Sansar डेली करंट अफेयर्स, 17 July 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 17 July 2019


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : 10th Schedule of the Constitution

संदर्भ

कर्नाटक के दस विधायकों को दल-विरोधी गतिविधियों और व्हिप की अवहेलना के लिए विधान सभा की सदस्यता गँवानी पड़ सकती है. अभी गेंद विधान सभा अध्यक्ष के पाले में है क्योंकि उसके पास संविधान की दसवीं अनुसूची अर्थात् दल-बदल विरोधी अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई करने की शक्ति है.

संविधान की दसवीं अनुसूची क्या है?

राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (anti-defection law) लगाने की बात उठाई जा रही थी. अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वाँ संशोधन पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी. इसे संविधान की दसवीं अनुसूची (10th Schedule) में डाला गया.

सदस्यता समाप्त

निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी –

  • यदि वह स्वेच्छा से अपने दल से त्यागपत्र दे दे.
  • यदि वह अपने दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना सदन में उसके किसी निर्देश के प्रतिकूल मतदान करे या मतदान में अनुपस्थित रहे. परन्तु यदि 15 दिनों निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – के अन्दर दल उसे इस उल्लंघन के लिए क्षमा कर दे तो उसकी सदस्यता (membership) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

सदस्यता बनी रहेगी

निम्न परिस्थितियों (conditions) में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता बनी रहेगी –

  • यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य (Independent Member) किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये.
  • यदि कोई मनोनीत सदस्य शपथ लेने के बाद 6 माह की अवधि में किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये.
  • किसी राजनीतिक दल के विलय (merger) पर सदस्यता समाप्त नहीं होगी, यदि मूल दल में कम-से-कम 2/3 सांसद/विधायक दल छोड़ दें.
  • यदि लोकसभा/विधानसभा का अध्यक्ष (speaker) अपना पद छोड़ देता है तो वह अपनी पुरानी में लौट सकता है, इसको दल-बदल नहीं माना जायेगा.

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • दल-बदल पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा. सदन के अध्यक्ष को इस कानून की क्रियान्विति के लिए नियम बनाने का अधिकार होगा.
  • स्पष्ट है कि किसी राजनीतिक दल के विलय की स्थिति को राजनीतिक दल-बदल की सीमा के बाहर रखा गया है. राजनीतिक दल-बदल का कारण राजनीतिक विचारधारा या अन्तःकरण नहीं अपितु सत्ता और पदलोलुपता या अन्य लाभ ही रहे हैं. इस दृष्टि से दल-बदल पर लगाई गई रोक “भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने और राजनीति में अनुशासन लाने का एक प्रयत्न” ही कहा जा सकता है. वस्तुतः इस कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलीय अनुशासन के बीच संतुलित सामंजस्य बैठाया गया है.

पृष्ठभूमि

दल-बदल निषेध कानून (52nd Amendment) और इस कानून की विविध व्यवस्थाओं को 1991 में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि “दल-बदल” निषेध कानून वैध है, लेकिन दल-बदल निषेध कानून की यह धारा अवैध है कि “दल-बदल (Anti-Defection)” पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा. सर्वोच्च न्यालायाय ने अपने निर्णय में कहा कि सदन का अध्यक्ष इस प्रसंग में एक “न्यायाधिकरण” के रूप में कार्य करता है और उपर्युक्त विषय में सदन के अध्यक्ष के निर्णय पर न्यायालय विचार कर सकता है.

दल-बदल अधिनियम के लाभ

  • इससे किसी सरकार को स्थायित्व मिलता है क्योंकि दल बदलने पर इसमें रोक लगाईं गई है.
  • यह सुनिश्चित करता है कि विधायक अथवा सांसद अपने दल के प्रति निष्ठावान रहें और साथ ही उन नागरिकों के प्रति निष्ठा रखें जिन्होंने उन्हें चुना है.
  • इससे दलीय अनुशासन को बल मिलता है.
  • इसमें राजनीतिक दलों के विलयन का भी प्रावधान है.
  • आशा की जाती है कि इससे राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार घटेगा.
  • यह उन सदस्यों के लिए दंडात्मक प्रावधान करता है जो एक दल से दूसरे दल में चले जाते हैं.

