Sansar Daily Current Affairs, 17 September 2020
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : ECOSOC
संदर्भ
हाल ही में भारत द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र आथिक एवं सामाजिक परिषद” (ECOSOC) के सहायक निकायों के निर्वाचनों में विजय दर्ज की गई है.
- भारत ने “महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग”, “कार्यक्रम और समन्वय समिति” तथा “जनसंख्या एवं विकास आयोग” प्रत्येक में एक-एक सीट पर विजय प्राप्त की है.
- इन निकाय में भारत का कार्यकाल वर्ष 2021 से आरंभ होगा.
- ज्ञातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में भारत के कार्यकाल की शुरुआत भी वर्ष 2021 से ही होगी.
महिलाओं की स्थिति पर आयोग (CSW) (Commission on status of women)
- वर्ष 1946 में स्थापित किया गया CSW विशेष रूप से लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रति समर्पित एक प्रमुख वैश्विक अंतर-सरकारी निकाय है.
- यह महिला अधिकारों को प्रोत्साहित करने, संपूर्ण विश्व में महिलाओं के जीवन की वास्तविकता का दस्तावेजीकरण करने और लैंगिक समानता एवं महिलाओं के सशक्तीकरण पर वैश्विक मानकों को आकार प्रदान करने में सहायक है.
कार्यक्रम और समन्वय समिति (CPC) (committee for programme and coordination)
- यह समिति नियोजन, कार्यक्रम-निर्धारण तथा समन्वय के लिए ECOSOC और संयुक्त राष्ट्र महासभा का प्रमुख सहायक निकाय है.
- CPC महासचिव के कार्य कार्यक्रम की पूर्ण रूप से जांच करती है और अंतर-सरकारी संगठनों तथा सम्मेलनों द्वारा अपनाए गए या महासचिव द्वारा सुझाए गए निर्णयों से व्युत्पन्न कार्यक्रम में परिवर्तनों पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है.
- यह आयोग जनसंख्या और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के कार्रवाई कार्यक्रम के कार्यान्वयन में ECOSOC की सहायता करता है.
- यह राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई कार्यक्रम के क्रियान्वयन की निगरानी, समीक्षा एवं मूल्यांकन भी करता है.
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक तथा सामाजिक परिषद (ECOSOC) संयुक्त राष्ट्र संघ के कुछ सदस्य राष्ट्रों का एक समूह है, जो सामान्य सभा को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग एवं विकास कार्यक्रमों में सहायता करता है.
- यह परिषद सामाजिक समस्याओं के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति को प्रभावी बनाने में प्रयासरत है. इसके अनुसार विश्व में शांति बनाये करने का एकमात्र हल राजनीतिक नहीं है.
- इसकी स्थापना1945 की गयी थी. आरंभिक समय में इस परिषद में मात्र 18 सदस्य होते थे. 1965 में संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र को संशोधित करके इसके सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 27 कर दी गई और 1971 में सदस्यों की संख्या बढ़कर 54 हो गई.
- प्रत्येक सदस्य का कार्यकालतीन वर्ष का होता है. एक-तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष पदमुक्त होते हैं, अर्थात् प्रतिवर्ष 18 सदस्य बदले जाते हैं. पदमुक्त होने वाला सदस्य पुन: निर्वाचित भी हो सकता है. आर्थिक तथा सामाजिक परिषद में प्रत्येक सदस्य राज्य का एक ही प्रतिनिधि होता है.
- अध्यक्ष का कार्यकाल एक वर्षके लिए होता है और उसका चयन ईसीओएसओसी के छोटे और मंझोले प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है.
- वर्तमान में इसके अध्यक्ष सिल्वी ल्सूकस है.
- 1992 में आर्थिक और सामाजिक परिषद के अधिकारों को बढ़ाया गया. अल्जीरिया, चीन, बेलारुस, जापान, सूडान, न्यूजीलैंड इसके सदस्य हैं. यहां के निर्णय उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा लिए जाते हैं. किसी विशेष राज्य के विषय पर विचार करने के लिए जब परिषद की बैठक होती है, तो वह उस राज्य के प्रतिनिधि को आमंत्रित करती है. इस बैठक विशेष में उस प्रतिनिधि को मत देने का अधिकार नहीं होता है.
- परिषद हर वर्ष जुलाई में चार सप्ताह के लिए मिलती है और 1998 के बाद से वह अप्रैल में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक निधि के वित्तीय मंत्रियों के साथ एक और सम्मेलन होता है.
