Sansar Daily Current Affairs, 17 August 2021
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Right to be Forgotten
संदर्भ
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और सर्च इंजन क्षेत्र में दिग्गज कंपनी गूगल से दो व्यवसायियों द्वारा एक याचिका का जवाब देने को कहा है. इस याचिका में, याचिकाकर्ताओं द्वारा अपने ‘भुलाए जाने का अधिकार’ (Right to be Forgotten) का हवाला देते हुए, विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से, उनके खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामले से संबंधित कुछ लेखों को हटाने की मांग की गई है.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क देते हुए कहा है, कि मामले से संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों के संदर्भ में उन्हें ‘भुलाए जाने का अधिकार’ या “असम्बद्ध किए जाने का अधिकार” (right to delink) प्राप्त है.
आवश्यकता
याचिका में तर्क दिया गया है कि “संबंधित मामलों में उपयुक्त अदालतों द्वारा याचिकाकर्ताओं सम्मानजनक रूप से बरी कर दिया गया है, फिर भी कथित लेख और उनके खिलाफ ऑनलाइन उपलब्ध गलत जानकारी उन्हें परेशान करती रहती है.”
भुलाए जाने का अधिकार क्या है?
‘भूल जाने का अधिकार’ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइट या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से उस स्थिति में हटाने का अधिकार प्रदान करती है, जब यह व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है. हालांकि भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो भूल जाने के अधिकार का प्रावधान करता हो लेकिन पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 इस अधिकार को मान्यता देता है.
पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 की धारा 20 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को कुछ शर्तों के तहत अपने व्यक्तिगत डेटा के प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार है. हालांकि इसमें यह भी शामिल है कि जब इस तरह के डेटा ने उस उद्देश्य की पूर्ति की हो जिसके लिए वह एकत्र किया गया था या इस उद्देश्य के लिए अब आवश्यक नहीं है. वहीं यह बिल अभी कानून नहीं बना है.
GDPR
यह यूरोपीय कानून का एक नियम है जो 2018 में 28 देशों वाले यूरोपीय संघ ने पारित किया था. इसका औपचारिक नाम जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) है. यह नियम लोगों को यह अधिकार देता है कि वे संगठनों को अपना “निजी डाटा” मिटाने को कह सकते हैं. यहाँ पर “निजी डाटा” से अभिप्राय है – ऐसी हर सूचना जो सम्बन्धित व्यक्ति से जुड़ी हो. इस नियम में “नियंत्रक” की परिभाषा भी दी गई है जिसके अनुसार हर वह सार्वजनिक प्राधिकरण अथवा एजेंसी नियंत्रक कहलाती है जो व्यक्तिगत डाटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य एवं साधनों का निर्धारण करती है.
भारतीय संदर्भ में ‘भुलाए जाने का अधिकार’
- ‘भुलाए जाने का अधिकार’ (Right to be Forgotten), व्यक्ति के ‘निजता के अधिकार’ के दायरे में आता है.
- वर्ष 2017 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने एक ऐतिहासिक फैसले (पुत्तुस्वामी मामले) में ‘निजता के अधिकार’ को एक ‘मौलिक अधिकार’ (अनुच्छेद 21 के तहत) घोषित कर दिया गया था.
मेरी राय – मेंस के लिए
कभी-कभी व्यक्ति को गहरी पीड़ा के साथ अपने छोटे-मोटे कृत्यों के लिए अत्यधिक मनोवैज्ञानिक पीड़ा झेलनी पड़ी है, जो पहले गलती से हुए थे क्योंकि रिकॉर्ड किए गए वीडियो, फोटो, उससे जुड़े लेख विभिन्न सर्च इंजन या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध रह जाते हैं. सभी पोस्ट, वीडियो, लेख को हटा देना चाहिए जो वर्तमान समय में अप्रासंगिक हैं और व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा को गंभीर चोट पहुंचा रहे हैं.
निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है.
परन्तु यह भी ध्यान देना होगा कि ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ अथवा भूल जाने का अधिकार सार्वजनिक रिकॉर्ड से जुड़े मामलों के विरुद्ध हो सकता है.
उदाहरण के लिये न्यायालयों के निर्णयों को हमेशा सार्वजनिक रिकॉर्ड के रूप में माना जाता है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-74 के अनुसार इन्हें सार्वजनिक दस्तावेज़ की परिभाषा के अंतर्गत शामिल किया जाता है.
आधिकारिक सार्वजनिक रिकॉर्ड, विशेष रूप से न्यायिक रिकॉर्ड को ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ के दायरे में शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह दीर्घकाल में न्यायिक प्रणाली में आम जनता के विश्वास को कमज़ोर करेगा। व्यक्ति बनाम समाज: ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ व्यक्तियों की निजता के अधिकार और समाज के सूचना के अधिकार तथा प्रेस की स्वतंत्रता के बीच दुविधा पैदा करता है.