GS Paper  2 Source: Indian Express

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Topic : Private member’s Bill calls for two-child norm

संदर्भ

राज्यसभा में नामित सदस्य राकेश सिन्हा सदन में एक निजी सदस्य का विधेयक लेकर आये हैं जिसका नाम है – जनसंख्या नियमन विधेयक, 2019 (Population Regulation Bill, 2019). इस विधेयक में यह प्रावधान रखा गया है कि पूरे देश में प्रत्येक व्यक्ति अपनी संतानों की संख्या दो तक ही सीमित रखे. विधेयक में यह प्रस्ताव भी है कि जो छोटे परिवार रखेंगे उन्हें उत्प्रेरणाएँ दी जाएँगी और जो ऐसा नहीं करेंगे उनको दण्डित किया जाएगा.

विधेयक के मुख्य तथ्य

  • इसमें सुझाव दिया गया है कि जिन लोगों को दो से अधिक संतानें हैं उनको अधिनियम लागू हो जाने के पश्चात् सांसद, विधायक अथवा किसी भी स्थानीय स्वशासन के निकाय का सदस्य बनने के अयोग्य कर दिया जाए.
  • सरकारी कर्मचारी यह लिखित वचन दे कि वे दो से अधिक बच्चे उत्पन्न नहीं करेंगे.
  • जो सरकारी कर्मचारी पहले से ही दो से अधिक बच्चों वाले हैं उनको अधिनियम से अलग रखा जाएगा.
  • विधेयक में प्रस्तावित दंड इस प्रकार हैं – ऋण में कम सब्सिडी, बचत खाते में कम ब्याज, जन-वितरण प्रणाली के कम लाभ तथा बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिए जाने वाले ऋण पर सामान्य से अधिक ब्याज की वसूली.
  • विधेयक में ऐसे कई लाभों का वर्णन है जो उनके केन्द्रीय सरकार एवं सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के कर्मचारियों को दिए जाएँगे नसबंदी अथवा वन्ध्याकरण के माध्यम से अपने परिवार को दो बच्चों तक सीमित रखेंगे.

क्या भारत में जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता है?

  • यह एक सच्चाई है कि भारत की जनसंख्या बढ़ती जा रही है और अगले दो दशकों तक यह वृद्धि रुक नहीं सकती है. ऐसा इसलिए है कि भूतकाल की तुलना में वर्तमान काल में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो विवाह के योग्य हैं. अतः वे बच्चे तो पैदा करेंगे ही. इसके अतिरिक्त, लोगों की आयु भी बढ़ रही है जो जनसंख्या वृद्धि में एक कारक है.
  • परन्तु, यह भी देखना है कि प्रजनन दर भी घटती जा रही है. कोई स्त्री पूरे जीवन में जितनी सन्तान उत्पन्न करती है उसे सम्पूर्ण प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) कहते हैं. यदि TFR 2.1 हो जाता है तो इससे जनसंख्या दीर्घ अवधि में स्वयं स्थित हो जायेगी.
  • राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार अभी ही भारत में TFR 2.23 है जो वांछित TFR अर्थात 1 से कोई बहुत अधिक नहीं है.
  • उल्लेखनीय है कि आज की तिथि में 20 राज्य/संघीय क्षेत्र TFR 2.23 तक पहुँच चुके हैं और 5 तो 2 से भी नीचे चले गये हैं. जिन राज्यों में प्रजनन अधिक है उनकी संख्या 11 है. ऐसे राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ भी आते हैं. इन 11 राज्यों में ही देश की 42% जनसंख्या रहती है. ज्ञातव्य है कि इन जन-बहुल राज्यों में भी TFR की दर गिर रही है.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Global MPI 2018

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) तथा ऑक्सफ़ोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास पहल ने 2019 का वैश्विक MPI प्रतिवेदन निर्गत कर दिया है.

इस प्रतिवेदन में 101 देशों से सम्बंधित आकलन है, जिनमें 31 निम्न आय, 68 मध्यम आय और 2 उच्च आय वाले देश हैं.

प्रतिवेदन में निष्कर्ष निकाला गया है कि इन सभी देशों में 1.3 बिलियन ऐसे लोग हैं जो कई आयामों की दृष्टि से निर्धन हैं अर्थात् वे बहु-आयामी निर्धन लोग (multi-dimensionally poor) हैं .

