Sansar डेली करंट अफेयर्स, 16 September 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 16 September 2020


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Tulu language

संदर्भ

कर्नाटक स्थित मंगलौर विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर के. चिनप्पा दौड़ा और इतिहास के प्रोफ़ेसर बी. सुरेंद्र राव द्वारा तुलु भाषा की 50 आधुनिक कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है.

तुलु भाषा का संक्षिप्त परिचय

  • तुलु एक द्रविड़ भाषा है जिसे बोलने वाले लोग दक्षिण भारत में रहते हैं. पिछली जनगणना से पता चलता है कि भारत में तुलु बोलने वाले लोगों की संख्या 18,47,427 है जबकि आठवीं अनुसूची में सम्मिलित मणिपुरी और संस्कृत भाषा बोलने वाले लोग तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम हैं.
  • रोबर्ट काल्डवेल (1814-1891) ने द्रविड़ भाषाओं का एक तुलनात्मक व्याकरण लिखा था जिसमें बताया गया था कि तुलु द्रविड़ परिवार की सर्वाधिक विकसित भाषाओं में से एक है.
  • जिन क्षेत्रों में तुलु भाषा प्रधानतः बोली जाती है उसे बोलचाल की भाषा में तुलु नाडु कहा जाता है. इसके अन्दर दक्षिण कन्नड़ के जिले, कर्नाटक का उडुपी और पयसवनी नदी अथवा चंद्रगिरी तक फैला हुआ केरल का कसरागोड़ जिला आता है. विदित हो कि कसरागोड़ जिले को सप्तभाषा संगम भूमि भी कहते हैं क्योंकि यहाँ तुलु समेत सात भाषाओं का संगम देखने को मिलता है. वस्तुतः कसरागोड़ के साथ-साथ मंगलुरु और उडुपी नगर तुलु संस्कृति के गढ़ माने जाते हैं.

विशेष जानकारी

तुलु भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची (eighth schedule) में सम्मिलित करने के लिए माँग बहुधा उठती रहती है.

आठवीं अनुसूची (EIGHTH SCHEDULE) क्या है?

संविधान की आठवीं अनुसूची में देश की आधिकारिक भाषाओं की सूची दी गई है. अनुच्छेद 344(1) और 351 के अनुसार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ अंकित हैं. ये भाषाएँ हैं – असमिया, बांग्ला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू.

दरअसल, इनमें से 14 भाषाओं को संविधान में सम्मिलित किया गया था. परन्तु इस अनुसूची में अन्य भाषाओं के प्रवेश की माँग हमेशा से उठती आई हैं. 1967 ई. में सिन्धी भाषा को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया. इसके पश्चात्, कोंकणी भाषा, मणिपुरी भाषा और नेपाली भाषा को 1992 ई. में जोड़ लिया गया. 2003 में बोड़ो भाषा, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा और संथाली भाषा आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कर लिए गये.

आठवीं अनुसूची में प्रवेश का नितिहार्थ

  1. आठवीं अनुसूची में प्रवेश होने पर तुलु भाषा को साहित्य अकादमी की मान्यता मिल जायेगी.
  2. तुलु भाषा की पुस्तकों का देश की अन्य मान्यता प्राप्त भाषाओं में अनुवाद होने लगेगा.
  3. संसद तथा राज्य विधान सभाओं में सांसद और विधायक तुलु भाषा में बोल सकेंगे.
  4. लोक सेवा परीक्षाओं में तथा अन्य अखिल भारतीय प्रतिस्पर्धाओं में तुलु भाषी अपनी भाषा में लिख सकेंगे.

भारत की भाषाई विविधता

  • 2001 की जनगणना के अनुसार, भारत में ऐसी 30 भाषाएँ हैं जिनमें प्रत्येक को बोलने वालों की संख्या 10 लाख से ऊपर है.
  • इन 30 भाषाओं के अतिरिक्त 122 भाषाएँ ऐसी हैं जिनमें प्रत्येक को बोलने वालों की संख्या 10,000 तक है.
  • 1,599 भाषाएँ ऐसी हैं जिनको “बोली” कह सकते हैं क्योंकि ये किसी विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित हैं और जिनमें से कुछ विलुप्ति के कगार पर हैं.

