Sansar Daily Current Affairs, 15 February 2021
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Disqualification of 7 Nagaland MLAs
संदर्भ
गुवाहाटी उच्च न्यायालय की कोहिमा पीठ ने, नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) द्वारा दायर किए गए दो अंतर्वादीय-आवेदनों (interlocutory applications) को निरस्त कर दिया है. इन आवेदनों में नागा पीपुल्स फ्रंट के सातों निलंबित विधायकों को 60-सदस्यीय नागालैंड विधानसभा से दूर रखने की माँग की गई थी.
पृष्ठभूमि
सातों विधायकों ने उनकी निरर्हता से संबंधित रिट याचिका की अनुरक्षणीयता (Maintainability) को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गयी थी, जिस पर अंतिम फैसला अभी अदालत में लंबित है. इसी कारण अंतर्वादीय-आवेदनों को निरस्त कर दिया गया.
संबंधित प्रकरण
- नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने 24 अप्रैल, 2019 को, अपने सात निलंबित विधायकों के खिलाफ निरर्हता याचिका दायर की थी. NPF ने आरोप लगाया है कि, इन सातो विधायकों ने वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन देने के पार्टी के सामूहिक निर्णय की अवहेलना की.
- NPF ने दावा किया कि इन सात विधायकों ने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता त्याग दी है, जिससे संविधान की 10वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून– Anti-Defection Law) के प्रावधानों के अंतर्गत निरर्हक (disqualified) घोषित किया जाना चाहिए.
- इन विधायकों का तर्क है, कि कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने हेतु NPF का निर्णय “क्षेत्रीयता के सिद्धांत के विरुद्ध” था. इन विधायकों का कहना है कि उन्होंने दूसरे उम्मीदवार का समर्थन किया है. नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में अपना कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था.
संविधान की दसवीं अनुसूची क्या है?
राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (anti-defection law) लगाने की बात उठाई जा रही थी. अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वाँ संशोधन पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी. इसे संविधान की दसवीं अनुसूची (10th Schedule) में डाला गया जिसके आधार पर चुने हुए सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
दल-परिवर्तन विरोधी कानून के बारे में
- दल-परिवर्तन विरोधी कानून को पद संबंधी लाभ या इसी प्रकार के अन्य प्रतिफल के लिए होने बाले राजनीतिक दल-परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था.
- इसके लिए, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी.
- यह उस प्रक्रिया को निर्धारित करता है जिसके द्वारा विधायकों/सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दायर याचिका के आधार पर विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराया जा सकता है.
- इसके अंतर्गत किसी विधायक/सांसद को निर्योग्य माना जाता है, यदि उसने-
- या तो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है; या
- सदन में मतदान के समय अपने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों की अनुज्ञा की है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई सदस्य किसी भी मुद्दे पर पार्टी के व्हिप के विरुद्ध (अर्थात् निदेश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से विरत रहता है) कार्य करता है तो वह सदन की अपनी सदस्यता खो सकता है.
- यह अधिनियम संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों पर लागू होता है.
इस अधिनियम के तहत अपवाद
सदस्य निम्नलिखित कुछ परिस्थितियों में निर्योग्यता के जोखिम के बिना दल परिवर्तन कर सकते हैं.
- यह अधिनियम एक राजनीतिक दल को अन्य दल में विलय की अनुमति देता है, यदि मूल राजनीतिक दल के दो-तिहाई सदस्य इस विलय का समर्थन करते हैं.
- यदि किसी व्यक्ति को लोक सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् का सभापति या उपसभाषपति चुना जाता है, तो वह अपने दल से त्यागपत्र दे सकता है या अपने कार्यकाल के पश्चात् अपने दल की सदस्यता पुनः ग्रहण कर लेता है.
अध्यक्ष की भूमिका में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है?
अध्यक्ष के पद की प्रकृति: चूँकि अध्यक्ष के पद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है, इसलिए अध्यक्ष पुन: निर्वाचित होने के लिए अपने राजनीतिक दल पर निर्भर रहता है. अतः यह स्थिति अध्यक्ष को स्वविवेक के बजाए सदन की कार्यवाही को राजनीतिक दल की इच्छा से संचालित करने का मार्ग प्रशस्त करती है.
पद से संबंधित अंतर्निहित विरोधाभास: उल्लेखनीय है कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से या तो नाममात्र (डी ज्यूर) या वास्तविक (डी फैक्टो) रूप से संबंधित होता है तो उस स्थिति में एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर उसे (अध्यक्ष) निर्योग्यता संबंधी याचिकाएं सौपना युक्तिसंगत और तार्किक प्रतीत नहीं होता है.
दल-परिवर्तन विरोधी कानून के तहत निर्योग्यता के संबंध में अध्यक्ष द्वारा किए जाने वाले निर्णय से संबंधित विलंब पर अंकुश लगाने हेतु: अध्यक्ष के समक्ष लंबित निर्योग्यता संबंधी मामलों के निर्णय में विलंब के कारण, प्राय: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां सदस्यों को अपने दलों से निर्योग्य घोषित किए जाने पर भी वे सदन के सदस्य बने रहते हैं.
मेरी राय – मेंस के लिए
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की “शासन में नैतिकता” नामक शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में और विभिन्न अन्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा सिफारिश की गई है कि सदस्यों को दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराने के मुद्दों के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाना चाहिए.
- जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है, जब तक कि “असाधारण परिस्थितियां” उत्पन्न नहीं हो जाती हैं, दसवीं अनुसूची के तहत निर्योग्यता संबंधी याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा तीन माह के भीतर निर्णय किया जाना चाहिए.
- संसदीय लोकतंत्र के अन्य मॉडलों/उदाहरणों का अनुसरण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यक्ष तटस्थ रूप से निर्णय कर सके. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में यह परिपाटी रही है कि आम चुनावों के समय राजनीतिक दल अध्यक्ष के विरुद्ध निर्वाचन हेतु किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करते हैं और जब तक अन्यथा निर्धारित नहीं हो जाता, अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है. वहां यह भी परिपाटी है कि अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल की सदस्यता से त्याग-पत्र दे देता है.
- वर्ष 1951 और वर्ष 1953 में, भारत में विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में इस ब्रिटिश मॉडल को अपनाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया था.
- हालाँकि, पहले से ही विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के मध्य इस बात पर चर्चा चल रही है कि विशेष रूप से सदस्यों के दल परिवर्तन से संबंधित मामलों में, अध्यक्ष के पद की “गरिमा” को कैसे सुरक्षित किया जाए. इस संदर्भ में, लोकतांत्रिक परंपरा और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि एक सतर्क संसद, दक्षतापूर्ण कार्य करने वाले लोकतंत्र की नींव का निर्माण करती है और पीठासीन अधिकारी इस संस्था की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.
GS Paper 2 Source : Indian Express UPSC Syllabus : India and its neighbourhood- relations. Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests संदर्भ केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर साठ किलोमीटर का क्षेत्र ऐसा है, जहाँ बाड़ (fence) नहीं लगाई जा सकती है. राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में नदियों के होने से ऐसा संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि भूमि अधिकरण के 33 प्रस्ताव पश्चिम बंगाल सरकार के पास लंबित हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की पुलिस सही ढंग से काम नहीं कर रही है. GS Paper 3 Source : The Hindu UPSC Syllabus : Infrastructure: Energy, Ports, Roads, Airports, Railways etc. संदर्भ सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने निर्णय किया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर शुल्क संग्रह प्लाज़ा की सभी लेन को 15 फरवरी/16 फरवरी 2021 की मध्य रात्रि से “शुल्क प्लाजा की फास्टैग लेन” के रूप में घोषित कर दिया जाएगा. राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम 2008 के अनुसार, कोई भी वाहन जिसमें फास्टैग नहीं लगा हुआ है अथवा, जिस वाहन में वैध, कार्यात्मक फास्टैग नहीं है, उसे शुल्क प्लाज़ा में प्रवेश करने पर उस श्रेणी के लिए निर्धारित शुल्क का दोगुना शुल्क के बराबर की राशि का भुगतान करना होगा. पृष्ठभूमि फास्टैग की शुरुआत 2016 में हुई थी और चार बैंकों ने उस साल सामूहिक रूप से एक लाख टैग जारी किए थे. उसके बाद 2017 में सात लाख और 2018 में 34 लाख फास्टैग जारी किए गए. मंत्रालय ने इस साल नवंबर में अधिसूचना जारी कर एक जनवरी, 2021 से पुराने वाहनों या एक दिसंबर, 2017 से पहले के वाहनों के लिए भी फास्टैग को अनिवार्य कर दिया. केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के अनुसार एक दिसंबर, 2017 से नए चार पहिया वाहनों के पंजीकरण के लिए फास्टैग को अनिवार्य किया गया है. इसके अलावा परिवहन वाहनों के फिटनेस प्रमाणपत्र के लिए संबंधित वाहन का फास्टैग जरूरी है. राष्ट्रीय परमिट वाले वाहनों के लिए फास्टैग को एक अक्टूबर, 2019 से अनिवार्य किया गया है. नए तीसरे पक्ष बीमा के लिए भी वैध फास्टैग को अनिवार्य किया गया है, यह एक अप्रैल, 2021 से लागू होगा. यह टोल भुगतान करने के लिए बनाया गया एक उपकरण है. यह रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान (Radio Frequency Identification ) तकनीक का उपयोग करता है और इससे टोल पर प्रीपेड बैलेंस उपयोग करके सीधे भुगतान किया जा सकता है. यह उपकरण कार के आगे वाले शीशे से लगा हुआ होता है जिससे वाहन को टोल पर रुकना आवश्यक नहीं रह जाता है. इस टैग की वैधता पाँच वर्ष तक के लिए होती है और इसे समय-समय पर रिचार्ज करना होता है. GS Paper 3 Source : The Hindu UPSC Syllabus : Indian economy – growth and development. संदर्भ व्यवसाय करने में सुगमता (Ease of Doing Business) को प्रोत्साहन देने के लिए शिक्षु अधिनियम, 1961 में संशोधन किया जाएगा. शिक्षु अधिनियम, 1961 में सुझाए गए कुछ संशोधन हैं :- Funds Allocated to NGOs for Tribal Welfares :- 11 February – World Unani Day 11 :- Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA January, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Topic : 60 km area of India-Bangladesh border can not be fenced, it is prone to infiltration
मुख्य तथ्य
भारत-बांग्लादेश सीमा प्रबंधन के समक्ष चुनौतियाँ
व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली
Topic : Fastags
केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989
FASTAGS क्या है?
इसके क्या लाभ हैं?
Topic : Apprentices Act
शिक्षु अधिनियम, 1961 संशोधन
शिक्षु अधिनियम, 1961
राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना
Prelims Vishesh