Sansar Daily Current Affairs, 18 July 2019
GS Paper 1 Source: PIB
Topic : Kartarpur Sahib pilgrim corridor
संदर्भ
पिछले दिनों पाकिस्ताने के वाघा में करतारपुर साहिब गलियारे के संचालन की पद्धतियों के विषय में भारत और पाकिस्तान के बीच दूसरे चक्र की वार्ता हुई.
पाकिस्तान इस बात पर सिद्धांततः सहमत हुआ है कि करतारपुर साहिब की यात्रा के लिए वह भारतीयों को पूरे वर्ष बिना वीजा की यात्रा करने देगा.
भारत की चिंताएँ क्या हैं?
भारत ने यह चिंता जताई है कि कुछ व्यक्ति और समूह करतारपुर साहिब की तीर्थयात्रा में विघ्न पहुँचा सकते हैं तथा पाकिस्तान सरकार द्वारा मिट्टी-भराई करके बनाई जा रही बाँध सड़क के कारण डेरा बाबा नानक पानी में डूब सकता है.
करतारपुर गुरुद्वारा दरबार साहिब से सम्बंधित तथ्य
करतारपुर का गुरुद्वारा रावी नदी के तट पर लाहौर से 120 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह वह स्थान है जहाँ गुरु नानक ने सिख समुदाय को जमा किया था और 1539 में अपनी मृत्यु तक 18 वर्ष तक रहे थे. यह गुरुद्वारा भारतीय भूभाग से दिखाई पड़ता है. यहीं से लोग गुरुद्वारे का दर्शन करते हैं. कभी-कभी घास बड़े हो जाने के कारण भारतीय सिख गुरूद्वारे को ठीक से देख नहीं पाते हैं तो पाकिस्तानी अधिकारी उन घासों को छाँट देते हैं. गुरूद्वारे को ठीक से देखने के लिए भारत के लोग दूरबीन का सहारा लेते हैं. ये दूरबीन गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक में लगाये गये हैं.
गुरुद्वारा दरबार साहिब के लिए जत्थे कब निकलते हैं?
करतारपुर (पाकिस्तान) में स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब के लिए भारत से तीर्थयात्रियों के जत्थे हर वर्ष चार बार निकलते हैं. जिन अवसरों पर ऐसे जत्थे पाकिस्तान जाते हैं, वे हैं – वैशाखी, गुरु अर्जन देव शहीदी दिवस, महाराजा रंजित सिंह की पुण्यतिथि तथा गुरु नानक देव की जयंती. पढ़ें : (गुरु नानक की जीवनी).
गलियारा निर्माण से सम्बंधित समस्याएँ
कुछ दिनों से पाकिस्तान में खलिस्तान समर्थक लोग गुरुद्वारों का प्रयोग कर रहे हैं. हाल ही में, एक गुरुद्वारे में “सिख जनमत संग्रह 2020” के लिए पोस्टर लगाये गये थे और पैम्फलेट बाँटे गये थे. जब भारत के राजदूत और राजनयिक वहाँ जा रहे थे तो पाकिस्तान ने उन्हें रोक दिया था. इस प्रकार इस बात की प्रबल सम्भावना है कि यदि करतारपुर साहिब गलियारा बनता है तो पाकिस्तान उसका दुरूपयोग भारत के विरुद्ध करेगा.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Privatisation of the Railways
संदर्भ
पिछले दिनों भारत सरकार ने इस आरोप का खंडन किया कि वह रेलवे का निजीकरण करने जा रही है.
विबेक देवरॉय समिति की अनुशंसाएँ
भारतीय रेलवे के लिए संसाधन जुटाने तथा रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन हेतु उपाय सुझाने के लिए बनी विबेक देवरॉय समिति ने मुख्य रूप से यह अनुशंसा की है कि रेल वैगनों और कोचों का निजीकरण कर दिया जाएगा. इसके अतिरिक्त उसकी अन्य अनुशंसायें निम्नवत हैं –
- यात्री भाड़े को बढ़ाकर बेहतर सुविधाएँ दी जाएँ.