- आर्थिक एवं सामाजिक परिषद विश्व की जनसंख्या के जीवन में सुधार हेतु गरीबों, घायलों एवं अशिक्षितों की सहायता करके अंतर्राष्ट्रीय शांति बहाली के प्रयास करती है. यह अंतर्राष्ट्रीय मामलों में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य आदि मामलों का अध्ययन करती है.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Lok Sabha passed the National Commission for Homoeopathy Bill 2020
संदर्भ
संसद ने लोकसभा की मंजूरी के साथ आज राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक-2020 और राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति विधेयक-2020 पारित कर दिया है. इस वर्ष बजट सत्र के दौरान 19 मार्च को राज्यसभा इन विधेयकों को पारित कर चुकी है. इन विधेयकों का उद्देश्य होम्योपैथी तथा भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए उच्चस्तरीय चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है.
पृष्ठभूमि
भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग विधेयक, 2019 और होम्योपैथी के लिए राष्ट्रीय आयोग विधेयक, 2019 राज्य सभा में 7 जनवरी, 2019 को प्रस्तुत किए गए थे. बाद में दोनों विधेयक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण से संबंधित संसदीय स्थायी समिति के पास भेजे गए थे.
राज्यसभा में ये पहले ही पारित हो चुके हैं. अब निचले सदन से अनुमोदन के बाद तथा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के पश्चात कानून बन जायेंगे. कुछ विपक्षी सदस्यों ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को इस बारे में व्यापक विचार विमर्श करने की जरूरत है.
मुख्य बिंदु
राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक-2020
- राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक-2020, राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग की स्थापना के लिए होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम 1973 का स्थान लेगा.
- होम्योपैथी आयोग में 20 सदस्य होंगे जिसमें एक अध्यक्ष के अलावा होम्योपैथी शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष, राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान के महानिदेशक और होम्योपैथी के लिए चिकित्सा समीक्षा और रेटिंग बोर्ड के अध्यक्ष सदस्य के रूप में शामिल होंगे. इसमें कुछ अन्य सदस्यों को भी शामिल किया जाएगा.
- तीन स्वायत्त बोर्डों का गठन किया जाएगा – होम्योपैथी शिक्षा बोर्ड, चिकित्सकीय मूल्यांकन एवं रेटिंग बोर्ड एवं नैतिकता एवं पंजीकरण बोर्ड.
- होम्योपैथी शिक्षा में स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए समरूप राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाएगा.
- इसके अतिरिक्त, चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस प्राप्त करने हेतु चिकित्सा संस्थानों से स्नातक करने वाले छात्रों के लिए अंतिम वर्ष में एक कॉमन नेशनल एग्जिट टेस्ट का आयोजन भी किया जाएगा.
राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग विधेयक-2020
- राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग विधेयक-2020, भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम 1970 का स्थान लेगा और इसके स्थान पर राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग का गठन किया जाएगा.
- आयोग में अन्य सदस्यों के अलावा अध्यक्ष, आयुर्वेद बोर्ड के अध्यक्ष, यूनानी बोर्ड के अध्यक्ष, सिद्ध और सोवा-रिग्पा सहित 29 सदस्य होंगे.
- चार स्वायत्त बोर्डों का गठन किया जाएगा – आयुर्वेद बोर्ड, यूनानी, सिद्ध और सोवा-रिग्पा बोर्ड, भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए चिकित्सकीय मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड और नैतिकता एवं पंजीकरण बोर्ड.
- इन दोनों विधेयकों में होम्योपैथी के साथ भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए सलाहकार परिषदों का भी गठन करने का प्रस्ताव किया गया है.
- यह परिषद प्रारंभिक मंच होंगे जिसके माध्यम से राज्य और केंद्रशासित प्रदेश दोनों आयोगों के समक्ष अपने विचार और समस्याएं रख सकेंगे.
- स्नातक पाठ्यक्रम के प्रवेश हेतु समरूप राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा का आयोजन भी किया जाएगा.
- इसके अतिरिक्त, जो छात्र शिक्षण को एक पेशे के रूप में अपनाने के इच्छुक हैं, ऐसे स्नातकोत्तर छात्रों के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा का आयोजन भी किया जाएगा.
