Sansar Daily Current Affairs, 13 May 2020
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : India and its neighbourhood- relations.
Topic : India- Nepal border dispute
संदर्भ
कैलाश-मानसरोवर यात्रा को सुगम और तीव्रतर बनाने के लिए सरकार ने देश की सीमा के बेहतर कनेक्टिविटी के लिए उत्तराखंड के धारचूला से लिपुलेख स्थित चीन सीमा (China border) तक नई सड़क बनाई है. इस सड़क लिंक के पूरा होने के साथ ही ये यात्रा अब मात्र एक सप्ताह में पूरी की जा सकेगी. पहले मानसरोवर यात्रा को पूर्ण करने में 2 से 3 सप्ताह तक का समय लग जाता था.
पृष्ठभूमि
नेपाल उत्तराखंड के कालापानी और लिपुलेख समेत कई हिस्सों पर अपना दावा पेश करता रहा है. भारत ने गत सप्ताह लिपुलेख में कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया तो नेपाल ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई. नेपाल ने कहा कि वह सीमा विवाद पर भारत के साथ वार्ता के लिए कोरोना वायरस संकट के खत्म होने की प्रतीक्षा नहीं करेगा.
गत वर्ष नवंबर महीने में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर का विभाजन किया था और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के रूप में दो केंद्रशासित प्रदेश का गठन किया था और दोनों का नया नक्शा निर्गत किया था, तब कालापानी भी उस नक्शे में सम्मिलित था. उस समय भी नेपाल ने आपत्ति जताई थी और दावा किया था कालापानी उसके क्षेत्र में आता है.
कालापानी कहाँ है?
कालापानी 372 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है जो चीन, नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित है. भारत इसे उत्तराखंड का हिस्सा मानता है जबकि नेपाल इसे अपने नक्शे में दर्शाता है. कालापानी की ऊँचाई 3,600 मीटर है. 1962 के भारत-चीन के युद्ध के बाद से कालापानी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के नियंत्रण में है.
सुगौली समझौता क्या है?
नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच सुगौली समझौता वर्ष 1816 में हुआ था. इसमें कालापानी इलाके से होकर बहने वाली काली नदी भारत-नेपाल की सीमा मानी गई है. हालांकि, सर्वेक्षण करने वाले ब्रिटिश अधिकारी ने काली नदी के उद्गम एक से अधिक बताये थे. इसलिए भारत और नेपाल में इस नदी को लेकर विवाद चला आ रहा है.
नेपाल का दावा है कि काली नदी का उद्गम नेपाल में है और भारत कहता है कि इसका उद्गम भारत में है. इसी बात को लेकर दोनों कालापानी क्षेत्र पर दावा करते हैं.
क्यों महत्वपूर्ण है कालापानी?
कालापानी इलाके का लिपुलेख दर्रा चीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिहाज से बहुत ही अधिक महत्त्वपूर्ण है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : Supreme Court’s 4G Internet Order
संदर्भ
जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट बहाली का आदेश देने से उच्चतम न्यायालय ने मना कर दिया है. न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवा प्रदान करने के अनुरोध पर विचार के लिए गृह मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का आदेश दिया है.
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और इसके लिए दिए गये तर्क
अभी जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियाँ स्थिर नहीं और साथ ही देश-भर में COVID-19 महामारी फैली हुई है. ऐसी दशा में मानवाधिकार के साथ देश की सुरक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है. 4G लागू करने से देश-विरोधी तत्त्वों को सुविधा हो सकती है.
पृष्ठभूमि
- अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया और संचार के सभी तरीकों को निलंबित कर दिया. कालांतर में इन्टरनेट सेवाओं को आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया था, जिसमें इंटरनेट की गति 2G तक सीमित थी.
- जम्मू-कश्मीर में हाई-स्पीड इंटरनेट (4G) की बहाली के लिए फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई. लेकिन, प्रशासन ने 4-जी सेवाओं की बहाली का विरोध किया. प्रशासन ने देश की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा की रक्षा के मद्देनजर अपने कदम को उचित ठहराया.