- रेलवे की अवसंरचना के लिए एक अलग कम्पनी बनाई जाए.
- यदि कोई गाड़ियों के संचालन के बाजार में आना चाहता है तो उसे खुली पहुँच दी जाए.
- उपनगरीय क्षेत्रों के लिए अलग सेवा दी जाए और इसका संचालन सरकार के संयुक्त उपक्रम के रूप में किया जाए.
- माल गाड़ियों और सवारी गाड़ियों दोनों के संचालन में निजी क्षेत्र को सम्मिलित किया जाए और भारतीय रेलवे के साथ निजी क्षेत्र प्रतिस्पर्धा करे.
- रेल ट्रैक को रोलिंग स्टॉक से अलग कर दिया जाए.
GS Paper 2 Source: Indian Express
Topic : El Niño
संदर्भ
इस वर्ष के आरम्भ से प्रशांत महासागर में उभर रहा एक दुर्बल एल-नीनो अब बिखर चला है. अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन के जलवायु भविष्यवाणी केंद्र द्वारा निर्गत नवीनतम बुलेटिन के अनुसार अगले दो महीने में प्रशांत महासागर में पूरी तरह से तटस्थ स्थिति लौट आने की संभावना है.
El Nino क्या है?
El Nino के एक जलवायवीय चक्र है जिसके अंतर्गत प्रशांत महासागर के पशिमी क्षेत्र में हवा का दबाव ऊँचा होता है और पूर्वी प्रशांत सागर में हवा का दबाव कम होता है. एल नीनो के प्रभाव से एशियाई समुद्र तल के तापमान में 8 डिग्री सेल्सियस का उछाल आ सकता है. साथ ही पूर्वी प्रशांत महासागर क्षेत्र में स्थित देशों – इक्वेडोर, पेरू और चिली के तटों पर ठंडा पानी उठकर समुद्र तल पर आ जाता है. गहराई से पानी के ऊपर आने के इस प्रक्रिया से एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में सहायता मिलती है.
एल नीनो के लक्षण
एल नीनो होने पर विषुवत रेखा से लगी पछुआ व्यापारिक हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं और वायुदाब में परिवर्तन होने के कारण जल पूरब की ओर बहकर दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी तट की ओर जाने लगता है. मध्य और पूर्व प्रशांत क्षेत्र छह महीने से अधिक गर्म होता है जिसके कारण एल नीनो की दशा उत्पन्न हो जाती है. इस अवस्था में जल का तापमान सामान्य की तुलना में 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है. पानी के अधिक गर्म होने से वाष्पीकरण बढ़ जाता है और इसके कारण एक ओर जहाँ दक्षिण अमेरिका में सामान्य से अधिक वर्षा होती है तो दूसरी इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में सूखा पड़ जाता है.
El Nino के प्रभाव
- El Nino वैश्विक मौसम को प्रभावित करता है. इसके कारण पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में Hurricane और ऊष्ण कटिबंधीय आंधियाँ उत्पन्न होती हैं. इसके चलते पेरू, चिली और इक्वेडोर में अभूतपूर्व एवं असामान्य वृष्टिपात होता है.
- एल नीनो के कारण ठन्डे पानी का ऊपर आना घट जाता है और परिणामस्वरूप समुद्र तल के पोषक तत्त्व ऊपर नहीं आ पाते हैं. इससे समुद्री जीवों और पक्षियों के जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है. मत्स्य उद्योग को भी क्षति पहुँचती है.
- एल नीनो के कारण द. अफ्रीका, भारत, द.पू. एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागरीय द्वीपों में सूखा पड़ जाता है. अतः खेती को क्षति पहुँचती है.
- ऑस्ट्रेलिया और द.पू. एशिया पहले से अधिक गर्म हो जाते हैं.
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में सूचित किया है कि अल-नीनो के कारण मच्छरों से होने वाले रोग फैलते हैं.
