Sansar Daily Current Affairs, 15 July 2019
GS Paper 1 Source: PIB
Topic : POCSO Act
संदर्भ
पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बाल यौन अपराध सुरक्षा अधिनियम, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) में कतिपय संशोधन के प्रस्ताव को अनुमोदित किया.
मुख्य प्रस्तावित परिवर्तन
- बच्चों के विरुद्ध होने वाले यौन अपराध के लिए कठोर से कठोर दंड, यहाँ तक की मृत्यु दंड, का प्रावधान किया जा रहा है.
- बाल पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने के लिए अर्थ दंड और कारावास का प्रावधान किया जा रहा है.
- प्रस्तावित संशोधनों में प्राकृतिक आपदाओं और वैसी ही अन्य दशाओं में किये जाने वाले यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा का प्रावधान किया जा रहा है.
- इसमें यह भी प्रस्ताव है कि ऐसे मामलों की रोकथाम की जाए जिनमें बच्चों को हार्मोन या रसायनिक पदार्थ की सुई देकर उनमें यौन परिपक्वता लाई जाती है.
प्रभाव
- संशोधन से आशा है कि कठोर दंड के प्रावधान के कारण बाल यौन दुर्व्यवहार के मामलों में कमी आएगी.
- संकट के समय बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाया जा सकेगा और उन्हें सुरक्षित और गरिमामय जीवन बिताने का अवसर मिलेगा.
- संशोधन का उद्देश्य बाल दुर्व्यवहार के विभिन्न पहलुओं में स्पष्टता लाना तथा दंड विषयक प्रावधान करना है.
POCSO अधिनियम क्या है?
बाल यौन अपराध सुरक्षा अधिनियम (POCSO Act) 2012 में पारित हुआ था. इसका उद्देश्य बच्चों के प्रति यौन अपराध पर कारगर ढंग से कार्रवाई सुनिश्चित करना था. इस अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को “बच्चा” कहा गया है. अधिनियम में दी गई परिभाषा के अनुसार यौन अपराध के कई रूप हो सकते हैं, जैसे – यौन उत्पीड़न, अश्लील चित्रण, शारीरिक बलात्कार आदि. इसमें यह भी कहा गया है कि उन यौन अपराधों को भीषण माना जाएगा जिनमें किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चे का उत्पीड़न किया जाएगा और जब इस प्रकार का अपराध ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाएगा जो अन्यथा विश्वास के पात्र होते हैं, यथा – परिवार का सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक अथवा चिकित्सक.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Port integrity campaign
संदर्भ
मैरीटाइम एंटी-करप्शन नेटवर्क (MACN) नामक संस्था ने भारत के बंदरगाहों में भ्रष्टाचार के निवारण के लिए एक अभियान आरम्भ कर दिया है.
यह अभियान क्या है?
यह अभियान भारतीय बंदरगाहों के संचालन में भ्रष्टाचार तथा व्यापार के समक्ष आने वाली समस्याओं को घटाने और दीर्घकाल में दूर करने के लिए चलाया जा रहा है. यह एक सामूहिक अभियान है जिसमें MACN के अतिरिक्त भारत सरकार, अंतर्राष्ट्रीय संगठन और स्थानीय हितधारक उद्योग सम्मिलित हैं. इस अभियान के अंतर्गत चलाई जाने वाली सर्वप्रमुख गतिविधि बंदरगाह के कर्मचारियों को ईमानदारी का प्रशिक्षण देना है.
MACN क्या है?
MACN एक वैश्विक व्यावसायिक संजाल है जिसमें 110 से अधिक कम्पनियाँ सम्मिलित हैं. यह संस्था सामुद्रिक उद्योग में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए काम करती है. इसकी स्थापना 2011 में कुछ प्रतिबद्ध सामुद्रिक कम्पनियों के एक लघु समूह द्वारा की गई थी.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Human Rights courts
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालाय ने प्रत्येक जिले में विशिष्ट मानवाधिकार न्यायालय स्थापित करने और उनमें विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति में पिछले 25 वर्षों से हो रहे विलम्ब के विषय में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और संघीय क्षेत्रों से प्रतिक्रिया माँगी है.
मामला क्या है?
मानवाधिकार अधिनियम में प्रावधान है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन और दुरूपयोग से सम्बंधित अपराधिक मामलों के तीव्र निष्पादन के लिए प्रत्येक जिले में विशिष्ट न्यायालय खोले जाएँ.
इस अधिनियम के अनुभाग 30 में यह अभिकल्पना की गई है कि राज्य सरकार अपने यहाँ के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से एक अधिसूचना निर्गत कर प्रत्येक जिले में सेशन न्यायालय को मानवाधिकार न्यायालय के रूप में चिन्हित करेगी जिससे मानवाधिकार उल्लंघन के वादों को तेजी से निपटाया जा सकेगा.
