Sansar Daily Current Affairs, 16 January 2019
GS Paper 1 Source: The Hindu
Topic : Spiritual circuit in Kerala
संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक परियोजना का उद्घाटन किया है जिसके अन्दर के केरल के तीन प्रमुख तीर्थस्थलों के लिए एक आध्यात्मिक परिपथ (spiritual circuit) बनाया जाएगा. ये तीर्थस्थल हैं – श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर, अरणमूल और सबरीमला.
- इनमें श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर विशेष महत्त्व है क्योंकि यह भगवान् विष्णु के 108 दिव्यदेशमों में एक माना जाता है.
- यह परियोजना पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत कार्यान्वित की जायेगी.
स्वदेश दर्शन योजना के बारे में
- जनवरी, 2015 में पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘स्वदेश दर्शन’ योजना शुरू की गई थी.
- यह योजना 100% केंद्रीय रूप से वित्त पोषित है.
- इस योजना के लिए केन्द्रीय लोक उपक्रम और निगम क्षेत्र की कंपनियाँ CSR (Corporate Social Responsibility) के अंदर अपना वित्तीय सहयोग स्वैच्छिक रूप से करेंगी.
- प्रत्येक योजना के लिए दिया गया वित्त अलग-अलग राज्य में अलग होगा जो कार्यक्रम प्रबंधन परामर्शी (Programme Management Consultant – PMC) द्वारा तैयार किये गये विस्तृत परियोजना प्रतिवेदनों (DPR) के आधार पर निर्धारित किया जायेगा.
- एक राष्ट्रीय संचालन समिति (National Steering Committee – NSC) गठित की जाएगी. जिसके अध्यक्ष पर्यटन मंत्री होंगे. यह समिति इस मिशन के लक्ष्यों और योजना के स्वरूप का निर्धारण करेगी.
- कार्यक्रम प्रबन्धन परामर्शी की नियुक्ति मिशन निदेशालय (Mission Directorate) द्वारा की जायेगी.
- पर्यटन मंत्रालय ने देश में थीम आधारित पर्यटन सर्किट विकसित करने के उद्देश्य से ‘स्वदेश दर्शन’ योजना शुरू की थी.
- इस योजना के अंतर्गत स्वीकृत परियोजनाओं के पूरा हो जाने पर पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे स्थानीय समुदाय हेतु रोजगार के अवसर पैदा होंगे.
- योजना के अंतर्गत 13 विषयगत सर्किट के विकास हेतु पहचान की गई है, ये सर्किट हैं :- पूर्वोत्तर भारत सर्किट, बौद्ध सर्किट, हिमालय सर्किट, तटीय सर्किट, कृष्णा सर्किट, डेजर्ट सर्किट, आदिवासी सर्किट, पारिस्थितिकी सर्किट, वन्यजीव सर्किट, ग्रामीण सर्किट, आध्यात्मिक सर्किट, रामायण सर्किट और विरासत सर्किट.
GS Paper 1 Source: The Hindu
Topic : Womaniya on GeM
संदर्भ
महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को उनके विभिन्न उत्पादों को बेचने के लिए एक मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य सरकारी ई-मार्किट बाजार (Government e-Marketplace – GeM) ने वूमेनिया ऑन GeM (Womaniya on GeM) नामक एक योजना आरम्भ की है.
योजना के मुख्य तथ्य
- इस पहल का लक्ष्य समाज के वंचित तबके की महिला उद्यमियों को लिंग-समावेशी आर्थिक विकास (gender inclusive economic growth) का अवसर प्रदान करना है.
- इस योजना के तहत उद्यमी महिलाएँ और स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ हस्तशिल्प, हथकरघा उत्पादों, जूट और नारियल के रेशे के उत्पादों, गृह-सज्जा एवं कार्यालय-सज्जा की वस्तुओं को सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों एवं संस्थानों को सीधे-सीधे बेच सकेंगी.
