Sansar डेली करंट अफेयर्स, 18 January 2022

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Sansar Daily Current Affairs, 18 January 2022


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.

Topic : Pakistan launches first-ever National Security Policy

संदर्भ

उत्तरी बंगाल में रेल के पटरी से उतरने के कारण कई लोगों की मृत्यु हो गई. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014-15 से रेल दुर्घटनाओं में बहुत कमी आई है, लेकिन फिर भी ऐसी घटनाओं को रोकने के व्यापक प्रयास किये जाने चाहिए.

वर्ष 2014-15 में 135 रेल दुर्घटनाएं हुई थीं. वर्ष 2019-20 में यह संख्या 55 थी. इन दुर्घटनाओं में वर्ष 2014-15 में 292 लोगों की मृत्यु हुई थी. वर्ष 2019-20 में केवल 5 लोग मारे गए थे.

भारतीय रेलवे में दुर्घटनाओं हेतु जिम्मेदार कारण

  • खराब रोलिंग स्टॉक. इसके अतिरिक्त, देश की सभी रेलों में लिंके हॉफमैन बुश (LHB) कोच नहीं हैं.
  • LHB कोच स्टेनलेस स्टील से निर्मित होते हैं. इनमें आघात सहन करने की बहुत अधिक क्षमता होती है. ये रेल के पटरी से उतरने से होने वाली दुर्घटनाओं को कम कर सकते हैं.
  • ऐसा कोई तंत्र विद्यमान नहीं है, जो आग लगने के जोखिम की पहचान कर सके तथा संभावित टक्कर को रोक सके.
  • रेलवे ट्रैकों का सही तरीके से रख-रखाव नहीं किया जाता है.
  • चरम मौसमी घटनाएं (जैसे कोहरा, अधिक वर्षा आदि) भी ऐसी दुर्घटनाओं की संभावनाओं को बढ़ाती हैं.

रेलवे से संबंधित समितियों द्वारा की गई संस्तुतियाँ

  • रेलवे के आधुनिकीकरण पर सैम पित्रोदा समिति: ट्रेन निगरानी तंत्र का केंद्रीकरण, मौजूदा 19,000 किमी लम्बे ट्रैकों का आधुनिकीकरण, मुख्य मार्गों पर स्वचालित अवरोध संकेतन तंत्र लागू करना आदि.
  • रेलवे सुरक्षा समीक्षा पर अनिल काकोदकर समिति: एक विधिक रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण का गठन करना, एक उन्‍नत संकेतन प्रणाली को अपनाना आदि.
  • रेलवे के पुनर्गठन पर बिबेक देबरॉय समिति: निजी क्षेत्र को भागीदार बनाना, एक स्वतंत्र विनियामक आवश्यक है आदि.

मेरी राय – मेंस के लिए

आवश्यक है कि लोगों के व्यवहार में परिवर्तन का प्रयास किया जाए। हेलमेट और सीट-बेल्ट के प्रयोग को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि अधिकांश सड़क दुर्घटनाएँ इन्हीं कारणों की वजह से होती हैं। लोगों को शराब पीकर गाड़ी न चलाने के प्रति जागरूक किया जाना चाहिये। दुर्घटना के पश्चात् तत्काल प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराना और पीड़ित को जल्द-से-जल्द अस्पताल पहुँचाने की व्यवस्था करना कई लोगों की जान बचा सकता है। दुर्घटना के पश्चात् आस-पास खड़े लोग घायल की जान बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। आवश्यक है कि आम लोगों को इस कार्य के प्रति जागरूक किया जाए। सड़कों की योजना, डिज़ाइन और संचालन के दौरान सुरक्षा पर ध्यान देना सड़क दुर्घटनाओं में मौतों को कम करने में योगदान दे सकता है। सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये मास मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिये।


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.