लाभ
प्रस्तावित विधेयक होम्योपैथी और भारतीय चिकित्सा पद्धति के बेहतर प्रबंधन में मदद करेगा. प्रस्तावित कानून समावेशी एवं सार्वभौम स्वास्थ्य सेवा को प्रोत्साहित करेगा और सामुदायिक स्वास्थ्य की भावना को बढ़ावा देगा. इस विधेयक के पारित होने के बाद केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद की जगह राष्ट्रीय भारतीय आयुर्विज्ञान प्रणाली आयोग तथा केंद्रीय होम्योपैथी परिषद के स्थान पर राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग का गठन किया जा सकेगा. इस विधेयक के जरिये न तो आयुर्वेद और होमियोपैथी के बीच किसी भी तरह के ‘ब्रिज कोर्स’ का प्रावधान है और न ही इससे किसी भी तरह की स्वायत्तता पर कोई अतिक्रमण होगा.
होम्योपैथी
- होम्योपैथी की खोज एक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (Christian Friedrich Samuel Hahnemann – 1755-1843) द्वारा अठारहवीं सदी के अंत के दशक में की गई थी.
- यह ‘सम: समम् शमयति’ (Similia Similibus Curentur) या ‘समरूपता’ (let likes be treated by likes) दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है.
- यह प्रणाली दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है.
प्रीलिम्स बूस्टर
हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आयुष मंत्रालय के अंतर्गत अधीनस्थ कार्यालय के रूप में ‘भारतीय औषधि एवं होम्योपैथी के लिये औषधकोश आयोग’ (Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy- PCIM&H) की पुनर्स्थापना को अपनी स्वीकृति दे दी है.
मेरी राय – मेंस के लिए
आज भारत की स्वास्थ्य नीति को देखा जाय तो हमारे पास एक आयातित स्वास्थ्य नीति है, जिसका लाभ जनता की बजाय बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों को होता है. जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक विविधतापूर्ण विशाल राष्ट्र है. इसका गठन विविध भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक स्तर, खान-पान, पहनावे और जीवनशैली वाले समूहों से हुआ है. इसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य और बीमारियों पर पडऩा स्वाभाविक है. अर्थात् प्रकृति, संस्कृति और स्वास्थ्य का गहरा संबंध है. इसी के अनुसार यहाँ स्वस्थ्य रहने के उपाय और चिकित्सा की विधियाँ भी भिन्नता लिए हुए रही है. जैसे उत्तर भारत में आयुर्वेद, दक्षिण भारत में सिद्ध, हिमालय की पहाडिय़ों में सोवारिंग्पा, आदिवासी क्षेत्रों गुनिया चिकित्सक स्थानीय संसाधनों से स्वास्थ्य की देखभाल करते रहे हैं.
2016 में सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया, यहाँ उसका भी उल्लेख आवश्यक है. भारत की सभी प्रचलित पारम्परिक चिकित्सा विधियों आयुर्वेद, योग, यूनानी, होम्योपैथी, सिद्धा, सोवारिंग्पा को एक साथ जोड़कर आयुष सिस्टम आफ मेडिसिन बनाया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य को लेकर चिंता करने वाले विचारकों के लिए यह उत्साहित करने वाला कदम था. पर केवल पाँच सालों में ही यह उत्साह ठंडा पड़ गया, क्योकि आयुष का प्रचार तो बहुत शानदार ढंग से किया गया पर अभी तक न राष्ट्रीय भागीदारी मिली और न ही हिस्सेदारी. इसका कारण यह रहा कि सरकारी चिकित्सा विज्ञान की परिभाषा में यह फिट नहीं बैठती है. इसे एक सहायक चिकित्सा विधि की तरह देखा जाता है. बाह्य औषधीय प्रयोग और जड़ी-बूटियों को एलौपैथी के मानकों पर प्रमाणित कर एलोपैथी को सौंप दिया जाता है. आश्चर्यजनक तथ्य यह है देश की 60 प्रतिशत आबादी जिस चिकित्सा पर घरेलू रुप में निर्भर है, उसका आधुनिक मानकों पर डाटा माँगा जाता है. इसके शिक्षण संस्थानों के उन्नयन के लिए प्रयास नगण्य है. नीम चढ़ा करेला यह कि इसके शिक्षण में भी व्यावसायिक क्षेत्र को बेलगाम प्रवेश करा दिया गया. इससे बिना प्रायोगिक ज्ञान के आयुष चिकित्सक दोयम दर्जे के एलोपैथिक चिकित्सक बनने को मजबूर हो रहे हैं. आयुर्वेद पर शल्य और रासायनिक औषधियों के प्रयोग, प्रसव कराने तक पर कानूनी प्रतिबंध लदा हुआ है. इसमें योग को ऐसे