इंटरनेट बंदी से सम्बंधित कानूनी प्रावधान
CrPC की धारा 144
- धारा 144 जिला दंडाधिकारी, अनुमंडलीय दंडाधिकारी या राज्य सरकार द्वारा शक्तिप्राप्त किसी कार्यकारी दंडाधिकारी को हिंसा या उपद्रव की आशंका पर उसको रोकने से संबंधित प्रावधान करने का अधिकार देता है .
- दंडाधिकारी को एक लिखित आदेश पारित करना होता है, जिसके जरिये किसी व्यक्ति विशेष या क्षेत्र विशेष में रहने वाले व्यक्तियों के लिये, अथवा आम तौर पर किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में आने या जाने वाले लोगों के लिये धारा 144 को निर्देशित किया जा सकता है. ध्यान देने योग्य बात है कि आपातकालीन मामलों में दंडाधिकारी बिना किसी पूर्व सूचना के भी इन आदेशों को पारित कर सकता है.
- आँकड़े बताते हैं कि जनवरी 2012 और अप्रैल 2018 के बीच भारत में दर्ज किये गए अधिकांश इंटरनेट बंदी का आदेश CrPC की धारा 144 के अंतर्गत ही दिया गया था. हालाँकि CrPC की धारा 144 में इंटरनेट बंदी के लिये कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया और इंटरनेट बंदी संबंधी आदेश इस धारा की व्याख्या के आधार पर दिया जाता है.
भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2)
- हालाँकि CrPC की धारा 144 अब भी भारत में इंटरनेट पर सामूहिक प्रतिबंध को लागू करने के लिये सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला प्रावधान है, मगर टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धारा 5(2) का भी कई बार इंटरनेट सेवाओं को रोकने का आदेश देने हेतु प्रयोग किया जाता है.
- भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 भारत में वायर्ड और वायरलेस टेलीग्राफी, टेलीफोन, टेलेटाइप, रेडियो संचार और डिजिटल डेटा संचार के उपयोग को नियंत्रित करता है.
- भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) CrPC की धारा 144 के जैसा ही है. इस धारा 5(2) में भी इंटरनेट बंदी हेतु कोई विशेष प्रावधान नहीं किये गए हैं, मगर धारा की व्याख्या के आधार पर इस प्रकार के आदेश दिये जा सकते हैं.
दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम, 2017
दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के अधीन देश के गृह मंत्रालय के सचिव या राज्य के सक्षम पदाधिकारी को दूरसंचार सेवाओं के निलंबन का अधिकार दिया गया है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Transport and marketing of agricultural produce and issues and related constraints; e-technology in the aid of farmers.
Topic : Rajasthan’s Krishi Kalyan fees
संदर्भ
राजस्थान में कृषि जिंसों पर लगाए गए 2 प्रतिशत कृषक कल्याण शुल्क (Farmers Welfare Fee) को लेकर सरकार और व्यापारियों के बीच बना गतिरोध अभी जारी है.
पृष्ठभूमि
- विदित हो कि राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2019 में ‘ईज़ ऑफ डूइंग फार्मिंग’ (Ease of Doing Farming) की पहल के अंतर्गत ‘कृषक कल्याण कोष’ की स्थापना की घोषणा की गई थी.
- 1 मई, 2020 को राजस्थान सरकार ने ‘राजस्थान कृषि उपज बाजार (संशोधन) अध्यादेश, 2020’ के जरिये ‘राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1961’ की धारा-17 में बदलाव ला दिया था.
- इस अधिनियम में समाहित की गई नई धारा 17A के अंतर्गत मंडी समितियों को सरकार द्वारा निर्धारित दर के अनुसार लाइसेंस धारकों से कृषि उपज के क्रय-विक्रय पर कृषक कल्याण शुल्क वसूल करने का आदेश दिया गया.