Topic : Inter-Faith Marriages

संदर्भ

हाल ही में, देश में ‘अंतर-धार्मिक विवाहों’ (Inter-Faith Marriages) को नियंत्रित करने वाले कानून, ‘विशेष विवाह अधिनियम’ 1954 (Special Marriage Act – SMA) 1954 को न्यायालय में चुनौती दी गयी है. याचिकाकर्ताओं का कहना है, कि इस अधिनियम के तहत विवाह करने वाले युवा दंपतियों का जीवन खतरे में पड़ जाता है.

इस क़ानून के कई प्रावधानों को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर किए जाने के एक साल से अधिक समय बीत चुका है, किंतु सरकार ने अभी तक इस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है.

संबंधित प्रकरण:

  • याचिका में, विवाह पंजीकरण से पहले सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करने का प्रावधान करने वाली ‘विशेष विवाह अधिनियम’ (SMA) की धारा 6 और 7 को, अतर्कसंगत तथा मनमाना बताते हुए, रद्द करने की मांग की गई है.
  • याचिकाकर्ता का तर्क है, कि 30 -दिन की अवधि, दंपति के परिजनों के लिए अंतर-जातीय या अंतर-धर्म विवाह को हतोत्साहित करने का मौका प्रदान करती है.

‘विशेष विवाह अधिनियम’, 1954

‘विशेष विवाह अधिनियम’ (Special Marriage Act – SMA) एक ऐसा कानून है, जो बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाजों या परम्पराओं के विवाह करने की अनुमति देता है.

  • विभिन्न जातियों या धर्मों अथवा राज्यों के लोग विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करते हैं, तथा इसमें पंजीकरण के माध्यम से विवाह किया जाता है.
  • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य अंतर-धार्मिक विवाह संपन्न करना तथा सभी धार्मिक औपचारिकताओं को अलग करते हुए विवाह को एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान के रूप स्थापित करना है, जिसमे विवाह हेतु मात्र पंजीकरण की आवश्यकता होती है.

विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रक्रिया:

विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act- SMA) के अंतर्गत विवाह पंजीकृत करने के लिए विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गयी है.

  1. विवाह के लिए इच्छुक पक्षकारों में से एक व्यक्ति को जिले के विवाह-अधिकारी एक सूचना देनी होती है, और इसके लिए विवाह हेतु आवेदन करने वाले पक्षकार को, नोटिस दिए जाने की तिथि से, जिले में तीस दिनों से अधिक समय से निवास करना आवश्यक होता है.
  2. विवाह हेतु दी जाने वाली सूचना को, विवाह अधिकारी, विवाह-सूचना रजिस्टर में दर्ज करेगा तथा प्रत्येक ऐसी सूचना की एक प्रतिलिपि अपने कार्यालय के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगवायेगा.
  3. विवाह अधिकारी द्वारा प्रकाशित, विवाह सूचना में पक्षकारों के नाम, जन्म तिथि, आयु, व्यवसाय, माता-पिता के नाम और विवरण, पता, पिन कोड, पहचान की जानकारी, फोन नंबर आदि सम्मिलित होते हैं.
  4. इसके पश्चात, अधिनियम के तहत प्रदान किए गए विभिन्न आधारों पर कोई भी विवाह पर आपत्ति उठा सकता है. यदि 30 दिनों की अवधि के भीतर कोई आपत्ति नहीं उठाई जाती है, तो विवाह संपन्न किया जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति विवाह पर आपत्ति करता है, तो विवाह अधिकारी इसकी जांच करेगा, तदुपरांत वह विवाह के संबंध में निर्णय लेगा.