अधिनियम के अनुभाग 31 में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य सरकार उस मानवाधिकार न्यायालय के लिए एक विशेष अभियोजक की नियुक्ति भी करेगी.
पृष्ठभूमि
भारत में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले सामने आते रहे हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आँकड़ों के अनुसार 2001 से 2010 तक देश में पुलिस और न्यायिक संरक्षा में 14,231 व्यक्तियों का निधन हो गया था. इनमें 1,504 मृत्यु पुलिस संरक्षा में और 12,727 न्यायिक संरक्षा में घटित हुई. इन मौतों में अधिकांश संरक्षा के समय उत्पीड़न के कारण हुई थी.
2018 में भारतीय मानवाधिकार प्रतिवेदन प्रकाशित हुआ था उसमें पुलिस बर्बरता, उत्पीड़न और एनकाउंटर आदि कई मामलों का उल्लेख किया गया था. साथ ही यह बताया गया था कि कारावासों और बंदी केन्द्रों की दशा भयावह है. प्रतिवेदन में सूचित किया गया था कि कई व्यक्तियों को मनमाने और अवैध ढंग से बंदी बनाया गया था और न्यायपूर्ण सार्वजनिक सुनवाई से वंचित किया गया था.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : Transgender Rights Bill
संदर्भ
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक, 2019 का अपना अनुमोदन दे दिया है.
प्रभाव
यह विधेयक अनेक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लाभान्वित करेगा, उनके ऊपर लगने वाली लांछना को घटाएगा तथा साथ ही भेद-भाव और दुर्व्यवहार में कमी लाएगा. इस प्रकार वे समाज की मुख्य धारा में आ सकेंगे और समाज के फलदायी सदस्य बन सकेंगे. यह विधेयक ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से सशक्त करेगा.
नई परिभाषा
जो संशोधन स्वीकार किये गये, उनमें से एक संशोधन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पुरानी परिभाषा को लेकर था जिसमें उन्हें न तो पूर्णतः स्त्री और न ही पूर्णतः पुरुष बताया गया था. इस परिभाषा को संवेदनहीन कह कर इसकी आलोचना की गई थी.
नई परिभाषा के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसका वर्तमान लिंग जन्म के समय उसके लिंग से भिन्न है और इसमें ये व्यक्ति आते हैं – ट्रांस पुरुष अथवा ट्रांस स्त्री, अंतर-यौन विविधताओं वाले व्यक्ति, विचित्र लिंग वाले व्यक्ति तथा सामाजिक-सांस्कृतिक पहचानों वाले कुछ व्यक्ति जैसे – किन्नर, हिजड़ा, अरावानी और जोगटा.
विधेयक के मुख्य तथ्य
- इस विधेयक का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरुद्ध विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे भेदभाव को समाप्त करना है. जिन क्षेत्रों में इनसे भेदभाव होता है, वे हैं – शिक्षा, आजीविका और स्वास्थ्य-देखभाल.
- विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों को इनके लिए कल्याणकारी योजनाएँ चलाने का निर्देश देता है.
- विधेयक में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को ट्रांसजेंडर में रूप में मान्यता उस पहचान प्रमाण-पत्र के आधार पर दी जाएगी जो जिला छटनी समिति के माध्यम से निर्गत होगा. इस प्रमाण-पत्र को ट्रांसजेंडर की पहचान का साक्ष्य माना जाएगा और विधेयक के अंदर विहित अधिकार उसे दिए जाएँगे.
आलोचना
कई सिविल सोसाइटी समूहों ने मुखर होकर इस विधेयक का विरोध किया है. उनकी आलोचनाएँ नीचे दी गई हैं –
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति को यह अधिकार होना चाहिए था कि वह अपनी पहचान स्वयं दे सके, न कि किसी जिला छटनी समिति के माध्यम से.
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण देने के मामले में भी विधेयक मौन है.
- विधेयक में संगठित भीक्षाटन के लिए दंड का प्रावधान किया गया है, परन्तु इसके बदले कोई आर्थिक विकल्प नहीं दिया गया है.
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बलात्कार अथवा यौनाचार के लिए विधेयक में किसी दंड का प्रावधान नहीं है क्योंकि भारतीय दंड संहिता में बलात्कार की परिभाषा में ट्रांसजेंडर को शामिल नहीं किया गया है.
GS Paper 3 Source: Times of India
Topic : Inter-state River Water Disputes (Amendment) Bill
संदर्भ
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 को अनुमोदित कर दिया है. इस विधेयक के माध्यम से 1956 के अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम को संशोधित करते हुए नदी जल से सम्बंधित विवादों के निष्पादन के लिए वर्तमान में उपलब्ध सांस्थिक अवसंरचना को सुदृढ़ बनाया जा रहा है.