बहु-आयामी निर्धनता की परिभाषा

बहु-आयामी निर्धनता वे लोग आते हैं जो न केवल आय की दृष्टि से निर्धन हैं, अपितु अन्य संकेतकों की दृष्टि से भी निर्धन हैं. ये संकेतक हैं – बुरा स्वास्थ्य, काम की निम्न गुणवत्ता और हिंसा का खतरा.

भारत के संदर्भ में प्रतिवेदन के मुख्य निष्कर्ष

  • प्रतिवेदन के अनुसार 2005-06 से 2015-16 के बीच बहु-आयामी निर्धनता घटकर 27.5% पर आ गई है अर्थात् आधी हो गई है. दूसरे शब्दों में 10 वर्षों में 271 मिलियन लोग निर्धनता की सीमा से बाहर निकल चुके हैं. एस इसलिए हुआ है कि निर्धनतम देशों में भारत ही ऐसा देश है जहाँ की प्रगति तुलनात्मक रूप से अधिक है.
  • इस संदर्भ में सबसे अधिक प्रगति झारखंड में हुई है. परन्तु अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और नागालैंड इस मामले में झारखंड से थोड़े ही पीछे हैं.
  • 2015-16 में बिहार निर्धनतम राज्य बना रहा. यहाँ आधे से अधिक लोग निर्धनता में रह रहे हैं.
  • भारत के चार निर्धन राज्यों – बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश – में रहने वाले बहु-आयामी निर्धनता से ग्रस्त लोगों की संख्या 196 मिलियन है जो भारत की कुल ऐसी जनसंख्या के आधे से अधिक है.
  • प्रतिवेदन के अनुसार भारत में जो सबसे कम निर्धन क्षेत्र हैं, वहाँ भी बहु-आयामी निर्धनता में कमी देखी गई है. उदाहरण के लिए 2006 में सबसे कम निर्धन क्षेत्र माने जाने वाले राज्य केरल के अन्दर बहु-आयामी निर्धनता में 92% की कमी देखी गई ही.
  • मुसलामानों और अनुसूचित जातियों जैसे निर्धनतम समुदायों में 2005-06 से 2015-16 के बीच निर्धनता सबसे अधिक घटी है.
  • भारत का निर्धनतम जिला मध्य प्रदेश का अलीराजपुर है जहाँ 76.5% लोग निर्धन हैं.

GS Paper  2 Source: PIB

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Topic : Draft tenancy law

संदर्भ

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने एक आदर्श किराया कानून का प्रारूप तैयार किया है जिसका उद्देश्य आवासीय परिसर को किराया पर उठाने के लिए नियमों का प्रावधान करना है.

प्रारूप के मुख्य तत्त्व

  • प्रारूप के अनुसार यदि कोई मकान मालिक किराए में संशोधन चाहता है तो उसे इसके लिए तीन महीनों की लिखित सूचना देनी होगी.
  • प्रत्येक जिले में जिला कलक्टर को किराया प्राधिकारी नियुक्त किया जाएगा.
  • जो किराएदार विहित समय से अधिक टिके रहेंगे उनपर भारी अर्थदंड लगाया जाएगा. उन्हें किराए का दुगुना और बाद में चौगुना तक देना होगा.
  • किराएदार को जो अग्रिम सिक्यूरिटी राशि जमा करनी है वह अधिकतम दो महीने के किराए के बराबर होगी.
  • मकान मालिक और किराएदार दोनों को किराया समझौते की एक प्रति जिला किराया प्राधिकारी को देनी होगी.
  • क्योंकि भूमि राज्य का विषय है इसलिए प्रस्तावित कानून को अंगीकृत करने का काम राज्यों पर छोड़ दिया गया है.
  • राज्यों को किराया न्यायालय और किराया पंचाट गठित करने होंगे.
  • यदि मकान मालिक मरम्मत करने से मन करता है तो किराएदार मरमत्त करके उसका पैसा किराए से काट लेगा.
  • कोई भी मकान मालिक किराए पर उठाये हुए परिसर के अन्दर बिना 24 घंटे पूर्व की सूचना के घुस नहीं सकता है.
  • यदि मकान मालिक और किराएदार के बीच कोई विवाद है तो मकान मालिक बिजली और पानी काट नहीं सकता है.
  • यदि मकान मालिक बिजली-पानी काटता है तो किराएदार किराया प्राधिकारी को इसकी सूचना देकर क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है.
  • यदि किराया प्राधिकारी को लगे कि आवेदन यों ही और तंग करने के लिए दिया गया है तो वह मकान मालिक या किरायादार पर अर्थदंड लगा सकता है.