संविधान का अनुच्छेद 29

संविधान का अनुच्छेद 29 यह प्रावधान करता है कि विशिष्ट भाषा, विशिष्ट लिपि या विशिष्ट संस्कृति रखने वाले नागरिकों को यह अधिकार है कि वे इन वस्तुओं का संरक्षण करें.


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests

Topic : India, ASEAN review strategic ties; adopt new five-year plan of action

संदर्भ

भारत व एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान / ASEAN) द्वारा अपने रणनीतिक संबंधों की समीक्षा की गई.  आसियान-भारत की आभासी बैठक में दोनों पक्षों द्वारा समुद्री सहयोग, संयोजकता, शिक्षा, क्षमता निर्माण और लोगों के परस्पर संपर्क सहित कई क्षेत्रों में आसियान-भारत रणनीतिक साझेदारी की स्थिति की समीक्षा की गई.

मुख्य बिंदु

  • विदित हो कि भारत-आसियान क्षेत्र में विश्व की एक-चौथाई आबादी निवास करती है और इनका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अनुमानत: 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है.
  • इस बैठक में आसियान-भारत कार्य योजना (2016-2020) के कार्यान्वयन में प्रगति की भी समीक्षा की गई और आगामी पाँच वर्षों के लिए एक नई कार्य योजना को अपनाया गया.
  • कार्य योजना में शामिल मुख्य बिंदु हैं: >
  1. परामर्श और सहयोग के लिए वर्तमान तंत्र को दृढ़ता प्रदान करके राजनीतिक सहयोग स्थापित करना.
  2. क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक सहयोग में वृद्धि करना.
  3. भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग का कार्य पूर्ण करके भौतिक संपर्क (कनेक्टिविटी) को प्रोत्साहन देना तथा सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करना.
  4. नौवहन की स्वतंत्रता व अबाधित व्यापार को प्रोत्साहित करना और शांतिपूर्ण उपायों द्वारा विवादों का समाधान करना.

अन्य मुद्दे, जिन पर चर्चा की गई

  • कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए सहयोग को दृढ़ करने के उपायों, महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास गतिविधियों पर विचारों के विनिमय आदि पर चर्चा की गई थी.
  • यह बैठक एक ऐसे समय में हुई है, जब भारत और आसियान दोनों चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद में उलझे हुए हैं. हालाँकि, यह तत्काल ज्ञात नहीं हुआ है कि इन मुद्दों को विचार-विमर्श में शामिल किया गया था या नहीं.

ASEAN के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ

  1. ASEAN का full-form है – Association of Southeast Asian Nations.
  2. ASEAN का headquarters जकार्ता, Indonesia में है.
  3. आसियान में 10 सदस्य देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम) हैं और 2 पर्यवेक्षक देश हैं (Papua New Guinea और East Timor).
  4. ASEAN देशों की साझी आबादी 64 करोड़ से अधिक है जो कि यूरोपियन यूनियन से भी ज्यादा है.
  5. अगर ASEAN को एक देश मान लें तो यह दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
  6. इसकी GDP 28 हजार करोड़ डॉलर से अधिक है.
  7. आसियान के chairman Lee Hsien Loong हैं जो ब्रूनेई से हैं.
  8. आसियान में महासचिव का पद सबसे बड़ा है.पारित प्रस्तावों को लागू करने का काम महासचिव ही करता है. इसका कार्यकाल 5 साल का होता है.
  9. क्षेत्रीय सम्बन्ध को मजबूत बनाने के लिए 1997 मेंASEAN +3 का गठन किया गया था जिसमें जापान, दक्षिण कोरिया और चीन को शामिल किया गया.
  10. बाद में भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड को भी इसमें शामिल किया गया. फिर इसका नाम बदलकरASEAN +6 कर दिया गया.
  11. 2006 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने आसियान को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया.
  12. आसियान की बढ़ती महत्ता को देखते हुए अब कई देश इसके साथ करार करना चाहते हैं.

GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.

Topic : Singapore Convention on Mediation

संदर्भ

सिंगापुर कन्वेंशन ऑन मिडिएशन’ (Singapore Convention on Mediation) लागू हो गया है. यह कन्वेंशन, जिसे यूनाइटेड नेशंस (UN) कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल सेटलमेंट एग्रीमेंटल रिजल्टिंग फ्रॉम मीडीएशन के रूप में भी जाना जाता है, सिंगापुर के नाम पर प्रथम संयुक्त राष्ट्र संधि है.

सिंगापुर कन्वेंशन ऑन मिडिएशन

यह कन्वेंशन मध्यस्थता से व्युत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय समाधान समझौतों पर लागू होता है, जिन्हें किसी वाणिज्यिक विवाद को हल करने के लिए पक्षकार देशों द्वारा संपन्न किया गया था.

इसके तहत व्यवसाय पक्ष, उन देशों के न्यायालयों में प्रत्यक्षतः याचिका दायर करते हुए सीमा पार मध्यस्थता समाधान समझौते के प्रवर्तन की मांग कर सकते हैं, जिन्होंने उपर्युक्त संधि पर हस्ताक्षर किए हैं और इसकी अभिपुष्टि की है.

वर्तमान में, इस कन्वेंशन में भारत, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 53 हस्ताक्षरकर्ता देश शामिल हैं.

कन्वेंशन का महत्त्व

  • विवादित पक्षों द्वारा सीमा-पार विवाद समाधान समझौते का सुगमतापूर्ण प्रवर्तन व उपयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य को सुविधाजनक बनाने में सहयोग प्रदान करेगा.
  • सीमा पार विवादों के निपटान हेतु मुकदमेबाजी और विवाचन (arbitration) के स्थान पर एक वैकल्पिक विवाद समाधान (Additional Dispute Resolution: ADR) विकल्प के रूप में मध्यस्थता (mediation) के अनुपालन से व्यवसायों को लाभ प्राप्त होगा.
  • इससे कंपनियों के समय और कानूनी लागतों में बचत होगी.

भारत के लिए लाभ

  • शीघ्र मध्यस्थता समाधान के अनुपालन से व्यापार करने में सुगमता (ease of doing business) संबंधी विश्वसनीयता में वृद्धि होगी.
  • ADR से संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुपालन संबंधी भारतीय प्रतिबद्धता की ओर विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में सहायता प्राप्त होगी.

वैकल्पिक विवाद समाधान (Additional Dispute Resolution: ADR)

वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) न्यायालय कक्ष के बाहर विवादों के निपटान हेतु किसी अन्य माध्यम को संदर्भित करता है. ADR में सामान्यतया वार्ता, मध्यस्थता, विवाचन और सुलह शामिल हैं –

  • वार्ता (Negotiation): यह एक गैर-बाध्यकारी प्रक्रिया है, जिसमें विवाद के निपटान (किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के बिना) के उद्देश्य से पक्षकारों के मध्य वार्ताओं का आयोजन किया जाता है.
  • मध्यस्थता (Mediation): मध्यस्थता में, “मध्यस्थ” नामक एक निष्पक्ष व्यक्ति विवादों पर पारस्परिक सहमति प्राप्त करने में पक्षों की सहायता करता है. मध्यस्थता प्रकृति में बाध्यकारी नहीं होती है.
  • विवाचन (Arbitration): इसमें विवाद को एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जो उस विवाद पर एक निर्णय देता है. यह निर्णय पक्षों पर प्रायः बाध्यकारी होता है.
  • सुलह (Conciliation): यह एक गैर-बाध्यकारी प्रक्रिया है, जिसमें एक तृतीय पक्ष, जो एक निष्पक्ष सुलहकर्ता की भूमिका में होता है, विवाद पर एक पारस्परिक सहमति तक पहुँचने में पक्षों की सहायता करता है.