- मंडियों द्वारा एकत्र कृषक कल्याण शुल्क को इस अधिनियम की धारा-19A के अधीन स्थापित ‘कृषक कल्याण कोष’ में जमा किया जाएगा.
कृषक कल्याण शुल्क लगाने को लेकर सरकार का पक्ष
- राजस्थान सरकार के अनुसार, कृषक कल्याण कोष की स्थापना के पश्चात् इस कोष के लिये किसी स्थायी आर्थिक स्रोत की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए कृषि उपज पर लगाया गया यह 2% शुल्क इस कोष के लिये स्थायी राजस्व स्रोत के रूप में कार्य करेगा.
- हाल ही में राज्य सरकार ने ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’(Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY) के अंतर्गत राज्य के हिस्से की भरपाई हेतु ‘कृषक कल्याण कोष’ पर 2000 रुपए करोड़ ऋण लिया था, जिसके जरिये पिछले 20-25 दिवसों में किसानों को 2,200 रु. तक का बीमा लाभ प्रदान किया गया है.
- सरकार के अनुसार, कृषक कल्याण शुल्क के रूप में प्राप्त निधि का प्रयोग कृषि कल्याण हेतु ही किया जाएगा.
कृषक कल्याण शुल्क की समस्याएँ
- राजस्थान में पूर्व से ही कृषि उपज पर 1.6% मंडी उपकर (Mandi Cess) लागू है और ऐसी स्थिति में कृषक कल्याण शुल्क के रूप में 2% अतिरिक्त कर लगने से कुल कर बढ़कर 3.6% हो जाएगा जो अन्य राज्यों से बहुत ही ज्यादा है.
- कृषक कल्याण शुल्क के चलते कृषि उपज के मूल्य में बढ़ोतरी को देखते हुए खरीदार कम बोली लगायेंगे जिससे कृषकों को अपनी कृषि उपज पर कम धन मिलेगा.
- कुछ किसानों के अनुसार, मंडियों में कृषि उपज की कीमत पूर्व से ही ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price- MSP) से कम हैं, ऐसे में 2% अतिरिक्त कर से कृषकों की क्षति और भी बढ़ जायेगी.
- अतिरिक्त कर से बचने हेतु किसान मंडियों से बाहर कृषि उपज बेचने की कोशिश करेंगे जिसके फलस्वरूप कालाबाज़ारी जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा और भविष्य में किसानों को ही नुकसान होगा .
निष्कर्ष
आज भी देश की आधी से अधिक जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु कृषि पर ही निर्भर है. गत कुछ सालों में भारत में कृषि के क्षेत्र में नवीन तकनीकों और वैज्ञानिक प्रयोगों को बड़े पैमाने पर सम्मिलित न करने से किसानों की आय में गिरावट आई है. राजस्थान सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कृषक कल्याण कोष की स्थापना एक प्रशंसनीय पहल है पर कृषकों से अतिरिक्त शुल्क लेने से इसका सीधा प्रभाव किसानों की आय पर पड़ेगा. विशेषकर जब COVID-19 महामारी के चलते देश में कृषि उत्पादों की बिक्री प्रभावित हुई है, ऐसे में सरकार को किसानों के पक्ष को सुनकर तथा अन्य पहलुओं को देखते हुए इस मामले पर निर्णय करना चाहिये.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Transport and marketing of agricultural produce and issues and related constraints; e-technology in the aid of farmers.
Topic : Gujarat amends APMC Act
संदर्भ
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे अपने कृषि उत्पाद बाजार अधिनियमों में संशोधन करें. इस निर्देश को देखते हुए गुजरात सरकार ने एक अध्यादेश निकाल कर अधिनियम के दायरे को बढ़ाते हुए उसमें मवेशियों को कृषि उत्पाद में सम्मिलित कर लिया है और साथ ही किसानों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने की व्यवस्था की है.
संशोधन और उनके निहितार्थ
- संशोधन के उपरान्त अधिनियम का नाम बदलकर यह कर दिया है – गुजरात कृषि उत्पाद एवं मवेशी विपणन (प्रोत्साहन एवं सुविधा) अधिनियम / Gujarat Agricultural Produce and Livestock Marketing (Promotion and Facilitation) Act.
