Sansar Daily Current Affairs, 15 May 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty
संदर्भ
व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन (Comprehensive Test Ban Treaty Organization – CTBTO) के कार्यकारी सचिव ने भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा देने और अधुनिकतम अंतर्राष्ट्रीय अनुश्रवन प्रणाली के डाटा को उसके लिए सुलभ बनाने का प्रस्ताव किया है.
पर्यवेक्षक बनने के लाभ
यदि भारत CTBT संगठन का पर्यवेक्षकबन जाता है तो उसे आने वाले वर्षों में कई लाभ प्राप्त होंगे. इससे भारत ऐसे डाटा हासिल करने में समर्थ हो जाएगा जो परम्परागत रूप से उसके लिए सुलभ नहीं हैं.
व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन क्या है?
- CTBT एक ऐसी संधि है जो सभी प्रकार के आणविक विस्फोट को निषिद्ध करती है. इस संधि की रुपरेखा जेनेवा में हुए निरस्त्रीकरण सम्मेलन में तैयार की गई थी और इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंगीकृत कर लिया था. 24 सितम्बर, 1996 से यह संधि हस्ताक्षर के लिए खुली हुई है.
- अब तक 180 से अधिक देशों ने CTBT हस्ताक्षरित कर दिए हैं और उनमें अधिकांश ने उसकी पुष्टि भी कर दी है. परन्तु यह संधि तभी प्रभावी होगी जब इसकी पुष्टि वे आठ देश न कर दें जिनके पास आणविक क्षमता है. ये देश हैं – चीन, मिस्र, भारत, ईरान, इज़राइल, उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका.
भारत और CTBT
भारत को आरम्भ से ही CTBT पर कुछ आपत्तियाँ हैं. भारत भी चाहता है कि यह विश्व आणविक अस्त्रों से मुक्त हो. पर उसका कहना है कि निरस्त्रीकरण एक अंतिम लक्ष्य है जिसका मार्ग परीक्षण पर प्रतिबंध से होकर जाता है.
भारत के अनुसार यह एक जटिल विषय है. भारत को संधि की धारा 14 के Entry-into-force (EIF) अनुच्छेद पर भी अप्पत्ति है क्योंकि किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि में प्रतिभागिता को स्वेच्छा से रोके रखने के अधिकार का यह उल्लंघन है.
संधि की आवश्यकता
आणविक निरस्त्रीकरण और आणविक अप्रसार के लक्ष्य को पाने में CTBT की एक प्रमुख भूमिका है. इस संधि के बने हुए 20 वर्ष हो गये हैं पर अभी भी इसे लागू नहीं किया जा सका है. इसे लागू करने में विफलता के कारण इसे पूरे तौर से कार्यान्वित नहीं किया जा रहा है जिसका असर अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ रहा है.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : Global Facility for Disaster Reduction and Recovery (GFDRR)
संदर्भ
भारत को वित्त वर्ष 2020 के लिए वैश्विक आपदा न्यूनीकरण और स्थिति बहाली समूह (GFDDR) का सर्वसम्मति से सहअध्यक्ष चुना गया है. ये फैसला GFDDR के सलाहकार समूह की आज स्विट्जरलैंड के जेनेवा में हुई बैठक में लिया गया. अफ्रीकी कैरिबियाई और प्रशांत समूह के देशों, यूरोपीय संघ और विश्व बैंक ने सलाहकार समूह बैठक की सह-अध्यक्षता की. GFDDR, यूएनडीआरआर और यूरोपीय संघ के साथ मिलकर 13 से 14 मई, 2019 तक विश्व पुर्नसंरचना सम्मेलन के चौथे संस्करण का भी आयोजन करेगा.
पृष्ठभूमि
भारत 2015 में GFDDR के सलाहकार समूह का सदस्य बना और अक्टूबर 2018 में आयोजित समूह की अंतिम बैठक की सह-अध्यक्षता करने की इच्छा व्यक्त की थी. देश में आपदा जोखिम में कमी लाने में निरंतर प्रगति तथा इसके लिए अनुकूल अवसंरचना विकसित करने के लिए साझेदारी की पहल को ध्यान में रखते हुए सह-अध्यक्षता के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया गया.
GFDDR क्या है?
- GFDDR एक वैश्विक साझेदारी वाला संगठन है जो विकासशील देशों को प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में मदद करता है.
- GFDDR विश्व बैंक द्वारा प्रबंधित एक ऐसा संगठन है जो दुनिया भर में आपदा जोखिम प्रबंधन परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद देता है.
- यह वर्तमान में 400 से अधिक स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ काम कर रहा है और उन्हें ज्ञान, वित्त पोषण और तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है.