योजना का माहात्म्य
भारत में महिलाओं के स्वामित्व वाले लगभग 80% प्रतिष्ठान अपनी पूँजी से चलते हैं. पुनः इन प्रतिष्ठानों में भी 60% ऐसे प्रतिष्ठान हैं जिनका स्वामित्व और नेतृत्व सामाजिक रूप से पिछड़े तबकों की महिलाओं के पास है. महिलाएँ अपनी आय का 90% तक अपने परिवार और बच्चों को बेहतर पोषण, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा पर खर्च कर देती हैं. ऐसी दशा में उनकी निर्धनता को दूर किये बिना उनका आर्थिक सशक्तीकरण संभव नहीं है और यह काम Womaniya पहल से पूरा किया सकता है.
संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य – 5 (UN SDG 5) में लैंगिक समानता और सभी स्त्रियों एवं बालिकाओं को सशक्त करने की बात कही गई है. यह लक्ष्य Womaniya कार्यक्रम से प्राप्त किया जा सकता है.
GeM क्या है?
- सरकारी ई-बाजार एक ऑनलाइन बाजार है जिसके माध्यम से सरकार के विभिन्न मंत्रालय एवं एजेंसियाँ और सेवाओं का क्रय करती हैं.
- यह बाजार केन्द्र सरकार के विभागों, राज्य सरकार के विभागों, लोक उपक्रम प्रतिष्ठानों और सम्बद्ध निकायों के लिए है.
- यह एक सर्वसमावेशी अभियान है जिसमें सभी प्रकार के विक्रेताओं और सेवा-प्रदाताओं को सशक्त किया जाएगा, जैसे – MSMEs, स्टार्ट-अप, स्वदेशी निर्माता, महिला उद्यमी, स्वयं सहायता समूह (SHGs).
- इस बाजार का उद्देश्य सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार दूर करना तथा उसमें पारदर्शिता, सक्षमता और गति लाना है.
- सरकारी ई-बाजार एक 100% सरकारी कम्पनी है जिसकी स्थापना केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन हुई है.
GEM से फायदे
- विक्रेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा के चलते उत्पाद की कीमतों में कमी (15-20% ↓)
- अवैध रूप से सरकारी खरीददारी पर रोक लगेगी.
- इस अभियान का एक उद्देश्य नकद रहित, सम्पर्क रहित और कागज़ रहित लेन-देन को बढ़ावा देना है जिससे कि डिजिटल इंडिया के लक्ष्य को पाया जा सके.
GEM पोर्टल में आने वाली दिक्कतें
- GeM के माध्यम से खरीददारी कर रहे लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि GeM किसी भी तरह की खरीद-बिक्री की जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेता.
- इस पोर्टल पर उपलब्ध सामान की कीमत और उपलब्धता पर इसे चलाने वाले विभाग DGS&D का कोई नियंत्रण नहीं होता.
- उत्पादों की रेट एक समान नहीं है और हमेशा उतार-चढ़ाव होता रहता है जिससे एक ही विभाग एक ही सामान के अलग-अलग समय पर अलग-अलग दाम चुकाता है.
- GeM के जरिये खरीददारी करते वक़्त कई अलग-अलग ID देनी पड़ती है. इसे लेकर अधिकृत अधिकारी एतराज जताते हैं.
GS Paper 1 Source: The Hindu
Topic : Citizenship Bill and Chakma and Hajong communities
संदर्भ
अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के स्थानीय लोग नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 का विरोध कर रहे हैं. इस विरोध के पीछे उनकी यह आशंका है कि इस विधेयक के कानून बन जाने पर चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को भारतीय नागरिक बनने का कानूनी आधार बन जाएगा.
विवाद क्या है?
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 में यह प्रस्ताव है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाक्सितान से आये हुए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के व्यक्तियों को भारत में छ: वर्ष बिताने के पश्चात् नागरिकता मिल जायेगी चाहे उनके पास वैध दस्तावेज हों या नहीं. स्थानीय लोगों को डर है कि इस कानून से चकमा और हाजोंग शरणार्थी भारत के नागरिक बन जाएँगे, जो वे नहीं चाहते.