- यह अधिनियम मवेशियों के बाजार की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है.
- अधिनियम मवेशी विपणन के काम में पंचायती राज संस्थाओं के अतिरिक्त अन्य स्थानीय अधिकारियों को भी शामिल करता है. विदित हो कि ये अधिकारी अपने क्षेत्र में हाट जैसे गाँवों में समय-समय पर लगने वाले बाजारों के स्वामी होते हैं और उन्हें चलाते हैं.
- अधिनियम में बाजार परिसर की समिति की बनावट बदलकर उसमें किसानों की सदस्यता में वृद्धि की गई है.
- पूरे राज्य के लिए व्यापारियों को एक ही लाइसेंस मिलेगा. अभी बाजार समितियाँ जो लाइसेंस दे रही हैं उन सब लाइसेंसों को राज्य-भर के लिए मान्य किया जाएगा. यह लाइसेंस देने का काम निदेशक करेगा.
- अब निजी प्रतिष्ठान भी अपनी बाजार समितियाँ अथवा उप-बाजार यार्ड गठित कर सकते हैं और प्रतिस्पर्धा में शामिल हो सकते हैं. आशा की जाती है कि ऐसा होने से किसानों को अपने उत्पाद के लिए बेहतर क्षतिपूर्ति मिलेगी.
- संशोधन विषयक अध्यादेश बाजार समितियों के कार्य क्षेत्र को उनके अपने बाजार यार्ड तक सीमित कर देता है. ये समितियाँ उन्हीं लेन-देन पर सेस (cess) लगा सकती है जो बाजार यार्ड की चारदिवारी के भीतर होंगे.
संशोधन का माहात्म्य
इन संशोधनों के कारण ये बाजार फार्म गेट के निकटतम विपणन मंच के रूप में कुशलता से काम कर सकेंगे. इससे स्पर्धा की भावना को भी प्रोत्साहन मिलेगा क्योंकि किसान खुले बाजार में अपनी फसल बेच सकेंगे इसलिए इसमें बिचौलियों की भूमिका नहीं होगी. इस प्रकार इस अध्यादेश के माध्यम से “किसान सबसे पहले/farmer first” का सिद्धांत लागू होगा. कह सकते हैं कि यह संशोधन कृषि अर्थव्यवस्था को सबल बनाने की दिशा में प्रगतिशील कदम है.
Prelims Vishesh
Pranavayu programme :-
- बेंगलुरुवासी अपने स्वासगत स्वास्थ्य का स्वयं परीक्षण करें इस विषय में जागरूकता सृजित करने के लिए बेंगलुरु नगर निगम ने प्राणवायु नामक एक कार्यक्रम चलाया है.
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत जिन लोगों के रक्त में ऑक्सीजन का स्तर का कम है उनका समय पर परीक्षण किया जाएगा जिससे कि वे मृत्यु के ग्रास नहीं बनें.
Smallpox Postage Stamp :-
चेचक के उन्मूलन की 40वीं वर्षगाँठ के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र डाक एजेंसी ने एक स्मारक डाक टिकट निर्गत किया है.
Elongated tortoise :-
- लम्बे मुँह वाला कछुआ दक्षिण-पूर्व एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर पूर्वोत्तर में, पाया जाता है.
- इसका मुँह थोड़ा लम्बा और संकरा होता है.
- IUCN की लाल सूची में इस कछुए को विकट रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) गया है.
Relation between Vitamin D and COVID 19 :-
- विटामिन – D सफ़ेद रक्त कोषों को अत्यधिक ज्वलनशील साइटोकिन (cytokines) छोड़ने से रोकता है.
- इसके इस गुण की चर्चा आजकल इसलिए हो रही है कि कोविड-19 विषाणु मनुष्य के शरीर में बहुत बड़ी मात्रा में ज्वलनशील साइटोकिन उत्पन्न कर देता है.
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