माहात्म्य
- यह देश को आने वाले समय में आपदा जोखिम न्यूनीकरण एजेंडा को आगे बढ़ाने की दिशा में सक्रिय योगदान के साथ GFDDR के सदस्य देशों और उसके संगठनों के साथ काम करने का अवसर देगा.
- यह पहली बार है जब भारत को GFDDR की सलाहकार समूह बैठक की सह-अध्यक्षता का अवसर दिया गया है.
- भारत GFDDR के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर केंद्रित एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहता है और उसके कार्यकलापों के साथ तालमेल विकसित करना चाहता है.
- आपदा से निपटने में सक्षम बुनियादी ढांचे का विकास GFDDR के भागीदार देशों और हितधारकों के साथ भारत के जुड़ाव का मुख्य विषय होगा.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : World Reconstruction Conference (WRC4)
संदर्भ
हाल ही में जेनेवा में विश्व पुनर्निर्माण सम्मलेन की चौथी बैठक सम्पन्न हुई. यह आयोजन वैश्विक आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच की छठी बैठक के साथ-साथ हुआ. इस बैठक की थीम थी – “Inclusion for Resilient Recovery”.
इस बैठक में ये लोग शामिल हुए – सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों, निजी प्रक्षेत्रों, शैक्षणिक जगत, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं समुदाय पर आधारित संगठनों के विशेषज्ञ, कार्यकर्ता एवं हितधारक.
विश्व पुनर्निर्माण सम्मलेन क्या है?
यह एक वैश्विक मंच है जहाँ आपदा पुनर्निर्माण तथा राहतकारी कार्यों से सम्बंधित अनुभवों का संग्रह, मूल्यांकन और आदान-प्रदान होता है.
इस बार की थीम का माहात्म्य
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि विश्व पुनर्निमाण सम्मलेन की चौथी बैठक की थीम Inclusion for Resilient Recovery रखी गई है. इसका अर्थ यह हुआ कि इसमें आपदा के प्रबंधन में समाज के हर वर्ग को शामिल करने पर बल दिया गया है.
जिन लोगों को उनकी उम्र, लिंग, अशक्तता, नस्ल, धर्म, भौगोलिक स्थिति, आर्थिक दशा, राजनीतिक जुड़ाव, स्वास्थ्य की समस्याओं आदि के आधार पर वंचित रखा जाता है उनकी योग्यता, गरिमा और उनको प्राप्त होने वाला अवसर में सुधार लाना आवश्यक है. तभी सम्पूर्ण समाज आपदा से लड़ सकेगा और तब जाकर आपदा के उपरान्त पुनर्निमाण का कार्य टिकाऊ सिद्ध हो सकेगा.
आवश्यकता: ज्ञातव्य है कि आपदा प्रबंधन में समावेशी दृष्टिकोण पर कई मंचों से बल दिया गया है. उदाहरणार्थ सतत विकास लक्ष्यों के लिए एजेंडा 2030 के द्वारा जो अंतर्राष्ट्रीय तंत्र स्थापित हुए हैं उनमें समावेशन का ध्यान रखा गया है. इसी प्रकार आपदा जोखिम न्यूनीकरण का सेंडाई ढाँचा तथा जलवायु से सम्बंधित पेरिस समझौता भी इस बात की वकालत करते हैं कि यदि उद्धार कार्य टिकाऊ बनाना है तो समाज के सभी वर्गों को इसमें समाविष्ट करना आवश्यक है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : YUva VIgyani KAryakram
संदर्भ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने सरकार की दूरदर्शिता “जय विज्ञान, जय अनुसंधान” के तर्ज पर स्कूली बच्चों के लिए इस वर्ष से “युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम” (युविका) नामक एक विशेष कार्यक्रम शुरू की है.
कार्यक्रम का लक्ष्य
- कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य युवाओं को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष विज्ञान तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोगों पर मौलिक ज्ञान देना है ताकि अंतरिक्ष गतिविधियों के बढ़ते क्षेत्र में उनकी रूचि पैदा की जा सके.
- कार्यक्रम का लक्ष्य युवाओं में जागरूकता पैदा करना है जो हमारे देश के भविष्य की निर्माण इकाईयाँ हैं. इसरो ने उन्हें “युवा रूप में ही चुनने” की योजना बनाई है.
- कार्यक्रम गर्मी की छुट्टियों (मई 2019 के उत्तरार्ध) में 2 सप्ताह की अवधि का होगा तथा कार्यक्रम में प्रमुख वैज्ञानिकों से आमंत्रित व्याख्यान, उनके द्वारा अनुभव साझा करना, सुविधाओं एवं प्रयोगशालाओं को देखने जाना, विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के लिए अनन्य सत्र, व्यावहारिक एवं प्रतिपुष्टि सत्र, आदि सम्मिलित होंगे.
- इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सी.बी.एस.ई., आई.सी.एस.ई. तथा राज्य पाठ्यक्रम सम्मिलित करते हुए प्रत्येक राज्य/संघशासित प्रदेश से तीन विद्यार्थियों को चुनने का प्रस्ताव है.
अर्हता
इस कार्यक्रम के लिए कुछ सीटें ही बची हैं तथा ऑनलाइन पंजीकरण के जरिए चुनने का प्रस्ताव है. ऐसे विद्यार्थी जिन्होंने अभी 9वीं कक्षा उत्तीर्ण की है (शैक्षणिक वर्ष 2018-19 में) तथा 10वीं कक्षा में जाने वाले हैं (या अभी ही 10वीं में प्रवेश लिया है), वे आनलाइन पंजीकरण हेतु योग्य होंगे. ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को चुनाव मानदंड में विशेष अधिभार दिया गया है. यदि चुने गए अभ्यर्थियों में बराबरी हो जाती है तो युवा अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी.
GS Paper 3 Source: Indian Express
Topic : The menace of wastewater
संदर्भ
भारत भर में घटते हुए भूजल की समस्या के निदान के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal – NGT) ने 18 राज्यों और 2 संघीय क्षेत्रों को निर्देश दिया है कि उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग के विषय में वे अपनी-अपनी कार्ययोजनाएँ तीन महीने के भीतर-भीतर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board – CPCB) के समक्ष प्रस्तुत करें.
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- आपूर्ति किये गये जल का लगभग 80% पारिस्थितिकी तंत्र में अपशिष्ट जल के रूप में वापस पहुँच जाता है. यदि इस जल का ठीक से उपचार न हो तो यह वातावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी विकट खतरा बन सकता है. वहीं यदि इसका सही प्रबंधन हो तो किसी भी शहर की पानी की माँग को पूरा करने में सहायता मिल सकती है.
- वर्त्तमान में भारत के पास अपशिष्ट जल के लगभग 37% का उपचार करने की क्षमता है. इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक दिन 22,963 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल का उपचार हो सकता है. दूसरी ओर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2015 के प्रतिवेदन के अनुसार भारत में नित्यप्रति लगभग 61,754 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल नालों में आता है.
- यह बात भी है कि अभी जो नाला उपचार संयंत्र लगे हुए हैं उनमें से अधिकांश अपनी उच्चतम क्षमता पर काम नहीं कर रहे हैं और न ही वे विहित मानकों पर खरे उतरते हैं.
समय की माँग
अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा. अधिकतः हमारा दृष्टिकोण होता है – “उपभोग करो और फेक दो”. इसके स्थान पर हमारा दृष्टिकोण होना चाहिए – “उपयोग करो, उपचार करो और फिर से उपयोग करो”.
यह आवश्यक है कि अपशिष्ट जल के प्रबंधन के संदर्भ में सामाजिक, राजनीतिक, तकनीकी और वित्तीय कारकों को समझा जाए और तदनुसार कार्रवाई की जाए. ज्ञातव्य है कि सतत विकास लक्ष्य संख्या 6 विशेष रूप से जल और स्वच्छता पर बल देता है और इसका लक्ष्य संख्या 3 इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट करता है कि जल की गुणवता और सुलभता एक ऐसी वस्तु है जिसपर विकास के सभी पहलू निर्भर होते हैं. सीधे शब्दों में कहा जाए तो जल ही जीवन है और अपशिष्ट जल के कुशल प्रबंधन के माध्यम से इस मूल्यवान संसाधन को बर्बाद होने से रोकना आवश्यक है अन्यथा करोड़ों जीवन खतरे में पड़ सकते हैं.
Prelims Vishesh
Lecanorchis taiwaniana :–
- यह एक प्रकार का ऑर्किड फूल है जो असम में हाल ही में देखा गया है.
- यह फूल पहले भारतवर्ष में कहीं नहीं देखा गया था. वैसे ऑर्किड की यह प्रजाति जापान, ताइवान और लाओस में सरलता से पाई जाती है.
- यह अब तक ज्ञात उन दो परजीवी पौधों में से एक है जिन्होंने प्रकाश संश्लेषण करना बंद कर दिया है.
- यह फूल अपना पोषण और ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण के बदले फफूंद से प्राप्त करता है.
- आकार और खिले रहने की अवधि के हिसाब से यह भारत के सबसे छोटे ऑर्किडों में से एक है जिसका रिकॉर्ड वनस्पतिशास्त्र में मिलता हो.
- भारत में वैसे ऑर्किडों की लगभग 1,300 प्रजातियाँ हैं.
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