चकमा और हाजोंग कौन हैं?
- चकमा और हाजोंग भूतपूर्व पूर्वी पाकिस्तान की चटगाँव पहाड़ियों के मूल-निवासी हैं. परन्तु उनको अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी क्योंकि उनमें धार्मिक अत्याचार हुए और उनकी भूसम्पत्तियाँ1960 के दशक में कपतयी बाँध परियोजना में चली गई.
- चकमा समुदाय बौद्ध धर्म का पालन करते हैं और हाजोम हिन्दू होते हैं. दोनों समुदाय धार्मिक अत्याचार के शिकार थे. इस अत्याचार से बचने के लिए वे असम के लुशाई हिल जिले (अब यह मिजोरम में है) से होते हुए भारत में प्रवेश कर गये थे. उस समय केंद्र सरकार ने उनमें से अधिकांश को वहाँ से ले जाकर पूर्वोत्तर सीमांत एजेंसी (North East Frontier Agency – NEFA) बसा दिया. NEFA का नाम अब अरुणाचल प्रदेश हो गया है.
- 1964-69 में चकमा और हाजोंग जनों की संख्या 5,000 के लगभग थी जो अब बढ़ते-बढ़ते एक लाख हो गई है. ये भारत में लगभग 50 वर्षों से हैं, किन्तु इनको न तो नागरिकता मिली है और न भूमि खरीदने का अधिकार मिला है. हाँ यह अवश्य है कि राज्य सरकारें इन्हें मूलभूत सुविधाएँ देती हैं.
GS Paper 2 Source: Livemint
Topic : Global Housing Technology Challenge
संदर्भ
भारत सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना – शहरी (PMAY-Urban) के अंतर्गत वैश्विक आवास-निर्माण प्रौद्योगिकी से सम्बंधित एक चुनौती का अनावरण किया है.
- इस चुनौती का उद्देश्य सस्ते घरों के निर्माण की गति को तीव्र करना है जिससे 2022 तक 2 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके.
- इस चुनौती में ASHA अर्थात् Affordable Sustainable Housing Accelerators के सहयोग से गृह-निर्माण परियोजनाओं के लिए अनुभवसिद्ध तकनीक का पता लगाना है.
चुनौती में निहित उद्देश्य
- इस चुनौती का उद्देश्य ऐसी निर्माण-तकनीकों का पता लगाना है जो सस्ती हों और घर बनाने में तीन महीने से भी कम का समय लेती हों. विदित हो कि गृह-निर्माण में सामन्यतः तीन वर्ष लगते हैं.
- इसका उद्देश्य प्रधानमन्त्री आवास योजना – शहरी के अंतर्गत बड़े पैमाने पर होने वाले निर्माण-कार्य में व्यापक बदलाव लाया जाए और इसके लिए विश्व-भर में प्रचलित सर्वोत्कृष्ट निर्माण-तकनीक का प्रयोग किया जाए.
PMAY-Urban क्या है?
प्रधानमन्त्री आवास योजना (शहरी) एक निर्माण कार्यक्रम है जिसका अनावरण आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय (MoHUPA) द्वारा किया गया है.
- सरकार का यह मिशन है कि2022, जब भारत के स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे, तक सभी शहरों में सभी के लिए आवास हो जाए.
- इस योजना के लाभार्थी वे गरीब लोग, EWS (Economically Weak Sections) के नीचे के लोग और LIG (Low Income Group) के लोग होंगे.
- यह योजना तीन चरणों में पूरी की जायेगी –
- पहले चरण में अप्रैल 2015 से मार्च 2017 में 100 शहरों में ऐसे आवास बनाए जायेंगे.
- दूसरे चरण में अप्रैल 2017 से मार्च 2019 में 200 और शहरों को लिया जायेगा.
- तीसरे चरण में अप्रैल 2019 से मार्च 2022 में बाकी शहर इस योजना में शामिल किये जायेंगे.
- योजना के अंतर्गत प्रत्येक लाभार्थी को आवास बनाने के लिए एक लाख रु. दिया जाता है.