विधेयक के मुख्य प्रावधान
- विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार अंतरराज्यीय नदी जल विवादों को प्रेमपूर्वक निष्पादित करने के लिए एक विवाद समाधान समिति (Disputes Resolution Committee – DRC) का गठन करेगी.
- DRC केंद्र सरकार को एक वर्ष के अन्दर अपना प्रतिवेदन समर्पित करेगी. यह अवधि छह महीने तक बधाई जा सकती है.
- केंद्र सरकार DRC के लिए संगत क्षेत्रों से सदस्यों का चुनाव करेगी.
- विधेयक में एक अंतरराज्यीय नदी जल विवाद पंचाट (Inter-State River Water Disputes Tribunal) के गठन का प्रस्ताव है जो उन जल विवादों पर निर्णय सुनाएगा जिनका समाधान DRC से नहीं हो सका है. इस पंचाट के एक से अधिक बेंच हो सकते हैं. वर्तमान में जो पंचाट हैं उन सभी को भंग कर दिया जाएगा और उनके पास जल विवाद के जो लंबित मामले हैं, उन सभी को नव-गठित पंचाट को सौंप दिया जाएगा. इस पंचाट में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य होंगे. ये सदस्य भारत के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से नामित किये जाएँगे.
मूल अधनियम में क्या कमी थी?
- अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 में नदी जल विवादों में न्याय-निर्णय देने के लिए कोई नियत समय-सीमा नहीं दी गई थी. न्याय-निर्णय के लिए नियत समय-सीमा नहीं होने के कारण पंचाट के द्वारा वादों के निष्पादन की गति अत्यंत धीमी रह गई.
- मूल अधिनियम में अध्यक्ष और सदस्यों के लिए अधिकतम आयु सीमा भी नहीं निर्धारित की गई थी.
- पंचाट में कोई रिक्ति हो जाने पर काम रुक जाया करता था.
- मूल अधिनियम में पंचाट द्वारा छापे जाने वाले प्रतिवेदन के लिए भी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई थी.
- नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 अब से पारित हुआ तब से प्रभावीन ही रह गया जबकि इसका काम जल संसाधन विकास में अंतर्राज्यीय सहयोग को सुगम बनाना था.
- धरातल पर उपलब्ध जल का नियंत्रण केन्द्रीय जल आयोग (CWC) के पास है जबकि भूजल का नियंत्रण भारतीय केन्द्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) करता है. ये दोनों निकाय स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और जल प्रबंधन को लेकर राज्य सरकारों के साथ विचार विमर्श के लिए कोई सामान्य मंच नहीं है.
Prelims Vishesh
India-Russia Strategic Economic Dialogue :-
- दूसरे भारत-रूस सामरिक आर्थिक संवाद (IRSED) का आयोजन हो रहा है.
- विदित हो कि IRSED का गठन नीति आयोग और रूस के आर्थिक विकास मंत्रालय ने संयुक्त रूप से उस समय किया था जब 2018 में नई दिल्ली में वार्षिक भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन चल रहा था.
- यह संवाद पहली बार 2018 में ही सेंट पीटर्सबर्ग में सम्पन्न हुआ था.
Plan Bee :–
- पूर्वोत्तर सीमान्त रेलवे (NFR) ने रेल की पटरियों से जंगली हाथियों को भगाने के लिए एक उपाय निकाला है जिसमें मधुमक्खियों की भिनभिनाहट को एक ध्वनि-विस्तारक यंत्र से बजाया जाता है. इसको सुन कर हाथी भाग खड़े होते हैं.
- विदित हो कि इस उपाय को गत वित्तीय वर्ष में सर्वोत्तम नवाचार पुरस्कार दिया गया था.
Utkarsha 2022 :-
केन्द्रीय बैंकों के लिए बनाई गई वैश्विक योजना के अनुरूप नियामक और पर्यवेक्षणात्मक तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक त्रि-वर्षीय कार्ययोजना बनाई है जिसे उत्कर्ष 2022 का नाम दिया गया है.
Green tax on plane tickets :–
- फ्रांस में 2020 से हवाई टिकटों पर ग्रीन कर लगाया जाएगा.
- आशा की जाती है कि ऐसा करने से प्रत्येक वर्ष लगभग 182 मिलियन यूरो की राशि प्राप्त होगी जिसका निवेश रेल जैसी सुविधाओं में हरित परिवहन अवसंरचना के निर्माण में किया जाएगा.
- यह कर केवल उन टिकटों पर लगाया जाएगा जिनसे लोग फ्रांस के बाहर जाएँगे.
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