एल-निनो और भारतीय मानसून
- एल-निनो एक संकरी गर्म जलधारा है जो दिसम्बर महीने में पेरू के तट के निकट बहती है. स्पेनिश भाषा में इसे “बालक ईसा (Child Christ)” कहते हैं क्योंकि यह धारा क्रिसमस के आस-पास जन्म लेती है.
- यह पेरूबियन अथवा हम्बोल्ट ठंडी धारा की अस्थायी प्रतिस्थापक है जो सामान्यतः तट के साथ-साथ बहती है.
- यह हर तीन से सात साल में एक बार प्रवाहित होती है और विश्व के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बाढ़ और सूखे की वहज बनती है.
- कभी-कभी यह बहुत गहन हो जाती है और पेरू के तट के जल के तापमान को 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है.
- प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधीय जल की यह उष्णता भूमंडलीय स्तर पर वायु दाब तथा हिन्द महासागर की मानसून सहित पवनों को प्रभावित करती है.
- एल निनो के अध्ययन से यह पता चलता है कि जब दक्षिणी प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ता है तब भारत में कम वर्षा होती है.
- भारतीय मानसून पर एल-नीनो का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है और इसका प्रयोग मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है.
- मौसम वैज्ञानिकों का विचार है कि भारत में 1987 का भीषण सूखा एल-निनो के कारण ही पड़ा था.
- 1990-1991 में एल-निनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था. इसके कारण देश के अधिकांश भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों की देरी हो गई थी.
ENSO क्या है?
ENSO का full form है – El Nino Southern Oscillation. जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है कि यह पवनों और समुद्र-तल के तापमान में होने वाले उस अनियमित और सामयिक परिवर्तन का नाम है जो उष्ण कटिबंधीय पूर्वी प्रशांत सागर में होता है. ENSO का प्रभाव भूमध्यरेखा के आस-पास के क्षेत्रों और उष्ण कटिबंध के समीप स्थित क्षेत्रों पर पड़ता है. ENSO के गरम होने वाले चरण को अल-नीनो और ठन्डे होने वाले चरण को ला नीना (La Nina) कहते हैं.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Why is India opting for overseas bonds?
संदर्भ
भारत सरकार ने यह घोषणा की है कि वह अपनी कुल उधारी का एक भाग विदेशी बाजारों से उठाएगा. सितम्बर तक सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक मिलकर कर विदेशों के लिए सोवरेन बॉन्ड निर्गत करने की योजना को अंतिम रूप दे देंगे.
एक ओर जहाँ कई टीकाकार तर्क दे रहे हैं कि ऐसा करना एक जोखिम-भरा कदम होगा. वहीं दूसरी ओर सरकार को विश्वास है कि इससे देश में निजी निवेश बढ़ाने में सहायता मलेगी.
विदेशी बॉन्ड क्या होता है?
सरकारी बॉन्ड अथवा सोवरेन बॉन्ड सरकार द्वारा लिए जाने वाले ऋण का एक प्रकार है जिसमें सरकार इस वचन पर बॉन्ड निर्गत करती है कि वह आवधिक ब्याज का भुगतान करेगी और साथ ही बॉन्ड में लिखित पूरी राशि को उसकी परिपक्वता की तिथि पूरी होने पर भुगतान कर देगी. सरकार पहली बार विदेशों के लिए ऐसे बॉन्ड निर्गत करने जा रही है.
विदेशी बॉन्ड के लाभ
सरकार का यह तर्क रहा है कि सरकारी उधारी उस स्तर पर पहुँच गई है जहाँ निजी क्षेत्र को अपनी साख और निवेश की आवश्यकताओं को सही ढंग से पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं है.
यदि निजी क्षेत्र यथोचित उधारी नहीं लेता तो वह उत्पादन में पूँजी लगाने में असमर्थ हो जाएगा और इस प्रकार आर्थिक वृद्धि का एक बड़ा ईंजन दुर्बल पड़ जाएगा.
ऐसी दशा में यदि सरकार धनराशि उगाहने के लिए विदेश से बॉन्ड के माध्यम से उधारी लेती है तो वह निजी क्षेत्र को पर्याप्त मात्रा में घरेलू ऋण उपलब्ध करा सकेगी.