- यदि लाभार्थी अपने आवास का जीर्णोद्धार (renovation) करना चाहे तो उसको डेढ़ लाख रु. का ऋण भी दिया जाता है.
- इस ऋण पर 15 साल तक के लिए 5% की घटी हुई दर पर सूद लिया जाता है.
योजना का माहात्म्य
- इस योजन से कई क्षेत्रों को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा.
- एक करोड़ घर बनने का अर्थ है कि इसके लिए दो लाख करोड़ रु. के गृह ऋण का वितरण अवश्य होगा. साथ ही इस कार्य को पूरा करने में 80 से 100 मिलियन टन सीमेंट और 10 से 15 मिलियन टन इस्पात की आवश्कता होगी जिससे अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा.
- एक करोड़ घर बनाने में लगभग 4 बिलियन वर्ग फीट जमीन जमीन लगेगी.
- उपर्युक्त कारणों से संभावना है कि जब तक यह योजना चलेगी तब तक 9 से 10 करोड़ रोजगार के मौके मिलेंगे.
चुनौतियाँ
यह योजना अत्यंत विशाल योजना है परन्तु इसमें कई बाधाएँ भी हैं. कई बार अच्छी जगह जमीन नहीं मिलती है तो कहीं अपने ब्रांड की साख में क्षति अनुभव करते हुए निजी भवन निर्माता उत्साह से भाग नहीं लेते हैं. बोली लगाने कि प्रणाली, लागत एवं काम पूरा करने की समय-सीमा की कठोरता आदि ऐसे कई कारण हैं जिनसे भवन-निर्माण का कार्य उतनी तेजी से हो रहा है और इसके परिणामस्वरूप निर्माण की सामग्री थोक-भाव में उपलब्ध नहीं होने के कारण लागत भी बढ़ती जा रही है. इसके अतिरिक्त नई तकनीक के अभाव में उत्पादकता, लागत क्षमता एवं गुणवत्ता प्रभावित हो रही है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Congenital Central Hypoventilation Syndrome (CCHS)
संदर्भ
हाल ही में दिल्ली में एक बच्चा जन्मजात केन्द्रीय अल्पस्वास रोग (Congenital Central Hypoventilation Syndrome – CCHS) नामक विरल बिमारी से ग्रस्त पाया गया.
जन्मजात केन्द्रीय अल्पस्वास रोग क्या है?
- यह स्नायु-तन्त्र की ऐसी बीमारी है जिसमें रोगी जब सोने जाता है उसकी साँसें कम हो जाती हैं. इस कारण उसके शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाता है. कभी-कभी इसके चलते रोगी का देहांत भी हो जाता है. यह एक विरल रोग है क्योंकि पूरे विश्व में इसके मामले 1,000 से भी कम हैं.
- यद्यपि रोग के नाम में ही “जन्मजात” शब्द है, फिर भी इस रोग के कुछ प्रकार वयस्कों में भी मिल सकते हैं. सच्चाई यह है कि यह रोग जन्मजात से अधिक वयस्क अवस्था में होने वाला रोग है. पिछले वर्षों में कई चिकित्सा पत्रिकाओं में इस बिमारी के वयस्क मामलों की रपट प्रकाशित हुई है.
- इस रोग का एक और नाम ऑनडाइन अभिशाप (Ondine’s Curse) है. ज्ञातव्य है कि फ्रांस में प्रचलित एक मिथक में ऑनडाइन नामक एक परी होती है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने अपने धोखा देने वाले पति को यह अभिशाप दिया था कि वह जैसे ही सोयेगा, वैसे ही वह साँस लेना भूल जाएगा.
रोग के कारण
- PHOX2B नामक जीन में रूपांतरण होने के कारण यह रोग हो सकता है. विदित हो कि यह जीन शरीर में स्नायु-कोषांगों के परिपक्व होने के लिए आवश्यक होता है.
- जब यह रोग आनुवंशिक होता है तो इसे जन्मजात कह सकते हैं, किन्तु जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि इस रोग का वयस्क अवस्था में अकस्मात् होना अधिक देखा जाता है.