आलोचनाएं

  1. परिवार द्वारा बलप्रयोग रणनीति के प्रति असुरक्षित
  2. निजता का उल्लंघन
  3. धर्म-परिवर्तन का दबाव

मेरी राय – मेंस के लिए

वर्तमान में सभी धर्मों की युवा भारतीय महिलाएँ बढ़-चढ़ कर काम करने, अध्ययन करने, ऐसे व्यक्ति से विवाह करने जिसे वे स्वयं चुनें और जिसके साथ अपनी शर्तों पर जीवन जीने का फैसला करें आदि जैसी स्वतंत्रता की मांग कर रही हैं। ऐसे में न तो इन बुनियादी अधिकारों पर सवाल उठाया जाना चाहिये और न ही इन पर अंकुश लगाया जाना चाहिये। एक महिला की स्वायत्तता उसका अपना अधिकार है, किसी भी माता-पिता, रिश्तेदार या राज्य तंत्र को उससे इस स्वायत्तता को छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। एक महिला को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने का प्रयास, एक ऐसी विनम्र महिला आबादी को तैयार करने का प्रयास है , जो वही करती है जैसा उसे बताया जाता है तथा सामाजिक और पारिवारिक निर्देशों के खिलाफ विद्रोह नहीं करती है।


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.

Topic : Petition to declare marital rape a crime

संदर्भ

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ‘भारतीय दंड संहिता’ की धारा 375 के तहत निर्धारित ‘अपवाद’ को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है. इस ‘अपवाद’ अथवा ‘छूट’ के तहत, यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है, तो पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने को ‘बलात्कार’ का अपराध नहीं माना जाता है. इस छूट को “वैवाहिक बलात्कार अपवाद” (Marital Rape Exception) के रूप में भी जाना जाता है.

संबंधित प्रकरण

  • वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध घोषित करने की मांग करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिकाएं, वर्ष 2012 में हुई ‘निर्भया सामूहिक बलात्कार’ की भयानक घटना के उपरांत गठित न्यायमूर्ति ‘जेएस वर्मा कमेटी’ ( S. Verma Committee) की ऐतिहासिक रिपोर्ट पर सरकार द्वारा ध्यान नहीं देने का परिणाम हैं.
  • सरकार ने कई मौकों कह चुकी है, कि इस तरह के निर्णय से ‘विवाह संस्था’ खतरे में पड़ जाएगी, किंतु विशेषज्ञों के अनुसार, ‘निजता के अधिकार’ सहित शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए हाल के फैसलों ने सरकार के इस तर्क को अस्थिर कर दिया है.

वर्मा कमेटी की प्रमुख संस्तुतियाँ

जस्टिस वर्मा कमेटी ने क़ानून से ‘वैवाहिक बलात्कार अपवाद को हटाए जाने’ की अनुशंसा की थी, और कहा था कि कानून के लिए यह निर्दिष्ट करना चाहिए, कि “अपराधी एवं पीड़ित के बीच वैवाहिक या अन्य संबंध, बलात्कार या यौन-हिंसा के अपराधों से बचने का कानूनी आधार नहीं है”.

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के विरुद्ध सरकार के तर्क

  • सरकार ने अदालत के समक्ष दायर अपने हलफनामे में कहा है, कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ‘वैवाहिक बलात्कार’, ‘विवाह संस्था को अस्थिर करने वाली’ घटना तथा ‘पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन’ नहीं बने.
  • सरकार ने इसमें आगे कहा है, “जो यौन-संबंध पत्नी के लिए वैवाहिक बलात्कार प्रतीत हो सकते हैं, हो सकता है कि वह दूसरों को ऐसा नहीं लगे.”

सरकार के इस दृष्टिकोण पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाने वाले हालिया निर्णय

  • ‘इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ’ (Independent Thought vs. Union of India) मामले में अक्टूबर 2017 का फैसला. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘नाबालिग पत्नी के साथ बलात्कार’ को अपराध घोषित कर दिया था.
  • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (सितंबर 2018) मामले में, शीर्ष अदालत ने सर्वसम्मति से संविधान द्वारा गारंटीकृत प्रत्येक व्यक्ति की ‘निजता के मौलिक अधिकार’ को मान्यता प्रदान की थी.
  • ‘जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामला (अक्टूबर 2018). इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा ‘व्यभिचार’ (Adultery) को अपराध घोषित करते हुए इसकी भर्त्सना की थी.