प्रचारित किया जाता है कि सारी स्वास्थ्य समस्याओं की कुंजी हो, जबकि देश की बहुसंख्य, दूरस्थ, कम आयवर्ग की आबादी को योगा नहीं, पोषण तथा स्वस्थ भोजन की आवश्यकता है. इसप्रकार अदूरदर्शी तथा आयातित स्वास्थ्य नीति के कारण भारत एक बीमार देश बनाता जा रहा है. प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का विध्वंस, समृद्ध वर्ग का असंयम, असमृद्ध वर्ग का कुपोषण इसका कारण है. समृद्ध वर्ग में जहाँ मधुमेह, हृदयरोग, रक्तचाप, गुर्दे के रोग आदि महामारी का रुप धारण करते जा रहे हैं, वहीं असमृद्ध आबादी में त्वचा, श्वास, रक्तहीनता, हड्डियों की कमजोरी, कैंसर, टीबी, इन्सेफेलाईटिस आदि रोग महामारी बनते जा रहे हैं. इधर आधुनिक एलोपैथी की दवायें निष्प्रभावी होती जा रही हैं. रोगप्रतिरोधक क्षमता कृत्रिम जीवन शैली के कारण दिनोंदिन घटती जा रही है. इस हालात में स्वदेशी स्वास्थ नीति ही अपने देश को बीमार देश बनने से बचा सकती है. इसके लिए तमाम कानूनों की समीक्षा करते हुए स्वदेशी चिकित्सा विधियों पर विश्वास के साथ खर्च बढ़ाने की आवश्यकता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Inclusive growth and issues arising from it.
Topic : Banking Regulation (Amendment) Bill, 2020
संदर्भ
लोकसभा में बैंकिंग विनियमन संशोधन विधेयक, 2020 को पारित कर दिया गया.
विधेयक से संबंधित मुख्य बिंदु
- यह विधेयक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को अवश्यकता पड़ने पर सहकारी बैंकों के प्रबंधन में बदलाव करने का अधिकार देता है.
- इससे सहकारी बैंकों में अपना पैसा जमा करने वाले आम लोगों के हितों की रक्षा होगी.
- विधेयक में कहा गया है कि आरबीआई को सहकारी बैंकों के नियमित कामकाज पर रोक लगाये बिना उसके प्रबंधन में बदलाव के लिये योजना तैयार करने का अधिकार मिल जायेगा.
- कृषि सहकारी समितियां या मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में काम करने वाली सहकारी समितियां इस विधेयक के दायरे में नहीं आयेंगी. जो सहकारी समितियां अपने नाम के साथ बैंक शब्द का इस्तेमाल नहीं करती हैं और चेकों का समाशोधन नहीं करतीं हैं उन्हें इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है.
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद के निचले सदन में बिल पर चर्चा के दौरान कहा कि केंद्र सरकार बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट, 1949 में संशोधन कर बैंक उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना चाहती है.
विधेयक की आवश्यकता क्यों?
कोरोना महामारी ने सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति पर बुरा असर डाला है. देश में 277 शहरी सहकारी बैंक खराब हालत में हैं. इनमें से 105 सहकारी बैंक न्यूनतम निर्धारित राशि रखने की स्थिति में नहीं है, जबकि 47 की शुद्ध लागत ऋणात्मक स्थिति में है.
लाभ
इस विधेयक में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिये बेहतर प्रबंधन और समुचित नियमन के माध्यम से सहकारी बैंकों को बैकिंग क्षेत्र में हो रहे बदलावों के अनुरूप बनाने का प्रावधान किया गया है. यह विधेयक इससे संबंधित अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है.
इस विधेयक में बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा-3, धारा-45 और धारा-56 में संशोधन का प्रस्ताव है. इससे नियम कानून की दृष्टि से सहकारी बैंकों और वाणिज्यिक बैंकों में एकरूपता लाई जा सकेगी. इस विधेयक से भारतीय रिज़र्व बैंक सहकारी बैंकों के पुनर्गठन या विलय की योजना बना सकेगा और जमाकर्ताओं के हित में सही प्रबंधन की व्यवस्था भी कर सकेगा.
विवाद
- विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्र सरकार बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 के माध्यम से राज्यों के मामले दखल दे रही है, जबकि सहकारिता से संबन्धित प्रावधान हमारे देश के सहकारी संघवाद के तहत आते हैं. भारतीय संविधान के ‘भाग 9-ख’ में सहकारिता से संबन्धित प्रावधान किए गए हैं.
