Sansar डेली करंट अफेयर्स, 15 February 2022

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Sansar Daily Current Affairs, 15 February 2022


GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे.

Topic : Chintamani Padya Natakam

संदर्भ

हाल ही में, आंध्र प्रदेश सरकार ने 100 वर्ष प्राचीन नाटक ‘चिंतामणि पदया नाटकम’ (Chintamani Padya Natakam) के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है.

पृष्ठभूमि

नाटक के मंचन पर प्रतिबंध लगाने के लिये एक विशेष समुदाय के सदस्यों द्वारा कुछ संवादों और एक चरित्र के चित्रण पर आपत्ति जताई गई थी. आंध्रप्रदेश के आर्य वैश्य समुदाय द्वारा इस नाटक पर प्रतिबंध लगाने के लिए कई वर्षों से राज्य-सरकारों से याचिका की जा रही हैं. इनका कहना है कि यह नाटक उनके समुदाय को एक नकारात्मक रोशनी में चित्रित करता है.

‘चिंतामणि पदया नाटकम’

  • यह नाटक आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व समाज सुधारक, लेखक और कवि ‘कल्लाकुरी नारायण राव’ द्वारा लिखित है. इसका उद्देश्य देह व्यापार के कारण परिवारों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा देवदासी प्रणाली के बारे में जागरूकता का प्रसार करना था.
  • इस नाटक में उद्धृत किया गया है कि कैसे सामाजिक बुराइयों के शिकार हुए लोगों द्वारा अपने परिवारों की उपेक्षा की जाती है. नाटक का नाम मुख्य पात्र चिंतामणि के नाम पर रखा गया है, जो देह व्यापार में शामिल परिवार में जन्मी एक महिला है. सुब्बिसेटी, बिल्वमंगलुडु, भवानी शंकरम और श्रीहरि इस नाटक के अन्य पात्र हैं.

नाटक से संबंधित विवाद

  • मूल नाटक, एक सामाजिक संदेश प्रदान करता था, लेकिन वर्षों के दौरान इस नाटक में संशोधन किए गए और इसे विशुद्ध रूप से मनोरंजन के लिए प्रदर्शित किया जाने लगा.
  • नाटक के संशोधित संस्करण में, लगभग पूरे नाटक में केंद्रीय पात्र ‘सुब्बी शेट्टी’ का अपने अवगुणों की खातिर अपनी सारी संपत्ति गँवा देने के लिए मजाक उड़ाया जाता है.
  • इसके अलावा, नए नाटक की सामग्री और संवाद आपत्तिजनक हो चले हैं, और केंद्रीय चरित्र को हमेशा एक छोटे और काले रंग के व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जाता है.
  • संशोधित नाटक में, शेट्टी के चरित्र को जिस तरह से चित्रित किया जाता है, उससे पूरा समुदाय कलंकित महसूस करता है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.

Topic : Haryana Prevention of Unlawful Conversion of Religious Bill, 2022

संदर्भ

हरियाणा सरकार द्वारा विधिविरुद्ध धर्मांतरण को रोकने के लिए एक कानून बनाया जा रहा है.

अब तक, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने अवैध तरीके से किए जाने वाले धर्म-परिवर्तनों को रोकने के लिए कानून बनाए जा चुके हैं.

हरियाणा गैरकानूनी धर्मांतरण रोकथाम विधेयक, 2022

इस विधेयक में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से, या विवाह के द्वारा अथवा विवाह के लिए, किए जाने वाले धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित करने तथा इस पर रोक लगाने  का प्रस्ताव किया गया है.

सजा: विधेयक में अवयस्क, महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संबंध में ऐसे धर्मांतरण के लिए अधिक दंड का प्रावधान किया गया है.

साबित करने का दायित्व: विधेयक में अभियुक्त पर यह साबित करने का दायित्व सौंपा गया है, कि धर्मांतरण गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके के प्रभाव से नहीं हुआ है, या धर्म- परिवर्तन विवाह के द्वारा अथवा विवाह के लिए नहीं किया गया है.