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.

Topic : Talks between Afghan government and Taliban open in Qatar

संदर्भ

हाल ही में अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच कतर में शांति वार्ता आरंभ हुई.

पृष्ठभूमि

यह वार्ता 29 फरवरी, 2020 को हुए अमेरिका-तालिबान समझौते के आलोक में आयोजित की गई है, जिसमें अफगानिस्तान सरकार की उपेक्षा की गई थी. इस समझौते में यह प्रावधान किया गया था कि तालिबान कोई भी आतंकवादी कार्यवाही नहीं करेगा तथा अमेरिकी सेना की वापसी हेतु समयावधि निर्धारित की जाएगी. इस वार्ता में अमेरिका-तालिबान समझौते के एक हिस्से के रूप में “कैदी विनिमय” करार पर मतभेद होने के कारण विलंब हुआ है.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (Inter Services Intelligence-ISI) ने मदरसों के अफगान छात्रों को भड़का कर वर्ष 1990 के दशक में सोवियत सेनाओं के विरुद्ध तालिबान को जन्म दिया. इसे सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देशों से पैसा मिलता था.
  • तालिबान एक इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन है. अफगानिस्तान को पाषाणयुग में पहुँचाने के लिये तालिबान को जिम्मेदार माना जाता है.
  • वर्ष 1994 के करीब जब तालिबान सर्वप्रथम अफगानिस्तान के पटल पर उभरा तो उसने पाकिस्तान की सीमा से लगे पश्तूनों के क्षेत्र में शांति-सुरक्षा बहाल करने का वादा किया. उसने सत्ता में आने पर शरिया कानून लागू करने की भी बात कही तथा भ्रष्टाचार पर भी नकेल कसने का वादा किया.
  • सितंबर 1995 में दक्षिणी-पश्चिमी अफगानिस्तान से आगे बढ़ते हुए तालिबान ने ईरान की सीमा से लगे हेरात पर कब्ज़ा कर लिया. एक वर्ष के पश्चात् लड़ाकों ने तत्कालीन राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को बेदखल कर काबुल पर कब्जा कर लिया. वर्ष 1998 तक अफगानिस्तान के 90% हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित हो गया था.
  • तालिबान ने कट्टरवादी इस्लामिक कानूनों को लागू किया. शुरुआत में अधिकांश तालिबानी लड़ाके पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ने के बाद इसका हिस्सा बने. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अलावा पाकिस्तान इन तीन देशों में शामिल था जिसने तालिबान शासन को मान्यता दी थी.

अमेरिका का प्रवेश

  • वर्ष 2001 में न्यूयॉर्क में आतंकी हमले के बाद तालिबान विश्व की नज़रों में आया. इसी दौरान 7 अक्टूबर, 2001 को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया. अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया.
  • हालाँकि, इस हमले के बाद भी तालिबान नेता मुल्ला उमर और अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पकड़ा नहीं जा सका.
  • दिसंबर 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता से हामिद करज़ई को अफगानिस्तान का अंतरिम प्रशासनिक प्रमुख बनाया गया.
  • वर्ष 2004 में अफगानिस्तान का संविधान अस्तित्व में आया. संविधान के प्रावधानों के अधीन रहते हुए अफगानिस्तान ने अक्टूबर 2004 में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करते हुए अपने पहले राष्ट्रपति का निर्वाचन किया.
  • वर्ष 2005-2006 के दौरान तालिबान और अलकायदा द्वारा संयुक्त रूप से किये गए आतंकी हमलों से अफगानिस्तान में शांति बहाली की प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न हो गया.
  • वर्ष 2009 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के पश्चात् अफगानिस्तान में शांति बहाली की प्रक्रिया को पुनः प्रारंभ करने के लिये अधिक संख्या में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती की गई.
  • मई 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में 9/11 हमलों के मास्टरमाइंड ओसामा-बिन-लादेन को अमेरिकी सेनाओं द्वारा मार गिराया गया.
  • जून 2011 में राष्ट्रपति ओबामा ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की सीमित संख्या में वापसी का रोडमैप प्रस्तुत किया.
  • जून 2013 में अफगानिस्तान सेना ने पूरी तरीके से सुरक्षा का उत्तरदायित्व ले लिया, अब अमेरिकी सेना केवल सहयोगी के रूप में कार्य कर रही थी.
  • जनवरी 2017 में डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद अफगान नीति के संदर्भ में प्रमुख फोकस अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी पर रहा, जिसे अब मूर्त रूप दिया जा रहा है.