उपचार
इस रोग के उपचार के लिए यांत्रिक श्वसन प्रणाली अथवा डायफ्राम पेसमकर का प्रयोग किया जाता है. यदि जनमते ही किसी बच्चे में इस रोग का पता चल जाता है और बचपन-भर उसको सही ढंग से श्वसन पर रखा जाता है तो वह 20 से लेकर 30 वर्ष पहुँच सकता है और बिना किसी सहायता के जीवन-यापन कर सकता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Half done: on the ban on plastic
संदर्भ
गत वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर घोषित अपने “प्लास्टिक प्रदूषण हटाओ” संकल्प के कारण भारत की विश्व-भर में प्रशंसा की गई है. विदित हो कि यह संकल्प 2022 तक प्लास्टिक के एकल प्रयोग को दूर करने के संदर्भ में किया गया था.
प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए भारत द्वारा किये गये प्रयास
- अभी तक प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए भारत के 22 राज्यों और संघीय क्षेत्रों ने कमर कस ली है. इसके लिए उन्होंने प्लास्टिक के एकल प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
- पुडुचेरी मार्च 1, 2019 से इस आशय का प्रतिबंध लगाने जा रहा है. यहाँ एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक का अभिप्राय है – थैलियाँ, कप, प्लेट, खाने-पीने के बर्तन, सींक और थर्मोकोल उत्पाद.
- इन सभी प्रयासों के सकारात्मक परिणाम हुए हैं. उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में जहाँ पहले प्रत्येक दिन दो टन प्लास्टिक कचरे जमा होते थे, अब वहाँ 100 किलो से भी कम ऐसे कचरे निकलते हैं.
- लोगों ने स्वेच्छा इस दिशा में काम किये हैं, जैसे – प्लास्टिक कचरा कम करना, प्लास्टिक की चीजों को फिर से उपयोग में लाना और कचरे को छाँटना आदि.
चुनौतियाँ
- अभी भी भोज्य पदार्थों, प्रसाधनों और दैनंदिन की सामग्रियों तथा साथ-ही ऑनलाइन प्रतिष्ठानों द्वारा भेजी गई सामग्रियों में प्लास्टिक से डिब्बाबंदी का काम चल ही रहा है.
- यद्यपि प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 में स्पष्ट कहा गया था कि उत्पादक, निर्यातक और ब्रांडों के स्वामी यह सुनिश्चित करें कि पर्यावरण में वे जो प्लास्टिक डालते हैं, उसको वापस ले लेने की व्यवस्था वे अवश्य करें. परन्तु इस दिशा में बहुत कम काम हुआ है.
- एक ओर जहाँ प्लास्टिक के छोटे-मोटे उत्पादक प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर इससे बड़ी इकाइयाँ बच कर निकल रही हैं और पहले के समान ही अपना व्यवसाय चला रही हैं.
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के उद्देश्य
- प्लास्टिक थैलियों की न्यूनतम मोटाई को 40 से 50 माइक्रोन से बढ़ाना.
- प्लास्टिक शीटों के लिए कम-से-कम 50 माइक्रोन की मोटाई का नियम रखना.
- प्लास्टिक कचरे के संग्रह और पुनः उपयोग की व्यवस्था करना.
- प्लास्टिक से सम्बंधित निर्देशों को गाँवों में भी लागू करना क्योंकि ये कचरे नगरों के अतिरिक्त अब गाँवों में भी मिलते हैं.
- उत्पादकों और ब्रांड के स्वामियों को यह उत्तरदायित्व देना कि वे प्लास्टिक कचरे को वापस लेने की व्यवस्था करें.
- प्लास्टिक कचरे के संग्रह के लिए शुल्क का प्रावधान करना.
- सड़क बनाने में प्लास्टिक कचरे के प्रयोग को बढ़ावा देना.
- प्लास्टिक कचरे का फलदायी प्रयोग करना.
- कचरे के निपटान की समस्या का समाधान करना.
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