गोपनीयता के अधिकार और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा (अनुच्छेद-21) तथा इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की सूचना की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-19) के बीच संतुलन स्थापित किया जाना आवश्यक है. डेटा संरक्षण कानून के माध्यम से इन मुद्दों को संबोधित किया जाना आवश्यक है और दो मौलिक अधिकारों के बीच संघर्ष को कम किया जाना चाहिये जो भारतीय संविधान के स्वर्ण त्रिमूर्ति (अनुच्छेद-14,19 और 21) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Food processing and related industries in India- scope and significance, location, upstream and downstream requirements, supply chain management.
Topic : Food Fortification
संदर्भ
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने द्वारा वर्ष 2024 तक सभी सरकारी योजनाओं के तहत ‘संवर्धित चावल’ (Fortified Rice) वितरित किए जाने की घोषणा की है. यह घोषणा महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत कवर की गई योजनाओं के तहत 300 लाख टन से अधिक चावल वितरित करती है.
नेशनल खाद्य सुरक्षा अधिनियम(NFSA), 2013 : इस अधिनियम के द्वारा भोजन को एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है जिससे सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से वंचित वर्गों को भोजन और पोषाहार की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके.
फूड फोर्टिफिकेशन
फूड फोर्टिफिकेशन से तात्पर्य खाद्य पदार्थों में एक या अधिक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की जानबूझकर की जाने वाली वृद्धि से है जिससे इन पोषक तत्त्वों की न्यूनता में सुधार या निवारण किया जा सके तथा स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सके.
पर इसके माध्यम से केवल एक सूक्ष्म पोषक तत्त्व के संकेन्द्रण में वृद्धि हो सकती है (उदारहण के लिए नमक का आयोडीकरण) अथवा खाद्य-सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के संयोजन की एक पूरी शृंखला हो सकती है. यह कुपोषण की समस्या का समाधान करने के लिए संतुलित और विविधतापूर्ण आहार का प्रतिस्थापन नहीं है.
फूड फोर्टिफिकेशन के विषय में विस्तार से पढ़ें – फूड फोर्टिफिकेशन
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Economy.
Topic : Oil Bond
संदर्भ
हाल ही में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस की पिछली सरकार द्वारा जारी किये गये ऑयल बॉन्ड के ब्याज चुकाने की बाध्यता के चलते वर्तमान सरकार पेट्रोल- डीजल की कीमतों में कमी नहीं कर पा रही है. पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने आरोप का पूरी तरह से खंडन करते हुए कहा कि ऑयल बॉन्ड तत्कालीन सरकार द्वारा कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों से जनता को राहत पहुँचाने के लिए जारी किये गये थे, इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है तथा बाद में किसी भी दल की सरकार बने, उसका का यह जिम्मा बनता है कि ऑयल बॉन्ड के ब्याज का भुगतान समय पर किया जाये.
ऑयल बॉन्ड
ऑयल बॉन्ड वह खास तरह प्रतिभूति या सिक्योरिटी होती है जिन्हें सरकार कैश सब्सिडी के लिए आयल कंपनियों को देती है. ये बॉन्ड 15 से 20 साल की अवधि जैसे लंबे समय के लिए होते हैं और इसके लिए कंपनियों को ब्याज भी दिया जाता है.
क्यों जारी किए जाते हैं बॉन्ड?
तेल कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए सरकार तेल कंपनियों को इस तरह के बांड निर्गत करती है जिससे उस पर भी बोझ ना आए. यह एक तरह से राजकोषीय भोझ को टालने के लिए जाता है जिसका भुगतान भविष्य में किया जाता है. सरकार इन बांड का सहारा तब लेती है जब वे खतरे में होती है यानि उनका राजकोषीय घाटा अप्रत्याशित कारणों से बहुत बढ़ जाता है. उनकी आमदनी कम और खर्चा अचानक अधिक हो जाता है.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.
Topic : Plastic Waste Management Amendment Rules
संदर्भ
हाल ही में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के नियमों में संशोधन किया है, जिसके तहत अगले वर्ष 1 जुलाई से एकल उपयोग प्लास्टिक के कुछ उत्पादों के विनिर्माण, बिक्री और उपयोग पर पूर्णत: रोक लगा दी जाएगी. इन उत्पादों में इयरबड, ग्लास, प्लेट एवं पैकेजिंग फिल्म आदि शामिल होंगे. इसके अलावा नये नियमों के अनुसार प्लास्टिक कैरी बैगों की मोटाई 30 सितंबर 2021 से न्यूनतम 75 माइक्रोन तथा दिसंबर 2022 से 120 माइक्रोन होनी चाहिये. .
ज्ञातव्य है कि प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के नियम, 2016 के तहत अभी प्लास्टिक कैरी बैगों की न्यूनतम मोटाई 50 माइक्रोन निर्धारित है. इसके साथ ही गुटखा, तंबाकू और पान मसाले के पैकेटों के लिए प्लास्टिक के प्रयोग पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया है. विदित हो कि वर्ष 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस पर भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को पूर्णत: बंद करने की घोषणा की थी.