शांति वार्ता का महत्त्व

  • वर्षों से चल रहे युद्ध को समाप्त करना, जिसमें 1,60,000 से अधिक लोग मारे गए हैं.
  • अमेरिका की वापसी के बाद अफगानिस्तान के राजनीतिक भविष्य का निर्धारण करना.
  • वर्ष 2001 के बाद से लैंगिक न्याय और सामाजिक समानता के क्षेत्र में अर्जित लाभ को बनाए रखना.

भारत का पक्ष

भारत ने इस वार्ता के उद्घाटन सत्र में भाग लिया था तथा इसने इस तथ्य पर बल दिया था कि कोई भी शांति प्रक्रिया:-

  • अफगान नेतृत्व, अफगान स्वामित्व और अफगान नियंत्रण के तहत होनी चाहिए.
  • अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान को ध्यान में रखते हुए संपन्‍न की जानी चाहिए.
  • अल्पसंख्यकों, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
  • देश और उसके आस-पास के क्षेत्रों में होने वाली हिंसा से निपटने में सक्षम होनी चाहिए.

भारत की चिंताएं

पाकिस्तान, तालिबान को काबुल में अपने प्रतिनिधि (proxy) के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि तालिबान के आतंकवादी समूहों के साथ संबंध हैं, जो भारत और अफगानिस्तान में भारतीय हितों को लक्षित करते हैं. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का अफगानिस्तान तक विस्तार भी भारत के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण है.


GS Paper 2 Source : Down to Earth

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UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.

Topic : Living Planet Report

संदर्भ

हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर’ (World Wide Fund for Nature) द्वारा लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 निर्गत किया गया है.

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट, वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) फॉर नेचर और जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन, द्वारा वन्यजीव आबादी पर प्रेक्षणों के आधार पर तैयार की जाती है तथा इस बर्ष, यह रिपोर्ट के द्विवार्षिकीय प्रकाशन का 13 वां संस्करण है.

प्रतिवेदन के प्रमुख निष्कर्ष

  1. वर्ष 1970 तथा 2016 के मध्य कशेरुकी प्रजातियों (Vertebrate Species) की आबादी में लगभग 68 प्रतिशत की गिरावट आई है. “लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट” में इस गिरावट की गणना हेतु “लिविंग प्लेनेट इंडेक्स” का उपयोग किया गया था.
  2. ताजे पानी के आवासों में, विशेष रूप से लैटिन अमेरिका और कैरिबियन सागर में, वन्यजीवों की आबादी में 84 प्रतिशत की गिरावट आई है.
  3. स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की वैश्विक आबादी में, पर्यावरणीय विनाश की वजह से, 50 वर्षों से भी कम समय में, औसतन 2/3 आबादी की गिरावट परिलक्षित हुई है, जिसके परिणामस्वरूप कोविड-19 जैसे पशुजन्य (जूनोटिक) रोग उभरकर फ़ैल रहे हैं.
  4. पृथ्वी की 75% बर्फ-रहित भूमि में काफी परिवर्तन किया गया है.अधिकांश महासागर प्रदूषित हैं और 85 प्रतिशत से अधिक आर्द्रभूमि नष्ट हो गई हैं. इन सभी का कारण मानव गतिविधियां हैं.
  5. प्रति पाँच वृक्षों में से एक वृक्ष विलुप्त होने की कगार पर है.