- किन्तु केंद्र सरकार का कहना है कि भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची के प्रविष्ट(प्रवेश) संख्या 45 में बैंककारी (banking) शब्द का उल्लेख है अर्थात बैंकिंग से संबन्धित विनियम केंद्र सरकार बना सकती है. प्रस्तावित संशोधन विधेयक केवल उन सहकारी समितियों पर लागू होगा जो शब्द बैंक, बैंकर या बैंकिंग का उपयोग करते हैं.
काम की बात
यह विधेयक संघीय सूची के विषयों से संबंधित है, इसलिए इस पर राज्यों से विचार-विमर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं है. केवल समवर्ती सूची के विषयों पर राज्यों से परामर्श आवश्यक है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Science and Technology.
Topic : Skyfall Missile
संदर्भ
रूस ने एक ऐसी परमाणु मिसाइल को विकसित कर रहा है, जो कई साल तक अंतरिक्ष में धरती का चक्कर लगा सकती है. आदेश मिलते ही यह मिसाइल दुनिया के किसी भी कोने को पल भर में नेस्ताबूत करने में सक्षम है. रूस ने इस मिसाइल को 9M730 Burevestnik नाम दिया है, जिसे NATO द्वारा स्काईफॉल मिसाइल नाम दिया गया है.
ब्रिटिश खुफिया प्रमुख ने कैम्ब्रिजशायर के आरएएफ वायटन में फाइव आइज़ इंटेलिजेंस हब की बैठक में यह जानकारी दी.
विदित हो कि फाइव आईज एक खुफिया गठबंधन है जिसमें यूके, यूएस, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा के विशेषज्ञ शामिल हैं.
स्काईफॉल मिसाइल
- यह मिसाइल कई साल तक धरती की परिक्रमा करने में सक्षम होगी. परमाणु ऊर्जा से चलने वाली मिसाइल लगभग अनिश्चित समय तक अंतरिक्ष में रह सकती है.
- यह मिसाइल तुरंत ही निर्धारित लक्ष्य पर परमाणु हमला कर सकती है.
- यह रूस का ऐसा नया रक्षा कवच है, जिसे भेदना फिलहाल अमेरिका के भी बस की बात नहीं लगती. नाटो के देशों में इसको लेकर हड़कंप मचा हुआ है.
- रूस द्वारा इस असीमित रेंज और असीमित विनशकारी क्षमता वाली मिसाइल को 2025 तक लांच करने की योजना है.
Prelims Vishesh
Guidelines for cigarette, bidi butt disposal :-
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को आगामी तीन माह के भीतर सिगरेट और बीड़ी के बद्स के निपटान हेतु दिशा-निर्देश निर्मित करने के लिए निर्देशित किया है.
- इससे पूर्व, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) द्वारा यह पुष्टि की गई थी कि सेल्यूलोज एसीटेट (जो सिगरेट और बीड़ी के बदट्स का एक प्रमुख घटक है) एक गैर-विषाक्त, हानि विहीन और जैव निम्नीकरणीय सामग्री है.
US Spacecraft to be named after Kalpana Chawla :-
- अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में आपूर्ति करने वाले आगामी अंतरिक्ष यान को एस.एस.कल्पना चावला यान कहा जाएगा.
- कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ था.
- उन्होंने वर्ष 1988 में नासा में अपने करियर की शुरुआत की थी. कल्पना चावला के नाम पर रखा गया
- वह अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की प्रथम महिला थीं.
125th birth anniversary of Sri Viswanatha Satyanarayana :-
- हाल ही में श्री विश्वनाथ सत्यनारायण की 125वीं जयंती मनाई गई.
- वह एक तेलुगू लेखक थे, जिनकी रचनाओं में कविता, उपन्यास, नाटक, लघु कथाएँ और वाणियां शामिल हैं.
- वर्ष 1971 में उन्हें उनकी पुस्तक “रामायण कल्पवृक्षं” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
- ये ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम तेलुगू लेखक थे.
SC stays reservation to Marathas :-
- उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने वाले वर्ष 2018 के महाराष्ट्र राज्य के कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है.
- न्यायलय ने सुनवाई हेतु इस मामले को एक संवैधानिक पीठ (5 या अधिक न्यायाधीशों की पीठ) को प्रेषित कर दिया है.
- मराठा कोटा कानून को चुनौती देने वाली याचिका में यह तर्क दिया गया है कि इस कानून ने इंदिरा साहनी वाद में उच्चतम न्न्यायलय द्वारा घोषित आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन किया है.
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