माहात्म्य

प्रस्तावित कानून का महत्त्व यह है कि इससे कई मामले व्यवहार न्यायालयों में जाने से रुक जाएँगे और इस प्रकार उन न्यायालयों का भार हल्का हो जाएगा. साथ ही कानूनी पचड़ों में फंसी किराए पर दी गई परिसम्पत्तियाँ मुक्त हो सकेंगी. इस प्रकार प्रस्तावित विधेयक में किराएदार और मकान मालिक दोनों के हितों पर ध्यान दिया गया है.


GS Paper  2 Source: PIB

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Topic : LaQshya

संदर्भ

भारत सरकार ने लक्ष्य अर्थात् प्रसूति कक्ष गुणवत्ता सुधार पहल (Labour room Quality Improvement Initiative – LaQshya) का अनावरण किया है जिसका उद्देश्य सरकारी अस्पतालों के प्रसूति कक्षों एवं मातृत्व शल्य क्रिया कक्षों में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाना है.

LaQshya के उद्देश्य

  • सरकारी अस्पतालों में बच्चा-जच्चा की मृत्यु आदि घटनाओं को रोकना. ज्ञातव्य है कि कई कारणों से बच्चे या जच्चे की मृत्यु हो जाती है. इन कारणों में प्रमुख हैं – रक्त स्राव, गर्भनाल का भीतर रह जाना, समय के पूर्व प्रसव, एकलम्पसिया, प्रसूति में व्यवधान, ज़च्चा पूति, बच्चे का दम घुटना, बच्चे की पूति आदि.
  • सम्मानजनक मातृत्व देखभाल सुनिश्चित करना.
  • प्रसव के समय अच्छी देखभाल करना तथा प्रसव के बाद तुरंत देखभाल करते हुए सामने आने वाली जटिलताओं का निराकरण करना तथा साथ ही समय रहते हुए किसी बड़े अस्पताल में भेजने का काम करना.
  • अस्पतालों में लाभार्थियों की संतुष्टि का ध्यान रखना और सभी गर्भवती महिलाओं को सम्मानजनक मातृत्व देखभाल की व्यवस्था उपलब्ध कराना.

LaQshya के अन्दर कौन अस्पताल आते हैं?

  • सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल.
  • जिला अस्पताल और समकक्ष स्वास्थ्य केंद्र.
  • ऐसी रेफरल इकाइयाँ (FRUs) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs) जहाँ एक महीने में 100 से अधिक प्रसव होते हैं (पहाड़ी और मरुभूमि क्षेत्रों में 60).

Prelims Vishesh

‘Kharchi Puja’ Begins in Tripura :-

  • पापों के प्रक्षालन के लिए मनाई जाने वाली वार्षिक “खर्ची पूजा” त्रिपुरा में आरम्भ हो गई है.
  • इस पूजा में 14 देवताओं की अर्चना होती है. ये हैं – शिव, दुर्गा, विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक, गणेश, ब्रह्मा, अब्धि (जल के देवता), चंद्र, गंगा, अग्नि, कामदेव और हिमाद्री (हिमालय).
  • इस वर्ष खर्ची पूजा मेले की थीम है – नेश मुक्त त्रिपुरा एवं जल बचाव.

Gafa tax :-

  • पिछले दिनों फ्रांस की संसद ने “गाफा” नामक कर से सम्बंधित एक कानून पारित किया.
  • यह कर गूगल, एप्पल, फेसबुक और अमेज़न पर लगाया जाएगा. इसलिए इस कर को “गाफा” कर कहा गया है क्योंकि इसमें इन कंपनियों के नामों के पहले अक्षर को लिया गया है.
  • बड़ी डिजिटल हस्तियों के ऊपर ऐसा कानून लगाने वाला फ्रांस पहला देश बन गया है.

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