इस गिरावट के लिए उत्तरदायी कारक

  1. भूमि-उपयोग परिवर्तन.
  2. वन्यजीवों का उपयोग और व्यापार.
  3. प्राकृतिक आवास क्षति.
  4. खाद्य उत्पादन प्रक्रियाओं के प्रयोजन से वनों की कटाई तथा निम्नीकरण.

रिपोर्ट में भारतीय परिदृश्य

  1. वैश्विक स्थलीय क्षेत्र का 2.4 प्रतिशत, वैश्विक जैव विविधता का लगभग आठ प्रतिशत और वैश्विक आबादी का लगभग 16 प्रतिशत भारत में है.
  2. हालांकि, पिछले पांच दशकों के दौरान भारत में 12 प्रतिशत जंगली स्तनधारी, 19 प्रतिशत उभयचर और 3 प्रतिशत पक्षी लुप्त हो चुकी है.
  3. भारत में प्रति व्यक्ति पारिस्थितिक पदचिह्न (Ecological Footprint), 1.6 वैश्विक हेक्टेयर / व्यक्ति (6 global hectares (gha) / person) से कम है. यह कई बड़े देशों की तुलना में काफी कम है, किंतु उच्च जनसंख्या आकार के कारण ‘सकल पदचिह्न’ काफी उच्च स्तर का बन गया है.

सुधार हेतु सुझाव

  1. खाद्य उत्पादन तथा व्यापार प्रक्रियाओं को अधिक दक्ष और पारिस्थितिक रूप से संवहनीय बनाना.
  2. अपशिष्ट को कम करना और स्वस्थ तथा अधिक पर्यावरण अनुकूलित आहार को प्रोत्साहित करना.

निष्कर्ष

प्रतिवेदन बताता है कि मानव द्वारा प्रकृति के विनाश का न केवल वन्यजीव आबादी पर, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. इसलिए, वर्तमान वैश्विक महामारी के दौरान,  दुनिया भर में जैव विविधता और वन्यजीव आबादी के नुकसान को रोकने और दशक के अंत तक इसकी भरपाई करने के लिए अभूतपूर्व और समन्वित वैश्विक कार्रवाई करने का महत्त्वपूर्ण समय है.

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट क्या है?

  1. लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (Living Planet Report), वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) द्वारा प्रति दो वर्ष में प्रकाशित की जाती है.
  2. यह वैश्विक जैव विविधता तथा पृथ्वी ग्रह के स्वास्थ्य संबंधी प्रवृत्तियों का एक व्यापक अध्ययन है.
  3. रिपोर्ट, लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (Living Planet Index– LPI) के माध्यम से प्राकृतिक जगत की स्थिति का व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करती है.

लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) क्या है?

यह समूचे विश्व के स्थलीय, मीठे पानी और समुद्री आवासों में कशेरुकी प्रजातियों (Vertebrate Species)  की आबादी में आने वाले रुझानों के आधार पर वैश्विक जैविक विविधता की स्थिति का संकेतक है.

पारिस्थितिकी पदचिह्न क्या होता है?

पारिस्थितिक पदचिह्न (Ecological Footprint), जैविक रूप से उत्पादक क्षेत्र होते है, जो लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु, ‘फल और सब्जियां, मछली, लकड़ी, फाइबर, जीवाश्म ईंधन के उपयोग से CO2 का अवशोषण, और इमारतों और सड़कों आदि के लिए स्थान उपलब्ध कराते है.

  1. इसे वर्तमान में ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क (एक स्वतंत्र थिंक-टैंक) द्वारा विकसित किया जाता है. ग्रीनहाउस गैस (GHG) पदचिह्न और कार्बन पदचिह्न, पारिस्थितिक पदचिह्न के घटक होते है.
  2. वर्ष 2014 के लिए मानव पारिस्थितिक पदचिह्न पृथ्वी ग्रह का 1.7 था. इसका तात्पर्य यह है कि पृथ्वी की पारिस्थितिकी प्रणालियों के नवीनीकरण की तुलना में मानव जनित मांग 1.7 गुना तीव्र थी.