एकल उपयोग वाले प्लास्टिक क्या हैं?
प्लास्टिक की वे सामग्रियाँ जिनका एक बार ही उपयोग होता है उन्हें एकल प्रयोग वाला प्लास्टिक कहा जाता है, जैसे – थैलियाँ, कप, प्लेट, खाने-पीने के बर्तन, सींक और थर्मोकोल उत्पाद. वस्तुतः ऐसी सामग्रियों की अभी तक कोई निश्चित परिभाषा नहीं की गई है जिस कारण उन पर लगाया हुआ प्रतिबंध इतना सफल नहीं हो पाता है.
अलग-अलग सरकारों में इसके लिए अलग-अलग परिभाषा प्रचलित है. तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने प्लास्टिक की बोतलों, टैट्रा पैकों, सींकों, चाय के कपों, बर्तनों आदि पर रोक लगाई गई है. परन्तु बिहार ने मात्र पोलीथिन थैलियों को ही प्रतिबंधित किया है.
प्रतिबंध आवश्यक क्यों?
प्लास्टिक के प्रदूषण और प्लास्टिक के कचरे के प्रबंधन आज चिंता के विषय बने हुए हैं क्योंकि इनका प्रत्यक्ष प्रभाव जलवायु और पर्यावरण पर पड़ता है. विश्व-भर में प्रतिवर्ष लाखों टन प्लास्टिक उत्पादित हो रहे हैं जो जैविक रीति से नाशवान नहीं होते. इसलिए विश्व-भर में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को बंद करने के लिए रणनीतियाँ अपनाई और लागू की जा रही हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए भारत द्वारा किये गये प्रयास
- अभी तक प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए भारत के 22 राज्यों और संघीय क्षेत्रों ने कमर कस ली है. इसके लिए उन्होंने प्लास्टिक के एकल प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
- हाल ही में पुडुचेरी ने मार्च 1, 2019 से एकल प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है.
- इन सभी प्रयासों के सकारात्मक परिणाम हुए हैं. उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में जहाँ पहले प्रत्येक दिन दो टन प्लास्टिक कचरे जमा होते थे, अब वहाँ 100 किलो से भी कम ऐसे कचरे निकलते हैं.
- लोगों ने स्वेच्छा इस दिशा में काम किये हैं, जैसे – प्लास्टिक कचरा कम करना, प्लास्टिक की चीजों को फिर से उपयोग में लाना और कचरे को छाँटना आदि.
- प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए किये गये भारत के संकल्प को Beat Plastic Pollution नाम से जाना जाता है जिसको विश्व-भर में सराहना मिली है. विदित हो कि विगत वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर भारत ने यह संकल्प लिया था कि वह 2022 तक एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक का पूर्ण उन्मूलन कर देगा.
चुनौतियाँ
- अभी भी भोज्य पदार्थों, प्रसाधनों और दैनंदिन की सामग्रियों तथा साथ-ही ऑनलाइन प्रतिष्ठानों द्वारा भेजी गई सामग्रियों में प्लास्टिक से डिब्बाबंदी का काम चल ही रहा है.
- यद्यपि प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 में स्पष्ट कहा गया था कि उत्पादक, निर्यातक और ब्रांडों के स्वामी यह सुनिश्चित करें कि पर्यावरण में वे जो प्लास्टिक डालते हैं, उसको वापस ले लेने की व्यवस्था वे अवश्य करें. परन्तु इस दिशा में बहुत कम काम हुआ है.
- एक ओर जहाँ प्लास्टिक के छोटे-मोटे उत्पादक प्रतिबंध का सामना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इससे बड़ी इकाइयाँ बच कर निकल रही हैं और पहले के समान ही अपना व्यवसाय चला रही हैं.
यह जरूर पढ़ें – प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध
Prelims Vishesh
India to host first-ever ‘Internet Governance Forum’ :-
- इसे भारत में प्रथम बार आयोजित किया जा रहा है. यह फोरम इंटरनेट के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्माण पर देश के बढ़ते प्रभाव को प्रदर्शित करेगा.
- भारत विश्व में दूसरा सर्वाधिक ब्रॉडबैंड सब्सक्रिप्शन वाला देश है. यहाँ प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह सर्वाधिक डेटा खपत दर्ज की गई है.
- आयोजित कार्यक्रमों का विषय ‘डिजिटल इंडिया के लिए समावेशी इंटरनेट’ है.
- IGF इंटरनेट अभिशासन नीति पर विचार-विमर्श के लिए संयुक्त राष्ट्र-आधारित मंच है. यह इंटरनेट से संबंधित लोक नीति के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विभिन्न समूहों के प्रतिनिधियों को एक साथ एक मंच पर लाता है.
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