऑरबिटर (LRO) नासा का एक मिशन है जो चंद्रमा की भविष्य में मानव द्वारा की जाने वाली यात्रा के लिए आवश्यक सूचनाएँ एकत्र करने के लिए भेजा गया है.
इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं –
- चंद्रमा में सम्भावित संसाधनों का पता लगाना.
- चंद्रमा के तल का विस्तृत नक्शा तैयार करना.
- चंद्रमा के विकिरण के स्तरों के बारे में आँकड़े जुटाना.
- भविष्य में चंद्रमा पर भेजे जाने वाले मानव-सहित अभियानों अथवा रोबोट भेजकर नमूने मंगवाने के अभियान में उपयोगी सिद्ध होने वाले संसाधनों की चन्द्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में खोज करना.
- भविष्य में चंद्रमा पर जाने वाले रोबोटों और मानवों के उतरने के लिए उपयुक्त स्थलों की मापी करना.
Prelims Vishesh
Arecanut gets its first GI tag for ‘Sirsi Supari’ :-
- उत्तर कन्नड़ में उपजाए जाने वाली सिरसी सुपारी को भौगोलिक संकेतक टैग (GI tag) मिला है.
- ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी सुपारी को यह टैग मिला है.
- ज्ञातव्य है कि सिरसी सुपारी गोलाकार और सिक्के की तरह चपटी होती है. इसकी बनावट, आकार, स्वाद आदि अनूठे हैं.
Orange-belan mountains :–
- हाल ही में भारत के पश्चिमी घाटों में मेढ़क की एक ऐसी प्रजाति का पता चला है जो अंगूठे जितनी बड़ी है और उसमें तारों के चिन्ह अंकित हैं.
- ज्ञातव्य है कि पश्चिमी घाट विश्व के ऐसे प्रधान स्थलों में से एक है जहाँ बहुत अधिक जैव-विविधता पाई जाती है.
- इस मेढ़क का नाम Astrobatrachus kurichiyana रखा गया है. इसका रंग गाढ़ा भूरा है. इसके पेट वाला भाग चमकीला नारंगी है तथा उसमें फीके नीले बिंदु भरे हुए हैं.
- कुर्चियाना पहाड़ियों की उस शृंखला का नाम है जहाँ यह मेढ़क पाया गया.
- यह मेढ़क विज्ञान के लिए एक न केवल एक नई प्रजाति ही है, अपितु एक अति-प्राचीन वंश का यह एकमात्र सदस्य भी है.
What are ‘cool-spots’?
- कूल-स्पॉट विश्व के उन बचे-खुचे स्थलों को कहते हैं जहाँ अभी भी बहुत संख्या में ऐसी प्रजातियाँ रहती हैं जो संकटग्रस्त मानी गई हैं.
- ऐसा इसलिए होता है कि या तो इस स्थल को भली-भाँति सुरक्षित रखा गया है अथवा इनके निवास-स्थल से छेड़-छाड़ अभी तक नहीं हुई है.
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