मृदा जैव-विविधता पर खतरा

विश्व प्रकृति वन्य कोष ने अपने रिपोर्ट में मृदा जैव विविधता के विषय में विशेष प्रतिवेदन दिया है. ज्ञातव्य है कि मृदा जैव विविधता के अंतर्गत ये सूक्ष्म जीव आते हैं –

  • सूक्ष्म जीव (micro-organisms),सूक्ष्म पशु (micro-fauna – nematodes और tardigrades आदि) और अपेक्षाकृत बड़े जीव (चींटी, दीमक और केंचुए).
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मृदा जैव-विवधता बड़े खतरे में है. भारत को उन देशों में एक बताया गया है जहाँ यह खतरा सबसे अधिक है. इसके लिए इन कारकों को उत्तरदायी बताया गया है – धरातल के ऊपर विविधता को क्षति, प्रदूषण, बहुत अधिक पोषक पदार्थ डालना, पशु-चारण की अधिकता, गहन खेती, आग, मृदा क्षरण, मरूभूमिभवन तथा जलवायु परिवर्तन.

GS Paper 3 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Issues related to direct and indirect farm subsidies and minimum support prices; Public Distribution System objectives, functioning, limitations, revamping; issues of buffer stocks and food security; Technology missions; economics of animal-rearing.

Topic : Pesticides Management Bill

संदर्भ

विशेषज्ञों द्वारा कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 के संदर्भ में चेतावनी दी गयी है कि इसके कुछ प्रावधानों से किसानों की आजीविका को नुकसान पहुंचेगा. और इसलिए, उन्होंने इस विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श करने का आह्वान किया है तथा इसे एक चयन समिति के समक्ष रखने को कहा है.

विशेषज्ञों द्वारा रेखांकित किये गए प्रमुख प्रावधान

  1. इसमें, जो कीटनाशक भारत में उपयोग के लिए पंजीकृत नहीं हैं, उनके उत्पादन तथा निर्यात की अनुमति नहीं दी गयी है, भले ही ये कीटनाशक अन्य देशों में अनुमोदित हों.
  2. यह विधेयक कीटनाशकों के सूत्रीकरण (formulations) के आयात को बढ़ाएगा और कृषि-रसायनों के निर्यात को नुकसान पहुंचाएगा. यह वर्ष 2018 में, भारत से घरेलू और स्वदेशी उद्योगों और कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए गठित अशोक दलवई समिति द्वारा पेश की गयी मांगों के खिलाफ है. समिति ने आयात में कमी और आयातित सूत्रीकरण पर निर्भरता की अनुशंसा की थी.
  3. विधेयक में ‘पंजीकरण समिति’ (Registration Committee– RC) को व्यक्तिपरक ढंग से किसी कीटनाशक के पंजीकरण की समीक्षा करने तथा इसके उपयोग को निलंबित करने, रद्द करने अथवा प्रतिबंध लगाने की शक्तियां दी गयी हैं. इसके लिए किसी वैज्ञानिक मूल्यांकन की आवश्यकता नहीं होगी.
  4. इस विधेयक में, 1968 के पूर्ववर्ती अधिनियम के तहत पहले से पंजीकृत कीटनाशकों के पुन: पंजीकरण का भी प्रावधान किया गया है. इससे कीटनाशक उद्योग में अस्थिरता आएगी.

पृष्ठभूमि

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 (Pesticides Management Bill, 2020) को इसी वर्ष फरवरी माह में मंज़ूरी प्रदान की गयी थी. यह विधेयक, कीटनाशक अधिनियम, 1968 को प्रतिस्थापित करेगा.