इस संदर्भ में पूर्ण निरीक्षण एवं सुधार की आवश्यकता:

‘वैवाहिक बलात्कार अपवाद’ (Marital Rape Exception) की उत्पत्ति ‘ब्रिटिश ताज के समक्ष मुकद्दमों का इतिहास’ / ‘हिस्ट्री ऑफ़ प्लीस ऑफ़ द क्राउन’ (History of the Pleas of the Crown) नामक इंग्लैंड के ‘आपराधिक कानून पर लिखित’ महत्वपूर्ण ग्रंथ में निहित है.

  • इस पुस्तक में तत्कालीन ब्रिटिश मुख्य न्यायाधीश मैथ्यू हेल ने 1736 में कहा था, “पति अपनी वैध पत्नी के साथ खुद बलात्कार करने के मामले में दोषी नहीं हो सकता है, क्योंकि आपसी वैवाहिक सहमति और अनुबंध के तहत पत्नी द्वारा अपने आप को, इस प्रकार से अपने पति को सौंप दिया जाता है, जिससे वह स्वयं वापस नहीं हट सकती है.”
  • इसके बाद से, इस अपवाद को इंग्लैंड सहित कई न्यायालयों में इस्तेमाल किया जाता रहा है. हालाँकि इंग्लैंड के उच्च सदन ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’ में वर्ष 1991 में, विवाह को ‘बराबरी की साझेदारी’ के रूप में घोषित कर दिया गया था और ‘पत्नी को पति की अधीनस्थ संपत्ति’ माने जाने संबंधी विचार को खारिज कर दिया गया.

साथ ही, विश्व बैंक के अनुसार, नेपाल सहित कम से कम 78 देशों में, विशेष रूप से ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध घोषित करने वाले कानून लागू हैं.

इस संबंध में विधिक प्रावधान

वर्तमान में ‘वैवाहिक बलात्कार’ को ‘हिंदू विवाह अधिनियम’, 1955, ‘मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम’, 1937 ( Muslim Personal Law (Shariat) Application Act, 1937) और ‘विशेष विवाह अधिनियम’, 1954 में तलाक का आधार नहीं माना जाता है, और इसे तलाक अथवा पति के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज करने के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

  • आईपीसी की धारा 375 के अनुसार, “यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो, अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा संभोग करना, बलात्कार नहीं है”.
  • किसी अन्य क़ानून या विधान में ‘वैवाहिक बलात्कार’ को मान्यता नहीं दी गयी है.
  • पीड़ितों के पास ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम’, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत प्रदान किए गए नागरिक उपचार का ही सहारा होता है.

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किए जाने की जरूरत

  1. कई अध्ययनों के अनुसार, अपनी पत्नियों के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाना और शारीरिक रूप से अपनी पत्नियों को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करना एक आम बात पायी गयी है.
  2. विवाह एक ‘समान-संबंधों’ का अनुबंध होता है, और यह हर चीज के लिए एक बार में ही प्रदान की गयी सहमति नहीं है.
  3. कानून में ‘पति को बलात्कार करने की दी गयी विधिक छूट’ पुरुषों को असमान विशेषाधिकार प्रदान करती है.
  4. वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित महिलाओं को दीर्घ-गामी मनोवैज्ञानिक चोट झेलनी पड़ती है.
  5. धारा 375 के तहत अपवाद, महिला को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन करता है.
  6. भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक प्रकृति से पुरुषों के दिमाग में यह बात बस जाती है, कि महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि जब उनके पति सेक्स की मांग करें तो वे इसका पालन करें.
  7. वैवाहिक बलात्कार से पीड़ित महिला को शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है, साथ ही उसकी मर्यादा भंग होने का मानसिक आघात भी सहना पड़ता है.
  8. पिछले 70 वर्षों में आईपीसी की धारा 375 में दिए गए इस अपवाद को कभी भी छेड़ा नहीं गया है.
  9. बाल विवाह का प्रचलन और कई मामलों में महिलाओं की जबरन शादी, समाज में आम बात है.

‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध घोषित करने के विपक्ष में तर्क

  1. ‘वैवाहिक बलात्कार’ (Marital Rape) को अपराध घोषित किया जाना, “पति को परेशान करने का एक आसान साधन होने के अलावा विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकता है”.
  2. दहेज कानून के रूप में जाना जाने वाली ‘आईपीसी की धारा 498A’ का दुरुपयोग “पतियों को परेशान करने के लिए” किया जाता है.
  3. अन्य देशों, ज्यादातर पश्चिमी देशों द्वारा ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध घोषित किया जा चुका है, इसका मतलब यह नहीं है कि आँख बंद करके उनका अनुसरण करते हुए भारत को भी ऐसा करना चाहिए.
  4. ‘बलात्कार कानूनों की समीक्षा हेतु गठित विधि आयोग’ ने इस मुद्दे की जांच की है, और वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण किए जाने के संबंध में कोई सिफारिश नहीं की है.
  5. जो यौन संबंध पत्नी के लिए ‘वैवाहिक बलात्कार’ प्रतीत हो सकते हैं, हो सकता है कि वह दूसरों को ऐसा नहीं लगे.
  6. पुरुष और उसकी अपनी पत्नी के मध्य यौन-कार्यों के मामले में कोई स्थायी सबूत नहीं मिल सकता है.

मेरी राय – मेंस के लिए

  • बहु-हितधारक दृष्टिकोण: वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण निश्चित रूप से एक प्रतीकात्मक शुरुआत होगी। दंपत्ति के यौन इतिहास, पीड़ित को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान जैसे विभिन्न पहलुओं के आधार पर चिकित्सा कर्मियों, परिवार परामर्शदाताओं, न्यायाधीशों और पुलिस की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा सजा का फैसला किया जा सकता है।
  • व्यवहार में बदलाव लाना: पीड़ितों की आर्थिक स्वतंत्रता की सुविधा के लिये सहमति, समय पर चिकित्सा देखभाल और पुनर्वास, कौशल विकास और रोज़गार के महत्व पर जनता (नागरिकों, पुलिस, न्यायाधीशों, चिकित्सा कर्मियों) को जागरूक करने वाले जागरूकता अभियानों के माध्यम से वैधानिक सुधार किया जाना चाहिये।

GS Paper 3 Source : PIB

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UPSC Syllabus: अन्तरिक्ष.

Topic : Gaganyan Mission

संदर्भ

गगनयान मिशन इसरो ने हाल ही में भारत के गगनयान मिशन में प्रयुक्त होने वाले क्रायोजेनिक विकास इंजन का तीसरा परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है. यह विकास इंजन का अब तक का सबसे लंबी अवधि का परीक्षण भी था. तमिलनाडु में महेंद्रगिरि के इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स (IPRC) की इंजन परीक्षण सुविधा में 720 सेकंड के लिए इंजन को फायर किया गया था.

गगनयान मिशन

भारत के 72वें स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि भारत 2022 में अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्री भेजेगा. इस मिशन को गगनयान मिशन का नाम दिया गया है.

गगनयान के आनुषंगिक लाभ

  1. देश में विज्ञान और तकनीक के स्तर में वृद्धि.
  2. अनेक संस्थानों, शिक्षण संस्थानों और उद्योग को एक राष्ट्रीय परियोजना से जुड़ने का अवसर.
  3. औद्योगिक वृद्धि में सुधार.
  4. युवजनों को प्रेरणा.
  5. सामाजिक लाभ के लिए तकनीक का विकास.
  6. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बढ़ोतरी.

भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम

  • इस कार्यक्रम (Gaganyaan mission) का उद्देश्य पृथ्वी कक्ष में एक ऐसा अन्तरिक्ष यान प्रक्षेपित करना है जिसमें दो अथवा तीन अन्तरिक्षयात्री सवार हों.
  • इसके लिए शुरू में अन्तरिक्ष में पृथ्वी के ऊपर 400 km की दूरी पर स्थित परिक्रमा पथ पर 2-3 अन्तरिक्ष यात्रियों को 7 दिन के लिए भेजा जाएगा.
  • इसके लिए भारत सरकार ने पिछले बजट में 12.4 billion की राशि निर्धारित कर दी है.
  • इस अंतरिक्षयान का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क III द्वारा किया जाएगा.

तकनीकी चुनौतियाँ

ISRO को तीन प्रमुख क्षेत्रों में ध्यान देने की जरूरत है – i) पर्यावरण नियंत्रण और जीवनरक्षक प्रणाली (ECLS system) ii) चालक दल सुरक्षा प्रणाली और iii) फ्लाइट सूट सुविधा. इन चुनौतियों के समाधान करने के लिए सरकार ने आवश्यक तैयारी हेतु 145 करोड़ रूपए स्वीकृत किये हैं.

हाल ही में किये गए तकनीकी प्रयोग

  • पिछले वर्ष ISRO ने “PAD ABORT” अर्थात् अन्तरिक्ष यात्री उद्धार प्रणाली का सफल परीक्षण किया था.
  • इस प्रणाली के माध्यम से यदि कभी प्रक्षेपण विफल हो जाता है तो उस समय अन्तरिक्ष यात्री उससे बाहर निकलकर अपने प्राण बचाने में समर्थ हो जाते हैं.
  • यह परीक्षण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अन्तरिक्ष केंद्र में हुआ था.
  • विदित हो कि अगर भारत इस मिशन (गगनयान मिशन) को सफलतापूर्वक लौंच करता है, तो यह संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा करने वाला चौथा राष्ट्र बन जायेगा.

सफल मानव अन्तरिक्ष यात्रा के लिए आवश्यक है कि हम यात्रा के पश्चात् अन्तरिक्ष यात्रियों को सकुशल पृथ्वी पर वापस ला सकें और साथ ही यह अन्तरिक्ष यान ऐसा हो कि उसमें बैठे अन्तरिक्षयात्री पृथ्वी जैसी दशाओं में रह सकें.


Prelims Vishesh

Commonwealth War Graves Commission – CWGC :-

  • यूनाइटेड किंगडम स्थित ‘कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्स कमीशन’ (Commonwealth War Graves Commission – CWGC) ने असामान्य विशेषताओं वाली पांच साइटों को सूचीबद्ध किया है. ये स्थल प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़े हुए हैं.
  • इन सूचीबद्ध स्थानों में नागालैंड का ‘कोहिमा युद्ध कब्रिस्तान’ भी शामिल है.
  • ‘कोहिमा युद्ध कब्रिस्तान’ मित्र देशों की सेना के दूसरे ब्रिटिश डिवीजन के सैनिकों को समर्पित एक स्मारक है. ये सैनिक द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अप्रैल 1944 में कोहिमा में मारे गए थे.
  • CWGC द्वारा सूचीबद्ध अन्य असाधारण स्थलों में, फ्रांस में पास डी कैलाइस क्षेत्र में स्थित ‘प्रथम विश्व युद्ध का “क्रेटर कब्रिस्तान” – ज़िवी क्रेटर और लिचफील्ड क्रेटर भी शामिल है. इस क्षेत्र में जमीनों सुरंगो के विस्फोटों की वजह से क्रेटर बन गए थे.
  • सूचीबद्ध स्थलों में, साइप्रस का निकोसिया (वेन्स कीप) कब्रिस्तान या “कब्रिस्तान इन नो मैन्स लैंड” भी शामिल है, इस जगह पर सशत्र सैनिक तैनात रहते है. क्योंकि, यह कब्रिस्तान 1970 के दशक से द्वीप के दक्षिणी और उत्तरी हिस्सों के बीच विवादित भूमि के एक हिस्से की सीमा पर बना हुआ है.

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