GS Paper 3 Source: Indian Express
Topic : Jalyukta Shivar
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जलयुक्त शिवार महाराष्ट्र सरकार की एक मूर्धन्य योजना है जिसका आरम्भ दिसम्बर, 2014 में हुआ था. इसका उद्देश्य 5,000 गाँवों को जल के अभाव से मुक्त करना है.
कार्यान्वयन
- इस योजना का लक्ष्य सूखा प्रवण क्षेत्रों में जल संरक्षण के उपाय कर उनको जल के विषय में आत्म-निर्भर बनाना है.
- मानसून के महीनों में और अन्य महीनों में भी वर्षा जल बह कर नष्ट हो जाता है. इस योजना में ऐसे जल को अधिकतर रोक के रखने का प्रस्ताव है. यह काम उन गाँवों में होगा जहाँ एक वर्ष में तुलनात्मक दृष्टि से कम वृष्टिपात होता है.
- इस योजना के अंतर्गत गाँवों में दूर-दूर पर जलाशय बनाए गये जिससे कि भूजल की मात्रा बढ़ सके.
- इस योजना के अन्दर तालाबों और अन्य जल-स्रोतों के जल भंडारण की क्षमता को सुदृढ़ किया जाता है और उनका कायाकल्प किया जाता है.
- योजना का लक्ष्य पाने के लिए कई समितियाँ बनाई गई हैं जो तालाब, सीमेंट के नालों आदि जैसे जलाशयों के निर्माण में सहायता करती हैं और साथ ही गाँवों के पहले से वर्तमान तालाबों का कायाकल्प भी करती हैं.
योजना क्यों लाई गई?
महाराष्ट्र के क्षेत्रफल के 82% क्षेत्र में वर्षा ठीक-ठाक होती है जबकि 52% क्षेत्र सूखा प्रवण हैं. जब कभी भी बरसात कम होती है अथवा मानसून के समय लम्बा सूखा चलता है तो खेती का काम विकट रूप से बाधित हो जाता है.
योजना के दीर्घकालिक उद्देश्य
- महाराष्ट्र जैसे कृषि पर निर्भर राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करना.
- पानी और सिंचाई की मूलभूत समस्या का समाधान करते हुए किसानों की आय को बढ़ाना.
- जिन गाँवों में प्राकृतिक रूप से जल की आपूर्ति सीमित होती है वहाँ जलाभाव को कम करना.
- जोखिम प्रबंधन में सुधार लाकर गाँवों को सूखे से लड़ने में समर्थ बनाना और कुशल प्रबंधन के माध्यम से जल की उपलब्धता में सुधार लाना.
योजना अल्पकालिक उद्देश्य
- बह कर नष्ट होने वाले पानी की मात्रा को घटाना और उसकी दिशा बदलकर उसे किसी न किसी जल भण्डार तक पहुँचाना.
- जल भंडारण की क्षमता बढ़ाना.
- भूजल का स्तर बढ़ाने के लिए कार्य करना.
- मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हुए कृषि उत्पादकता में सुधार लाना.
Prelims Vishesh
Meghalaya to have State Water Policy :-
- मेघालय मंत्रिमंडल ने प्रारूप जल नीति का अनुमोदन कर दिया है और इस प्रकार मेघालय जल नीति करने वाला पहला राज्य बन गया है.
- इस नीति में जल के उपयोग, उसके संरक्षण और जल संसाधनों की सुरक्षा जैसे विषयों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.
- इस नीति में प्रस्ताव दिया गया है कि वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए चेक डैम बनाए जाएँगे और वर्षा जल के संचय के लिए एक तंत्र विकसित किया जाएगा.
- साथ ही इसमें भूजल के अनुचित प्रयोग पर लगाम कसने की बात कही गई है. इस जल नीति की एक विशेषता यह भी है कि इसमें जल की गुणवत्ता को बचाए रखने पर भी ध्यान दिया गया है.
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