विधेयक के प्रमुख प्रावधान

  1. विधेयक कीटनाशक व्यवसाय को नियंत्रित करेगा और किसानों को कृषि रसायनों के उपयोग से होने वाले नुकसान की भरपाई करेगा.
  2. कीटनाशक डेटा: इसके तहत किसानों के लिए कीटनाशकों की ताकत और कमजोरी, जोखिम और विकल्पों के बारे में सभी जानकारी प्रदान कराये जाने का प्रावधान किया गया है. सभी जानकारी डिजिटल प्रारूप में और सभी भाषाओं में खुले तौर पर उपलब्ध होगी.
  3. क्षतिपूर्ति: विधेयक में कीटनाशकों के घटिया या निम्न गुणवत्ता के कारण कोई नुकसान होने पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया गया है. आवश्यकता होने पर, क्षतिपूर्ति के लिए एक केंद्रीय कोष बनाया जाएगा.
  4. जैविक कीटनाशक: विधेयक का उद्देश्य जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा देना है.
  5. कीटनाशक निर्माताओं का पंजीकरण: विधेयक पारित होने के पश्चात सभी कीटनाशक निर्माताओं को नए अधिनियम के अंतर्गत अनिवार्य रूप से पंजीकरण होना होगा. निर्माताओं द्वारा कोई भ्रम या कोई धोखा न हो, इसके लिए कीटनाशकों के विज्ञापनों को विनियमित किया जाएगा.

Prelims Vishesh

New Clause in Defence Foreign Direct Investment :-

  • मौजूदा नीति के तहत, आधुनिक प्रौद्योगिकी या अन्य उद्देश्य की प्राप्ति हेतु रक्षा उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सीमा स्वचालित मार्ग के माध्यम से 49% तक और सरकारी मार्ग के माध्यम से 75% तक निर्धारित है.
  • नई नीति में, रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग के माध्यम से FDI की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया है इसमें “राष्ट्रीय सुरक्षा” से संबंधित एक नए खंड (clause) को भी शामिल किया गया है.
  • इस नई व्यवस्था के अंतर्गत सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले किसी भी विदेशी निवेश की समीक्षा कर सकती है.

India Post launches Five Star Village Scheme :-

  • इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुख डाक योजनाओं के सार्वभौमिक कवरेज को सुनिश्चित करना है.
  • इसके अंतर्गत आने वाली योजनाओं में शामिल हैं: बचत बैंक खाते, सुकन्या कि द्वि खाते, पीपीएफ खाते, ग्रामीण डाक जीवन बीमा पॉलिसी, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना खाता, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना खाता आदि.
  • इस योजना का उद्देश्य सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक जागरूकता और डाक उत्पादों एवं सेवाओं तक पहुंच-अंतराल समाप्त करना है.
  • यदि कोई गाँव उपर्युक्त सूची में से चार योजनाओं के लिए सार्वमौमिक कवरेज प्राप्त करता है, तो उस गाँव को फोर-स्टार दर्जा प्राप्त हो जाएगा तथा यदि कोई गाँव तीन योजनाओं को पूर्ण करता है, तो उस गाँव को थ्री-स्टार दर्जा दिया जाएगा.

Shipping Ministry launched SAROD-Ports (Society for Affordable Redressal of Disputes-ports :-

  • सरोद-पोर्ट्स वस्तुतः समुद्री क्षेत्र में मध्यस्थों के माध्यम से विवादों के निपटान में सलाह एवं सहायता प्रदान करेंगे, जिसके तहत प्रमुख बंदरगाह और निजी बंदरगाह, जेटी, टर्मिनल, गैर-प्रमुख बंदरगाह, पोर्ट तथा शिपिंग क्षेत्र शामिल हैं.
  • इसकी स्थापना सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 (Societies Registration Act, 1860) के तहत इन उद्देश्यों के साथ की गई है:- न्यायपूर्ण रीति से विवादों का किफायती और समयबद्ध समाधान करना, मध्यस्थों के रूप में तकनीकी विशेषज्ञों के पैनल के साथ विवाद समाधान तंत्र का संवर्धन करना आदि.
  • यह प्राधिकरण और लाइसेंसधारी/रियायत प्राप्तकर्ता/ ठेकेदार के मध्य विवादों को कवर करेगा तथा लाइसेंसधारी/ रियायत प्राप्तकर्ता और उनके ठेकेदारों के मध्य होने वाले विवाद भी इसमें शामिल होंगे.

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