घोषणा: एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने वाला प्रत्येक व्यक्ति निर्धारित प्राधिकारी को एक घोषणा प्रस्तुत करेगा कि धर्म परिवर्तन गलत बयानी, बल प्रयोग, धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा या विवाह के लिए नहीं था और ऐसा प्राधिकारी ऐसे मामलों में जांच करेगा.

इस विधेयक को पेश करने के पीछे दिए गए तर्क

भारत के संविधान के अनुच्छेद 255, 26, 27 और 28 के अंतर्गत ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी दी गई है जो भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है.

  • संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है.
  • हालाँकि, अंत:करण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार का अर्थ लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है; क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति और जिस व्यक्ति ने धर्मांतरण की मांग की है, का समान रूप से है.
  • फिर भी, सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों प्रकार के धर्मांतरण के कई मामले सामने आए हैं.

‘धर्मांतरण विरोधी कानूनों के अधिनियमन’ के पीछे तर्क

  1. जबरन धर्म परिवर्तन की धमकी
  2. उकसावा या प्रलोभन की समस्या
  3. ‘धर्म परिवर्तन’ मौलिक अधिकार नहीं है.

आलोचकों का पक्ष

कई विधि-वेत्ताओं द्वारा इस प्रकार के कानूनों की कड़ी आलोचना की गई है, इनका तर्क है, कि ‘लव जिहाद’ की अवधारणा का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है.

  • इन्होने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा है, संविधान, व्यक्तियों को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की गारंटी देता है.
  • साथ ही, अनुच्छेद 25 के तहत भी सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और अपनी पसंद के धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने, प्रचार करने, और किसी भी धर्म का पालन न करने के अधिकार की गारंटी दी गयी है.

विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने कई निर्णयों में यह कहा गया है, कि किसी वयस्क को अपना जीवन साथी चुनने संबंधी मामले में पूर्ण अधिकार होता है, और इस पर राज्य और अदालतों का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है.
  2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, लिली थॉमस और सरला मुद्गल, दोनों मामलों में यह पुष्टि की है, कि धार्मिक विश्वास के बिना और कुछ कानूनी लाभ प्राप्त करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए धर्म-परिवर्तन का कोई आधार नहीं है.
  3. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 के ‘सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार’ मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा कि, किसी साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता से सम्बंधित मूल अधिकार’ (अनुच्छेद 21) का भाग है.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.

Topic : Pegasus

संदर्भ

हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार ने जुलाई 2017 में नागरिकों ओअर निगरानी रखने के लिए इजराइली साइबर सुरक्षा कंपनी NSO द्वारा विकसित पेगासस स्पाईवेयर को खरीदा था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने इस सम्बन्ध में इजरायली सरकार के साथ उच्च स्तरीय गुप्त वार्ताएँ भी की थीं तथा एक फिलिस्तीनी संगठन के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र में मतदान भी समझौते का हिस्सा था. इन खुलासों के बाद अब विपक्ष ने सरकार पर संसद में झूठ बोलने का आरोप लगाया तथा सरकार को घेरने के लिए बजट सत्र में इस मुद्दे को पुरज़ोर तरीके से उठाने की योजना बनाई है.

उल्लेखनीय है कि भारत में सत्ताधारी दल, विपक्ष के कई बड़े नेताओं, नौकरशाहों, न्यायाधीशों, पत्रकारों के नाम जासूसी के संभावित पीड़ितों की सूची में हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की जाँच के लिए पूर्व न्यायाधीश आर वी रविन्द्रन की अध्यक्षता में समिति गठित की है.

‘पेगासस’ क्या है?

यह ‘एनएसओ ग्रुप’ (NSO Group) नामक एक इजरायली फर्म द्वारा विकसित एक ‘स्पाइवेयर टूल’ अर्थात जासूसी उपकरण है.

  • यह स्पाइवेयर, लोगों के फोन के माध्यम से उनकी जासूसी करता है.
  • पेगासस, किसी उपयोगकर्ता के फ़ोन पर एक ‘एक्सप्लॉइट लिंक’ (exploit link) भेजता है, और यदि वह लक्षित उपयोगकर्ता, उस लिंक पर क्लिक करता है, तो उसके फोन पर ‘मैलवेयर’ (malware) या ‘जासूसी करने में सक्षम’ कोड इंस्टॉल हो जाता है.
  • एक बार ‘पेगासस’ इंस्टॉल हो जाने पर, हमलावर के पास ‘लक्षित’ उपयोगकर्ता के फोन पर नियंत्रण और पहुँच हो जाती है.

‘पेगासस’ की क्षमताएं:

  • पेगासस, “लोकप्रिय मोबाइल मैसेजिंग ऐप से, लक्षित व्यक्ति का निजी डेटा, उसके पासवर्ड, संपर्क सूची, कैलेंडर ईवेंट, टेक्स्ट संदेश, लाइव वॉयस कॉल आदि को हमलावर के पास पहुंचा सकता है”.
  • यह, जासूसी के के दायरे का विस्तार करते हुए, फ़ोन के आस-पास की सभी गतिविधियों को कैप्चर करने के लिए लक्षित व्यक्ति के फ़ोन कैमरा और माइक्रोफ़ोन को चालू कर सकता है.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

‘जीरो-क्लिक’ अटैक क्या है?

‘जीरो-क्लिक अटैक’ (zero-click attack), पेगासस जैसे स्पाइवेयर को बिना किसी मानवीय संपर्क या मानवीय त्रुटि के, लक्षित डिवाइस पर नियंत्रण हासिल करने में मदद करता है.

  • तो, जब लक्षित डिवाइस ही ‘सिस्टम’ बन जाता है, तो ‘फ़िशिंग हमले से कैसे बचा जाए, या कौन से लिंक पर क्लिक नहीं करना है, इस बारे में सभी तरह की जागरूकता व्यर्थ साबित हो जाती है.
  • इनमें से अधिकतर ‘जीरो-क्लिक अटैक’ किसी भी उपयोगकर्ता द्वारा डिवाइस पर प्राप्त हुए डेटा की विश्वसनीयता निर्धारित करने से पहले ही, सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल कर लेते हैं.

Prelims Vishesh

Pacific Islands Forum :-

  • पहले ‘साउथ पैसिफिक फोरम’ (1971-2000) के नाम से ज्ञात ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ (Pacific Islands Forum) संगठन की स्थापना 1971 में दक्षिण प्रशांत महासागर के स्वतंत्र और स्वशासी राज्यों के सामने आने वाले आम मुद्दों और समस्याओं पर चर्चा करने हेतु सरकार के प्रमुखों के लिए एक समायोजन प्रदान करने के लिए की गई थी.
  • इसमें 18 सदस्य शामिल हैं: ऑस्ट्रेलिया, कुक आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया के संघीय राज्य, फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, किरिबाती, नाउरू, न्यू कैलेडोनिया, न्यूजीलैंड, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, मार्शल आइलैंड्स गणराज्य, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा , तुवालु, और वानुअतु.
  • 2000 में फोरम के नेताओं ने क्षेत्रीय राजनीतिक अस्थिरता की प्रतिक्रिया में ‘बिकेतावा घोषणा’ (Biketawa Declaration) को अपनाया था. इसके तहत, खुले, लोकतांत्रिक और स्वच्छ सरकार को बढ़ावा देने, और साथे ही साथ ही बिना किसी लिंग, जाति, रंग, पंथ, या राजनीतिक विश्वास की परवाह किए नागरिकों के लिए समान अधिकारों हेतु, सदस्यों के लिए ‘सिद्धांतों और कार्यों’ का एक ढांचा सामने रखा गया था.

One Ocean Summit :-

  • हाल ही में, फ्राँस द्वारा संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक के सहयोग से फ्राँस के ब्रेस्ट शहर में ‘वन ओशन समिट’ (One Ocean Summit) का आयोजन किया गया.
  • भारत ने भी इस आयोजन में भाग लिया.
  • ‘वन ओशन समिट’ का लक्ष्य समुद्री मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की महत्वाकांक्षा के सामूहिक स्तर को ऊपर उठाना है.
  • ‘संयुक्त राष्ट्र’ द्वारा घटते समुद्री जीवन को बहाल करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए 2021 और 2030 के बीच के दशक को ‘सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान का दशक’ के रूप में घोषित किया गया है.

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